Kathputli – Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book chapter 4 detailed explanation of lesson “Kathputli” along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Questions and Answers given at the back of the
lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7. इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 4 ” कठपुतली ” कविता के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे – कक्षा 7 पाठ 4 कठपुतली कवि परिचयकवि – भवानी प्रसाद मिश्र Kathputli Class 7 Video Explanationकठपुतली पाठ प्रवेशप्रस्तुत कविता ” कठपुतली ” के कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी इस कविता के माध्यम से हमें बताना चाहते है कि जब आप पर किसी की जिम्मेदारी होती है तो आपको एक – एक कदम सोच – समझकर रखना चाहिए। इस कविता में कठपुतलियाँ स्वतंत्रता की इच्छा से स्वयं अपनी बात व्यक्त कर रही हैं। उनके समक्ष स्वतंत्रता को साकार बनाने वाली अनेक चुनौतियाँ हैं। धागे में बँधी हुई कठपुतलियाँ पराधीन हैं। इन्हें दूसरों के इशारे पर नाचने से दुख होता है। दुख से बाहर निकलने के लिए एक कठपुतली विद्रोह कर देती है। वह अपने पाँव पर खड़ी होना चाहती है। उसकी बात सभी कठपुतलियों को अच्छी लगती है। वे भी उसके साथ स्वतन्त्र होना चाहती हैं। स्वतंत्र रहना कौन नहीं चाहता ! लेकिन , जब पहली कठपुतली पर सबकी स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है , वह सोच – समझकर कदम उठाना जरूरी समझती है। कठपुतली पाठ सारप्रस्तुत कविता ” कठपुतली ” में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने कठपुतलियों के मन की व्यथा को दर्शाया है। ये सभी कठपुतलियाँ धागों में बंधे – बंधे परेशान हो चुकी हैं और इन्हें दूसरों के इशारों पर नाचने में दुख होता है। इस दुख से बाहर निकलने के लिए एक कठपुतली विद्रोह के शुरुआत करती है , वो सब धागे तोड़कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। अन्य सभी कठपुतलियां भी उसकी बातों से सहमत हो जाती हैं और स्वतंत्र होने की चाह व्यक्त करती हैं। क्योंकि उनका मन भी स्वतन्त्र हो कर चलना चाहता था। परन्तु जब पहली कठपुतली पर सभी की स्वतंत्रता की ज़िम्मेदारी आती है , तो वो सोच में पड़ जाती है कि क्या वो इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी निभा पाएगी ? इस बात का क्या भरोसा है कि स्वतंत्र होने के बाद वो ख़ुश रह पाएंगी ? क्योंकि कहीं न कहीं कठपुतली को भी पता है कि उसकी यह स्वतन्त्र होने की इच्छा सही नहीं है , वह जानती है कि बिना धागों के उसका अस्तित्व बेजान है। इन बातों की वजह से ही पहली कठपुतली अपने फैसले के बारे में दोबारा सोचने पर मजबूर हो गयी और उसे लगने लगा कि उसके मन की इच्छा सही भी है या नहीं। कठपुतली पाठ व्याख्याकठपुतली सुनकर बोलीं और – और मगर… Kathputli Question Answers प्रश्न अभ्यास ( कठपुतली )प्रश्न 1 – कठपुतली को गुस्सा क्यों आया ? उत्तर – कठपुतली लंबे समय से धागों के बंधन में बंधी – बंधी परेशान हो चुकी है। उसके आगे – पीछे हर जगह धागे ही धागे हैं , जो उसे पसंद नहीं है। साथ ही साथ वह खुद से कोई काम नहीं कर सकती , उसे हमेशा दूसरों की उंगलियों के इशारों पर नाचना पड़ता है। इसीलिए उसे गुस्सा आया। उसे इन धागों के बंधन से स्वतंत्र होकर अपने पैरों पर चलना है। वह इस गुलामी की जिंदगी से छुटकारा पाना चाहती है। प्रश्न 2 – कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है
, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती ? प्रश्न 3 – पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी ? प्रश्न 4 – पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि – ‘ ये धागे / क्यों हैं मेरे पीछे – आगे ? / इन्हें तोड़ दो ; /मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो। ’ – तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि – ‘ ये कैसी इच्छा / मेरे मन में जगी ? ’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए – कठपुतली को गुस्सा क्यों आया class 7 short answer?Answer: कठपुतली को गुस्सा इसलिए आया क्योंकि वो धागे में बंधी हुई पराधीन है और वह स्वतंत्रता की इच्छा रखती है।
कठपुतली क्या चाहती है class 7?कठपुतली स्वतंत्र होकर अपने पाँवों पर खड़ी होना चाहती है लेकिन खड़ी नहीं होती क्योंकि जब उस पर सभी कठपुतलियों की स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है तो वह डर जाती है। उसे ऐसा लगता है कि कहीं उसका उठाया गया कदम सबको मुश्किल में न डाल दे।
कठपुतली पाठ से कौन सा संदेश मिला?'कठपुतली' कविता के माध्यम से कवि संदेश देना चाहता है कि आजादी का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पराधीनता व्यक्ति को व्यथित कर देता है। अतः स्वतंत्र होना और उसे बनाए रखना बहुत जरूरी है, भले ही यह कठिन क्यों न हो।
कठपुतली ऐसा क्यों चाहती है?वह अपने पाँव पर खड़ी होना चाहती है। उसकी बात सभी कठपुतलियों को अच्छी लगती है। स्वतंत्र रहना कौन नहीं चाहता! लेकिन, जब पहली कठपुतली पर सबकी स्वतंत्रता की ज़िम्मेदारी आती है, वह सोच-समझकर कदम उठाना ज़रूरी समझती है।
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