धान की खेती के लिए कौन-सी मिट्टी सबसे उपयुक्त है dhan ki kheti ke lie kaun-si mitti sabse upayukt hai विश्व की कृषि kya kise kab kaha kaun kisko kiska kaise hota kahte bolte h kyo what why which where gk hindi english Answer of this question dhan ki kheti ke lie kaun-si mitti sabse upayukt hai - chikni mitti Show
धान की खेती के लिए उपजाऊ चिकनी मिट्टी सबसे उपयुक्त है इस पोस्ट में आपको भारत की विभिन्न प्रकार की मिट्टी के बारे में जानकारी दी जाएगी जैसे की किस प्रकार की मिट्टी में कौन सी फसल ज्यादा होती है मिट्टी कितने प्रकार की होती हैं कोन सी मिट्टी में क्या चीज ज्यादा पाई जाती है सबसे बढ़िया मिट्टी कौन सी होती है कौन से राज्य में किस प्रकार की ज्यादा मिट्टी होती है और उसमें कौन सी फसल ज्यादा उगाई जाती है किस तरह की मिट्टी में खनिज पदार्थ ज्यादा पाए है इसी के बारे में आपको जानकारी दी जाएगी. और इसी जानकारी से संबंधित आप कौन नीचे प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं जो की अक्सर आपकी एग्जाम में पूछे जाते हैं तो आप इन प्रश्नों को अच्छे से याद कर लीजिए और अगर आपको यह जानकारी पसंद आए तो आप शेयर करना ना भूले. 1. किसी देश की कृषि का मुख्य आधार क्या होता है ? 12. लावा के प्रवाह से किस मिट्टी का निर्माण होता है ? उतर.राजस्थान में आज हमने आपको इस पोस्ट में धान के नाम धान की फसल की जानकारी धान के प्रकार धान की अधिक पैदावार धान की फसल में उर्वरक धान की खेती का समय धान के रोग धान का महत्व के बारे में बतायां कि कौन सी मिट्टी किस फसल के लिए लाभदायक होती है इसलिए इन्हें ध्यान से पढ़ें और अगर इनके बारे में आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके हमें जरूर बताएं मक्के के बाद धान (चावल) की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है. धान का सबसे ज्यादा इस्तेमाल खाने में होता है. धान को लोग उबालकर, खिचड़ी बनाकर और आटे के रूप में उपयोग में लेते हैं. भारत के ज्यादातर राज्यों में धान मुख्य खाद फसल बनी हुई हैं. चीन के बाद भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. धान की फसल खरीफ के मौसम में उगाई जाती है. Table of Contents
धान (चावल) की फसल को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं. इस कारण इसकी खेती अधिक जल धारण क्षमता वाली मिट्टी में की जाती है. इसकी खेती के लिए ज्यादा तापमान की जरूरत नही होती. धान की खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान भी ज्यादा नही होना चाहिए. धान को खेत में बीज के रूप में ना लगाकर पौध के रूप में लगाया जाता है. धान की खेती अधिक मेहनत वाली फसल है. अगर आप भी धान की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं. उपयुक्त मिट्टीधान की खेती के लिए चिकनी काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती हैं. क्योंकि चिकनी मिट्टी में जल धारण की क्षमता अधिक होती हैं. इस तरह की मिट्टी में एक बार पानी देने के बाद कई दिनों तक पानी भरा रहता है. भारत में इसकी खेती उत्तर से लेकर दक्षिण भारत के ज्यादातर राज्यों में की जा रही है. धान की खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 तक होना चाहिए. हालांकि इससे कम और ज्यादा पी.एच. वाली जमीनों को उपचारित कर उनमें भी इसकी खेती की जा रही है. जलवायु और तापमानधान की खेती के लिए उष्ण और उपोष्ण दोनो जलवायु वाले प्रदेश उपयुक्त होते हैं. भारत में इसकी खेती खरीफ के मौसम में की जाती है. धान की खेती ज्यादातर सिंचित क्षेत्रों में की जाती है. इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत होती है. धान की खेती के लिए 100 मिलीमीटर बारिश का होना जरूरी होता है. कम बारिश होने पर सिंचाई ज्यादा करनी पड़ती है. धान के पौधे के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. लेकिन ये अधिकतम 35 डिग्री तापमान को भी सहन कर लेता है. सामान्य तापमान पर इसका पौधा अच्छी पैदावार