बाजरे में कौन कौन से रोग होते हैं? - baajare mein kaun kaun se rog hote hain?

बाजरा चारे की फसल में मुख्य फसल है और इसके ऊपर होने वाले रोगों के कारण इसकी पैदावार में नुक्सान होता है।इन बिमारियों में सबसे ज्यादा नुक्सान करने वाली बीमारी हरित बाली रोग और अरगट ।

जानिए इस ब्लॉग के जरिये कि कैसे इन बिमारियों की रोकथाम :-

(1) हरित बाली रोग या मृदुरोमिल आसिता

यह रोग बाजरे की फसल का एक बहुत हानिकारक रोग है तथा भारत के लगभग सभी बाजरे के उत्पादित प्रदेशों मे पाया जाता है। इस रोग का भारत में सबसे पहले 1907 में बटलर नाम के वैज्ञानिक ने उल्लेख किया था।

यह रोग राजस्थान गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा इत्यादी राज्यों में पाया जाता है। इस रोग की वजह से ज्यादा उपज देने वाली वेरायटी में 30 प्रतिशत तक नुकसान होने की सूचना है। इसके अलावा कभी कभी रोग की तीव्रता बढनें से 40-45 प्रतिशत पौधे रोगग्रस्त हो जाते हैं।

रोग चक्र एवं अनुकूल वातावरण:

रोग के संक्रमण का प्राथमिक स्त्रोत बीज जनित या मिट्टी जनित और पौधे के अवशेष हैं। इस कवक की सुस्त अवस्था 1 से 10 साल तक जीवक्षम रहती है। बरसात के मौसम में विषाणु रोग का आगे प्रसार करती है।

सूखी और रोगग्रस्त जमीन इस रोग के उत्पति के लिए जिम्मेदार है। पत्तियों पर पानी की उपस्थिति एवं 90 प्रतिशत से ज्यादा नमी (आद्रता) और 22-25 से (°C) जितना तापमान इस रोग के लिए अनुकूल है।

प्रबंधन:

हमेषा रोगरहित स्वस्थ और प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। रोगग्रस्त पौधों को शुरुआत में ही उखाडकर नष्ट कर देना चाहिए जिससे अवशेषों में रहे कवक का नाश हो जाये। बीज को बोने के लिए कम बिछाने वाली और कम जल भराव वाली जमीन का चयन करना चाहिए।

बीज को बोने से पहले रिडोमिल एम.जेड. 72 डब्ल्यू. पी. दवाई से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करना चाहिए। इससे शुरुआत के दिनों में फसल को इस रोग से रक्षण मिलता है।

इसके अलावा रिडोमिल एम.जेड. दवाई को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ खेतों में छिडकाव करने से भी रोग पर काबू पाया जा सकता है। रोगप्रतिरोधी वेरायटी जैसे कि जी. एच. बी-351, जी. एच. बी.-558 और आर. सी. बी-2 ( राजस्थान संकुल बाजरा-2) इत्यादी बोना चाहिए।

(2) अरगट (शर्करा रोग)

य़ह बाजरे का एक प्रमुख रोग है। यह रोग अफ्रीका और भारत के कई हिस्सों में बताया गया है। यह रोग हमारे देश में 1956 मे सबसे पहले महाराष्ट्र में रिपोर्ट किया गया था। भारत में इस रोग का प्रकोप दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं गुजरात में पाया जाता है। इन राज्यों में इस रोग के कारण लगभग 70 प्रतिशत तक पैदावार में नुकसान की जानकारी है।

रोग चक्र एवं अनुकूल वातावरण:

रोग को उत्पन्न करने में संक्रमित बालियों से प्राप्त हुए बीजों पर स्थित स्कलैरोशियम या उनकी सतह पर स्थित कोनीडिया की मुख्य भूमिका है। जब मधु-बिन्दु अवस्था होती है तब इन कोनीडिया का फैलाव बारिश, हवा, कीडे से प्रसारित हो जाती है।

उच्च आर्द्रता वाला मौसम, फूल आने के समय में बारिश का होना और घूप की कमी, बादल छाए रहना ये सब परिस्थितियां इस रोग के लिए अनुकूल है।

प्रबंधन:

बाजरे की जुलाई के प्रथम सप्ताह में बुवाई करके रोग से बचाव किया जा सकता है। जिस खेत में यह रोग लग गया है उसमें अगले वर्ष बाजरे की फसल नहीं उगानी चाहिए तथा उसके स्थान पर मक्का, मूंग या कोई दूसरी फसल लेनी चाहिए।

