कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

कुरु साम्राज्य

कुरु राजवंश

ल. 1200 ई.पू–ल. 350 ई.पू
कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

कुरु राज्य का विस्तार

राजधानीहस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ
प्रचलित भाषाएँसंस्कृत
धर्म हिंदू धर्म
सरकारराजतंत्र
महाराज और सम्राट 

• 13वीं शताब्दी ई.पू

सम्राट कुरु

• 11वीं शताब्दी ई.पू

सम्राट युधिष्ठिर

• 11वीं शताब्दी ई.पू

सम्राट परीक्षित

• 10वीं शताब्दी ई.पू

सम्राट जनमेजय
ऐतिहासिक युगलौह युग

• स्थापित

ल. 1200 ई.पू

• अंत

ल. 350 ई.पू
पूर्ववर्ती परवर्ती
कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua
भारत लोग (ऋग्वेद)
कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua
पुरु लोग
महाजनपद
कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua
नंद वंश
कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua
अब जिस देश का हिस्सा हैभारत

कुरु साम्राज्य या कुरु राजवंश (संस्कृत: कुरु) उत्तरी लौह युग के प्राचीन भारत का हिन्दू साम्राज्य था। कुरु साम्राज्य की सीमाएँ वर्तमान दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग (दोआब का क्षेत्र, प्रयाग तक) शामिल थे। कुरु राजवंश ने मध्य वैदिक काल (ल. 1200 से 600 ई.पू तक साम्राज्य के रूप मे और ल. 600 से 350 ई.पू तक महाजनपद के रूप मे शासन किया) और भारतीय उपमहाद्वीप में पहले दर्ज राज्य-स्तरीय समाज में विकसित हुआ।

कुरु साम्राज्य ने निर्णायक रूप से प्रारंभिक वैदिक काल की वैदिक विरासत को बदल दिया। कुरुओ ने वैदिक भजनों को संग्रह में व्यवस्थित किया और नए अनुष्ठानों को विकसित किया। जिन्होंने भारतीय सभ्यता में श्रुत संस्कार के रूप में अपना स्थान प्राप्त किया और "शास्त्रीय संश्लेषण" या "हिंदू संश्लेषण" का विकास किया। कुरु साम्राज्य के इतिहास का मुख्य श्रोत महाभारत महाकाव्य हैं।

कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

कुरु साम्राज्य परीक्षित और जनमेजय के शासनकाल के दौरान मध्य वैदिक काल का प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था, लेकिन महाजनपद काल (ल. 600 से 350 ई.पू) के दौरान इसका महत्व कम हो गया था, अंततः नंद साम्राज्य के महापद्मनन्द द्वारा 350 से 340 ई.पू के बीच, कुरु महाजनपद को मगध मे विलय कर लिया गया।

कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

कुरु और अन्य महाजनपद (ल. 500 ई.पू मे)

इतिहास[संपादित करें]

कुरु साम्राज्य को समझने के लिए मुख्य समकालीन स्रोत जैसे महाभारत और प्राचीन हिंदू ग्रंथ हैं, जिसमें इस अवधि के दौरान जीवन का विवरण और ऐतिहासिक व्यक्तियों और घटनाओं के बारे में उल्लेख मिलता है।

कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

महाभारत महाकाव्य की हस्तलिखित पाण्डुलिपि

राजवंश का उदय और विस्तार[संपादित करें]

पूर्व वैदिक काल मे चन्द्रवंशी पुरु राजवंश की उप-शाखा भारत राजवंश के राजा कुरु हुए, वह एक महान और प्रतापी राजा थे, जिसके बाद भारत राजवंश और पौरव राजवंश का नाम कुरुवंश हो गया। कुरुवंश के शासक "कौरव" भी कहे जाते थे। कुरु सम्राट वर्तमान हरियाणा के एक बड़े क्षेत्र पर शासन करते थे, जहाँ उसे कुरुक्षेत्र (कुरुओ का क्षेत्र) कहा जाने लगा।

महाराजा कुरु के तीन पुत्र थे, अर्थात् "विधुरथ प्रथम", जो प्रतिष्ठान का शासक बना, "व्युशिताश्व" जो बहुत कम उम्र में मर गया, और "सुधन्वा", जो मगध का शासक बना। विधुरथ हस्तिनापुर का राजा बना और राजवंश को आगे बढ़ाया।

मुख्य शासक और इतिहास[संपादित करें]

भीष्म, शांतनु और प्रतीप के जन्म से पहले का यह कुरुक्षेत्र द्वापर युग में यज्ञभूमि (पवित्र स्थान) था। उत्तर वैदिक काल कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद युधिष्ठिर के नेतृत्व साम्राज्य का विस्तार हुआ और पूर्ण उत्तर भारत इनके अधीन हो गया।

