कश्यप गोत्र के कुल देवता कौन हैं? - kashyap gotr ke kul devata kaun hain?

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दैनिक भास्कर हिंदी: जानना चाहते हैं कौन हैं आपके कुलदेवता? मंगलवार को करें ये प्रयोग

कश्यप गोत्र के कुल देवता कौन हैं? - kashyap gotr ke kul devata kaun hain?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज की भागती दौड़ती जिंदगी के बीच परिवार से दूर रहने वाले लोगों को कई बार अपने कुलदेवी/ देवता का पता नहीं होता है। इसकी कोई और वहज भी हो सकती है, जैसे वर्षों से स्थान परिवर्तन के कारण पता ही नहीं है कि हमारे कुलदेवता/देवी कौन है। कैसे उनकी पूजा कैसे होती है। कब उनकी पूजा होती है आदि। इस कारण से वर्षों से कुलदेवता/देवी को पूजा नहीं मिल पाती है। ऐसे में घर-परिवार का सुरक्षात्मक आवरण समाप्त हो जाने से अनेकानेक समस्याएं अनायास घेर लेती हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं, एक ऐसा प्रयोग, जिससे यह जाना जा सकता है की आपके कुलदेवता कौन है यह एक साधारण किन्तु प्रभावी प्रयोग है। 

ये है प्रयोग 
ग्यारह मंगलवार का ये प्रयोग है, इस प्रयोग की शुरुवात किसी भी शुक्लपक्ष के मंगलवार से करें। सुबह पूजन अर्चन के समय एक साबुत सुपारी लेकर उसे स्नान करवाकर पाट पर स्थापित करें, अब सहज शब्दों में प्रार्थना करें " हे हमारे कुल गोत्र के कुल देवता आप कौन हो कहां हो ? उसका मुझे ज्ञान नहीं..मैं आपको जानना चाहता हूं इसी हेतु से मैं आपका आव्हाहन इस सुपारी में कर रहा हूं। ऐसा तीन बार कहें उसके बाद सुपारी का पंचोपचार पूजन करें और घर के मंदिर में रख दीजिए।

प्रार्थना करें
फिर रात में सोने से पहले सुपारी का फिर से पूजन कर प्रार्थना करें, " हे हमारे कुल गोत्र के कुलदेवता मैं आपको जानना चाहता हूं? कृपा कर स्वप्न में मार्गदर्शन प्रदान कीजिए और सुपारी को अपने तकिये के नीचे रखकर सो जाईए और सुपारी को पुन: वापिस मंदिर में रख पंचोपचार पूजन प्रार्थना कर लीजिए। 

ग्यारह मंगलवार करें ये काम
जिस मंगलवार आरम्भ किया, उसे जोड़ ग्यारह मंगलवार आपको कठोर उपवास रखना है यही इसका नियम है। आपको अकल्पनीय रूप से स्वप्न में आपके कुलदेवता उनके स्थान का पूर्ण मार्गदर्शन स्वप्न में आपको प्राप्त हो जाएगा। यह प्रयोग मंगलवार से शुरू करें और 11 मंगलवार तक करते रहें। मंगलवार को सुबह स्नान आदि से स्वच्छ पवित्र हो अपने देवी देवता की पूजा करें। इस अवधि में शुद्धता का विशेष ध्यान रखें ,यहां तक कि बिस्तर और सोने का स्थान तक शुद्ध और पवित्र रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करें और मांस-मदिरा से पूर्ण परहेज रखें।  

समस्याएं होंगी समाप्त
इस प्रयोग की अवधि के अन्दर आपको स्वप्न में आपके कुलदेवता/देवी की जानकारी मिल जाएगी। अगर स्वयं न समझ सकें तो योग्य जानकार से स्वप्न विश्लेषण करवाकर जान सकते हैं। इस प्रकार वर्षों से भूली हुई कुलदेवता की समस्या हल हो जाएगी और पूजा देने पर आपके परिवार की बहुत सी समस्याएं भी समाप्त हो जाएंगी।

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कश्यप गोत्र के कुल देवता कौन हैं? - kashyap gotr ke kul devata kaun hain?

