विधा का अर्थ है, किस्म, वर्ग या श्रेणी, अर्थात विविध प्रकार की रचनाओं को उनके गुण, धर्मों के आधार पर अलग करना। हिन्दी साहित्य में विधा शब्द का प्रयोग, एक वर्गकारक के रूप में किया जाता है। विधाएँ अस्पष्ट श्रेणियाँ हैं, इनकी कोई निश्चित सीमा रेखा नहीं होती; इनकी पहचान समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर निर्मित की जाती है। Show
विधाएँ कई तरह की होती हैं ; उदाहरण के लिए- साहित्य की विधाएँ, गद्य की विधाएं, कविता की विधाएँ, काव्य आदि। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है। विधाएँ अस्पष्ट श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकी पहचान निर्मित हो जाती है। हिन्दी साहित्य की विधाएँ (Hindi Sahitya ki vidhaye)विधाओं में सृजनात्मक तथा विचारात्मक साहित्य दीर्घकाल से निरंतर विद्वानों द्वारा लिखा जा रहा है। प्रमुख हिन्दी की साहित्यिक विधाएँ इस प्रकार हैं-
कुछ अन्य हिन्दी साहित्यिक विधाएँ:
ललित कला की विधाएँ:
कम्प्यूटर, चलचित्र एवं खेल की विधाएँ:
Hindi Gadya Sahitya Ki Vidhayeहिन्दी साहित्य की प्रमुख गद्य विधाएं निम्नलिखित हैं:
1. नाटकहिन्दी साहित्य की विधाओं में नाटक काव्य का एक रूप होता है, अर्थात जो रचना केवल श्रवण द्वारा ही नहीं, अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक कहते हैं। हिन्दी गद्य साहित्य का पहला नाटक ‘नहुष’ है जिसका रचनाकाल 1857 ई. है और इसके लेखक “गोपाल चन्द्र गिरधरदास” हैं। हिन्दी साहित्य की इस गद्य विधा की कुछ रचनाएं इस प्रकार हैं-
2. उपन्यासकाव्य और नाटक की अपेक्षा नवीनतम होते हुए भी उपन्यास आधुनिक काल की सर्वाधिक लोकप्रिय और सशक्त हिन्दी साहित्य की विधा है। इसका कारण यह है कि इसमें मनोरंजन का तत्त्व तो अधिक रहता ही है, साथ-साथ जीवन को इसकी बहमुखी छवि के साथ व्यक्त करने की शक्ति और अवकाश भी रहता है। हिन्दी गद्य विधा का प्रथम उपन्यास लाला श्री निवास दास के ‘परीक्षा गुरु‘ (1882) स्वीकार किया जाता है। इस हिन्दी साहित्य की विधा के कुछ उदाहरण हैं-
3. निबंधहिन्दी साहित्य में गद्य का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से माना जाता है और भारतेन्द्र या लेखकों को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई निबन्ध लेखन से। इस काल में प्रमुख निबंध लेखकों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र (दाँत, भौं, नारी) बाल कृष्ण भट्ट (कृषकों की दुरावस्था) तथा प्रेमघन का नाम लिया जा सकता है। इस हिन्दी साहित्य की विधा की कुछ रचनाएं निम्न हैं-
4. कहानीकहानी साहित्य की सबसे प्राचीन गद्य विधा है और समय-समय पर इसकी परिभाषा देने का प्रयत्न विद्वानों द्वारा किया जाता रहा है। इस विषय में प्रेमचंद का कथन है कि, कहानी वह रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उददेश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा विन्यास उसी एक भाव की पुष्टि करते हैं। वह एक गमला है जिसमें एक पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप से दृष्टिगोचर होता है। इस हिन्दी गद्य विधा की कुछ रचनाएं इस प्रकार हैं-
5. संस्मरणहिन्दी साहित्य की संस्मरण विधा को हम पूर्ण स्मृति भी कह सकते हैं। स्मृति का एक सिरा वर्तमान से जुड़ा होता है, तो दूसरा अतीत से; संस्मरण अतीत और वर्तमान का वह सेतु है, जो दोनों किनारे में संवाद स्थापित करता है। यह आधुनिक काल में नवविकसित, सर्वाधिक विवादों से घिरी साहित्य-विधा है। हिन्दी की यह विधा कभी तो जीवनी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और कभी निबन्ध के अन्तर्गत परिगणित की गई है। किन्तु उसकी विशाल परम्परा ने आज इस हिन्दी साहित्य रूप को स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान किया है। उदाहरण के लिए हिन्दी गद्य की इस विधा की कुछ कृतियाँ-
