गद्य की प्रमुख विधाएं कौन कौन से हैं? - gady kee pramukh vidhaen kaun kaun se hain?

Q.77: गद्य-साहित्य की प्रमुख विधाओं को बताते हुए किन्हीं चार विधाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए। उदाहरण देकर उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर : गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएं- भाषा के प्रभावशाली प्रयोग की क्षमता अर्जित करने के लिए गद्य की प्रमुख विधाओं का ज्ञान अपेक्षित है । हिन्दी गद्य साहित्य मात्रा एवं वैविध्य की दष्टि से पर्याप्त समृद्ध है। हिन्दी साहित्य जगत के उत्कृष्ट साहित्यकारों की रचनाओं का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में भी उपलब्ध है। - अभिव्यक्ति कौशल की दृष्टि से निबन्ध के अतिरिक्त आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य की ये प्रमख विधाएं हैं-

1. उपन्यास, 2. कहानी, 3. नाटक,4. एकांकी, 5. जीवनी, 6. आत्मकथा,7 आलोचना, 8. संस्मरण,9. रेखाचित्र, 10. रिपोर्ताज, 11. यात्रा वृतान्त, 12. गद्य काव्य, 13. हास्य व्यंग्य, 14. पत्र ।

माध्यमिक कक्षाओं में सामान्यतया कहानी, एकांकी, जीवनी, आत्मकथा, रेखाचित्र संस्मरण एवं यात्रा वृतान्त पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं।

हिन्दी गद्य-साहित्य में अनेक विधाओं में साहित्य लिखा गया है । जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र तथा यात्रा वृतान्त विधाओं के स्वरूप तथा उपलब्ध साहित्य का परिचय इस प्रकार है -

जीवनी- व्यक्ति के जीवन की मार्मिक एवं सारगर्भित घटनाओं के चित्रण को जीवनी की संज्ञा दी जाती है । जीवनी में इतिहास के घटनाक्रम एवं उपन्यास की वर्णन रोचकता को वरीयता दी जाती है। चरित्र नायक या नायिका के प्रति लेखक की संवेदना एवं प्रतिभा दोनों महत्त्वपूर्ण भमिका का निर्वाह करती हैं। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विवरण प्रस्तुत करते समय यह सावधानी अपेक्षित है कि समस्त सामग्री प्रमाणिक हो। जीवनी लेखक का यह भी पुनीत कर्तव्य है कि वह परिश्रमपूर्वक तथ्य प्राप्त करके उन्हें प्रभावशाली एवं मनोहर शैली में प्रस्तत करे। जीवनी लेखन के लिए यह भी अपेक्षित हैं कि लेखक को अपने चरित्र नायक के जीवनपथ की सम्यक जानकारी हो।

जीवनी साहित्य के अध्ययन द्वारा विद्यार्थियों के भाषा अधिगम के उद्देश्य में उन्हें विशेष सफलता मिलती है । महापुरुषों के जीवन-चरित्र का प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त करके वे अपने व्यक्तित्व का भी सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। जीवनी-पठन में उच्चारण, बलाघात, वर्तनी, शब्द-रूपान्तर, उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि, समास, शब्द-भण्डार, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, पद बोध तथा वाक्य-संरचना आदि भाषिक तत्त्वों का ज्ञान भी विद्यार्थी स्वाभाविक विधि द्वारा अर्जित करते हैं । व्यक्तित्व का शारीरिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास करने की दृष्टि से जीवनी का अध्ययन अत्यंत उपयोगी है।

(2) आत्मकथा- व्यक्ति की स्वयं की जीवनी को आत्मकथा कहा जाता है। ऐसी रचनाएं उत्तम पुरुष एकवचन में लिखी जाती हैं। आत्मकथा व्यक्ति के आत्म परीक्षण का श्रेष्ठ साधन है । आत्मकथा द्वारा व्यक्ति विगत घटनाओं के गुण-दोषों के आधार पर आत्म-निर्माण का यत्न भी कर सकता है । कभी सफल एवं सजग व्यक्ति लोक कल्याण की भावना से भी अपनी आत्मकथा लिखकर समाज को लाभान्वित करने का प्रयास कर सकता है । महान सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं साहित्यिक आंदोलनों के सम्पर्क में रहने वाले महापुरुषों द्वारा लिखित आत्मकथाएं ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण होती हैं।

आत्मकथा लेखक यदि निर्भीक हो तभी अपने दायित्व का निर्वाह कर सकता है। इस दृष्टि से पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' की अपनी खबर' नामक आत्मकथा हिन्दी साहित्य को सर्वोत्तम देन है। भगवान शरण उपाध्याय की आत्मकथा “मैंने देखा” रोचक इतिहास के सन्निकट है।

