Post Views: 5,631 Show ‘उसने कहा था’ और ‘चीफ की दावत’- उसने कहा थाचंद्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के प्रथम सर्वश्रेष्ठ कहानीकार थे, इनकी सृजनशीलता के मुख्य चार पड़ाव है- मर्यादा, समालोचक, प्रतिभा और नागरी प्रचारिणी पत्रिका, इन्होंने तीन कहानियों की रचना की -सुख में जीवन , बुद्धू का कांटा और उसने कहा था,जो हिन्दी जगत में मील का पत्थर साबित हुई,और
इनका पर्याय बनी ,गुलेरी जी ने कम लिखकर अधिक ख्याति हासिल की इनमें अगाध पांडित्य और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय था ,अतीत और वर्तमान के सूक्ष्मदर्शी विद्वान थे। कहानी का आरंभ अमृतसर नगर के चौक के बाजार से एक 12 वर्षीय बालक एवं 8 वर्षीय बालिका से होता है दोनों बालक मामा के यहां आए हुए हैं दोनों बालक मामा के यहां आए हुए हैं यह दोनों एक दुकान पर सामान लेने आते हैं और बालक ,बालिका से पूछता है – इस पर बालिका बोलती है धित यह शब्द ना जाने कितनी बार वह उस बालिका से पूछता है एक दिन इस प्रश्न का उत्तर उसे मिलता है- 🖊️ पूर्व दीप्ति शैली उसने कहा था कहानी में लेखक ने समय विस्थापन तथा पूर्व दीप्ति शैलियों का प्रयोग किया है ऐसी घटनाएं जो पहले ही घट चुकी हो किंतु उन्हें बाद में दिखाया जाए उसे समय विस्थापन शैली कहा जाता है कहानी में
लहना सिंह और हजारा सिंह के पूर्व जीवन की घटनाओं का प्रस्तुतीकरण, लेखक ने इस शैली का प्रयोग किया है कहानी के अंत में पूर्व शैली के द्वारा गुलेरी जी ने इस कहानी को नहीं देती । 🖊️ मृत्यु का साक्षात्कार मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है जन्म भर की घटनाएं एक-एक करके सामने आती है सारे दृश्यों के रंग साफ हो जाते हैं समय की धुंध बिल्कुल उन पर से हट जाती है 🖊️ आत्मसमर्पण बोधा गाड़ी पर लेट
गया भला आप भी चले जाओ सुनिए तो सुबह हो रही है ,चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया। 🖊️ प्रेम की सात्विकता एक मामूली सी घटना व्यक्ति के अंतर्मन में फैल कर उसके जीवन को किस निर्णायक बिंदु पर ले जा सकती है प्रेम की सात्विकता मनुष्य को कितने उच्च भाव भूमि पर ले जा सकती है इसमें घटनाक्रम कालक्रम पर नहीं मनो भूमि के अनुसार अवतरित है । 🖊️ करुणा 🖊️उदात्त/भावात्मकता 🖊️ प्रथम विश्वयुद्ध का चित्रण इसमें एक और जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया ,हंगरी ,बोल बारिया और तुर्की और दूसरी तरफ ब्रिटेन फ्रांस ,रूस, जापान ,इटली । 🖊️देश
भक्ति कुछ दिन कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा फ्रांस और बेल्जियम 68 वी सूची…… मैदान में घावों से मरा …. नंबर 77 सिक्ख राइफलस जमादार लहना सिंह ये ही देश के प्रति बलिदान का वर्णन है 🖊️सेना कैंपिंग छावनी के अंदर का वर्णन किया गया है बोधा सिंह को ठंड से बचाने के लिए लहना सिंह का सहयोग और उसके बाद सेना कैंप में छलिया लगता साहब का घुसना। यह आदर्श कहानी ,प्रेम का यथार्थ चित्रण, ,मानवीय चरित्र का उद्घाटन सौंदर्य का विशिष्ट में चित्र , इंसान की मजबूरी, प्रेम के विविध रूप, सैनिक जीवन का यथार्थ चित्रण संस्कृति का जीवंत चित्रण। यह आदर्श कहानी ,प्रेम का यथार्थ चित्रण, ,मानवीय चरित्र का उद्घाटन
