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सन १८४५ में विकसित एलियास होवे की सिलाई मशीन सिलाई मशीन एक ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो किसी वस्त्र या अन्य चीज को परस्पर एक धागे या तार से सिलने के काम आती है। इनका आविष्कार प्रथम औद्योगिक क्रांति के समय में हुआ था। सिलाई मशीनों से पहनने के सुंदर कपड़े छोटे-बड़े बैग, चादरें, पतली या मोटी रजाइयां सिली जाती हैं। सुंदर से सुंदर कढ़ाई की जाती है और इसी तरह बहुत कुछ किया जा सकता है। दो हजार से अधिक प्रकार की मशीनें भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए प्रयुक्त होती हैं जैसे कपड़ा, चमड़ा, इत्यादि सीने की। अब तो बटन टाँकने, काज बनाने, कसीदा का सब प्रकार की मशीनें अलग-अलग बनने लगी हैं। अब मशीन बिजली द्वारा भी चलाई जाती है। Needle plate, foot and transporter of a sewing machine Singer sewing machine (detail 1) इतिहास[संपादित करें]सिलाई मशीन सिलाई की प्रथम मशीन ए. वाईसेन्थाल ने 1755 ई. में बनाई थी। इसकी सूई के मध्य में एक छेद था तथा दोनों सिरे नुकीले थे। 1790 ई. में थामस सेंट ने दूसरी मशीन का आविष्कार किया। इसमें मोची के सूए की भाँति एक सुआ कपड़े में छेद करता, धागा भरी चरखी धागे को छेद के ऊपर ले आती और एक काँटेदार सूई इस धागे का फंदा बना नीचे ले जाती जो नीचे एक हुक में फँस जाता था। कपड़ा आगे सरकता और इसी भाँति का दूसरा फँदा नीचे जाकर पहले में फँस जाता है। हुक पहिले फंदे को छोड़ दूसरे फंदे को पकड़ लेता है। इस प्रकार चेन की तरह सिलाई नीचे होती जाती है। यदि सेंट को उस नोक में छेद का विचार आ जाता तो कदाचित् उसी समय आधुनिक मशीन का आविष्कार हो गया होता। सिलाई मशीन का वास्तविक आविष्कार एक निर्धन दर्जी सेंट एंटनी निवासी बार्थलेमी थिमानियर ने किया जिसका पेटेंट सन् 1830 ई. में फ्रांस में हुआ। पहले यह मशीन लकड़ी से बनाई गई। कुछ दिन पश्चात् ही कुछ लोगों ने इस संस्थान को तोड़-फोड़ डाला जहाँ यह मशीन बनती थी और आविष्कारक कठिनाई से जान बचा सका। सन् 1845 ई. में उसने उससे बढ़िया मशीन का दूसरा पेटेंट करा लिया और सन् 1848 में इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमरीका से भी पेटेंट ले लिया। अब मशीन लोहे की हो चुकी थी। वस्तुत: छेदवाली नोक, दुहरा धागा और दुहरी बखिया का विचार प्रथम बार 1832-34 ई. में एक अमरीकी बाल्टर हंट (Walter Hunt) को आया था। उसने एक घूमने वाले हैंडिल के साथ एक गोल, छेदीली नोक की सूई लगाई थी जो कपड़े में छेद कर नीचे जाती और उस फंदे में से एक छोटी-सी धागा भरी खर्ची निकल जाती, वह फंदा नीचे फँस जाता और सूई ऊपर आ जाती। इस प्रकार दुहरे धागे की दुहरी बखिया का आविष्कार हुआ। जब हट को अपनी सफलता में पूरा विश्वास हो गया तो 1853 ई. में पेटेंट के लिए उन्होंने आवेदन पत्र दिया परंतु उनको पेटेंट न मिल सका क्योंकि यह छेदीली नोकवाला पेटेंट इंग्लैंड में 'न्यूटन ऐंड आर्कीबाल्ड' सन् 1841 में दस्ताने सीने के लिए पहले ही करा लिया था। उसी समय ऐलायस होव ने भी सन् 1846 तक अपनी मशीन बनाकर पेटेंट करा लिया। उसकी मशीन में 12 वर्ष पहले आविष्कृत हंट की दोनों बातें, छेदीली नोक तथा दुहरा धागा, वर्तमान थीं। कुछ समय पश्चात् विलियम थॉमस ने 250 पाउंड में उससे पेटेंट खरीद उसे अपने यहाँ नियुक्त कर लिया, पर वह अपने कार्य में सर्वथा असफल रहा और