बौद्ध भिक्षु को क्या कहा जाता है? - bauddh bhikshu ko kya kaha jaata hai?

तिब्बत में भिक्षु को लामा कहकर पुकारा जाता है, और लामा आधिकारिक तौर पर केवल कुछ दर्जन तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं के लिए विस्तारित एक शीर्षक है, जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया है। और हम का अर्थ समझे तो संस्कृत भाषा में गुरु के सामान ही है और तिब्बती बौद्ध धर्म में धर्म के शिक्षक के लिए एक शीर्षक के तौर पर इस्तेमाल होता है। 

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इसे सुनेंरोकेंतिब्बत में भिक्षु को लामा कहकर पुकारा जाता है, और लामा आधिकारिक तौर पर केवल कुछ दर्जन तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं के लिए विस्तारित एक शीर्षक है, जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया है।

इसे सुनेंरोकेंतिब्बत में भिक्षु को नम्से कहा जाता है।

डाँड़ा तिब्बत में कौन सी जगह होती है?

इसे सुनेंरोकेंडाँड़े तिब्बत में सबसे खतरे की जगह है। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं थे। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है।

वज्रयान संप्रदाय में वज्र से क्या तात्पर्य है?

इसे सुनेंरोकेंबौद्ध धर्म के इतिहास में वज्रयान का उल्लेख महायान के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में बौद्ध विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है।;वज्र ‘वज्र’ शब्द का प्रयोग मनुष्य द्वारा स्वयं अपने व अपनी प्रकृति के बारे में की गई कल्पनाओं के विपरीत मनुष्य में निहित वास्तविक एवं अविनाशी स्वरूप के लिये किया जाता है।;यान …

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बौद्ध भिक्षु का नाम क्या था class 9?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. Explanation: श्रमण : बौद्ध धर्म के अनुयायी को श्रमण कहा गया है ।

भिक्षु नम्से कहाँ रहते थे?

इसे सुनेंरोकेंतिब्बत की जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों के हाथों में बटी है। इन जागीरो का बड़ा हिस्सा मठों के हाथ में है। अपनी अपनी जागीर में हर जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मजदूर उन्हें बेगार में मिल जाते हैं। लेखक शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु न्मसे से मिले।

सुमति का असली नाम क्या था?

इसे सुनेंरोकेंसुमति मंगोल जाति का एक बौद्ध भिक्षु था। उसका वास्तविक नाम था – लोबज़ंग शेख।

तिब्बती समाज की विशेषताएँ क्या हैं?

इसे सुनेंरोकेंतिब्बत के सामाजिक जीवन में समानता की विशेषता देखने को मिलती है, क्योंकि उस समाज में जाति-पाँति, छुआछूत और पर्दा-प्रथा नहीं थी। तिब्बत के लोग बिना भय के रहते थे। 2 यह व्यापारिक ही नहीं, सैनिक रास्ता भी था, इसलिए जगह- जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी।

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बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का उदय उत्तर प्रदेश में कहाँ पर हुआ?

इसे सुनेंरोकेंबौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का उदय उत्तर प्रदेश में हुआ – बुन्देलखण्ड.

तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाले बौद्ध बिच्छू कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंतिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार में सबसे बड़ी भूमिका पद्मसंभव की रही है. वे आठवीं सदी में तिब्बत पहुंचे थे. उन्हें वहां रिन-पो-चे कह कर बुलाया जाता है.

तिब्बत कहाँ पर है?

इसे सुनेंरोकेंतिब्बत मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेंणियों के मध्य कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित है। इसकी ऊँचाई 16,000 फुट तक है। यहाँ का क्षेत्रफल 47,000 वर्ग मील है। तिब्बत का पठार पूर्व में शीकांग से, पशिचम में कश्मीर से दक्षिण में हिमालय पर्वत से तथा उत्तर में कुनलुन पर्वत से घिरा हुआ है।

दुनिया में अपना दबदबा कायम करने का मंसूबा पालने वाला चीन इन दिनों A4 साइज के कोरे कागज से जूझ रहा है। वजह है चीन में कोरोना के नाम पर लोगों के अधिकारों, उनकी आजादी और रहन-सहन पर लगाई जा रही पाबंदियां, जिनके विरोध में छात्र, नौकरीपेशा युवा सड़कों पर उतर आए हैं।

ये वही कागज है जिसे चीन ने खोजा, मगर आज वही सफेद कागज चीन के लोगों के आक्रोश में डूबी आवाज को उठाने का प्रतीक बन गया है। चीन में कागज का बनना भी अपने आप में एक क्रांति थी और आज वही कागज ताकतवर नेता शी जिनपिंग के खिलाफ क्रांति का चेहरा बन रहा है।

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चीन में जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ युवा वाइट पेपर लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

