बकरी बीमार हो जाए तो क्या करना चाहिए? - bakaree beemaar ho jae to kya karana chaahie?

बकरियों में यह रोग क्लास्टीडियम परप्रिफजेन्स जीवाणु से आंतों में उत्पन्न होता है। यह जीवाणु आंत में रहता है। इस बीमारी से पशुओं को अचानक से पेट में तीव्र दर्द होता है, जिससे वे जमीन पर गिरकर घिसटने या पड़े रहते हैं। इससें पशु की पांच से चौबीस घंटे में मृत्यु हो जाती है।

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उपचार-

इसके उपचार में बकरी को दो से पांच ग्राम खाने का सोडा तथा टेटांसाइक्लिीन पाउडर का घोल दिन में दो से तीन बार पिलाएं। इसके बचाव के लिए इन्टेरोक्सीमिया का वार्षिक टीकाकरण मुख्य उपाय है। साथ ही पशुओं को दिए जाने वाले दाने/चारे में अचानक कोई परिवर्तन न करें।

मुंहपका व खुरपका रोग-

यह संक्रामक विषाणु जनित रोग है जो फटे खुर वाले पशुओं में होता है। यह एक बकरी से दूसरी बकरी में हवा से, प्रदूषित पानी पीने अथवा रोगी बकरी के साथ चारा खाने से फैलता है। इसमें मुंह के भीतरी सतह, जीभ, पैर, थन आदि पर छाले पड़ जाते हैं।

उपचार

रोगी पशु को अन्य से अलग रख कर नरम एवं सुपाच्य भोजन देना चाहिए। जीवाणु नाशक एवं दर्द निवारक दवा की सुई लगवाने के साथ घाव छाालों की एन्टीसेप्टिक दवाओं से धुलाई करनी चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए प्रतिवर्ष छह माह के अन्तराल पर मार्च-अप्रेल तथा सितम्बर-अक्टूबर में पशुओं के टीके लगाएं।

बकरी प्लेग-
यह अत्यंत संक्रामक विषाणू जनित रोग है, जिससे एक ही बाडे़ में रहने वाली नब्बे फीसदी बकरियां संक्रमित हो जाती है। अस्सी फीसदी की इससे मौत हो सकती है। इस बीमारी से ग्रसित बीमारियों का तापमान १०५-१०६ डिग्री फैरेनहाइट हो जाता है। मुंह में छाले, काले रंग के दस्त, आंखों व नाक से पानी आना, सांस लेने में परेशानी आना इसके लक्षण है। मसुड़े तथा जीभ लाल हो जाती है।

उपचार-

पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें। चार से बारह माह के मेमनों में यह रोग तीव्र रूप से होता है। इस रोग से बचाव के लिए सभी बकरी तथा मेमनों को पी.पी. आर. का टीका लगवाएं।

अंत:परजीवी-

बकरियों के शरीर में गोलकृमि, यकृत कृमि एवं फीता कृमि वर्ग के कई अंत:परजीवी पाए जाते हैं। ये परजीवी गन्दे पानी व दूषित चारे के माध्यम से पशु के शरीर में प्रवेश कर आंत की ष्लेज्मा झिल्ली से चिपक कर पशु को कमजोर कर देते हैं। रोग ग्रसित बकरी को बदबूदार दस्त आती है और खून की कमी हो जाती है।

उपचार-

इसके बचाव के लिए कृमिनाशक औषधियां वर्ष में कम से कम दो बार बरसात के पहले और बरसात के बाद अवश्य देनी चाहिए। इसके लिए एलबेन्डाजोल ७.५ मि.ली.ग्राम/ किलो शारीरिक भार के अनुसार देनी चाहिए।

कोई भी व्यक्ति जो Goat Farming Project शुरू करने की सोच रहा हो | उसके लिए जरुरी हो जाता है की, उसे बकरी की बीमारी अर्थात Goat Diseases की भी जानकारी हो | ताकि समय आने पर वह उस स्थिति को संभालकर, कम से कम नुकसान के लिए उत्तरदायी हो | और जो लोग पहले से बकरी पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं | उनके लिए भी जरुरी है, की उन्हें Goat Diseases अर्थात बकरी की बीमारीयों की, और उस स्थिति से निपटने की जानकारी हो  | इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए आज हम बकरी की बीमारी और इस स्थिति से कैसे निपटा जाय विषय पर Hindi में बात करेंगे |

