ब्राह्मी लिपि भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है। इसके प्रयोग के प्राचीन उदाहरण अशोक के अभिलेखों के रूप में उपलब्ध हैं। यह बाएँ से दाएँ लिखी जाती है। उत्पत्ति[संपादित करें]ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के विषय मे अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किये गए हैं। इन सिद्धांतों को दो मुख्य धाराओं में विभक्त किया जा सकता हैं।
विदेशी उत्पति के सिद्धान्त को मनाने वाले पुनः दो भागों में एवं तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।
ब्राह्मी लिपि के उद्भव के स्वदेशी सिद्धान्त को भी दो भागों में विभक्त किया जाता है-
अभी तक माना जाता था कि ब्राह्मी लिपि का विकास चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्यों ने किया था, पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खनन से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में यह ६ठी सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी। अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि देशी उत्पत्ति का सिद्धान्त[संपादित करें]कई विद्वानों का मत है कि यह लिपि प्राचीन (सिन्धु लिपि) से निकली, अतः यह पूर्ववर्ती रूप में भारत में पहले से प्रयोग में थी।सिन्धु लिपि के प्रचलन से हट जाने के बाद ब्राह्मी लिपि प्रचलन मे आई। यह लिपि उसी प्रकार बाँई ओर से दाहिनी ओर को लिखी जाती थी जैसे, उनसे निकली हुई आजकल की लिपियाँ। ललितविस्तर में लिपियों के जो नाम गिनाए गए हैं, उनमें ब्राह्मी लिपि' का नाम भी मिला है। इस लिपि का सबसे पुराना रूप अशोक के शिलालेखों में ही मिला है। बौद्धों के प्राचीन ग्रंथ 'ललितविस्तर' में जो उन ६४ लिपियों के नाम गिनाए गए हैं जो बुद्ध को सिखाई गई, उनमें से पहली ब्राह्मी लिपि हैं। 'ललितविस्तर' का चीनी भाषा में अनुवाद ई० स० ३०८ में हुआ था। जैनों के 'पन्नवणा सूत्र' और 'समवायांग सूत्र' में १८ लिपियों के नाम दिए हैं जिनमें पहला नाम बंभी (ब्राह्मी) है। उन्हीं के भगवतीसूत्र का आरंभ 'नमो बंभीए लिबिए' (ब्राह्मी लिपि को नमस्कार) से होता है। सबसे प्राचीन लिपि भारतवर्ष में अशोक की पाई जाती है जो सिंध नदी के पार के प्रदेशों (गांधार आदि) को छोड़ भारतवर्ष में सर्वत्र बहुधा एक ही रूप की मिलती है। जिस लिपि में अशोक के लेख हैं वह प्राचीन आर्यो या ब्राह्मणों की निकाली हुई ब्राह्मी लिपि है। जैनों के 'प्रज्ञापनासूत्र' में लिखा है कि 'अर्धमागधी' भाषा जिस लिपि में प्रकाशित की जाती है वह ब्राह्मी लिपि है'। अर्धमागधी भाषा मथुरा और पाटलिपुत्र के बीच के प्रदेश की भाषा है जिससे हिंदी निकली है। अतः ब्राह्मी लिपि मध्य आर्यावर्त की लिपि है जिससे क्रमशः उस लिपि का विकास हुआ जो पीछे 'नागरी' कहलाई। मगध के राजा आदित्यसेन के समय (ईसा की सातवीं शताब्दी) के कुटिल मागधी अक्षरों में नागरी का वर्तमान रूप स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ईसा की ९वीं और १०वीं शताब्दी से तो नागरी अपने पूर्ण रूप में लगती है। किस प्रकार अशोक के समय के अक्षरों से नागरी अक्षर क्रमशः रूपांतरित होते होते बने हैं यह पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने 'प्राचीन लिपिमाला' पुस्तक में और एक नकशे के द्वारा स्पष्ट दिखा दिया है। ब्राह्मी का समय के साथ परिवर्तन विदेशी उत्पत्ति का सिद्धान्त[संपादित करें]कई पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि कि भारतवासियों ने अक्षर लिखना विदेशियों से सीखा तथा ब्राह्मीलिपि भी उसी प्रकार प्राचीन फिनीशियन लिपि से व्युत्पन्न हुई है जिस प्रकार अरबी, यूनानी, रोमन आदि लिपियाँ। पर कई देशी विद्वानों ने सप्रमाण यह सिद्ध किया है कि ब्राह्मी लिपि का विकास भारत में स्वतंत्र रीति से हुआ। ब्राह्मी लिपि की अन्य लिपियों से तुलना
ब्राह्मी लिपि की विशेषताएँ[संपादित करें]
ब्राह्मी लिपि के अभिलेख[संपादित करें]सम्राट अशोक के ब्राह्मी लिपि में अंकित प्रमुख अभिलेख
ब्राह्मी की संतति[संपादित करें]ब्राह्मी लिपि से उद्गम हुई कुछ लिपियाँ और उनकी आकृति एवं ध्वनि में समानताएं स्पष्टतया देखी जा सकती हैं। इनमें से कई लिपियाँ ईसा के समय के आसपास विकसित हुई थीं। इन में से कुछ इस प्रकार हैं- देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, ख़मेर, जावानीज़, खुदाबादी लिपि आदि।कुछ भारतीय लिपियों का तुलनात्मक चित्र यहाँ दिया गया है : व्यंजन[संपादित करें]
स्वर[संपादित करें]
अंक[संपादित करें]
यूनिकोड[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति कैसे हुई?अभी तक माना जाता था कि ब्राह्मी लिपि का विकास चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्यों ने किया था, पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खनन से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में यह ६ठी सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी।
ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति कब हुई?ब्राह्मी भारत की अधिकांश लिपियों की जननी है तथा इसका प्रयोग सम्राट अशोक के लेखों में हुआ है। 5वीं सदी ईसा पूर्व से 350 ईसा पूर्व तक इसका एक ही रूप मिलता है, लेकिन बाद में इसके दो विभाजन मिलते हैं- उत्तरी धारा व दक्षिणी धारा। ब्राह्मी की उत्तरी धारा में गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा और देवनागरी को रखा गया है।
ब्राह्मी लिपि के निर्माता कौन है?ब्राह्मी लिपि को वर्तमान समय में हमारे समक्ष प्रकट करने का श्रेय अंग्रेज अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने (1837 ई.) को जाता है । उन्होंने ही सर्वप्रथम 'साँची के स्तूप' पर अंकित ब्राह्मी अक्षरों में ' दानं ' शब्द को पढ़ा तथा इसी शब्द के आधार पर जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला तैयार की।
ब्राह्मी लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं?ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। प्राचीन ब्राह्मी लिपि के उत्कृष्ट उदाहरण सम्राट अशोक (असोक) द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनवाये गये शिलालेखों के रूप में अनेक स्थानों पर मिलते हैं। नये अनुसंधानों के आधार 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के लेख भी मिले है।
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