जिस राष्ट्र के लोग दृढ़ संकल्प और परिश्रम पूर्वक कर्म में लीन हैं उन्हें क्या लाभ है? - jis raashtr ke log drdh sankalp aur parishram poorvak karm mein leen hain unhen kya laabh hai?

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अपठित गद्यांश

परीक्षा में अपठित गद्यांश का प्रश्न अनिवार्य रूप से पूछा जाता है। ऐसे प्रश्न पूछने का उद्देश्य यह जानना है कि विद्यार्थी किसी गद्यांश को पढ़कर उसमें निहित भावों को समझकर अपने शब्दों में लिख सकते हैं या नहीं। अपठित गद्यांश वे होते हैं, जिन्हें विद्यार्थी अपनी पाठ्यपुस्तकों में नहीं पढ़ते। अपठित गद्यांश के प्रश्न को हल करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:

• गद्यांश को समझने के लिए यह आवश्यक है कि आप उसका वाचन कम-से-कम दो बार करें। यदि दो बार में भी गद्यांश का मूलभाव समझ में नहीं आता तो एक बार और उसे पढ़ें।
• अपठित गद्यांश पर दो प्रश्न तो अनिवार्य रूप से पूछे ही जाते हैं-एक तो अपठित का सारांश और दूसरा उसका शीर्षक।
• दो या तीन बार पढ़ने से अपठित का मूल भाव आपकी समझ में आ जाएगा। पहले उत्तर पुस्तिका के एक पृष्ठ पर उसका सारांश लिखिए। यह ध्यान रखिए कि कोई मूल भाव छूटने न पाए।
• सारांश की भाषा आपकी अपनी हो, गद्यांश की भाषा का प्रयोग न करें। 5. सारांश मूल अंश का एक-तिहाई होना चाहिए।
• सारांश में न तो आप अपनी तरफ से कोई बात जोड़ें और न कोई उदाहरण, किसी महापुरुष का कथन या किसी कवि की कोई उक्ति ही उद्धृत करें।
• गद्यांश का शीर्षक गद्यांश के भीतर ही प्रारंभिक पंक्तियों या अंतिम पंक्तियों में रहता है। शीर्षक अत्यंत संक्षिप्त हो। वह गद्यांश के मुख्य भाव को प्रकट करे। मुख्य भाव को प्रकट करनेवाला कोई शीर्षक अपनी ओर से भी दिया जा सकता है।
• अपठित का सारांश या उसके शीर्षक के अतिरिक्त भी कुछ प्रश्न पूछ जाते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर गद्यांश में ही रहते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर देते समय यह ध्यान रहे कि इनकी भाषा अपनी रहे। गद्यांश की भाषा में उत्तर देना ठीक नहीं।

• अपठित गद्यांश के कुछ उदाहरण हल सहित दिए जा रहे हैं। उनके बाद अभ्यासार्थ कुछ अपठित गद्यांश दिए गए हैं।


01 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

भारतेंदु के जीवन का उद्देश्य अपने देश की उन्नति के मार्ग को साफ-सुथरा और लंबा-चौड़ा बनाना था| उन्होंने इसके काँटों और कंकड़ों को दूर किया| उसके दोनों और सुंदर-सुंदर क्यारियां बनाकर उनमें मनोरम फल-फूलों के वृक्ष लगाए| इस प्रकार उसे सुरमय बना दिया कि भारतवासी उस पर आनंदपूर्वक चलकर अपनी उन्नति के इष्ट स्थान तक पहुंच सके| यद्यपि भारतेंदु जी अपने लगाए हुए वृक्षों को फल-फूलों से लदा न देख सके, फिर भी हमको यह कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होगा कि वे जीवन के उद्देश्य में पूर्णतया सफल हुए| हिंदी भाषा और साहित्य में जो उन्नति आज दिखाई पड़ रही है उसके मूल कारण भारतेंदु जी है और उन्हें ही इस उन्नति के बीज को रोपित करने का श्रेय प्राप्त है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) भारतेंदु के जीवन का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर– भारतेंदु के जीवन का उद्देश्य अपने देश की उन्नति के मार्ग को साफ-सुथरा और लंबा-चौड़ा बनाना था| इस उद्देश्य के लिए उन्होंने इसके मार्ग की बाधाओं को दूर किया| उनका यह उद्देश्य हिंदी भाषा की उन्नति से सम्बद्ध था|

(ख) भारतेंदु ने अपने जीवन में क्या किया ?
उत्तर– भारतेंदु जी ने देश की उन्नति के मार्ग को देशवासियों के लिए सरल बनाने हेतु कांटे-कंकड़ हटाकर, मार्ग के दोनों ओर सुंदर क्यारियां बनाकर उनमें मनोरम फल-फूलों के वृक्ष लगाए|

(ग) भारतेंदु जी को किसका श्रेय प्राप्त है ?
उत्तर– हिंदी भाषा और साहित्य में वर्तमान में दिख रही उन्नति के बीज बोने का श्रेय भारतेंदु जी को प्राप्त है|

(घ) मनोरम का अर्थ बताइए ?
उत्तर– मन को रमाने वाला|

(ड़) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए|
उत्तर– भारतेंदु जी के जीवन का लक्ष्य|


02 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

गांधीवाद में राजनीतिक और आध्यात्मिक तत्वों का समन्वय मिलता है| यही इस वाद की विशेषता है| आज संसार में जितने भी वाद प्रचलित है वह प्राय: राजनीति क्षेत्र में सीमित हो चुके हैं| आत्मा से उनका संबंध-विच्छेद होकर केवल बाह्य संसार तक उनका प्रसार रह गया है| मन की निर्मलता और ईश्वर-निष्ठा से आत्मा को शुद्ध करना गांधीवाद की प्रथम आवश्यकता है| ऐसा करने से नि:स्वार्थ बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य सच्चे अर्थों में जन-सेवा के लिए तत्पर हो जाता है| गांधीवाद में सांप्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं है| इसी समस्या को हल करने के लिए गांधीजी ने अपने जीवन का बलिदान दिया था|


उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) गांधीवाद और अन्य प्रचलित वाद किस प्रकार अलग हैं ?
उत्तर– गांधीवाद राजनीतिक और आध्यात्मिक तत्वों का समन्वय है, जबकि संसार में अन्य प्रचलित बाद प्राय: राजनीतिक क्षेत्र में सीमित हो चुके हैं|

(ख) गांधीवाद की आवश्यकता किसे बताया गया है ?
उत्तर– गांधीवाद की प्रमुख आवश्यकता मन की निर्मलता और ईश्वर में निष्ठा से आत्मा को शुद्ध करना है, क्योंकि यह नि:स्वार्थ बुद्धि का विकास कर मनुष्य को सच्चे अर्थों में जन-सेवा के लिए तत्पर करता है|

(ग) गांधी जी को अपने जीवन का बलिदान क्यों देना पड़ा ?
उत्तर– गांधी जी के आदर्शों में सांप्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं था और सांप्रदायिकता की समस्या को हल करने के लिए गांधी जी को अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा|

(घ) ‘आध्यात्मिक’ शब्द में मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए|
उत्तर– मूल शब्द- आध्यात्म, प्रत्यय इक

(ड़) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए|
उत्तर– गांधीवाद और राजनीति


03 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

संसार के विकसित देश; जैसे- जापान, अमेरिका, रूस तथा जर्मनी आदि समृद्धशाली कैसे बने हैं ? निश्चय ही, कठोर परिश्रम द्वारा| जिस राष्ट्र के लोग दृढ़ संकल्प तथा परिश्रमपूर्वक कर्म से लीन है, उनकी उन्नति तथा प्रगति अवश्यंभावी है| परिश्रमी व्यक्ति विश्वासपूर्वक मार्ग की बाधाओं को हटाता हुआ निरंतर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है| जो परिश्रम से जी चुराता है वह सदा दिन- हीन ही बना रहता है| संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनकी महानता के पीछे कठिन परिश्रम ही रहा है| चाहे न्यूटन और रमन जैसे वैज्ञानिक हो या शेक्सपीयर और टैगोर जैसे कवि; रॉकफेलर और बिरला जैसे व्यापारी हो या लिंकन और गांधी जैसे नेता; सभी ने अपने-अपने क्षेत्र में कठोर संघर्ष तथा अथक परिश्रम किया है|

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) कौन-सा राष्ट्र अवश्य प्रगति करता है|
उत्तर– जिस देश के लोग दृढ़ संकल्प एवं परिश्रम के साथ अपने कार्य में लगे रहते हैं, वह राष्ट्र अवश्य ही प्रगति एवं उन्नति करता है|

(ख) परिश्रमी और आलसी व्यक्ति के बीच क्या अंतर होता है ?
उत्तर– परिश्रमी व्यक्ति विश्वास के साथ मार्ग की बाधाओं को हटाता है| अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है तथा सफल होता है परंतु आलसी व्यक्ति काम से जी चुराता है, इसलिए असफल होकर दीन-हीन बना रहता है|

(ग) संघर्ष एवं परिश्रम द्वारा किन लोगों ने सफलता प्राप्त की ?
उत्तर– न्यूटन एवं रमन जैसे वैज्ञानिकों ने, शेक्सपियर तथा टैगोर जैसे कवियों ने रॉकफेलर था बिरला जैसे व्यापारियों ने, लिंकन तथा गांधीजी जैसे नेताओं ने सफलता के लिए कठोर संघर्ष एवं परिश्रम किया|

(घ) ‘महापुरुष’ शब्द का समास-विग्रह कीजिए और भेद बताइए ?
उत्तर– महान है जो पुरुष – तत्पुरुष समास

(ड़) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए|
उत्तर– परिश्रम का महत्व

04 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

काशी के सेठ गंगादास एक दिन गंगा में स्नान कर रहे थे कि तभी एक व्यक्ति नदी में कूदा और डुबकियाँ खाने लगा। सेठजी तेजी से तैरते हुए उसके पास पहुँचे और किसी तरह खींच कर उसे किनारे ले आए। वह उनका मुनीम नंदलाल था। उन्होंने पूछा, ‘आप को किसने गंगा में फेंका?’ नंदलाल बोला, ‘किसी ने नहीं, मैं तो आत्महत्या करना चाहता था। ‘सेठजी ने इसका कारण पूछा तो उसने कहा, ‘मैंने आप के पाँच हजार रुपये चुरा कर सट्टे में लगाए और हार गया। मैंने सोचा कि आप मुझे जेल भिजवा देंगे इसलिए बदनामी के डर से मैंने मर जाना ही ठीक समझा।‘ कुछ देर तक सोचने के बाद सेठजी ने कहा, ‘तुम्हारा अपराध माफ किया जा सकता है लेकिन एक शर्त है कि आज से कभी किसी प्रकार का सट्टा नहीं लगाओगे।’ नंदलाल ने वचन दिया कि वह अब ऐसे काम नहीं करेगा। सेठ ने कहा, ‘जाओ माफ किया। पाँच हजार रुपये मेरे नाम घरेलू खर्च में डाल देना।’ मुनीम भौंचक्का रह गया। सेठजी ने कहा, ‘तुमने चोरी तो की है लेकिन स्वभाव से तुम चोर नहीं हो। तुमने एक भूल की है, चोरी नहीं। जो आदमी अपनी एक भूल के लिए मरने तक की बात सोच ले, वह कभी चोर हो नहीं सकता।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) सच्चे भक्त से तात्पर्य है-
(1)बिना स्वार्थ के पूजा करना
(2) रोज मंदिर जाना
(3) एक ही भगवान की पूजा करना
(4) अपने धर्म में कट्टरता

