क. बुनकरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था? - ka. bunakaron ko kin samasyaon ka saamana karana pad raha tha?

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CBSE Class 10 History Subjective Question Chapter – 5 औद्योगीकरण का युग 


1. “17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।” व्याख्या करें।

उत्तर –17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की ओर पलायन करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन कराते थे। उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी थी। इस मौंग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। यही कारण था कि ये व्यापारी गाँव की ओर बढ़ने लगे।

 

2. “आदि-औद्योगीकरण ने किसानों और कारीगरों को प्रभावित किया था।” कथन की पुष्टि करें।

उत्तर- आदि-औद्योगीकरण ने ग्रामीण किसानों तथा कारीगरों को निम्नलिखित रूपों में प्रभावित किया

·        पारिवारिक अम का उपयोग व्यापारियों के लिए काम करने वाले किसान तथा कामगार ( कारीगर ) ग्रामीण क्षेत्रों से होते थे। इनका निवास क्षेत्र भी ग्राम ही होते थे। घर के सभी सदस्य छोटे-छोटे खेतों पर खेती भी करते थे। सभी उत्पादन क्षेत्रों में पूरा परिवार लगा होता था।

·        आय की प्राप्ति आदि-औद्योगिक उत्पादन की आय से कामगारों, छोटे ग्रामीण किसानों को उनकी कृषि आय ( जो नाममात्र रही ) को सुद्द करने का साधन मिल गया। अब ये लोग कृषि के साथ श्रम करके भी अपनी पारिवारिक आय को बढ़ाने लगे थे। परिवार का प्रत्येक सदस्य समय-समय पर कृषि तथा उत्पादन कार्यों में बराबर का सहयोग करने लगा था।

 

3. व्यावसायिक विनिमय प्रणाली के रूप में आदि-औद्योगीकरण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – आदि-औद्योगिक उत्पादन से प्राप्त आय ने कृषि के कारण किसानों के की कम होती आय में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। अब वे अपने पूरे परिवार के श्रम संसाधनों का उपयोग कर सकते थे। एक व्यापारी पहले स्टेप्लर से ऊन खरीदता था और बाद में उसकी स्पिनरों को आपूर्ति करता था। सूत कातने पर जो धागा मिलता था, उसे बुनकरों, फुलर्ज और रंगसाजों तक पहुंचाया जाता था। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचने से पूर्व कपड़ों की फिनिशिंग लंदन में होती थी, जिसके परिणामस्वरूप लंदन को फिनिशिंग सेंटर के रूप में पहचाना जाने लगा था। यह आदि-औद्योगिक व्यवस्था व्यावसायिक आदान-प्रदान के नेटवर्क का हिस्सा थी।आदि-औद्योगिक व्यवस्था की असामान्य विशेषता यह थी कि सामानों का उत्पादन कारखानों में नहीं, बल्कि घरों में होता था।

 

4. विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग हाथ से बनी वस्तुओं को पसंद क्यों करते थे? तीन कारण दीजिए।

उत्तर – विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग ( कुलीन और पूँजीपति वर्ग ) हाथों से बनी वस्तुओं को अधिक पसंद करते थे। इसके तीन कारण निम्न थे

(i) हाथ से बनी वस्तुओं को परिष्कर और सुरुचि का प्रतीक माना जाता था।

(ii) हाथ से बनी वस्तुओं की फिनिशिंग भी अच्छी होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता था और उनका डिजाइन अच्छा होता था।

(iii) मशीनों से बनने वाले उत्पाद को उपनिवेशों में निर्यात कर दिया जाता था।

 

5. औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप में श्रमिकों की स्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर- औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप के श्रमिकों की स्थिति निम् प्रकार थी

·        अधिकांश उद्योगों में श्रम की माँग मौसमी थी। नौकरी पाने की संभावना मित्रता एवं आपसी संबंध पर निर्भर करती थी।

·        मजदूरों को बहुत कम मजदूरी मिल रही थी।

·        कारखानों में बड़ी संख्या में महिलाएँ कार्यरत थीं, किंतु तकनीकी विकास के कारण महिलाओं ने धीरे-धीरे अपनी नौकरियाँ खो दीं।

·        लोगों को काम के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। कारखानों के प्रवासी श्रमिकों को घर नहीं दिए गए थे। रोजगार के इच्छुक लोग रैन बसेरा व पुल के नीचे रात व्यतीत करते थे।

 

6. “ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए।” व्याख्या कीजिए।

उत्तर- स्पिनिंग जेनी जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा 1764 ई. में बनाई गई सूत कातने की मशीन थी, जिसने कताई की प्रक्रिया में तेजी उत्पन्न की, किंतु इस मशीन के आने से मजदूरों की माँग घट गई। इस नई प्रौद्योगिकी के कारण बेरोजगारी बढ़ने लगी। जब ऊन के उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का उपयोग शुरू हुआ तो हाथ से ऊन कातने वाली महिलाओं ने इस तरह की मशीनों का विरोध किया और स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले करना प्रारंभ कर दिया। उन्हें लगता था कि इन्हीं मशीनों के कारण उनका रोजगार छिन गया है।

 

7. 1760 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में कपड़ा निर्यात के विस्तार की इच्छुक क्यों थी? कोई तीन कारण बताएँ।

उत्तर- 1760 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में कपड़ा निर्यात के विस्तार के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

(i) भारत में अब तक कपड़ा निर्यात में किसी प्रकार की गिरावट नहीं दर्ज हुई थी।

(ii) ब्रिटिश सूती कपड़ों का उद्योग अभी तक सीमित अवस्था में था, उनका विस्तार नहीं हुआ था।