1. बकरी की बीमारी PPR Disease

Goat diseases अर्थात बकरी की बीमारी में यह PPR बीमारी सबसे खतरनाक एवं प्राणघातक बीमारी है |  यह disease (Bimari) सबसे पहले 1942 में पश्चिमी अफ्रीका में देखने को मिली थी | लेकिन आज यह बीमारी पूरे विश्व में फैल चुकी है | और इस बीमारी से लगभग हर देश की Bakriyan (Goat) ग्रसित हो सकती हैं | यह बीमारी किसी भी उम्र की Bakri को हो सकती है | 

इस PPR बीमारी के बारे में कहा जाता है की जिन बकरियों को यह बीमारी हो जाती है | उसका बच पाना बेहद मुश्किल होता है | अर्थात इस बीमारी में मृत्यु दर काफी उच्च 90% तक रहती है | माना 100 बकरियों को यह Bimari लग गई, तो माना ये जाता है की इस बीमारी से 90 बकरियों का मरना तो तय है | प्रत्येक वर्ष विश्व में इस बीमारी से सैकड़ो हज़ारो बकरियां मृत्यु की शय्या पर लेटने को मजबूर हो जाती हैं | 

जिससे न सिर्फ Bakri Palan करने वाले व्यक्ति का नुक्सान होता है | बल्कि राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर भी इसका बेहद गहरा असर पड़ता है | Bakri की यह Bimari एक वायरल है, और संक्रामक भी | और इसके कीटाणु सामान्यतः हवा से, खाने से, पानी पीने से बकरी के शरीर के अंदर प्रविष्ट कर जाते हैं |

बकरी बीमार हो जाए तो क्या करना चाहिए? - bakaree beemaar ho jae to kya karana chaahie?

 बकरी में पीपीआर रोग के लक्षण (Symptoms of PPR Disease in Goat Hindi)

  • Bakriके शरीर का तापमान बढ़ता जाता है | और Bakri को बुखार आ सकता है |
  • बकरी के नाक और आँख से लार सी टपकने लगती है| जो लगातार निकलती रहती है |
  • बकरी को दस्त और निमोनिया की शिकायत होने लगती है|
  • इस रोग disease के कारण Bakri अपनी आँखों को हमेशा बंद करके रखती है| या वह आँखे खोल पाने में असमर्थ हो जाती है |
  • बकरी के मुहं के अंदर छाले या जख्म होने लगते हैं|
  • बकरी के मुहं से बुरी तरह की बदबू आने लगती है|
  • इस Goat disease अर्थात बकरी की बीमारी के कारण अक्सर बकरियां चारा खाना बंद कर देती हैं|
  • .बकरियों के मलत्याग करते समय हो सकता है खून भी साथ में आये|

पीपीआर बकरी की बीमारी की रोकथाम  :

हालांकि जैसे की मैं उपर्युक्त वाक्य में बता चूका हूँ | इस बकरी की बीमारी से प्रभावित 90% बकरियों की मौत हो जाती है | नीचे हम इस Bimari के रोकथाम हेतु कुछ सुझाव दे रहे हैं | जिससे की यह बीमारी अन्य बकरियों को न लगे |

  • स्वस्थ बकरी को PPR जैसे रोगों से बचाने के लिए समय समय पर टिके लगवाते रहें|
  • अपने Goat Farm को हमेशा साफ़ और कीटाणु से मुक्त रखें|
  • इस रोग से पीड़ित Bakri को अन्य बकरियों के साथ न रखे| अलग से रख कर ही उसका उपचार करें |
  • नज़दीकी पशु चिकित्सालय केंद्र या पशु चिकित्सक से हमेशा संपर्क में रहें|
  • इस Bakri ki bimari (disease) से पीड़ित बकरी को चारा खिलानेया पानी पिलाने के लिए जिस बर्तन का इस्तेमाल किया जाता हो | यदि Bakri की मृत्यु हो जाती है तो बर्तनों को जमीन के अंदर गाड़ दें | जिससे यह सक्रामक Bimari अन्य किसी Bakri को न लगे |
  • इस बीमारी से पीड़ित बकरी को किसी को बेचने या इधर उधर भेजने की कोशिश न करें|
  • यदि कोई बकरी गंभीर रूप से इस Bimari अर्थात रोग की चपेट में आ चुकी है| तो उसका एकमात्र उपाय है, की आप उस बकरी को मार डालें | ताकि यह रोग अन्य बकरियों में न फैलने पाय |

पीपीआर बीमारी का उपचार/ईलाज:

अपने नज़दीकी पशु चिकित्सक से सलाह लेकर इस Bimari से पीड़ित बकरियों को एंटीबायोटिक एंड एंटी सीरम दवाएं दीजिये | इन दवाओं में PPR के कीटाणुओं को नष्ट करने का सामर्थ्य होता है |