उत्तर- (1) बिना स्वार्थ के पूजा करना

(ख) मुनीम आत्महत्या क्यों करना चाहता था-
(1) जीवन से छुटकारा पाने के लिए
(2) सेठजी को प्रभावित करने के लिए
(3) दुनिया को दिखाने के लिए
(4) अपराध बोध होने के कारण

उत्तर-(4) अपराध बोध होने के कारण

(ग) हमें समाज में किस चीज का डर सबसे ज्यादा होता है-
(1) परिवार का
(2) नौकरी का
(3) रुतबे का
(4) बदनामी का

उत्तर- (4) बदनामी का

(घ) सेठजी को मालूम था कि मुनीम चोर है लेकिन फिर उन्होंने उसे छोड़ दिया क्योंकि-
(1) बाद में उसे जीवन भर गुलाम बनाना चाहते थे
(2) भूल सुधारने का मौका देना चाहते थे
(3) दुनिया को प्रभावित करना चाहते थे
(4) समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहते थे

उत्तर- (2) भूल सुधारने का मौका देना चाहते थे

(ङ) गद्यांश का उचित शीर्षक हो सकता है-
(1) ‘चोरी की सजा’
(2) ‘मेरा प्रण’
(3) ‘सेठजी की दयालुता’
(4) ‘मुनीम जी का दुख’

उत्तर- (3) ‘सेठजी की दयालुता’


05 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

जिस प्रकार बीज के उगने और बढ़ने के लिए मौसम विशेष नहीं, अपेक्षित परिस्थितियों का निर्माण जरूरी है। उसी प्रकार किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए बाहरी परिस्थितियाँ नहीं, मन की सकारात्मक वृत्ति अनिवार्य है और वह सकारात्मक वृत्ति है हमारा संकल्प। संकल्पाः कल्पतरवः, तेजः कल्पकोद्यानम्’ अर्थात संकल्प ही कल्पतरु हैं और तेज अथवा मन उन कल्पतरुओं का उद्यान है। जैसी कल्पना वैसा उद्यान अर्थात जीवन की दिशा और दशा। गहन संकल्प से ही संभव है पूर्ण सफलता। कुछ कर गुजरने के लिए वास्तव में मौसम अथवा बाहरी परिस्थितियाँ ही सब कुछ नहीं हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण है मन। इस संपूर्ण सृष्टि के सृजन के मूल में मन ही तो है। मन हीवह अदृश्य सूक्ष्म बीज अथवा सत्ता है जिससे यह पृथ्वी रूपी विशाल वट वृक्ष अस्तित्व में आया और निंरतर पल्लवित-पुष्पित हो रहा है। तभी तो कहा गया है। कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए। साधन सभी जुट जाएँगे संकल्प का धन चाहिए।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) जीवन में कुछ कर गुज़रने के लिए आवश्यक है-
(1) मन और मौसम
(2) मन
(3) अनुकुल परिस्थितियाँ
(4) मौसम

उत्तर- (2) मन

(ख) कार्य में सफलता के लिए अनिवार्य है-
(1) परिस्थितियाँ
(2) लोगों की सहायता
(3) सकारात्मक वृत्ति
(4) पर्याप्त ज्ञान

उत्तर- (3) सकारात्मक वृत्ति

(ग) बीज के उगने और बढ़ने के लिए ज़रूरी है-
(1) अपेक्षित परिस्थितियाँ
(2) मौसम विशेष
(3) किसान का कुशल होना
(4) उपर्युक्त सभी

उत्तर- (1) अपेक्षित परिस्थितियाँ

(घ) हमारी सकारात्मक वृत्ति है-
(1) साहस
(2) विवेक
(3) बुद्धि
(4) संकल्प

उत्तर- (4) संकल्प

(घ) गद्यांश का उचित शीर्षक हो सकता है-
(1) संकल्प का धन
(2) धन का महत्त्व
(3) कर्मठता
(4) बीज की कथा

उत्तर- (1) संकल्प का धन


06 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

देना ही देवता की वास्तविक विशेषता है। असहाय व्यक्ति का शोषण करने वाला किसी को केवल दुःख दे सकता है। देने का काम वही कर सकता है जो स्वयं भी परिपूर्ण होता है। देवता स्वयं को भी देता है और दूसरों को भी। जिसने स्वयं को न दिया, वह दूसरों को क्या देगा? हम लोग अक्सर कहते हैं कंजूस किसी को कुछ नहीं देता। यह बात ठीक नहीं है कि कृपण दूसरे को नहीं देता, पर देता है? वह दीन-हीन की तरह रहता है और उसी तरह मर भी जाता है। देने से किसी व्यक्ति की सम्पन्नता सार्थक होती है। धन की तीन गतियाँ होती हैं-उपभोग, दान और नाश। जिसने धन का उपभोग नहीं किया, दान नहीं किया, उसके धन के लिए एक ही गति बचती है-नाश। घूस और अनैतिक ढंग से हड़पकर दूसरों के धन से घर भरने वालों का यही अन्त होता है। सत्ता, व्यापार, राजनीति में इस प्रकार के सफेदपोश लुटेरे छुपे हुए हैं। जो हम अर्जित करते हैं, वह हमारा जीवन है। धन हमारे जीवन का केन्द्र नहीं है। धन एक संसाधन है, जिससे हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं। धन एक सहायक-सामग्री है, जिससे हम जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। धन का काम है कि वह हमें सुख दे। यह सुख हमें तीन क्रियाओं से मिलता है-धन के अर्जन से, धन के उपभोग से और धन के दान से। इन तीन क्रियाओं से धन हमारी सेवा करता है। बाकी क्रियाओं से हम धन की सेवा करते हैं। कंजूस धन को बचा लेते हैं। अपव्ययी उसे उड़ा देते हैं, लाला उसे उधार देते हैं। चोर उसे चुरा लेते हैं, धनी उसे बढ़ा देते हैं, जुआरी उसे आँवा देते हैं और मरने वाले उसे पीछे छोड़ जाते हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) देवता की वास्तविक विशेषता क्या है?
उत्तर– देवता की वास्तविक विशेषता देना है। वह स्वयं को भी देता है और दूसरों को भी।

