कुकुरमुत्ता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा लिखी गई पूंजीवादी सभ्यता पर करारा व्यंग्य करती हुई एक लम्बी कविता है।यह कविता पहली बार 'हंस' मासिक पत्रिका के मई 1941 के अंक में प्रकाशित हुई थी।यह निराला जी की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है।यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर प्रहार करती हुई एक साथ प्रगतिवादी और
प्रयोगवादी दोनों काल की विशेषताओं से युक्त कविता है। कुकुरमुत्ता के संबंध में आचार्य नंददुलारे बाजपेई जी कहते हैं कि - " कुकुरमुत्ता में विनोद की सृष्टि अतिरंजित वर्णनों द्वारा की गई है।यत्र तत्र यथार्थ वादी चित्रण की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है।" कुकुरमुत्ता द्वारा गुलाब पर किया गया व्यंग्य उस उच्चवर्गीय समाज पर किया गया है जिनके उच्चता का महल दूसरों के शोषण पर ही टिका हुआ है।और फिर भी वो लोग शोषित वर्ग को उपेक्षा और तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं। शोषक वर्ग पर तीखा प्रहार करते हुए निराला जी कुकुरमुत्ता के माध्यम से कहते हैं कि - इसी तरह गुलाब को अनेक प्रकार से धिक्कारने के बाद कुकुरमुत्ता अपनी प्रशंसा करता हुआ कहता है कि - इतना ही नहीं कुकुरमुत्ता ने अपनी प्रशंसा में अपने को विभिन्न वाद्य यंत्रों , भौतिक वादी सभ्यता का मेरुदंड , विष्णु का सुदर्शन चक्र , सूरज , चन्द्रमा , विभिन्न प्रकार के नृत्यों में , मन्दिरों में , गुम्बदों में और न
जाने कहां कहां प्रतिष्ठित किया।जो उसके चरम आत्म गौरव को दर्शाता है। इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट
सूरदास के काव्य में निहित भक्ति का स्वरूप (स्रोतः इन्टरनेट) हिन्दी साहित्याकाश में सगुणोपासक कृष्ण भक्त कवियों की परम्परा में सूरदास का स्थान अनन्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में- ‘‘जिस प्रकार रामचरित का गान करने वाले कवियों में गोस्वामी तुलसीदास जी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार कृष्ण चरित गाने वाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास का। वास्तव में ये हिन्दी काव्य गगन के सूर्य और चन्द्र हैं। जो तन्मयता इन दोनों भक्त शिरोमणि कवियों की वाणी में पायी जाती है वह अन्य कवियों में कहाँ? हिन्दी काव्य इन्हीं के प्रभाव से अमर हुआ, इन्हीं की सरसता से उसका स्रोत सूखने न पाया। सूर की स्तुति में एक संस्कृत श्लोक के भाव को लेकर यह दोहा कहा गया है कि- ‘‘उत्तम पद कवि गंग के, कविता को बलवीर। केशव अर्थ गंभीर को, सूर तीन गुन धीर ।।’’ इसी प्रकार सूरदास की प्रशस्ति में किसी कवि ने यह भी कहा है कि- ‘‘किधौं सूर को सर लग्यो, किधौं सूर को पीर। किधौं सूर को पद लग्यों, बेध्यो सकल सरीर ।।’’ सूरदास बल्लभाचार्य के शि तोड़ती पत्थर : निराला जी की प्रगतिवादी कवितातोड़ती पत्थर कविता हिन्दी काव्य जगत के मूर्धन्य कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की सन् 1935 ई. में लिखी गई एक प्रगतिवादी कविता है। यद्यपि निराला जी छायावाद के प्रतिनिधि कवि थे तथापि उन्होंने छायावाद की रोमानियत से बाहर निकल कर यथार्थ को देखा और युगानुरुप प्रगतिवादी रचनाएं करनी प्रारम्भ कर दी। निर्धन, दुःखी, शोषित मजदूर प्रगतिवादी काव्य के मेरुदंड है। शोषित और सर्वहारा वर्ग का यथार्थ चित्रण ही प्रगतिवादी काव्य की मूल प्रवृत्ति रही है। तोड़ती पत्थर कविता भी इसी तरह की कविता है। इसमेें निराला जी ने इलाहाबाद के पथ पर भरी दोपहरी में पत्थर तोड़ने वाली मजदूरनी का यथार्थ चित्रण किया है।