शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं? Show
कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय और चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार रसिक को आनंद प्रदान करने की क्षमता होना चाहिए। शास्त्रीय संगीत भी यदि रंजक न होगा तो वह नीरस ही कहा जाएगा। वह अनाकर्षक प्रतीत होगा और कुछ कमी-सी लगेगी। गाने में गानपन का होना आवश्यक है। रंजकता का मर्म रसिक पाठ के साथ कैसे प्रस्तुत किया गया है, यही दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व को प्रकट करता है। 576 Views कुमार गंधर्व ने लिखा है-चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है? क्या शास्त्रीय गायकों को भी चित्रपट संगीत से कुछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें। दोनों प्रकार के संगीतकारों को एक-दूसरे से कुछ नया सीखने का भाव होना चाहिए। शास्त्रीय संगीतकार स्वयं को चित्रपट संगीत से अछूता नहीं रख सकते। संगीत के बारे में यह भी जानें टिप्पणी: 1. त्रिताल या तीन सताल-यहसोलह मात्राओं का ताल है। इसमें चार-चार मात्राओं के चार विभाग होते हैं। 2. राग मालकौंस-भैरवी थाट का राग है। इसमें रे और प वर्जित है। इसमें सब स्वर कोमल लगते हैं। यह गंभीर प्रकृति का लोकप्रिय राग है। 3. मध्य या दुतलय-लय तीन प्रकार की होती है: (i) विलंबितलय (धीमी) (ii) मध्यलय (बीच की) (iii) द्रुतलय(तेज) 4. मध्यलय से दुगुनी और विलंबितलय से चौगुनी तेज लय दद्रुतलय कहलाती है। 5. गानपन - जो गायकी एक आम इंसान को भी भावविभोर कर दे। 6. स्वर मालिकाएँ-स्वरों की मालाएँ। स्वर मालिका में बोल नहीं होते। 7. ऊँची पट्टी-ऊँचे (तारसप्तक के) स्वरों का प्रयोग। 8. आघात (Beats)-गायन या वादन के समय मात्राओं के अनुसार ताल का प्रयोग। 9. जलदलय -द्रुत लय (तेज)। 10. लोच - स्वरों का बारीक प्रयोग। 11. रंजक - दिल को लुभाने वाला। 12. ऋतुचक्र - कुछ राग ऋतुओं के अनुसार गाये जाते हैं, जैसे वसंत में राग बसंत तथा वर्षा ऋतु में राग मल्हार। 13. ध्वनि मुष्टिका - आवाज। 14. पक्कापन - परिपक्वता (Maturity) 730 Views चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए- अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।शास्त्रीय संगीतकार प्राय: यह आरोप लगाते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं अर्थात् लोगों के कानों को चित्रपट संगीत अधिक लुभाता है। इसने उनकी रुचि को बिगाड़ दिया है। लेखक कुमार गंधर्व का विचार है कि यह कथन सही नहीं है। चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं हैं उलटे सुधार दिए हैं। हमारा विचार भी कुमार गंधर्व से मिलता है। हमारा मत भी यह है कि चित्रपट संगीत ने लोगों में संगीत के प्रति रुचि जाग्रत की है जबकि शास्त्रीय संगीत केवल एक वर्ग तक सिमट कर रह गया था। चित्रपट संगीत ने कर्णप्रिय संगीत रचने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। 1039 Views “संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं।,” इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। यह पूर्णत: सत्य है कि संगीत का क्षेत्र बड़ा विस्तीर्ण है। इसमें शास्त्रीय संगीत को विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है। पर शास्त्रीय संगीत का भी रंजक होना आवश्यक है अन्यथा वह नीरस हो जाता है। शास्त्रीय संगीत की एक सुदीर्घ परंपरा चली आ रही है। चित्रपट के लोग इस संगीत का प्रयोग अपनी फिल्मों में निरंतर करते चले आ रहे हैं। गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव है, जबकि लय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुण धर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है और इसकी लयकारी बिल्कुल अलग होती है, आसान होती है। चित्रपट संगीत में गीत और आघात को अधिक महत्त्व दिया जाता है। 1987 Views Question चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए- अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।Open in App Solution कुमार गंधर्व की राय और मेरी राय एक जैसी है। शास्त्रीय संगीतकार कहते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं। उन्हें अब शास्त्रीय संगीत नहीं भाता है। कुमार गंधर्व इस बारे में विपरीत ख्याल रखते हैं। उनका मानना है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कानों में सुधार किया है। कुमार गंधर्व ने कहा भी सही है। चित्रपट संगीत ने लोगों की संगीत के प्रति रुचि बढ़ाई है। हम भी यही मानते हैं। भारतीय फिल्मों ने संगीत को नए आयाम दिए हैं। हर वर्ग के लोगों के दिलों में ये छाए हैं। आज फिल्मों में निर्माता इन्हें बेचकर ही मुनाफा कमा रहे हैं। इससे पता चलता है कि लोगों की संगीत के प्रति कितनी रुचि बढ़ गई है।