(ख) कंजूस का जीवन कैसा होता है?
उत्तर– कंजूस किसी को कुछ नहीं देता और स्वयं को भी कुछ नहीं देता है।

(ग) धन की कितनी गतियाँ होती हैं?
उत्तर– धन की तीन गतियाँ होती हैं-उपभोग, दान और नाश।

(घ) किस धन का नाश होता है?
उत्तर– जिस धन का उपभोग नहीं होता और न ही दान दिया जाता है उस धन का नाश होता है।

(ड़) हमें सुख कैसे मिलता है?
उत्तर– हमें सुख तीन क्रियाओं से मिलता है-धन के अर्जन से, धन के उपभोग से और धन के दान से।


07 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

परियोजना शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। इसे तैयार करने में किसी खेल की तरह का ही आनंद मिलता है। इस तरह परियोजना तैयार करने का अर्थ है-खेल-खेल में बहुत कुछ सीख जाना। यदि आपको कहा जाए कि दशहरा पर निबंध लिखिए, तो आपको शायद उतना आनंद नहीं आएगा। लेकिन यदि आपसे कहा जाए कि अखबारों में प्राप्त जानकारियों के अलावा भी आपको देश-दुनिया की बहुत सारी जानकारियाँ प्रदान करती है। यह आपको तथ्यों को जुटाने तथा उन पर विचार करने का अवसर प्रदान करती है। इससे आप में नए-नए तथ्यों के कौशल का विकास होता है। इससे आपमें एकाग्रता का विकास होता है। लेखन संबंधी नई-नई शैलियों का विकास होता है।

आपमें चिंतन करने तथा किसी पूर्व घटना से वर्तमान घटना को जोड़कर देखने की शक्ति का विकास होता है। परियोजना कई प्रकार से तैयार की जा सकती है। हर व्यक्ति इसे अलग ढंग से, अपने तरीके से तैयार कर सकता है। ठीक उसी प्रकार जैसे हर व्यक्ति का बातचीत करने का, रहने का, खाने-पीने का अपना अलग तरीका होता है। ऐसा निबंध, कहानी कविता लिखते या चित्र बनाते समय भी होता है। लेकिन ऊपर कही गई बातों के आधार पर यहाँ हम परियोजना को मोटे तोर पर दो भागों में बाँट सकते हैं-एक तो वे परियोजनाएँ, जो समस्याओं के निदान के लिए तैयार की जाती हैं और दूसरी , जो किसी विषय की समुचित जानकारी प्रदान करने के लिए तैयार की जाती है।

समस्याओं के निदान के लिए तैयार की जाने वाली परियोजनाओं में संबंधित समस्या से जुड़े सभी तथ्यों पर प्रकाश डाला जाता है और उस समस्या के निदान के लिए भी दिए जाते हैं। इस तरह की परियोजनाएँ प्रायः सरकार अथवा संगठनों द्वारा किसी समस्या पर कार्य – योजना तैयार करते समय बनाई जाती हैं। इससे उस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करने में आसानी हो जाती है। किंतु दूसरे प्रकार की परियोजना को आप आसानी से तैयार कर सकते हैं। इसे ‘शैक्षिक परियोजना’ भी कहा जाता है। इस तरह की परियोजनाएँ तैयार करते समय आप संबंधित विषय पर तो को जुटाते हुए बहुत सारी नई-नई बातों से अपने-आप परिचित भी होते हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर– शीर्षक- परियोजना का शिक्षा में महत्त्व

(ख) परियोजना क्या है? इसका क्या महत्व है?
उत्तर– गद्यांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि परियोजना नियमित एवं व्यवस्थित रूप से स्थिर किया गया विचार एवं स्वरूप है। इसके द्वारा खेल खेल में ज्ञानार्जन तथा समस्या समाधान आदि की तैयारी की जाती है।

(ग) शैक्षिक परियोजना क्या है?
उत्तर– शैक्षिक परियोजना में संबंधित विषय पर तर्यों को जुटाते हुए, चित्र इकट्ठे करके एक स्थान पर चिपकाए जाते हैं। इनसे नईनई बातों की जानकारी दी जाती है।

(घ) परियोजना हमें क्या-क्या प्रदान करती है?
उत्तर– परियोजना हमें हमारी समस्याओं का निदान प्रदान करती है तथा देश-दुनिया की बहुत सारी जानकारियाँ प्रदान करती है। साथ ही-साथ यह हमको नए-नए तथ्यों को जुटाने तथा उन पर विचार करने का अवसर भी प्रदान करती है।

(ड) परियोजना किस प्रकार तैयार की जा सकती है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर– परियोजना कई प्रकार से तैयार की जाती है। हर व्यक्ति इसे अपने ढंग से तैयार कर सकता है। परियोजनाएँ दो प्रकार की होती हैं।
समस्या का निदान करने वाली परियोजना, तथा
विषय की समुचित जानकारी देने वाली परियोजना।

(च) समस्या का निदान करने वाली परियोजना केसी होनी चाहिए?
उत्तर– समस्या का निदान करने वाली परियोजना में संबंधित समस्या से जुड़े सभी तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहिए और समस्या-निदान के सुझाव भी दिए जाने चाहिए।