गर्मियों में खेतों में गहरी जुताई करनी चाहिए। हमेशा प्रमाणित किए हुए स्वस्थ और स्वस्थ बीजों का उपयोग करें। यदि बीजों के साथ कुछ स्कलेरोशीयम मिली होने की सम्भावना हो तो इन्हे दूर करने के लिए बीजों की 15-20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबाने से कवक की पेशियां उपर तैरने लगती है। तब इनको छानकर अलग करके नीचे बैठे हुए बीजों को पानी से धोकर सुखा लेना चाहिए।

इसके अलावा थाइरम एवं एग्रीसान जी.एन. का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करना चाहिए। खेतों में फूल आने के समय में जाइरम 2 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में छिडकाव करना चाहिए।

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बाजरा में लगने वाले प्रमुख रोग व उनकी रोकथाम

बाजरा में लगने वाले प्रमुख रोग व उनकी रोकथाम

लेखक - Dr. Pramod Murari | 18/7/2020

बाजरा कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों में शामिल है। मुख्यतः इसका इस्तेमाल पशुओं के चारे के तौर पर किया जाता है। कई रोग बाजरे की फसल के लिए नुकसानदायक होते हैं। समय रहते इन रोगों पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।

कुछ प्रमुख रोग

  • हरित बाल रोग : इस रोग को ग्रीन ईयर या जोगिया के नाम से भी जाना जाता है। रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है। रोग बढ़ने पर पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देने लगता है और हरे रंग के बाल जैसे बन जाते हैं। इस रोग के होने पर प्रति एकड़ जमीन में 800 ग्राम मैंकोजेब का छिड़काव करें।

  • ब्लास्ट रोग : इस रोग के होने पर बाजरे की पत्तियों और तनों पर गहरे भूरे रंग के लंबे धब्बे बनने लग जाते हैं। पौधों का विकास रुक जाता है जिस कारण पैदावार में कमी आ जाती है। करीब 100 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी मिला कर छिड़काव करने से इस रोग से निजात मिल सकता है।

  • कंडुआ रोग : इस रोग के होने पर बीज का आकर बड़ा और अंडाकार होने लगता है। इसके साथ ही बीज के अंदर काले रंग का चूर्ण भर जाता है। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रोग ग्रसित बालियों को काट कर नष्ट कर देना चाहिए।

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बाजरा में कौन सा रोग होता है?

बाजरे की प्रारंभिक अवस्था में सफेद लट, तनाछेदक कीट, तना मक्खी और दीमक लगने का अंदेशा रहता है। इनसे बचने के लिए किसान को सावधानी बरतने के साथ ही इनका तत्काल उपाय करने की भी जरूरत है। इससे न सिर्फ फसल के उत्पादन पर असर पड़ता है, बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित हो सकती है।

बाजरे का हरित बाली रोग का रोगजनक क्या है?

हरित बाली रोग : बाजरेमें मुख्य रूप से हरित बाली रोग लगता है। इसे तुलासिता और अंग्रेजी में डाउनीमिलड्यू रोग भी कहा जाता है। बिजाई के 25 से 35 दिन बाद में और कुछ स्थानों पर एक से डेढ़ माह बाद रोग के लक्षण दिखते हैं। इस रोग की पहचान करने के लिए बाजरे की पत्तियों को उलट कर देखना चाहिए।

मक्के में कौन कौन से रोग लगते हैं?

मक्के की फसल में कीटों व रोगों से मुक्ति.
तुलासिता रोग पहचान: इस रोग में पत्तियों पर पीली धारियां पड़ जाती है। पत्तियों के नीचे की सतह पर सफेद रुई के समान फफूंदी दिखाई देती है। ... .
झुलसा रोग पहचान: इस रोग में पत्तियों पर बड़े लम्बे अथवा कुछ अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। ... .
तना सडऩ.

बाजरा कैसे ठीक करें?

पहले भिगो लें- बाजरा का उपयोग करने से पहले उसे कम से कम 6-8 घंटे के लिए भिगोना चाहिए। भिगोने से अनाज की पोषक सामग्री को बढ़ाने में मदद मिलती है और खाना पकाने का समय भी कम हो जाता है। पोर्शन साइज- बाजरा खाना आपके लिए स्वाथ्यवर्धक है, लेकिन उसका अधिक मात्रा में सेवन न करें। अपने आहार में एक ही समय उसका सेवन करें