6. आत्मकथालेखक जब स्वयं अपने जीवन को लेखाकार अथवा पुस्तकाकार रूप में हमारे सामने रखता है, तब उसे आत्मकथा कहा जाता है। हिन्दी में आत्मकथा गद्य की एक नवीन विधा है। यह उपन्यास, कहानी, जीवनी की भाँति लोकप्रिय है। इसमें लेखक अपनी अन्तरंग जीवन-झाँकी चित्रित करता है। परंतु इस आत्मकथा में वह अपने विवेकानुसार अनावश्यक आवश्यक घटनाओं का चुनाव करता है। हिन्दी साहित्य की इस गद्य विधा की कुछ रचनाएं निम्नलिखित हैं-
7. जीवनीकिसी व्यक्ति के जीवन का चरित्र चित्रण करना अर्थात किसी व्यक्ति विशेष के सम्पूर्ण जीवन वृतांत को जीवनी कहते है। जीवनी का अंग्रेजी अर्थ “बायोग्राफी” है। हिन्दी साहित्य की गद्य विधा जीवनी में व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित घटनाओं का कलात्मक और सौन्दर्यता के साथ चित्रण होता है। हिन्दी की इस गद्य विधा की कुछ रचनाएं निम्न हैं-
8. यात्रा-साहित्यएक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया यात्रा कहलाती है और जिस साहित्य में इस यात्रा का वर्णन किया जाता है उसे यात्रा वृत्त कहते हैं। इस गद्य विधा का पहला यात्रा-वृत्त “सरयू पार की यात्रा” है, जिसका का रचनाकाल 1871 ई. है और इसके लेखक “भारतेन्दु हरिश्चन्द्र” हैं। इस हिन्दी साहित्य की गद्य विधा की कुछ कृतियाँ उदाहरणस्वरूप दी गईं हैं-
9. डायरी-साहित्यडायरी लेखन व्यक्ति के द्वारा अपने अभुभवों, सोच और भावनाओं को लिखित रूप में अंकित करके बनाया गया एक संग्रह है। विश्व में हुए महान व्यक्ति डायरी लेखन का कार्य करते थे और उनके अनुभवों से उनके निधन के बाद भी कई लोगों को प्रेरणा मिलती थी। हिन्दी में इस गद्य विधा के डायरी लेखकों में महात्मा गाँधी, जमनालाल बजाज, बच्चन, मोहन राकेश, धीरेन्द्र वर्मा, मुक्ति बोध (एक साहित्यिक की डायरी), दिनकर, जय प्रकाश के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 10. रेखाचित्रहिन्दी साहित्य की इस विधा में रेखाचित्र के पर्याय रूप में व्यक्ति चित्र, शब्द चित्र, शब्दांकन आदि शब्दों का प्रयोग भी होता है, परन्तु प्रायः विद्वान् इस विधा को रेखाचित्र नाम से अभिहित करते हैं। उदाहरणस्वरूप कुछ रचनाएं इस हिन्दी विधा की निम्न हैं-
11. एकांकीहिन्दी में ‘एकांकी‘ जो अंग्रेजी ‘वन एक्ट प्ले’ के लिए हिन्दी नाम है। यह हिन्दी साहित्य की विधा आधुनिक काल में हिन्दी भाषा के अंग्रेजी से संपर्क का परिणाम है, पर भारत के लिए यह साहित्य रूप नया बिल्कुल नहीं है। इसीलिए प्रो. अमरनाथ के इस कथन- एकांकी नाटक हिन्दी में सर्वथा नवीनतम कृति है, “इसका जन्म हिन्दी साहित्य में अंग्रेजी के प्रभाव के कुछ वर्ष पूर्व ही हुआ है।” इस वाक्य के विरोध में डॉ. सरनाम सिंह का कथन है कि यह मानना कितना भ्रामक होगा कि हिन्दी एकांकी के सामने कोई भारतीय आदर्श ही न था। हिन्दी साहित्य की इस विधा की कुछ कृतियाँ निम्न हैं-
12. समीक्षासमीक्षा व्यावहारिक आलोचना की बुनियादी जमीन है। जो बढ़िया पुस्तक समीक्षा नहीं लिख सकता, वह बढ़िया आलोचना भी नहीं लिख सकता। साहित्यिक आलोचना के लिए जरूरी है- रचना के मर्म की पहचान। रचना की संवेदना, भाषा-शिल्प, अंतर्वस्तु आदि को पहचानने वाली सक्षम और निर्भीक दृष्टि से व्यावहारिक आलोचना बनती है। निश्चय ही, साहित्य-सैद्धांतिकी आलोचना में सहायक है, लेकिन वह व्यावहारिक आलोचना का विकल्प नहीं हो सकती। हिंदी और अन्य भाषाओं के जितने मान्य आलोचक हुए हैं, वे प्राय: समर्थ पुस्तक समीक्षक भी थे। ऐसे आलोचकों में रामचंद्र शुक्ल, नंददुलारे वाजपेयी, रामविलास शर्मा, नलिन विलोचन शर्मा, विजयदेव नारायण साही, नामवर सिंह या टीएस एलियट, एफआर लिविस आदि को याद किया जा सकता है। 