कश्यप गोत्र के कुल देवता कौन हैं? - kashyap gotr ke kul devata kaun hain?

कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए।

इनके पिता ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि थे। इन्हें परमपिता ब्रह्मा का अवतार माना गया है। माना जाता है कि द्वापर युग में कश्यप प्रजापति ही भगवान विष्णु के कृष्णावतार में उनके पिता वसुदेव थे तथा उनकी प्रथम पत्नी अदिति देवकी और उनकी द्वितीय पत्नी दिति रोहिणी थीं।

परिचय[संपादित करें]

कश्यप ऋषि प्राचीन वैदिक ॠषियों में प्रमुख ॠषि हैं जिनका उल्लेख ॠग्वेद में हुआ है। अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एंव अति प्राचीन कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण के उन्होंने 'विश्वकर्मभौवन' नामक राजा का अभिषेक कराया था। ऐतरेय ब्राह्मणों ने कश्यपों का सम्बन्ध जनमेजय से बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है:

स यत्कुर्मो नाम। प्रजापतिः प्रजा असृजत। यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो वै कूर्म्स्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः कश्यपः।

महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक 'मरीचि' थे जिसने कश्यप ऋषि उत्पन्न हुए। कश्यप ने दक्ष प्रजापति की १७ पुत्रियों से विवाह किया। दक्ष की इन पुत्रियों से जो सन्तान उत्पन्न हुई उसका विवरण निम्नांकित है। महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार उन सत्रह पत्नियों के नाम हैं -:

  1. अदिति
  2. दिति
  3. दनु
  4. अनिष्ठा
  5. काष्ठा
  6. सुरसा
  7. इला
  8. मुनि
  9. सुरभि
  10. कद्रू
  11. विनता
  12. यामिनी
  13. ताम्रा
  14. तिमि
  15. क्रोधवशा
  16. सरमा
  17. पातंगी

मार्कण्डेय पुराण और भागवत पुराण के अनुसार तेरह पत्नियां

  1. अदिति
  2. दिति
  3. दनु
  4. काष्ठा
  5. अनिष्ठा
  6. सुरसा
  7. मुनि
  8. सुरभि
  9. विनता
  10. कद्रू
  11. पातंगी
  12. तिमि
  13. इला

मत्स्य पुराण के अनुसार नौ पत्नियां

  1. अदिति
  2. दिति
  3. दनु
  4. काष्ठा
  5. अनिष्ठा
  6. कद्रू
  7. सुरसा
  8. विनता
  9. सुरभि


भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण के अनुसार कश्यप की तेरह पत्नियां थीं और मत्स्य पुराण के अनुसार नौ। एक परम्परा के अनुसार देवता, दैत्य, दानव, यक्ष, गंधर्व, रक्षा, नाग इन सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई।

एक बार समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर परशुराम ने वह कश्यप मुनि को दान कर दी। कश्यप मुनि ने कहा-'अब तुम मेरे देश में मत रहो।' अत: गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने रात को पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया। वे प्रति रात्रि में मन के समान तीव्र गमनशक्ति से महेंद्र पर्वत पर जाने लगे।

अरुण और गरुड़[संपादित करें]

