गैसीय अपशिष्ट के क्या स्रोत है? - gaiseey apashisht ke kya srot hai?

गैसीय अपशिष्ट के क्या स्रोत है? - gaiseey apashisht ke kya srot hai?


किसी भी प्रक्रम के अन्त में  बचने वाला अनुपयोगी जो हमारे काम नहीं आता अपशिष्ट कहलाता है । कारखानों, कृषि घरों तथा दूसरे क्षेत्रों में जीवित प्राणियों द्वारा प्रयुक्त की गई वस्तुओं से अपशिष्ट उत्पन्न होता है। दिन प्रतिदिन कूडा-करकट के ढेर में वृद्धि हो रही है। शहरों के बाहर फेंका हुआ कूडा करकट प्रयोग में आनें वाली जमीन को न प्रयोग होने वाले जमीन बना देता है और इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है।

अपशिष्ट के प्रकार 

1. प्रकृति के आधार पर अपशिष्ट के प्रकार 

  1. ठोस अपशिष्ट - कागज, रबर, प्लास्टिक, काॅंच, धातु etc.
  2. द्रव अपशिष्ट - वाहित मल (सीवेज द्रव) 
  3. गैस अपशिष्ट - हानिकारक प्रदूषणकारी गैसे CO2, CO, CFC.

2. अपघटन क्रिया के आधार पर अपशिष्ट के प्रकार 

  1. जैव-निम्नीकरण अपशिष्ट - वे अपशिष्ट है जिनका जैविक कारकों (सूक्ष्मजीवो) से अपघटन होता है। उदाहरण - (1) जैविक घरेलू कचरा (2) कृषि अपशिष्ट जैवचिकित्सकीय अपशिष्ट (रूई, पट्टी, रक्तमाॅस के टुकडे आदि। 
  2. अजैव-निम्नीकरण अपशिष्ट - इन अपशिष्ट का जैविक कारकों (सूक्ष्मजीवो) से अपघटन नहीं होता उदाहरण - (1) प्लास्टिक बाते ले (2) पाॅलिथीन (3) धातु के टुकडे (4) काॅंच, सीरिंज आदि ।

3. अपशिष्ट के अन्य प्रकार

  1. रेडियोधर्मी अपशिष्ट 
  2. e - अपशिष्ट - कम्प्यूटर, फ्लापी, सीडी

अपशिष्ट वृद्धि के कारण

  1. औद्योगीकरण 
  2. नगरीकरण 
  3. तीव्र जनसंख्या वृद्धि 
  4. तकनीकी विकास 

अपशिष्ट के स्रोत 

वातावरण में अपशिष्ट अनेक स्रोतों से मुक्त किए जाते है। प्रमुख स्त्रोत - 


1. घरेलू स्रोत - घर का कूडा करकट गन्दगी धूल मल और सीवेज का कूडा करकट बहुत सी बीमारिंयों को पैदा करता है क्योकि इसमें कई ऐसें कीटाणु उत्पन्न हो जातें हैं जो बीमारी का कारण बनते हैं। इसमें अनेक नौन बायोेडेग्रेबल आग लगने वाले और न आग लगने वाले पदार्थ होते है। इनको खुले मैदानों में फेंक देते हैं जों पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।। उदाहरण - फल व सब्जियों के छिलके, कागज, कपड़ा, धातु के टुकडे, प्लास्टिक, काॅंच आदि। 

2. नगर पालिका - नगरपालिका अपशिष्ट में नगर में पाया जाने वाला सारा अपशिष्ट आता है। उदाहरण -घरेलू अपशिष्ट, चिकित्सा अपशिष्ट, मृत जानवर, औद्योगिक अपशिष्ट 

3. औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट-  औद्योगिक अपशिष्ट में ठोस और तरल दोनों प्रकार का कूडा करकट होता है। उद्योगो का गन्दा जल तथा कूडा करकट उद्योगों में से बाहर फेंक दिया जाता है। उद्योगों का टूटा फूटा सामान एवं कूडा करकट कचरा ठोस अपशिष्ट है।