सौंदर्य का विशिष्ट में चित्र , इंसान की मजबूरी, प्रेम के विविध रूप, सैनिक जीवन का यथार्थ चित्रण संस्कृति का जीवंत चित्रण। चीफ की दावतभीष्म साहनी हिंदी साहित्य के मूर्धन्यकार एवम् प्रेमचंद की परंपरा के अग्रणी लेखक है ,यह साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित हैं । यह मानवीय मूल्यों के सदैव हिमायती रहे।इन पर प्रेमचंद और यशपाल की गहरी छाप है । इनकी कहानी में यथार्थवादी ,मध्यवर्ग , खोखलापन, मानसिक अंतर्द्वंद ,वर्गीय स्थिति, पारिवारिक मूल्यों के प्रति अनास्था , अवसरवादी एवं नई पीढ़ी पर व्यंग्य हैं। डॉ नामवर सिंह लिखते हैं- “नए कहानी कारों में भीष्म साहनी में एक ही साथ इन दोनों विशेषताओं का सर्वोत्तम सामंजस्य मिलता है एक इकाई के रूप में उनकी कहानियां अत्यंत गठित होती है साथ ही सदैव किसी ना किसी प्रकार की विडंबना को व्यक्त करती है और यह बिना किसी न किसी रूप में हमारे वर्तमान समाज के व्यापक अंतर्विरोध की ओर संकेत करती है चीफ की दावत कहानी को गहराई में जाकर देखने से मां एक चरित्र से आगे जाकर प्राचीनता का प्रतीक भी लगती है समग्र रूप में कहानी अपनी सार्थकता में सफल है।” यह एक यथार्थवादी कहानी है मध्यवर्ग की बाहरी आडम्बर प्रियता ,खोखलापन , मानसिक अंतर्द्वंद ,वर्गीय स्थिति पारिवारिक मूल्यों के प्रति आस्था और पनप रही अवसरवादीता का चित्रण है, नई पीढ़ी पर व्यंग्य हैं ,जिनका मुख्य लक्ष्य भौतिक प्रगति करना ही है । और शामनाथ को वह अपनी तरक्की की सीधी नजर मूल तत्व मानवता का भाव मां का बलिदान एक बूढ़ी मां के दर्द की कहानी सामाजिक और आर्थिक व्यवहार है । 🖊️ बलिदान मां की इच्छा है कि वह हरिद्वार जाकर रहे लेकिन वह नहीं जाती है 🖊️मां
का समर्पण 🖊️ दिखावा 🖊️मुक्त व्यवहार 🖊️ मां को वस्तु की तरह तोलना 🖊️आदर मां को देखते ही देशी अफसरों की कुछ स्त्रियां हंसी इतने में चीफ ने धीरे से कहा पुअर डियर मगर तब तक चीफ मां का बाया हाथ ही बार बार हिलाकर कह रहे थे हाउ डू यू डू कहो मां हाउ डू यू डू 🖊️मां के बेटे के प्रति वात्सल्य प्रेम को दिखाया गया है शिक्षित सामनाथ के माध्यम से शिक्षित युवा वर्ग पर करारा व्यंग्य किया गया है मनीषा शर्मा टिप्पणीकार:- बेजोड़ समीक्षा की है आपने, कहानी के ऊपरी परतों को उघाड़ कर उसके मार्मिक और सूक्ष्म बिंदुओं को बारीकी से देखने का प्रयत्न किया है। किंतु आपकी समीक्षा में एक बात खटक रही है वो ये कि कहानी का उद्देश्य जो कि युद्ध की विभीषिका की परिपाटी पर लिखी गया एक मौन प्रेम प्रेम कथा है। जिसमें त्याग और समर्पण का मिश्रण करके गुलेरी जी ने इसको अमर और जीवंत बना दिया है। इस पर थोड़ा और विस्तार देने की आवश्यकता महसूस होती है। क्योंकि पाठक की निगाह सदैव इन्हीं बिंदुओं को निहारती है। बाकि आपने कहानी की सर्वागिण समीक्षा की है जिसके लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है।👌👌 2.तेजप्रताप कुमार तेजस्वी(दिल्ली विश्विद्यालय, दिल्ली) दोनों समीक्षाएँ प्रशंसनीय हैं।ये समीक्षाएँ इस बात की घोतक हैं कि समीक्षिका कहानियों की जाँच पड़ताल बेहतर तरीके से किये हैं।’उसने कहा था’ को सभी समीक्षकों ने प्रेम और बलिदान के कहानी के रूप में ही देखने का प्रयास किया है,जो काफी हद तक सही भी है।परन्तु कुछ सवाल तो बनते हैं -क्या सूबेदारनी का आँचल पसारकर सिर्फ अपने बेटे और पति के जीवनदान माँगना उनका स्वार्थ नहीं है,क्या प्रेम में पुरुष ही बलिदान देते रहेंगे,या मान लीजिए यह सूबेदारनी का लहना सिंह के प्रति निश्च्छल विश्वास है तो क्या विश्वास की इतनी बड़ी कीमत अदा की जा सकती है कि वे उस व्यक्ति का जीवन ही माँग लें आदि आदि सवाल तो जरूर बनते हैं।इस पर विचार करना चाहिए। कहानी में सूबेदारनी का आँचल पसारकर अपने पति और बेटे के जीवनदान का भिक्षा मंगना भारतीय स्त्री की वह दुख है जो कष्टदायक है।