ग्राम गीतों में सास के रूप में कौन सर्वमान्य है? - graam geeton mein saas ke roop mein kaun sarvamaany hai?

bihar board class 9th hindi notes | ग्रामगीत का मम

bihar board class 9th hindi notes

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 3 –  ग्रामगीत का मम

ग्रामगीत का मम
                                                                                         लेखक -लक्ष्मीनारायण सुधांशु

लेखक-परिचय     

18 जनवरी , 1908 ई . को जिला पूर्णिया ( बिहार ) के रूपसपुर नामक गाँव में लक्ष्मीनारायण सुधांशु का जन्म हुआ । ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम . ए , तक शिक्षा प्राप्त किये थे । साहित्य के अतिरिक्त राजनीतिक क्षेत्र के भी मुख्य कार्यकर्ता थे । बिहार विधान परिषद् के अध्यक्ष भी रहे थे । साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने पटना की ‘ अवन्तिका ‘ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया था । साहित्य के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार आलोचना है । ‘ काव्य में अभिव्यंजनावाद ‘ ( 1938 ई . ) तथा ‘ जीवन के तत्व और काव्य के सिद्धांत ‘ ( 1942 ई . ) उनके प्रमुख समीक्षा – ग्रन्थ हैं , पर साथ ही क्रांति – साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने कार्य किया है । ‘ भ्रातृप्रेम ‘ ( 1926 ई . ) उनका उपन्यास है तथा ‘ गुलाब की कलियाँ ‘ ( 1928 ) , ‘ रसरंग ‘ ( 1921 ) कहानियों के संग्रह । ‘ वियोग ‘ शीर्षक उनका निबन्ध – संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है । ‘
सुधांशु ‘ की प्रतिभा समीक्षा के सैद्धान्तिक निरूपण में है और इसके लिए उन्होंने मनोविज्ञान , | सौन्दर्यशास्त्र एवं प्राचीन भारतीय काव्यशास्त्र के गहन अध्ययन द्वारा समुचित तैयारी की है । छायावाद की छाया तले पलने वाले इस समीक्षक पर रोमाण्टिक काव्य – शास्त्र का प्रभाव यथेष्ट है तथा उन्होंने रामचन्द्र शुक्ल की शास्त्रीयता की कड़ियों को ढीला करने का प्रयास किया है । जीवन के तत्व और काव्य के सिद्धान्त ‘ नामक पुस्तक में लेखक ने अपने समीक्षा सम्बन्धी विचारों को अधिक व्यापक धरातल पर प्रतिष्ठित करना चाहा है । इस पुस्तक में दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक आधार भूमि पर काव्यसिद्धान्तों को परखने की चेष्टा की गयी है । रोमाण्टिक काव्यशास्त्र की धारणाओं के अनुरूप उन्होंने आत्मभाव की अभिव्यक्ति को ही कला का मुख्य उद्देश्य माना है ।
काव्यानन्द की प्रक्रिया का मनोवैज्ञानिक विवेचन करके उन्होंने प्राच्य और पाश्चात्य दृष्टिकोणों को एक साथ समेटने की चेष्टा की है । संसार के समस्त व्यापारों के ओज स्वीकार करके वे काव्यानन्द को भी मन के अतिरिक्त ओज पर ही निर्धारित मान लेते हैं । काव्य के सृजन एवं आस्वादन से सम्बन्धित समस्याओं के अतिरिक्त लेखक ने इस कृति में लय और छन्द , ग्रामगीत की प्रकृति , कलागीत की प्रवृतियों आदि पर भी विचार किया है तथा अन्त में आधुनिक नौ कवियों की प्रवृत्तिमूलक समीक्षा भी की है । परन्तु यह पुस्तक जिस संकल्प को लेकर जिस व्यापक परिप्रेक्ष्य से प्रारम्भ की गयी थी , उसका निर्वाह नहीं हो सका । पूरी पुस्तक में न तो जीवन के तत्वों के आधार पर काव्य – सिद्धान्तों की ही सम्यक् व्याख्या बन पड़ी है । पुस्तक का अन्तिम अंश और विशेषतः व्यावहारिक समीक्षावाला भाग दलीय हो गया है ।