4. कृषि - फसलों जानवरों और पषुओं द्वारा जो कूडा करकट पैदा होता है वह कृषि सम्बन्धी अपषिष्ट है। जैसे चावल के छिलके गोबर यह कूडा करकट खुले में फैंकने से मनुष्यों और जानवरों को हानि पहुंचाता है। कृषि के पश्चात बचे हुए पदार्थ इसमें आते है। उदाहरण - डंठल, भूसा, सूखी पतियाॅं, गोबर आदि।


5. चिकित्सा क्षेत्र - अस्पताल के बाहर फेंकें गये कूडे में संक्रामक और असंक्रामक दोनो प्रकार की बीमारिया फैलती है इन कूडों में रोगों के सूक्ष्म कीटाणु होते हैं। उदाहरण - प्लास्टर, पटिटयाॅं, सिरिंज, कांच, प्लास्टिक की बाते ले, रक्त, माॅंस के टुकड़े संक्रमित अंग व उतक आदि। 

अपशिष्ट से होने वाले नुकसान 

  1. मानव, पेड़-पौधों जन्तुओ व पर्यावरण को हानि पहुँचाना। 
  2. प्राकृतिक सौन्दर्य को हानि पहुॅंचाना। 
  3. संक्रामक रोग- जैसे हेपेटाइटिस बी, टिटनेस, एडस का फैलना। 

हानिकारक ग्रीन हाऊस गैस जैसे - मेथेन, कार्बन-डाइ-आक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन का निकलना। प्लास्टिक के लम्बे समय तक उपयोग से रूधिर मे थेलेटस की मात्रा बढ़ जाती है। इससे माॅं के शरीर मे षिषु का विकास रूक जाता है और प्रजनन अंग प्रभावित होते है। 


प्लास्टिक बनाने में प्रयुक्त रसायन बिस्फेनाॅल शरीर उपापचय को बिगाड़कर मधुमेह व लिवर रोगों को जन्म देता है। प्लास्टिक की थैलियां कई बार जानवरों द्वारा खा लेने पर उनकी आंतों में फंस जाने से उनकी मौत हो जाती है। 

अपशिष्ट प्रबन्धन के तरीके (उपाय) 

(1) भूमिभराव- इसमें अनुपयोगी जगह जैसे खानों, आबादी से दूर जगह का चयन किया जाता है। आधुनिक भूमि भराव में गडढे को अपशिष्ट व मिट्टी से भरकर ढ़क देते है व भूमिभराव गैस से विद्युत उत्पादन किया जाता है। 


(2) भस्मीकरण - इसमें अपशिष्ट को बड़ी भट्टी में जलाकर नष्ट किया जाता है। चिकित्सा अपशिष्ट निवारण की प्रमुख विधि जापान जैसे देशों में अधिक उपयोगी  क्यों कि इसमें कम भूमि की जरूरत होती  है। तापीय, गैसीय प्रदूषकों के उत्सर्जन के कारण यह विवादास्पद विधि है। 

ठोस अपशिष्ट -सब्जी एवं फलों के छिलके, टूटे-फूटे बर्तन, काँच, प्लास्टिक एवं लोहे के अनुपयोगी सामान, घर एवं कारखानों से निकली राख, खेत-खालिहान से निकलने वाले विभिन्न फसलों के डंठल एवं भूसी आदि ठोस अपशिष्ट के उदाहरण हैं। ठोस अपशिष्ट दो प्रकार के होते हैं। एक वे जो सड़-गल जाते हैं जैसे-फलों एवं सब्जियों के छिलके, खराब भोजन, मनुष्य एवं जन्तुओं के मल। इस तरह के कचरे को जैविक कचरा कहते हैं। दूसरे प्रकार के अपशिष्ट वे पदार्थ हैं जो स्वयं नष्ट नहीं होते और पर्यावरण में किसी न किसी रूप में बने रहते हैं। जैसे-कारखानों से निकला रासायनिक कचरा, पाॅलीथीन, प्लास्टिक, धातु के टुकड़े आदि। सड़ने-गलने वाले तथा न गलने वाले कचरे को गीले एवं सूखे कचरे के रूप में भी बाँटा जा सकता है। साग-सब्जियों एवं फलों का छिलका, जीवों का मल-मूत्र गीले कचरे के कुछ सामान्य उदाहरण है। काँच, सिरैमिक प्लास्टिक एवं धातु के टुकड़े, पाॅलीथीन आदि सूखे कचरे के उदाहरण हैं।

