हिंदी भाषा के विकास के संबंध में संविधान का कौन सा अनुच्छेद है? - hindee bhaasha ke vikaas ke sambandh mein sanvidhaan ka kaun sa anuchchhed hai?

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा

  • 15 Jun 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायपालिका की भाषा संबंधी प्रावधान, अनुच्छेद- 345, अनुच्छेद- 348 

मेन्स के लिये:

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ (Haryana Official Language (Amendment) Act)- 2020 को चुनौती देने वाले याचिकाकर्त्ताओं को पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील करने को कहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • याचिका में ‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह अधिनियम हिंदी को राज्य की निचली अदालतों में प्रयोग की जाने वाली एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में लागू करता है।

अधिनियम के मुख्य प्रवधान:

  • ‘हरियाणा राजभाषा अधिनियम’ में आवश्यक परिवर्तन के लिये अधिनियम में एक नवीन उप-धारा 3(a) जोड़ी गई है। 
  • यह उप-धारा हरियाणा में, पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी सिविल, आपराधिक तथा राजस्व न्यायालयों, किराया न्यायाधिकरणों तथा राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य न्यायाधिकरणों में केवल हिंदी भाषा में कार्य करने का प्रावधान करती है।
  • अधिनियम की धारा-3 के अनुसार, हरियाणा राज्य के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी का उपयोग किया जाएगा केवल उन अपवादित कार्यों को छोड़कर, जिन्हें हरियाणा सरकार अधिसूचना के माध्यम से निर्दिष्ट करती है।

अनुच्छेद-345 तथा कार्यालयी भाषा:

  • संविधान का अनुच्छेद-345 किसी राज्य के विधानमंडल को उस राज्य में हिंदी या अन्य एक या अधिक भाषाओं को कार्यालयों में अपनाने का अधिकार देता है। 
  • हरियाणा सरकार द्वारा, ‘हरियाणा राजभाषा अधिनियम’ को अनुच्छेद- 345 में की गई व्यवस्था के तहत बनाया गया है। 

संशोधन का महत्त्व:

  • निचली अदालतों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण हरियाणा राज्य में वादकारों को कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। लोगों को ‌शिकायतों या अन्य दस्तावेज़ों की समझ के लिये पूरी तरह से वकीलों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण गवाहों को भी परेशान होना पड़ता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश को अंग्रेजी भाषा की अच्छी समझ नहीं होती है।

संशोधन के विपक्ष में तर्क:

  • वकीलों का मानना है कि हिंदी को एकमात्र भाषा के रूप में लागू करने से वकीलों के दो स्पष्ट वर्ग बन जाएंगे। 
    • प्रथम वे जो हिंदी भाषा में बहुत सहज हैं। 
    • दूसरे वे जो हिंदी में सहज महसूस नहीं करते हैं। 
  • याचिककर्त्ताओं का मानना है कि किसी भी मामले में बहस करने के लिये भाषा प्रवणता का किसी भाषा के सामान्य उपयोग की तुलना में बहुत अधिक महत्त्व है।
  • यह संशोधन कानून समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) तथा किसी भी पेशे को चुनने की स्वतंत्रता, गरिमा तथा आजीविका के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • हाल ही में किये संशोधन के पीछे सरकार का यह तर्क था कि राज्य की निचली अदालतों में कानून की प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश व्यक्ति हिंदी में दक्ष हैं जबकि वास्तविकता इससे काफी अलग है।
  • हरियाणा में अनेक औद्योगिक केंद्र है तथा औद्योगिक विवाद के मामलों में हिंदी में बहस करना अनेक वकीलों के लिये आसान नहीं होगा। इससे वकीलों के व्यवसाय पर संकट मंडरा सकता है।

निष्कर्ष:

  • हरियाणा मुख्य रूप से हिंदी भाषी राज्य है, जिसकी लगभग 100% आबादी हिंदी बोलती या समझती है। यह समझना उचित होगा कि न्यायपालिका का उद्देश्य लोगों क कल्याण है, न कि संस्थाओं के स्वार्थों की पूर्ति करना। 

न्यायपालिका की भाषा संबंधी प्रावधान:

