गिल्लू रेखाचित्र के लेखक कौन है? - gilloo rekhaachitr ke lekhak kaun hai?

उच्च शिक्षा प्रयाग के क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में हुई थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए०

उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या हो गयीं। इनका विवाह 9 वर्ष की छोटी आयु में ही

हो गया था। इनके पति श्री स्वरूपनारायण वर्मा एक डॉक्टर थे, परन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था।

ये उनसे अलग रहने लगी थी। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन किया। इनके जीवन पर

महात्मा गाँधी का तथा साहित्य-साधना पर रवीन्द्रनाथ का विशेष प्रभाव पड़ा। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश

मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की सांस ली. इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी. आवश्यक कागज़-पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बंद ही रहता है. मेरे कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा. तब से यह नित्य का क्रम हो गया.


मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुंड का नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने  झूले में झूलने लगता. मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गई थी. कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में.

मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परंतु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता. गिल्लू इनमें अपवाद था. मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुंचती, वह खिड़की से निकलकर आंगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज़ पर पहुंच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता. बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया जहां बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई से खाता रहता. काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बंद कर देता या झूले से नीचे फेंक देता था.

उसी बीच मुझे मोटर दुर्घटना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा. उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाज़ा खोला जाता गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर उसी तेज़ी से अपने घोंसले में जा बैठता. सब उसे काजू दे आते, परंतु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफ़ाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कितना कम खाता रहा. मेरी अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे-नन्हे पंजों से मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता.

गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झूले में बैठता. उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था. वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता. गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत आ ही गया. दिन भर उसने न कुछ खाया न बाहर गया. रात में अंत की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से मेरी वही उंगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था. पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया. परंतु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया.
उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परंतु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है.

सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है- इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी- इसलिए भी कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मुझे संतोष देता है.

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गिल्लू कहानी महादेवी वर्मा


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गिल्लू पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ या संस्मरण गिल्लू लेखिका महादेवी वर्मा जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ के माध्यम से लेखिका महादेवी वर्मा जी ने गिलहरी जैसे एक चंचल और छोटे जीव के प्रति प्रेम का चित्रण किया है | प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने गिलहरी के विभिन्न क्रियाकलापों और जीवन का बड़ी रोचकता से चित्रण किया है | 

प्रस्तुत पाठ या संस्मरण के अनुसार, सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में इस विश्वास का जन्म होता है कि इस छोटे से जीव को इस बेल पर लगे फूल के रूप में देखेगी | सोनजुही की लता में जब पीले फूल खिलेंगे तो लेखिका के सामने गिल्लू की यादें ताज़ा हो जाएँगी | परिणामतः गिल्लू संतोष से भर जाएगी | 

गिल्लू रेखा चित्र के रचयिता कौन है?

उनके भीतर भी कुछ संवेदनाएँ होती हैं। उनके साथ हमारा जैसा व्यवहार होता है, उसी के अनुसार वे भी हमारे साथ व्यवहार करते हैं। प्रस्तुत रेखाचित्र 'गिल्लू' की लेखिका महादेवी वर्मा हैं । महादेवी वर्मा को पशु-पक्षियों से बहुत लगाव था ।

गिलहरी के लेखक कौन है?

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है. इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुंचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था. तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है.

गिल्लू साहित्य की कौन सी विधा है?

'गिल्लू' महादेवी वर्मा द्वारा लिखित रचना है। यह रचना संस्मरणात्मक गद्य शैली में लिखी गई है। महादेवी वर्मा को जानवरों और पक्षियों से बहुत प्यार था।

गिल्लू पाठ का मूल संदेश क्या है?

गिल्लू पाठ का मूल भाव है कि अपने समान अन्य जानवरों को भी जीने का अवसर दो। यदि कोई प्राणी घायल है या किसी मुसीबत में हैं, तो उसकी सहायता करो। गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अत: गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत आ ही गया ।