द्रव अपशिष्ट-नालियों और सीवर का गंदा पानी और उर्वरक, चमड़ा शोधन, विद्युत उत्पादन केन्द्रों तथा उद्योगों से निकलने वाला गंदा और विषैला जल द्रव अपशिष्ट के उदाहरण हैं। 


गैसीय अपशिष्ट- लकड़ी एवं कोयले के जलने से निकलने वाला धुँआ, कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला धुँआ, परिवहन के साधनों से निकलने वाला धुँआ, कूड़ा-करकट एवं मरे हुए जीवों के सड़ने से निकली गैसों की दुर्गन्ध आदि गैसीय अपशिष्ट है। इसी प्रकार चूल्हे, अँगीठी, सिगरेट, बीड़ी आदि से भी धुँआ निकलता है। धुँए में काॅर्बन के आॅक्साइड के अतिरिक्त कुछ हानिकारक गैसें व ठोस कणीय पदार्थ पाए जाते हैं। यह धुँआ गैसीय अपशिष्ट का मुख्य उदाहरण है। 


अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत-अपशिष्ट पदार्थों के स्रोतों को निम्नलिखित वर्गों में बाँट सकते हैं-

घर एवं आॅफिस से निकलने वाला कचरा।

कृषि, चिकित्सा एवं औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाला कचरा। 

प्राकृतिक घटनाओं एवं युद्ध से निकलने वाला कचरा। 

घर एवं आफिस से निकलने वाले कचरे के अन्तर्गत रसोई घर का कचरा जैसे-फल एवं सब्जियों के छिलके, खराब हुआ भोजन, घरेलू कार्यों जैसे नहाने, कपड़ा धोने से निकलने वाला गंदा जल, शौंचालय का मल-मूत्र, पालतू पशुओं का मल-मूत्र, पाॅलीथीन, काँच एवं प्लास्टिक के टूटे सामान, पुराने समाचार पत्र एवं मैग्जीन, पुरानी फाइलें, खराब दवाएं, बेकार हो चुके उपकरण, फर्नीचर, वाहन आदि आते हैं। इसी तरह का कचरा कार्यालयों से भी निकलता है।

ई-कचरा-घर और आफिस से ई-कचरा अर्थात इलेक्ट्रनिक कचरा भी निकलता है जिसके अन्तर्गत खराब कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, सी0डी0, बैटरी व अन्य इलेक्ट्रनिक उपकरण जैसे- टी0वी, फ्रिज, वाॅशिंग मशीन, ए0सी0 आदि आते हैं।


औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले कचरे के अन्तर्गत सभी तरह के फैक्टरियों एवं मिल जैसे- स्लाटर हाऊस (कसाई घर), शराब की भट्टी, टेक्सटाइल, पेपर स्टील मिल्स से निकलने वाला ठोस एवं तरल कचरा आता है। थर्मल पाॅवर प्लान्ट, न्यूक्लियर प्लान्ट से निकलने वाली राख, धुँआ, गर्म पानी और रेडियोध्ार्मी पदार्थ सभी औद्योगिक कचरे के रूप हैं। पुरानी इमारतों और भवनों के ढ़हने (गिरने) से व इमारतों के निर्माण में निकली सामग्री जैसे-ईंट, पत्थर, सीमेंट, बालू आदि भी औद्योगिक कचरा हैं। धातुओं के निष्कर्षण में भी ठोस व तरल कचरा निकलता है।  

