क) मां ने वस्त्रों और आभूषणों को नारी जीवन का बंधन कहा है जो स्त्रियों को जंजीरों की तरह हमेशा जकड़े रहता है और वे जीवन भर इनके बंधन में बंधी रहती हैं| इसके कारण स्त्री अपना वास्तविक अस्तित्व खो देती है| Show
ख) लक्ष्मण ने वीर योद्धाओं की विशेषताएं बताते हुए कहा है कि वीर योद्धा कभी अपनी वीरता का बखान स्वयं नहीं करता वह अपनी शक्तियों का प्रदर्शन युद्ध के मैदान में करता है, वीर धैर्यवान और क्षोभरहित होता है, वह अपशब्दों का प्रयोग नहीं करता| ग) कवि यह बताना चाहता है की सुख और दुःख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है बिना दुःख के सुख की अनुभूति नहीं हो सकती एवं हमें बीते हुए दुखों को याद करके अपने वर्तमान में दुखी नहीं होना चाहिए| जीवन में दुःख सुख आते रहते हैं हमें बस अपने जीवन को बेहतर ढंग से जीने की कोशिश करनी चाहिए| घ) आज भी समाज में स्त्रियों के लिए स्थिति कुछ ज्यादा नहीं बदली है हाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि समाज पहले से जागरूक हो गया है परन्तु स्त्रियों का शोषण होना अभी भी कायम है। ड) परशुराम अपने फरसे के बारे में कहते हैं की उसकी कठोर आवाज़ तो गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाली है। उनके कथन से उनके स्वभाव की निम्नलिखित विशेषताओं- अहंकारी, अभिमानी तथा क्रोधी स्वभाव के बारे में पता चलता है|
कन्यादान पाठ का सार, भावार्थ, प्रश्न उत्तरकन्यादान का सारकन्यादान कविता के कवि ऋतुराज हैं| कन्यादान कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर सीख दे रही है। कवि का मानना है कि समाज-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन होते हैं। 'कोमलता' के गौरव में 'कमज़ोरी' का उपहास छिपा रहता है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है। बेटी माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुख की साथी होती है। इसी कारण उसे अंतिम पूँजी कहा गया है। कविता में कोरी भावुकता नहीं बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। इस छोटी-सी कविता में स्त्री जीवन के प्रति ऋतुराज जी की गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है। कन्यादान की व्याख्या / भावार्थकितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को दान में देते वक्त जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो कन्यादान का प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश कवि ऋतुराज द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' से अवतरित है। कविता में माँ अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर शिक्षा दे रही है। यहाँ भावुकता के साथ-साथ माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा को भी अभिव्यक्त किया गया है। यहाँ कवि ने माँ की मनः स्थिति का चित्रण करते हुए बताया है कि - कन्यादान की व्याख्या- कन्यादान करते समय लड़की की माँ का दुख करुणा पूर्ण और स्वाभाविक था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी वह लड़की संपूर्ण जीवन का संचित अंतिम धन है जिसे आज वह दूसरों को सौंपने जा रही है। बेटी माँ के सबसे निकट और सुख-दुख की साथी होती है, इसी कारण उसे अंतिम पूंजी कहा गया है। लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे सुख का आभास तो होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की कन्यादान का प्रसंग- यहाँ कवि ने माँ के ममतामयी हृदय का सजीव चित्रण करते हुए बताया है कि माँ के लिए उसकी बटी भोली, अबोध और सरल स्वभाव की रहती है। कवि कहता है कन्यादान की व्याख्या- माँ की दृष्टि में लड़की अभी समझदार नहीं हुई थी। वह अभी इतनी भोली और सरल थी कि जीवन में आने वाले दुखों का तो अनुभव कर सकती थी, लेकिन दुखों को पढ़ना, सहन करना उसे नहीं आता था। वह कम रोशनी में पढ़ने वाली पाठिका के समान थी, उसे सामाजिक और पारिवारिक जीवन का कोई विशेष ज्ञान नहीं था उसे थोड़ा बहुत स्त्री के परम्परागत जीवन और बंधी-बंधाई परिपाटी का ज्ञान था। माँ ने कहा पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन क कन्यादान का प्रसंग - यहाँ माँ ने अपनी बेटी को परम्परागत 'आदर्श' से हटकर शिक्षा देते हुए कहा है कन्यादान की व्याख्या- माँ ने अपनी बेटी से कहा कि तुम अपने शरीर की कोमलता और सुंदरता को देखकर मन ही मन खुशमत होना। अपनी कोमलता के ही विषय में सोचते हुए कमजोर मत बनी रहना। आग पर रोटियाँ सेंकी जाती है, उससे अपने शरीर को जलाया नहीं जाता है। सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियों के प्रति जो आचरण किया जा रहा है। उसी के संबंध में माँ अपनी बेटी को समझा रही है, समाज की परम्परागत व्यवस्था है, उसके चलते अन्याय सहन नहीं करना। जिस प्रकार मनुष्य शब्दों के भ्रम के बंधन में बंधा रहता, ठीक उसी प्रकार स्त्री का जीवन कपड़ों और गहनों के आधार पर संबंधों में बंधा रहता है। स्त्री समाज की परम्पराओं के अनुसार संबंधों को निभाने के लिए विवश दिखाई देती है। माँ ने कहा लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। कन्यादान का प्रसंग- यहाँ कवि ने परम्परागत आदर्शों के प्रतिकार की सीख देती हुई माँ का वर्णन किया है। कवि का कहना है कि- कन्यादान की व्याख्या- माँ बेटी को समझाते हुए कहती है कि तुम लड़कियों जैसी कोमलता, सौम्यता, आदर्शों और संस्कारों का तो पालन अवश्य करना किंतु लड़कियों जैसी दुर्बलता, कमजोरी और स्त्री के लिए निर्धारित परम्परागत आदर्शों को न अपनाने की शिक्षा देती है। लड़की जैसे गुण, संस्कार तो हों लेकिन लड़की जैसी नीरीहता, कमजोरी नहीं अपनानी है क्योंकि स्त्री की सुंदरता और कोमलता के गौरव पर कमजोरी का आवरण चढ़ा कर उसका उपहास किया जाता है। कन्यादान कविता का प्रश्न उत्तर1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?उत्तर- भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है। यहाँ की समाज-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं जो आदर्श की डोरी से बंधे होते हैं। लड़की की कोमलता, सुंदरता व भावुकता को उसकी कमजोरी कहा जाता है। इसलिए इन आदर्शों को त्यागकर लड़की की माँ ने लड़की को लड़की जैसे न दिखाई देने को कहा है। 2. आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं |