ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

दरअसल, इसबगोल जिसे अंग्रेजी में साइलियम हस्क कहते हैं, प्लांटैगो ओवेटो के पौधे से मिलने वाला बीज और भूसी है। इसबगोल बीज के आसपास की भूसी में घुलनशील फाइबर होता है। इसलिए जब आप इस तरह के फाइबर को पानी में मिलाते हैं, तो यह जेल बनाने के लिए पानी को अवशोषित करता है। इसके अलावा, इसबगोल का इस्तेमाल खाने में भी किया जाता है। साथ ही साथ यह वजन घटाने में भी मदद करता है।

Show

​कब्ज में राहत

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

इसबगोल में हाइग्रोस्कोपिक गुण होते हैं, जो डाइजेस्टिव सिस्टम से ज्यादा पानी सोखने में मदद करते हैं। इसबगोल में मौजूद फाइबर कब्ज ठीक करने का अच्छा उपाय है। दूध के साथ 2 चम्मच इसबगोल मिलाकर पी सकते हैं।

​दस्त रोकने में मददगार

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

इसबगोल, आंतों को साफ करता है जो संक्रमण के कारण सूक्ष्म जीवों को हटाने में मदद करता है। दस्त के दौरान आप इसबगोल को दही में मिलाकर खा सकते हैं। दही और इसबगोल दोनों ही दस्त को रोकने में प्रभावी हैं।

​ब्लड शुगर कम करे

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

इसबगोल ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करता है, क्योंकि यह ग्लूकोज के टूटने के अवशोषण को रोकता है। इसके अलावा, इसमें मौजूद जिलेटिन आपके ब्लड शुगर को कम करने में मदद करता है।

​कलेस्ट्रॉल कम करे

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

इसबगोल पित्त ऐसिड को बांधता है और एलडीएल यानी बैड कलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। यह एचडीएल यानी गुड कलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ाने में भी मददगार है।

​दिल रखे स्वस्थ

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

इसबगोल दिल को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है क्योंकि यह शरीर में ट्राइग्लिसराइड के लेवल को कम करता है। यह दिल की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, लिपिड के स्तर को बढ़ाता है और ब्लड प्रेशर कंट्रोल करता है।

​वेट लॉस में मददगार

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

इसबगोल वजन घटाने में भी फायदेमंद है। इसको 1 गिलास पानी में या फिर जूस में डालकर पिएं। इसबगोल को पानी और नींबू के रस के साथ मिलाकर भी पी सकते हैं।

​ओवरइटिंग रोकने में मददगार है

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

आयुर्वेदाचार्य डॉ ए के मिश्र कहते हैं, इसबगोल ओवरइटिंग रोकने में मददगार है। हालांकि इसको सीमित मात्रा में लेना चाहिए क्योंकि इसके ज्यादा सेवन से गैस, सूजन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

आजकल औषधीय खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। जागरूक किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ रहे हैं और अधिक मुनाफे वाली खेती करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। जो किसान अभी तक पिछड़े हुए हैं उनको भी पारंपरिक खेती का मोह छोड़ कर औषधीय खेती करनी चाहिए। यहां बात करते हैं ईसबगोल की खेती की। किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि कम समय में तैयार होने वाली ईसबगोल की फसल किसानों को मालामाल कर सकती  है। ईसबगोल एक औषधीय प्रजाति का पौधा है। देखने में यह पौधा झाड़ी के समान लगता है। फसल के रूप में इसमें गेहूं जैसी बालियां लगती हैं। ईसबगोल की भूसी में अपने वजन की कई गुना पानी सोख लेने की क्षमता होती है।  

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

भारत में ईसबगोल की खेती (Isabgol farming in India)

भारत में ईसबगोल की खेती राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्यप्रदेश में अधिक की जाती है। ईसबगोल का इस्तेमाल कई प्रकार की बीमारियों को दूर करने में किया जाता है वहीं इसकी पत्तियां पशुओं के चारे के रूप में काम ली जाती हैं। इस तरह से किसानों को दोहरा लाभ होता है। पशुओं के चारे का प्रबंध भी अलग से नहीं करना पड़ता और ईसबगोल की फसल तैयार होने पर मंडी मेंं इसके अच्छे दाम मिलते हैं। आइए, जानते हैं ईसबगोल की खेती कैसे की जाती है?  इसके लिए कैसी जलवायु उपयुक्त रहती है और कौन-कौन सी इसकी उम्दा किस्में है जो अधिक पैदावार दे सकती हैं? 