दक्ष प्रजापति की सत्रह कन्याएं थी जिनमें से सभी का विवाह कश्यप मुनि के साथ हुआ किंतु कश्यप मुनि को कद्रु तथा विनता से विशेष प्रेम था। एक बार प्रसन्न होकर कश्यप ने उन दोनों को मनचाहा वर मांगने को कहा। कद्रु ने समान पराक्रमी एक नाग-पुत्र मांगे तथा विनता ने उसके पुत्रों से अधिक तेजस्वी दो पुत्र मांगे। कालांतर में दोनों को क्रमश: एक सहस्त्र, तथा दो अंडे प्राप्त हुए। 500 वर्ष बाद कद्रु के अंडों के नाग प्रकट हुए। विनता ने ईर्ष्यावश अपना एक अंडा स्वयं ही तोड़ डाला। उसमें से एक अविकसित बालक निकला जिसका ऊर्ध्वभाग बन चुका था, अधोभाग का विकास नहीं हुआ थां उसने क्रुद्ध होकर मां को 500 वर्ष तक कद्रु की दासी रहने का शाप दिया तथा कहा कि यदि दूसरा अंडा समय से पूर्व नहीं फोड़ा तो वह पूर्णविकसित बालक मां को दासित्व से मुक्त करेगा। पहला बालक अरुण बनकर आकाश में सूर्य का सारथि बन गया तथा दूसरा बालक गरुड़ बनकर आकाश में उड़ गया।

विनता तथा कद्रु एक बार कहीं बाहर घूमने गयीं। वहाँ उच्चैश्रवा नामक घोड़े को देखकर दोनों की शर्त लग गयी कि जो उसका रंग गलत बतायेगी, वह दूसरी की दासी बनेगी। अगले दिन घोड़े का रंग देखने की बात रही। विनता ने उसका रंग सफेद बताया था तथा कद्रु ने उसका रंग सफेद, पर पूंछ का रंग काला बताया था। कद्रु के मन में कपट था। उसने घर जाते ही अपने पुत्रों को उसकी पूंछ पर लिपटकर काले बालों का रूप धारण करने का आदेश दिया जिससे वह विजयी हो जाय। जिन सर्पों ने उसका आदेश नहीं माना, उन्हें उसने शाप दिया कि वे जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जायें। इस शाप का अनुमोदन करते हुए ब्रह्मा ने कश्यप को बुलाया और कहा-'तुमसे उत्पन्न सर्पों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। तुम्हारी पत्नी ने उन्हें शाप देकर अच्छा ही किया, अत: तुम उससे रूष्ट मत होना।' ऐसा कहकर ब्रह्मा ने कश्यप को सर्पों का विष उतारने की विद्या प्रदान की। विनता तथा कद्रु जब उच्चैश्रवा को देखने अगले दिन गयीं तब उसकी पूंछ काले नागों से ढकी रहने के कारण काली जान पड़ रही थी। विनता अत्यंत दुखी हुई तथा उसने कद्रु की दासी का स्थान ग्रहण किया।

गरुड़ ने नागों से पूछा कि कौन-सा ऐसा कार्य है जिसको करने से उसकी माता को दासित्व से छुटकारा मिल जायेगा? उसके नाग भाइयों ने अमृत लाकर देने के लिए कहा। गरुड़ ने अमृत की खोज में प्रस्थान किया। उसको समस्त देवताओं से युद्ध करना पड़ा। सबसे अधिक शक्तिशाली होने के कारण गरुड़ ने सभी को परास्त कर दिया। तदनंतर वे अमृत के पास पहुंचा। अत्यंत सूक्ष्म रूप धारण करके वह अमृतघट के पास निरंतर चलने वाले चक्र को पार कर गया। वहां दो सर्प पहरा दे रहे थे। उन दोनों को मारकर वह अमृतघट उठाकर ले उड़ा। उसने स्वयं अमृत का पान नहीं किया था, यह देखकर विष्णु ने उसके निर्लिप्त भाव पर प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि कह बिना अमृत पीये भी अजर-अमर होगा तथा विष्णु-ध्वजा पर उसका स्थान रहेगा। गरुड़ ने विष्णु का वाहन बनना भी स्वीकार किया। मार्ग में इन्द्र मिले। इन्द्र ने उससे अमृत-कलश मांगा और कहा कि यदि नागों ने इसका पान कर लिया तो अत्यधिक अहित होगा। गरुड़ ने इन्द्र को बताया कि वह किसी उद्देश्य से अमृत ले जा रहा है। जब वह अमृत-कलश कहीं रख दे, इन्द्र उसे ले ले। इन्द्र ने प्रसन्न होकर गरुड़ को वरदान दिया कि नाग उसकी भोजन सामग्री होंगे। तदनंतर गरुड़ अपनी मां के पास पहुंचा। उसने नाग को सूचना दी कि वह अमृत ले आया है। नाग विनता को दासित्व से मुक्त कर दें तथा स्नान कर लें। उसने कुशासन पर अमृत-कलश रख दियां जब तक नाग स्नान करके लौटे, इन्द्र ने अमृत चुरा लिया था। नागों ने कुशा को ही चाटा जिससे उनकी जीभ के दो भाग हो गए, अत: वे द्विजिव्ह कहलाने लगे।

