फादर बुल्के का स्वभाव ऐसा था कि लेखक ने ऐसी कल्पना की है। उनको देखकर ही मन में करुणा का भाव जागृत हो जाता था। ऐसा लगता था मानो निर्मल जल में स्नान कर रहे हों। उनकी बातें इतनी सकारात्मक होती थीं कि उन्हें सुनने भर से ही मन में कर्म को करने का संकल्प भर जाता था। Show
गद्यांशों पर आधारित अतिलघु/लघु-उत्तरीय प्रश्न निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- 1. फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछें? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था, वह देह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दे? एक लम्बी, पादरी के सफ़ेद चोगे से ढकी आकृति सामने है-गोरा रंग, सफेद झाँई मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखें-बाँहें खोल गले लगाने को आतुर। इतनी ममता, इतना अपनत्व इस साधु में अपने हर एक प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था। मैं पैंतीस साल से इसका साक्षी था। तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे। आज उन बाँहों का दबाव मैं अपनी छाती पर महसूस करता हूँ। प्रश्न (क) गद्यांश में वर्णित साधु के रंग-रूप और व्यक्तित्व को अपने शब्दों में दो वाक्यों में लिखिये। प्रश्न (ख) ‘ज़हरबाद’ रोग क्या होता है और गद्यांश में किस महापुरुष की ज़हरबाद से मृत्यु का उल्लेख है? वे किस रूप में प्रसिद्ध थे ? प्रश्न (ग) ‘बाँहों का दबाव महसूस’ करने का अर्थ स्पष्ट कीजिये तथा बताइये कि लेखक किनकी बाँहों के दवाब का उल्लेख कर रहा है? प्रश्न (ख) लेखक ईश्वर से कौन-सा सवाल पूछना चाहते
थे? प्रश्न (ग) फ़ादर के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए। 2. फ़ादर को याद करना एक उदास शान्त संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गम्भीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो, हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और फ़ादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों। प्रश्न (क) उत्सव और संस्कार में फादर किसकी भूमिका निभाते थे? प्रश्न (ख) फ़ादर से बात करने पर कैसी अनुभूति होती थी? प्रश्न (ग) करुणा के निर्मल जल में स्नान करने का क्या आशय है? 3. ”लेकिन मैं तो संन्यासी हूँ।“ ”आप सब छोड़कर क्यों चले आए?“ ”प्रभु की इच्छा थी।“ वह बालकों की सी सरलता से मुस्कराकर कहते, ”माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया। और सचमुच इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष की पढ़ाई छोड़ फ़ादर बुल्के संन्यासी होने जब धर्मगुरु के पास गए और कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूँ तथा एक शर्त रखी (संन्यास लेते समय संन्यास चाहने वाला शर्त रख सकता है) कि मैं भारत जाऊँगा।“ ”भारत जाने की बात क्यों उठी?“ ”नहीं जानता, बस मन में यह था।“ प्रश्न (क) फ़ादर बुल्के सब कुछ छोड़कर क्यों चले आए? प्रश्न (ख) फ़ादर बुल्के ने इंजीनियरिंग अंतिम वर्ष की पढ़ाई क्यों छोड़
दी? प्रश्न (ग) फ़ादर बुल्के ने संन्यास लेते समय क्या शर्त रखी और इसका क्या कारण था? 4. ”और सचमुच इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़कर फ़ादर बुल्के संन्यासी होने जब धर्मगुरु के पास गए और कहा
कि मैं संन्यास लेना चाहता हूँ तथा एक शर्त रखी (संन्यास लेते समय संन्यास चाहने वाला शर्त रख सकता है) कि मैं भारत जाऊँगा।“ प्रश्न (क) ”जिसेट संघ“ में क्या
शिक्षा दी जाती है और वहाँ फ़ादर कितने समय तक रहे ? प्रश्न (ख)-संन्यास लेते समय उन्होंने क्या शर्त रखी थी और ऐसी शर्त का क्या कारण रहा होगा ? प्रश्न (ग)- संन्यासी बनने से पूर्व फ़ादर बुल्के क्या कर रहे थे और फिर संन्यास लेने कहाँ पहुँचे थे ? 5. फ़ादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है कि वह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उनकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है? उनकी चिन्ता हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच से इसकी तकलीफ़ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते। बस इसी एक सवाल पर उन्हें झुंझलाते देखा है और हिन्दी वालों द्वारा ही हिन्दी की उपेक्षा पर दुःख करते उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुःख-तकलीफ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े से दुःख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है। हम मौत दिखाती है जीवन को नई राह।’ मुझे अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु याद आ रही है और फ़ादर के शब्दों से झरती विरल शांति भी। प्रश्न (क) फ़ादर बुल्के की चिन्ता क्या थी? प्रश्न (ख) लेखक से फ़ादर बुल्के का लगाव किस रूप में प्रकट होता है? प्रश्न (ग) दुःख और संकट के समय फादर के
उपस्थित होने का क्या प्रभाव होता था ? प्रश्न (ख) फ़ादर बुल्के के व्यक्तित्व की क्या विशेषताएँ थीं? प्रश्न (ग) फ़ादर बुल्के की चिन्ता क्या थी और उन्हें किस बात पर दुःख होता था? उत्तरः फ़ादर बुल्के की चिन्ता हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी और उन्हें इस बात पर दुःख होता था कि हिन्दी वालों द्वारा ही हिन्दी की उपेक्षा की जाती है। 6. मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा, लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।) इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में, जो उनके निकट थे, किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ। प्रश्न (क) उपर्युक्त गद्यांश के लेखक कौन हैं? प्रश्न (ख) फ़ादर को छायादार फल-फूल गंध से भरा क्यों कहा गया है? प्रश्न (ग)
लेखक ने फ़ादर कामिल बुल्के को श्रद्धांजलि कैसे अर्पित की ? करुणा के निर्मल जल में स्नान करने का क्या आशय है?प्रश्न (ग) करुणा के निर्मल जल में स्नान करने का क्या आशय है? उत्तरः करुणा के निर्मल जल में स्नान करने का आशय यह है कि फादर की करुणा के स्पर्श से मन अच्छाइयों की ओर प्रेरित होता है।
फादर कामिल बुल्के को देखना करना कि निर्मल जल में स्नान करना क्यों था?फादर कामिल बुल्के के लिए यह विशेषण उनकी करुणा भरे हृदय की विशालता को दर्शाता है। लेखक ने लिखा है कि “उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था , अत्यधिक ममता, अपनत्व अपने हर प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था , वे स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों के दुखों को दूर करते थे।
फादर कामिल बुल्के की मृत्यु का कारण क्या था?निधन 17 अगस्त 1982 में गैंगरीन के कारण एम्स, दिल्ली में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी।
फादर के सांत्वना के जादू भरे शब्द किसका काम करते थे?लेखक की पत्नी और पुत्र की मृत्यु पर फादर के मुख से सांत्वना के जादू भरे शब्द इस बात के प्रमाण । उनके अंदर मानवीय करुणा की अपार भावनाओं के मौजूद रहने के कारण ही उनके लिए 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' विशेषण का प्रयोग किया गया है।
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