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बादल को घिरते देखा है / नागार्जुनKavita Kosh से यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो अमल धवल गिरि के शिखरों पर, तुंग हिमालय के कंधों पर ऋतु वसंत का सुप्रभात था दुर्गम बर्फानी घाटी में कहाँ गया धनपति कुबेर वह? शत-शत
निर्झर-निर्झरणी-कल 1938 बादल को घिरते देखा है बादल को घिरते देखा है(badal ko ghirte dekha hai) – [नागार्जुन]
यह कविता नागार्जुन के कविता संग्रह ’युगधारा’ से संकलित है। इसमें कवि ने बादल व प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया है। ’बादल को घिरते देखा है ’कविता में बादल की प्रकृति के बारे में कवि का अपना चिंतन है। यह बादल कालिदास के मेघदूत है जो विरही के पास संदेश लेकर जाते हैं। इन्हीं बादलों के साथ कस्तूरी मृग की बैचनी, बर्फीली घाटियों में क्रन्दन करते चकवा-चकवी और किन्नर-किन्नरियों के काल्पनिक चित्रण को बादल के साथ सम्बद्ध कर प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत कविता कल्पना दृष्टि से कालिदास एवं निराला की काव्य परंपरा की सारथी है। कविता –अमल धवल गिरि के शिखरों पर, छोटे-छोट मोती जैसे तुंग हिमालय के कंधों पर भावार्थ: – प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि उन्होंने हिमालय के उज्ज्वल शिखरों पर बादलों को घिरते देखा है। कवि ने बादलों के मोती जैसे शीतल कणों को ओस की बूँद के रूप में मानसरोवर झील में स्थित कमल पत्रों पर गिरते देखा है। हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों पर अनेक झीलें स्थित हैं।इन झीलों के शांत व गहरे नीले जल में मैदानी क्षेत्रों की गर्मी से व्याकुल हंस शरण लेते है। कवि ने इन हंसों को पानी पर तैरते हुए कमलनाल के भीतर स्थित कङवे और मीठे कोमल तंतुओं को खोजते देखा है। इस प्रकार कवि इन झीलों में विचरण करते हुए हंसों का वर्णन करता है। विशेष:
ऋतु वसंत का सुप्रभात था दुर्गम
बरफानी घाटी में भावार्थ –इस अंश में कवि ने बसंत ऋतु की मादकता, चकवा चकवी का मिलन तथा कस्तूरी मृग की व्याकुलता का स्वाभाविक वर्णन किया है। कवि कहते है कि बसंत ऋतु के सुप्रभात में मंद-मंद हवा बह रही है तथा प्रातःकालीन सूर्य की किरणें अपनी आभा चारों ओर फैला रही थीं, जिससे आसपास के शिखर स्वर्णिम से प्रतीत हो रहे थे। प्रातःकाल में ऐसे मोहक वातावरण में रात्रि में विरह के अभिशाप में व्याकुल चकवा-चकवी का अभिशप्त जीवन क्रंदन अब शांत हो गया है और वे मानसरोवर झील के किनारे बिछी हुई शैवाल की हरी चादर पर प्रणय-क्रीङा कर रहे हैं। अर्थात् वे रात्रि के वियोग के पश्चात पुनर्मिलन से अत्यंत खुश है। यहाँ कवि ने इस प्रणय क्रीङा का सजीव वर्णन किया है। कवि ने हिमालय की दुर्गम बर्फीली घाटियों में जिनकी ऊँचाई सहस्त्रों फीट है, अपनी ही नाभि से उठने वाली सुगंधी को ढूँढ़ने वाले कस्तूरी मृग को बैचेन होकर भागते देखा है। विशेष –
