जायद की कौन कौन सी फसलें होती हैं? - jaayad kee kaun kaun see phasalen hotee hain?

दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यहां पर मुख्य रूप से तीन फसले पाई जाती है| रबी की फसल, खरीफ की फसल और जायद की फसल| लेकिन आज के इस आर्टिकल में हम जायद की फसल किसे कहते हैं| इसके विषय में पूरी जानकारी विस्तार से जानने वाले हैं| जैसे : Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai, जायद की फसल कब बोई जाती है आदि|

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Contents

  • 1 जायद की फसल किसे कहते हैं | Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai
  • 2 जायद की फसल (Zaid Crops) कौन कौन सी है?
  • 3 Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai (FAQ)
  • 4 निष्कर्ष
  • 5 इसे भी पढ़ें

जायद की फसल किसे कहते हैं | Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai

जायद फसलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएं सहन करने की अच्छी क्षमता पाई जाती है| जायद फसलें खरीफ फसल और रबी फसल से ज्यादा तेज गर्मी और शुष्क हवाओं को सहन कर सकती हैं| उत्तर भारत में जायद फसलें मार्च अप्रैल में बोई जाती है|

जायद की फसल (Zaid Crops) कौन कौन सी है?

जायद फसल के अंतर्गत नीचे दी गई मुख्यत: निम्नलिखित फसले आती हैं| जो इस प्रकार है-

मूंगफली

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यह फसल भारत की मुख्यता तिलहनी फसल है, जो गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्य में सबसे अधिक उगाई जाती है| अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी दोमट व बलुई दोमट मिट्टी में मूंगफली की फसल काफी अच्छी होती है| उत्तर भारत में समानता मूंगफली की फसल 15 जून से 15 जुलाई के मध्य बो दी जाती है| मूंगफली की फसल लगभग 115 से 120 दिन में तैयार हो जाती है| मूंगफली की फसल के लिए सड़ी गोबर की खाद काफी फायदेमंद होती है| मूंगफली की किस्में : गिरनार-2, राज मूंगफली-3, राज दुर्गा (RG-425), टी. जी. – 37 ए, गिरनार-4 और गिरनार-5 अच्छी किस्म की फसलें मानी जाती है|

उड़द

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उड़द की फसल एक उष्णकटिबंधीय फसल होता है, इसलिए इस फसल की बुवाई के लिए आद्र एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है| उड़द की खेती के लिए समुचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि की आवश्यकता होती है| उड़द की उन्नत किस्में : टी-9, पंत यु-19, पंत यु-30, जे.वाई.पी., यु. जी.-218 आदि किस्में हैं| उड़द की फसल को बसंत ऋतु के फरवरी-मार्च में तथा खरीफ ऋतु के जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह तक बो दिया जाता है| प्रति हेक्टेयर मिश्रित फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम उड़द की बीज बोई जाती हैं| उड़द की फसल लगभग 70 से 90 दिन में तैयार हो जाती है|

सूरजमुखी

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भारत में पहली बार सूरजमुखी की खेती 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी| यह एक तिलहनी फसल है, जिसे खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजनों में उगाया जा सकता है| जिस स्थान पर पानी निकास का अच्छा प्रबंध हो, वहां पर सूरजमुखी की खेती अच्छी होती है| सूरजमुखी की फसल को फरवरी के प्रथम सप्ताह से लेकर फरवरी के मध्य तक बोया जाता है| सूरजमुखी की खेती के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद बहुत ही लाभदायक माना जाता है| भारत में लगभग 15 लाख हेक्टेयर भूमि में सूरजमुखी की खेती की जाती है जिन से 9000000 टन का उत्पादन होता है|

मक्का

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भारत में मुख्यता आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में मक्के की खेती की जाती है| मक्के में होने वाला भुट्टा खाया जाता है, जबकि बचा शेष फसल को मुर्गी और पशु को आहार दिया जाता है| मक्के का फसल खरीफ, रबी, जायद तीनों मौसमों में बो सकते हैं| मक्के की खेती के लिए फरवरी से मार्च का महीना उचित माना जाता है|

चना

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भारत में चने की खेती 7.54 मिलियन हेक्टेयर भूमि में की जाती है, जो कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र राज्य में होती है| मध्य प्रदेश चने का अत्यधिक उत्पादन करने वाला राज्य है| दोमट मिट्टी से मटियार मिट्टी में चने की खेती अच्छी होती है| चना की कई किस्में पाई जाती है जैसे : इंदिरा चना -1, वैभव, ग्वालियर-2, उज्जैन-24, जे.जी.-315, विजय आदि| अगर चने की पैदावार अच्छी है, तो एक हेक्टेयर भूमि पर 20-25 क्विंटल दाना एवं इतना ही भूसा प्राप्त होता है| सितंबर के आखिरी सप्ताह एवं अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में चने की बुवाई का उचित समय होता है|

