Show केला में निकल रहे काली मिर्च मानिंद बीजइटावा, कार्यालय प्रतिनिधि : मौसम केला का चल रहा है। छिलका उतारिए और स्वाद लीजिए। लेकिन यहां जिक्र ऐसे केला का हो रहा है जिसका छिलका उतारते ही आप चौंक पड़ेंगे। पपीता की तरह इसमें काली मिर्च जैसे बीज पड़े हैं। इनका स्वाद फालसे जैसा है। केला का यह पेड़ राजकीय संयुक्त चिकित्सालय परिसर में खड़ा है। पेड़ में लगे गुच्छे का कोई भी केला तोड़ कर काटिए बीज पायेंगे। वन रक्षक लक्ष्मी नारायन की पत्नी मिथलेश कुमारी चिकित्सालय में नर्स हैं। उनके सरकारी आवास परिसर में एक साल पहले केला का पौधा रोपा गया था। लक्ष्मी नारायन बताते हैं कि वह पौधा दक्षिण भारत से लाये थे। केला का पेड़ एक साल में तैयार होकर फल उत्पादन की स्थिति आ जाता है। एक पेड़ में एक बार ही फल आते हैं। इसी बीच उसकी पुत्ती से बगल में 6 माह में स्वत: दूसरे पेड़ तैयार होने लगते हैं। इसलिए पहला और बाद में तैयार हो रहे कुछ पौधों को खत्म कर दिया जाता है। ताकि एक पेड़ को पनपने का भरपूर अवसर मिले। इस अनोखी प्रजाति के पेड़ पर पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले केले ऐसे ही तैयार होंगे। कृषि विज्ञान केंद्र के फसल उत्पादन वैज्ञानिक अतहर हुसैन वारसी बताते हैं कि केले में बीज जेनेटिक (आनुवांशिकता) समस्या का नतीजा है। दक्षिण भारत में ऐसी प्रजाति के पेड़ हैं। दूसरा कारण टिश्यू कल्चर का पौधा भी हो सकता है। जिसमें अच्छी प्रजाति का जंगली प्रजाति से संपर्क कराने से तकनीकी खराबी आयी। इससे उसमे केला जैसा स्वाद नहीं होगा। बिहार के हजारी केला में भूरे रंग के टमाटर जैसे बीज होते हैं। उत्तर प्रदेश में हरी छाल के केला को अच्छा माना जाता है। मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर
केले की कई प्रजातियाँ हैं एक केले के वृक्ष पर लगे फल और फूल मूसा जाति के घासदार पौधे और उनके द्वारा उत्पादित फल को आम तौर पर केला कहा जाता है। मूल रूप से ये दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णदेशीय क्षेत्र के हैं और संभवतः पपुआ न्यू गिनी में इन्हें सबसे पहले उपजाया गया था। आज, उनकी खेती सम्पूर्ण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है।केले का सर्वप्रथम प्रमाण 4000 साल पहले मलेशिया में मिला थl केला खाने के संदर्भ में युगांडा पहले स्थान पर है जहां प्रति व्यक्ति 1 साल में लगभग 225 खेले खा जाता है[1] केले के पौधे मुसा के परिवार के हैं। मुख्य रूप से फल के लिए इसकी खेती की जाती है और कुछ हद तक रेशों के उत्पादन और सजावटी पौधे के रूप में भी इसकी खेती की जाती है। चूंकि केले के पौधे काफी लंबे और सामान्य रूप से काफी मजबूत होते हैं और अक्सर गलती से वृक्ष समझ लिए जाते हैं, पर उनका मुख्य या सीधा तना वास्तव में एक छद्मतना होता है। कुछ प्रजातियों में इस छद्मतने की ऊंचाई 2-8 मीटर तक और उसकी पत्तियाँ 3.5 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। प्रत्येक छद्मतना हरे केलों के एक गुच्छे को उत्पन्न कर सकता है, जो अक्सर पकने के बाद पीले या कभी-कभी लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। फल लगने के बाद, छद्मतना मर जाता है और इसकी जगह दूसरा छद्मतना ले लेता है। केले के फल लटकते गुच्छों में ही बड़े होते है, जिनमें 20 फलों तक की एक पंक्ति होती है (जिसे हाथ भी कहा जाता है) और एक गुच्छे में 3-20 केलों की पंक्ति होती है। केलों के लटकते हुए सम्पूर्ण समूह को गुच्छा कहा जाता है, या व्यावसायिक रूप से इसे "बनाना स्टेम" कहा जाता है और इसका वजन 30-50 किलो होता है। एक फल औसतन 125 ग्राम का होता है, जिसमें लगभग 75% पानी और 25% सूखी सामग्री होती है। प्रत्येक फल (केला या 