गौतम बुद्ध किसकी पूजा करते थे? - gautam buddh kisakee pooja karate the?

हर साल बैसाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा को बौद्ध अनुयायी विशेष पर्व के रूप में मनाते हैं। हिंदुओं में भगवान बुद्ध को विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है, साथ ही इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। आज 18 मई को बुद्ध पूर्णिमा है। इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं ध्यान यानी मेडिटेशन की एक ऐसी विधा के बारे में जिसकी खोज महात्मा बुद्ध ने की थी। इसे विपश्यना या विपस्सना के नाम से जाना जाता है।

हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म दोनों ही प्राचीन धर्म हैं और दोनों ही भारतभूमि से उपजे हैं। हिन्दू धर्म के वैष्णव संप्रदाय में गौतम बुद्ध को दसवाँ अवतार माना गया है, हालाँकि बौद्ध धर्म इस मत को स्वीकार नहीं करता।

बौद्धधर्म भारतीय विचारधारा के सर्वाधिक विकसित रूपों में से एक है और हिन्दुमत (सनातन धर्म) से साम्य रखता है। हिन्दुमत के दस लक्षणों यथा दया, क्षमा अपरिग्रह आदि बौद्धमत से मिलते-जुलते हैं। यदि हिन्दुमत में मूर्ति पूजा का प्रचलन है तो बौद्ध मन्दिर भी मूर्तियों से भरे पड़े हैं। प्रसिद्ध अंग्रेज यात्री डाॅ. डी.एल. स्नेलगोव ने अपनी पुस्तक ‘द बुद्धिस्ट हिमालय’ में लिखा है, ‘‘मैं सतलुज घाटी लाँघकर भारत आया था’’, उन दिनों कश्मीर से सतलुज तक का मार्ग एक ही था। यही वह समय था जब कश्मीर भारतीय तंत्र का केंद्र रहा है, अतः बौद्ध मतावलम्बियों द्वारा भारतीय तंत्र को अपनाया जाना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं।

ओल्डेनबर्ग का मानना है कि बुद्ध से ठीक पहले दार्शनिक चिन्तन निरंकुश सा हो गया था। सिद्धांतों पर होने वाला वाद-विवाद अराजकता की ओर लिए जा रहा था। बुद्ध के उपदेशों में ठोस तथ्यों की ओर लौटने का निररंतर प्रयास रहा है। उन्होंने वेदों, जानवर बलि और इश्वर को नकार दिया। भुरिदत जातक कथा में ईश्वर, वेदों और जानवर बलि की आलोचना मिलती है।

  1. दोनों ही धर्म भारतीय हैं।
  2. दोनों ही अतिप्राचीन धर्म हैं।
  3. दोनों धर्मों के ९०% से अधिक अनुयायी एशिया में रहते हैं।
  4. समान मूलभूत शब्दावली - कर्म, धर्म, बुद्ध[1], अवतार आदि
  5. समान प्रतीकवाद - मुद्रा, तिलक, शिखा, रुद्राक्ष, धर्मचक्र तथा स्वस्तिक आदि
  6. समान कर्मकाण्ड - मंत्र, योग, ध्यान
  7. समान ब्रह्माण्डविद्या - हिन्दू और बौद्ध दोनों धर्मों में नरक और स्वर्ग की संकल्पना है। मेरु (या सुमेरु) और जम्बूद्वीप तथा देव, असुर, नाग, प्रेत, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, ब्रह्मा आदि दोनों ही धर्मों के साहित्य में समान रूप से प्रयुक्त हुए हैं। दोनों में समय का मापक 'कल्प' है।
ईश्वर

गौतम बुद्ध ने ब्रह्म को कभी इश्वर नहीं माना। [2]

ब्रह्मा की आलोचना खुद्दुका निकाय के भुरिदत जातक कथा में कुछ इस तरह मिलती है:

"यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का "ईश्वर" है और सब प्राणियों का स्वामी हैं, तो उसने लोक में यह माया, झूठ, दोष और मद क्यों पैदा किये हैं? यदि वह ब्रह्मा सब लोगों का "ईश्वर" है और सब प्राणियों का स्वामी है, तो हे अरिट्ठ! वह स्वयं अधार्मिक है, क्योंकि उसने 'धर्म' के रहते अधर्म उत्पन्न किया।" [3]

और महाबोधि जातक में बुद्ध कुछ इस तरह कहते है:

"यदि ईश्वर ही सारे लोक की जिविका की व्यवस्था करता है, यदि उसी की इच्छा के अनुसार मनुष्य को ऐश्वर्या मिलता है! है, उस पर विपत्ति आती है, वह भला-बुरा करता हैं, यदि आदमी केवल ईश्वर की आज्ञा मानने' वाला है, तो ईश्वर ही दोषी ठहरता है।"[4]

आत्मा

बुद्ध ने आत्मा को भी नकार दिया है और कहा है कि एक जीव पांच स्कन्धो से मिल कर बना है अथवा आत्मा नाम की कोई चीज़ नहीं है। [5]