देता है, और पौधे की वृद्धि भी अच्छे से होती है. उन्नत किस्मेंधान की कई तरह की किस्में बाज़ार में मौजूद हैं. जिन्हें पकने के समय और भूमि की स्थिति के आधार पर कई प्रजातियों में बाँटा गया है. शीघ्र पकने वाली प्रजातिइस प्रजाति की किस्में बहुत जल्द पककर तैयार हो जाती है. इन्हें अगेती किस्म के रूप में उगाया जाता है. नरेन्द्र-118धान की इस किस्म को पकने में 85 से 90 दिन का टाइम लगता है. इस किस्म को कम सिंचित जगहों के लिए तैयार किया गया है. इसके दाना लम्बा, पतला और सफ़ेद रंग का होता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 45 से 50 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के धान से 65 से 70 प्रतिशत तक चावल प्राप्त होता है. मनहरधान की इस किस्म के दाने पतले लम्बे और सफ़ेद रंग के होते हैं. जिनसे 70 प्रतिशत तक चावल प्राप्त होते हैं. इस किस्म के पौधे को पककर तैयार होने में लगभग 100 दिन का वक्त लगता है. इस किस्म के पौधों पर झुलसे का रोग नही पाया जाता. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार लगभग 50 क्विंटल तक पाई जाती है. मालवीय धान – 917धान की उन्नत किस्मधान की इस किस्म का पौधा 135 दिन में पककर तैयार होता है. इसके दाने छोटे और सुगन्धित होते हैं. इस किस्म को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने तैयार किया है. जिसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 55 से 60 क्विंटल तक पाई जाती है. तेज आंधी और तूफ़ान का इस किस्म पर कोई प्रभाव नही पड़ता. मध्यम समय में पकने वाली प्रजातिइस प्रजाति की किस्में पकने में जल्दी पकने वाली किस्मों से थोड़ा ज्यादा टाइम लेती हैं. लेकिन इनकी पैदावार ज्यादा पाई जाती है. नरेन्द्र-359इस किस्म के पौधों को झुलसे का रोग नही लगता. इसके पौधे के सभी कल्लों में बाली खासतौर से निकलती हैं. इस किस्म के पौधे 130 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 60 से 65 क्विंटल तक पाई जाती है. धान की इस किस्म से 72 प्रतिशत तक चावल प्राप्त होते हैं. जिनका आकार बड़ा, मोटा और रंग हल्का सफ़ेद होता है. सीताइस किस्म का धान लगभग 130 दिन में पककर तैयार हो जाता है. जो मध्यम आकार का होता है. इसका रंग सफ़ेद होता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार लगभग 50 क्विंटल पाई जाती है. मालवीय धान-1इस किस्म के धान को पकने में लगभग 125 दिन का वक्त लगता है. इसके दाने पतले और सफ़ेद होते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 55 से 60 क्विंटल तक पाई जाती है. इस किस्म के धान से 70 प्रतिशत तक चावल प्राप्त होते हैं. सूरज-52धान की इस किस्म को झुलसा रोग नही लगता. इस किस्म के धान से 70 प्रतिशत चावल प्राप्त किये जा सकते हैं. इसके पौधे को पककर तैयार होने में लगभग 135 दिन का वक्त लगता है. इसके दाने लम्बे और मध्यम मोटाई वाला होता है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 60 क्विंटल के आसपास रहती है. देर से पकने वाली प्रजातिइस प्रजाति की किस्में ज्यादा समय में पककर तैयार होती है. और इनकी उपज भी सामान्य पाई जाती है. महसूरीइस किस्म के पौधों को पककर तैयार होने में लगभग 150 दिन का वक्त लगता है. इस किस्म के धान का दाना मध्यम आकार और हल्का सफ़ेद होता है. इस किस्म को 30 सेंटीमीटर गहरे पानी में भी उगाया जा सकता है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार लगभग 30 से 40 क्विंटल तक पाई जाती है. जिससे 70 प्रतिशत तक चावल प्राप्त होते हैं. साम्बा महसूरीधान की इस किस्म को पककर तैयार होने में 155 दिन का वक्त लग जाता है. इस किस्म के पौधे बौने आकार के होते हैं. जिनसे एक हेक्टेयर में 60 क्विंटल तक धान प्राप्त हो जाता है. जिनमें चावल की मात्रा 70 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के चावलों का आकर छोटा, पतला और रंग सफ़ेद होता है. सुगंधित धान प्रजातिइस प्रजाति की किस्मों को संकर किस्म के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म