बक्सर के युद्ध के प्लासी के युद्ध से अधिक महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? - baksar ke yuddh ke plaasee ke yuddh se adhik mahatvapoorn kyon maana jaata hai?

बक्सर का युद्ध
बक्सर के युद्ध के प्लासी के युद्ध से अधिक महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? - baksar ke yuddh ke plaasee ke yuddh se adhik mahatvapoorn kyon maana jaata hai?

तिथि 22/23 अक्टूबर 1764
स्थान बक्सर के पास
परिणाम ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की जीत
योद्धा
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अवध के नवाब
बंगाल के नवाब
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मुग़ल साम्राज्य
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ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी
सेनानायक
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शुजाउद्दौला
मीर कासिम
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मिर्ज़ा नजफ खां
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शाह आलम द्वितीय
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नोवर का हेक्टर मुनरो
शक्ति/क्षमता
४००००
१४० तोपें
७०७२
३० तोपें
मृत्यु एवं हानि
१०,००० मरे गए या घायल हुए
६००० बन्दी बनाये गये
१८४७ मारे गये या घायल हुए

बक्सर का युद्ध 22/23 अक्टूबर 1764 में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नवाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कम्पनी से लड़ रही थी। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणाम में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कम्पनी के हाथ चला गया।[1][2][3]

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

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१७६५ में भारत की राजनैतिक स्थिति का मानचित्र

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प्लासी के युद्ध के बाद सतारुढ़ हुआ मीर जाफ़र अपनी रक्षा तथा पद हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी पर निर्भर था। जब तक वो कम्पनी का लोभ पूरा करता रहा तब तक पद पर भी बना रहा। उसने खुले हाथों से धन लुटाया, किंतु प्रशासन सम्भाल नहीं सका, सेना के खर्च, जमींदारों की बगावतों से स्थिति बिगड़ रही थी, लगान वसूली में गिरावट आ गई थी, कम्पनी के कर्मचारी दस्तक का जम कर दुरूपयोग करने लगे थे। वो इसे कुछ रुपयों के लिए बेच देते थे। इस से चुंगी बिक्री कर की आमद जाती रही थी। बंगाल का खजाना खाली होता जा रहा था।

हाल्वेल ने माना की सारी समस्या की जड़ मीर जाफ़र है। उसी काल में जाफर का बेटा मीरन मर गया जिससे कम्पनी को अवसर मिल गया था और उसने मीर कासिम जो जाफर का दामाद था, को सत्ता दिलवा दी। इस हेतु २७ सितंबर १७६० एक संधि भी हुई जिसमें कासिम ने ५ लाख रूपये तथा बर्धमान, मिदनापुर, चटगांव के जिले भी कम्पनी को दे दिए। इसके बाद धमकी मात्र से जाफ़र को सत्ता से हटा दिया गया और मीर कासिम सत्ता में आ गया। इस घटना को ही १७६० की क्रांति कहते हैं।

मीर कासिम का शासन काल 1760-1764[संपादित करें]

मीर कासिम ने रिक्त राजकोष, बागी सेना, विद्रोही जमींदार जैसी विकट समस्याओ का हल निकाल लिया। बकाया लागत वसूल ली, कम्पनी की माँगें पूरी कर दी, हर क्षेत्र में उसने कुशलता का परिचय दिया। अपनी राजधानी मुंगेर ले गया, ताकि कम्पनी के कुप्रभाव से बच सके। सेना तथा प्रशासन का आधुनिकीकरण आरम्भ कर दिया।

उसने दस्तक पारपत्र के दुरूपयोग को रोकने हेतु चुंगी ही हटा दी। मार्च 1763 में कम्पनी ने इसे अपने विशेषाधिकार का हनन मान युद्ध आरम्भ कर दिया। लेकिन इस बहाने के बिना भी युद्ध आरम्भ हो ही जाता क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने हितों की पूर्ति में लगे थे। कम्पनी को कठपुतली चाहिए थी लेकिन मिला एक योग्य हाकिम।

1764 युद्ध से पूर्व ही कटवा, गीरिया, उदोनाला, की लडाइयों में नवाब हार चुका था उसने दर्जनों षड्यन्त्रकारियों को मरवा दिया (वो मीर जाफर का दामाद था और जानता था कि सिराजुद्दौला के साथ क्या हुआ था।)