‘वाइट पेपर रिवोल्यूशन’ कहे जाने वाले इस प्रदर्शन में इस्तेमाल किए जाने वाले कागजों पर कुछ भी लिखा नहीं है। इसलिए कानूनन उन्हें सजा नहीं दी जा सकती।

A4 साइज पेपर के जरिए विरोध प्रदर्शन ने इतना जोर पकड़ा कि कहा जाने लगा कि जिनपिंग सरकार ने चीन की स्टेशनरी बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी ‘एमएंडजी स्टेशनरी’ पर बैन लगा दिया है। कंपनी को बयान जारी करना पड़ा कि उसका प्रोडक्शन जारी है। पाबंदी की बात सिर्फ कोरी अफवाह है।

बीजिंग और हांगकांग के चौराहों से लेकर बीते दिनों रूस की राजधानी मॉस्को तक यह कोरा कागज दमनकारी सत्ता के खिलाफ मुखर मौन हथियार बनकर उभरा है।

कागज से जुड़ी क्रांति के बाद अब जरा कागज की कहानी भी जान लेते हैं, जो कभी प्रेम जाहिर करने का ज़रिया बना तो कभी जंग के लिए हथियार।

सबसे पहले बात करते हैं कागज के बेमिसाल सफर की। आपको शायद यकीन नहीं होगा, मगर हकीकत यही है कि दुनिया में कागज का सबसे ज्यादा इस्तेमाल अमेरिकी कर रहे हैं, वह भी टॉयलेट पेपर की शक्ल में।

इसके लिए अमेरिकी हर साल 32 करोड़ पेड़ों को काट डालते हैं, जिनसे टॉयलेट रोल बनता है। दुनिया की सबसे बड़ी रीटेल चेन वॉलमार्ट में दूसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली चीज भी टॉयलेट पेपर ही है।

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बात कहने का जरिया बना कागज

जब इंसान ने अपनी दुनिया बनानी शुरू की तो उसे कम्युनिकेशन की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए इंसान ने पहले पहल पत्थरों, पेड़ों की छाल, पत्तों, जानवरों की खाल, मिट्‌टी की पटि्टयों पर लिखना शुरू किया।

फिर आया कागज, जिसने पूरी दुनिया को आपस में जोड़ा। यही वजह है कि कागज मानव सभ्यता की संस्कृति और विज्ञान दोनों से जुड़ा है।

कागज के बारे में एक दिलचस्प परिभाषा जानते हुए चलते हैं।

इटली में ट्रेक्कानी चिल्ड्रंस एनसाइक्लोपीडिया में कागज की पहली बार व्याख्या की गई। इसके मुताबिक, कागज ऐसा मैटीरियल है, जो रोजमर्रा की जिंदगी में विचारों को एक-दूसरे तक पहुंचाता है। सदियों से कागज ने लोकतांत्रिक जीवन में ज्ञान और शिक्षा का स्तर बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

जब एक राजा के कहने पर पेड़ के तने से बना दिया कागज

पहली सदी के आसपास यानी 105 ईसवी की बात है, चीन के हान राजवंश के राजा के दरबार में एक विद्वान थे, काई लुन। उनसे राजा ने कहा, ‘आप तो इतने बड़े दार्शनिक और जानकार हैं। प्रयोग करते रहते हैं, तो क्यों न कुछ ऐसा कीजिए कि जिससे देश और दुनिया में हमारा नाम रोशन हो जाए। आने वाली पीढ़ियां भी उस चीज को देखकर हमें और आपको याद करें।’

बस फिर क्या था। लुन महाशय जुट गए दुनिया के लिए अनोखी चीज ईजाद करने में। लुन को पता नहीं क्या सूझी, वह अपने घर के पास ही खड़े शहतूत के पेड़ को छीलने लग गए।

जब पेड़ से रेशे निकल आए तो उसे पानी में मिलाकर खूब पीसा। पीसते-पीसते जब उसकी लुगदी सी बन गई तो उसे सुखाने के लिए धूप में रख दिया। लुगदी सूखकर एक कठोर परत बन गई। बाद में लुन ने उस परत को लकड़ी के पटरे पर रखकर समतल कर दिया।

इस तरह लुन ने कागज बनाकर तैयार किया, जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता था। इसके बाद तो चीन में पुराने कपड़ों, पेड़ों की टहनियों और मछली मारने के जालों से कागज तैयार होने लगा।

यही कागज कभी रिश्तों में मन की बातें उकेरने वाले खत के रूप में दिखा तो कभी बचपन में कागज की नाव बन गई। कोर्ट-कचहरी में यह दस्तावेज बन गया तो कोई इस पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचकर या रंग भरकर ‘लियोनार्डो दा विंची’ बन गया।

