ग्राम पंचायत का अर्थग्राम पंचायत का शाब्दिक अर्थ है- गाँव के लोगों द्वारा चुने हुए पाँच आदमियों की सभा। गाँधी के पंचायत राज में सबसे नीचे की इकाई गाँव है और इसकी कार्य पालिका ग्राम पंचायत है। गाँव का शासन पाँच व्यक्तियों की पंचायत चलायेगी जो न्यूनतम निर्धारित योग्यता रखने वाले वयस्क स्त्री पुरुषों द्वारा प्रतिवर्ष चुनी जायेगी। इन पंचों के पास समस्त प्राधिकार और अपेक्षित क्षेत्राधिकार होंगे। चूँकि दण्ड का सामान्यता जो अर्थ लगाया जाता है उस अर्थ में कोई दण्ड-प्रणाली लागू नहीं होगी, इसलिए पंचायत ही अपने कार्य काल के दौरान विधायिका, न्यायपालिका और कार्य पालिका तीनों को स्वयं मे समाविष्ट करते हुए उनके कर्तव्य का निर्वाह करेगी। Show
संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की गई है। इस अधिनियम के द्वारा स्थानीय स्वशासन व विकास की इकाइयों को एक पहचान मिली है। त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में ग्राम पंचायत ग्राम विकास की पहली इकाई मानी गई है। गांव के लोगों के सबसे नजदीक होने के कारण इसका अत्यधिक महत्व है। ग्राम प्रधान, उप प्रधान व सदस्यों से मिलकर ग्राम पंचायत बनती है। ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों का चयन ग्राम सभा के सदस्य चुनाव के द्वारा करते है। अत: ग्राम सभा के सदस्यों से इसका सीधा नाता होता है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा के निर्देशन में ग्राम सभा के सदस्यों की समस्याओं के समाधान हेतु कार्य करती है। गांव के विकास व सामाजिक न्याय की योजना बनाना इनका प्रमुख काम है। कई लोगों का मानना है कि पंचायत लोगों की आवाज व आवश्यकताओं को केन्द्र तक पहुँचाने का एक कारगर मंच हो सकता है। अत: पंचायत सही मायने में लोगों की आवाज बने इसके लिये जरूरी है कि ग्राम पंचायत की बैठकें बराबर होती रहें और इसमें सभी सदस्यों की उचित भागीदारी हो। एक ग्राम पंचायत तभी सशक्त हो सकती है जब हर सदस्य अपने विचारों को पंचायत की बैठक में बिना किसी संकोच के रख सके, गांव की समस्याओं तथा अन्य मुद्दों पर चर्चा करें और उनके निदान के लिये प्रयत्न करे। ग्राम पंचायत का गठनसर्व प्रथम यह जानना जरूरी है कि ग्राम पंचायत का गठन कैसे होता है। त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था की पहली इकाई ग्राम पंचायत में एक प्रधान व कुछ सदस्य होते हैं। ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या पंचायत क्षेत्र की आबादी के अनुसार इस प्रकार से होगी -
प्रधान तथा 2 तिहाई सदस्यों के चुनाव होने पर ही पंचायत का गठन घोषित किया जायेगा। ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों के चुनाव1. प्रधान का चुनाव (धारा- 11- ख - 1) - ग्राम सभा सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा प्रधान का चुनाव किया जायेगा। यदि पंचायत के सामान्य चुनाव में प्रधान का चुनाव नहीं हो पाता है तथा पंचायत के लिए दो तिहाई से कम सदस्य ही चुने जाते है उस दशा में सरकार एक प्रशासनिक समिति बनायेगी। जिसकी सदस्य संख्या सरकार तय करेगी। सरकार एक प्रशासक भी नियुक्त कर सकती है। प्रशासनिक समिति व प्रशासक का कार्यकाल 6 माह से अधिक नहीं होगा। इस अवधि में ग्राम पंचायत, उसकी समितियों तथा प्रधान के सभी अधिकार इसमें निहित होंगे। इन छ: माह में नियत प्रक्रिया द्वारा पंचायत का गठन किया जायेगा। 2. उपप्रधान का चुनाव (धारा- 11 - ग - 1) - उप प्रधान का चुनाव ग्राम पंचायत के सदस्यों के द्वारा अपने में से ही किया जाऐगा। यदि उप प्रधान का चुनाव न हो पाये तो नियत अधिकारी किसी सदस्य को उप प्रधान मनोनीत कर सकता है। ग्राम पंचायत का कार्यकालग्राम पंचायत की पहली बैठक के दिन से 5 साल तक ग्राम पंचायत का कार्यकाल होता है। यदि पंचायत को उसके कार्यकाल पूर्ण होने के 6 माह पूर्व भंग किया जाता है तो ग्राम पंचायत में पुन: चुनाव करवाकर पंचायत का गठन किया जाता है। इस नवनिर्वाचित पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष के बचे हुए समय के लिए होगा अर्थात बचे हुए छ: माह के लिए ही होगा। ग्राम पंचायतकी बैठकपंचायतीराज को स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में स्थापित करने की दिशा में पंचायतों में ग्राम सभा व ग्राम पंचायतों की बैठकों का आयोजन विशेष महत्व रखता है। 