08 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

डॉ. कलाम दृढ़ इच्छाशक्ति वाले वैज्ञानिक थे। वे भारत को विकसित देश बनाने का सपना संजोए हुए थे। उनका मानना था कि भारतवासियों को व्यापक दृष्टि से सोचना चाहिए। हमें सपने देखने चाहिए। सपनों को विचारों में बदलना चाहिए। विचारों को कार्यवाही के माध्यम से हकीकत में बदलना चाहिए। डॉ. कलाम तीसरे ऐसे वैज्ञानिक हैं, जिन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया। उन्हें ‘पद्मभूषम’ तथा ‘पद्मविभूष्ण’ से भी सम्मानित किया गया। भारत को उन पर गर्व है। इतनी उपलब्धियाँ प्राप्त करने के बावजूद अहंकार कलाम जी को छू तक नहीं पाया। वे सहज स्वभाव के एक भावुक व्यक्ति थे। उन्हें कविताएँ लिखना, वीणा बजाना तथा बच्चों के साथ रहना पसंद था। वे सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे। कलाम साहब का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। कलाम जी तपस्या और कर्म ठता की प्रतिमूर्ति हैं। राष्ट्रपति पड़ की शपथ लेते समय दिए गए भाषण में उन्होंने कबीरदास जी के इस दोहे का उल्लेख किया था – ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब’।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) डॉ. कलाम ने भारत को क्या बनाने का सपना देखा है?
(1) अल्प विकसित देश
(2) विकसित देश
(3) निर्मित देश
(4) विकासशील देश

(ख) डॉ. कलाम किस प्रवृत्ति के व्यक्ति थे?
(1) असहज
(2) दयालु
(3) भावुक
(4) क्रूर

(ग) डॉ. कलाम एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले _______ थे?
(1) वैज्ञानिक
(2) कलाकार
(3) साहित्यकार
(4) इनमें से कोई नहीं

(घ) डॉ. कलाम को क्या – क्या बेहद पसंद था?

(ड़) डॉ. कलाम को किन-किन सम्मानों से सम्मानित किया गया?

(च) डॉ. कलाम की तरह आप भारत को आगे बढ़ाने के लिए क्या प्रयास करेंगे।


09 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

वैदिक युग भारत का प्राय: सबसे अधिक स्वाभाविक काल था। यही कारण है कि आज तक भारत का मन उस काल की ओर बार-बार लोभ से देखता है। वैदिक आर्य अपने युग को स्वर्णकाल कहते थे या नहीं, यह हम नहीं जानते किंतु उनका समय हमें स्वर्णकाल के समान अवश्य दिखाई देता है। लेकिन जब बौद्ध युग का आरंभ हुआ, वैदिक समाज की पोल खुलने लगी और चिंतकों के बीच उसकी आलोचना आरंभ हो गई। बौद्ध युग अनेक दृष्टियों से आज के आधुनिक आदोलन के समान था। ब्राहमणों की श्रेष्ठता के विरुद्ध बुद्ध ने विद्रोह का प्रचार किया था, बुद्ध जाति प्रथा के विरोधी थे और वे मनुष्य को जन्मना नहीं कर्मणा श्रेष्ठ या अधम मानते थे।

नारियों को भिक्षुणी होने का अधिकार देकर उन्होंने यह बताया था कि मोक्ष केवल पुरुषों के ही निमित्त नहीं है, उसकी अधिकारिणी नारियाँ भी हो सकती हैं। बुद्ध की ये सारी बातें भारत को याद रही हैं और बुद्ध के समय से बराबर इस देश में ऐसे लोग उत्पन्न होते रहे हैं. जो जाति- प्रधा के विरोधी थे, जो मनुष्य को जन्मना नहीं, कर्मणा श्रेष्ठ या अधम समझते थे। किंतु बुद्ध में आधुनिकता से बेमेल बात यह थी कि वे निवृत्तिवादी थे, गृहस्थी के कर्म से वे भिक्षु-धर्म को श्रेष्ठ समझते थे।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) वैदिक युग स्वर्णकाल के समान क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर– वैदिक युग भारत का स्वाभाविक काल था। हमें प्राचीन काल की हर चीज अच्छी लगती है। इस कारण वैदिक युग स्वर्णकाल के समान प्रतीत होता है।

(ख) जाति-प्रथा एवं नारियों के विषय में बुद्ध के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– बुद्ध जाति-प्रथा के विरुद्ध थे। उन्होंने ब्राहमणों की श्रेष्ठता का विरोध किया। मनुष्य को वे कर्म के अनुसार श्रेष्ठ या अधम मानते थे। उन्होंने नारी को मोक्ष की अधिकारिणी माना।

(ग) बुद्ध पर क्या आरोप लगता है और उनकी कौन-सी बात आधुनिकता के प्रसंग में ठीक नहीं बैठती?
उत्तर– बुद्ध पर निवृत्तिवादी होने का आरोप लगता है। उनकी गृहस्थ धर्म को भिक्षु धर्म से निकृष्ट मानने वाली बात आधुनिकता के प्रसंग में ठीक नहीं बैठती।

(घ) संन्यास का अर्थ स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि इससे समाज को क्या हानि पहुँचती है।
उत्तर– संन्यास’ शब्द ‘सम् + न्यास’ शब्द से मिलकर बना है। सम्’ यानी ‘अच्छी तरह से और न्यास यानी ‘त्याग करना। अर्थात अच्छी तरह से त्याग करने को ही संन्यास कहा जाता है। संन्यास की संस्था से देश का युवा वर्ग उत्पादक कार्य में भाग नहीं लेता। इससे समाज की व्यवस्था खराब हो जाती है।

(ड) बौद्ध युग का उदय वैदिक समाज के शीर्ष पर बैठे लोगों के लिए किस प्रकार हानिकारक था?
उत्तर– बौद्ध युग का उदय वैदिक युग की कमियों के प्रतिक्रियास्वरूप हुआ था। वस्तुतः वैदिक युगीन समाज के शीर्ष पर ब्राहमण वर्ग के कुछ स्वार्थी लोग विराजमान थे। ये लोग जन्म के आधार पर अपने-आप को श्रेष्ठ मानते थे और शेष समाज को भी श्रेष्ठ मानने के लिए मजबूर करते थे। ऐसे में बौद्ध धर्म के सिद्धांत शोषित समाज धात अधिकार देकर यह सिद्ध किया कि मोक्ष केवल पुरुषों के ही निमित्त नहीं है। इस पर नारियों का भी हक है। यह नारियों को समता का अधिकार दिलाने में काफी प्रभावी कदम साबित हुआ।