(iii) यूरोप में भारत में बने महीन कपड़ों की माँग अधिक थी। यही कारण था कि ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से होने वाले कपड़ा निर्यात को ही फैलाना चाहती थी।

 

8. गुमाश्तों और बुनकरों के बीच टकराव के किन्हीं तीन सामाजिक कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- गुमाश्तों और बुनकरों के बीच टकराव के तीन कारण निम्नलिखित थे

(i) ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार पर एकाधिकार करने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था, लेकिन जल्दी ही अनेक बुनकर गाँवों में बुनकरों और गुमाश्तों के बीच टकराव की खबरें आने लगीं। इससे पहले आपूर्ति सौदागर हमेशा बुनकर गाँवों में ही.रहते थे। वे बुनकरों की आवश्यकताओं का ध्यान रखते थे और संकट के समय उनकी मदद करते थे।

(ii) नए गुमाश्ता बाहर के लोग थे। उनका गाँवों से संबंध नहीं था। वे भेदभावपूर्ण व्यवहार करते थे, सिपाहियों व पुराना सामाजिक चपरासियों को लेकर आते थे और माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे।

(ii) सजा के रूप में बुनकरों को हमेशा पीटा जाता था। अब बुनकर न तो दाम पर मोलभाव कर सकते थे और न ही किसी और को माल बेच सकते थे।

 

9. सत्रहवीं सदी के दौरान भारतीय व्यापार किस प्रकार अंग्रेजों के लिए लाभदायक रहा?

उत्तर- सत्रहवीं सदी में भारतीय व्यापार अंग्रेजों के लिए निम्न प्रकार लाभदायक रहे

·        सत्रहवीं सदी के दौरान भारतीय व्यापारी वर्ग ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्यात में शामिल हो गए। ये उत्पादन में पैसा लगाते थे, चीजों को लेकर जाते थे और निर्यातकों को पहुँचाते थे।

·        माल भेजने वाले आपूर्ति सौदागरों के द्वारा बंदरगाह नगर देश के भीतरी इलाकों से जुड़े हुए थे। ये सौदागर बुनकरों को पेशगी देते थे, बुनकरों से तैयार कपड़ा खरीदते थे और उसे बंदरगाहों तक पहुँचाते थे।

·        बंदरगाह पर बड़े जहाज मालिक और निर्यात व्यापारियों के दलाल कीमत पर मोल भाव करते थे और आपूर्ति सौदागरों से माल खरीद लेते थे।

 

10. मशीन उद्योग के युग से पहले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत के रेशमी और सूती उत्पादों के प्रभावशाली होने के किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- मशीन उद्योग के युग से पहले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत के रेशमी से और सूती उत्पादों के प्रभावशाली होने के निम्नलिखित कारण थे

(i) विभिन्न देशों के अपेक्षाकृत भारत में पैदा होने वाली कपास महीन किस्म की थी, जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक माँग थी।

(ii) आर्मीनियन और फारसी सौदागर पूर्वी फारस और मध्य एशिया के रास्ते यहाँ से रेशमी और सूती उत्पाद लेने आते थे।

(iii) भारत में बने महीन कपड़ों के थान ऊटों की पीठ पर लादकर पश्मिोत्तर सीमा से पहाड़ी दरों और रेगिस्तानों के पार ले जाए जाते थे।

 

11. 19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर- 19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की तीन समस्याएँ निम्नलिखित थीं

(i) भारतीय बुनकरों का निर्यात बाजार कम हो गया। भारतीय बुनकरों को उच्च कीमत पर कच्चा माल क्रय करना पड़ता था, जो एक बड़ी समस्या थी।

(ii) स्थानीय बाजारों में मैनचेस्टर में बने वस्त्रों की अधिकता होने लगी थी, क्योंकि ये वस्त्र मशीनों के द्वारा बने होने के कारण कम लागत के थे। कम लागत के होने के कारण ही भारतीय बुनकर इनसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे।

(iii) अमेरिकी गृहयुद्ध के कारण अमेरिका से कपास का निर्यात बंद हो गया, तो ब्रिटेन भारत से कच्चे माल का आयात करने लगा था। भारत से कच्चे कपास के निर्यात में आई इस वृद्धि से उसकी कीमत में भी वृद्धि हुई।

 

12. उद्योगों के विकास में भारत के प्रारंभिक उद्यमियों की भूमिका का वर्णन कीजिए।

उत्तर – उद्योगों के विकास में भारत के प्रारंभिक उद्यमियों की भूमिका को निम्न प्रकार देखा जा सकता है

·        18वीं सदी के अंत से अंग्रेज, चीन को भारतीय अफीम का निर्यात करने लगे थे। इसके बदले में वे चीन से चाय खरीदते थे। इस व्यापार में अनेक भारतीय कारोबारी सहायक के रूप में जुड़ गए थे, जिनका कार्य उन्हें धन उपलब्ध कराना, आपूर्ति सुनिश्चित करना तथा माल को जहाजों में लादकर भेजना था।

·        19वीं सदी के कुछ प्रसिद्ध उद्योगपतियों में द्वारकानाथ टैगोर, शिवनारायण बिरला, जमशेदजी नुसरवानजी टाटा एवं सेठ हुकुमचंद आदि शामिल थे।

·        द्वारकानाथ टैगोर ने 1830-40 के दशक में छ: संयुक्त स्टॉक कंपनियों की स्थापना की। वर्ष 1912 में जमशेदपुर में जे एन टाटा ने भारत में पहले लौह और इस्पात संयंत्र की स्थापना की।