73वें संविधान संशोधन के द्वारा जो नई पंचायत व्यवस्था लागू हुई है उसमें ग्राम पंचायतों व ग्राम सभा की बैठकों का आयोजन वैधानिक रूप से आवश्यक माना गया है। यही नहीं इन बैठकों में प्रधान व उप-प्रधान सहित अन्य पंचायत सदस्यों की भागेदारी अत्यन्त आवश्यक है। इसके साथ ही ग्रामीण विकास से जुड़े विभिन्न रेखीय विभाग के प्रतिनिधियों द्वारा भी बैठक में भागीदारी की जायेगी। महिला, दलित व पिछड़े वर्ग के लोगों की भागीदारी के बिना बैठकों का कोई महत्व नहीं है। अत: पंचायतों की बैठकों का नियमित समय पर आयोजन व उन बैठकों में समस्त प्रतिनिधियों की भागीदारी विकेन्द्रीकरण की दिशा में किये गये प्रयासों को साकार करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अक्सर यह देखा गया है कि ग्राम सभा या ग्राम पंचायतों की बैठकों में प्रतिनिधियों व ग्राम सभा सदस्यों की समुचित भागीदारी न होने से बैठकों में दो-चार प्रभावशाली लोगों द्वारा ही निर्णय लेकर ग्राम विकास के कार्य किये जाते हैं। अत: अगर ग्रामस्वराज या स्थानीय स्वशासन को मजबूत बनाना है तो पंचायत प्रतिनिधियों व ग्राम सभा के सदस्यों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना जरूरी है। साथ ही इन बैठकों को पूरी तैयारी के साथ आयोजित किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत की बैठक के आयोजन से संबंधित कार्यवाही - ग्राम पंचायत की बैठक प्रत्येक माह में एक बार जरूर होनी चाहिये। जिस गांव में पंचायत घर होगा वहीं बैठक होगी। दो लगातार बैठकों के बीच दो माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिये।
बैठक से पहले-
ग्राम पंचायत की कार्यवाहीगाम पंचायत की कार्यवाही के कुछ कायदे हैं जिनका ध्यान हर ग्राम प्रधान को रखना चाहिय। बैठक में सर्वप्रथम पिछली बैठक की कार्यवाही पढ़कर सुनाई जायेगी तथा सदस्यों द्वारा सर्व सम्मति से पारित होने पर प्रधान उस पर अपने हस्ताक्षर करेगी/करेगा। इसके पष्चात पिछले माह में किये गये विकास कार्यों को सबके सामने बैठक में रखा जायेगा व उससे सम्बन्धित हिसाब-किताब व व्यय को ग्राम पंचायत के सामने रखकर उस पर विचार किया जायेगा। अगर राज्य, जिला व ब्लाक स्तर से पंचायत को कोई महत्वपूर्ण सूचना मिली है तो उसको पंचायत की बैठक में पढ़कर सुनाया जायेगा। ग्राम पंचायत की बैठक में ग्राम पंचायत की समितियों की कार्यवाही पर भी विचार होगा। इन कार्यों के पष्चात मतदाता सूची, परिवार रजिस्टर, जन्म मृत्यु रजिस्टर में किये गये व किये जाने वाले नामांकन या बदलाव पर चर्चा की जायेगी।यदि कोई पंचायत सदस्य प्रशासन या कृत्यों से सम्बन्धित किसी विषय पर प्रस्ताव लाना चाहे या प्रश्न उठाना चाहे तो उसकी एक लिखित सूचना बैठक से 11 दिन पहले प्रधान या उपप्रधान को देनी होगी। प्रधान किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार करने के सम्बन्ध में निर्णय लेगा/लेगी। प्रस्ताव या प्रश्न नियम के अनुसार होने चाहिये व विवाद बढ़ाने वाले मनगढ़ंत या किसी जाति/ व्यक्ति के लिये अपमानजनक नहीं होने चाहिये। यदि कोई भी प्रस्ताव या प्रश्न संविधान के नियमों के अनुरूप नहीं है तो प्रधान उन्हें पूछने के लिये मना कर सकती/सकता है। बैठक के दौरान ध्यान देने वाली बातें - प्रधान ग्राम पंचायत का मुखिया होने के नाते बैठक का आयोजन करती/करता है। बैठक के दौरान अपने विचारों को ठीक प्रकार से रखना, चर्चा का सही रूप से संचालन करना, बैठक में उठाये मुद्दों पर सदस्यों को सन्तुष्ट करना जैसे अनेक बातें हैं जिन्हें प्रधान को बैठक के दौरान ध्यान में रखनी है।
