Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. GSEB Class 10 Hindi Solutions बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. किसी की चीज नहीं छूते थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे।
उनकी हर चीज साहब की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते, उन्हें भेंट में रखते । जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते । उनका बाह्य दिखावा भी साधुओं के जैसा ही था । अतः अपने त्याग की प्रवृत्ति और साधुतापूर्वक व्यवहार के कारण ही वे साधु कहलाते थे। प्रश्न 2. प्रश्न 3. वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। वे गाते – गाते अपनी पुत्रवधू को समझाते कि रोने के बदले उत्सव मनाओ। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी अपने प्रेमी से जा मिली भला इससे अधिक आनंद की बात क्या हो सकती है। इस प्रकार बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं व्यक्त की । इस प्रकार का आचरण कोई सिद्धहस्त साधु ही कर सकता है। आम आदमी के बस की बात नहीं है यह। प्रश्न 4. सर्दियों में काला कम्बल ओढ़ते थे। माथे पर रामानंदी चंदन लगाते थे जो नाक से शुरू होकर ऊपर की ओर जाती थी। वे गले में तुलसी के जड़ों की बनी बेडौल माला पहनते थे। वे साधु के वेश में रहते थे। आचरण से भी पूर्णत: साधु थे। अपने जीवन में उन्होंने कबीर ‘साहब’ के आदर्शों का अनुकरण करते थे। कभी किसी से झगड़ा नहीं करते थे। जो बात है उसे खरा-खरा बोलने में विश्वास करते थे। कबीर के पदों को गाना उनके जीवन का सच्चा आनंद था। इस प्रकार बालगोबिन भगत का पहनावा यानी वेशभूषा और व्यक्तित्व सबसे अलग था। प्रश्न 5. आषाढ़ के दिनों में कीचड़ से लथपथ धान की रोपाई करते समय जब गीत गाते थे बच्चे उछल पड़ते, औरतों के ओंठ कांप उठते। उनके संगीत में एक प्रकार का जादू था। वे उपवास रखकर गंगा स्नान करने जाते तो घर आकर ही कुछ खाते-पीते थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे। किसी की चीज़ छूते नहीं थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। यहाँ तक कि वे कभी दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते थे। मरणासन्न स्थिति में भी वही जवानीवाली आवाज, वही नियम, संगीत के प्रति वही तन्मयता सबको अचरज में डाल देती थी। प्रश्न 6. उनके संगीत से ऐसा लगता था कि स्वर की एक तरंग स्वर्ग की ओर जा रही है, तो दूसरी तरंग लोगों के कानों की ओर । भयंकर सर्दी या उमसभरी गर्मी उनके स्वर को डिगा नहीं सकती। वे पूर्ण तल्लीनता के साथ गाते थे। झिाली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर उनके संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी खंजड़ी डिमग-डिमग बजती रहती और वे गा रहे होते – गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया । भादों की आधी रात को भी वे गाने लगते तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा तो उस समय अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देती थी। यों बालगोबिन भगत का संगीत अद्भुत था। प्रश्न 7.