जूट

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भारत के बिहार, उड़ीसा, बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम अथवा कुछ तराई भागों में जूट की खेती अच्छी होती है| भारत में जूट के उत्पादन का कुल 67% भारत में खपत होता है, 7% किसानों के पास रहता है और बाकी का 30% अमेरिका, संयुक्त राज्य, फ्रांस, इटली, जर्मनी, बेल्जियम, ब्रिटेन को निर्यात किया जाता है| गरम और नम जलवायु जूट की खेती के लिए सही जलवायु माना जाता है| जूट की रेशों से पैकिंग के कपड़े, बोरे, कालीन, पर्दे, घरों की सजावट, दरिया, अस्तर, रसिया आदि बनाई जाती है|

कपास

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विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक भारत माना जाता है| मई महीने में कपास की खेती की जाती है| कपास की खेती में शुरुआती समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस होनी चाहिए, जबकि रातें ठंडी होनी चाहिए| इसके अलावा कपास की खेती के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है| बलुई एवं बलुई दोमट मिट्टी में कपास की खेती का पैदावार काफी अच्छा होता है| कपास की खेती के लिए सबसे उन्नत किस्म की कपास बी.टी. कपास को माना जाता है| कपास की फसल हो जाने के 50 से 60% टिंडे खिलने के बाद 1 जुलाई करनी चाहिए| जबकि शेष टिंडों के खिल जाने के बाद दूसरी चुनाई करनी चाहिए|

हरा चारा

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ज्यादातर दुधारू पशुओं को चारा खिलाने के लिए किसान हरे चारे की खेती करता है| हरे चारे के रूप में जैसे : बरसीम, नेपियर घास, रिजका आदि हैं| हरे चारे के रूप में नेपियर घास लगाने के महज 50 दिनों में तैयार हो जाता है| और यह घास अगले 4 से 5 सालों तक लगातार दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक आहार का काम करता है| हरे चारे के रूप में नेपियर घास पशुओं को खिलाने से दुधारू पशुओं में दूध की वृद्धि होती है, इसके अलावा पशुओं के रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है| अगर नेपियर घास की पैदावार सही होती है, तो एक हेक्टेयर भूमि में कम से कम 300 से 400 क्विंटल घास होता है|

ककड़ी

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जैसा कि आप जानते हैं ककड़ी सलाद के रूप में खाया जाता है, गर्मियों में अधिकांश करके लोग ककड़ी खाना पसंद करते हैं| ककड़ी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है| ककरी की बुवाई के लिए फरवरी मार्च का महीना अनुकूल माना जाता है| गर्मियों में ककड़ी की खेती की सिंचाई कम से कम चार से पांच बार होनी चाहिए| ककड़ी का फसल 60 से 70 दिनों में तैयार हो जाता है|

खरबूजा और तरबूजा

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गर्मियों की छुट्टी में जब खेत 4 महीने के लिए खाली होता है तो इस मौसम में किसान अपने खेत पर खरबूजा और तरबूजा की खेती कर सकते हैं| क्योंकि गर्मियों के मौसम में लोग खरबूजा और तरबूजा खाना काफी पसंद करते हैं इसके अलावा खरबूजे के बीज पर सरकार से 35% का अनुदान मिल जाता है| खरबूजे की कई उन्नत किस्में पाई जाती हैं| जैसे : पूसा शरबती (एस-445), पूसा मधुरस, हरा मधु, पंजाब सुनहरी आदि| हल्की रेतीली बलुई दोमट मिट्टी खरबूजे और तरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है| अगर खरबूजा और तरबूजा की पैदावार अच्छी हुई, तो 1 हेक्टेयर भूमि पर तकरीबन 200 से 250 क्विंटल का उत्पादन होता है| इस हिसाब से अगर बाजार भाव खरबूजा 15 से ₹20 किलो है| तो किसान भाई खरबूजा और तरबूजा की फसल से बड़े आराम से 3 से 4 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं|

टिण्डा

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टिंडा उत्तरी भारतीयों के लिए गर्मी की महत्वपूर्ण सब्जी मानी जाती है| उच्च जैविक तत्व वाली रेतीली दोमट मिट्टी में टिंडा की फसल की पैदावार काफी अच्छी होती है| टिंडा की फसल बुवाई के लगभग 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है| अगर टिंडा की फसल अच्छी हुई है तो औसतन 1 एकड़ में 18 से 24 क्विंटल टिंडा की पैदावार होती है| प्रति एकड़ में 8 से 10 टन किलो गाय की गोबर डालकर टिंडे की बुवाई करनी चाहिए| टिंडे की फसल की बुवाई फरवरी-मार्च में या फिर जून-जुलाई में की जाती है|

