कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है उत्तर बताओ? - kabeer ne apane ko deevaana kyon kaha hai uttar batao?

‘दीवाना’ का सीधा-सादा अर्थ होता है – पागल । कबीर अपने निर्गुण-निराकार ब्रह्म की भक्ति में दीवाना हैं, पागल हैं, तन्मय हैं । उन्हें पता है कि यही सत्य और नित्य तत्त्व है। जबकि संसार विभिन्न प्रकार के आडम्बरों (व्रत, उपवास, तिलक, यात्रा आदि) में ईश्वर को ढूँढ़ रहा है । संसार का आडम्बर और बात है और कबीर की दीवानगी अलग बात है।

Que : 172. कबीर ने अपने आपको दीवाना क्यों कहा है?

Answer: यहां दीवाना शब्द का अर्थ "पागल" है किसी के प्रेम में डूबा हुआ व्यक्ति दीवाना कहलाता है कबीर भी प्रभु की भक्ति में लीन है जबकि लोग बाहरी आडंबरों में उलझ कर ईश्वर को खोज रहे हैं अतः कबीर अपने आप को दीवाना कहता है|

Solution : कबीर अपने आप को दीवाना कहता है क्योंकि उनके अनुसार ईश्वर निर्गुण, निराकार, <br> अजय-अमर और अविनाशी है और उन्होंने ने इस परमात्मा का आत्म साक्षात्कार कर <br> लिया है अब वे राग-द्वेष, अंहकार और मोह-माया से दूर होकर निर्भय हो चुके हैं अत: <br> ईश्वर के सच्चे भक्त होने के कारण दीवाने हैं।

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कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है

  • Posted by Hariom Sahu 2 years, 1 month ago

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    कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

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    कबीर ने स्वयं को दीवाना इसलिए कहा है, क्योंकि वह निर्भय है। उसे किसी का कुछ भी कहना व्यापता नहीं है। वह ईश्वर के सच्चे स्वरूप को पहचानता है। वह ईश्वर का सच्चा भक्त है, अत: दीवाना है।

    कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है उत्तर बताओ? - kabeer ne apane ko deevaana kyon kaha hai uttar batao?

    Posted by Vaibhav Kaushik 10 months, 3 weeks ago

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    Posted by ?????? Ⓡⓐⓣⓗⓞⓓ 1 year, 8 months ago

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    Posted by Raju Ram Parjaprt 11 months, 4 weeks ago

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    Posted by Muskansoni Mussu 1 year, 10 months ago

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    Posted by Sachin Sachin 7 months ago

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    Posted by Jagdesh Bishnoi 1 year, 10 months ago

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    Posted by Md Shabaaz 1 year, 2 months ago

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    Posted by Neha Shaw 1 year ago

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    Posted by Md Shabaaz 1 year, 2 months ago

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    Posted by Kamlesh Armo 1 year, 9 months ago

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    अन्य संत कवियों नानक, दादू और रैदास के ईश्वर संबंधी विचारों का संग्रह करें और उन पर एक परिचर्चा करें।


    अन्य संत कवियों के पदों का संकलन

    रैदास

    1. जिहि कुल साधु वैसनो होड़।

    बरन अबरन रंक नहीं ईस्वर, विमल बासु जानिए जग सोइ।।

    बधन बैस सूद अस खत्री डोम चंडाल मलेच्छ किन सोइ।

    होई पुनीत भगवंत भजन ते आपु तारि तारै कुल दोइ।।

    धनि सु गार्ड धनि धनि सो ठाऊँ, धनि पुनीत कुटँब सभ लोइ।

    जिनि पिया सार-रस, तजे आन रस, होड़ रसमगन, डारे बिषु खोइ।।

    पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि औरु न कोई।

    जैसे पुरैन पात जल रहै समीप भनि रविदास जनमे जगि ओइ।।

    2. ऐसी लाज तुझ बिनु कौन करै।

    गरीबनिवाजु गुसैयाँ, मेरे माथे छत्र धरै।।

    जाकी ‘छोति जगत की लागै, तापर तुही ढरै।

    नीचहिं ऊँच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै!

    नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना, सैनु तरै।

    कहि रविदास सुनहु रे संतो, हरि-जीउ ते सभै सरै।।

    2. ऐसी लाज तुझ बिनु कौन करै।

    गरीबनिवाजु गुसैयाँ, मेरे माथे छत्र धरै।।

    जाकी ‘छोति जगत की लागै, तापर तुही ढरै।

    नीचहिं ऊँच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै!

    नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना, सैनु तरै।

    कहि रविदास सुनहु रे संतो, हरि-जीउ ते सभै सरै।।

    कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा हो?

    कबीर ने स्वयं को दीवाना इसलिए कहा है, क्योंकि वह निर्भय है। उसे किसी का कुछ भी कहना व्यापता नहीं है। वह ईश्वर के सच्चे स्वरूप को पहचानता है। वह ईश्वर का सच्चा भक्त है, अत: दीवाना है

    कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है 5 कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार?

    कबीर ने ऐसा इसलिए कहा है कि क्योंकि संसार के लोग सच को सहन नहीं कर पाते और न उस पर विश्वास करते हैं। उन्हें झूठ पर विश्वास हो जाता है। कबीर संसार के लोगों को ईश्वर और धर्म के बारे में सत्य बात बताता है, ये सब बातें परंपरागत ढंग से भिन्न हैं, अत: लोगों को अच्छी नहीं लगतीं।

    संत कबीर की?

    कबीरदास या कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

    कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है इसके समर्थन में उन्होंने क्या क्या तर्क दिए हैं?

    इसके समर्थन में उन्होंने निम्न तर्क दिए हैं - <br> • कबीर के अनुसार जिस प्रकार विश्व में एक ही वायु और जल है, उसी प्रकार संपूर्ण संसार में <br> एक ही परम ज्योति व्याप्त है। <br> • सभी मानव एक ही मिट्टी से अर्थात् ब्रम्ह द्वारा निर्मित हैं। <br> • परमात्मा लकड़ी में अग्नि की तरह व्याप्त रहता है।