कुरुक्षेत्र में अपनी सत्ता के केंद्र के साथ, कौरवों ने उत्तर वैदिक काल का पहला राजनीतिक केंद्र बनाया और लगभग 1200 से 800 ईसा पूर्व तक प्रमुख रहे थे। पहले कुरुओ की राजधानी हरियाणा में थी, जिसकी पहचान हरियाणा में आधुनिक असंध से हुई थी। बाद में कुरुओ की राजधानी इंद्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली) और हस्तिनापुर आदि महानगर रहे।

कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

युधिष्ठिर कुरुक्षेत्र युद्ध के अंत में हस्तिनापुर आते हुई

अथर्ववेद (20.127), कौरवों के राजा सम्राट परीक्षित की प्रशंसा करता है, जो एक संपन्न, समृद्ध क्षेत्र के महान शासक के रूप में है। अन्य वैदिक ग्रंथों, जैसे कि शतपथ ब्राह्मण, मे परीक्षित के पुत्र जनमेजय को एक महान विजेता के रूप में स्मरण करते हैं, जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया था। इन दो कुरु राजाओं ने कुरु राज्य के एकीकरण और श्रुत अनुष्ठानों के विकास में एक निर्णायक भूमिका निभाई थी।

जैनों के उत्तराध्ययनसूत्र में इन्द्रप्रस्थ के इक्ष्वाकु नामक राजा का उल्लेख मिलता है। जातक कथाओं में सुतसोम, कौरव और धनंजय यहाँ के राजाओं का नाम मिलता है। कुरुधम्मजातक के अनुसार, यहाँ के लोग अपने सीधे-सच्चे मनुष्योचित बर्ताव के लिए अग्रणी माने जाते थे और दूसरे राष्ट्रों के लोग उनसे हिंदू धर्म को सीखने आते थे।

कुरुक्षेत्र युद्ध[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवद्गीता, एवं वेदव्यास

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों से दुर्योधन और पाण्डवों से युधिष्ठिर द्वारा नेतृत्व सेना के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। इस महायुद्ध मे युधिष्ठिर की विजय हुई और अधर्म का नाश हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म का यानी युधिष्ठिर का सहयोग किया और मानवता को श्रीमद्भगवद्गीता का अमूल्य ज्ञान दिया।[1]

कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

कुरुक्षेत्र युद्ध में रथ पर भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन

कुरुक्षेत्र युद्ध का वर्णन महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास द्वारा महाभारत ग्रंथ मे किया गया है वही इस ग्रंथ के रचयिता है। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। महाभारत ग्रंथ का लेखन भगवान् गणेश ने महर्षि वेदव्यास से सुन सुनकर किया था। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं।

कुरुक्षेत्र युद्ध का एक दृश्य

महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच धर्म की स्थापना के लिए हुआ था जिसमे पांडवों की जीत हुई थी। 18 दिन चला महाभारत के इस युद्ध में पांडवों ने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर कौरवों को हराया था। इस युद्ध के साथ ही अधर्म पर धर्म की गौरवपूर्ण विजय हुई थी

राजवंश का पतन[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: मगध एवं नंद वंश

कुरु राजवंश के पतन के निम्न कारण रहे थे–

  1. सलव जनजाति द्वारा पराजित होने के बाद कौरवों की शक्ति में गिरावट आई और वैदिक संस्कृति का केंद्र उत्तर प्रदेश में पाञ्चाल क्षेत्र में बदल गया, (जिसका राजा "केसीन दरभ्य" स्वर्गीय कुरु राजा का भतीजा था)।
  2. लगभग 900 से 800 ई.पू मे हस्तिनापुर में एक भयानक बाढ़ आई, जिससे संपूर्ण राज्य में उथल-पुथल के कारण नष्ट हो गया। इसके बाद लगभग 800 ई.पू में, कौरवों ने राजधानी को कौशाम्बी में स्थानांतरित कर दिया और कुरुवंश वत्स महाजनपद में विकसित हुआ। वत्स महाजनपद का शासन जो क्रमशः ऊपरी दोआब मे दिल्ली और हरियाणा और निचले दोआब पर शासन करते थे। कुरु वंश की वत्स शाखा आगे कौशाम्बी और मथुरा में शाखाओं में विभाजित हो गई।
  3. अन्य और अंतिम कुरु शासक निर्बल सिद्ध हुए, जिन्हे नंद सम्राज्य के सम्राट महापद्मनन्द द्वारा लगभग 350 से 340 ई. पू मे पराजित कर दिया गया और उनका शासन समाप्त हो गया।[2]