2. एंथ्रेक्स बकरी की बीमारी (Anthrax disease):

Anthrax को Hindi में गिल्टी रोग भी कहा जाता है | यह रोग सिर्फ बकरियों को न लगकर अन्य घरेलु पशुओं को भी लग सकता है | इस रोग के होने का कारण Bacillus Anthracis नामक एक जीवाणु होता है | यह जीवाणु बकरियों के शरीर के अंदर हवा, पानी, खाना, सांस, घाव इत्यादि के माध्यम से प्रविष्ट कर सकता है | वैसे तो इस बकरी की बीमारी के लक्षण एक से पांच दिन में दिखाई देने लगते हैं | लेकिन बहुत बार बिना लक्षण दिखे भी Bakri की मौत हो सकती है |

एंथ्रेक्स बीमारी के लक्षण (Symptoms of Anthrax)

  • इस बीमारी से ग्रसित Bakri के नाक, मुहं और मलद्वार से खून निकलने लगता है|
  • इस Bimari से ग्रसित बकरी एकदम से खाना खाना बंद कर देती है|
  • बकरियां जुगाली करना अर्थात मुहं से उगार काटना बंद कर देती हैं|
  • बकरियों के शरीर के तापमान में बहुत अधिक तेजीहो जाती है | सामान्यतः एक स्वस्थ बकरी के शरीर का तापमान 101 से लेकर 103 फार्नेहाइट होता है | जबकि इस बीमारी के दौरान Bakri के शरीर का तापमान 144 फार्नेहाइट तक चला जाता है | जो बेहद खतरनाक है |
  • सांस लेने और छोड़ने में बकरियों को बहुत कष्ट होता है|
  • इस बकरी की बीमारी के जीवाणु लगभग 35 या 40 साल तक जिन्दा रह सकते हैं | और इनसे मनुष्य और अन्य पशु भी प्रभावित हो सकते हैं |

एंथ्रेक्स बीमारी का उपचार :

बकरियों को पशुचिकित्सक की सलाह से एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करवाएं |

एक बार हर एक Bakri को Anthrax Rog की रोकथाम हेतु टीका अवश्य लगाएं |

3. बकरी में निमोनिया की बीमारी

बकरियों में निमोनिया की बीमारी अनेक कारणों जैसे वायरस,जीवाणु, परजीवी इत्यादि कारणों से हो सकती है | बकरियों में होने वाला निमोनिया का रोग एक प्राणघातक रोग है | इस Rog के जीवाणु, कीटाणु, परजीवी खाने के, पीने के, सांस लेने के माध्यम से फैलते हैं |

बकरी में निमोनिया के लक्षण:

  • निमोनिया से Bakri के फेफड़ों में सूजन आ जाती है|
  • इस बकरी की बीमारी में भी बकरियों के शरीर का तापमान 144 से 148 फार्नेहाइट चला जाता है|
  • बकरियों के सांस लेने की गति तेज हो जाती है|
  • नाक से कोई तरल पदार्थ बाहर निकलने लगता है| और बकरियों को खांसी भी हो जाती है |
  • जीभ में सूजन देखने को मिलती है| और बकरियां अपनी जीभ को हमेशा बहार को लटकाए रहते हैं |
  • इस Bimari में बकरियां खाने के प्रति उदासीन रवैया अपनाती हैं| अर्थात खाने में उनकी कोई विशेष रूचि नहीं होती |
  • इस बीमारी में भी जुगाली करना अर्थात उगार काटना बंद हो जाता है|
  • इस बकरी की बीमारी में बकरियों को हमेशा नींद सी आई रहती है | और वे धीरे धीरे बहुत कमज़ोर हो जाती हैं |

उपचार :

किसी पशु चिकित्सक से राय परामर्श लेकर बकरियों को दवाओं का सेवन करवाएं |

4. बकरियों में पैर एवं मुहं की बीमारी:

जैसा की Hindi में Foot को पैर और Mouth को मुहं कहते हैं | इसलिए हम इस बकरी की बीमारी को पैरो और मुहं का रोग भी कह सकते हैं | यह बीमारी सिर्फ बकरियों को न होकर अन्य घरेलु पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़ को भी अपना शिकार बनाती है | इस बीमारी से अन्य पशु की तुलना में गाय अधिक प्रभावित होती है | अर्थात गायों में यह रोग अधिक देखने को मिलता है | इस रोग का कारण Picorna नामक एक वायरस है | इस बकरी की बीमारी की निम्न लक्षणों से पहचान की जा सकती है |

बकरियों में पैर एवं मुहं रोग के लक्षण:

