कहानी के मूलतः छः तत्व हैं। ये हैं- विषयवस्तु अथवा कथानक, चरित्र, संवाद, भाषा शैली, वातावरण और उद्देश्य। Show कथानक (विषयवस्तु)-प्रत्येक कहानी में कोई न कोई घटनाक्रम अवश्य होता है। कहानी में वर्णित घटनाओं के समूह को कथानक कहते हैं। कथानक किसी भी कहानी की आत्मा है। इसलिए कथानक की योजना इस प्रकार होनी चाहिए कि सभी घटनाएं और प्रसंग परस्पर सम्बद्ध हों। उनमें बिखराव या परस्पर विरोध नहीं हो। मौलिकता, रोचकता, सुसंगठन, जिज्ञासा, कुतूहल की सृष्टि अच्छे कथानक के गुण हैं। साधारण से साधारण कथानक को भी कहानीकार कल्पना एवं मर्मस्पर्शी अनुभूतियों से सजाकर एक वैचित्र्य और आकर्षण प्रदान कर सकता है। चरित्र (पात्र)-प्रत्येक कहानी में कुछ पात्र होते हैं जो कथानक के सजीव संचालक होते हैं। इनमें एक ओर कथानक का आरम्भ, विकास और अन्त होता है तो दूसरी ओर हम कहानी में इनसे आत्मीयता प्राप्त करते हैं। कहानी में मुख्य रूप से दो प्रकार के पात्र होते हैं, पहला वर्गगत अर्थात् जो अपने वर्ग की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, दूसरे व्यक्तिगत वे पात्र जिनकी निजी विशेषताएँ होती हैं। कहानी में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए। कहानी में लेखक की दृष्टि प्रमुख पात्र के चरित्र पर अधिक रहती है। इसलिए अन्य पात्रों के चरित्र का विकास मुख्य पात्र के सहारे ही होना चाहिए। कहानी में पात्रों की संख्या अधिक न हो। प्रमुख पात्र का चरित्र ही क्षण भर के लिए अमिट प्रभाव छोड़कर चला जाय। जो भी पात्र कहानी में आते हैं उनके व्यक्तित्व को पूरी गरिमा के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा उनकी भावनाओं को पूरी तरह अभिव्यक्ति मिलनी चाहिए। संवाद-संवाद कहानी का आवश्यक अंग है। कहानी में पात्रों के वार्तालाप संवाद कहलाते हैं। ये संवाद कहानी को सजीव और प्रभावशाली बनाते हैं। कहानी में संवाद कथानक को गति प्रदान करते हैं, पात्रों का चरित्र-चित्रण करते हैं, कहानी को स्वाभाविकता प्रदान करते हैं, उसका उद्देश्य स्पष्ट करते हैं। संवाद का सबसे बड़ा गुण है-जिज्ञासा और कुतूहल उत्पन्न करना। इन सब कार्यों का संपादन तभी हो सकता है जब कहानी के संवाद पात्र, परिस्थिति एवं घटना के अनुकूल हों, संक्षिप्त एवं अर्थपूर्ण हों, चरित्रों को उभारने वाले, सरल एवं स्पष्ट हों। भाषा शैली-कहानी की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि उसमें मूल संवेदना को व्यक्त करने की पूरी क्षमता हो। कहानीकार का दायित्व और उसकी रचना शक्ति का सच्चा परिचय उसकी भाषा से ही मिलता है। भाषा की दृष्टि से सफल कहानी वही मानी जाती है जिसकी भाषा सरल, स्पष्ट प्रभावमयी और विषय एवं पात्रानुकूल हो। वह ओज, माधुर्य गुणों से युक्त हो। जहाँ तक शैली का सम्बन्ध है उसमें सजीवता, रोचकता, संकेतात्मकता तथा प्रभावात्मकता आदि का होना आवश्यक है। शैली का संबंध कहानी के सम्पूर्ण तत्वों से रहता है। कहानीकार इन शैलियों में कहानी लिख सकता है- वर्णन-प्रधान-शैली, आत्मकथात्मक-शैली, पात्रात्मक शैली, डायरी शैली, नाटकीय शैली, भावनात्मक शैली आदि। कहानी के लिए सरस, संवादात्मक शैली अधिक उपयुक्त होती है। वातावरण-वातावरण का अर्थ है, उन सभी परिस्थितियों का चित्रण करना जिनमें कहानी की घटनाएँ घटित हो रही हैं तथा जिनमें कहानी के पात्र साँस ले रहे हैं। सफल कहानी में देश, काल, प्रकृति, परिवेश आदि का प्रभाव सृष्टि के लिए अनिवार्य तत्त्व के रूप में स्वीकार किया जाता है। वातावरण की सृष्टि से कहानी हृदय पर मार्मिक प्रभाव की अभिव्यंजना करती है। कहानीकार पूरे संदर्भ में सामाजिक परिवेश को देखता है, उसका यथार्थ वर्णन करता है। वातावरण के माध्यम से वह कहानी में एकांतिक प्रभाव लाने की स्थिति उत्पन्न करता है। सही वातावरण किसी भी कहानी को विश्वसनीय बनाता है। 'उसने कहा था', 'पुरस्कार' जैसी कहानियों की प्रभावान्विति में वातावरण का सहयोग देखा जा सकता है। यह भी पढ़ेंहिंदी उपन्यास का विकासअलंकार कितने प्रकार के होते हैंसोरठा छंदउद्देश्य-कहानी की रचना का उद्देश्य मनोरंजन माना जाता है किन्तु मनोरंजन ही कहानी का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता। कहानी में जीवन के किसी एक पक्ष के प्रति दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है। आज की कहानी मानव-जीवन के किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर करती है। कहानी द्वारा जीवन-सत्य की व्याख्या एवं मानवीय आदर्शों की स्थापना भी की जाती है। आकार में लघु होने के उपरान्त भी कहानी महान विचारों का वहन करती है। उदाहरण के लिए- भारतेन्दु युग की कहानियों का मुख्य स्वर सामाजिक सुधारवादी एवं धार्मिक दृष्टिकोण से प्रेरित था। प्रेमचन्द की कहानियाँ मध्यम वर्ग के सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण है। जैनेन्द्र की कहानियों में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रमुख है तो नई कहानियों में सामाजिक जीवन की विसंगतियों एवं जीवन के अभावों, निराशाओं, कुंठाओं का सटीक चित्रण हुआ है। कहानी- साहित्य की सभी विधाओं में कहानी सबसे पुरानी विधा है, जनजीवन में यह सबसे अधिक लोकप्रिय है। प्राचीन कालों मे कहानियों को कथा, आख्यायिका, गल्प आदि कहा जाता है। आधुनिक काल मे कहानी ही अधिक प्रचलित है। साहित्य में यह अब अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है। पहले कहानी का उद्देश्य उपदेश देना और मनोरंजन करना माना जाता है। आज इसका लक्ष्य मानव- जीवन की विभिन्न समस्याओं और संवेदनाओं को व्यक्त करना है। यही कारण है कि प्रचीन कथा से आधुनिक हिन्दी कहानी बिल्कुल भिन्न हो गई उसकी आत्मा बदली है और शैली भी। कहानी के तत्व- मुख्यतः कहानी के छ तत्व माने गये है। [1] कथावस्तु [2] चरित्र-चित्रण [3] संवाद [4] देशकाल या वातावरण [5] उद्देश्य [6] शैली [1] कथावस्तु- कथावस्तु के बिना कहानी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह उसका अनिवार्य अंग है । कथावस्तु जीवन की भिन्न- मिन्न दिशाओं और क्षेत्रों से ग्रहण की जाती है । इसके विभिन्न स्रोत है, पुराण, इतिहास, राजनीतिक, समाज आदि। कहानीकार इनमे से किसी भी क्षेत्र से कथावस्तु का चुनाव करना है और उसके आधार पर कथानक की अट्टालिका खड़ी करता है। कथावस्तु में घटनाओं की अधिकता हो सकती है और एक ही घटना पर उसकी रचना भी हो सकती है। अब तो कहानी में घटना-तत्व अत्यंत सूक्ष्म होते जा रहे है। आज घटना की आवश्यकता पर अधिक बल नही दिया जाता। लेकिन, उनमें कोई न कोई घटना अवश्य होगी। [2] चरित्र-चित्रण- कहानी