  • संविधान में न्यायपालिका की भाषा के संबंध में अनुच्छेद- 348 में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं:
    1. जब तक संसद द्वारा अन्य व्यवस्था को न अपनाया जाए, उच्चतम व प्रत्येक उच्च न्यायालय की कार्यवाही, केवल अंग्रेजी भाषा में होंगी। 
    2. हालाँकि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से हिंदी या अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। 
    • परंतु न्यायालय के निर्णय,आज्ञा अथवा आदेश केवल अंग्रेजी में ही होंगे जब तक संसद अन्यथा व्यवस्था न दे।
  • राजभाषा अधिनियम- 1963 राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए निर्णयों, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है, परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेजी अनुवाद भी संलग्न करना होगा।

स्रोत: द हिंदू

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भारतीय राजनीति

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची

  • 04 Aug 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, आठवीं अनुसूची, अनुच्छेद 343-351

मेन्स के लिये:

शास्त्रीय भाषाओं से संबंधित दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री द्वारा लोकसभा में आठवीं अनुसूची में भाषाओं को बढ़ाने से संबंधित सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों की जानकारी दी।

प्रमुख बिंदु

आठवीं अनुसूची:

  • आठवीं अनुसूची के बारे में:
    • इस अनुसूची में भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है। भारतीय संविधान के भाग XVII में अनुच्छेद 343 से 351 तक शामिल अनुच्छेद आधिकारिक भाषाओं से संबंधित हैं।
    • आठवीं अनुसूची से संबंधित संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं:
      • अनुच्छेद 344: अनुच्छेद 344(1) संविधान के प्रारंभ से पांँच वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग के गठन का प्रावधान करता है।
      • अनुच्छेद 351: यह हिंदी भाषा को विकसित करने के लिये इसके प्रसार का प्रावधान करता है ताकि यह भारत की मिश्रित संस्कृति के सभी तत्त्वों के लिये अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में कार्य कर सके।
    • हालांँकि यह ध्यान देने योग्य है कि किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिये कोई निश्चित मानदंड निर्धारित नहीं है।
  • आधिकारिक भाषाएँ:
    • संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं:
      • असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
    • इन भाषाओं में से 14 भाषाओं को संविधान के प्रारंभ में ही शामिल कर लिया गया था।
    • वर्ष 1967 में सिंधी भाषा को 21वें सविधान संशोधन अधिनियम द्वारा आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।
    • वर्ष 1992 में 71वें संशोधन अधिनियम द्वारा कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को शामिल किया गया।
    • वर्ष 2003 में 92वें सविधान संशोधन अधिनियम जो कि वर्ष 2004 से प्रभावी हुआ, द्वारा बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।

शास्त्रीय भाषाएँ:

  • परिचय:
    • वर्तमान में ऐसी छह भाषाएँ हैं जिन्हें भारत में 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा प्राप्त है:
      • तमिल (2004 में घोषित), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगू (2008), मलयालम (2013) और ओडिया (2014)।
      • सभी शास्त्रीय भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।
  • दिशा-निर्देश:
    • संस्कृति मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं के संबंध में दिशा-निर्देश प्रदान करता है जो नीचे दिये गए हैं:
      • इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो।
      • प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।
      • साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो जो किसी अन्य भाषिक समुदाय द्वारा न ली गई हो।
      • शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा व साहित्य से भिन्न हैं, इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।
  • प्रचार का लाभ: मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित करने से प्राप्त होने वाले लाभ इस प्रकार हैं-
    • भारतीय शास्त्रीय भाषाओं में प्रख्यात विद्वानों के लिये दो प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण।
    • शास्त्रीय भाषाओं में अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया गया है।
    • मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध किया है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के पेशेवर अध्यक्षों के कुछ पदों की घोषणा करे।

स्रोत: पी.आई.बी.

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हिंदी भाषा के विकास के संबंध में संविधान का कौन सा अनुच्छेद है? - hindee bhaasha ke vikaas ke sambandh mein sanvidhaan ka kaun sa anuchchhed hai?

हिंदी भाषा कौन से अनुच्छेद में है?

अनुच्छेद 343. संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।

भारतीय संविधान में भाषा संबंधी कितने अनुच्छेद हैं?

संविधान सभा ने हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इस दिन को अब हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान लागू हुआ। तदनुसार उसमें किए गए भाषायी प्रावधान (अनुच्छेद 120, 210 तथा 343 से 351) लागू हुए।