  • इस बीमारी से ग्रसित Bakri को बुखार आने लगता है|
  • बकरी या गाय या अन्य पशु के मुहं में, जीभ में, होठो पर या जबड़ो में छाले दिखाई देते हैं|
  • और खाते समय ये छाले फूट जाते हैं| जिस कारण छाले वाला स्थान में लाल रंग का घाव नज़र आने लगता है |
  • इस बकरी की बीमारी के दौरान पशु के मुहँ से लगातार लार निकलती रहती है|
  • घाव से बहुत गन्दी बदबू आने लगती है|
  • घाव में तरह तरह के कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं|

पैर एवं मुहं रोग की रोकथाम:

  • इस बकरी की बीमारी से पीड़ित Bakri को अन्य Bakriyon से अलग रखें|
  • पीड़ित पशु या bakri को किसी साफ़ सुथरी सूखी जगह पर रखें|
  • पशु के घाव को दिन में तीन बार किसी उपयुक्त लोशन का उपयोग करके साफ़ करें|
  • घाव को उपयुक्त लोशन से साफ़ करने के बाद उसमे एंटीबायोटिक पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है|
  • पीड़ित पशु को ऐसा खाना दें जिसे वह आसानी से निगल सके|
  • जैसे ही आपको लगता है आपके bakri या पशु को कोई रोग है| तुरंत नज़दीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें |
  • समय समय पर टीकाकरण बहुत जरुरी है|
  • हर छ महीने में एक बार अपने पशु को इस बकरी की बीमारी से बचाने वाला टीका अवश्य लगाएं|

5. बकरी की Enterotoxemia बीमारी.

यह बकरी की बीमारी अधिकतर बकरियों को दानेदार खाना खिलाने के कारण होती है | क्योकि दानेदार खाना बकरियों के पेट में विषैले जीवाणु को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करता है | और यह रोग पेट में विषैले जीवाणु उत्पन्न होने के कारण ही होता है |

बीमारी के लक्षण:

  • इस बकरी की बीमारी से पीड़ित बकरी के पेट में बहुत तेज का दर्द उठता है| और उसकी मृत्यु एकदम से हो सकती है |
  • बकरी के शरीर का तापमान 105 तक जा सकता है| और पेट में तेज दर्द होने के कारण bakri जोर जोर से चिल्ला सकती है |
  • बकरी को दस्त होने की शिकायत हो सकती है|
  • पीड़ित बकरी अपने सिर को किसी ठोस वस्तु से भिड़ाने की कोशिश कर सकती है|
  • मुहं से लगातार लार का निकलना भी इस Bakri ki bimari के लक्षण हो सकते हैं|
  • इस रोग से पीड़ित बकरी 4 से 26 घंटो में मर सकती है|
  • इस बकरी की बीमारी से पीड़ित bakri कराह या अजीब अजीब सी आवाजें कर सकती हैं|

उपचार :

हालांकि इस रोग से निबटने या निजात पाने का कोई प्रभावी इलाज है नहीं | फिर भी आप अपने नज़दीकी पशु चिकित्सक से राय परामर्श करके कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग कर सकते हैं |

6. बकरी में  Worm Infestation बीमारी :

सामान्यतः कीड़े बकरियों के लिए बहुत ही खतरनाक परजीवी हैं | इन परजीवी कीड़ों की पूरी प्रजाति को  Gastrointestinal Trichostrongyles कहते हैं | बकरियां इन परजीवी कीड़ों के संपर्क में तब आती हैं | जब वो चरना शुरू करती हैं | चरने के दौरान कीड़े का बच्चा Bakri के मुहं में चले जाता है | और बकरी के पेट को अपने रहने का स्थान बना देता है |

वही पेट के अंदर ही यह कीड़ा बच्चे को जन्म देता है | और धीरे धीरे इन कीड़ों की संख्या पेट के अंदर बढ़ती जाती है | पेट के अंदर ही ये परजीवी कीड़े बकरी का खून चूसते रहते हैं | इस प्रकार का एक मादा कीड़ा एक दिन में 5 से 10 हज़ार अंडे देता है | और ये अंडे बकरी के मल करते समय मलद्वार से बाहर आ जाते हैं | उसके बाद गर्मी में या मिटटी में ये अंडे कीड़े के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं | जो किसी और Bakri के पेट में भी चरने के दौरान जा सकते हैं |