 

13. उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में भारतीय कपड़े के निर्यात में गिरावट क्यों आई? कोई तीन कारण बताइए।

उत्तर- 19वीं सदी की शुरुआत में भारतीय कपड़ों के निर्यात में बड़ी गिरावट दर्ज की गई, जिसके कई कारण थे

·        कच्चे माल की कमी 1860 के दशक में बुनकरों के सामने नई समस्या खड़ी हो गई। इन्हें अच्छी कपास नहीं मिल पा रही थी।

·        इंग्लैंड के कपास उद्योगों का विकास जैसे ही इंग्लैंड में कपास उद्योग विकसित हुआ, वहाँ के उद्योगपति दूसरे देशों से आने वाले आयात को लेकर चिंतित होने लगे। उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयातित कपड़े पर आयात शुल्क वसूल करे, जिससे मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैंड में आसानी से बिक सकें।

·        मिलों का विकास और माँग में कमी मिलों के विकास और घरेलू माँग में कमी के कारण ब्रिटिश उद्योगपतियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे।

 

14. 19वीं सदी में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय व्यापारियों पर लगाए गए प्रतिबंधों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- 19वीं सदी में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय व्यापारियों पर लगाए गए प्रतिबंध का विवरण निम्नलिखित है

·        भारतीय व्यापारियों के लिए व्यापार का क्षेत्र सीमित कर दिया गया।

·        भारतीय व्यापारी स्वविनिर्माण की वस्तुओं का यूरोपीय क्षेत्रों में व्यापार नहीं कर सकते थे।

·        ये लोग अंग्रेजों द्वारा ही खाद्यान्न, गेहूँ, नील, अफीम तथा कच्चे कपास का निर्यात कर सकते थे।

·        भारतीय व्यापारियों को शिपिंग के व्यवसाय से भी हटा दिया गया।

 

15. उन यूरोपीय प्रबंधन एजेंसियों के नाम बताएँ, जो भारतीय उद्योगों के विशाल क्षेत्रक को नियंत्रित करती थीं। उनके द्वारा किए गए तीन प्रकार्य बताएँ।

उत्तर भारतीय उद्योग के विशाल क्षेत्रक को नियंत्रित करने वाली यूरोपीय प्रबंधन की प्रमुख तीन एजेंसियाँ थीं

(i) बर्ड हीगलर्स एंड कंपनी

(ii) एंड्रयू यूल

(ii) जार्डिन स्किनर एंड कंपनी

·        ये एजेंसियाँ निम्नलिखित रूपों में कार्य करती थीं ये एजेंसियाँ व्यापार हेतु पूँजी का प्रसार करती थीं।

·        इन एजेंसियों ने कई संयुक्त भंडारण कंपनियाँ भी स्थापित की तथा उनका प्रबंधन भी स्वयं किया। 

·        इन कंपनियों के लिए भारतीय निवेशक भी पूंजी उपलब्ध कराते थे, किंतु निवेश एवं व्यापारिक निर्णय का अधिकार केवल यूरोपीय एजेंसियों का ही होता था।

 

16. “नौकरी की खोज में श्रमिकों का प्रवास होता है।” कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – नौकरियों की खोज में श्रमिकों के प्रवास करने के कारण निम्न हैं 

·        कारखानों के विस्तार के साथ ही श्रमिकों की माँग में भी वृद्धि हुई। गाँव में कोई भी काम न करने वाले किसानों और कारीगरों ने काम की तलाश में औद्योगिक केंद्रों की ओर पलायन किया। रोजगार प्रसार की श्रमिकों ने मिलों में काम की आशा में बहुत दूर तक यात्राएँ कीं।

·        संयुक्त प्रांतों से लोग बंबई और कलकत्ता में काम करने के लिए जा रहे थे, जहाँ काम करना आसान नहीं था।

·        मिलों में सीमित नौकरी होने के कारण प्रवेश निषिद्ध था। उद्योगपतियों ने नए मजदूरों को भर्ती करने के लिए एक जॉबर नियुक्त किया।

·        जॉबर एक विश्वसनीय और पुराना कर्मचारी होता था। जॉबर अपने गाँव से जरूरतमंद लोगों को लाकर उन्हें रोजगार दिलाता था और उनकी शहर में बसने में भी मदद करता था।

 

17. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीय बाजार में ब्रिटेन को पहले वाला सम्मान कभी प्राप्त नहीं हो पाया। व्याख्या कीजिए।

उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीय बाजार में ब्रिटेन को पहले वाला सम्मान पुनः प्राप्त न हो पाया, जिसके निम्नलिखित कारण थे

·        प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी सामान बनाने में व्यस्त थे। इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया।

·        प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीय बाजार में मैनचेस्टर को पहले वाला सम्मान कभी प्राप्त नहीं हो पाया। आधुनिकीकरण न कर पाने और अमेरिका, जर्मनी व जापान की अपेक्षा कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था खराब हो गई थी। कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था और ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में भारी गिरावट आई।

·        उपनिवेशों में विदेशी उत्पादों को हटाकर स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत बना ली।

 

18. 1900 और 1940 के मध्य हथकरघे के कपड़े के उत्पादन में विस्तार के कारण क्या थे?