को जल्दी और अधिक पैदावार के लिए तैयार किया गया है. कस्तूरीधान की इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 40 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इसके पौधे लगभग 125 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों को झुलसा और झोंका रोग नही लगता. धान की इस किस्म से 65 प्रतिशत तक चावल प्राप्त होते हैं. जो आकार में पतले और लम्बे पाए जाते हैं. इनका रंग सफ़ेद होता है. हरियाणा बासमती-1इस किस्म के पौधे 140 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 45 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. धान की इस किस्म से 65 से 70 प्रतिशत तक चावल प्राप्त किये जा सकते हैं. जिनका आकार पतला लम्बा होता है. इस किस्म के धान पर हरे फुदके का रोग नही लगता. तरावड़ी बासमतीइस किस्म के पौधा 140 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 30 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इस किस्म पर कई तरह के कीट और बिमारिय रोग नही लगते. इस किस्म के धान से 68 प्रतिशत तक चावल प्राप्त किये जा सकते है, जो पतले लम्बे और सुगन्धित होते हैं. पूसा आर एच-10धान की उन्नत किस्मइस किस्म को पूरे विश्व की पहली संकर किस्म माना जाता है. इस किस्म के धान का दाना अत्यधिक सुगंधित, लंबा और पतला होता है. इस किस्म को तैयार होने में लगभग 120 दिन का वक्त लगता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 65 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. ऊसरीली धान प्रजातिइस प्रजाति की किस्मों को बंज़र उसरीली भूमि में अधिक और जल्द पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों को कम पानी की जरूरत होती है. नरेन्द्र ऊसर – 2 और 3धान की इस किस्म को पककर तैयार होने में लगभग 130 दिन का वक्त लगता है. इस किस्म के पौधों से प्रति हेक्टेयर 50 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है. इस किस्म के धान से 62 प्रतिशत तक दाने प्राप्त होते हैं. जिनका रंग हल्का सफ़ेद और आकर में लम्बे और गोल पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधे पर भूरा धब्बा और झुलसा रोग नही पाया जाता. सी०एस आर०-13धान की इस किस्म को पककर तैयार होने में लगभग 120 दिन का वक्त लगता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 50 से 60 क्विंटल तक पाई जाती है. इस किस्म के धान से 60 प्रतिशत तक दाने प्राप्त किये जा सकते हैं. जो आकार में पतले और लम्बे होते हैं. इनका रंग सफ़ेद पाया जाता है. ऊसर धान-1धान की ये किस्म 140 से 150 दिन में पककर तैयार होती है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 45 से 50 क्विंटल तक पाई जाती है. धान की इस किस्म से 65 प्रतिशत तक दाने प्राप्त किये जा सकते हैं. इसके दाने छोटे, मोटे और सफ़ेद रंग के होते हैं. बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के लिएधान की इस प्रजाति की किस्मों को बारिश के वक्त ज्यादा बाढ़ आने वाले क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया हैं. इसके पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. स्वर्णा सव-1धान की इस किस्म को पककर तैयार होने ने में 140 से 150 दिन का वक्त लगता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 40 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. धान की इस किस्म से 75 प्रतिशत तक दाने प्राप्त किये जा सकते हैं. इसके दाने छोटे पतले और सफ़ेद रंग के होते हैं. जल निधिधान की इस किस्म का पौधा काफी लम्बा होता है. जो पानी में कमल की तरह बढ़ता है. जिन पर कई तरह के रोग भी नही लगते. इस किस्म के पौधे पककर तैयार होने में 180 दिन का वक्त लेते हैं. धान की इस किस्म से 65 से 70 प्रतिशत तक दाने प्राप्त किये जा सकते हैं. इसका दाना सुडौल, हल्का और चटपटा होता है. जो हल्की लालिमा लिए होता है. मधुकरधान की इस किस्म को सामयिक बाढ़ वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे 150 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 30 से 40 क्विंटल तक पाई जाती है. जिनसे 65 प्रतिशत तक दाने प्राप्त किये जाते हैं. इसके दाने छोटे, मोटे और सफ़ेद रंग के होते हैं. खेत की जुताईधान की खेती के लिए शुरुआता में खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर मेडबन्दी कर दे. खेत की ये तैयारी बारिश के मौसम से पहले करें जिससे खेत में बारिश का पानी भर जाए. अगर बारिश ना हो तो खेत में पानी भर देना चाहिए. उसके बाद पानी भरी जमीन में मिट्टी पलटने वाले हल से दो से तीन अच्छी जुताई करनी चाहिए. इससे मिट्टी में कीच बन जाता है. जिसमें धान की रोपाई की जाती है. नर्सरी तैयार करनाधान के बीज को सीधा खेत में नही उगाया जाता. बीज को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है. उसके बाद उसकी पौध को खेत में लगाते हैं. बीज को नर्सरी में उगाने से पहले उसे स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट या प्लान्टो माइसिन के घोल में एक रात के लिए डुबो दें. जिससे पौधे में झुलसा की बिमारी नही होती है. और यदि झुलसा की समस्या क्षेत्र में नही हो तो बीज को कार्बेन्डाजिम या थिरम से उपचारित कर बोना चाहिए. बीज को नर्सरी में उगाने से पहले पानी में एक रात भिगोना चाहिए. इससे बीज में अंकुर निकल आते हैं. अंकुर निकले बीज को क्यारियों में छिड़क देते हैं. बीज को क्यारियों में उगाने के 10 दिन बाद उसमें ट्राइकोडर्मा का छिडकाव कर दें. और खैरा रोग से बचाव के लिए 15 दिन बाद जिंक सल्फेट और बुझे हुए चूने को उचित मात्रा को क्यारियों में छिड़क दें. धान के बीज को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए क्यारियों में पानी की मात्रा उचित बनाएं रखे. धान का बीज लगभग एक से डेढ़ महीने में तैयार हो जाता है. उसके बाद इसे क्यारियों से निकालकर खेतों में लगा देते हैं. लेकिन पौधे को क्यारी से निकालने से पहले क्यारी को पानी से भर देना चाहिए ताकि पौधे को निकालने में आसानी रहे, और पौध खराब ना हो. पौध की रोपाई का तरीका और टाइममशीन द्वारा पौध रोपाईधान के पौधे की रोपाई किसान भाई हाथ और मशीन दोनों से करते है. लेकिन वर्तमान में मेडागास्कर विधि का उपयोग सबसे ज्यादा किया जा रहा है. इस विधि में हाथ से धान की पौध को खेत में लगाया जाता है. इस विधि को श्री पद्धति के नाम से भी जाना जाता है. इस विधि में धान को 15 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में लगाते है. दो पंक्तियों के बीच भी 15 सेंटीमीटर की दूरी रखते हैं. एक जगह पर धान के दो से तीन पौधे एक साथ लगाते हैं. इस विधि से धान की उपज ज्यादा होती हैं. साधारण तरीके में धान को 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है. जिससे पौध भी ज्यादा लगती और पैदावार भी सामान्य रहती है. धान की बुवाई मानसून आने से लगभग एक सप्ताह पहले कर देनी चाहिए. क्योंकि मानसून आने तक पौधा अच्छे से अंकुरित हो जाता है. जिससे मानसून में खेत में ज्यादा पानी भर जाने के बाद भी पौध अच्छे से विकास कर लेती है. धान की रोपाई के लिए जून का महीना सबसे उपयुक्त होता है. पौधे की सिंचाईधान के पौधे को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इस कारण इसके पौधे की उचित समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए. धान की सिचाई के वक्त पौधों की कुछ ऐसी अवस्थाएं आती है, जब पौधे को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. पौधे को खेत में लगाने के बाद कल्ले फूटने, बाली निकलने, फूल खिलने और बालियों में दाना भरते समय खेत में पानी भरा रहना चाहिए. क्योंकि इन वक्त पर अगर खेत में पानी नही भरा रहेगा तो पौधा ना तो अच्छे से विकास करेगा और ना ही पैदावार अच्छी होगी. धान के पौधे को लगभग 15 से 20 सिंचाई की जरूरत होती है. जब भी खेत में पानी दिखाई देना बंद हो जाए और ऊपरी जमीन सूखने लगे तभी पौधों को पानी दे देना चाहिए. उर्वरक की मात्राधान