किसी व्यक्ति की होती थी। या व्यक्ति ही होती है। यह व्यक्ति ही कहानी में चरित्र कहलाता है। कहानी में इसकी संख्या कम से कम होनी चाहिए । तभी कहानीकार एक चरित्र के बहारिक और अंतरिक पक्षों का अधिक से अधिक मनोविश्र्लेषण कर सकता है। लेकिन मूल घटना से उसका गहरा संबंध होना चाहिए। [3] संवाद- पहले संवाद कहानी का अभिन्न अंग माना जाता था, लेकिन अब उसकी अनिवार्यता समाप्त हो गई। ऐसे अनेक कहानियाँ लिखी गयी है, या लिखी जाती है। जिसमे संवाद का एकदम अभाव रहता है। सारी कहानी वर्णनात्मक या मनोविश्र्लेषणात्मक शैली मे लिख दी जाती है। संवाद की कहीं भी अनावश्यकता नहीं पड़ती। लेकिन संवाद से कहानी के पात्र संजीव और स्वाभाविक बन जाते है। [4] देशकाल या वातावरण- कहानी देशकाल की उपज होती है, इसलिए हर देश की कहानी दूसरे देशों से भिन्न होती है। भारत में या इस देश के किसी भी भू-भाग में लिखी कहानियों का अपना वातावरण होता है, जिसकी संस्कृति, सभ्यता, रूढि, संस्कार का प्रभाव उन पर स्वभाविक रूप से पड़ता है। यह अपने आप उपस्थिति हो जाता है। यह तो आधार है, जिस पर सारा कार्यकलाप होता है। [5] उद्देश्य- यह कहानी का एक तत्व माना गया है, सच तो यह है कि साहित्य की किसी विधा की रचना बिना उपदेश के नहीं होती हम बिना उपदेश के जीवन जीना नहीं चाहते। कहानी की रचना भी बिना उपदेश के नहीं होता। कहानी काल का कोई ना कोई प्रयोजन हर कहानी के रचना के पीछे रहता है। यह उद्देश्य कहानी के आवरण में छिपा रहता है। प्रकट हो जाने पर उसका कलात्मक सौंद्धर्य नष्ट हो जाता है। [6] शैली- शैली कहानी को सुसज्जित करनेवाला कलात्मक आवरण होती है। इसका संबंध कहानीकार के आन्तरिक और बाह्य पक्षों में रहता है। कहानी लेखन अपनी कहानी को अपने प्रकार से कहना चाहता है। वह उसे वर्णात्मक, संवादात्मक, आत्मकथात्मक, विवरणात्मक किसी भी रूप में लिख सकता हैं। उसकी शैली ऐसी हो की पाठको मे अपनीओर आकृष्ट करे। साधारणता या भाषा शक्ति द्वारा होता है। कहानीकार की भाषा में इतनी शक्ति हो जो साधारणता पाठकों को भी अपनी ओर आकृष्ट कर ले। कहानी का आरम्भ, मध्य और अन्त सुगठित हो, शीर्षक लघु और रोचक हो। अताएव कहानी की रचना एक कलात्मक विधान है, जो अभ्यास और प्रतिभा के द्वारा रूपाकार ग्रहण की जा सकती है। Share Share भाषाओं का वर्गीकरणMarch 15, 2018 भाषाओं का वर्गीकरण विभिन्न भाषाओं को साधारण दृष्टि से देखने से इस बात का अनुभव होता है कि उनमें परस्पर कुछ बातों में समानता और कुछ में विभिन्नता होती है। समानता दो तरह की हो सकती है-- एक पदरचना की और दूसरा अर्थतत्वों की। उदाहरण के लिए--करना, जाना, खाना, पीना, में समानता इस बात की है की सब में ना प्रत्यय लगा हुआ है जो एक ही संबंधतत्व का बोध कराता है। दूसरी और करना,करता, करेगा, करा, करें, आदि में संबंधतत्व की विभिन्नता है पर अर्थतत्व की समानता है। केवल पदरचना अर्थात संबंधतत्व की समानता पर निर्भर भाषाओं का वर्गीकरण आकृति मूलक वर्गीकरण कहलाता है, दूसरा जिसमें आकृति मूलक समानता के अलावा अर्थतत्व की भी समानता रहती है इतिहासिक या पारिवारिक वर्गीकरण कहा जाता है। आकृतिमूलक वर्गीकरण आकृति मूलक वर्गीकरण के हिसाब से, पहले भाषाएं दो वर्गों में बांटी जाती है-- अयोगात्मक और योगात्मक । योगात्मक भाषा उसे कहते हैं, जिसमें हर शब्द अलग- अलग अपनी सत्ता रखता है, उसमे दूसरे शब्दों के कारण कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता। प्रत्येक शब्द की अलग-अलग संबंधतत्व या अर्थतत्व को व्यक्त कर Share 6 commentsRead more भाषा विज्ञान का अन्य विज्ञान से संबंधFebruary 10, 2018 भाषा विज्ञान में भाषा या भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। और भाषा जीवन का प्रमुख अंग है। क्योंकि भाषा के बिना जीवन और जगत का कोई भी कार्य नहीं हो सकता है। भाषा मानव जीवन की समस्त गतिविधियों की मूल आधार होती है। भाषा से ही हम परस्पर एक दूसरे के विचारों से अवगत होते हैं। अपनी इच्छा वह अभिलाषा व्यक्त करते हैं। और लोग व्यवहार में प्रभावित होते हैं। तथा दूसरों को प्रभावित करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। भाषा ही हमें ज्ञान विज्ञान के अनुसंधानों में सहायता प्रदान करती है। और भाषा से हम प्रगति के पथ पर अग्रसर होकर प्रकृति के विविध रहस्य का उद्घाटन करने में सहमत होते हैं। जब भाषा हमारे जीवन जगत ज्ञान विज्ञान आदि के सभी क्षेत्रों में अपना अधिकार रखती है। तब भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले भाषा विज्ञान का समान्य ज्ञान विज्ञान कि अन्य शाखा एंव परशाखाओं के प्रतिपादक विविध शास्त्रों से होना स्वाभाविक है। वैसे भी भाषा ज्ञान विज्ञान की सभी शाखाओं से सहायता प्राप्त करके अपने क्षेत्रों मे परमपरि होता है। और विविध शास्त्रों से उपयोगी सामग्री लेकर भाषा की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। इसके अ कहानी के उद्देश्य क्या होते हैं?पहले कहानी का उद्देश्य उपदेश देना और मनोरंजन करना माना जाता है। आज इसका लक्ष्य मानव- जीवन की विभिन्न समस्याओं और संवेदनाओं को व्यक्त करना है। यही कारण है कि प्रचीन कथा से आधुनिक हिन्दी कहानी बिल्कुल भिन्न हो गई उसकी आत्मा बदली है और शैली भी। कहानी के तत्व- मुख्यतः कहानी के छ तत्व माने गये है।
कहानी का हमारे जीवन में क्या महत्व है?दुनिया भर की संस्कृतियों ने हमेशा से ही विश्वास, परंपराओं और इतिहास को भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए कथाओं / कहानियों का उपयोग किया है। कहानियां कल्पनाशीलता को बढ़ाती हैं , कहानी कहने और सुनने वाले के बीच समझ स्थापित करने के लिए सेतु का काम करती है और बहुसांस्कृतिक समाज में श्रोताओं के लिए समान आधार तैयार करती है।
कहानी का मूल तत्व क्या है?कहानी के तत्व – कहानी किसी भी प्रकार की हो, उसका कुछ कथानक अवश्य होता है, उसमें कुछ पात्र अवश्य होते इन पात्रों का अपना स्वभाव और चरित्र अवश्य होता है और वे आपस में कुछ वार्तालाप भी करते हैं। यदि कहानी उचित भाषा-शैली में न लिखी जाए तो उसका प्रभावहीन होना निश्चित है। फिर उद्देश्य विहीन साहित्य तो निरर्थक होता है।
कहानी लिखने के नियम क्या है?कहानी लिखते समय किन बातों का ध्यान रखें
कहानी की भाषा सरल, सरस और मुहावरेदार होनी चाहिए। कहानी की घटनाएँ ठीक क्रम से लिखी जानी चाहिए। कहानी के वाक्य छोटे तथा क्रमबद्ध होने चाहिए। कहानी का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए।
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