(3) संस्मरण जब स्मृति के आधार पर किसी घटना या व्यक्ति का चित्रण किया जाए तब उसे संस्मरण की संज्ञा दी जाती है। संस्मरण में पात्र के प्रति लेखक की अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएं अभिव्यक्त होती हैं। हिन्दी में यह साहित्यिक विधा अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव का परिणाम है। 'सरस्वती', 'विशाल भारती', 'सुधा' एवं 'माधुरी' आदि पत्रिकाओं में अनेक उल्लेखनीय संस्मरण प्रकाशित हुए । इलाचंद्र जोशी कृत 'मेरे पथिक जीवन की स्मृतिया' एवं वृंदावनलाल वर्मा द्वारा रचित 'कुछ संस्मरण' सराहनीय प्रयास हैं। हिन्दी के संस्मरण लेखक बनारसी दास चतुर्वेदी ने 'हमारे आराध्य' कृति के द्वारा संस्मरण लेखकों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। शिव पूजन सहाय की रचना वे दिन वे लोग' सेठ गोविन्द दास की रचना 'स्मृति कण' प्रकाशचन्द गुप्त द्वारा लिखित 'पुरानी स्मृतियाँ' एवं कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की कृति 'भूले हुए चेहरे', 'दीप जले', 'शंख बजे' भी हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं।

महादेवी वर्मा ने संस्मरणों में साहित्य के क्षेत्र में स्थान बना लिया है। उनकी दो कृतियाँ- अतीत के चलचित्र' तथा 'स्मृति की रेखाएं' संस्मरण और रेखाचित्र की मनोहर रचनाए है ।

रेखाचित्र - किसी व्यक्ति की आकृति, स्वभाव या अन्य विशेषताओं का शब्द चित्र प्रस्तुत किया जाए तब उसे रेखाचित्र की संज्ञा दी जाती है। स्थान अथवा वस्तु का सजीव चित्र भी रेखाचित्र के प्रकृत क्षेत्र की विभूति बनता है। जैसे कुछ सार्थक रेखाओं से एक सजाव। की मुष्टि करना कुशल चित्रकार की प्रतिभा का परिचायक होता है वैसे ही सार्थक शब्द। "

किसी व्यक्ति, घटना स्थान अथवा वस्तु को शब्द-चित्र द्वारा प्रस्तुत करना प्रतिभावान साहित्यकार का कर्म है।

प्राचीन साहित्य में व्यक्तियों, पशु-पक्षियों, स्थानों, दृश्यों आदि के अनेक अलंकृत वर्णन काव्य भाषण में उपलब्ध हैं परन्तु स्वतंत्र विधा के रूप में रेखाचित्र का आविर्भाव पश्चिमी साहित्य के प्रभाव की देन है । हिन्दी साहित्य जगत में महादेवी वर्मा एवं रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा विरचित 'लाल तारा', 'माटी की मूरतें', 'गेहूँ और गुलाब' तथा 'मील के पत्थर' ऐसे रेखाचित्र हैं जो भारतीय दर्शन, शिक्षा मनोविज्ञान, कला एवं संस्कृति का परिचय देने के साथ-साथ पाठक के मानवीय दृष्टिकोण को भी प्रभावित करने में समर्थ हैं।

गद्य की प्रमुख विधाएं कौन कौन सी हैं?

इसमें से पहला वर्ग प्रमुख विधाओं का है जिसमें नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी, निबंध, और आलोचना को रखा जा सकता है। दूसरा वर्ग गौण या प्रकीर्ण गद्य विधाओं का है। इसके अंतर्गत जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत, गद्य काव्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, भेंटवार्ता, पत्र साहित्य, आदि का उल्लेख किया जा सकता है।

विधा कितने प्रकार के होते हैं?

साहित्य की विधाएँ.
लघुकथा.
उपन्यास.
एकांकी.
प्रहसन (कामेडी).
निबन्ध.

हिंदी गद्य की सर्वाधिक प्रसिद्ध विधा कौन सी है?

हिन्दी गद्य की प्रमुख विधाएँ हैं-निबन्ध, नाटक, उपन्यास, कहानी तथा आलोचना।

गद्य कितने प्रकार के होते हैं?

ये भेद तो पदयोजना या शैली के अनुसार हुए । साहित्यदर्पण के अनुसार गद्यकाव्य दो प्रकार का होता है—(क) कथा और । (२) आख्यायिका । कथा वह है जिसमें सरस प्रसंग हो, सज्जनों और खलों के व्यवहार आदि का वर्णन हो और आरंभ में पद्यबद्ध नमस्कार हो ।