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किडनी रक्त में से अपशिष्ट और तरल पदार्थ को अलग करने का काम करती है, जब अपशिष्ट पदार्थ की मात्रा अधिक होती है और तरल पदार्थ कम होता है तो अपशिष्ट पदार्थ किडनी में जमा होने लगते हैं और इकठ्ठा होकर छोटे या बड़े आकार के पत्थरनुमा संरचना में बदल जाते हैं। इस संरचना को हम किडनी स्टोन कहते हैं। यह कई तरह के मिनरल्स और साल्ट से मिलकर बना होता है। किडनी स्टोन के लेजर उपचार को लेजर लिथोट्रिप्सी कहते हैं। आज हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे।
किडनी स्टोन के प्रकारअलग-अलग साल्ट और मिनरल्स से बने होने के आधार पर किडनी स्टोन के कई प्रकार हैं, कुछ प्रधान प्रकार नीचे लिखे गए हैं-
किडनी स्टोन होने का कारण
किडनी स्टोन के लक्षण
ये भी पढ़ें- किडनी स्टोन की सर्जरी करने के लिए परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी सर्जरी गुर्दे की पथरी का लेजर ऑपरेशन क्या है? What is Laser Lithotripsy In Hindiलेजर लिथोट्रिप्सी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें लेजर किरण और युरेट्रोस्कोप की मदद से किडनी स्टोन का ऑपरेशन किया जाता है। गुर्दे की पथरी के लेजर ऑपरेशन में किडनी में कोई चीरफाड़ नहीं होता है और उपचार के दो दिन बाद रोगी आसानी से अपने ऑफिस जा सकता है और सभी सामान्य काम कर सकता है। किडनी स्टोन के लेजर ऑपरेशन की जरूरत कब पड़ती है?पथरी किडनी से बाहर निकलकर पेशाब नली में फंस सकती है। जब पथरी का आकार बड़ा होता है तो पेशाब नली के जाम हो जाने की संभावना बन सकती है, उस दौरान सही समय पर उपचार न मिल पाने पर किडनी फेलियर भी हो सकता है। आमतौर पर जब किडनी स्टोन छोटे आकार का होता है तब डॉक्टर रोगी को सर्जरी की सलाह नहीं देते हैं और उसे दवाइयों और घरेलू नुस्खे से ठीक करते हैं। लेकिन जब दवाइयों के सेवन के बाद भी मरीज को आराम नहीं मिलता है और स्थिति गंभीर होती जाती है तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं। बाकी उपचार प्रक्रिया की तुलना में किडनी स्टोन का लेजर ऑपरेशन बहुत अच्छा होता है। इसमें कोई कट नहीं होता है और रिकवरी के लिए रोगी को ज्यादा दिन तक बिस्तर में नहीं रहना पड़ता है। पढ़ें- किडनी स्टोन की पतंजलि दवा किडनी स्टोन की लेजर सर्जरी की क्या जटिलताएं हो सकती हैं?हालांकि, ज्यादातर मामलों में लेजर सर्जरी से जटिलताएं होने की संभावना न्यूनतम होती है। लेकिन दुर्भाग्य से किसी मामले में रोगी को निम्न जटिलताओं में से किसी का भी सामना करना पड़ सजता है।
सर्जरी के पहले – (निदान)सर्जरी के पहले डॉक्टर पथरी के आकार और स्थिति का पता लगाने के लिए निम्न चीजें कर सकता है-
इसके अलावा सर्जरी के पहले आपको भी कुछ चीजें करनी पड़ सकती है-
पढ़ें- गर्भावस्था में किडनी स्टोन का उपचार गुर्दे की पथरी का लेजर ऑपरेशन कैसे होता है? Kidney Stone Ka Laser Operation Kaise Hota Hai?
पूरी प्रक्रिया ख़तम होने में 2 घंटे तक का समय लग सकता है। Pristyn Care से करें संपर्कयदि आप गुर्दे की पथरी से पीड़ित हैं और उसका सफल उपचार करवाना चाहते हैं तो Pristyn Care से संपर्क करें। हमारे पास गुर्दे की पथरी का लेजर उपचार करने के लिए अनुभवी सर्जन और एडवांस उपकरण हैं। हम भारत के कई शहरों में फैले हैं। हमारे डॉक्टर आपके स्थिति का उचित निदान करके आपको सर्जरी या दवाइयों की सलाह देते हैं। सर्जरी करने वाले सर्जन 10 से अधिक वर्षों का अनुभव होता है, अपने रोगियों को एक बेहतर उपचार प्रदान करने के लिए हम अपने रोगियों को निम्न सुविधाएं प्रदान करते हैं। डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें| लेजर से किडनी स्टोन कैसे निकाला जाता है?युरेट्रोस्कोप मूत्र पथ से होते हुए मूत्राशय और फिर मूत्र नली तक जाएगा, जरूरत पड़ने पर इसे किडनी तक भेजा जाता है। अब डॉक्टर फाइबर (एक प्रकार का तार जिससे लेजर बीम निकलती है) को युरेट्रोस्कोप के जरिए अंदर डालते हैं और लेजर किरण की मदद से पथरी के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए जाते हैं। पथरी मूत्र के जरिए बाहर निकल जाती है।
दूरबीन से गुर्दे की पथरी का ऑपरेशन कैसे होता है?रेनोस्कोप को यूरिन के रास्ते से किडनी तक पहुंचाया जाता है और लेजर पथरी के टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देता है। सर्जरी के अगले दिन मरीज अपनी सामान्य दिनचर्या कर सकता है।
लेजर ऑपरेशन कैसे होते हैं?आँखों के कॉर्निया में एक फ्लैप बनाकर, उसमें कंप्यूटर नियंत्रित एक्सीमर लेज़र को सीधा आँखों पर प्रकाश स्पंदित किया जाता है। फिर कॉर्निया को दोबारा से आकृति में लाया जाता है। आखिर में सर्जन कॉर्निया फ्लैप को फिर से स्थापित करते हैं और यह कुछ ही घंटों में ठीक होना शुरू हो जाता है।
पथरी का ऑपरेशन मशीन द्वारा कैसे होता है?यह मशीन किडनी के पथरी को एंडोस्कोपिक तरीके से तोड़ने के काम आती है। इस मशीन की खासियत यह है कि एक साथ ही पत्थर को मैकेनिकल और अल्ट्रसाउंड तरीके से तोड़ने के साथ-साथ टुकड़ों को शरीर से बाहर भी निकल देती है। इस से सर्जरी में समय की काफी बचत होती है। इसमें मरीज को अधिक समय तक बेहोश नहीं रहना पड़ता है।
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