कक्षा कक्ष में विविधता से क्या तात्पर्य? - kaksha kaksh mein vividhata se kya taatpary?

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कक्षा में विविधता और समानता से क्या समझते हैं कक्षा में विविधता का मतलब होता है कि अलग-अलग जन के लोग अलग-अलग जगह से आए हुए लोग बच्चे और असमानता का मतलब होता है कि गरीबी और अमीरी या फिर जात पात का जो होता है जो कि अभी तो यह कुछ चीजें मैटर नहीं रखती है बहुत ही कम जगह सी होती है छोटी-छोटी गांव होते होंगे शायद अभी भी देखा जाता है कि कौन गरीब है कौन अमीर है छुआछूत का जाति का की उच्च जाति के जो बच्चे होते हैं उच्च वर्ग के उनके साथ में निम्न वर्ग के बच्चे नहीं बैठ सकते कि नहीं पढ़ सकते हैं ऐसा भी ऐसा कुछ भी होता नहीं है यह जो और समानता है इसको नहीं माना जाता है अभी हम सब एक समान है हम सब भारतीय हैं हमें सब में एक ही रक्त बहता है जो एक उच्च वर्ग में देता है वही रक्त वही एक निम्न वर्ग में भी भेजता है यह सब एक बेकार बातें हैं इसको नहीं सोचना चाहिए और अगर कोई ऐसा करता है तो आपको उसको समझाना चाहिए यह भेदभाव बिल्कुल नहीं करना चाहिए सब जगह हमारे कहीं कोई समानता नहीं है नहीं कोई कोई असामान्य

kaksha me vividhata aur samanata se kya samajhte hain kaksha me vividhata ka matlab hota hai ki alag alag jan ke log alag alag jagah se aaye hue log bacche aur asamanta ka matlab hota hai ki garibi aur amiri ya phir jaat pat ka jo hota hai jo ki abhi toh yah kuch cheezen matter nahi rakhti hai bahut hi kam jagah si hoti hai choti choti gaon hote honge shayad abhi bhi dekha jata hai ki kaun garib hai kaun amir hai chuachut ka jati ka ki ucch jati ke jo bacche hote hain ucch varg ke unke saath me nimn varg ke bacche nahi baith sakte ki nahi padh sakte hain aisa bhi aisa kuch bhi hota nahi hai yah jo aur samanata hai isko nahi mana jata hai abhi hum sab ek saman hai hum sab bharatiya hain hamein sab me ek hi rakt bahta hai jo ek ucch varg me deta hai wahi rakt wahi ek nimn varg me bhi bhejta hai yah sab ek bekar batein hain isko nahi sochna chahiye aur agar koi aisa karta hai toh aapko usko samajhana chahiye yah bhedbhav bilkul nahi karna chahiye sab jagah hamare kahin koi samanata nahi hai nahi koi koi asamanya

भारतीय कक्षाओं में प्रान्तीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कराया जाता है। इस प्रकार विभिन्न प्रान्तों की कक्षाओं के शिक्षण कार्यों में असमानता आ जाती है। सभी प्रान्त अपनी स्थानीय जरूरतों की छात्रों को जानकारी देना चाहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक प्रान्त की जरूरतो में अन्तर के साथ कक्षाओं में भी पाठ्यक्रम के आधार पर अन्तर आ जाता है। इस प्रकार सभी प्रान्त अपनी प्रान्तीय विशेषताओं से बच्चों को परिचित कराना चाहते हैं जिससे राष्ट्रीय स्तर पर असमानता उत्पन्न हो जाती है। 


2. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect)-

राजनीतिक प्रभाव के कारण भी पाठ्यक्रम में अन्तर आ जाता है। सभी प्रान्तों में सत्ताधारी दल के नेता अपने फायदे के लिए पाठ्यक्रम के साथ छेड़छाड़ करते हैं जिससे उनका अपने प्रान्त में दबदबा हो सके। विश्वविद्यालयों के नाम बदले जाते हैं, पाठ्यक्रम में भी अपने दल के विशिष्ट नेताओं को स्थान देने का प्रयास किया जाता है। शासन में परिवर्तन के साथ ही जब नया दल सत्तारूढ़ होता है तो वह अपने दल के फायदे के लिए पाठ्यक्रम को प्रभावित करने का प्रयास करता है। कई बार राजनीतिक दल देश के इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ करने का प्रयास करते हैं। इससे भी राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रम में असमानता आ जाती है। 


