निर्माण - इनका निर्माण हिमालयी तथ प्रायद्वीपीय नदियो के द्वार मलवा निक्षेप द्वारा हुआ है। Show
प्रकृति - इनका रंग हल्के धूसर से भस्मी धूसर के बीच और गठन रेतीली से दोमट के बीच पाया जाता है। इनमे पोटाश और चूना की प्रचुरता पाइ जाती है। इनमे फॉस्फोरस नाइट्रोजन एव्म ह्युमस की कमी पाई जाती है। परंतु यह बहुत उपजाऊ होती है क्योकि नदियॉ कई प्रकार के शैल चूर्ण बहाकर ले आती है जिनमे बहुत से रसायनिक तत्व मिले होते है। प्राप्ति स्थान - भारत के 40% भूभाग पर पश्चिम मे सतलज नदी से लेकर पूर्व मे ब्रह्मपुत्र नदी घाटी तक विस्तृत है। इसके अतिरिक्त प्राय्द्वीपीय नदि घाटियो मे तथा केरल के तट के सहारे भी पाई जाती है। जलोढ मिट्टी का विभाजन - इसको 5 भागो मे बांटा गया है। 1- नवीन (खादर) 2- प्राचीन (बांगर ) Types Of Soil In Indiaभारत में अनेक प्रकार के उच्चावच, भू आकृतियां, जलवायु और वनस्पतियां पाई जाती है। इस कारण भारत में विभिन्न प्रकार की मिट्टियां विकसित हुई है। जलोढ़ और काली मृदा भारत की उपजाऊ मिट्टी के रूप में जाना जाता है। जलोढ़ मृदा और काली मृदा वाले क्षेत्र में भारत की 80% जनसंख्या निवास करती है। जबकि लाल-पीली, लेटराइट और मरुस्थलीय मृदा कम उपजाऊ वाली मानी जाती है। यहां जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत कम देखा जाता है। आज की कड़ी में Types Of Soil In India देखने जा रहे हैं। अखिल भारतीय मृदा एवं उपयोग सर्वेक्षण संगठन द्वारा 1956 में भारतीय मृद्राओं को वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया। वर्ष 1957 में राष्ट्रीय एटलस एवं थिमेटिक संगठन (NATAO) द्वारा भारत की एक मृदा मानचित्र का प्रकाशन किया गया। इस मानचित्र में भारतीय मृदाओं को छह प्रमुख समूहों में बाटा गया। 👉 मैट्रिक सामाजिक विज्ञान का Question Bank वर्ष- 2009 से 2019 तक का प्रश्न 1• जलोढ़ मिट्टी 2• काली मिट्टी 3• लाल एवं पीली
मिट्टी 4• लेटराइट मिट्टी 5• मरूस्थलीय मिट्टी 6• पर्वतीय मिट्टी 👉 सामाजिक विज्ञान का अर्थ और महत्व को जानने के लिए क्लिक करें Types Of Soil In India 1• जलोढ़ मिट्टीAlluvial Soils⭐ निर्माण:- इस मिट्टी का निर्माण नदी द्वारा ढो कर लाए गए जलोढ़ीय पदार्थों से हुआ है। यह मिट्टी भारत की सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी है। ⭐ क्षेत्र या विस्तार: भारत में जलोढ़ मृदाइस मिट्टी का विस्तार मुख्य रूप से हिमालय की तीन प्रमुख नदी तंत्रों गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी बेसिनों में पाया जाता है। इसके अंतर्गत उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, असम के मैदानी क्षेत्र तथा पूर्वी तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं। ⭐ जलोढ़ मृदा की विशेषताएं • यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होती है। ⭐ जलोढ़ मृदा को दो भागों में बांटा जा सकता है। (क) खादर
(ख) बांगर/भांगर • यह पुरानी जलोढ़ मृदा है। 2• काली मिट्टीBlack or Regur Soils⭐ निर्माण:- • इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के लावा से हुआ है। इस कारण इस मिट्टी का रंग काला है। इसे स्थानीय भाषा में रेगर या रेगुरू मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। इस मिट्टी के निर्माण में जनक शैल और जलवायु ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ⭐ क्षेत्र या विस्तार:- इस मिट्टी का मुख्य विस्तार दक्कन पठार क्षेत्र में है। यह मिट्टी महाराष्ट्र, गुजरात के सौराष्ट्र, मालवा का पठार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में मुख्य रूप से पाई जाती है। इसके अलावा गोदावरी और कृष्णा नदी बेसिन में भी इसका विस्तार है। ⭐ काली मिट्टी की विशेषताएं:- • यह उपजाऊ मिट्टी है। जो कपास के लिए प्रसिद्ध है। 3• लाल एवं पीली मिट्टीRed and Yellow Soils⭐ निर्माण:- यह मिट्टी ग्रेनाइट जैसे रवेदार आग्नेय शैलों तथा नीस जैसे कायांतरित शैलों के अपक्षय से बनी है। इस मिट्टी में लाल रंग रवेदार आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में लौह धातु के कारण है। इसका पीला रंग इसमें जलयोजन के कारण होता है। ⭐ क्षेत्र या विस्तार:- प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में बहुत बड़े भाग पर लाल मिट्टी पाई जाती है। जिसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, छोटा नागपुर का पठार, उत्तर-पूर्वी राज्यों के पठार शामिल है। ⭐ लाल एवं पीली मृदा की विशेषताएं:- • लोहे के योगिक के अधिकता के कारण इस मिट्टी का रंग लाल है। 