अत्यंत निर्धन अवस्था में अमरीका लौट आया। इधर अमरीका में सिलाई मशीन बहुत प्रचलित हो गई थी और इज़ाक मेरिट सिंगर ने सन् 1851 ई. में होवे की मशीन का पेटेंट करा लिया था। सन् 1849 ई. में एलान वी. विल्सन ने स्वतंत्र रूप से दूसरा आविष्कार किया। उसने एक घूमने वाले एवं तथा घूमने वाली बाबिन का आविष्कार किया जो ह्वीलर और विलसन मशीन का मुख्य आधार है। सन् 1850 ई. में विल्सन उससे पेटेंट कराया। इसमें कपड़ा सरकाने वाला चार गति का यंत्र, तो प्रत्येक सीवन के बाद कपड़ा सरका देता था, मुख्य था। उसी समय ग्रोवर ने दुहरे श्रृंखला सीवन (Chain strip) की मशीन आविष्कार किया जो 'ग्रोवर ऐंड बेकर' मशीन का मुख्य सिद्धांत है। 1856 ई. में एक किसान गिब्स ने श्रृंखला सीवन की मशीन बनाई जिसका बाद में विलकाक्स ने सुधार किया और जो 'गिल्ड विलकाक्स' के नाम से प्रख्यात हुई। अब तो इसका बहुत कुछ सुधार हो चुका है। भारत में सिलाई मशीन[संपादित करें]भारत में भी उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक मशीन आ गई थी। इसमें दो मुख्य थीं, अमरीका की सिंगर तथा इंग्लैंड की 'पफ'। स्वतंत्रता के बाद भारत में भी मशीनें बनने लगीं जिनमें उषा प्रमुख तथा बहुत उन्नत है। सिंगर के आधार पर मेरिट भी भारत में ही बनती है। भारत में 1935 में कोलकाता (कलकत्ता) के एक कारखाने में उषा नाम की पहली सिलाई मशीन बनी। मशीन के सारे पुर्जें भारत में ही बनाए गए थे। अब तो भारत में तरह-तरह की सिलाई मशीनें बनती हैं। उन्हें विदेशों में भी बेचा जाता है। सिलाई मशीन के प्रकार[संपादित करें]इंसान की जरूरतें बढ़ती गईं। इसके साथ सुंदर और सुडौल दिखने की चाह भी बढ़ती गई। सुंदर दिखने के लिए सुंदर आकर्षक पहनावे पर ध्यान दिया जाने लगा। इस तरह सिलाई मशीनों पर नए-नए काम करने की खोज होती रही। नए-नए डिजाइन बनने लगे। अब सिलाई मशीनें वह तमाम काम कर सकती हैं जो हम सोच भी नहीं सकते थे। सिलाई मशीनें हाथ, पैर या मोटर से चलती हैं। सिलाई कैसे होती है?[संपादित करें]मशीन की सिलाई में तीन प्रकार के सीवन प्रयोग में आते हैं-
प्रथम में एक धागे का प्रयोग होता और अन्य में दो धागे ऊपर और नीचे साथ-साथ चलते हैं। टाँके लगाने की प्रक्रिया का एनिमेशन विभिन्न भाग[संपादित करें]इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सिलाई मशीन को इंग्लिश में क्या बोलेंगे?Sewing machine
1846 -ऐलियास हॉवे ने सिलाई मशीन के लिए पेटेन्ट प्राप्त किया।
घरेलू सिलाई मशीन का नाम क्या है?उषा सिलाई मशीनों (Usha Silai Machine) की सबसे प्रमुख और पॉपुलर निर्माता कंपनी है. इस ब्रांड की ऑटोमेटिक सिलाई मशीनें न केवल सिलाई करने बल्कि थ्रेड कंट्रोल, पैटर्न सिलेक्टर, बिल्ट-इन-स्टिच, लेस फिक्सिंग, काज-बटन टांगने और कढ़ाई करने आदि के काम भी आती है.
सिलाई मशीन को हिंदी में क्या कहते हैं?सिलाई मशीन एक ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो किसी वस्त्र या अन्य चीज को परस्पर एक धागे या तार से सिलने के काम आती है। इनका आविष्कार प्रथम औद्योगिक क्रांति के समय में हुआ था। सिलाई मशीनों से पहनने के सुंदर कपड़े छोटे-बड़े बैग, चादरें, पतली या मोटी रजाइयां सिली जाती हैं।
सिलाई मशीन के पुर्जे कौन कौन से होते हैं?पारंपरिक सिलाई मशीन के 6 भाग और कार्य!. पैर रखने वाला पैडल. हाथ का पहिया. उल्टा लीवर. स्पूल पिन और होल्डर. पैटर्न चयनकर्ता. टेक–अप लीवर. |