कहानी का सारांश:-

‘ ग्राम – गीत का मर्म ‘ शीर्षक प्रसिद्ध लेखक लक्ष्मीनारायण सुधांशु द्वारा लिखित चर्चित निबंध है। सुधांशु जी एक साथ साहित्य और राजनीति दोनों में सक्रिय थे । इस निबंध में उन्होंने ग्राम – गीतों के महत्त्व को प्रतिपादित किया है । संसार में प्राय : सभी जगह कविता का जन्म दंतकथाओं या ग्राम – गीतों से होता है । इनमें मानव मन के भावों की सहज अभिव्यक्ति होती है । उनमें बनावटीपन नहीं होता है । इनकी तरह सहजता बाद में रचे गए कलात्मक गीतों में नहीं होती है । ग्राम – गीतों से जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अलावा मनोरंजन भी होता है । स्त्री को प्रकृति से इन गीतों का गहरा संबंध है । पुरुष भी ग्राम – गीत गाते हैं परन्तु कुल मिलाकर इन गीता की प्रकृति स्त्रैण ही रही , पुरुषत्व का आक्रमण उन पर नहीं किया जा सका । स्त्रियों ने जहाँ कामल भावों को ही अभिव्यक्ति की , वहाँ पुरुषों ने अवश्य ही अपने संस्कारवश प्रेम को प्राप्त करने को लिए युद्ध की घोषणा की । मानव जाति की दो मुख्य प्रवृत्तियाँ हैं – प्रेम और युद्ध । इन दोनों का वर्णन ग्राम गीतों में मिलता है । ग्राम – गीत हृदय की वाणी है । इसमें तर्क बुद्धि नहीं चलती । इसमें भावों का कलकल छलछल प्रवाह मिलता है जिसमें डुबकी लगाकर मनुष्य अपना दुःख – दर्द सब भुला बैठता है । परिष्कृत साहित्य के नायक राजा – रानी , राजकुमार – राजकुमारी आदि ही बनत थे । उनमें धीरोदात्तता , दक्षता , तेजस्विता , रूढ़वंशता , वाग्मिता आदि गुण स्वाभाविक माने जाते थे । परंतु ग्राम – गीतों में जन – साधारण से ही नायक – नायिका लिये जाते थे । ग्राम – गीतों में वर्णित दशरथ , राम , कौशल्या , सीता , लक्ष्मण , कृष्ण , यशोदा आदि जन – साधारण के चरित्र को ही प्रकट करते हैं , पौराणिक चरित्र को नहीं । आज भी बच्चे राजा – रानी , भूत – प्रेत की कथा सुनने के लिए उत्सुक रहते हैं । वैसे ही कुछ व्यक्ति ग्राम – गीतों से उद्वेलित होते हैं । मानव जीवन का पारस्परिक संबंध सूत्र कुछ ऐसा विचित्र है कि जिस बात को हम एक काल और एक देश में बुरा समझते हैं , उसी बात को दूसरे काल और दूसरे देश में अच्छा मान लेते हैं । प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध , शोक , उत्साह , विस्मय , जुगुप्सा आदि में नहीं । विरहाकुल पुरुष पशु , पक्षी , लता , द्रुम सबसे अपनी वियुक्ता प्रिया का पता पूछ सकता है किंतु क्रुद्ध मनुष्य अपने शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछता है ।

पाठ के साथ:-

प्रश्न 1. जीवन का आरंभ जैसे शैशव है , वैसे ही कला – गीत का ग्राम – गीत है । लेखक के इस कथन का क्या आशय है ?

उत्तर –चूंकि ग्राम – गीतों में मानव – जीवन के महत्त्व की संहति तथा उसकी विविधता का आलोचना रहता है । मानव – जीवन के उन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं , जिनमें मनुष्य साधारणत : अपनी लालसा , वासना , प्रेम , घृणा , उल्लास विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा सका है । उनमें सर्वत्र रूढ़िगत जीवन ही नहीं है , प्रत्युत कहीं – कहीं प्रेम , वीरता , क्रोध , कर्त्तव्य का भी बहुत ही रमणीय , बाह्य तथा अंतर्विरोध दिखाया गया है । जीवन की और भावों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन ग्राम – गीतों में मिलता है , उतना परवर्ती कला – गीतों शुद्धता में नहीं । इसी कारण लेखक ने कहा है कि जीवन का आरंभ जैसे शैशव है , वैसे ही कला – गीत का ग्राम – गीत है ।

प्रश्न 2. गार्हस्थ्य कर्म विधान में स्त्रियाँ किस तरह के गीत गाती हैं ?

