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सन्दर्भहाल ही में चिली में हुए राष्ट्रपति चुनाव में गेब्रियल बोरिक ने विजय प्राप्त की। ध्यातव्य हो कि गेब्रियल बोरिक का चुनावी एजेंडा चिली में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। परिचयचिली में हुए हालिया राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित रहे। वामपंथी विचारधारा तथा कल्याणकारी राज्य के समर्थक गेब्रियल बोरिक 56% से अधिक मत प्राप्त कर चिल्ली के सर्वाधिक कम उम्र (मात्र 35 वर्ष ) के राष्ट्रपति बने। वामपंथ के समर्थक माने जाने वाले बोरिक ने राष्ट्रपति बनते ही चिल्ली में सामाजिक अधिकारों की वृद्धि की घोषणा की है। बोरिक के समर्थक इस जीत को फांसीवाद तथा नव-पूंजीवाद पर कल्याणकारी राज्य के अवधारणा की जीत बता रहे हैं। इस जीत से वैश्विक स्तर पर कल्याणकारी राज्य की अवधारणा बलवती होती प्रतीत हो रही है। क्या है कल्याणकारी राज्य की अवधारणाडॉक्टर आशीर्वादन के शब्दों में "लोक कल्याणकारी राज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है जिसका कार्यक्षेत्र इस प्रकार से विस्तार हो कि अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो सके।" इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य जनता के संपूर्ण विकास तथा सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय की स्थापना करते हुए अवसर तथा प्रतिष्ठा की समानता स्थापित करना है। यह व्यवस्था समाज आधारित व्यवस्था है जहां व्यक्ति नहीं बल्कि समाज लोकनीति के केंद्र में होता है। लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषताएं
लोक कल्याणकारी राज्य के आलोचना
भारत: एक लोक कल्याणकारी देश के रूप में
यद्यपि भारत द्वारा 1991 में आर्थिक सुधारो को स्वीकार कर उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की तरफ बढ़ने से कई आलोचकों ने यह कहा था कि भारत लोक कल्याणकारी पथ से भटक चुका है और वर्तमान समय में एयर इंडिया, आईडीबीआई, इत्यादि सार्वजनिक उपक्रमओ के विनिवेश भी इसी बात का संकेत दे रहे हैं। परंतु कोरोना महामारी के प्रभाव से निदान में सरकार के प्रयास के रूप में आत्मनिर्भर भारत योजना, श्रमिकों की स्थिति सुधार के लिए बनाए जाने वाले श्रमिक संहिता, कृषि में सुधार के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इत्यादि में किया जाने वाला सार्वजनिक निवेश यह स्पष्ट करता है कि भारत लोक कल्याणकारी राज्य के मार्ग से पथ भ्रमित नहीं हुआ है। बता दें कि भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का देश है जहां एक तरफ सभी को आर्थिक उन्नति प्राप्त करने का अवसर है वहीं दूसरी तरफ सुभेद्य वर्ग के के लिए सरकार व्यवस्था करती है। इस प्रकार भारत में पूंजीवाद तथा समाजवाद दोनों के ही अच्छे गुणों को स्वीकार कर लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को सुनिश्चित किया गया है। निष्कर्षहाल ही में प्रकाशित हुई वैश्विक असमानता रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 50% गरीबतम जनसंख्या मात्र 8% वैश्विक संपत्ति को धारण करती है वहीं 10% अमीर व्यक्ति 52% वैश्विक संपत्ति को धारण करते हैं। असमानता की इस अवस्था में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा एक उन्नत अवधारणा है। यद्यपि लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साम्यवादी अवधारणा का अनुचर माना जाता है परंतु साम्यवाद के बिना भी लोक कल्याणकारी राज्य स्थापित किया जा सकता है। भारत ने इसका बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस अवस्था में हम यह कह सकते हैं कि वैश्विक स्तर पर लोक कल्याण के मार्ग को स्वीकारा जा रहा है ऐसे में लोक कल्याण का भारतीय मॉडल एक बेहतर उदाहरण बन सकता है। सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2
लोक कल्याणकारी राज्य से क्या अर्थ है?“लोक-कल्याणकारी राज्य वह राज्य है जो अपने नागरिकों के लिए व्यापक सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था करता है। इन समाजसेवाओं के अनेक रूप होते हैं। इनके अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार तथा विद्धावस्था में पेंशन आदि की व्यवस्था होती है। इनका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करना होता है।" ..
लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य क्या है?इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य जनता के संपूर्ण विकास तथा सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय की स्थापना करते हुए अवसर तथा प्रतिष्ठा की समानता स्थापित करना है। यह व्यवस्था समाज आधारित व्यवस्था है जहां व्यक्ति नहीं बल्कि समाज लोकनीति के केंद्र में होता है।
क्या भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है?लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा राज्य के कार्य क्षेत्र का एक आधुनिक सिद्धान्त है। यह शब्द सामान्यतः उस राज्य के लिए अपनाया जाता है जो अपने नागरिकों के लिए केवल न्याय सुरक्षा तथा आन्तरिक व्यवस्था करके ही संतोष नहीं कर लेता, अपितु उनके कल्याण की अभिवृद्धि के लिए जीवन के समस्त आयामों के विकास पर बल देता है।
लोक कल्याणकारी राज्य का लक्षण क्या है?लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषताएं या लक्षण
शासन का यह प्रथम कर्तव्य होता है कि वह कानून और व्यवस्था को बनाए रखे। लोक कल्याणकारी राज्य आर्थिक शक्ति को एक वर्ग के हाथों मे केन्द्रीत होने के पक्ष मे नही है क्योंकि आर्थिक शक्ति के केन्द्रीत होने से आम जनता का शोषण और उत्पीड़न प्रारंभ हो जाता है।
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