यह चित्रण अत्यंत मर्मस्पर्शी है। मजदूरनी चिलचिलाती धूप में बैठी अपने हथौड़े से पत्थर पर प्रहार कर रही है। जिस धूप में कोई घर से बाहर नहीं निकलना चाहता उसी धूप में वह हथौड़े से बार - बार प्रहार करके पत्थर तोड़ रही है। वहां किसी प्रकार की कोई छाया नहीं है।और न ही कोई छायादार वृक्ष है जहां थोड़ी देर बैठकर वह आराम कर ले। ऐसे वातावरण में वह बिना किसी से कुछ बोले अपने कर्म में तत्पर है।वह कितनी विवश प्रयोगवाद और अज्ञेयहिन्दी साहित्य में प्रयोग वाद का प्रारम्भ सन् 1943 ई. में अज्ञेय द्वारा सम्पादित तार सप्तक के प्रकाशन के साथ माना जाता है। वास्तव में इसका प्रारंभ छायावाद में निराला जी के काव्य में ही हो चुका था। उनकी अनेक कविताओं में प्रयोगवाद का प्रारंभिक रूप देखने को मिल जाता है। परन्तु इसका प्रतिष्ठित रूप अज्ञेय के तार सप्तक से ही माना जाता है।यह मूलतः अस्तित्ववाद से प्रेरित है जिसके प्रवर्तक सारेन कीकगार्द है। प्रयोगवाद की अवधि 1943 ई. से 1953 ई. तक मानी जाती है।तार सप्तक के सात कवि थे - मुक्तिबोध , नेमिचन्द्र जैन , भारत भूषण अग्रवाल , प्रभाकर माचवे , गिरिजा कुमार माथुर , रामविलास शर्मा और अज्ञेय । प्रयोगवाद नाम अज्ञेय के तार सप्तक का ही दिया हुआ है। तारसप्तक में अज्ञेय जी का एक वक्तव्य है - " प्रयोग सभी काल के कवियों ने किएं हैं । किन्तु कवि क्रमशः अनुभव करता आया है कि जिन क्षेत्रों में प्रयोग हुए हैं, आगे बढ़कर अब उन्हीं क्षेत्रों का अन्वेषण करना चाहिए जिन्हें अभी तक छुआ नहीं गया था जिनको अभेद्य मान लिया गया है। " वस्तुत: ऊपरी तौर पर देखा जाए तो सभ कुकुरमुत्ता कैसे व्यक्ति का प्रतीक है?कुकुरमुत्ता व्यक्ति है जो मुँह उठाकर खड़ा है उसे उगाया नहीं जाता हैं वह तो स्वयं ही उग जाता है। अथार्त गरीब और शोषित व्यक्ति तो अपने संसाधनों पर ही जीवित हैं वे कभी किसी का शोषण नहीं करते हैं। कुकुरमुत्ता गुलाब से कहता है तू तो बनावटी है।
निराला की कविताओं में व्यक्त विचारों पर किसका प्रभाव दिखाई पड़ता है?उन्होंने भारतीय प्रकृति और संस्कृति के विभिन्न रूपों का गंभीर चित्रण अपने काव्य में किया है। भारतीय किसान जीवन से उनका लगाव उनकी अनेक कविताओं में व्यक्त हुआ है। यद्यपि निराला मुक्त छंद के प्रवर्तक माने जाते हैं तथापि उन्होंने विभिन्न छंदों में भी कविताएँ लिखी हैं।
कुकुरमुत्ता कविता की कुकुरमुत्ता किसका प्रतीक है?इस कविता में कुकुरमुत्ता-श्रमिक, सर्वहारा, शोषित वर्ग का प्रतीक या प्रतिनिधि है, तो गुलाब, सामंती, पूंजीपति वर्ग का प्र्रतीक या प्रतिनिधि है।
कुकुरमुत्ता कविता के रचनाकार का नाम क्या है?सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'कुकुरमुत्ता कविता संग्रह / लेखकnull
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