के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. इसके लिए जुताई के वक्त खेत में लगभग 12 गाडी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी चाहिए. खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश की मात्रा को खेत में धान की रोपाई से पहले की जाने वाली आखिरी जुताई के वक्त डालनी चाहिए. उसके बाद 30 से 40 किलो नाइट्रोजन कल्ले बनते वक्त पौधों की सिंचाई के साथ दें. और लगभग 20 किलो नाइट्रोजन बाली में बीज बनने से पहले पौधों को देनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रणधान की फसल में खरपतवार ज्यादा नुक्सान पहुँचाती है. धान के पौधों में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई और रासायनिक दोनों तरीके से की जा सकती है. साधारण प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत में नीलाई गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देनी चाहिए. धान की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद उसकी पहली नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. उसके बाद दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के लगभग 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. इस तरह धान की दो से तीन गुड़ाई करना अच्छा होता है. क्योंकि धान के पौधे की दो से तीन गुड़ाई करने पर जमीन से कल्ले अधिक मात्रा में निकलते है. जिससे पैदावार भी अधिक मिलती है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत में पौधे की रोपाई के दो से तीन दिन बाद बिसपिरिबक सोडियम 10 प्रतिशत एस.सी. या प्रेटिलाक्लोर 30 प्रतिशत ई सी का छिडकाव खेत में करना चाहिए. पौधों में रोग और उनकी रोकथामधान के पौधों में रोग तापमान और जलवायु संबंधित कारकों से ज्यादा लगते है. जिस कारण धान के रोगों को उनके कारकों के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है. कवकीय रोगकवकीय रोग पौधों को जड़ों और पत्तियों दोनों से नुक्सान पहुँचाते है. तना गलनतना गलन रोगपौधों में ये रोग सेक्लरोटिनिया सक्लरोशियम नामक फफूंद की वजह से होता है. इस रोग के लगने पर पौधों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं. जो बाद में सफ़ेद रंग की फफूंद के रूप में दिखाई देने लगते हैं. धीरे धीरे ये रोग सम्पूर्ण पौधे पर देखने को मिलता है. जिससे पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम का छिडकाव करना चाहिए. पर्णच्छद गलनइस रोग के लगने से पैदावार में बहुत नुक्सान पहुँचता है. इस रोग के लगने से पौधे की वृद्धि रुक जाती है. इसका प्रभाव नई निकलने वाली शाखाओं और कल्लों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे में बालियाँ नही बनती और बनती है तो उनमें दाने नही बनते. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बेनलेट या डेकोनिल का छिडकाव उचित टाइम पर करना चाहिए. भूरी चित्तीभूरी चित्ती का रोग पौधे के कोमल भागों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पत्तियों पर छोटा, गोल और भूरे धब्बे दिखाई देते है. जिनके अंदर का रंग पीला दिखाई देता है. ये सभी छोटे धब्बे धीरे धीरे आपस में मिलकर बड़ा आकार बना लेते हैं. इस रोग के लगने पर पौधों में बालियाँ नही बनती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधो की जड़ों में मैग्नीशियम सल्फेट का 10 पी.पी.एम. और फैरिक क्लोराइड का 2.5 पी.पी.एम. का घोल डालना चाहिए. इसके अलावा बीज बोते वक्त बीज को एग्रोसान या थिरम से उपचारित कर खेत में उगाना चाहिए. खैराइस रोग का असर पौधों की पतियों पर देखने को मिलता है. जो पौधे में जिंक की कमी की वजह से लगता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. जिसके कुछ दिन बाद पत्तियां सुखकर नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जिंक सल्फेट का छिडकाव आखिरी जुताई के वक्त करना चाहिए. जीवाणुज़ रोगजीवाणुज़ रोग पौधों में जीवाणुओं की वजह से लगते हैं. पत्ती अंगमारीपत्ती अंगमारी का रोगपौधों में इस रोग