पुरातात्विक सर्वेक्षण[संपादित करें]

कुरु साम्राज्य की समय-सीमा और भौगोलिक सीमा (प्राचीन हिंदू साहित्य के अध्ययन द्वारा निर्धारित) पुरातात्विक "चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति" के विस्तार का सुझाव देती है। जिसे अंग्रेजी में "पेंटेड ग्रे वेयर (PGW)" संस्कृति कहते हैं।[3]

कुरु राज्य का बटवारा किस प्रकार हुआ - kuru raajy ka batavaara kis prakaar hua

चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति का विस्तार क्षेत्र

यह संस्कृति हरियाणा और दोआब क्षेत्र में बस्तियों की बढ़ती संख्या और आकार से मेल खाती है। कुरुक्षेत्र जिले के पुरातात्विक सर्वेक्षणों में लगभग 1250 से 600 ईसा पूर्व की अवधि के लिए तीन-स्तरीय पदानुक्रम शहरीकरण का पता चला है। यद्यपि कई पीजीडब्ल्यू पुरातात्विक स्थल छोटे गांव थे और कई पीजीडब्ल्यू पुरातात्विक स्थल बड़ी बस्तियों के रूप में उभरे जिन्हें शहरों के रूप में जाना जा सकता है। इनमें से सबसे बड़ी बस्ति को किले के रूप में जाना जा सकता है।[4]

महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है।[5]

कुरु सम्राटों की सूची[संपादित करें]

पुरु राजवंश के राजा सम्राट सुदास द्वारा स्थापित भारत राजवंश के सम्राट कुरु ने कुरु साम्राज्य की नींव डाली।

  • सम्राट कुरु
  • प्रतीप
  • शांतनु
  • देवव्रत
  • चित्रांगद
  • विचित्रवीर्य
  • धृतराष्ट्र
  • विदुर
  • पाण्डु
  • दुर्योधन
  • युधिष्ठिर
  • भीम
  • युयुत्सु
  • दुशासन
  • विकर्ण
  • अर्जुन
  • नकुल
  • सहदेव
  • घटोत्कच
  • बभ्रुवाहन
  • अभिमन्यु
  • लक्ष्मण कुमार
  • अरावन
  • प्रतिविन्ध्य
  • शतनिक
  • सुतसोम
  • श्रुतसेन
  • श्रुतकर्मण
  • परीक्षित
  • जनमेजय
  • अश्वमेधादत्त

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • चन्द्रवंश
  • सूर्यवंश
  • जनपद
  • महाजनपद
  • महाभारत
  • कुरुक्षेत्र युद्ध
  • वैदिक सभ्यता
  • श्रीमद्भगवद्गीता
  • भारत का इतिहास
  • भगवान श्री कृष्ण
  • हिन्दू धर्म का इतिहास
  • भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूची
  • हिन्दू साम्राज्यों और राजवंशों की सूची

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "How did the 'Ramayana' and 'Mahabharata' come to be (and what has 'dharma' got to do with it)?". मूल से 16 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 दिसंबर 2018.
  2. THE CHRONOLOGY OF INDIA : From Mahabharata to Medieval Era. 1. वेदवीर आर्य. पृ॰ 68.
  3. Dangi, Vivek (2018). "Iron Age Culture of North India". researchgate.net. अभिगमन तिथि 7 मई 2021.
  4. James Heitzman, The City in South Asia (Routledge, 2008), pp.12-13
  5. "दिल्ली सिटी द इमपेरिकल गजेटटियर ऑफ इण्डिया,१९०९, भाग ११, पेज २३६". मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.

कुरु वंश का अंतिम शासक कौन था?

अंतिम राजा निचक्षु : महाभारत के बाद कुरुवंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया।

कुरु राज्य के कितने हिस्से किए गए?

कुरु साम्राज्य की सीमाएँ वर्तमान दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग (दोआब का क्षेत्र, प्रयाग तक) शामिल थे।

कुरु वंश का राजा कौन था?

नहुष और ययाति उसके वंश में अत्यंत प्रसिद्ध और पराक्रमी राजा हुए। ययाति के पुत्र पुरु के नाम पर पौरव वंश का नाम पड़ा जिसमें दुष्यंत के पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए। उसके बाद का मुख्य शासक संवरण का पुत्र कुरु थाकुरु के वंश में आगे चलकर शांतनु हुए।

कुरु वंश का प्रथम शासक कौन था?

कुरु वंश की शुरुआत राजा कुरु से हुई थी। वे इस वंश के प्रथम पुरुष थे। राजा कुरु बड़े ही प्रतापी, शूरवीर और तेजस्वी थे।