उत्तर – स्त्री – प्रकृति में गार्हस्थ्य कर्म विधान की जो स्वाभाविक प्रेरणा है , उनसे गीतों की रचना का अटूट संबंध है । चक्की पीसते समय , धान कूटते समय , चर्खा कातते समय अपने शरीर – श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं । इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे गीत भी गाती हैं जो भाव की उमंग में गाए गए । जन्म , मुंडन , यज्ञोपवीत , विवाह , पर्व – त्योहार आदि के अवसर पर जो गीत गाए जाते हैं उनमें उल्लास और उमंग की ही प्रधानता रहती है । उनके गीतों का मुख्य विषय पारिवारिक जीवन है । प्रेम विवाह तथा पतोहू और सास – श्वसुर के वर्ताव , माँ , भाई – बहन का स्नेह आदि बातें ही ज्यादातर गीतों में पायी जाती हैं ।

प्रश्न 3. मानव – जीवन में ग्राम – गीतों का क्या महत्त्व है ?

उत्तर – मानव – जीवन में ग्राम गीतों का जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है । जैसे चक्की पीसते समय , धान कूटते समय , चर्खा काटते समय अपने श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियों द्वारा ग्राम गीत गाये जाते हैं । यही नहीं अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए भी ग्राम – गीतों का मानव – जीवन में महत्व है । कहीं – कहीं प्रेम , वीरता , क्रोध , कर्त्तव्य आदि व्यक्त करने के लिए इन गीतों का सहारा लिया जाता है ।

प्रश्न 4. ” ग्राम – गीत हृदय की वाणी है , मस्तिष्क की ध्वनि नहीं ” -आशय स्पष्ट करें ।

उत्तर – सामान्यतः माना जाता है कि पुरुष ज्यादा मस्तिष्क का उपयोगकर किसी हृदयग्राही अनुसार वस्तु को भी बुद्धिवादी बना देते हैं । इसी क्रम में ग्राम – गीतों का अनुकरण स्त्री – प्रकृति पुरुषों ने भी किया । हल जोतने , नाव खेने , पालकी ढोने आदि कामों के समय गाए जाने लार्यक गीत पुरुषों ने भी बनाए । किंतु सब मिलाकर ग्राम – गीतों की प्रकृति स्त्रैण ही रही है , पुरुषत्व का आक्रमण उनपर नहीं किया जा सका है । स्त्रियों ने कोमल भावों की ही अभिव्यक्ति की और ये कोमलभाव हृदय में उपजते हैं । वहीं पुरुषों ने अवश्य ही अपने संस्कारवश प्रेम को प्राप्त करने के लिए युद्ध – घोषणा की । यह बुद्धिवादी तरीका है । मस्तिष्क का उपयोग है । ग्राम – गीतों में स्त्रियों से संबंधित ही चित्र ज्यादा मिलते हैं यद्यपि प्रेम और युद्ध दोनों प्रवृत्ति इसमें मिलते हैं । इसीलिए कहा गया है कि ग्राम – गीत हृदय की वाणी है , मस्तिष्क की ध्वनि नहीं ।

प्रश्न 5. ग्राम – गीत की प्रकृति क्या है ?

उत्तर – ग्राम – गीत की प्रकृति स्त्रैण है । क्योंकि ग्राम – गीत स्त्रियों के सन्निकट है । गृहस्थ के सारे कर्म स्त्रियाँ ही अधिकतर करती हैं इसी कारण उससे गीतों की रचना का अटूट संबंध है । चक्की पीसते समय , धान कूटते समय इत्यादि अपने श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ ये गीत गाती हैं । साथ ही , जन्म – मुंडन , यज्ञोपवीत , विवाह , पर्व – त्योहार आदि जितने अवसर हैं , उनमें स्त्रियों द्वारा ही गीत गाये जाते हैं । इसी कारण ग्राम – गीतों की प्रकृति स्त्रैण ही है ।

प्रश्न 6. कला – गीत और ग्राम – गीत में क्या अंतर है ?

उत्तर – ग्राम – गीतों में जीवन की शुद्धता और भावों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन मिलता है वह कला – गीतों में नहीं मिलता है । ग्राम – गीत के अन्तर्गत मानवीय जीवन के संस्कार जन्म , मृत्यु , यज्ञोपवीत , विवाह आदि से जुड़े गीत आते हैं । कला – गीतों के अंतर्गत मुक्तक और प्रबन्ध काव्य दोनों का समावेश है । कला – गीत अत्यधिक संस्कृत तथा परिष्कृत होती है । ग्राम गीत प्रथमतः व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदना की उद्गीत होता है । ग्राम – गीत की जो प्रकृति स्त्रैण थी वह कला – गीत में आकर पौरुषपूर्ण हो गई ।