कृषि क्षेत्र से कुछ जैविक और अजैविक अपशिष्ट जैसे-सूखी पत्तियाँ, डालियाँ, भूसी, उर्वरक व कीटनाशक निकलते हैं। यातायात के समस्त साधन गैसीय अपशिष्ट के मुख्य स्रोत हैं। वाहनों से निकलने वाला धुँआ गैसीय अपशिष्ट हैं जो वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। 

चिकित्सीय अपशिष्ट जो कि अस्पतालों और दवाखानों से निकलता है जैसे-पट्टी, बैण्डेड, खराब दवाएँ, उपचार में प्रयुक्त रूई, सीरिंज आदि बहुत हानिकारक होता है। अपशिष्ट के रूप में एकत्र हुआ यह कचरा अनेक तरह के संक्रमण का कारण होता है।

प्राकृतिक घटनाएं जैसे-बाढ़, तूफान, भूकम्प, ज्वालामुखी, चक्रवात आदि के बाद भी अपशिष्ट के रूप में मलवा, लावा, राख आदि निकलता है जो वातावरण में एकत्रित होता है।

अपशिष्ट इकठ्ठे होते रहें तो पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होंगे। ये मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। अपशिष्ट संग्रह के दुष्प्रभावों के कई उदाहरण हैं, आइए जानें-

दिसम्बर 1984 में भोपाल की यूनियन कार्बाइड पेस्टीसाइड फैक्ट्री से मेथिल आइसो सायनाइट गैस का रिसाव हुआ। इस गैस ने शहर के लाखों लोगों को प्रभावित किया तथा हजारों पीड़ितों की मृत्यु हो गई।  अन्य लोग जीवन काल के लिए अनेक बीमारियों जैसे-कैंसर, साँस फूलना, सिर दर्द, अंगों का सुन्न होना से ग्रसित हो गए। इस घटना कोे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद भी फैक्ट्री से कचरे के रूप में घातक रासायन निकले जिसने आस-पास के क्षेत्रों की मिट्टी और जल को प्रभावित किया। आज भी इन अपशिष्टों का दुष्प्रभाव वहां की आने वाली पीढ़ियों में देखा जाता है।

फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों जैसे-डी0डी0टी0 का प्रयोग किया जाता है। इसके इस्तेमाल से फसलों का उत्पादन उन्नत तो हुआ है लेकिन यह रसायन कीटों के साथ-साथ मानव व अन्य जन्तुओं के लिए अत्यन्त हानिकारक है। यह कीटनाशक लम्बे समय तक मिट्टी में उपस्थित रहता है और नष्ट नहीं होता है। इस कारण कई देशों ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।

•  एस्बेस्टाॅस एक रेशेदार सिलिकेट रसायन होता है। एस्बेस्टाॅस चादर का प्रयोग छतों और दरवाजों के निर्माण के लिए किया जाता है। अपशिष्ट के रूप में फेंका गया यह रेशेदार पदार्थ हमारे शरीर के अन्दर पहुँच कर फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है। यह एस्बेस्टाॅसिस नामक बीमारी का कारण होता है जिसमें श्वसन क्रिया प्रभावित होती है।

 • पारा एक भारी धातु है जो सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में रहता है। यह आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है। वातावरण में घुलने के बाद पारा लम्बे समय तक वहां बना रहता है। यह वायु, जल और भूमि के माध्यम से जीव-जन्तुओं और मनुष्यों के शरीर में पहुँच कर प्राणघातक हो जाता है। यह जीवों के तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र, फेफड़ों और गुर्दों को नुकसान पहुँचाता है। सन 1950 में जापान की एक रासायनिक फैक्ट्री सिस्को ने मिनामाता खाड़ी में पारे (मरकरी) को अपशिष्ट के रूप में फेंक दिया। खाड़ी में पाए जाने वाली मछलियों को खाने से वहां के लोग तंत्रिका तंत्र से संबंधित एक रोग से ग्रसित हो गए जिसे मिनामाता रोग कहा जाता है। 