आगे हम पढ़ेंगे कि दुनिया में कागज का कारोबार कितना बड़ा है, लेकिन इससे पहले जान लीजिए कि पेपर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कैसे खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग में होता है।

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आज तो यह किचन में बटर पेपर से लेकर आपकी टॉयलेट सीट के बगल तक पहुंच चुका है। अब यह दुनिया की ‘पेपर इकोनॉमी’ बन चुका है।

वेबसाइट Statista के मुताबिक, भारत में कागज इंडस्ट्री तकरीबन 1 लाख करोड़ रुपए की हो चुकी है, जिसके 2029 तक करीब 2.6 लाख करोड़ होने की उम्मीद है। वहीं दुनिया में पेपर इंडस्ट्री अभी 28 लाख करोड़ की है, जिसके 2029 तक 30 लाख करोड़ रुपए के पार होने की उम्मीद है।

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चीन ने कागज बनाने की तकनीक लंबे समय तक छिपाए रखी

चीन ने कागज तो खोज लिया और उसका इस्तेमाल भी करने लगा, मगर उसने अपनी इस खोज को अरसे तक राज बनाए रखा।

मगर, ऐसा कब तक संभव हो पाता। जापान के बौद्ध भिक्षु डैम जिंग छठी शताब्दी में चीन गए तो वह वहां से कागज बनाने की कला जापान लेकर आए। इसके बाद जापानियों ने जल्द ही पेपर बनाने की नई तकनीक ईजाद की और वे भी शहतूत के पेड़ों से कागज बनाने लगे।

चीन में सिर्फ कागज का ईजाद ही नहीं हुआ बल्कि टॉयलेट पेपर पर भी दुनिया में सबसे पहले बना।

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751 ईसवी की बात है, जब बगदाद के खलीफा के सिपहसालार ने अतलाख की लड़ाई के बाद समरकंद में दो चीनी कागज निर्माताओं को पकड़ लिया। इन युद्धबंदियों से जब सख्ती हुई तो उन्होंने जान की भीख मांगने की एवज में कागज बनाने की बात मान ली।

दो युद्धबंदियों ने जान बचाने की एवज में अरबों को बताई कागज बनाने की कला

मशहूर इतिहासकार अल्बरूनी ने अपनी किताब-उल-हिंद में लिखा है कि दोनों बंदियों की मदद से उज्बेकिस्तान में एक पेपर मिल खोली गई। दिलचस्प बात ये है कि यहां कागज बनाने में भांग और अलसी के पौधों का इस्तेमाल किया जाने लगा।

यह वह दौर था, जब कागज राजघरानों की प्रतिष्ठा की चीज बन गया। इसके बाद बगदाद, दमिश्क जैसे एशियाई शहरों में कागज बनाने की मिलें लगाई गईं।

अरब देशों में लुगदी से जो कागज तैयार होता, उसे सुखाने के लिए धान के ढेर में छिपाया जाता। यही तकनीक मिस्र और उत्तरी अफ्रीका में इस्तेमाल की जाने लगी। मिस्र में तो 2800 साल पहले भी पैपाइरस पौधे से कागज की जैसी ही कोई चीज बनाई जाती थी, जो लिखने में काम आती थी।

चीन से यूरोप तक कागज पहुंचने में लग गए 1000 साल

चीन और अरब में भले ही कागज बनने और इस्तेमाल होने लगा, मगर यूरोप तक इसके आने में करीब हजार साल लग गए। यूरोप में कागज तब पहुंचा, जब अरबों ने सिसली और स्पेन पर कब्जा कर लिया। उस जमाने में कागज को लेकर यूरोप में अच्छी राय नहीं थी।

1221 में रोमन साम्राज्य के शासक फ्रेडरिक द्वितीय ने सरकारी दस्तावेजों को बनाने में कागज के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।

यह भी माना जाता था कि यूरोप में बनने वाले कागज में चावल का मांड़ का भी इस्तेमाल होता, जिससे कागज में कीड़ा लग जाता और कागज खराब हो जाता। बाद में कागज बनाने की तकनीक और एडवांस हुई तो ब्रिटेन, अमेरिका समेत पूरी दुनिया में कागज बनाया जाने लगा।

कागज की कहानी के बीच ग्रैफिक से जानिए कि किस देश में एक इंसान प्रत्येक वर्ष कितने KM टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल कर जाता है।

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एक प्रिंटिंग मशीन ने बदल दी कागज की सूरत

कागज क्रांति में तब और इजाफा हो गया, जब जर्मन वैज्ञानिक योहानेस गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग मशीन बनाई। 1456 में गुटेनबर्ग की प्रिंटिंग मशीन ने दुनिया की पहली बाइबल छापी, जो 'गुटेनबर्ग बाइबल' के नाम से जानी गई। इसके बाद चीन और अमेरिका जैसे देश दुनिया में सबसे ज्यादा कागज बनाने लगे।