इन्द्र को बालखिल्य महर्षियों से बहुत ईर्ष्या थी। रूष्ट होकर बालखिल्य ने अपनी तपस्या का भाग कश्यप मुनि को दिया तथा इन्द्र का मद नष्ट करने के लिए कहा। कश्यप ने सुपर्णा तथा कद्रु से विवाह किया। दोनों के गर्भिणी होने पर वे उन्हें सदाचार से घर में ही रहने के लिए कहकर अन्यत्र चले गये। उनके जाने के बाद दोनों पत्नियां ऋषियों के यज्ञों में जाने लगीं। वे दोनों ऋषियों के मना करने पर भी हविष्य को दूषित कर देती थीं। अत: उनके शाप से वे नदियां (अपगा) बन गयीं। लौटने पर कश्यप को ज्ञात हुआ। ऋषियों के कहने से उन्होंने शिवाराधना की। शिव के प्रसन्न होने पर उन्हें आशीर्वाद मिला कि दोनों नदियां गंगा से मिलकर पुन: नारी-रूप धारण करेंगी। ऐसा ही होने पर प्रजापति कश्यप ने दोनों का सीमांतोन्नयन संस्कार किया। यज्ञ के समय कद्रु ने एक आंख से संकेत द्वारा ऋषियों का उपहास किया। अत: उनके शाप से वह कानी हो गयी। कश्यप ने पुन: ऋषियों को किसी प्रकार प्रसन्न किया। उनके कथनानुसार गंगा स्नान से उसने पुन: पुर्वरूप धारण किया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

कश्यप गोत्र का कुल देवता कौन है?

कश्यप ऋषि की पत्नी अदिती को कश्यप गौत्र की कुलदेवी माना जाता है। यह राजा दक्ष की पुत्री थी। राजा दक्ष ने अपनी 17 कन्याओं का विवाह कश्यप ऋषि से किया था। जिनमें अदिती सबसे बड़ी थी।

कश्यप गोत्र का मूल क्या है?

इनके पिता ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि थे। इन्हें परमपिता ब्रह्मा का अवतार माना गया है। माना जाता है कि द्वापर युग में कश्यप प्रजापति ही भगवान विष्णु के कृष्णावतार में उनके पिता वसुदेव थे तथा उनकी प्रथम पत्नी अदिति देवकी और उनकी द्वितीय पत्नी दिति रोहिणी थीं।

गोत्र की कुलदेवी कौन सी है?

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कश्यप गोत्र का अर्थ क्या है?

ब्राह्मणों में जब किसी को अपने गोत्र का ज्ञान नहीं होता तब वह कश्यप गोत्र का उच्चारण करता है। ऐसा इसलिए होता क्योंकि कश्यप ऋषि के एकाधिक विवाह हुए थे और उनके अनेक पुत्र थे। अनेक पुत्र होने के कारण ही ऐसे ब्राह्मणों को जिन्हें अपने गोत्र का पता नहीं है कश्यप ऋषि के ऋषिकुल से संबंधित मान लिया जाता है।