उत्तर- 1900 और 1940 के मध्य हथकरघे के कपड़े के उत्पादन में विस्तार के निम्नलिखित कारण थे 

·        अमेरिकी गृहयुद्ध के पश्चात् फैक्ट्री उद्योगों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन अर्थव्यवस्था में यह उद्योग बहुत छोटे थे।

·        पंजीकृत फैक्ट्रियों में कुल औद्योगिक श्रम शक्ति का बहुत छोटा हिस्सा ही काम करता था। यह संख्या वर्ष 1911 में 5% और 1931 में 10% थी।

·        20वीं सदी में हथकरघों पर बने कपड़े के उत्पादन में लगातार सुधार हुआ। 1900 से 1940 के मध्य यह तीन गुना हो चुका था। इस समय तक बुनकर फ्लाई शटल युक्त करघों का उपयोग करने लगे I

 

19. “20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण के प्रतिमान को कई परिवर्तनों ने प्रभावित किया।” व्याख्या कीजिए।

उत्तर- 20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण के प्रतिमानों को कई परिवर्तनों ने प्रभावित किया, जिनका विवरण निम्नलिखित है

·        स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन भारत में बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार के आंदोलन से भारतीय उद्योगों को राहत मिली तथा भारतीय वस्तुओं, विशेषतः कपड़े की माँग में वृद्धि हुई।

·        औद्योगिक वर्ग इस समय तक औद्योगिक समूह अपने सामूहिक हितों की रक्षा के लिए संगठित हो गए और उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने तथा अन्य रियायतें देने के लिए सरकार पर दबाव डाला।

·        भारतीय बाजार में मैनचेस्टर का पतन युद्ध के बाद भारतीय बाजार में मैनचेस्टर को पहले वाला सम्मान कभी प्राप्त नहीं हो पाया। 

·        चीन को निर्यात कम होना वर्ष 1906 के बाद चीन भेजे जाने वाले भारतीय धागे के निर्यात में भी कमी होने लगी, क्योंकि चीनी बाजारों में चीन और जापान के उत्पादों की अधिकता हो गई थी।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 

1. आदि-औद्योगिक व्यवस्था क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

अथवा आदि-औद्योगीकरण व्यवस्था की विशेषता लिखिए।

उत्तर इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियों की स्थापना से पूर्व ही यहाँ अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था, किंतु यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था। अनेक इतिहासकार इस युग को आदि-औद्योगीकरण व्यवस्था का नाम देते हैं। आदि-औद्योगीकरण व्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं

·        आदि-औद्योगिक व्यवस्था आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के विकास का प्रथम चरण थी, जिसने पूर्ण औद्योगिक समाज की स्थापना के लिए विश्व के समक्ष नई परिस्थितियाँ बना दी थीं।

·        आदि-औद्योगीकरण के कारण औद्योगिक उत्पादन और व्यावसायिक कृषि उत्पादन दोनों में विशेष रूप से वृद्धि हुई।

·        आदि-औद्योगीकरण के कारण पारंपरिक कृषि समाज में सामाजिक परिवर्तन हुए। उत्पादन से होने वाले लाभ ने किसानों की कम होती आय में बढ़ोतरी की।

·        यह उत्पादन के विकेंद्रीकरण का एक तरीका था, जिस पर व्यापारियों का नियंत्रण था, परंतु वस्तुओं का उत्पादन फैक्ट्रियों की अपेक्षा परिवार में काम करने वाले लोगों और खेतों में उत्पादकों द्वारा किया जाता था।

 

2. औद्योगिक क्रांति से पहले, शहरों में अपने उद्योगों को स्थापित करने में नए यूरोपीय व्यापारियों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? वर्णन कीजिए।

उत्तर –औद्योगिक क्रांति से पूर्व यूरोप के शहरों में यूरोपियों को नए उद्योग स्थापित करने के लिए निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा

·        शक्तिशाली नगरीय उत्पादक यूरोप के शहरी उत्पादक बहुत शक्तिशाली थे। ये संगठन व्यवसाय में नए लोगों को अवसर देने या नया व्यवसाय फैलाने से रोकते थे।

·        एकाधिकार यूरोप के प्रशासन द्वारा भी विभिन्न व्यापार संघों को महत्त्वपूर्ण उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार दिया हुआ था। फलत: नए व्यापारी शहरों में कारोबार नहीं कर पाने क कारण गाँवों की ओर जाने लगे।

·        आर्थिक अवसरों की कमी गाँवों में खुले खेत खत्म होते जा रहे थे और कॉमन्स की बाड़ाबंदी की जा रही थी, छोटे किसान और गरीब किसान, जो पहले साझा जमीन पर निर्भर रहते थे, बेरोजगार हो गए थे।

·        पेशगी रकम शहरों में व्यापार का प्रसार न कर सकने वाले सौदागरों तथा व्यावसायियों ने गरीब और किसान परिवारों को पेशगी रकम देनी शुरू की, जिससे उनका व्यापार ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ने लगा था।

·        वस्तुओं की भारी माँग विश्व व्यपार का 17वीं और 18वीं सदी में तीव्र गति से विस्तार हुआ और इस बढ़ती हुई माँग के कारण ही उपनिवेशों की स्थापना हुई। शहरी उत्पादक वांछित मात्रा में उत्पादन करने में असफल रहे।

 

3. 18वीं सदी में हुए अनेक आविष्कारों ने सूती वस्त्र उद्योग में उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की कुशलता किस प्रकार बढ़ा दी? व्याख्या कीजिए।

उत्तर- 18वीं सदी में यूरोप में अनेक ऐसे आविष्कार हुए, जिन्होंने सूती वस्त्र उद्योग में उत्पादन की प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की कुशलता बढ़ा दी थी, ये हैं

·        नवीन आविष्कार 18वीं सदी में कार्डिंग, ऐंठना व कताई तथा लपेटने वाली मशीनों का आविष्कार, जिसने उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में कुशलता बढ़ा दी थी।