बैठक का समापन - बैठक के समापन से पहले बैठक में लिये गये निर्णयों को एक बार सभी को पढकर सुनाना चाहिए व उसके क्रियान्वयन से सम्बन्धित जिम्मेदारी भी तय हो जानी चाहिए। जिम्मेदारी सुनिश्चित करते समय यह भी तय कर लेना चाहिए कि अमुक कार्य कब पूरा होगा। बैठक की कार्यवाही सुनाने के पश्चात उस पर प्रधान ग्राम पंचायत तथा ग्राम पंचायत विकास अधिकारी (पंचायत सचिव) के हस्ताक्षर करवाने चाहिए। बैठक समापन करते समय प्रधान/अध्यक्ष को बैठक में उपस्थित सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करना चाहिए। बैठक की कार्यवाही की एक प्रति सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) /खण्ड विकास अधिकारी को भेजनी चाहिए। ग्राम प्रधान के कार्य एवं अधिकार
ग्राम पंचायत सचिव के कार्य एवं अधिकारपंचायत सचिव का प्रथम कार्य पंचायत अधिनियम व उसके अन्र्तगत बने नियमों , विभागीय आदेशों का सावधानी से अध्ययन करना व उनका पालन सुनिश्चित करवाना है।
प्रधान, उप-प्रधान पर आन्तरिक नियन्त्रण(अविश्वास प्रस्ताव) - पंचायत राज अधिनियम की धारा- 14 व सहपठित नियम -33 ख के अन्तर्गत ग्राम पंचायत के प्रधान व उप-प्रधान को हटाये जाने की व्यवस्था की गयी है। अविश्वास प्रस्ताव से सम्बन्धित मुख्य बिन्दु हैं-
बाह्य नियंत्रण - राज्य सरकार ग्राम पंचायत के प्रधान, उप प्रधान या ग्राम पंचायत सदस्यों को हटा सकती है । यदि प्रधान, वित्तीय अनियमितता, पद का दुरूपयोग आदि कदाचार का दोषी पाया जाता है तो उसे सरकार पदच्युत कर सकती है। जांच के दौरान जिला मजिस्ट्रेट के द्वारा तीन सदस्यों की समिति गठित की जाती है तथा प्रधान के दायित्वों का निर्वहन इसी समिति के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यदि ग्राम पंचायत सदस्य बिना कारण बताये लगातार तीन बैठकों से अनुपस्थित रहता/ रहती है, या उसके द्वारा कार्य करने से इन्कार किया जाता है अथवा पद का दुरूपयोग किया जाता है तो उसे भी राज्य सरकार पदच्युत कर सकती है। पद रिक्त होने पर चुनाव - पंचायत भंग होने या किसी पद के रिक्त होने के छ: माह के अन्तर्गत ही पुन: चुनाव कराये जाऐंगे। किसी भी परिस्थिति में छ: माह से अधिक समय तक पंचायतें भंग नहीं रह सकती व पंचायत का कोई पद रिक्त नहीं रह सकता है। ग्राम पंचायत के कार्य एवं शक्तियांप्रत्येक स्तर पर पंचायतों के कार्यकलाप एवं दायित्वों की सूची तैयार की गई है। इस सूची के अन्तर्गत पंचायतों की 29 जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गई हैं। संविधान के 73 संशोधन द्वारा 29 विषय पंचायतों के अधीन किये गये हैं, जिसके लिये पृथक से 73वें संविधान संशोधन में 243 जी 11वीं अनुसूची जोड़ी गई है। इस सूची में शामिल विषयों के अन्तर्गत आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और विकास योजनाओं को अमल में लाने का दायित्व पंचायतों का होगा। संविधान की ग्यारहवीं अनुसूचि के अन्तर्गत ग्राम पंचायतों की कुछ जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गई है। प्रत्येक ग्राम पंचायत निम्नांकित कृत्यों का संपादन निष्ठापूर्वक करेगी। प्रत्येक स्तर पर पंचायतों के कार्यकलाप एवं दायित्वों की सूची तैयार की गई है इस सूची के अन्तर्गत पंचायतों की 29 जिम्मेदारियां सुनिश्चित की गई हैं। जिसके द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को विभागों एवं विषयों के दायित्व सौंप गये हैं। ग्राम पंचायत के कार्य, एवं शक्तियां
ग्राम पंचायत के अन्य कार्य
राज्य सरकार द्वारा समनुदेशित कार्य
पंचायत सदस्यों की अन्य जिम्मेदारियांपंचायत में चुनकर आये प्रतिनिधियों की सबसे पहली जिम्मेदारी है कि गाँव में चुनाव के दौरान हुए आपसी मतभेद को भुलाकर सौहार्द का वातावरण बनाना।
ग्राम पंचायत एवं ग्राम सभा की संरचना
ग्राम पंचायत की समितियां
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