वेद

बुद्ध ने वेदों को भी साफ़ तौर से नकार दिया है। इसका उल्ल्लेख हमे तेविज्ज सुत्त और भुरिदत्त जातक कथा में मिलता है। बुद्ध, अरिट्ठ को सम्भोधित करते हुए कहते है :

"हे अरिट्ठ ! वेदाध्ययन धैयेवान् पुरुषों का दुर्भाग्य है और मूर्खो का सौमाग्य है। यह (वेदत्रय) मृगमरीचिका के संमान हैं। सत्यासत्य का विवेक न करने से मूर्ख इन्हें सत्य मान लेते हैं। ये मायावी (वेद) प्रज्ञावान को घोखा नहीं दे सकते ॥ मित्र-द्रोही और जीवनाशक (-भ्रूण-हत्यारे ?) को वेद नहीं बचा सकते। द्वेषी, अनार्यकर्मी आदमी को अग्नि-परिचर्या भी नहीं बचा सकती।" [6] [7] [8]

वर्ण

हिन्दू धर्म जहा चार चार वर्ण में भेद बताता है तो वही बुद्ध ने सभी वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) को समान माना। अस्सलायान सुत्त इस बात की पुष्टि करता है कि सभी वर्ण सामान है। [9] बुद्ध का वर्ण व्यवस्था के खिलाफ एक प्रसिद्ध वचन हमें वसल सुत्त में कुछ इस प्रकार मिलता है :

"कोई जन्म से नीच नहीं होता और न ही कोई जन्म से ब्राह्मण होता है। कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से ही कोई ब्राह्मण होता है।"[10]

कुछ हिन्दू बुद्ध (नीचे, मध्य में) को विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार के रूप में मानते हैं। यह लघुचित्र (मिनिएचर) जयपुर से प्राप्त है।

बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख पुराणों तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। नीचे उन कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है-

इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- युगीय धर्म की स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा। किसी किसी पुराण में यह कहा गया है कि उन्होंने दैत्यों को मोहित करने के लिए जन्म लिया था।

मोहनार्थं दानवानां बालरूपं पथि स्थितम् ।पुत्रं तं कल्पयामास मूढबुद्धिर्जिनः स्वयम् ॥ततः सम्मोहयामास जिनाद्यानसुरांशकान् ।भगवान् वाग्भिरुग्राभिरहिंसावाचिभिर्हरिः॥ (ब्रह्माण्ड पुराण १३)अनुवाद : दानवों को मोहित करने के लिए वे (बुद्ध ) मार्ग में बाल रूप में खड़े हो गये। जिन नामक मूर्ख दैत्य उनको अपनी सन्तान मान बैठा। इस प्रकार श्रीहरि (बुद्ध-अवतार रूप में) सुचारुरूप से अहिंसात्मक वाणी द्वारा जिन आदि असुरों को सम्मोहित कर लिया।

तथापि हिन्दू ग्रन्थों में जिन बुद्ध की चर्चा हुई है वे शाक्य मुनि (गौतम) से भिन्न हैं-

बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति (श्रीमद्भागवत)

इस भागवतोक्त श्लोकानुसार बुद्ध के पिता का नाम 'अजन' और उनका जन्म 'कीकट' (प्राचीन?) में होने की भविष्यवाणी की गयी है। जबकि बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन था और उनका जन्म लुम्बिनी वन में हुआ था जो वर्तमान समय में नेपाल में है।

स्वामी विवेकानन्द के विचार[संपादित करें]