·        उत्पादन एवं गुणवत्ता में सुधार नए उत्पादन से प्रति मजदूर उत्पादन भी बढ़ गया और साथ-ही-साथ इनकी गुणवत्ता भी बढ़ गई और पहले से अधिक मजबूत धागों व रेशम का उत्पादन होने लगा था। नई मशीनों से मजबूत धागों का उत्पादन संभव हुआ। उत्पादन एवं गुणवत्ता में सुधार नए उत्पादन से प्रति मजदूर उत्पादन भी बढ़ गया और साथ-ही-साथ इनकी गुणवत्ता भी बढ़ गई। 

·        कपड़ा मिल की शुरुआत सबसे पहले रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा तैयार की थी। सूती कपड़ा मिल की स्थापना के पश्चात् इसमें महँगी नई मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जाने लगा।

·        संपूर्ण प्रक्रिया का क्रियान्वयन एकसाथ होना कपड़ा मिलों में सभी प्रक्रियाएँ एकसाथ एक ही छत के नीचे और एक ही मालिक के नियंत्रण में होती थीं। इससे उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों का निरीक्षण सुगम हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था, तब तक ये सभी कार्य सहज नहीं थे।

 

4. 19वीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?

उत्तर- 19वीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों के विपरीत हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते रहे, जिसके निम्नलिखित कारण थे

·        विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी। गरीब किसान और बेकार लोग कामकाज की तलाश में बड़ी संख्या में शहरों को जाते थे। ये कम कीमत पर भी काम करते थे। अतः उद्योगपति पहले इन्हें ही काम पर रखते थे।

·        जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था, उनमें उद्योगपति मजदूरों को ही काम पर रखना पसंद करते थे।

·        अनेक उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किए जा सकते थे। मशीनों से एक जैसे निर्धारित किस्म के उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा सकते थे।

·        बाजार में अकसर बारीक डिजाइन और विशेष आकारों वाली वस्तुओं की बहुत माँग रहती थी, जो हाथ से कार्य करने वाले मजदूर ही अच्छा कर सकते थे।

·        विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग (कुलीन और पूँजीपति वर्ग) हाथों से बनी वस्तुओं को प्राथमिकता देते थे।

 

5. उन्नीसवीं शताब्दी में विश्व में आए बदलावों में तकनीकी की भूमिका में का वर्णन कीजिए।

उत्तर- उन्नीसवीं शताब्दी में तकनीकों के बदलाव ने उत्पादन की गति को तीव्र किया, लेकिन इंग्लैंड में सस्ते श्रम के कारण उद्योगपति श्रम पर विशेष ध्यान देते थे। जिन देशों में मजदूरों की कमी होती है, वहाँ उद्योगपति मशीनों का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते थे, ताकि कम-से-कम मजदूरों का इस्तेमाल करके वे अपना काम कर सकें। नई तकनीकों के आगमन ने विश्व के अन्य भागों में उत्पादन की गति को तीव्र बनाया। अमेरिका में भी यही स्थिति थी। तकनीक के आगमन ने विश्व के सभी देशों को सक्षम बनाया, जिससे व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा की गति तीव्र हुई। हालाँकि प्रौद्योगिकी बदलाव की गति धीमी थी, लेकिन विश्व के देशों में इनका फैलाव तीव्र गति से हुआ। बड़े-बड़े कारखानों के विकास के कारण बड़े व्यावसायिक नगरों की स्थापना होने लगी और आबादी बढ़ने लगी। व्यावसायिक नगरों का विकास औद्योगिक क्रांति का महत्त्वपूर्ण परिणाम भी था। फ्लाई शटल वाले करघों के इस्तेमाल से कामगारों

की उत्पादन क्षमता बढ़ी, उत्पादन में वृद्धि हुई और श्रम की माँग में कमी आई। इसके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे तकनीकी सुधार किए गए, जिनसे बुनकरों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने और मिलों से स्पर्धा करने में मदद मिली।

 

6. उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान इंग्लैंड में कामगारों के जीवन का वर्णन कीजिए। से अथवा उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान इंग्लैंड के बाजार में श्रम की बहुतायत मजदूरों की जिंदगी कैसे प्रभावित हुई? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए l

उत्तर- उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान इंग्लैंड के बाजार में श्रम की बहुतायत से मजदूरों की जिंदगी व्यापक रूप से प्रभावित हुई। मजदूरों का पलायन व्यापक संख्या में शहरों की तरफ हुआ, जिसके कारण कारखानों में मजदूरों की माँग और आपूर्ति में असंतुलन उत्पन्न हो गया था। नौकरी ज्यादातर रिश्तेदारों या दोस्तों के परिचय से मिल पाती थी। साधारण व्यक्ति को रोजगार पाने के लिए कई हफ्तों तक इंतजार करना पड़ता था। वे पुलों के नीचे या रैन-बसेरों में रात काटते थे। कुछ बेरोजगार शहर में बने निजी रैन बसेरों में रहते थे। बहुत सारे उद्योगों में मौसमी काम की वजह से मजदूरों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। काम का सीजन निकल जाने के बाद गरीब दोबारा सड़क पर आ जाते थे। कुछ मजदूर को अनियत रूप से काम करने के लिए विवश होना पड़ता था। श्रम की बहुतायत के कारण उद्योगपति को कम कीमत पर मजदूर आसानी से उपलब्ध हो जाते थे, जिसके कारण एक वर्ग पूँजीपति बनता गया। ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी। गरीब किसान और बेकार लोग कामकाज की तलाश में बड़ी संख्या में शहरों को जाते थे। जब श्रमिकों की बहुतायत होती थी तो वेतन कम हो जाता था, इसलिए उद्योगपति को श्रमिकों की कमी या वेतन के मद में भारी लागत जैसी कोई परेशानी नहीं थी। अनेक उद्योगों में श्रमिकों की माँग मौसमी आधार पर घटती-बढ़ती रहती थी। गैसघरों और शराबखानों में शीत ऋतु के दौरान अत्यधिक काम रहता था। इस दौरान उन्हें ज्यादा मजदूरों की आवश्यकता होती थी।