NCERT Solutions for Class 11 Humanities Hindi Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ः लता मंगेशकर are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ः लता मंगेशकर are extremely popular among Class 11 Humanities students for Hindi भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ः लता मंगेशकर Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of Class 11 Humanities Hindi Chapter 1 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class Class 11 Humanities Hindi are prepared by experts and are 100% accurate. Page No 8:Question 1:लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है? Answer:गानपन का अर्थ गाने का वह तरीका है, जिसे सुनकर लोग आनंदित हो जाए। इस प्रकार के गानपन को पाने के लिए हमें योग्य गुरु की क्षरण में जाना पड़ेगा। विधिवत संगीत की शिक्षा लेनी पड़ेगी तथा कड़ा अभ्यास करना पड़ेगा। तब कहीं जाकर हम गानपन के योग्य बन जाएँगे। लता ने इस गानपन को पाने के लिए बहुत परिश्रम किया है। उनका गानपन सुनकर ही लोग मस्त हो जाते हैं। Page No 8:Question 2:लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नज़र आती हैं? उदाहरण सहित बताइए। Answer:लेखक ने लता की गायकी की इन विशेषताओं को उजागर किया है- Page No 8:Question 3:लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं- इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? Answer:लेखक का यह अपना मत हो सकता है लेकिन हमारा मत यह नहीं है। हम लेखक की तरह संगीत की बारीकी को नहीं जानते हैं परन्तु सुनकर उसे महसूस अवश्य कर सकते हैं। लता जी के गाए गाने- Page No 8:Question 4:संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं- इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। Answer:बिलकुल सत्य बात है कि संगीत का क्षेत्र विस्तीर्ण क्षेत्र है। भारतीय परंपरा में तो यह जैसे रचा-बसा है। इसकी छाप भारतीय फ़िल्मों में देखी जा सकती है। वहाँ की कोई फ़िल्म बिना गाने के पूरी नहीं होती है। विदेशी फ़िल्मों की तरह प्रयास किए गए कि हिन्दी फ़िल्म बिना गानों की बनाए जाए पर ऐसा हो नहीं पाया। आज भी हमारी फ़िल्मों में शास्त्रीय संगीत की छाप मिलती है। यह परंपरा आज की नहीं है बल्कि वर्षों पुरानी है। वे इसमें विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते हैं। चित्रपट शास्त्रीय संगीत की गंभीरता के स्थान पर लय तथा चपलता को स्थान देते हैं। शास्त्रीय संगीत में ताल का परिष्कृत तथा शुद्ध रूप देखने को मिलता है। चित्रपट में ऐसा नहीं होता, वहाँ आधे तालों का ही प्रयोग किया जाता है। इस कारण इसे आम व्यक्ति भी थोड़े प्रयास से गा सकता है। आज फ़िल्मी संगीत में पॉप, शास्त्रीय संगीत, लोकगीतों का मिश्रण देखने को मिलता है। ये प्रयोग तेज़ी से हो रहे हैं और लोगों द्वारा सराहे भी जा रहे हैं। Page No 8:Question 5:चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए- अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें। Answer:कुमार गंधर्व की राय और मेरी राय एक जैसी है। शास्त्रीय संगीतकार कहते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं। उन्हें अब शास्त्रीय संगीत नहीं भाता है। कुमार गंधर्व इस बारे में विपरीत ख्याल रखते हैं। उनका मानना है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कानों में सुधार किया है। कुमार गंधर्व ने कहा भी सही है। चित्रपट संगीत ने लोगों की संगीत के प्रति रुचि बढ़ाई है। हम भी यही मानते हैं। भारतीय फिल्मों ने संगीत को नए आयाम दिए हैं। हर वर्ग के लोगों के दिलों में ये छाए हैं। आज फिल्मों में