10 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

परोपकार-कैसा महत्त्वपूर्ण धर्म है। प्राणिपात्र के जीवन का तो यह लक्ष्य होना चाहिए। यदि विचारपूर्वक देखा जाए तो ज्ञात होगा कि प्रकृति के सारे कार्य परोपकार के लिए ही हैं नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीतीं। पेड़ स्वयं अपने फल नहीं खाते। गुलाब का फूल अपने लिए सुगन्ध नहीं रखता। वे सब दूसरों के हितार्थ हैं। महात्मा गांधी और अन्य महात्माओं का मत है कि परोपकार ही करना चाहिए, किंतु परोपकार निष्काम हो। यदि परोपकार किसी प्रत्युपकार की आशा से किया जाता है, तो उसका महत्त्व क्षीण हो जाता है।

भारत का प्राचीन इतिहास दया और परोपकार के उदाहरणों से भरा है। राजा शिवि ने कपोल की रक्षा के लिए अपने प्राण देने तक का संकल्प कर लिया था। परोपकार का इससे ज्वलंत उदाहरण और कौन-सा मिल सकता है? चाहे जो हो, परोपकार आदर्श गुण है। हमें परोपकारी बनना चाहिए।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) इस गद्यांश का मूल भाव बताइए।
उत्तर– परोपकार महत्त्वपूर्ण धर्म है। यह प्राणिमात्र के जीवन का परम उद्देश्य होना चाहिए। प्रकृति के सारे कार्य परोपकार के लिए ही हैं। सभी महात्मा जन-जीवन में इसके महत्त्व की आवश्यकता का अनुभव रते हैं। पर यह होना कामना रहित चाहिए। भारत के प्राचीन इतिहास में अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। अतः हमें यह परोपकार अवश्य करना चाहिए।

(ख) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर– इस गद्यांश का शीर्षक ‘परोपकार’ है।

(ग) प्राणिमात्र के जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए?
उत्तर– प्राणिमात्र के जीवन का एकमात्र उद्देश्य परोपकारी बनना होना चाहिए।

(घ) महात्मा गांधी जैसे महात्माओं ने परोपकार के सम्बन्ध में क्या मत व्यक्त किया है?
उत्तर– महात्मा गांधी जैसे महात्माओं ने कहा है कि मानव को परोपकार अवश्य करना चाहिए। परंतु यह निष्काम भावना से सम्पादित होना चाहिए। यदि परोपकार बदले की भावना से किया जाता है, तो उसका महत्त्व क्षीण हो जाता है।

(ङ) हमें कैसा बनना चाहिए?
उत्तर– हमें परोपकारी बनना चाहिए।


11 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

राष्ट्रीय एकता प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए नितान्त आवश्यक है। जब भी धार्मिक या जातीय आधार पर राष्ट्र से अलग होने की कोशिश होती है, हमारी राष्ट्रीय एकता के खण्डित होने का खतरा बढ़ जाता है। यह एक सुनिश्चित सत्य है कि राष्ट्र का स्वरूप निर्धारित करने में वहाँ निवास करने वाले जन एक अनिवार्य तत्व होते हैं। भावात्मक स्तर पर स्नेह सम्बन्ध सहिष्णुता, पारस्परिक सहयोग एवं उदार मनोवृत्ति के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति होती है। राष्ट्र को केवल भूखण्ड मानकर उसके प्रति अपने कर्तव्यों से उदासीन होने वाले जन राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में कदापि सहायक नहीं हो सकते। वस्तुतः राष्ट्रीय एकता को व्यवहार में अवतरित करके ही राष्ट्र के निवासी अपने राष्ट्र की उन्नति और प्रगति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त (सटीक) शीर्षक लिखिए।
उत्तर– उपर्युक्त शीर्षक–’राष्ट्रीय एकता’।

(ख) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर– किसी देश की स्वतन्त्रता एकता के द्वारा ही स्थायी रह सकती है। राष्ट्रीय एकता का मूलाधार वहाँ निवास करने वाले लोगों के उत्तम संस्कार एवं श्रेष्ठ विचार हैं। राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रत्येक मानव को सहगामी बनाना चाहिए।

(ग) राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा कब उत्पन्न होता है?
उत्तर– राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उस समय उत्पन्न होता है, जब धर्म एवं जाति को माध्यम बनाकर राष्ट्र से पृथक् होने की कोशिश की जाती है।

(घ) विलोम शब्द बताइए-एकता, उदार।
उत्तर– अनेकता, अनुदार।

(ङ) ‘उन्नति’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर– देश की उन्नति’ प्रत्येक नागरिक के चारित्रिक गुणों के विकास पर निर्भर हैं।


12 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

समाजवाद एक सुन्दर शब्द है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, समाजवाद में समाज के सारे सदस्य बराबर होते हैं, न कोई नीचा और न कोई ऊँचा। किसी आदमी के शरीर में सिर इसलिए ऊँचा नहीं है कि वह सबसे ऊपर है और पाँव के तलवे इसलिए नीचे नहीं हैं कि वे जमीन को छूते हैं। जिस तरह मनुष्य के शरीर के सारे अंग बराबर हैं उसी प्रकार समाज में सभी मनुष्य समान हैं; यही समाजवाद है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित (सटीक) शीर्षक दीजिए।
उत्तर– शीर्षक-‘समाजवाद’।

(ख) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर– समाजवाद की व्यवस्था आदमी के शरीर की भाँति है। जहाँ समाज के सारे सदस्य एक बराबर होते हैं न कोई नीचा और न कोई ऊँचा।

(ग) समाजवाद में महत्त्व की बात क्या है?
उत्तर– समाजवाद में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समाज के सारे सदस्य बराबर होते हैं।