जैसा कि आप पहले से ही जानते हैं, मैं बौद्ध नहीं हूँ। चीन, जापान, सीलोन उस महान शिक्षक के उपदेशों का पालन करते हैं, किन्तु भारत उसे पृथ्वी पर भगवान के अवतार के रूप में पूजता है। मैं वास्तव में बौद्ध धर्म का आलोचक हूँ, लेकिन मैं नहीं चाहूंगा कि आप केवल इस पर ध्यान केंद्रित करें। सामान्यतः मैं उस व्यक्ति की आलोचना करने से दूर रहूँगा जिसे मैं भगवान के अवतार के रूप में पूजता हूँ। लेकिन हम सोचते हैं कि बुद्ध को उनके शिष्यों ने गहराई से नहीं समझा था। हिंदू धर्म (हिंदू धर्म से मेरा तात्पर्य वैदिक धर्म से है) और जिसे हम आज बौद्ध धर्म कहते हैं, वे दोनों आपस में उससे भी अधिक निकट है जितनी निकतता यहूदी धर्म और ईसाई धर्म के बीच है। ईसा मसीह एक यहूदी थे और शाक्य मुनि हिंदू थे। यहूदियों ने यीशु मसीह को अस्वीकार कर दिया, इसके अलावा, उन्होंने उन्हे क्रूस पर चढ़ाया, जबकि हिंदुओं ने शाक्य मुनि को भगवान के रूप में स्वीकार किया और उन्हें भगवान के रूप में पूजा। लेकिन हम हिंदू, यह दिखाना चाहेंगे कि आधुनिक बौद्ध धर्म के विपरीत, भगवान बुद्ध का शिक्षण, यह है कि शाक्य मुनि ने मौलिक रूप से कुछ भी नया नहीं किया। मसीह की तरह, वह पूरक था लेकिन नष्ट नहीं हुआ। लेकिन यहूदी लोग मसीह को नहीं समझते थे, तो बुद्ध के अनुयायी उनके शिक्षण में जो मुख्य बात थी, उसको महसूस नहीं कर पा रहे थे। जिस तरह यहूदी यह नहीं समझ पाए कि ईसा मसीह पुराने नियम को पूरा करने के लिए उत्पन्न हुए हैं, इसी प्रकार बौद्ध के अनुयायियों ने हिंदू धर्म के विकास में बुद्ध द्वारा उठाए गए अंतिम कदम को नहीं समझा। और मैं फिर दोहराता हूं - शाक्य मुनि विनाश करने नहीं आए थे, बल्कि पूरा करने के लिए आए थे - यह तार्किक निष्कर्ष था, हिंदू समाज का तार्किक विकास ...हिन्दू धर्म बौद्ध धर्म के बिना नहीं रह सकता, ठीक वैसे ही जैसे हिन्दू धर्म के बिना बौद्ध धर्म। हमें यह समझने की जरूरत है कि इस विभाजन ने हमें क्या दिखाया। बौद्ध धर्म ब्राह्मण धर्म के ज्ञान और दर्शन के बिना खड़ा नहीं हो सकता, जैसे ब्राह्मण धर्म बुद्ध के महान हृदय के बिना नहीं खड़ा नहीं हो सकता। बौद्धों और वैदिक धर्म के अनुयायियों के बीच यह विभाजन भारत के पतन का कारण है। यही कारण है कि भारत में तीस करोड़ भिखारियों का निवास है, और पिछले हजार वर्षों से भारत को विजेताओं द्वारा गुलाम बनाये जाने का कारण भी यही है। आइए हम ब्राह्मणों की अद्भुत बुद्धि को हृदय, महान आत्मा और महान शिक्षक की जबरदस्त मानव-प्रेम शक्ति के साथ जोड़ दें।[1]

सर्वपल्ली राधकृष्णन के विचार[संपादित करें]

बुद्ध का लक्ष्य उपनिषदों के आदर्शवाद को उसके सर्वोत्तम रूप में आत्मसात करना था और इसे मानवता की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनुकूल बनाना था। ऐतिहासिक रूप से, बौद्ध धर्म का अर्थ था, लोगों के बीच उपनिषदों की शिक्षाओं का प्रसार। और इसमें उन्होंने जो हासिल किया वह आज भी कायम है। ऐसा लोकतांत्रिक आरोहण हिंदू इतिहास की एक विशिष्ट विशेषता है। जब महान ऋषियों के विचार-रूपी खजाने पर गिने-चुने लोगों का अधिकार था तब महान वैष्णव उपदेशक रामानुज, ने पारायणों के सामने भी रहस्यमय ग्रंथों का पाठ किया था। हम कह सकते हैं कि बौद्ध धर्म, ब्राह्मण धर्म की अपने मूल सिद्धान्तों में वापसी है।

गौतम बुद्ध कौन से भगवान को मानते थे?

ऐसा माना जाता है की बुद्ध किसी भी भगवान को नहीं मानते थे. उनके लिए सभी धर्म के भगवान समान थे. इसलिए वह किसी भी एक भगवान में नहीं मानते थे.

गौतम बुद्ध किसका ध्यान करते थे?

विपश्‍यना (Vipassana) एक प्राचीन ध्‍यान (Meditation) विधि है, जिसका अर्थ होता है देखकर लौटना. इसे आत्‍म निरीक्षण और आत्‍म शुद्धि की सबसे बेहतरीन पद्धति माना गया है. हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने इसी ध्‍यान विधि के जरिए बुद्धत्‍व हासिल किया था.

बौद्ध धर्म किसकी पूजा करते हैं?

इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है. भगवान बुद्ध केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये आराध्य नहीं है बल्कि उत्तरी भारत में गौतम बुद्ध को हिंदुओं में भगवान श्री विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है. विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण माने जाते हैं.

क्या बौद्ध धर्म ईश्वर को मानता है?

इस सृष्टि रचयिता के कई नाम प्रचलित हैं, लेकिन तथागत बुद्ध ने ईश्वर को सृष्टिकर्त्ता के रुप में स्वीकार नहीं किया. बुद्ध ने कहा, "ईशवराश्रित धर्म कल्पनाश्रित है, इसलिये ऐसे धर्म का कोई उपयोग नहीं है. बुद्ध ने इस प्रश्न को ऐसे ही नहीं छोड़ दिया.