गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने क्या कहा था? - geeta mein bhagavaan shreekrshn ne kya kaha tha?

हाइलाइट्स

भगवान श्रीकृष्ण को कौरवों और पांडवों के भविष्य के बारे में पता था.
श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता का उपदेश दिया.

Gita Upadesha: महाभारत काल में पांडवों और कौरवों में राज्य संपत्ति को लेकर मतभेद था. पांचों पांडव युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव धर्म का पालन करते थे. कौरवों में ज्येष्ठ दुर्योधन दुराचारी और लालची था. पांडव और कौरव एक ही परिवार से थे, लेकिन दोनों की नियत में दिन-रात का अंतर था. पांडु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र अपने जेष्ठ पुत्र दुर्योधन को राजा बनाना चाहता था. दुर्योधन का मामा शकुनि कौरवों को पांडवों के खिलाफ भड़काता रहता था.

शांति दूत बनकर आए श्रीकृष्ण
पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण को कौरव और पांडवों के भविष्य के बारे में पता था. वे चाहते थे कि युद्ध ना हो इसलिए, श्रीकृष्ण स्वयं तीन बार शांति दूत बनकर आए और कौरव-पांडवों के बीच सुलह करानी चाही, किन्तु दुर्योधन नहीं माना. तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम पांडवों को आधा राज्य दे दो और दोनों शांति पूर्वक रहो, लेकिन दुर्योधन नहीं माना.

तब पांडवों ने कहा कि हमें राज्य की लालसा नहीं है. हमें केवल पांच गांव दिलवा दीजिए और पूरा राज्य चाहे दुर्योधन को दे दीजिए. लेकिन दुर्योधन ने साफ इंकार कर दिया और कहा कि पांच गांव तो क्या वह सुई की नोक जितनी जगह भी नहीं देगा.

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युद्ध का हुआ आगाज
दुर्योधन ने पांडवों से कहा कि अगर तुम्हें पांच गांव चाहिए तो कुरुक्षेत्र में आकर हम से युद्ध करना पड़ेगा. हमें पराजित करके राज्य हासिल करना होगा. तब दोनों पक्षों में युद्ध का आगाज हुआ. भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी बने थे. तब युद्ध भूमि में अर्जुन ने देखा कि उनके विपक्ष में उन्हीं का परिवार खड़ा है. उन्हीं के गुरु, भाई बंधु हैं, इसलिए वह बोले कि यह तो अधर्म है. मैं अपने ही परिवार के साथ राज्य के लिए कैसे लड़ सकता हूं. अर्जुन ने कहा कि हे माधव! मुझसे यह नहीं होगा. अपने ही परिवार के विरुद्ध मैं खड़ा नहीं हो सकता.

श्रीकृष्ण ने दिया उपदेश
तब श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि हे पार्थ! तुम्हें अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करना चाहिए और एक क्षत्रिय की भांति अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए. यही तुम्हारा धर्म है. श्रीकृष्ण ने अपना उपदेश गायन के माध्यम से दिया था, इसलिए इसे गीता कहा जाता है.

श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरियाणा के कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर 45 मिनट का गीता का उपदेश दिया था, जिसे गीतोपनिषद भी कहा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध भूमि में अर्जुन के टूटे हुए मनोबल को जोड़ने के लिए गीता का उपदेश स्वयं ही दिया, इसलिए इसे भगवद गीता भी कहा जाता है.

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Tags: Bhagwat Geeta, Dharma Aastha, Dharma Culture, Religious

FIRST PUBLISHED : November 03, 2022, 13:00 IST

- अनिरुद्ध जोशी शतायु  'जो यहां है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जाएगा, जो यहां नहीं है वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा'- महाभारत।>  

महाभारत पढ़ना और महाभारत नामक सीरियल देखना दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। पढ़ने से जो ज्ञान मिलता है वह देखने से नहीं। महाभारत में गीता ही नहीं बहुत कुछ है जिससे हम जीवन संबंधी ज्ञान हासिल कर सकते हैं। महाभारत में गीता के अलावा दर्शन, धर्म, नीति और ज्ञान संबंधी और भी बातें हैं जो भिन्न-भिन्न नाम से प्रचलित हैं। 

यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य ग्रंथ है। इसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं, जो इलियड और ओडिसी से सात गुना ज्यादा माना जाता है। महाभारत का एक छोटा-सा हिस्सा मात्र है गीता। महाभारत को महर्षि 28वें वेद व्यास कृष्णद्वैपायन ने भगवान गणेशजी की सहायता से लिखा था। महाभारत तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए।

विद्वानों का मानना है कि महाभारत में ‍वर्णित सूर्य और चंद्रग्रहण के अध्ययन से पता चलता है कि इसकी रचना 31वीं सदी ईसा पूर्व हुई थी। आमतौर पर इसका रचनाकाल 1400 ईसा पूर्व का माना जाता है। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ।

एक अध्ययन अनुसार राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। शल्य जो महाभारत में कौरवों की तरफ से लड़ा था उसे रामायण में वर्णित लव और कुश के बाद की 50वीं पीढ़ी का माना जाता है। इसी आधार पर कुछ विद्वान महाभारत का समय रामायण से 1000 वर्ष बाद का मानते हैं।

ताजा शोधानुसार ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। इसके कुछ माह बाद ही महाभारत की रचना हुई मानी जाती है।

महाभारत युग में युद्ध और उस काल की विषम परिस्थितियों में भी ज्ञान की गंगाएं बही थीं। महाभारत को पंचमवेद कहा गया है। महाभारत में वह सबकुछ है जो आप सोच सकते हैं और वह सब कुछ भी है तो कोई दूसरा सोच सकता है। आओ जानते हैं कि महाभारत में युद्ध और गीता के अलावा और क्या क्या है। यहां प्रस्तुत है कुछ चुने हुए ज्ञान दर्शन...

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भगवान श्री कृष्ण ने गीता में क्या कहा था?

भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि” अर्थात् कर्म ही पूजा है. कर्म ही भक्ति है, इसलिए कर्म को पूरे मन से करना चाहिए.

श्री कृष्ण ने गीता में क्या उपदेश दिया?

श्रीकृष्ण ने दिया उपदेश तब श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि हे पार्थ! तुम्हें अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करना चाहिए और एक क्षत्रिय की भांति अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए. यही तुम्हारा धर्म है. श्रीकृष्ण ने अपना उपदेश गायन के माध्यम से दिया था, इसलिए इसे गीता कहा जाता है.

कृष्ण भगवान ने क्या कहा था?

तब श्रीकृष्ण ने कहा- 'कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा। यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रुकेगा, न ही सत्ता के वृक्षों से रुकेगा। किंतु हरि नाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन के एक छोटे से पौधे से मनुष्य जीवन का पतन होना रुक जाएगा। श्रीमन नारायण, नारायण हरि हरि।

गीता में भगवान ने क्या कहा?

यहाँ भगवान ने कहा की , ज्ञान , भक्ति , कर्म और शरण्य चारो मैं ही हूँ । इसको ऐसे भी समझ सकते हैं , ज्ञान ब्रह्म का , भक्ति ईश्वर की , यज्ञ देवताओं का और नमस्कार माता पिता के लिए , पर वास्तव में यह चार नहीं है , चारों एक ही हैं । और जो चारों को एक समझता है उसे मैं मिलता हूँ ।