(घ) विलोम शब्द बताइए-छूते हैं, नीचा।
उत्तर– अछूते हैं, ऊँचा।

(ङ) ‘सदस्य’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर– घर के सदस्य मिलकर अपने-अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हैं।


13 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

हर राष्ट्र को अपने सामान्य काम-काज एवं राष्ट्रव्यापी व्यवहार के लिए किसी एक भाषा को अपनाना होता है। राष्ट्र की कोई एक भाषा स्वाभाविक विकास और विस्तार करती हुई अधिकांश जन-समूह के विचार-विनिमय और व्यवहार का माध्यम बन जाती है। इसी भाषा को वह राष्ट्र, राष्ट्रभाषा का दर्जा देकर, उस पर शासन की स्वीकृति की मुहर लगा देता है। हर राष्ट्र की प्रशासकीय-सुविधा तथा राष्ट्रीय एकता और गौरव के निमित्त एक राष्ट्रभाषा का होना परम आवश्यक होता है। सरकारी काम-काज की केन्द्रीय भाषा के रूप में यदि एक भाषा स्वीकृत न होगी तो प्रशासन में नित्य ही व्यावहारिक कठिनाइयाँ आयेंगी। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में भी राष्ट्र की निजी भाषा का होना गौरव की बात होती है। एक राष्ट्रभाषा के लिए सर्वप्रथम गुण है-

उसकी व्यापकता’। राष्ट्र के अधिकांश जन-समुदाय द्वारा वह बोली तथा समझी जाती हो। दूसरा गुण है- ‘उसकी समृद्धता’। वह संस्कृति, धर्म, दर्शन, साहित्य एवं विज्ञान आदि विषयों को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य रखती हो। उसका शब्दकोष व्यापक और विशाल हो और उसमें समयानुकूल विकास की सामर्थ्य हो। यदि निष्पक्ष दृष्टि से विचार किया जाए तो हिन्दी को ये सभी योग्यताएँ प्राप्त हैं। अत: हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा होने की सभी योग्यताएँ रखती है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर– गद्यांश का शीर्षक है- ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी’।

(ख) राष्ट्रभाषा की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर– राष्ट्र की प्रशासकीय सुविधा, राष्ट्रीय एकता एवं गौरव के लिए राष्ट्रभाषा आवश्यक होती है।

(ग) राष्ट्रभाषा का आविर्भाव कैसे होता है ?
उत्तर– जब कोई भाषा अधिकांश जन-समूह के विचार-विनिमय और व्यवहार का माध्यम बन जाती है तब इस भाषा को शासन द्वारा राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाता है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा का आविर्भाव होता है।

(घ) एक राष्ट्रभाषा न होने से क्या कठिनाई होती है ?
उत्तर– एक राष्ट्रभाषा न होने से प्रशासनिक कार्य, शिक्षा, व्यवसाय और जन-सम्पर्क में बाधा पड़ती है।

(ङ) ‘विज्ञान’ शब्द किस शब्द और उपसर्ग से बना है ?
उत्तर– ‘विज्ञान’ शब्द ‘ज्ञान’ शब्द में ‘वि’ उपसर्ग लगाकर बना है।


14 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

प्राचीन काल में जब धर्म – मजहबे समस्त जीवन को प्रभावित करता था, तब संस्कृति के बनाने में उसका भी हाथ था; किन्तु धर्म के अतिरिक्त अन्य कारण भी सांस्कृतिक-निर्माण में सहायक होते. थे। आज मजहब का प्रभाव बहुत कम हो गया है। अन्य विचार जैसे राष्ट्रीयता आदि उसका स्थान ले रहे हैं। राष्ट्रीयता की भावना तो मजहबों से ऊपर है। हमारे देश में दुर्भाग्य से लोग संस्कृति को धर्म से अलग नहीं करते हैं.। इसका कारण अज्ञान और हमारी संकीर्णता है। हम पर्याप्त मात्रा में जागरूक नहीं हैं।

हमको नहीं मालूम है कि कौन-कौन-सी शक्तियाँ काम कर रही हैं और इसका विवेचन भी ठीक से नहीं कर पाते कि कौन-सी मार्ग सही है? इतिहास बताता है कि वही देश पतनोन्मुख हैं जो युग-धर्म की उपेक्षा करते हैं और परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हैं। परन्तु हम आज भी अपनी आँखें नहीं खोल पा रहे हैं। परिवर्तन का यह अर्थ कदापि नहीं है कि अतीत की सर्वथा उपेक्षा की जाए। ऐसा हो भी नहीं सकता। अतीत के वे अंश जो उत्कृष्ट और जीवन-प्रद हैं उनकी तो रक्षा करनी ही है; किन्तु नये मूल्यों को हमको स्वागत करना होगा तथा वह आचार-विचार जो युग के लिए अनुपयुक्त और हानिकारक हैं, उनका परित्याग भी करना होगा।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) मजहब का स्थान अब कौन ले रहा है ?
उत्तर– मजहब का स्थान अब राष्ट्रीयता आदि विचार ले रहे हैं।

(ख) हमारे देश में संस्कृति और धर्म को लेकर क्या भ्रम
उत्तर– हमारे देश में संस्कृति और धर्म को एक ही समझा जाता है, जो भ्रम है।

(ग) इतिहास के अनुसार कौन-से देश पतन की ओर जाते
उत्तर– जो देश समय के अनुसार स्वयं को नहीं बदलते हैं, उनका पतन हो जाता है।

(घ) गद्यांश को उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर– उपयुक्त शीर्षक – धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीयता।

(ङ) उपेक्षा’ का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर– विलोम शब्द – उपेक्षा-अपेक्षा।