के लक्षण पत्तियों पर देखने को मिलते हैं. पत्तियों पर यह रोग सिरे से आरम्भ होकर नीचे की और बढ़ता है. जिससे पत्तियों का रंग पीला होने लगता है. और वो लिपटकर नीचे झुकने लगती है. इस रोग के लगने पर पौधे पर ब्लाइटाक्स और एग्रीमाइसीन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. पत्ती रेखाइस रोग के लगने पर पत्तियों पर पीले भूरें रंग की रेखाएं बनने लगती है. इसका जीवाणु मोती की तरह पीला और सफ़ेद रंग का होता है. जो पत्तियों के दोनों और पाया जाता है. इस रोग की वजह से पत्तियों की शिराओं का रंग पीला दिखाई देने लगता है और कुछ दिन बाद पत्तियां सुखकर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एग्रीमाइसीन या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का छिडकाव करना चाहिए. वाइरस जनितवायरस जनित रोग पौधों में अधिक नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पैदावार कम होती है. घासीय वृद्धिइस रोग के लगने पर पौधा पूरी अवधि के बाद भी बौना दिखाई देता है. इस रोग की वजह से पत्तियों का रंग नीचे से पीला दिखाई देने लगता है. इस रोग के लगने से पौधे में बालियाँ नही निकलती और निकलती हैं तो उनमें दाने नही बनते. इस रोग की रोकथाम के लिए उन्नत किस्म का बीज उगाना चाहिए. टुंग्रोटुंग्रो रोगइस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों का रंग नारगी पीला दिखाई देने लगता है. और पौधे का आकार बौना रह जाता है. जिन पर छोटे आकार की बालियाँ निकलती है. और बालियों में दाने काफी कम मात्रा में पाए जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी., कार्बेरिल 50 डब्ल्यू. पी. या फोस्फेमिडोन 85 डब्ल्यू. एस.सी. का छिडकाव करना चाहिए. धान की कटाई और मड़ाईधान का पौधा 100 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाता है. प्रत्येक पौधे पर बाली निकलने के एक महीने बाद पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है. इस दौरान पौधा पीला दिखाई देने लगता है. जब धान के बीज में 20 प्रतिशत नमी रहा जाएँ तब उन्हें काट लेना चाहिए. काटने के बाद इसकी पुलियों को कुछ दिन धूप में सूखाने के बाद उनकी मड़ाई मशीन के माध्यम से की जाती है. इससे बनने वाले भूषे का इस्तेमाल पशुओं के खाने में किया जाता है. जबकि कुछ छोटे किसान भाई इसकी मड़ाई हाथों से ड्रम के माध्यम से करते हैं. इसकी भूसी का इस्तेमाल कई चीजों के परिवहन के दौरान टूटने और ख़राब होने से बचाने के लिए भी किया जाता है. पैदावार और लाभधान की अलग अलग किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 50 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई जाती है. और धान का बाज़ार भाव चार हज़ार प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाई एक बार में दो से तीन लाख तक की कमाई कर सकते हैं. चावल की कृषि के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी कौन है?गाद मिट्टी, गाद मिट्टी दोमट और चिकनी मिट्टी के कुछ बनावट हैं जो चावल की खेती के लिए सबसे अच्छे हैं। नदी की उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी चावल की खेती के लिए सर्वोत्तम है।
धान के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी कौन सी है?किसी भी सुगंधित धान की पैदावार के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। यहां पर्याप्त मात्रा में दोमट मिट्टी पाई जाती है।
सबसे अच्छी मिट्टी कौन सी है?उत्तर दोमट मिट्टी में सभी प्रकार की फसलें अच्छी उपज देती है।
सबसे अच्छा धान कौन सा होता है?पूसा बासमती-1121 किस्म बासमती धान उगाने वाले समस्त क्षेत्र और सिंचित अवस्था में बुआई के लिए उपयुक्त है। सुगंधित बासमती धान की यह किस्म 140 से 145 दिनों में पक जाती है, जो तरावड़ी बासमती से एक पखवाड़ा अगेती है। इसका दाना लंबा (8.0 मिलीमीटर) व पतला है। इसकी पैदावार क्षमता 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
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