 

7. आधुनिक काल में औद्योगीकरण ने शहरीकरण के स्वरूप पर गहरा प्रभाव डाला है। लंदन के विशेष संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर- आधुनिक काल में औद्योगीकरण ने शहरीकरण के स्वरूप पर गहरा प्रभाव डाला है। 1840 के दशक में औद्योगीकरण की गति तीव्र होने के साथ ही शहरों में निर्माण की गतिविधियाँ तेजी से बढ़ीं। लोगों के लिए नए रोजगार पैदा हुए, सड़कों को चौड़ा किया गया, नए रेलवे स्टेशन बने, रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया, परिवहन उद्योग में काम करने वालों की संख्या 1840 के दशक में दोगुना हो गई। औद्योगीकरण के कारण नवीन शहरों का उद्भव हुआ जो लोहे, कोयले और पानी की व्यापक उपलब्धता वाले स्थानों के निकट थे। नगरों का उदय व्यापारिक केंद्र के रूप में, उत्पादन केंद्र बंदरगाह नगरों के रूप में हुआ। शहरों में जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि के कारण निचले स्तर के लोगों को आवास भोजन, पेयजल आदि के अभाव का सामना करना पड़ता था। अत्यधिक जनसंख्या के कारण औद्योगिक केंद्रों के आस-पास झुग्गी बस्तियों का विस्तार होने लगा, जहाँ प्रदूषण की समस्या रहती थी। इस प्रकार शहरीकरण की प्रक्रिया में औद्योगिक क्रांति की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही तथा इसने समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित किया। इस प्रकार, औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने शहरीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित किया।

 

8. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया?

अथवा उन तरीकों की व्याख्या कीजिए जिनके द्वारा ब्रिटिश निर्माताओं ने संपूर्ण भारतीय बाजार पर कब्जा करने के प्रयास किए l

उत्तर- ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता स्थापित होते ही कंपनी ने व्यापार पर एकाधिकार कर लिया। अब इन्हें अन्य व्यापारी समूहों से प्रतिस्पर्धा नहीं थी। कंपनी ने लागत पर अंकुश रखने, कपास व रेशम से बनी वस्तुओं की नियमित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए नई व्यवस्था लागू कर दी, जिसका काम अलग-अलग चरणों में पूरा किया गया।

(i) कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल को एकत्र करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किए, जिन्हें ‘गुमाश्ता’ कहा जाता था।

(ii) कंपनी ने माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य व्यापारियों से व्यापार पर पाबंदी लगा दी। इस काम के लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी। इन बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज भी दिया जाता था, किंतु कर्ज लेकर बनाया हुआ माल भी उन्हें गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। ये किसी अन्य व्यापारी से व्यापार नहीं कर सकते थे।

 

9. अठारहवीं सदी के दौरान भारतीय पर औद्योगीकरण के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर अठारहवीं सदी के दौरान भारतीय पर औद्योगीकरण के प्रभाव निम्नलिखित हैं

·        ब्रिटेन के औद्योगीकरण के पश्चात् भारत में ब्रिटेन के वस्त्र उत्पादों के आयात में नाटकीय वृद्धि हुई।

·        1850 तक आते-आते सूती का आयात भारतीय आयात में 31% हो चुका था। 1870 तक यह आँकड़ा 50% से ऊपर चला गया।

·        ब्रिटेन के औद्योगीकरण के कारण भारत का निर्यात बाजार कम हो रहा था और स्थानीय बाजार सिकुड़ने लगा था।

·        स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार थी। कम लागत पर मशीनों से बनने वाले आयातित कपास उत्पाद इतने थे कि बुनकर उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे।

·        ब्रिटेन के औद्योगीकरण के कारण भारतीय बुनकरों को कपास नहीं मिल रही थी। जब अमेरिका गृहयुद्ध शुरू हुआ और अमेरिका से कपास की आमद बंद हो गई तो ब्रिटेन भारत से कच्चा माल मँगाने लगा।

·        भारत से कच्चे कपास के निर्यात में इस वृद्धि से उसकी कीमत आसमान छूने लगी। इसके कारण बुनकरों को कच्चे माल को प्राप्त करने में कठिनाई उत्पन्न होने लगे।

 

10. प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा?

उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत का औद्योगिक उत्पादन बढ़ गया, जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे

·        प्रथम विश्वयुद्ध तक औद्योगिक विकास धीमा रहा। युद्ध ने एक बिल्कुल नई स्थिति उत्पन्न कर दी थी।

·        ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त थे, इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया।

·        नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखानों में कई पालियों में काम किया जाने लगा।

·        अनेक नए मजदूरों को काम पर रखा गया और प्रत्येक को पहले से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था, जिससे युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा।

·        प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को परेशानियों में उलझा देखकर राष्ट्रवादी नेताओं ने भी स्वदेशी वस्तुओं पर बल देना शुरू कर दिया। इससे भारतीय उद्योगों को और अधिक बढ़ावा मिला।

·        इस समय तक स्थानीय उद्योगपतियों ने विदेशी उत्पादों को हटाकर घरेलू बाजार पर कब्जा कर लिया और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत बना ली थी।

 

केस स्टडी आधारित प्रश्न

 

1. निम्नलिखित स्रोत को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

औद्योगीकरण को अकसर हम कारखानों के विकास के साथ ही जोड़कर देखते हैं। जब हम औद्योगिक उत्पादन की बात करते हैं, तो हमारा आशय फैक्ट्रियों में होने वाले उत्पादन से होता है और जब हम औद्योगिक मजदूरों की बात करते हैं, तो भी हमारा आशय कारखानों में काम करने वाले मजदूरों से ही होता है। औद्योगीकरण के इतिहास अकसर प्रारंभिक फैक्ट्रियों की स्थापना से शुरू होते हैं, पर इस सोच में एक समस्या है। दरअसल, इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियों की स्थापना से भी पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। वह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था। बहुत सारे इतिहासकार औद्योगीकरण के इस चरण को आदि-औद्योगीकरण का नाम देते हैं।

सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की तरफ रुख करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी। इस मांग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। वजह यह थी कि शहरों में शहरी दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड्स काफी ताकतवर थे। ये गिल्ड्स उत्पादकों के संगठन होते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे, उत्पादकों पर नियंत्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा और मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में नए लोगों को आने से रोकते थे। शासकों ने भी विभिन्न गिल्ड्स को खास उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार दिया हुआ था। फलस्वरूप, नए व्यापारी शहरों में कारोबार नहीं कर सकते थे। इसलिए वे गाँवों की तरफ जाने लगे।

 

(i) आदि-औद्योगीकरण के प्रारंभिक चरण की व्याख्या करें।

उत्तर यूरोप में औद्योगीकरण से पहले अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पाद बनने शुरू हो गए थे। इन उत्पादों का उत्पादन घरेलू स्तर पर अग्रिम भुगतान के पश्चात् कारीगरों द्वारा किया जाता था। औद्योगीकरण के इस चरण को इतिहासकारों ने आदि-औद्योगीकरण की संज्ञा प्रदान की थी।

 

(ii) औद्योगीकरण से क्या तात्पर्य है?

उत्तर सामान्य जनधारणा के अनुसार, औद्योगीकरण से आशय फैक्ट्रियों में होने वाले उत्पादन से है। इनके अनुसार औद्योगिक मजदूर के द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों में काम किया जाता है। औद्योगीकरण इतिहास में अकसर प्रारंभिक फैक्ट्रियों की स्थापना से शुरू होते हैं।

 

(iii) औद्योगीकरण से पूर्व यूरोप में उत्पादन से संबंधित कौन-सी क्रिया संचालित थी?

उत्तर यूरोप में औद्योगीकरण से पूर्व गिल्ड्स अत्यधिक शक्तिशाली थे। वास्तव में, गिल्ड्स व्यापारियों का समूह होता था, जो उत्पादन से संबंधित क्रियाओं को नियंत्रित रखता था। यह उत्पाद शुरू करने से पहले व्यक्तियों को प्रशिक्षण भी प्रदान करता था।

 

2. निम्नलिखित स्रोत को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

1760 के दशक के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता के सुदृढ़ीकरण की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट नहीं आई। ब्रिटिश कपास उद्योग अभी फैलना शुरू नहीं हुआ था और यूरोप में बारीक भारतीय कपड़ों की भारी माँग थी। इसलिए कंपनी भी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को ही और फैलाना चाहती थी।

1760 और 1770 के दशकों में बंगाल और कर्नाटक में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी को निर्यात के लिए लगातार सप्लाई आसानी से नहीं मिल पाती थी। बुने हुए कपड़े को हासिल करने के लिए फ्रांसीसी, डच और पुर्तगालियों के साथ-साथ स्थानीय व्यापारी भी होड़ में रहते थे। इस प्रकार बुनकर और आपूर्ति सौदागर खूब मोल-भाव करते थे और अपना माल सबसे ऊँची बोली लगाने वाले खरीदार को ही बेचते थे। लंदन भेजे गए अपने पत्र में कंपनी के अफसरों ने आपूर्ति में मुश्किल और ऊँचे दामों का बार-बार जिक्र किया है। लेकिन एक बार ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित हो जाने के बाद कंपनी व्यापार पर अपने एकाधिकार का दावा कर सकती थी। फलस्वरूप उसने प्रतिस्पर्धा खत्म करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास व रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू कर दी। यह काम कई चरणों में किया गया।

 

(i) भारतीय कपड़ा व्यापार की स्थिति का वर्णन करें।

उत्तर 1760 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी के सुदृढ़ीकरण के पश्चात् भी भारतीय कपड़ों के निर्यात में कोई कमी नहीं आई। इस समय तक ब्रिटिश कपास उद्योग प्रतिस्पर्धा की स्थिति में नहीं था। भारत के कपड़ों की पश्चिम देशों में अत्यधिक माँग थी।

 

(ii) ईस्ट इंडिया कंपनी को राजनीतिक सत्ता स्थापित करने से पहले निर्यात की वस्तुओं को किस प्रकार प्राप्त करना होता था?

उत्तर ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रारंभ में निर्यात की वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता था, क्योंकि बुनकर और आपूर्ति सौदागर अपनी वस्तुओं को बेचने से पहले अधिक मोल भाव करते थे और अत्यधिक बोली लगाने वाले व्यक्तियों को ही अपना माल बेचते थे। इस बात का उल्लेख लंदन भेजे जाने वाले पत्रों में भी किया गया है।

 

(iii) भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के पश्चात् ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारिक कार्यों को किस प्रकार व्यवस्थित किया?