15 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

कर्म के मार्ग पर आनंदपूर्वक चलता हुआ उत्साही मनुष्य यदि अंतिम फल तक न पहुँचे तो भी उसकी दशा कर्म न करने वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्मकाल में उसका जीवन बीता, वह संतोष या आनंद में बीता, उसके उपरांत फल की अप्राप्ति पर भी उसे यह पछतावा न रहा कि मैंने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ नहीं होता। अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। बुद्धि द्वारा पूर्ण रूप से निश्चित की हुई व्यापार परंपरा का नाम ही प्रयत्न है। किसी मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है। वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला ला कर रोगी को देता जाता है और इधर-उधर दौड धप करता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है- प्रत्येक नये उपचार के साथ जो आनन्द का उन्मेष होता रहता है यह उसे कदापि न प्राप्त होता, यदि वह रोता हुआ बैठा रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में बीता, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश केवल शोक और दुःख में कटता। इसके अतिरिक्त रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्मग्लानि के उस कठोर दुःख से बचा रहेगा जो उसे जीवन भर यह सोच-सोचकर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।

कर्म में आनंद अनुभव करने वालों ही का नाम कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप लगते हैं। अत्याचार का दमन और क्लेश का शमन करते हुए चित्त में जो उल्लास और पुष्टि होती है वही लोकोपकारी कर्म-वीर का सच्चा सुख है। उसके लिए सुख तब तक के लिए रुका नहीं रहता जब तक कि फल प्राप्त न हो जाये, बल्कि उसी समय से थोड़ा-थोड़ा करके मिलने लगता है जब से वह कर्म की ओर हाथ बढ़ाता है।

कभी-कभी आनंद का मूल विषय तो कुछ और रहता है, पर उस आनंद के कारण एक ऐसी स्फूर्ति उत्पन्न होती है। जो बहुत से कामों की ओर हर्ष के साथ अग्रसर रहती है। इसी प्रसन्नता और तत्परता को देख लोग कहते हैं कि वे अपना काम बड़े उत्साह से किए जा रहे हैं। यदि किसी मनुष्य को बहुत-सा लाभ हो जाता है या उसकी कोई बड़ी भारी कामना पूर्ण हो जाती है तो जो काम उसके सामने आते हैं उन सबको वह बड़े हर्ष और तत्परता के साथ करता है। उसके इस हर्प और तत्परता को भी लोग उत्साह ही कहते हैं। इसी प्रकार किसी उत्तम फल या सख-प्राप्ति को आशा या निश्चय से उत्पन्न आनंद, फलोन्मुख प्रयत्नों के अतिरिक्त और दूसरे व्यापारों के साथ संलग्न होकर, उत्साह के रूप में दिखाई पड़ता है। यदि हम किसी ऐसे उद्योग में लगे हैं जिससे आगे चलकर हमें बहुत लाभ या सुख की । आशा है तो हम उस उद्योग को तो उत्साह के साथ करते ही हैं, अन्य कार्यों में भी प्रायः अपना उत्साह दिखा देते हैं।

यह बात उत्साह में नहीं अन्य मनोविकारों में भी बराबर पाई जाती है। यदि हम किसी बात पर क्रुद्ध बैठे हैं और इसी बीच में कोई दूसरा आकर हमसे कोई बात सीधी तरह भी पूछता है, तो भी हम उस पर झुझला उठते हैं। इस झुंझलाहट का न तो कोई निर्दिष्ट कारण होता है, न उद्देश्य। यह केवल क्रोध की स्थिति के _व्याघात को रोकने की क्रिया है, क्रोध की रक्षा का प्रयत्न है। इस झुंझलाहट द्वारा हम यह प्रकट करते हैं कि हम क्रोध में है और क्रोध में ही रहना चाहते हैं। क्रोध को बनाये रखने के लिए हम उन बातों में भी क्रोध ही संचित करते हैं जिनसे दूसरी अवस्था में हम विपरीत भाव प्राप्त करते इसी प्रकार यदि हमारा चित्त किसी विषय में उत्साहित रहता है तो हम अन्य विषय में भी अपना उत्साह दिखा देते हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर– शीर्षक : “कर्मवीर” ।

(ख) फल क्या है?
उत्तर– अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। यही फल का आधार होती है।

(ग) कर्मण्य किसे कहते हैं?
उत्तर– कर्म में आनन्द अनुभव करने वालों का ही नाम कर्मण्य है।

(घ) मनुष्य को कौन कर्म की ओर अग्रसर कराती है?
उत्तर– ‘स्फूर्ति’ मनुष्य को कर्म की ओर अग्रसर कराती है।

(ङ) हम प्रायः उत्साह कब प्रकट करते हैं?
उत्तर– हमारे अन्दर जब आनन्द के कारण स्फूर्ति उत्पन्न होती है तो हम अपना कार्य प्रसन्नता और तत्परता से करते हैं। इसमें हमारा उत्साह प्रकट होता है।

(च) उत्साह में झुंझलाहट क्या है?
उत्तर– जिस प्रकार उत्साह एक मनोदशा है उसी प्रकार झुंझलाहट भी एक मनोदशा ही है।

(छ)उत्साही मनष्य किस मार्ग पर चलता है?
उत्तर– उत्साही मनुष्य उस मार्ग पर चलता है जिस पर उसे लाभ हो। हर्ष और तत्परता से वह उस मार्ग का अनुसरण करता है।

जिस राष्ट्र के लोग दृढ़ संकल्प और परिश्रम पूर्वक कर्म में लीन हैं उन्हें क्या लाभ है? - jis raashtr ke log drdh sankalp aur parishram poorvak karm mein leen hain unhen kya laabh hai?

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Answer: In the Exam, you will be given a small part of any story and you need to answer them to score good marks in your score.So firstly understand what question is being asked.Then,go to passage and try to find the clue for your question.Read all the alternative very carefully .Do not write the answer until you feel that you have selected the correct answer.

Q.2: What precaution should we take before writing the answer in the unseen passage for class 9 ?


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Q.3: How do we score high marks in the unseen passage for class 9?


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