13. इंटरव्यूव साहित्य (साक्षात्कार)हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार’ विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। 14. पत्र-साहित्यपत्र-साहित्य हिन्दी की वैयक्तिक विधा है। पत्र न तो प्रकाशन के लिए लिखे जाते हैं, न उनमें सर्वजनीनता होती है। हिंदी-साहित्य के इतिहास और समीक्षा-ग्रंथ इस विधा के विकास या महत्त्व के सम्बंध में प्रायः मौन हैं। इसका एक कारण है व्यवस्थित रूप से छपे हुए पत्र-संग्रहों की विरलता और दूसरा हमारा उपेक्षा-भाव। समयान्तर में पत्र-पत्रिकाओं की भरमार के साथ जैसे-जैसे साहित्यकारों में आत्मचेतना आयी, पत्र-लेखन और प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। धीरे-धीरे दिवंगत साहित्यकारों के पत्र स्मृति-ग्रंथों में छपने लगे। लेकिन, इस विधा की ओर सर्वप्रथम ध्यान पं. बनारसीदास चतुर्वेदी का गया। उन्होंने तो पत्र-लेखन को एक व्यसन के रूप में ही स्वीकार कर लिया और कुछ लेखकों को लेकर पत्रलेखन-मण्डल की स्थापना की. उसके सक्रिय सदस्य आचार्य शिवपूजन सहाय भी थे। पत्र-साहित्य नामक हिन्दी विधा की प्रमुख रचनाएं निम्न हैं-
15. काव्यहिन्दी साहित्य की पद्यात्मक एवं छन्द-बद्ध रचना काव्य कहलाती है। चिन्तन की अपेक्षा, उसमें भावनाओं की प्रधानता होती है। उसका साहित्य आनन्द सृजन करता है। इसका उद्देश्य सौन्दर्य की अनुभूति द्वारा आनन्द की प्राप्ति है। आनुषंगिक रूप से काव्य द्वारा भाषा की भी समृद्धि होती है, परन्तु मूलतः वह आनन्द का साधन है। तर्क, युक्ति एवं चमत्कार आदि का आश्रय न लेकर कवि रसानुभूति का समवेत प्रभाव उत्पन्न करता है। काव्यों की कुछ कृतियाँ उदाहरणस्वरूप दी गईं हैं-
16. कविताहिन्दी साहित्य की कविता विधा में यथार्थ का यथारूप चित्रण नहीं मिलता वरन् यथार्थ को कवि जिस रूप में देखता है तथा जिस रूप में उससे प्रभावित होता है, उसी का चित्रण करता है। कवि का सत्य सामान्य सत्य से भिन्न प्रतीत होता है। वह इसी प्रभाव को दिखाने के लिए अतिशयोक्ति का सहारा भी लेता है; अत: काव्य में अतिशयोक्ति भी दोष न होकर अलंकार बन जाती है। देखें – कविता की विधाएं। विधाएं और उनका अनुवादकेवल हिन्दी साहित्य ही नहीं समाज, संस्कृति, साहित्य, भाषा, व्यवसाय एवं अनुवाद से जुडे अधिकतर विधाओं के विकास में अनुवाद का ही योगदान महत्वपूर्ण रहा हैं। आज भी आधुनिकता और प्रौद्योगिकी के युग में भी ‘अनुवाद’ यह भूमिका बखूबि निभा रहा हैं। हिंदी में नई साहित्यिक विधाओं के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका किस प्रकार महत्व पूर्ण रही इसे हम केवल अनुवाद की भूमिका को ध्यान में रखते हुए निम्न रुप से देख सकते है: पाश्चात्य सहित्य के विकास के साथ ही हिंदी साहित्य की विधाओं का विकास भी होता गया। इसका एक कारण यह था की इस दौरान अधिकतर जगह अनुवाद की स्त्रोत भाषा अंग्रेजी थी। विश्व के किसी भी साहित्य का अनुवाद पहले अंग्रेजी में होता फिर अंग्रेजी के माध्यम से अन्य भाषा जैसे हिंदी अनुवाद होता था। हिंदी साहित्य में न केवल पाश्चात्य साहित्य में विकसित साहित्यिक विधाओं का ही विकास हुवा बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्यक विधाओं का भी विकास अनुवाद के माध्यम से हिंदी की साहित्यिक विधाओं में दिखाई दिया। विशेष कर हम उन्हीं विधाओं पर अधिक विचार करेंगे जिसमें अनुवाद का महत्व अधिक रहा। जिसमें मुख्य रुप से निम्न विधाओं को प्रमुख रुप से लिखा जाता हैं।