उत्तर भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के पश्चात् ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारिक कार्यों में एकाधिकार स्थापित किया। इसके अंतर्गत उन्होंने लागतों पर अंकुश रखने और कपास व रेशम से बनी वस्तु की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू कर दी थी।

 

3. निम्नलिखित स्रोत को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

 

स्रोत ‘अ’ ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत 

 

कपास (कॉटन) नए युग का पहला प्रतीक थी। उन्नीसवीं सदी के आखिर में कपास के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई। 1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था। 1787 ई. में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया। यह इजाफा उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत सारे बदलावों का परिणाम था। आइए देखें कि ये बदलाव कौन से थे।

 

(i) यूरोप में कपास ने किस प्रकार औद्योगिक गतिविधियों को तीव्रता प्रदान की?

उत्तर अठारहवीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश उद्योगों में कपास की अत्यधिक माँग थी, जिसका प्रमुख कारण वस्त्र उद्योगों का तेजी से विकास था। 18वीं सदी में ब्रिटेन अपनी कपास उद्योग की जरूरत को पूरा करने के लिए कई लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था।

 

स्रोत ‘ब’ आविष्कार द्वारा औद्योगिक क्रांति में परिवर्तन

 

अठारहवीं सदी के कई ऐसे आविष्कार हुए, जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया (कार्डिंग, ऐंठना व कताई और लपेटने) के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से ज्यादा मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने लगा। इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा सामने रखी। अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे देहात में फैला हुआ था। यह काम लोग अपने-अपने घर पर ही

करते थे, लेकिन अब महँगी नई मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था। कारखाने में समस्त प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थीं।

 

(ii) “मशीनों के आविष्कार उत्पादन की क्रिया को गतिशीलता प्रदान करते हैं।” कथन की पुष्टि करें।

उत्तर अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में अनेक मशीनों का आविष्कार हुआ। इन मशीनों ने उत्पादन की क्रिया को गतिशीलता प्रदान की, जिसके पश्चात् उत्पादन का कार्य कारखानों में किया जाने लगा, जिससे कम समय में अधिक वस्तुओं का निर्माण संभव हुआ।

 

स्रोत ‘स’ इंग्लैंड में औद्योगिक क्षेत्र की व्यापकता

 

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में कारखाने इंग्लैंड के भूदृश्य का अभिन्न अंग बन गए थे। ये नए कारखाने इतने विशाल और नई प्रौद्योगिकी की ताकत इतनी जादुई दिखाई देती थी कि उस समय के लोगों की आँखें चौंधिया जाती थीं। लोगों का ध्यान कारखानों पर टिका रह जाता था। वे इस बात को मानो भूल ही जाते थे कि उनकी आँखों से ओझल गलियों और वर्कशॉप्स में अभी भी उत्पादन चालू है।

 

(iii) उन्नीसवीं सदी के कारखाने इंग्लैंड को विशिष्ट क्यों बनाते थे?

उत्तर – उन्नीसवीं सदी औद्योगीकरण की सदी थी। इसके अंतर्गत सबसे अधिक उद्योगों की स्थापना इंग्लैंड में हुई। 19वीं सदी में इंग्लैंड में उद्योगों की व्यापकता इतनी थी कि प्रत्येक व्यक्ति इसमें काम करना चाहता था, जिससे वर्कशॉप्स तथा घर में उत्पादन धीरे-धीरे बंद हो गया।

भारत में कपड़े बुनकरों के सामने क्या समस्याएं थी?

इस प्रकार भारत में कपड़ा बुनकरों के सामने एक-साथ दो समस्याएँ थी। उनका निर्यात बाज़ार ढह रहा था और स्थानीय बाज़ार सिकुड़ने लगा था। स्थानीय बाज़ार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार थी। कम लागत पर मशीनों से बनने वाले आयातित कपास उत्पाद इतने सस्ते थे कि बुनकर उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे।

बुनकर कच्चे कपास की समस्या से क्यों पीड़ित थे?

कच्चे माल की कमी - भारत से कच्चे कपास का निर्यात बढ़ने से कच्चे कपास की कीमतें बढ़ गई । भारतीय बुनकरों महंगी कीमतों पर कच्चा कपास खरीदने को बाध्य हो गये । गुमाश्तों के साथ कलह- गुमाश्तें अन्यायपूर्ण तरीके से काम करते थे और बुनकरों को आपूर्ति में देरी करने पर दंडित करते थे। इसलिए उनका बुनकरों के साथ कलह होता रहता था ।

बुनकर कौन है?

बुनकर कौन थे ? बुनकर आमतौर पर बुनाई का काम करने वाले समुदायों के ही कारीगर होते थे। वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसी हुनर को आगे बढ़ाते थे। बंगाल के तांती, उत्तर भारत के जुलाहे या मोमिन, दक्षिण भारत के साले व कैकोल्लार तथा देवांग समुदाय बुनकरी के लिए प्रसिद्ध थे

बंगाल के बुनकरों की दरिद्रता का कारण क्या था?

गडकरी के मुताबिक "जो बुनकर देश के सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा हैं और जिनके द्वारा बनाए गए कपड़ों की विदेशों में ज़बरदस्त मांग है, सरकार की लापरवाही के कारण वे आत्महत्या करने और भूखों मरने के लिए मजबूर हैं".