तोरई

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तोरई को तोरी, झीनी और तुरई के नाम से भी जाना जाता है| बारिश का मौसम तोरई की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम माना जाता है, हालांकि तोरई की खेती खरीफ की फसल में भी की जा सकती है| तुरई की कई उन्नत किस्में हैं जैसे : घिया तोरई, पूसा नसदार, सरपुतिया, कोयम्बूर 2, आदि| तुरई की खेती के लिए 1 हेक्टेयर भूमि पर 2 से 3 किलो बीज की आवश्यकता होती है| तोरई की फसल में लालड़ी, फल मक्खी, मोजैक, जड़ सड़न आदि, अगर तोरई की फसल अच्छी है तो 1 हेक्टेयर भूमि पर 250 क्विंटल की पैदावार हो जाती है| तुरई की फसल का बाजार भाव 5-10 रुपए किलो है| इस प्रकार किसान भाई बड़े आसानी से दो से ढाई लाख रुपए कमा सकते हैं|

मूंग

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मूंग की फसल रबी, जायद और खरीफ तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है| मूंग में प्रोटीन विटामिन के साथ-साथ मैग्नीज, पोटैशियम, मैग्निशियम, कॉपर, जिंक आदि विटामिन पाया जाता है| डेंगू जैसी खतरनाक बीमारियों से भी मूंग का दाल बचाव करता है| भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक, उत्तरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में मूंग का उत्पादन किया जाता है| मूंग की कई किस्में हैं जैसे : के-851, पूसा-105, पी.डी.एम. 44, एल.एल. 131, जवाहर मूंग 721, पी.एस. 16 आदि| Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai

Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai (FAQ)

1.जायद की फसल कब बोई और काटी जाती है?

Zaid Ki Fasal की बुवाई फरवरी-मार्च में होती है, जब की कटाई अप्रैल मई के महीने में होती है|

2.चार जायद फसलों के नाम बताइए?

चार जायद फसल : सूरजमुखी, चना, कपास, मक्का

3.जायद का अर्थ क्या होता है?

जायद शब्द फारसी शब्द है, जिसका मतलब होता है ज्यादा या अतिरिक्त

4.जायद फसल क्या है उदाहरण दें?

जायद की फसलों (Zaid Crops) में तेज गर्मी और शुष्क हवाएं सहन करने की क्षमता होती है| जायद की फसलें मुख्यता उत्तर भारत में मार्च-अप्रैल में बोई जाती है| जायद की फसल उदाहरण : सूरजमुखी, मूंग, उड़द, ककड़ी, खीरा, तरबूज, खरबूजा कपास आदि|

5.जायद फसल का दूसरा नाम क्या है?

जायद फसल को अंतवर्ती फसल के नाम से जाना जाता है| 

6.नींबू जायद की फसल है?

नहीं, नींबू रबी फसल के अंतर्गत आता है| 

7.गन्ना जायद फसल है?

जी हां गन्ना जायद फसल के अंतर्गत आता है|

8.सरसों एक जायद फसल है?

जी हां सरसों एक जायद फसल है|

9.क्या खीरा जायद की फसल है?

जी हां, खीरा जायद की फसल है|

10.जायद की फसल कब काटी जाती है?

जायद की फसल उत्तर भारत में मुख्यता अप्रैल मई के महीने में काटी जाती है| 

11.जायद की सब्जियां कौन-कौन सी हैं?

जायद फसल के अंतर्गत आने वाली सब्जियां जैसे : टिंडा, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज, तुरई, लौकी, कद्दू, करेला आदि| 

निष्कर्ष

दोस्तों इस आर्टिकल में हमने Zaid Ki Fasal Kise Kahte Hai, इसके विषय में पूरी जानकारी विस्तार से बताई है| इस आर्टिकल को पढ़कर आप जायद फसल (Zaid Crops) की कटाई और बुवाई संबंधित सभी जानकारी पा सकते हैं| इसके अलावा अगर आपका कोई सवाल है तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं|

जायद में कौन कौन सी फसलें आती है?

अब जायद (रबी और खरीफ के मध्य में बोई जाने वाली फसल) की सब्जियों की बुवाई का उपयुक्त समय चल रहा है। इन फसलों की बुवाई फरवरी से मार्च तक की जाती हैं। इन फसलों में प्रमुख रूप से ¨टडा, तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, लौकी, तुरई, ¨भडी, अरबी शामिल हैं।

रबी खरीफ जायद क्या है?

सर्दियों में बारिश रबी की फसल को खराब कर देती है लेकिन खरीफ की फसल के लिए अच्छा हैरबी फसलें : गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, मसूर, आलू, राई,तम्‍बाकू, लाही, जंई, अलसी आदि। जायद फसल: जायद की फसलें खरीफ और रबी मौसमों के बीच, यानी मार्च से जून के बीच उगाई जाती हैं।

रवि की फसल में क्या क्या आता है?

रबी की फ़सल सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ, जौ,आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं

जायद कृषि क्या है?

इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है। यह श्रम - गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव- रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है