साहित्यिक विधाओं के विकास पर बारिकी से अनुसंधान कीया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा की हिंदी साहित्य में इन नई साहित्यिक विधाओं के विकास में अनुवाद ने सबसे महत्व पूर्ण भूमिका निभाई हैं। परंतू आज भी अनुवाद को उसके कार्य के अनुसार हिंदी साहित्य में महत्व नहीं दिया जाता फिर भी अनुवाद अपना कार्य निरंतर रुप करता रहेगा। नाटक बाबू रामकृष्ण वर्मा द्वारा ’वीरनार’,’कृष्णाकुमा’ और ’पद्मावत’ इन नाटकों का अनुवाद हुवा। बाबू गोपालराम ने ’ववी’, ’वभ्रुवाह’, ’देशदशा’, ’विद्या विनोद’ और रवींद्र बाबू के ’चित्रांगदा’ का अनुवाद किया, रुपनारायण पांण्डे ने गिरिश बाबू के ’पतिव्रता’ क्षीरोदप्रसाद विद्यावियोद के ’खानजहाँ’ दुर्गादास ताराबाई, इन नाटकों के अनुवाद प्रस्तुत किए। अंग्रेजी नाटकों के अनुवाद भी इसी कालखंड मे निरंतर रुप से चल रहे थे। जिन में ’रोमियो जूलियट’ का ’प्रेमलिला’ नाम से अनुवाद हुवा। ’ऎज यू लाईक इट’ और ’वेनिस का बैक्पारी’, उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी के भाई मथुरा प्रसाद चौधरी ’ए मौकबेथ’ का ’साहसेंद्र साहस’ के नाम के अनुवाद किया। हैमलेट का अनुवाद ’जयंत’ के नाम से निकला जो वास्तव में मराठी अनुवाद से हिंदी मे अनूदित किया गया था. भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में नाटकों का अधिक अनुवाद हिंदी में दिखाई देता है। विद्यासुंदर (संस्कृत “चौरपंचाशिका” के बंगला-संस्करण का अनुवाद), रत्नाअवली, धनंजय विजय (कांचन कवि कृत संस्कृत नाटक का), कर्पूरमंजरी (सट्टक, के संचन कवि-कृत नाटक का अनुवाद) अगर हिंदी नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में किन अनूदित नाटकों ने महत्व पूर्ण कार्य किया तो उसे हम निम्न रुप से देख सकते है। कुछ नाटकों के अनुवाद दो अनुवादकों ने भी किए है। भारतेन्दु हरिश्चंद के अनूदित नाटकों में रत्नावली (1868), धनंजय विजय (1873), पाखण्ड विडम्बन (1872), मुद्राराक्षस (1875), कर्पूरमंजरी (1876), दुर्लभबंधु (1880), विद्यासुन्दर आदि अनूदित नाटक हैं जो संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी से अनूदित हैं। ‘विद्यासुन्दर’ रूपान्तरित नाटक है। गद्य की प्रमुख विधाएं कौन कौन से हैं?हिंदी गद्य की प्रमुख विधाएँ निम्नलिखित हैं- निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी. निबंध- निबंध वह गद्य रचना है, जिसमें सीमित आकार में किसी विषय का प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, संगति व संबद्धता के साथ किया जाता है। ... . निबंध के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं-. हिंदी गद्य की विधाएँ कितनी होती है?संस्कृत साहित्य के समान ही हिन्दी साहित्य में भी नाटक (अनेकांकी एकांकी, रेडियोरूपक आदि) तथा पद्य (महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक, तुकान्त, अतुकान्त आदि) और गद्य की अनेक विधायें : लघुकथा, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, यात्र वृत्तान्त, निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, गद्यकाव्य आलोचना तथा समीक्षा आदि हैं।
विधा कितने प्रकार के होते हैं?विद्या दो प्रकार की होती है परा और अपरा विद्या। इसी के अंतर्गत कई प्रकार की विद्याएं होती हैं।. पत्थर और पेड़ 1 से 2 कला के प्राणी हैं। ... . पशु और पक्षी में 2 से 4 कलाएं होती हैं क्योंकि वे बुद्धि का प्रयोग भी कर सकते हैं।. साधारण मानव में 5 कला की और सभ्य तथा संस्कृति युक्त समाज वाले मानव में 6 कला की अभिव्यक्ति होती है।. हिंदी गद्य की सर्वाधिक प्रसिद्ध विधा कौन सी है?हिन्दी गद्य की प्रमुख विधाएँ हैं-निबन्ध, नाटक, उपन्यास, कहानी तथा आलोचना।
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