अपशिष्ट का निस्तारण

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, बदलती जीवनशैली तथा ‘प्रयोग करो और फेंको’ संस्कृति की आदतों के कारण अपशिष्ट दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। गाँव से लेकर नगरों तक अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा से प्रदूषण व गंदगी जैसी समस्या हो गयी है। वर्तमान समय में गाँवों/शहरों के निकलने वाले कूडे़-कचरे का सही ढंग से निपटान न करने से समस्या बढ़ती जा रही है। खुले स्थानों में कचरे का ढे़र लगाने से आस-पास के क्षेत्र  प्रदूषित होते हैं। पर्यावरण में बढ़ता यह प्रदूषण मानव तथा अन्य जीवधारियों के लिए सबसे बढ़ा खतरा है। अतः कचरे का सही तरीके से प्रबन्धन तथा उसका निस्तारण करना स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है। कचरे के प्रबन्धन हेतु 4त् सुझाए गए हैं जिनका हमें अनुसरण करना चाहिए। 

गैसीय अपशिष्ट के क्या स्रोत है? - gaiseey apashisht ke kya srot hai?


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R1. मना कीजिए- पाॅलीथीन एवं प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का उपयोग न करें तथा दूसरों को भी इसका भी उपयोग करने से रोकें। 

R2. उपयोग कम- विभिन्न वस्तुओं का उपयोग अपनी आवश्यकतानुसार करें, जिससे अपशिष्ट कम निकलें 

R3. पुनः उपयोग-कुछ कचरा ऐसा होता है जिसका पुनः उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार चीजों को फेंकने के बजाय उन्हें दोबारा इस्तेमाल करने से कचरे के निपटान में मदद हो सकती है। उदाहरण के लिए हम ऐसे कागज को जिसके एक तरफ लिखा या छपा हो, पलट कर दूसरी तरफ रफ कार्य के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। बाद में उस कागज का थैला बनाकर भी उसे उपयोग में लाया जा सकता है। इसी तरह ऐसी पेन का इस्तेमाल करें जिसमें रिफिल या स्याही डाली जा सके। 

R4. पुनः चक्रण-बेकार एवं अनुपयोगी सामानों का रूप बदल कर उन्हें पुनः उपयोग में लाना पुनः चक्रण कहलाता है। हम अपने घरों में खराब हुए उपकरणों, वाहनों, अखबार, प्लास्टिक आदि को कबाड़ी को पुनःचक्रण के लिए दे सकते हैं। 13

इस तरह 4R को अपनाकर बेकार एवं अनुपयोगी वस्तुओं (अपशिष्ट) की मात्रा को कम करना एवं उनको अपनी आवश्यकता के अनुरूप पुनः उपयोगी बनाने की प्रक्रिया को निस्तारण कहते हैं।

जैसा कि हम जानते हैं कि अपशिष्ट पदार्थ मुख्यतः ठोस, द्रव एवं गैसीय अवस्थाओं में पाए जाते हैं। अतः इनके निस्तारण की क्रिया भी भिन्न-भिन्न होती है। यह निम्न प्रकार से की जा सकती है-

ठोस अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण-

(क) जलाकर-अस्पतालों से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट संक्रामक होते हैं। इसलिए इसे विशेष प्रकार की 

भट्ठियों में जलाना चाहिए। किन्तु अन्य ठोस अपशिष्ट जैसे-पाॅलीथीन, फसलों की डंठल,

प्लास्टिक आदि को खुले स्थान में जलाना उचित नहीं है क्योंकि इससे निकलने वाला धुँआ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है और वायुमण्डल को भी प्रदूषित करता है। 

(ख) भूमि भरण-ठोस अपशिष्ट के निस्तारण की यह सबसे पुरानी एवं उपयोगी विधि है। इसमें बस्ती से दूर बंजर या अनुपयोगी भूमि में अपशिष्ट को डालकर पतली तहों में फेंक दिया जाता है तथा मिट्टी से दबा दिया जाता है। आजकल इन कूड़े-कचरों का प्रयोग गड्ढों को भरने में भी किया जाता है। 