प्रश्न 8. जब वे गीत गाने लगते तो लगता उनके कंठ से निकला एक स्वर स्वर्ग की ओर जा रहा है और दूसरा पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर । बच्चे खेलते हुए झूम उठते । मेड़ पर खड़ी औरतों के ओठ कांप उठते थे, वे भी गुनगुनाने लगती थीं। हलवाहों के पैर संगीत की ताल पर उठने लगते, रोपाई करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती थौं । चारों तरफ का वातावरण अद्भुत हो जाता था। रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 9. खेतों में जो फसल पैदा होती उसे पहले अपने ‘साहब’ को भेंट के रूप में चढ़ाते थे, जो प्रसाद के रूप में मिलता उसे घर लातें और उसी में से गुजारा करते थे। अपने बेटे की मृत्यु पर शोक न मनाकर वे गीत गाने में ही मग्न थे। उनके अनुसार आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया तो शोक की बजाय वे अपनी पुत्रवधू को उत्सव मनाने के लिए कहते हैं। उपरोक्त सभी घटनाएं बताती हैं कि बालगोबिन भगत कबीर पर बहुत श्रद्धा रखते थे। प्रश्न 10. प्रश्न
11. बारीस होने पर किसान, बच्चे, महिलाएं सभी खुश हो उठते हैं। खेतों में धान की रोपाई करने के लिए सारा गाँव खेतों में उमड़ पड़ता है। बच्चे धान की रोपाई करते समय कीचड़ में खेलते हैं, हलवाहे हल चलाते हैं, महिलाएं कलेवा लेकर मेड़ों पर इंतजार करती हैं। इस तरह आषाढ़ लगते ही गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश उल्लास से भर उठता है। प्रश्न
12. प्रश्न 13. उनके अनुसार आत्मा परमात्मा से मिल गई तो दुःख नहीं बल्कि उत्सव मनाने को कहते हैं। दूसरा प्रसंग वहाँ है जहां वे मोह नहीं प्रेम दर्शाते हैं । अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के हवाले कर उसे पुर्नविवाह की सलाह देते हैं। यदि उनके भीतर मोह की भावना होती तो वे अपना स्वार्थ साधने के लिए अपनी पूत्रवधू को अपने साथ रखते । जिससे वह उन्हें, भोजन आदि बनाकर देती, उनका ख्याल रखती। किन्तु यहाँ पर भी पुत्रवधू से मोह नहीं निःस्वार्थ प्रेमभावना के कारण अपने सुखों का त्याग कर उसे पुनर्विवाह करने को कहते हैं। वे अपनी पुत्रवधू के भविष्य को अपने से अधिक महत्त्व देते हैं। अत: इन दो प्रसंगों के आधार पर कह सकते हैं कि मोह और प्रेम में अंतर होता है। भाषा-अध्ययन प्रश्न 14.
Hindi Digest Std 10 GSEB बालगोबिन भगत Important Questions and Answers पाठेतर सक्रियता प्रश्न 1.
प्रश्न
2. न हल जोतते किसान, न कलेवा लेकर मेड़ पर इंतजार करती औरतें, न बालगोबिन जैसा कोई चरित्र जो भोर से भी पहले उठकर अपने गीतों से समग्र वातावरण को गुंजायमान करे । यहाँ तो शहर की भीड़भाड़ में अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए भागनेवाला जनसमुदाय है जिसे केवल अपनी ही चिंता है, औरों की नहीं। चारों ओर यातायात के साधनों का कोलाहलपूर्ण वातावरण । न यहाँ स्वच्छ हवा है, न अच्छा खान-पान । दूषित जल-प्रदूषणयुक्त वातावरण में रोगग्रस्त लोग है । शहरीजीवन शैली गाँवों की जीवनशैली से एकदम भिन्न है। अतिरिक्त प्रश्नोत्तर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए : प्रश्न 1. ठंडी पूरवाई चल रही है। बालगोबिन कीचड़ी से लथपथ धान की रोपाई करते समय गीत गाते । उनके गीत ने वातावरण को चमत्कृत कर दिया है। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं, मेड़ पर खड़ी औरतों के होठ काँप उठते है, वे गुनगुनाने लगती हैं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं, रोपनी करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती हैं। यह सब बालगोबिन के संगीत का जादू है। प्रश्न 2. सारा वातावरण अजीब रहस्य से आवृत्त मालूम पड़ता था। उस रहस्यमय वातावरण में एक कुश की चटाई पर पूरब मुंह काली कमली ओढ़े बालगोबिन भगत अपनी खजड़ी लिए बैठे थे। उनके मुंह से शब्दों का ताता लगा था। उनकी अगुलिया खजड़ी पर लगातार चल रही थी। गाते-गाते वे इतने मस्त हो जाते, उत्तेजित हो उठते । मालूम होता अभी खड़े हो जाएगे । कमली बार बार नीचे सरक जाती थी। जाड़े की ठंड में लेखक कांप रहे थे और उस तारों की छाँव में बालगोबिन के मस्तक पर श्रमबिंदु चमक उठते थे। प्रश्न 3. घर से खाकर जाते तो फिर घर पर आकर ही खाना खाते । इस बार जब वे लौटे तो उनकी तबियत खराब रहने लगी। दोनों समय स्नान करना, ध्यान गीत, खेतीबाड़ी देखना आदि के कारण उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। लोग उन्हें नहाने धोने से मना करते आराम करने को कहते पैर भगतजी हंसकर टाल देते । एक दिन शाम के समय जब वे गा रहे थे तो उनका स्वर बिखरा हुआ था, अगले दिन भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना । लोगों ने जाकर देखा, तो उनका पंजर पड़ा था। यों आखिरी साँस तक उन्होंने संगीत साधना की। ऐसा ही वे चाहते थे। उनकी आत्मा परमात्मा में सदा के लिए विलीन हो गई । इस प्रकार बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई थी। प्रश्न 4. उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ-साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते । धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खंजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन-मन नृत्यशील हो उठते ।.सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाता। यों गर्मी को उमसभरी संध्याएँ भी भगत के स्वरों को निढाल नहीं कर पाती थीं। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. बालगोबिन भगत मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता । कपड़े बिलकुल कम पहनते । कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों को-सी कनफटी टोपी । जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते । मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह, शुरू होता । गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बांधे रहते। ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ-सुथरा मकान भी था। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 2. किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोविन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते । किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते । इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतुहल होता ! – कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते ! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते – जो उनके घर से चार कोस दूर पर था – एक कबीरपंथी मठ से मतलब ! वह दरबार में ”मेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते! प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 3. आसाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं । ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी । यह क्या है – यह कौन है ! वह पूछना न पड़ेगा । बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अंगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़ें लोगों के कानों की ओर ! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ कांप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करनेवालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं ! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू ! प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 4. भादों की वह अधेरी अधरतिया । अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डूबो नहीं सकती। उनकी खंजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं – “गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना !” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है. वह अकेली है, चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे-बादलोंवाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है! – तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा ! प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. 5. बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा । इकलौता बेटा था वह ! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते । उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था। उसने उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत ! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 6. हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया । कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी । सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं ! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता । घर में पतोहू रो रही है जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं ! हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते । आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था – वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 7. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंहीं श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती – मैं चली जाऊँगी,तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े तो कौन एक चुालू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए ! लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा- यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती? प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अति लघुत्तरी प्रश्नोत्तर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. सविग्रह समास भेद बताइए :
भाववाचक संज्ञा बनाइए:
विशेषण बनाइए:
लिंग बदलिए:
संधि-विच्छेद कीजिए :