प्रश्न 7. ग्राम – गीत का ही विकास कला – गीत में हुआ है । पठित निबंध को ध्यान में रखते हुए उसकी विकास – प्रक्रिया पर प्रकाश डालें ।

उत्तर –ग्राम – गीत ही क्रम सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला – गीत के रूप में विकसित हो गया है , जिसका संस्कार अबतक वर्तमान है । ग्राम गीत भी प्रथमत : व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदना को लेकर उद्गीत किया गया , किंतु इन भावनाओं ने समष्टि का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी वैयक्तिक सत्ता समष्टि में ही तिरोहित हो गई और इस प्रकार उसे लोक – गीत की संज्ञा प्राप्त हुई । ग्राम – गीत को कला – गीत के रूप में आते – आते सबसे मुख्य बात यह रही कि कला – गीत अपनी रूढ़ियाँ बनाकर चले । कला – गीत का क्षेत्र भी व्यापक और विस्तृत हुआ और उसकी शास्त्रीयता जाती रही । जिस प्रकृति और संकल्प का विधान था कला – गीत में उसकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया । ग्राम – गीत से कला – गीत के परिवर्तन में एक बात उल्लेखनीय यह रही कि ग्राम – गीत में रचना की प्रकृति स्त्रैण थी , वह कला – गीत से अत्यधिक परिष्कृत और सुसंस्कृत हो गया है । कला – गीत के अन्तर्गत मुक्तक और प्रबंध काव्य दोनों का समावेश है । ग्राम गीतों में जो पात्र निम्न कोटि से आते थे वही कला – गीतों में आकर राजा – महाराजाओं यानि उत्कृष्ट उच्च वर्ग ने ले लिया ।

प्रश्न 8. ग्राम – गीतों में प्रेम दशा की क्या स्थिति है ? पठित निबंध के आधार पर उदाहरण देते हुए समझाइए ।

उत्तर –ग्राम – गीतों में भावों का बड़ा महत्त्व है । प्रेम भी एक भाव ही है । ग्राम – गीतों में प्रेम दशा की स्थिति बड़ी ही व्यापक है । विरहाकुल पुरुष , पशु , पक्षी , लता , हम सबसे अपनी वियुक्त प्रिया का पता पूछ सकता है , किंतु क्रुद्ध मनुष्य अपने शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछता पाया जाता । ग्राम – गीतों में बहुत ऐसे वर्णन है जिनमें नायिका अपने प्रेमी की खोज में बाघ , साँप , भालू आदि से उसका पता पूछती है । आदिकवि वाल्मीकि ने विरह – विह्वल राम के मुख से सीता की खोज के लिए न जाने कितने पशु – पक्षी , पेड़ – पौधे आदि से पता पूछवाया है । प्रिय के अस्तित्व की सृष्टि – व्यापिनी भावना से जीवन और जगत की कोई वस्तु अलग नहीं रह सकती । जीवन का यह उत्कर्ष तथा विकास प्रेम – दशा के अतिरिक्त अन्यत्र सुलभ भी नहीं ।

प्रश्न 9. “ प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध , शोक , विस्मय , उत्साह , जुगुप्सा आदि में नहीं ” -आशय स्पष्ट करें ।

उत्तर –जब कोई प्रेम करता है तो वह समस्त प्रकृति से भी जुड़ जाता है । कारण प्रेम एक शाश्वत मूल्य है । प्रेम से पशुपक्षी सभी को वश में किया जा सकता है । किंवदन्ती यह है कि राम जब सीता के वियोग में थे तो वे विरहाकुल पशु – पक्षी , लता – द्रुम सबसे अपनी वियुक्ता प्रिया का पता पूछते थे । किंतु क्रुद्ध मनुष्य अपने शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछता पाया जाता है । – यही कारण है कि प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध , शोक , उत्साह , विस्मय या जुगुप्सा में नहीं ।

प्रश्न 10. ग्राम – गीतों में मानव – जीवन के किन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं ?

उत्तर – ग्राम – गीतों में मनुष्य रणतः अपनी लालसा , वासना , प्रेम , घृणा , उल्लास , विषाद आदि प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं । इन भावनाओं से मानव समाज अपनी मान्य धारणाओं से अभी ऊपर नहीं उठ सका है । इनमें हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने के लिए कहीं – कहीं , प्रेम , वीरता , क्रोध का सहारा लेता है ।

प्रश्न 11. गीत का उपयोग जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है । निबंधकार ने ऐसा क्यों कहा है ?