Barber Pole warm Infestation bimari ke Symptoms

  • बकरियों को डायरिया अर्थात दस्त लग जाते हैं |
  • इस बकरी की बीमारी के कारण बकरियों के शरीर में भारी मात्रा में पानी की कमी हो जाती है |
  • बकरी बेहद सुस्त सी नज़र आती है |
  • बकरी को देख के ऐसा लगता है की वह बहुत उदास, और उसके शरीर में कोई ऊर्जा ही नहीं है |
  • लगातार बकरी के वजन में कमी आने लगती है |
  • बकरियों में खून की मात्रा कम होने लगती है |

उपचार :

Barber Worm Infestation के दौरान आप बकरियों को अपने नज़दीकी पशुचिकित्सक की सलाह से निम्न दवाएं दे सकते हैं |

.Fenbendazole BZD

.Morantel/Nicotinic

बकरी को बीमारीयों से दूर रखने के लिए कुछ टिप्स:

  • अपने Goat Farming में प्रयोग में लाये जाने वाले उपकरणों की सफाई किसी कीटाणुनाशक दवा का उपयोग करके करें | इस कीटाणुनाशक दवा की सलाह अपने नज़दीकी पशु चिकित्सक से अवश्य लें |
  • Bakri के मल मूत्र इत्यादि को नियमित तौर पर बकरियों के रहने के स्थान से दूर रखें |
  • बकरियों को उनकी उम्र के हिसाब से अलग अलग उनके रहने की व्यवस्था करें |
  • बकरियों को हमेशा पौष्टिक आहार दें | सड़ा, गला, बासी खाना देने से बचें |
  • जो बकरियां आपने अभी अभी खरीदी हैं | और जो बकरिया आपके गोआट फार्म में पहले से उपलब्ध हैं | उनके रहने की व्यवस्था अलग अलग करें |
  • नई बकरियाँ खरीदने से पहले यह अवश्य चेक कर लें की कही वो किसी बीमारी से ग्रसित तो नहीं हैं |
  • यदि कोई Bakri किसी बकरी की बीमारी के कारण अस्वस्थ है | तो उसको अन्य बकरियों से अलग ही रखें, और अच्छे ढंग से उसका इलाज कराएं |
  • बीमारियों से बचाने के लिए अपने नज़दीकी पशु चिकित्सक की सलाह पर समय समय पर अपनी बकरियों का टीकाकरण कराते रहें |
  • ठण्ड और बरसात के मौसम में बकरियों का विशेष ध्यान रखें | याद रहे बकरियों को ठण्ड और बरसात पसंद नहीं होती |
  • यदि किसी बकरी की बीमारी के कारणवश आपकी कोई बकरी मर जाती है | तो ध्यान रहे उस bakri के शरीर कोया तो जला के खत्म कर दें | या फिर मिटटी के अंदर बहुत गहराई में दबा दें | ताकि और किसी bakri को वह रोग न हो |

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  • बकरी पालन में आने वाला खर्चा और कमाई |
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इनका नाम महेंद्र रावत है। इनकी रूचि बिजनेस, फाइनेंस, करियर जैसे विषयों पर लेख लिखना रही है। इन विषयों पर अब तक ये विभिन्न वेबसाइटो एवं पत्रिकाओं के लिए, पिछले 7 वर्षों में 1000 से ज्यादा लेख लिख चुके हैं। इनके द्वारा लिखे हुए कंटेंट को सपोर्ट करने के लिए इनके सोशल मीडिया हैंडल से अवश्य जुड़ें।

बीमार बकरी को क्या देना चाहिए?

बीमार बकरियों को पोषक, स्वच्छ, मुलायम, नम और स्वादिष्ट चारा खिलाना चाहिए। पीपीआर से महामारी फैलने पर तुरंत ही नजदीकी सरकारी पशु-चिकित्सालय में सूचना देनी चाहिए। पीपीआर टीके का उपयोग मुख्यतया उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में होता हैं। टीके को ठन्डे तापमान पर रखना चाहिए

बकरी को बुखार लगने पर क्या करें?

इसके साथ खरीदें.
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बकरी चारा नहीं खाती तो क्या करें?

रोगी पशु को 5 से 10 ग्राम सोडा गर्म पानी में दें। एक कप मिनरल आॅयल देने से भी राहत मिल सकती है।

बकरियों को बीमारी से कैसे बचाएं?

बकरियों को खुरपका व मुंहपका रोग से बचाने के उपाय खुरपका व मुहंपका रोग ग्रसित पशुओं के उपचार के लिए सबसे पहले रोग से पीड़ित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए। रोगी पशु के खुरों व मुंह के छालों को एंटीसेप्टिक लोशन जैसे पोटाश, फिटकरी, बोरिक एसिड व नमक को पानी में डालकर धोना चाहिए।