निर्माता इन्हें बेचकर ही मुनाफा कमा रहे हैं। इससे पता चलता है कि लोगों की संगीत के प्रति कितनी रुचि बढ़ गई है। Page No 8:Question 6:शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं? Answer:कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय तथा चित्रपट दोनों तरह के संगीत के महत्व का आधार है कि वे सुनने वालों को आनंद देने की क्षमता रखते हैं। किसी भी प्रकार के गाने में मधुरता का होना आवश्यक है। शास्त्रीय संगीत की रंजक क्षमता ही उसके सौंदर्य को बढ़ाती है तथा इससे रसिकों के हृदय को आनंदित करती है। ऐसे ही चित्रपट संगीत ने शास्त्रीय संगीत को आधार बनाकर उसके ताल को आधा प्रस्तुत करके उसकी जटिलता को कम कर रसिकों की पहुँच उस तक बना दी है। आज गायक रागों के प्रकार को न जानते हों लेकिन उसे गा सकते हैं। Page No 8:Question 1:पाठ में किए गए अंतरों के अलावा संगीत शिक्षक के चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत का अंतर पता करें। इन अंतरों को सूचीबद्ध करें। Answer:
Page No 8:Question 2:कुमार गंधर्व ने लिखा है- चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है। क्या शास्त्रीय गायकों को भी चित्रपट संगीत से कुछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें। Answer:शास्त्रीय संगीत ही चित्रपट संगीत का आधार है। जिसने शास्त्रीय संगीत को समझा है, वे सुर तथा ताल का बहुत सुंदर प्रयोग कर सकता है। वह अपने गीत के साथ न्याय कर सकता है। वह हर राग को पहचानता है और जानता है कि उसका कहाँ पर कितना प्रयोग करना है। शास्त्रीय संगीत में राग को महत्व दिया जाता है। वह संगीत का ऐसा रूप है, जिसे हर मनुष्य समझ नहीं सकता है। चित्रपट संगीत में गीतकार को लिखे गीत को स्वर देना होता है। यहाँ पर शब्द का महत्व नहीं होता है। यहाँ पर ध्वनि को विशेष महत्व दिया जाता है। एक शास्त्रीय गायक के लिए ध्वनि के उतार-चढ़ाव महत्वपूर्ण होते हैं। राग में वह इसका प्रयोग करता है। इसे नियमपूर्वक गाया जाता है। चित्रपट संगीत शास्त्रीय संगीत से अलग है। इसमें शास्त्रीय संगीत का प्रयोग होता है लेकिन वह शब्दों को लय देने के लिए होता है। अतः शब्दों के माध्यम से मन के भावों को सरलता से व्यक्त किया जा सकता है। यहाँ पर शब्दों को रागों में ढाला जाता है। अतः जहाँ लोगों के मन में राग के प्रति जानकारी न होते हुए भी, वह उनके मस्तिष्क में सदैव के लिए रह जाता है। शास्त्रीय संगीत को याद करना सबके लिए संभव नहीं है। शास्त्रीय संगीत कड़े अभ्यास का फल है। इसमें ध्वनी, स्वर तथा राग में अभ्यास की आवश्यकता होती है। अतः आम व्यक्ति के लिए इन्हें याद करना और गा पाना संभव नहीं है। अतः शास्त्रीय गायकों को चाहिए इसमें ऐसे परिवर्तन करें कि आम लोगों की पसंद बन जाए। View NCERT Solutions for all chapters of Class 14 चित्रपट संगीत पर क्या आरोप लगाया जाता है?शास्त्रीय संगीतकार प्राय: यह आरोप लगाते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं अर्थात् लोगों के कानों को चित्रपट संगीत अधिक लुभाता है। इसने उनकी रुचि को बिगाड़ दिया है। लेखक कुमार गंधर्व का विचार है कि यह कथन सही नहीं है। चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं हैं उलटे सुधार दिए हैं।
चित्रपट संगीत कौन सा होता है?चित्रपट संगीत किसे कहते हैं? - Quora. मेरे विचार से फ़िल्म , चलचित्र, सिनेमा को चित्रपट कहा जाता है। सुव्यवस्थित ध्वनि, गायन, वादन और नृत्य इन सब से मिल कर जो रचना होती है उसे संगीत कहते है। फ़िल्म में इस्तेमाल होने वाले संगीत को ही चित्रपट संगीत कहते है।
चित्रपट संगीत की विशेषता क्या है?चित्रपट संगीत शास्त्रीय संगीत से अलग है। इसमें शास्त्रीय संगीत का प्रयोग होता है लेकिन वह शब्दों को लय देने के लिए होता है। अतः शब्दों के माध्यम से मन के भावों को सरलता से व्यक्त किया जा सकता है। यहाँ पर शब्दों को रागों में ढाला जाता है।
चित्रपट संगीत का पर्याय क्या है?➲ चित्रपट संगीत का पर्याय लता मंगेशकर को माना जाता है।
➤ 'भारतीय गायिकाओं ने बेजोड़ - लता मंगेशकर' पाठ में लेखक कुमार गंधर्व कहते हैं कि लता मंगेशकर चित्रपट संगीत की पर्याय बन चुकी हैं।
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