उत्तर – क्योंकि ग्राम – गीत संभवत : वह जातीय पशु कवित्व है जो कर्म या क्रीड़ा के ताल पर रचा गया है । स्त्री प्रकृति में गार्हस्थ कर्म – विधान में चक्की पीसते समय , धान कूटते समय , चर्खा काटते समय , अपने श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं । उस समय उनका अभिप्राय साधारणतः यही रहता है कि परिश्रम के कारण जो थकावट आयी रहती है ; उससे ध्यान हटाकर मनोरंजन में चित्र संलग्न किया जा सके । इसी कारण निबंधकार ने गीत का उपयोग जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है , ऐसा कहा है ।

प्रश्न 12. ग्राम – गीतों के मुख्य विषय क्या हैं ? निबंध के आधार पर उत्तर दें ।

उत्तर – ग्राम – गीतों का मुख्य विषय स्त्रियों से ही संबंधित है जिसमें किसी कार्य की ही प्रधानता है । जैसे चक्को पीसते समय समय , धान कूटते समय , चर्खा काटते समय स्त्रियाँ गीत गाती हैं । ग्राम्य – जीवन के प्राथमिक चित्रों के दर्शन – ही – दर्शन होते हैं । उनके गीतों का मुख्य विषय पारिवारिक जीवन है । प्रेम , विवाह तथा पतोहू और सास – श्वसुर के बर्ताव , भाई बहन का स्नेह आदि बातें ही ज्यादातर गीतों में पायी जाती हैं । हल जोतने , नाव खेने , पालकी आदि ढोने के समय गाए जाने वाले गीत भी परिवार से ही संबंधित होते हैं ।

प्रश्न 13. किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर जो काव्य – रचना की जाती थी , किन स्वाभाविक गुणों के कारण साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्त्व की प्रतिष्ठा बनती थी ?

उत्तर – उनमें धीरोदात्तता , दक्षता , तेजस्विता , रूढ़िवादिता , वाग्मिता आदि गुण स्वाभाविक माने जाते थे । मानव होते हुए भी उनकी महत्ता , विशिष्टता , प्रतिष्ठा आदि का प्रभावोत्पादक संस्कार जनता के चित्त पर पड़ा था । ऐसे चरित्र को लेकर काव्य रचना में रसोत्कर्ष का काम , बहुत – कुछसामाजिक धारणा के बल पर ही चल जाता था , किंतु साधारण जीवन के चित्रण में कवि की प्रतिभा का बहुत – सा अंश अपने चरित्र – नायक में विशिष्टता प्राप्त कराने की चेष्टा में ही खर्च हो जाता है । उनकी इन्हीं गुणों के कारण साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्व पर प्रतिष्ठा बनती थी ।

प्रश्न 14. ग्राम – गीत की कौन – सी प्रवृत्ति अब काव्य – गीत में भी चलने लगी है ?

उत्तर –साधारण जीवन के चरित्रों को उच्च चरित्रों में बदलकर उसे प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति अब काव्य गीतों में चलने लगी है । उदाहरणार्थ एक दु : खी भिखारिणी भी हृदय की उच्चता में रानी को मात कर सकती है । हृदय की उच्चता – विशालता किसी में हो , चाहे राजा हो या भिखारी उनका वर्णन करना कवि – कर्म है । इसी कर्म के प्रति सचेत होकर उच्च वर्ग के लोगों के प्रति समाज में विशिष्टता की धारणा ज्यों – ज्यों कम होने लगी त्यों – त्यों निम्न वर्ग के प्रति हमारे हृदय में आदर का भाव जमने लगा और इस प्रकार काव्य में ऐसे पात्रों को सामान्य स्थान प्राप्त होने लगा ।

प्रश्न 15. ग्राम – गीत के मेरुदंड क्या हैं ?

उत्तर –ग्राम – गीत में दशरथ , राम , कौशल्या , सीता , कृष्ण , यशोदा के नाम बहुत आए हैं और उनसे जन – समाज के बीच संबंध का प्रतिनिधित्व कराया गया है । श्वसुर के लिए दशरथ , पति के लिए राम या कृष्ण , देवर के लिए लक्ष्मण , सास के लिए कौशल्या या यशोदा आदि सर्वमान्य हैं । इसका कारण हमारा वह पिछला संस्कार है धार्मिक कहाकाव्यों ने हमारे चित्त पर डाला है । एक दरिद्र गृहिणी भी जिसके घर में भोजन के लिए थोड़ा – सा अन्न है , सोने के सूप फटककर साफ करती है । हमारी दरिद्रता के बीच में भी संपत्तिशाली का यह रूप हमारे भाव को उद्दीप्त करने के लिए ही उपस्थित किया गया है । ऐसे वर्णन कला – गीत में चाहे विशेष महत्त्व प्राप्त न करें , किंतु ग्राम – गीत के वे मेरुदण्ड समझे जाते हैं ।