4• लैटराइट मिट्टीLaterite Soils⭐ निर्माण:- लैटराइट मिट्टी उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र में विकसित होता है। यह भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन (Leaching) का परिणाम है। ⭐ क्षेत्र या विस्तार:- यह मिट्टी मुख्यतः अधिक वर्षा वाले कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, असम तथा मेघालय के पहाड़ी क्षेत्र में एवं मध्यप्रदेश और उड़ीसा के शुष्क क्षेत्रों पाई जाती है। ⭐ लैटेराइट मृदा की विशेषताएं:- • यह मिट्टी कम गहरी, कंकरीली तथा कम उपजाऊ वाली होती है। 5• मरूस्थलीय मिट्टीDesert Soils⭐ निर्माण:- मरूस्थलों में दिन के समय अधिक तापमान के कारण चट्टानें फैलती है तथा रात में अधिक ठंड के कारण चटानें सिकुड़ती है। चट्टानों के इस फैलने और सिकुड़ने की क्रिया के कारण राजस्थान में मरुस्थलीय मिट्टी का निर्माण हुआ है। ⭐ क्षेत्र या विस्तार:- इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान तथा पंजाब और हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है। ⭐
मरुस्थलीय मिट्टी की विशेषताएं:- • यह बहुत ही कम उपजाऊ मृदा है। 6• पर्वतीय मिट्टीMountain Soils• पर्वतीय मृदा हिमालय की घाटियों की ढ़लानों पर 2700 मी• से 3000 मी• की ऊंचाई के बीच
पाई जाती है। 🔹 गृह कार्य
2• काली मिट्टी भारत के किन क्षेत्रों में पाई जाती है? 3• खादर और बांगर मिट्टी के महत्वपूर्ण चार अंतर को लिखें? ⭐ Types Of Soil In India के बाद हमारी कुछ और प्रस्तुति यहाँ नीचे आप देख सकते हैं। 👉 यूट्यूब van hi jeevan hai पर • हमारे पृथ्वी के ऊपर क्या है हमारा आकाश कितना बड़ा है जानने के लिए वीडियो देखें • महेशमुंडा स्थित लक्खी पूजा मेला का वीडियो • ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ वीडियो के लिए क्लिक करें • पारसनाथ की पहाड़ी के लिए क्लिक करें • भारत के पुराने और प्राचीन विभिन्न तरह के सिक्के देखने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए • विश्व के सात आश्चर्य देखने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए 👉 हमारे बेबसाइट www.gyantarang.com पर भी आप पढ़ सकते हैं। • प्रत्येक महीना का करंट अफेयर्स के लिए क्लिक करें • चट्टान के प्रकार पढ़ने के लिए क्लिक करें • झारखंड के टॉप 50 महत्वपूर्ण प्रश्न के लिए क्लिक करें • class 10th. Geography मृदा निर्माण • class 10th. Economics विकास से आप क्या समझते हैं ⭐ Types Of Soil In India (भारत में मिट्टी के प्रकार) आपको कैसा लगा हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा। अच्छा लगा हो तो इसे लाइक और शेयर भी कीजिएगा। जल्द ही एक नए पोस्ट के साथ मिलते हैं। तब तक के लिए हंसिए, हंसाइए और मस्त रहिए। भारत में जलोढ़ मिट्टी कहाँ पाया जाता है?भारत में, उत्तर के विस्तृत मैदान तथा प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानों में मिलती है। यह अत्यंत ऊपजाऊ है इसे जलोढ़ या कछारीय मिट्टी भी कहा जाता है यह भारत के 43% भाग में पाई जाती है| यह मिट्टी सतलुज, गंगा, यमुना, घाघरा,गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है| इस मिट्टी में कंकड़ नही पाए जाते हैं।
जलोढ़ मिट्टी से आप क्या समझते हो?जलोढ़, अथवा अलूवियम उस मृदा को कहा जाता है, जो बहते हुए जल द्वारा बहाकर लाया तथा कहीं अन्यत्र जमा किया गया हो। यह भुरभुरा अथवा ढीला होता है अर्थात् इसके कण आपस में सख्ती से बंधकर कोई ठोस शैल नहीं बनाते। जलोढ़क से भरी मिट्टी को जलोढ़ मृदा या जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है।
जलोढ़ मिट्टी क्या है यह कैसे बनती है?निर्माण - इनका निर्माण हिमालयी तथ प्रायद्वीपीय नदियो के द्वार मलवा निक्षेप द्वारा हुआ है। प्रकृति - इनका रंग हल्के धूसर से भस्मी धूसर के बीच और गठन रेतीली से दोमट के बीच पाया जाता है। इनमे पोटाश और चूना की प्रचुरता पाइ जाती है।
जलोढ़ मिट्टी में क्या पाया जाता है?अतिनूतन जलोढ़ मिट्टी
इस प्रकार की मिट्टी गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि बड़ी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में ही मिलती है। यह मिट्टी दलदली एवं नमकीन प्रकृति की होती है। इसके कण अत्यधिक बारीक होते हैं तथा इसमें पोटाश, चूना, फास्फोरस, मैग्नीशियम एवं जीवांशों की अधिक मात्रा समाहित रहती है।
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