ईसबगोल की उन्नत खेती के लिए उम्दा किस्मों का करें चयन / इसबगोल का पौधा ऐसे चुनें

ईसबगोल की खेती करने के इच्छुक किसान भाइयों को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के आधार पर ईसबगोल की किस्मों का चुनाव करें। इससे उनको प्रति हेक्टेयर उत्पादन वृद्धि का लाभ मिल सकेगा। यहां ईसबगोल की उन्नत किस्मों के बारे में उपयोगी जानकारी दी जा रही है जो इस प्रकार है-: 

  • गुजरात ईसबगोल 2 : ईसबगोल की यह किस्म गुजरात क्षेत्र के लिए उपयुक्त और बढिया मानी जाती है। यह  किस्म 118 से 125 दिन में पकती है। वहीं इसकी पैदावार प्रति एकड़ के हिसाब से 5 से 6 क्विंटल होती है।  इसमें भूसी की मात्रा 28 से 30 प्रतिशत तक पाई जाती है। 
  • आर.आई. 89 ईसबगोल : ईसबगोल की अन्य बढिय़ा किस्म आर.आई. 89: है। यह राजस्थान के शुष्क एवं अद्र्ध शुष्क क्षेत्रों के लिए विकसित की गई किस्म है।  इसमें फसल तैयार होने की अवधि 110 से 115 दिन होती है। इसकी उपज क्षमता 4.5 से 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म रोगों और कीटों के आक्रमण से कम प्रभावित होती है। इसके साथ ही उच्च  गुणवत्ता वाली होती है। 
  • आर.आई.1 ईसबगोल : ईसबगोल की आर.आई. 1: किस्म भी राजस्थान में अधिक बोई जाती है। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 29 सेमी से 47 सेंटीमीटर होती है। यह किस्म 112 से 123 दिन में पक जाती है। वहीं उपज क्षमता 4.5 से 8.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
  • जवाहर ईसबगोल 4 : ईसबगोल की यह प्रजाति मध्यप्रदेश की जलवायु के लिए उपयुक्त मानी जाती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इसका उत्पादन 5. से 6 क्विंटल प्रति एकड़ लिया जा सकता है। 
  • हरियाणा ईसबगोल 5 : यहां बता  दें कि हरियाणा क्षेत्र में इस किस्म की अधिक खेती की जाती है। इसीलिए इसे हरियाणा ईसबगोल 5 किस्म के नाम से जाना जाता है। इसका उत्पादन 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ लिया जा सकता है। 

इसके अलावा ईसबगोल की अन्य कई आधुनिक किस्में हैं इनमें निहारिका, इंदौर ईसबगोल, मंदसौर ईसबगोल आदि हैं। 

ईसबगोल की खेती कैसे करें (Isabgol Cultivation)

ईसबगोल के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी कैसी हो ?

यहां किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि इसकी खेती उष्ण जलवायु में भी आसानी से की जा सकती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य होना चाहिए। यदि जमीन नमी वाली हो तो इसके पौधों का सही तरीके से विकास नहीं होता। इसीलिए ईसबगोल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है जिसमें जीवाश्म की मात्रा अधिक हो। 

ईसबगोल की बुआई का सही समय 

ईसबगोल की खेती के लिए किसानों को सही समय का ज्ञान होना चाहिए। बता दें कि ईसबगोल की बुआई अक्टूबर से नवंबर माह के बीच होनी चाहिए। इसके बीजों की बुआई कतारों में की जाती है। इनकी कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर होना जरूरी है। बीज को करीब 3 ग्राम थाईरम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर लें और मिट्टी में मिला लें। इसके बाद ही बुआई की जानी चाहिए। 

वैज्ञानिक तरीके से खेती करने से बढ़ता है उत्पादन 

ईसबगोल की खेती करने की वैज्ञानिक तकनीक अपनाई जानी चाहिए। जैसे अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्म के बीजों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से खेत का तैयार करना, कंपोस्ट खाद आदि का प्रयोग करना। वहीं फसल उगने के बाद समय-समय पर उसकी सही देखभाल जरूरी है। यहां कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें बताई जा रही है जो ईसबगोल की खेती के दौरान किसानों को इसका उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती हैं। ये मुख्य बातें इस प्रकार हैं-:  

ईसबगोल की भूसी कैसे बनती है? - eesabagol kee bhoosee kaise banatee hai?

  • खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से उपचारित कर लें ताकि फसल में किसी रोग का प्रकोप नहीं हो पाए। 
  • जमीन की दो से तीन बार जुताई करेंं, मिट्टी का भुरभुरी बना लें, इसके बाद दीमक एवं अन्य भूमिगत कीटों की रोकथाम के लिए अंतिम जुताई के समय क्यूनोलफॉस 1.5 प्रतिशत 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिला दें। 
  • यदि जैविक उपचार अपनाना चाहते हैं तो बुवेरिया बेसियाना एक किलो या मेटारिजियम एनिसोपली एक किलो मात्रा में एक एकड़ में 100 किलो गोबर की खाद में मिला कर खेत में बिखेर दें। 
  • मिट्टी जनित रोग से फसल को बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिड की एक किलो मात्रा को एक एकड़ खेत में 100 किलो गोबर की खाद में मिला कर खेत अंतिम जुताई के साथ मिट्टी में मिला दें। 
  • रोग के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए बीजोपचार करते समय मेटालेक्सिल 35 प्रतिशत एसडी 5 ग्राम प्रति किलोबीज दर से उपचारित करें। अच्छी उपज के लिए ईसबगोल की बुआई नवंबर के प्रथम उपचारित करें। 

ईसबगोल की खेती (Isabgol ki kheti) : रोग और कीटों से बचाव की जानकारी

  • यहां बता दें कि ईसबगोल की फसल में कई प्रकार के रोगों को प्रकोप होता है। यदि समय रहते इन रोग और कीटों के लिए उचित निवारण नहीं किया जाए तो फसल को काफी नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। ईसबगोल की फसल में रोग और कीटों का प्रकोप होने और इनके निवारण की जानकारी  यहां दी जा रही है। 
  • ईसबगोल को तुलासिता नामक रोग से बचाने के लिए फसल की कम से कम 30 सेमी की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। 
  • अगर हो सके तो कतारें पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व दिशा में निकालें। अन्य दिशाओं में कतारें निकालने से रोग का प्रकोप अधिक होता है। 
  • फसल के सही पकने के लिए आवश्यक है कि जमीन शुष्क रहे, पकाव के समय बारिश होने से बीज झड़ जाते हैं और छिलका फूल जाता है। 
  • ईसबगोल की फसल में उर्वरक की बात करें तो प्रति एकड़ 12 किलो नत्रजन और 10 किलो फास्फोरस की जरूरत होती है ताकि फसल जल्दी बढ़ कर अधिक उत्पादन दे सके। 
  • फसल में 60 दिन बाद बालियां निकलना शुरू होती है और करीब 115 से 130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। फसल कटाई के दौरान मौसम साफ होना चाहिए। 
  • तुलासिता के अलावा ईसबगोल का दूसरा रोग है उकठा या विल्ट। इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। इस रोग से बचाव के लिए 2 ग्राम कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी प्रति किलो बीज की दर से बीजों को उपचारित करना चाहिए। 
  • इसी तरत यदि दीमक का प्रकोप है तो इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरिफॉस 25 ईसी 2.47 लीटर पानी से सिंचाई कर जमीन में दें। 

एक क्विंटल ईसबगोल की कीमत करीब 12,500 रुपये

आपको बता दें कि ईसबगोल कम लागत में अधिक मुनाफे वाली फसल है। यह करीब 115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर में यदि बढिया तरीके से प्रबंधन किया जाए तो 10 से 15 क्विंटल तक ईसबगोल की उपज हो जाती है। इसे मंडी में बेचने पर एक क्विंटल के करीब 12,500 रुपये का भाव मिलता है। 

ईसबगोल के फायदे (Isabgol Benefits) : ईसबगोल की भूसी में हैं कई रोगों को खत्म करने के गुण 

यही नहीं ईसबगोल में भूसी भी निकलती है। इस भूसी का भाव 25,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है। एक हेक्टेयर में करीब 5 क्विंटल भूसी निकलती है। इसके बाद भी ईसबगोल की खेती में भूसी निकलने के बाद खली, गोली आदि अन्य उत्पाद बचते हैं। ईसबगोल बहुत की उपयोगी औषधीय फसल है। इसका उपयोग पाचन तंत्र को मजबूत करने, मोटापा दूर करने में किया जाता है। ईसबगोल के बीज के ऊपर सफेद रंग का पदार्थ चिपका रहता है जिसे भूसी कहते हैं। भूसी में म्यूसीलेज होता है जिसमें जाईलेज, ऐरिबिनोज एवं ग्लेकटूरोनिक ऐसिड पाया जाता है। इसके बीजों में 17 से 19 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ईसबगोल की भूसी में ही सबसे ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं लेकिन भूसी रहित बीज का उपयोग पशु और मुर्गियों के आहार के रूप में भी किया जाता है। गौरतलब है कि ईसबगोल का विश्व के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत  उत्पादन भारत में ही होता है।  