'उंगली' के रूप में ज्ञात) में एक सुरक्षात्मक बाहरी परत होती है (छिलका या त्वचा) जिसके भीतर एक मांसल खाद्य भाग होता है। खेती[संपादित करें]क्षेत्रफल व उत्पन्न की दृष्टि से आम के बाद केले का क्रमांक आता है। केले के उत्पादन को देखे तो भारत का दूसरा क्रमांक है। भारत में अंदाजे दोन लाख बीस हजार हेक्टर क्षेत्रफल पर केले लगाए जाते हैं। केले का उत्पादन करनेवाले प्रांतो में क्षेत्रफल की दृष्टी से महाराष्ट्र का तिसरा क्रमांक है फिर भी व्यापारी दृष्टी से या परप्रांत में बिक्रीकी दृष्टी से होनेवाले उत्पादन में महाराष्ट्र पहिला है। उत्पादन के लगभग ५० प्रतिशत उत्पादन महाराष्ट्र में होता है। फिलहाल महाराष्ट्र में कुल चवालिस हजार हेक्टर क्षेत्र केले की फसल के लिए है उसमें से आधेसे अधिक क्षेत्र जलगांव जिले में है इसलिए जलगांव जिले को केलेका भंडार कहते है।मुख्यतः उत्तर भारत में जलगाव भाग के बसराई केले भेजे जाते हैं। इसी प्रकार सौदी अरेबिया इराण, कुवेत, दुबई, जपान और युरोप में बाजारपेठ में केले की निर्यात की जाती है। उससे बड़े पैमाने पर विदेशी चलन प्राप्त होता है। केले के ८६ प्रतिशत से अधिक उपयोग खाने के लिए होता है। पके केले उत्तम पौष्टिक खाद्य होकर केले के फूल, कच्चे फल व तने का भीतरी भाग सब्जी के लिए उपयोग में लाया जाता है।फल से पावडर, मुराब्बा, टॉफी, जेली आदि पदार्थ बनाते हैं। सूखे पत्तों का उपयोग आच्छन के लिए करते हैं। केले के तने और कंद के टुकडे करके वह जानवरो के लिए चारा के रुप में उपयोग में लाते है। केले के झाड का धार्मिक कार्य में मंगलचिन्ह के रुप में उपयोग में लाए जाते हैं। केले को लगाने का मोसम जलवायु के अनुसार बदलता रहता है कारण जलवायु का परिणाम केले के बढ़ने पर, फल लगने पर और तैयार होने के लिए लगने वाली कालावधी पर निर्भर करता है। जलगाँव जिले में केले लगाने का मौसम बारिश के शुरू में होता है। इस समय इस भाग का मौसम गरम रहता है। उत्पादन एवं निर्यात[संपादित करें]सन् 2017 में विश्व में केले का कुल उत्पादन १५.३ करोड़ टन हुआ जिसमें भारत और चीन की हिस्सेदारी सर्वाधिक थी और दोनों की हिस्सेदारी मिलाकर कुल २७ प्रतिशत थी। [2][3] अन्य प्रमुख उत्पादक देश हैं- फिलीपीन्स, कोलम्बिया, इंडोनेशिया, एक्वाडोर, और ब्राजील। 2017 में उत्पादन (x १० लाख टन में)
सन २०१३ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में केले का कुल निर्यात २ करोड़ टन तथा कदली (plantains) का कुल निर्यात ८.५९ लाख टन था। [6] एक्वाडोर और फिलीपीन्स केले के प्रमुख निर्यातक देश हैं। [6] सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]केले में बीज क्या होता है?केले का बीज कहां पाया जाता है
दरअसल केले का बीज उसके पल में नहीं बल्कि जड़ में होता है। हर केले के पेड़ की जड़ में कम से कम चार या पांच स्वस्थ बड़े बीज होते हैं। यानी हर पौधा जब पेड़ बनता है तो अपने साथ कम से कम 5 नई पेड़ों के लिए बीज तैयार करके जाता है। इसके अलावा तीन या चार छोटे बीज भी होते हैं।
केला में कितने बीज होते हैं?फसल में केले के एक पौधे के नीचे से करीब 5 बीज निकलते हैं।
केले के बीज क्या काम आते हैं?केले का तना कई तरह के पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसमें पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम और बी6 होता है. विटामिन बी6 हिमोग्लोबीन और इंसुलिन के निर्माण में उपयोगी होता है. साथ ही ये शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने का काम करता है.
केले के फल में बीज क्यों नहीं होते हैं?पेड़ में लगे गुच्छे का कोई भी केला तोड़ कर काटिए बीज पायेंगे।
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