यह विधि सस्ती एवं उपयोगी है किन्तु सही ढंग से अपशिष्ट का निस्तारण नहीं करने से दुर्गन्ध फैलती है जिससे हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

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(ग) कम्पोस्टिंग-जैविक कचरा जैसे-फलों एवं सब्जियों के छिलके, जानवरों के मल-मूत्र, सूखी पत्तियाँ एवं डालियाँ आदि को गड्ढे में दबाकर मिट्टी से ढक दिया जाता है। ये अपशिष्ट दो-तीन माह में गलकर जैविक खाद में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया को कम्पोस्टिंग कहते हैं। इस तरह से बनी खाद का उपयोग बगीचे एवं खेतों में कर सकते हैं। कम्पोस्टिंग, जैविक कचरे का पुनः चक्रण करने का सबसे अच्छा तरीका है। इससे हमें दो फायदे होते हैं-पहला हमें जैविक खाद प्राप्त होती है तथा दूसरा कचरे का निपटान भी हो जाता है। 



अजैविक ठोस कचरा जैसे-प्लास्टिक, काँच एवं धातुओं के टूटे सामान तथा खराब इलेक्ट्रिानिक उपकरणों का निपटान कबाड़ी को पुनः चक्रण के लिए दे कर किया जाता है।

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आपने देखा होगा सार्वजनिक स्थानों जैसे- पार्क, स्टेशन, बाजार पर्यटन स्थल आदि में दो रंग के कूड़ेदान (हरा और नीला) रखे जाते है। जैविक और अजैविक कचरे का निस्तारण अलग-अलग करने के लिए यह व्यवस्था की जाती है। हरे कूड़ेदान में जैविक कचरा (गलने वाला/गीला कचरा) तथा नीले कूड़ेदान में अजैविक कचरा (न गलने वाला/सूखा कचरा) डाला जाता है। आप भी अपने घर और विद्यालय मेें दो कूड़ेदान रखकर गलने तथा न गलने वाले कचरे का अलग-अलग निस्तारण कर उपरोक्त तरीके से पुनःचक्रित कर सकते हैं। अस्पतालों से निकलने वाला चिकित्सीय अपशिष्ट लाल रंग के कूड़ेदान में एकत्रित किया जाता है। 

द्रव अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण-द्रव अपशिष्ट को उपचारित करने के पश्चात ही जल स्रोतों में मिलाना चाहिए अन्यथा जल संक्रमित हो जाता है तथा पीने व अन्य कार्यों के योग्य नहीं रहता है। शहरी इलाके में सीवेज सिस्टम से गंदे पानी का निकास होता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में खुली नालियों से पानी का निकास होता है। शहरों में सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लान्ट (एस0टी0पी0) होता है, जहाँ शहर के गंदे जल को उपचारित किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट जल के निकास स्थान पर सोकपिट बनाकर जल को उपचारित किया जाता है और उसे पुनः उपयोगी बनाया जाता है। 

आओ जानें गंदे पानी के निस्तारण के लिए कैसे सोकपिट तैयार किया जाता है ? 

घर से कुछ दूर एक गहरा गड्ढा खोदें। उसकी सतह में ईंट, पत्थर के टुकड़े डाल दें। खपरैल की टूटन डालकर, बालू की परत बिछा दें। गड्ढे को ऊपर से ढँक दें। इस प्रकार आपका सोकपिट तैयार हो जायेगा। ऊपर से कभी-कभी चूना छिड़कें। नाली द्वारा पानी बहने के स्थान को सोकपिट से जोड़ें। 

गैसीय अपशिष्ट का निस्तारण-

ईंट भट्ठों/उद्योगों की चिमनियों को ऊँचा करके तथा उनमें  धूम्र अवक्षेपक लगाकर गैसीय अपशिष्ट का उचित निस्तारण किया जाता है। इसी तरह बायो गैस का उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में करके तथा लकड़ी, कोयला आदि से भोजन पकाने के स्थान पर गैस चूल्हे (एल0पी0जी0) का प्रयोग करके भी गैसीय अपशिष्ट की मात्रा को कम किया जा सकता है। 