3. सामाजिक प्रभाव (Social Effect)-

पाठ्यक्रम में असमानता एवं विविधता का एक प्रमुख कारण सामाजिक रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं में भिन्नता होना भी है। समस्त प्रान्त अपनी सामाजिक परम्पराओं, रीति-रिवाजों, त्यौहारों आदि का ज्ञान बच्चों को देना चाहते हैं इसलिए इन विषयों को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बनाने का दबाव डालते हैं। इस प्रकार प्रान्तीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रभावों से पाठ्यक्रम प्रभावित हो जाता है और राष्ट्रीय स्तर पर उसमें एकरूपता नहीं आ पाती है। 


4.परम्पराओं के प्रति प्रेम (Traditional Affection)-

व्यक्ति में अपनी परम्पराओं के प्रति प्रेम जन्मजात पाया जाता है और वह इन परम्पराओं से स्वयं को जुड़ा हुआ अनुभव करता है। प्रत्येक प्रान्त तथा क्षेत्र की परम्पराएँ दूसरे प्रान्त तथा क्षेत्र से भिन्न होती हैं। इस प्रकार समाज में विविधता उत्पन्न हो जाती है और इस विविधता के कारण राष्ट्रीय स्तर पर असमानता व्याप्त हो जाती है। देश में विभिन्न सम्प्रदाय, धर्म, जातियों के व्यक्ति रहते हैं और अपनी-अपनी पम्पराओं का पोषण करते हैं। अतः इन व्यक्तियों के परम्परा प्रेम के कारण पाठ्यक्रम में भी परम्पराओं को प्रतिनिधित्व दिया जाता है और असमानता उत्पन्न होती है। 


5. समुचित नियोजन का अभाव (Lack of Proper Planning)-

समुचित नियोजन किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए आवश्यक है। पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने के लिए किये जाने वाले प्रयास इसी कारण सफल नहीं होते हैं क्योंकि इनमें समुचित नियोजन नहीं पाया जाता है तथा उनके क्रियान्वयन का उचित प्रकार से निरन्तर मूल्यांकन नहीं होता है। इसके परिणामस्वरूप ऐसे कार्यक्रम विफल हो जाते हैं और पाठ्यक्रम में राष्टीय स्तर पर असमानता तथा विभेदीकरण आ जाता है जिसके कारण देश में एकसमान पाठ्यक्रम लागू नहीं हो पाता 

है। 

6. सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता में कमी (Lesser Commitment for Principles)-


पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने के किसी भी कार्यक्रम की सफलता उसमें आस्था की दृढ़ता तथा सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। प्राय: नवीन परिवर्तनों के प्रति लोगों में आस्था तथा विश्वास का अभाव पाया जाता है। इस प्रकार परम्परागत रूप से चले आ रहे पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव नहीं की जाती है। 


7. आत्म-विश्वास की कमी (Lack of Confidence)-

पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने तथा असमानता को दूर करने के लिए प्रतिबद्धता आवश्यक है परन्तु शिक्षाविदों और राजनीतिज्ञों में इस क्षेत्र में किसी भी परिवर्तन को लेन के लिए आत्म विश्वास की कमी है | विरोध के डर  से पाठ्यक्रम की एकरूपता का मन से प्रयास नही किया गया |

कक्षा में विविधता से क्या तात्पर्य है?

कक्षा में विविधता शैक्षिक समावेशन के साथ-साथ सामाजिक समावेश को बढ़ावा देती है। बहुत महत्वपूर्ण है ताकि हमारा समाज आगे बढ़ सके और सभी लोगों के बीच सम्मान हो, चाहे हर एक की स्थिति कुछ भी हो।

विविधता और असमानता से आप क्या समझते हैं?

असमानता से आशय एक समान न होने से या स्तर की भिन्नता से है। भारतीय समाज में असमानता का अर्थ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक दृष्टि से नागरिकों का भिन्न-भिन्न होना है। समाज में कुछ अमीर व सम्पन्न हैं तो कुछ गरीब या विपन्न, कुछ पढ़े-लिखे हैं तो कुछ निरक्षर व कुछ अभावग्रस्त या प्रभावहीनता के शिकार हैं

एक शिक्षक के रूप में आप भारतीय कक्षा में असमानता और विविधता को कैसे संबोधित करेंगे?

आज एक शिक्षक के लिए जरूरी है कि वह बच्चों को जाने, समझे, कक्षा में उनके व्यवहार को समझे, उनके सीखने के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करे, उनके लिए उपयुक्त सामग्री व गतिविधियों का चुनाव करे, बच्चे की जिज्ञासा को बनाए रखे, उन्हें अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करे व उनके अनुभवों का सम्मान करे ।

शिक्षा में असमानता का क्या अर्थ है?

इस प्रकार हम पाते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में समानता का अर्थ है शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों में समानता का होना। यदि समाज में शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर न हो तो उसे शैक्षिक अवसरों की असमानता कहा जाता है।