कहाँ गया धनपति कुबेर वह भावार्थ – इस पद्यांश में कवि कहते है कि वर्तमान में धनपति कुबेर व उसकी नगरी अलका का कोई पता नहीं है और न ही कालिदास द्वारा वर्णित व्योम प्रवाही गंगाजल ही कहीं दिखाई देता है। बहुत तलाश करने पर भी ’मेघदूत’ का भी पता नहीं चलता है। क्या पता वह छायामय यहीं कहीं पर बरस तो नहीं गया है। छोङो, वह सब तो मात्र कवि की कल्पना थी। कवि आगे कहते हैं कि उन्होंने तो भीषण सर्दी में गगनचुंबी कैलाश पर्वत पर बादलों को तूफानी हवाओं से गरज-गरज कर टकराते हुए देखा है। इस परिवेश में घिरते हुए बादलों को कवि ने स्वयं देखा है। विशेष –
शत-शत निर्झर-निर्झरणी-कल भावार्थ –कवि कहता है कि पर्वतीय प्रदेश में बहने वाले सैकङों झरने, अपने जल प्रवाह से देवदार के वनों में कल-कल ध्वनि कर रहे हैं। वहीं देवदार के वृक्षों के नीचे लाल और सफेद भोजपत्रों से निर्मित कुटिया के अंदर रंग-बिरंगे फूलों से केशों को सजाकर, इंद्रमणियों के हार पहने हुए, कानों में नीलकमल और वेणि में लाल कमल लटका कर, लाल चंदन की तिपाई पर चाँदी से बने और मणियों से जङे हुए मदिरा पात्रों कें अंगूरी शराब सामने भरकर व मुलायम-मुलायम और बेदाग छोटे कस्तूरी हिरणों की छाल पर पालथी मारकर बैठे हुए तथा मदिरापान के कारण हुए लाल-लाल नेत्रों में मस्त किन्नर और किन्नरियों की बाँसुरी पर अपनी कोमल व मनोहर अँगुलियों को फेरते हुए देखा है। विशेष –
’बादल को घिरते देखा है ’ के प्रश्नोत्तर –1. ’बादल को घिरते देखा है’, कविता के रचनाकार है – 2. ’तुंग हिमालय के कंधों पर, छोटी-बङी कई झीले है।’’ पंक्तियों में निहित अलंकार है – 3. चकवा-चकवी का क्रदन बंद क्यों हुआ है – 4. कस्तूरी मृग अपने पर कैसे चिढ़ता है – 5. कवि ने किन्नर और किन्नरियों की परिकल्पना क्यों कैसे की ? 6. अनिल
का पर्यायवाची है – 7. अगल-बगल में समास है – 8. ’बादल को घिरते देखा है’ से क्या अभिप्राय है – 9. ’शैवालों की हरी दरी पर, 10. ’’शैवालों की हरी दरी पर, प्रणय कलह छिङते दखा है।’’ पंक्तियों में अलंकार है – 11. कवि ने बादल को किससे गरज कर भिङते देखा है – 12. ’बादल को घिरते देखा
है’-कविता के सौन्दर्य को कवि ने किस ऋतु का उद्गम बताया है – 13. ’निशा’ का विलोम है – ये भी अच्छे से जानें ⇓⇓ समास क्या होता है ? परीक्षा में आने वाले मुहावरे सर्वनाम व उसके भेद महत्वपूर्ण विलोम शब्द देखें विराम चिन्ह क्या है ? परीक्षा में आने वाले ही शब्द युग्म ही पढ़ें साहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें बादल को घिरते देखा कविता के रचनाकार कौन है?नागार्जुन ने बादल को घिरते देखा की रचना सन् 1938 ई. में की। बादल को घिरते देखा है कविता,काव्य संग्रह युगधारा(1953 ई.) में संकलित है।
बादल को घिरते देखा है इस कविता में किसका वर्णन है?कवि कहता है कि मैंने अपने आंखों से स्वयं अमल धवल अर्थात स्वच्छ उज्जवल हिमालय के शिखरों पर बादलों को घिरते देखा है। उन्हें पानी से बादल बनते देखा है , जैसे छोटे – छोटे मोती के करण होते है ठीक उसी प्रकार हिमालय प्रतीत होते हैं। उनके शीतल तुहिन कर्ण मानसरोवर के सोने जैसे कमलों पर गिरते देखा है।
नागार्जुन की कविता का नाम क्या है?खिचड़ी विप्लव देखा हमने नागार्जुन
तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी बड़ी कई झीले हैं ?' इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
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