अवध, मीर कासिम, शाह आलम का गठ जोड़[संपादित करें]

मीर कासिम ने अवध के नवाब से सहायता की याचना की, नवाब शुजाउदौला इस समय सबसे शक्ति शाली था। मराठे पानीपत की तीसरी लड़ाई(१७६१) से उबर नहीं पाए थे, मुग़ल सम्राट तक उसके यहाँ शरणार्थी था, उसे अहमद शाह अब्दाली की मित्रता प्राप्त थी।

जनवरी १७६४ में मीर कासिम उससे मिला। उसने धन तथा बिहार के प्रदेश के बदले उसकी सहायता खरीद ली। शाह आलम भी उनके साथ हो लिया। किंतु तीनों एक दूसरे पर संदेह करते थे।

युद्ध के घातक परिणाम[संपादित करें]

२२/२३ अक्टूबर १७६४ को बक्सर के युद्ध में हार मिलने के बाद मुगल सम्राट शाहआलम जो पहले ही अंग्रेजों से मिला हुआ था, अंग्रेजों से संधि कर उनकी शरण में जा पहुंचा। वहीं अवध के नवाब शुजाउदौला और अंग्रेजों के बीच कुछ दिन तक लड़ाईयां हुईं लेकिन लगातार परास्त होने की वजह से शुजाउदौला को भी अंग्रजों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी।

वहीं इलाहाबाद की संधि के बाद जहां मुगल बादशाह शाहआलम को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को उड़ीसा, बिहार, बंगाल का राजस्व और दीवानी कंपनी के हाथों के हाथों सौंपना पड़ा। वहीं अवध के नवाब शुजाउदौला को भी अंग्रेजों से हुई संधि के मुताबिक करीब ६० लाख रुपए की रकम इस युद्ध में हुए नुकसान के रुप में अंग्रजों को देनी पड़ी।

इलाहाबाद का किला और कड़ा का क्षेत्र छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीरजाफर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र नज्मुदौला को बंगाल का नवाब बना दिया। इसके अलावा गाजीपुर और पड़ोस का क्षेत्र अंग्रेजों को देना पड़ा। वहीं बक्सर के युद्ध में हार के बाद किसी तरह जान बचाते हुए मीरकासिम भागने में कामयाब रहा लेकिन बंगाल से अंग्रेजों का शासन खत्म करने का सपना उसका पूरा नहीं हो पाया।

वहीं इसके बाद वह दिल्ली चला गया और यहीं पर उसने अपना बाकी का जीवन बेहद कठिनाइयों के साथ गुजारा। वहीं १७७७ ईसवी के आसपास उसकी दिल्ली के पास ही मृत्यु हो गई। हालांकि उसकी मृत्यु के कारणों का खुलासा नहीं हो सका है। कुलमिलाकर बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रजों की शक्ति और भी अधिक बढ़ गई, जिसका दुष्परिणाम भारत की राजनीति पर पड़ा।

ज्यादातर राज्यों के शासक अंग्रेजों पर निर्भर रहने लगे और धीमे-धीमे भारत का सामाजिक, नैतिक, राजनैतिक और आर्थिक मूल्यों का पतन होने लगा और अंतत: अंग्रेज पूरी तरह से भारत को जीतने में सफल होते चले गए और फिर भारत गुलामी की बेडियों में बंध गया और अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचारों का शिकार हुआ।

इलाहाबाद की सन्धि[संपादित करें]

बक्सर के युद्ध की समाप्ति के बाद क्लाइव ने मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ क्रमश: इलाहाबाद की प्रथम एवं द्वितीय के संधि की।

इलाहाबाद की प्रथम संधि (12 अगस्त, 1765 ई.)
  • कंपनी को मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।
  • कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर मुगल, सम्राट शाहआलम द्वितीय को दे दिए।
  • कंपनी ने मुगल सम्राट को 26 लाख रूपये की वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया।
इलाहाबाद की द्वितीय संधि (16 अगस्त, 1765 ई.)