लागत काटकर 1 हेक्टेयर में कमाएं 1,76,600 रुपये

ईसबगोल की खेती से किसानों को बंपर कमाई होती है। यहां एक हेक्टेयर खेती की कुल लागत और इसके बाद शुद्ध कमाई के बारे में पूरा विवरण इस प्रकार है-:  

  • खेत तैयार करने में खर्चा- 3000 रुपये 
  • बीज खर्चा 10 किलोग्राम के हिसाब से 600 रुपये 
  • बुआई मजदूरी- 1700 रुपये
  • कीटनाशक दवाओं और उर्वरकों  पर खर्च- 1200 रुपये 
  • सिंचाई एवं निराई-गुडाई का खर्चा- 1500 रुपये 
  • फसल कटाई खर्चा- 1600 रुपये 
  • अन्य खर्चे- करीब 1200 रुपये 

कुल लागत - 10,800 रुपये
शुद्ध मुनाफा - 1,87000- 10,800 = 1,76,600 रुपये  

जानें, क्या है ईसबगोल कृषि कार्यमाला?  

ईसबगोल की खेती करने वाले किसानों को ईसबगोल कृषि कार्यमाला के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। बता दें कि ईसबगोल कृषि कार्यमाला में कृषि विभाग की वे तमाम जानकारियां शामिल होती है जो ईसबगोल की उन्नत खेती के लिए बहुत जरूरी हैं। इसमें उन्नत किस्मे, मिट्टी परीक्षण, कल्टीवेशन, कीट प्रबंधन, उर्वरकों का सही प्रयोग करना, कृषि सहायकों से जानकारी हासिल करना आदि बाते शामिल हैं। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क किया जा सकता है। इस तरह से ईसबगोल कृषि कार्य माला की सहायता लेकर किसान ईसबगोल की अधिक पैदावार के तरीके जान सकते हैं।

अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।

ईसबगोल भूसी कैसे बनती है?

इसबगोल प्लांटागो ओवाटा नामक पौधे का बीज होता है। यह पौधा देखने में बिल्कुल गेंहूं के जैसा होता है जिसमें छोटी छोटी पत्तियां और फूल होते हैं। इस पौधे की डालियों में जो बीज लगे होते हैं उनके ऊपर सफ़ेद रंग का पदार्थ चिपका रहता है। इसे ही इसबगोल की भूसी (Psyllium husk) कहते हैं।

ईसबगोल की भूसी खाने से क्या होता है?

इसबगोल की भूसी के फायदे | Benefits of Isabgol Husk - इसबगोल की भूसी ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करती है. यह भूसी ग्लूकोज के अवशोषण को रोकती है और इसमें मौजूद जिलेटिन ब्लड शुगर लेवल को कम करते हैं. - वहीं इसकी भूसी खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी मददगार है और गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाती है.

ईसबगोल की भूसी कब खाना चाहिए?

इसबगोल को सुबह-सुबह खाना खाने के बाद खा लेना चाहिए। लेकिन अगर आप गर्भवती हैं तो सोच समझ के इसका सेवन करें। एक गिलास गर्म पानी में एक से दो चम्मच ईसबगोल की भूसी मिलाएं और रात में खाना खाने के बाद इसका सेवन करें। एक कटोरी दही में एक से दो चम्मच इसबगोल की भूसी मिलाकर खाने से दस्त से आराम मिलता है।

कब्ज में इसबगोल का प्रयोग कैसे करें?

एक गिलास गर्म पानी में एक से दो चम्मच ईसबगोल की भूसी मिलाएं और रात में खाना खाने के बाद इसका सेवन करें। एक कटोरी दही में एक से दो चम्मच इसबगोल की भूसी मिलाएं। मिठास के लिए आप इसमें चीनी भी स्वादानुसार मिला सकते हैं। इसबगोल और दही का मिश्रण दस्त से आराम दिलाने में बहुत कारगर होता है।