यह दुख हर उस स्त्री का है जिसका बेटा और पति सैनिक हैं।यह दुख कठिन है। कहानी के प्रारंभ में प्रेम का आकर्षण तेरी कुरवाई से स्टार्ट तो होती है,मगर मेरी मरवाई पर खत्म होती है।यह समाज का दोहरापन ही है,जिसे समझना होगा।आदर्श के तले कितने लहना सिंह मारे जाएंगे।इस ओर भी सोचने को मजबूर करता है।कहानी का अंत करुण है।’वजीरासिंह के आँसू टपक रहे हैं’-ये वजीरासिंह भी इसी समाज के हैं और लहनासिंह भी इसी समाज के हैं।सूबेदारनी को आँचल पसारकर भिक्षा माँगने से पहले
इनके बारे में भी सोचना चाहिए।बहरहाल…। -तेजस्वी ‘चीफ की दावत’ यह कहानी मध्यमवर्ग पर आधारित है।यह वही मध्यमवर्ग है जो समाज के सामने आदर्श पेश करते हैं।यह आदर्श खोखला है।इस बात की यह प्रमाण कहानी है।’चीफ की दावत’ एक भारतीय मध्यमवर्ग के परिवार के द्वारा बुलाई गई है।जो अपनी स्वार्थलिप्सा की पूर्ति के लिए दिखावा कर रहे हैं।चीफ को अगर पश्चिमी सभ्यता के व्यक्ति के
रूप में देखें तो वे पश्चिमी हैं भी,परन्तु उन्हें भारतीयता से प्रेम है।यहाँ की कला के वे प्रेमी हैं,जबकि भारतीय नहीं हैं।कितने शामनाथ को चीफ आ आकर अपने माँ का आदर सम्मान करना सिखाएंगे?कितने माँ अपनी बेटे और बहू के प्रताड़ना के शिकार होंगे?आदि सवाल सोचनीय है।मध्यमवर्गीय परिवार पर यह कहानी गहरा व्यंग करती है कि आप आदर्श प्रस्तुत करने से पहले अपने आप को झाँके।आज भी अनेक माएँ शामनाथ और उनके बहु के दुत्कार सहने के लिए मजबूर हैं।विशेष कहानी ग्रामीण सभ्यता और संस्कृति की ओर ध्यान भी आकृष्ट कराती
है।ग्रामीण संस्कृति को बचाना ही भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार के लिए शान की बात हो सकती है। ‘जंग ए महाज्ञान:-हिंदी प्रतियोगिता’ ( संचालक-तेजप्रताप कुमार तेजस्वी ) की तरफ से प्रस्तुत समीक्षा चीफ की दावत कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है समझिये?भीष्म साहनी ने ' चीफ की दावत ' में युवा पीढ़ी के संवेदनशील व्यवहार को चित्रित किया है। वे सामाजिक यथार्थ से जुड़े हुए कथाकार थे। जिन्होने शामनाथ के माध्यम से शिक्षित वर्ग के अशिक्षित आचरण को दर्शाया है तथा स्वार्थी बेटे की स्वार्थी भावनाओं को कहानी के माध्यम से उजागर किया है।
चीफ की दावत कहानी के क्या तत्वों के आधार पर समीक्षा कीजिए?'चीफ की दावत' एक ऐसी ही कहानी है, जिसमें स्वार्थी बेटे शामनाथ को अपनी विधवा बूढ़ी माँ का बलिदान फर्ज ही नजर आता है। भीष्म साहनी ने शामनाथ के माध्यम से शिक्षित युवा पीढ़ी पर करारा व्यंग्य किया है। आज के शिक्षित युवा वर्ग अपने माता पिता को बोझ समझते हैं। व्यक्ति अपनी सुख सुविधा के लिए अपने माता पिता को छोड़ देते हैं।
चीफ की दावत कहानी का सारांश क्या है?चीफ की दावत' कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखी गई एक ऐसी कहानी है, जो मां के त्याग और बेटे की उपेक्षा का ताना-बाना बुनती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक माँ का दर्द उकेरा है, जो अपने बेटे बहू के लिए बोझ के समान है। माँ ने अपने बेटे को पाल पोस कर बड़ा किया लेकिन वही बेटा उसे बुढ़ापे में बोझ समझता है।
चीफ की दावत किसकी रचना रचना का कौन सा संदेश है?(८) 'चीफ की दावत' कहानी में शामलाल 'माँ' को चीफ के सामने क्यों आने नहीं देता ? (९) 'राष्ट्रनीति', दार्शनिकता और कल्पना का लोक नहीं है।
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