प्रश्न 16. कला – गीतों में पशु – पक्षी , लता – दुम आदि से जो प्रश्न पूछे गए हैं , उनके उत्तर में वे प्रायः मौन रहे हैं , विरही यक्ष का मेघदूत भी मौन ही रहा है । लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं ? यदि हैं तो अपने विचार दें ।

उत्तर – ग्राम – गीतों में ऐसे वर्णन बहुत हैं , जहाँ नायिका अपने प्रेमी की खोज में बाघ , भालू , साँप आदि से उसका पता पूछती है । आदिकवि वाल्मीकि ने भी विरह – विह्वल राम के मुख से सीता की खोज के लिए न जाने कितने पशु – पक्षी , लता – द्रुम आदि से पता पूछवाया है । लेकिन कला – गीतों में ऐसा नहीं है , वे प्रायः मौन ही रहे हैं ।

प्रश्न 17. ‘ ग्राम – गीत का मर्म ‘ निबंध के इस शीर्षक में लेखक ने ‘ मर्म ‘ शब्द का प्रयोग क्यों किया है ? विचार कीजिए ।

उत्तर – ‘ ग्राम – गीत का मर्म ‘ शीर्षक निबंध में ‘ मर्म ‘ प्राण के अर्थ में आता है अथवा जो रुधिर का संचरण करे वह मर्म कहलाता है । जिन कारणों एवं विषयों पर ग्राम – गीत आधारित है वह ग्राम – गीत का ‘ मर्म ‘ कहलाएगा और ग्राम – गीत पारिवारिक जीवन पर आधारित है ।

भाषा की बात:-

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय बताएँ ।

उत्तर – रमणीय- इय
शुद्धता-  ता
जातीय-इयअ
प्रधानता –  ता
मार्मिकता- इकता
बर्ताव -अव
अपूर्वता -ता
स्वाभाविक-इक
वर्तमान -मान
प्रतिनिधित्व – इत्व
मधुरता-  ता

प्रश्न 2.निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग बताएं
अपूर्व – अ
अभिप्राय – अभि
परिश्रम- परि
अतिरिक्त- अति
उपलक्ष्य- उप
अनुसंधान -अनु
विशिष्टता-  वि ।

प्रश्न 3. समास विग्रह करें।
उत्तरोत्तर – उत्तर के उत्तर
पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम
राजकुमार – राजा का कुमार
राजा -रानी -राजा और रानी
संस्कारवश- संस्कार के साथ ,संस्कार के कारण
ग्रामगीत- ग्राम की गीत
सास- श्वसुर – सास और ससुर
फल- फूल -फल और फूल

प्रश्न. 4 संधि विच्छेद करें ।

उल्लास -उत् +लास
उद्दीप्त- उत्+दीप्त
संस्कृति-  सम + कृति
समाविष्ट -सम+आविश्ट
उच्छवास- उत् +श्वास
उदगीत- उत्+गीत

प्रश्न. 4 निम्नलिखित विशेषण  का संज्ञा बनावे।
स्त्रैण – स्त्री
दरिद्र – दरिद्रता
पारस्परिक – परस्पर
शास्त्रीय – शास्त्र

प्रश्न. 6 पाठ से कारक के परसर्ग रहित एवं परिषद सहित उदाहरण चुने और कारक का रुप स्पष्ट करें ।

उत्तर –  देश के
जीवन का
हल्का करने के लिए
पुरुषों ने
भावों को

प्रश्न 7 .अर्थ की दृष्टि से वाक्यों की प्रकृति बताइए ।

उत्तर –

(क) कितनी दूर जा सका है ? -संदेह सूचक
(ख) क्या जीवन का आरंभ शैशव है? -प्रश्नवाचक
( ग) कला गीत में उनकी उपेक्षा करना समुचित ना माना गया। – निषेधवाचक
(घ)वीरही यक्ष का मेघदूत मौन ही रहा है ,किंतु ग्राम गीत का दूत मौन नहीं रहा है । -निषेधवाचक

ग्राम गीतों में सास के रूप में कौन सर्वमान्य है? - graam geeton mein saas ke roop mein kaun sarvamaany hai?