प्रिटिंग मशीन के बाद 20वीं सदी में कागज का स्टैंडर्ड साइज भी तय किया गया।

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ये तो रही दुनिया में कागज के चलन की बात, अब जरा बात कर लेते हैं भारत में कागज के आने की कहानी के बारे में।

हिंदुस्तान में सिंध पर कब्जे के बाद आया खुरासानी कागज

एक तरफ कागज चल पड़ा था, दूसरी ओर अरबों ने सिकंदर के बाद दुनिया जीतने के अभियान में जी-जान लगा दी।

इसी कड़ी में अरब आक्रमणकारी तत्कालीन हिंदुस्तान के सिंध इलाके तक पहुंच गए। सिंध पर कब्जे के बाद 8वीं सदी की शुरुआत में भारत में खुरासानी कागज बनाए जाने की शुरुआत हो गई, जो अलसी, सब्जियों के फाइबर से बनाया जाता।

बाद में दिल्ली और लाहौर कागज बनाने के दो बड़े केंद्र बन गए। कागज से पहले भारत में भोजपत्र, पेड़ की छाल और पत्तों पर लिखे जाने का चलन था।

जब तैमूर ने कश्मीर के हाेने वाले सुल्तान को बना लिया बंधक

भारत में बाकायदा पहली कागज इंडस्ट्री कश्मीर में उस समय स्थापित हुई, जब 1417 से 1467 तक कश्मीर पर सुल्तान जैनुल आबिदीन का राज था। दरअसल, आबिदीन के पिता सुल्तान सिकंदर ने मंगोल शासक तैमूर के पास अपने बेटे को दोस्ती का पैगाम लेकर भेजा था, मगर तैमूर ने आबिदीन को बंधक बना लिया और उसे मरते दम तक अपने साथ समरकंद में ही रखा।

कश्मीरी सुल्तान ने खड़ी की कागज इंडस्ट्री, पूरी दुनिया में कश्मीरी कागज पॉपुलर हुआ

तैमूर के मरते ही आबिदीन कश्मीर आ गया, उसने समरकंद में देखे-सुने और सीखने के आधार पर कागज इंडस्ट्री खड़ी कर दी। इसमें कागज बनाने से लेकर बुक बाइंडिंग तक होती। कश्मीर का कागज इतना अच्छा होता कि देश और दुनिया में इसकी मांग बढ़ गई।

खासतौर पर किताबें लिखने के लिए कश्मीर के कागज को दूसरों के मुकाबले ज्यादा बेहतर माना जाता था। तारीखे-फरिश्ता के मुताबिक-तैमूर के बाद आए मंगोल शासक सुल्तान अबू ने सुल्तान आबिदीन से दोस्ती बढ़ाने के लिए बेहतरीन नस्ल के अरबी घोड़े और ऊंट भेजे।

बदले में सुल्तान आबिदीन ने उसे कश्मीरी कागज, इत्र, गुलाब जल, सिरका, शॉल, कांच के कटोरे वगैरह बतौर तोहफे भेजे। आज देश में सियालकोट (पंजाब), जौनपुर (अवध), बिहार शरीफ और अरवल (बिहार), मुर्शिदाबाद और हुगली (बंगाल), अहमदाबाद (गुजरात), औरंगाबाद और नासिक (महाराष्ट्र), मैसूर (कर्नाटक) कागज बनाने के बड़े सेंटर बनकर उभरे हैं।

कागज की कहानी के बाद चलते-चलते अब ये भी जान लीजिए कि कागज के कितने अवतार हैं। देश और दुनिया में तरह-तरह के कागज बनाए जा रहे हैं। कागज की इसी दुनिया से हम आप भी ग्रैफिक के जरिए रूबरू होते हैं।

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ग्रैफिक्स: सत्यम परिडा

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बौद्ध भिक्षुओं को क्या कहा जाता है?

बौद्ध सन्यासियों या गुरूओं को भिक्षु (संस्कृत) या भिक्खु (पालि) कहते हैं।

बौद्ध भिक्षु का नाम क्या था class 9?

उत्तर: थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर लेखक भिखमंगे के वेश में होने के बाद भी ठहरने का स्थान पा गया क्योंकि उस समय उनके साथ बौद्ध भिक्षु सुमति थे। सुमति की उस गाँव में जान-पहचान थी।

बौद्ध भिक्षु का अर्थ क्या है?

बौद्ध भिक्षु संज्ञा अर्थ : वह साधु जो बौद्ध धर्म का अनुयायी हो।

तिब्बत में बौद्ध भिक्षु को क्या कहा जाता है?

तिब्बत में भिक्षु को नम्से कहा जाता है।