बालगोबिन भगत Summary in Hindiलेखक-परिचय : रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1899 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के कारण इन्हें अभावों -कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद बेनीपुरी स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़ गए। कई बार जेल भी गए। महज 15 वर्ष की अवस्था में बेनीपुरीजी की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी। ये बेहद प्रतिभाशाली पत्रकार थे। उन्होंने अनेक दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। इनमें – ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘किसान मित्र’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’ और ‘नयी धारा’ उल्लेखनीय है। – गद्यकार के रूप में प्रख्यात बेनीपुरीजी ने गद्य की कई विद्याओं में अपनी लेखनी चलाई। इनका पूरा साहित्य बेनीपुरी रचनावली के नाम से आठ खंडों में प्रकाशित है। इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं – ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास), ‘चिता के फूल’ कहानी, ‘अंबपाली’ नाटक, ‘माटी की मूरतें’| (रेखाचित्र), ‘पैरों में पंख बाँधकर’, (यात्रा-वृत्तांत), ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) इत्यादि । बेनीपरी की रचनाओं में स्वाधीनता की चेतना, मनुष्य की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। लेखन शैली की विशिष्टता के कारण ही इन्हें ‘कलम का जादूगर’ कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ ‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। इसके माध्यम से लेखक ने बालगोबिन भगत के चरित्र को बखूबी उभारा है। अपनी धुन में| रमनेवाले बालगोबिन भगत मनुष्यता, संस्कृति और सामुहिक चेतना के प्रतीक हैं। वेशभूषा या बाह्य अनुष्ठानों से कोई संन्यासी नहीं होता, सन्यास का आधार जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। इसी आधार पर लेखक को बालगोबिन भगत संन्यासी लगते हैं। इस पाठ में ग्रामीण जीवन की झांकियाँ देखने को मिलती है। वास्तव में बालगोबिन भगत एक विलक्षण व्यक्तित्व के सन्यासी थे जो अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक न मनाकर नित्यक्रम के अनुसार गाना गाते हैं। पाठ का सार (भाव) : बालगोबिन भगत का परिचय : बालगोबिन भगत साठ वर्ष के मझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके पके हुए बाल, लंबी दाढ़ी, कमर में मात्र एक लंगोटी बाँधे हुए रहते थे। सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी, मस्तक पर रामानंदी चंदन, गले में तुलसी की माला आदि से सुशोभित बालगोबिन का व्यक्तित्व एकदम निराला था। सर्दियों में वे काली कमली ओढ़ लेते थे। बालगोबिन भगत दिखने में साधु लगते थे किन्तु थे वे गृहस्थ । उनके पास थोड़ी खेती बारी थी, अच्छा साफ-सुथरा मकान था । वे साधुओं की सभी परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले व्यक्ति थे। भगत की साधु-प्रवृत्ति : बालगोबिन भगत कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उन्हीं के गीतों को गाना, उन्हीं के आदर्शों पर चलना, उन्हीं के जैसा खरा व्यवहार रखना, स्पष्ट वक्ता, किसी की वस्तु को न छूना, बिना पूछे व्यवहार में न लाना, यहाँ तक कि शौच भी अपने खेत में करना उनकी प्रवृत्ति थी। उनकी सब चीज साहब की थी। खेत में जो कुछ पैदा होता उसे पहले ‘साहब’ को ‘भेंट’ कर घर के प्रयोग में लाते थे। बालगोबिन और कबीर के पद : लेखक को बालगोबिन भगत द्वारा गाए जानेवाले कबीर के पद बेहद पसन्द है। जब पूरा गाँव आषाढ़ की रिमझिम बारिस में खेतों में होता है, बच्चे पानी भरे खेतों में उछलते, औरतें कलेवा लिए मढ़ पर बैठती, आसमान में बादल छाते, ठंडी हवा चलती, सभी अपने खेतों में धान की रोपाई करते उस समय भगत जब कबीर के पद गाते तो बच्चे झूम उठते, औरतें कॉप जाती । हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते । रोपाई करनावालों की ऊँगलियाँ एकक्रम में थिरकने लगीं। बालगोबिन भगत के संगीत का जादू यह सब करने पर मजबूर कर देता था। भादों की निस्तब्धता को तोड़ता बालगोबिन का संगीत : भादों माह की निस्तब्धता में बादलों से भरे आकाश और अंधेरे में वे कबीर के पद गाकर सभी को चौंका देते थे। सब सो रहे होते तब बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। उनका संगीत सोए हुओं को जगा देता था। उनका संगीत अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देता था – “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा !” बालगोबिन भगत की प्रभातियाँ : कार्तिक का महिना आने पर बालगोबिन की प्रभातियाँ शुरू हो जाती थीं जो फाल्गुन तक चलती थी। इन दिनों वे सवेरे न जाने कब उठकर गाँव से दो मील दूर नदी में स्नान करके लौटते और गाँव से बाहर पोखर के ऊंचे भिंडे पर बैठकर खंजड़ी लेकर गाने लगते थे। एक दिन लेखक भी वहाँ खिंचा चला गया और उसने देखा कि दाँत किटकिटानेवाली सर्दी की भोर में काली कमली ओढ़े भगत खंजड़ी लिए चटाई पर बैठे है। लेखक ने देखा कि खंजड़ी पर उनकी उंगलियाँ बराबर चल रही हैं। गाते-गाते इतने मस्त हो जाते कि कमली उनके शरीर से नीचे खिसक जाती थी। ठंड के मारे लेखक का बुरा हाल था किन्तु बालगोबिन के मुख पर श्रमबिंदु चमक रहा था। गर्मी के दिनों में भीड़ : गर्मियों के दिनों में शाम के समय गाँव के कुछ लोग बालगोबिन के आँगन में एकत्रित हो जाते थे। खंजड़ियों और करताल की भरमार के बीच बालगोबिन कबीर के पद गाते और बाकी लोग उनके पद को दोहराते । धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता । गाते-गाते एक ऐसी स्थिति आती जब बालगोबिन खड़े होकर नाचने लगते । उनके साथ सभी नाच उठते । पूरा आँगन नृत्य और संगीत से भर जाता था। बेटे की मृत्यु और बालगोबिन : बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा था। वह उनका एकलौता बेटा था जो थोड़ा सुस्त और बोदा-सा था इसी कारण से वे उसे ज्यादा मानते थे। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी सुभग और सुशील मिली थी। पूरा घर उसने संभाल लिया था। अपने श्वसुर को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त करा दिया था। बेटे की मृत्यु की खबर सुनकर लेखक कौतुहलवश उनके घर गए । वहां वे यह देखकर दंग रह गये कि बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढाँककर रखा है। कुछ फूलों को शव पर बिखरा दिया है, सिरहाने एक चिराग जला रखा है। वे उसके सामने जमीन पर आसन जमाकर गीत गाये जा रहे हैं। उसी स्वर व उसी तल्लीन के साथ। बड़े-बड़े साधक भी बेटे की मृत्यु पर विचलित हो जाते हैं किन्तु बालगोबिन तनिक भी विचलित न होकर गीत गाने में मग्न है, पतोहू को समझाते हैं, उत्सव मनाने को कहते हैं। बालगोबिन का बहू के प्रति सजगता : बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग अपनी बहू से ही लगवाई। श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर अपनी पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया और उसकी शादी करने का भी आदेश दे दिया। पतोहू भगत के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहती – मैं चली जाऊँगी तो आपके बुढ़ापे में भोजन कौन कराएगा, बीमार पड़ने पर कौन पानी देगा। मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए । भगत बालगोबिन का निर्णय अटल था। भगत ने अपनी पतोहू से कह दिया – तू जा, नहीं तो मैं ही घर छोड़कर चल दूंगा। इस दलील के आगे उसकी पतोहू की एक न चली। बालगोबिन की मृत्यु : बालगोबिन हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते । पैदल ही जाते । करीब तीस कोस पर गंगा थी । घर से खाकर जाते और लौटकर घर पर ही खाते । रास्ते में खंजड़ी बजाते, गाते । जहाँ प्यास लगी पानी पी लेते । आने जाने में चार पाँच दिन लगते । लम्बे उपवास में वही मस्ती दिखाई देती । अब बुढ़ापा आ गया था किन्तु टेक वही जवानी वाली थी। इस बार जब लौटे तो तबियत सुस्त थी। खाने-पीने के बाद भी तबियत नहीं सुधरी, थोड़ा बुखार भी आने लगा, फिर भी नेम व्रत नहीं छोड़ा। सुबह-शाम गीत गाना, स्नान ध्यान करना, खेती बारी देखना कुछ नहीं छेड़ा। धीरे-धीरे उनका शरीर कमजोर होने लगा। लोगों ने नहाने-धोने से मना किया, आराम करने को कहा, किन्तु वे हँसकर टाल देते थे। उस दिन भी संध्या में गीत गाया, परंतु भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो बालगोबिन भगत नहीं रहे, सिर्फ उनका पंजर पड़ा था। शब्दार्थ-टिप्पणी :
मुहावरे तथा अर्थ : 1. दाँत किटकिटाना- ठंड लगना। वाक्य प्रयोग : 1. जाड़े के मौसम में मैं अपनी जन्मभूमि अयोध्या गया था, भोर में उठकर मां काम कर रही थी और मैं दाँत किटकिटा रहा था । पुनः रजाई में जाकर सो गया। बाल गोविंद के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?बालगोबिन भगत मँझोलेकद के गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे जिनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल सफेद थे। वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे पर उनके चेहरे पर सफेद बाल जगमगाते ही रहते थे। वे कपड़े बिलकुल कम पहनते थे।
बालगोबिन भगत के गायन की क्या विशेषता है?बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषता यह थी कि कबीर के सीधे-सादे पद उनके कंठ से निकल कर सजीव हो उठते थे, जिसे सुनकर लोग-बच्चे-औरतें इतने मंत्र-मुग्ध हो जाते थे कि बच्चे झूम उठते थे, औरतों के होंठ स्वाभाविक रूप से कॅप-कॅपाने लगते थे, हल चलाते हुए कृषकों के पैर विशेष क्रम-ताल से उठने लगते थे, उनके संगीत की ध्वनि-तरंग ...
बाल गोबिन भगत क्या थे?बालगोबिन भगत कबीर के पक्के भक्त थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और हमेशा खरा व्यवहार करते थे। वे किसी की चीज का उपयोग बिना अनुमति माँगे नहीं करते थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण वे साधु कहलाते थे।
बाल गोविंद पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है?व्यक्ति का अपने नियमों पर दृढ़ रहना, निजी आवश्यकताओं को सीमित करना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील होना तथा मोह-माया के जाल से दूर रहने वाला व्यक्ति ही साधु हो सकता है। बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार उनका जो भी है वह मालिक की देन है उस पर उसी का अधिकार है।
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