अपशिष्ट निस्तारण हेतु सरकारी प्रयास

सामुदायिक स्वच्छता बनाए रखने एवं अपशिष्ट पदार्थों के उचित निस्तारण के लिए विभिन्न इकाइयों द्वारा विविध प्रकार के कार्यक्रम और अभियान चलाए जा रहे हैं। हमें इनके बारे में जानकारी रखनी चाहिए तथा इन योजनाओं का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। 



  इकाई         सार्वजनिक स्वच्छता एवं अपशिष्टों के निस्तारण हेतु चलाए जा रहे कार्यक्रम

ग्राम पंचायत    जल निकास हेतु नालियों का निर्माण और उनकी नियमित सफाई। 

                सार्वजनिक कूड़ा घरों, घूर गड्ढों का निर्माण।

                कुओं व तालाबों की नियमित सफाई तथा उनमें ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव। 

                सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण। 

                पर्यावरणीय स्वच्छता के लिए जनजागरण अभियान चलाना। 

क्षेत्र पंचायत नालों/नालियों का निर्माण एवं रख-रखाव।

                 सार्वजनिक शौचालयों, कूडा घरों का निर्माण एवं उनका रख-रखाव। 

                  गोबर गैस/बायो गैस संयंत्र की स्थापना।

                धुआँरहित चूल्हों के उपयोग को बढ़ावा देना। 

                 जलाशयों की सफाई। 

                  सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण।

जिला पंचायत /     गोबर गैस, बायो गैस संयंत्र की स्थापना एवं उनका रख-रखाव।

नगर पालिका  कूड़ा घरों का निर्माण, उनका रख-रखाव तथा कचरे का नियमित निस्तारण। 

                  नालों, सीवर लाइन का निर्माण एवं उनकी सफाई। 

                  तालाबों, जलाशयों की सफाई। 

                  सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण एवं उनका रख-रखाव। 

पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों की पहचान करते हुए उनके निवारण के बारे में समुचित उपाय करना हम सभी का दायित्व है। हम सभी का मिला-जुला प्रयास पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। 

गैसीय अपशिष्ट के स्रोत क्या है?

(ग) गैसीय अपशिष्ट पदार्थ के स्रोत क्या हैं? यातायात के साधन, अंगीठी, सिगरेट, बीड़ी, लकड़ी, कोयला, मरे हुए जीव जंतु आदि गैसीय अपशिष्ट पदार्थ के स्रोत है।

गैसीय अपशिष्ट में कौन सी गैस शामिल है?

Detailed Solution. सही उत्तर हाइड्रोजन सल्फाइड है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रस ऑक्साइड (NO), और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) जैसे प्रदूषकों को सामूहिक रूप से अकार्बनिक गैसीय प्रदूषक कहा जाता है।

गैसीय अपशिष्ट क्या है इसका सुरक्षित निष्कासन किस प्रकार से किया जा सकता है?

इसके लिए एक गीला कपड़ा सिलेंडर के ऊपर रख दें। जितना सिलेंडर खाली हो गया होगा उस जगह से कपड़ा जल्दी सूख जाएगा और जहां से सिलेंडर भरा हुआ होगा वह हिस्सा जल्दी नहीं सूखेगा। इस तरह से हम गैस सिलेंडर कितना खाली हो गया है इसका पता बड़ी ही आसानी से इस छोटे से उपाय से कर सकते हैं।

अपशिष्ट पदार्थ कितने प्रकार के होते हैं?

नियमों के अनुसार, प्रदूषणकर्त्ता संपूर्ण अपशिष्ट को तीन प्रकारों यथा जैव निम्नीकरणीय, गैर-जैव निम्नीकरणीय एवं घरेलू खतरनाक अपशिष्टों के रूप में वर्गीकृत करके इन्हें अलग-अलग डिब्बों में रखकर स्थानीय निकाय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता को ही देंगे।