यह संधि क्लाइव एवं शुजाउद्दौला के मध्य सम्पन्न हुई। इस संधि की शर्तें निम्नवत थीं-

  • इलाहाबाद और कड़ा को छोड़कर अवध का शेष क्षेत्र शुजाउद्दौला को वापस कर दिया गया।
  • कंपनी द्वारा अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के खर्च पर एक अंग्रेजी सेना अवध में रखी गई।
  • कंपनी को अवध में कर-मुफ्त व्यापार करने की सुविधा प्राप्त हो गयी।
  • शुजाउद्दौला को बनारस के राजा बलवंत सिंह से पहले की ही तरह लगान वसूल करने का अधिकार दिया गया। राजा बलवंत सिंह ने युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी।

बंगाल में द्वैध-शासन[संपादित करें]

(Diarchy in Bengal) (1765-1772 ई.)

इलाहाबाद की प्रथम संधि बंगाल के इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी क्योंकि कालान्तर में इसने उन प्रशासकीय परिवर्तनों की पृष्ठभूमि तैयार कर दी जिससे ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था की आधारशिला रखी गयी। नवाब की सत्ता का अंत हो गया और एक ऐसी व्यवस्था का जन्म हुआ जो शासन के उत्तरदायित्व से मुक्त थी।

द्वैध शासन का अर्थ है दोहरी नीति अथवा दोहरा शासन। क्लाइव ने बंगाल में दोहरा शासन स्थापित किया जिसमें 'दीवानी' अर्थात भू-राजस्व वसूलने का अधिकार कम्पनी के पास था किन्तु प्रशासन का भार नवाब के कन्धों पर था। इस व्यवस्था की विशेषता थी- उत्तरदायित्व रहित अधिकार, तथा अधिकार रहित उत्तरदायित्व। इस योजना के अन्तर्गत सैनिक संरक्षण, विदेश व्यापार-नीति और विदेशी व्यापार का प्रबन्ध तो कम्पनी ने अपने हाथ में ले लिया तथा लगान वसूलने एवं न्याय के लिए भारतीय अधिकारियों को नियुक्त कर दिया गया। लगान वसूल करने के लिए मुहम्मद रजा खाँ को बंगाल का तथा शिताब राय को बिहार का दीवान बनाया गया।

इस व्यवस्था के अन्तर्गत कम्पनी द्वारा वसूले गये राजस्व में से प्रतिवर्ष २६ लाख रूपए सम्राट को तथा ५३ लाख रूपए बंगाल के नवाब को शासन कार्यों के संचालन के लिए दिया जाना था, शेष राशि को अपने पास रखने के लिए कम्पनी स्वतन्त्र थी।

शीघ्र ही द्वैध शासन प्रणाली के दुष्परिणाम सामने आने लगे। देश में कानून-व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी तथा न्याय मात्र बीते समय की बात होकर रह गया। इस सम्बन्ध में लॉर्ड कार्नवालिस ने इंग्लैंड के हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा था कि, मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि १७६५-१७८४ ई तक ईस्ट इंडिया कम्पनी की सरकार से अधिक भ्रष्ट, झूठी तथा बुरी सरकार संसार के किसी भी देश में नहीं थी। द्वैध शासन से कृषि व्यवस्था को भी आघात लगा। राजस्व वसूली, सर्वोच्च बोली लगाने वालों को दी जाने लगी। ऊपर से १७७० ई के बंगाल के अकाल ने तो कृषकों की कमर ही तोड़ दी।

चित्र दीर्घा[संपादित करें]

  • बक्सर के युद्ध के प्लासी के युद्ध से अधिक महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? - baksar ke yuddh ke plaasee ke yuddh se adhik mahatvapoorn kyon maana jaata hai?

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  • बक्सर के युद्ध के प्लासी के युद्ध से अधिक महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? - baksar ke yuddh ke plaasee ke yuddh se adhik mahatvapoorn kyon maana jaata hai?

    १७६५ में भारतीय उपमहाद्वीप का मानचित्र।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. परषोत्तम मेहरा (१९८५). आधुनिक इतिहास का शब्दकोश (१७०७-१९४७) [A Dictionary of Modern History (1707–1947)]. ऑक्स्फ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-561552-2.
  2. डू द बेस्ट. "बक्सर की लड़ाई". २७ नवंबर २०१५. मूल से 23 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 दिसम्बर 2017.
  3. "बक्सर का युद्ध". भारतकोश. मूल से 8 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 दिसम्बर 2017.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्लासी का पहला युद्ध
  • द्वैध शासन