कृतज्ञता और कृतघ्नता में क्या अंतर है? - krtagyata aur krtaghnata mein kya antar hai?

हमेशा मस्त रहने के लिए दो बातों का होना सर्वाधिक जरूरी है। जीवन व्यवहार को सुन्दर बनाने के लिए कृतघ्नता का परित्याग करें और कृतज्ञता अभिव्यक्त करना अपनी आदत में ढाल लें। इन दो बातों को अपनाने मात्र से व्यक्तित्व में ताजगी भरी वह गंध आ जाती है कि हर कोई अपना होने को चाहता है। हर व्यक्ति को इन मानवीय गुणों का अवलंबन करना चाहिए मगर कोई-कोई ही होते हैं जो यह कर पाते हैं।


हम यदि अपने भीतर के मनुष्यत्व को थोड़ा जागृत कर लें और संसार में आने तथा रहने के  उद्देश्यों और लक्ष्य को जान लें तो ये ही नहीं बल्कि अन्य तमाम गुणों को आत्मसात कर सकते हैं। पर अपनी अधिनायकवादी वृत्तियाँ और विभिन्न रूपों में व्याप्त अहंकार इसमें सबसे बड़ी बाधा है जो किसी भी व्यक्ति को सरल और सहज होने नहीं देते। कृतघ्नता आसुरी वृत्ति का द्योतक है जबकि कृतज्ञता और उदारता दैवीय गुणों का परिचायक है। जिन लोगों का मन मलीन होता है उनमें कृतघ्नता कूट-कूट कर भरी हुई होती है और ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थों की पूर्ति में ही दिन-रात लगे रहते हैं।


इन लोगों के लिए अपने काम और स्वार्थ से बढ़कर दुनिया में कहीं कुछ दिखता ही नहीं। अपने काम के लिए ये लोेग किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। कहीं ये अकेले में गिड़गिड़ाने लगते हैं तो कहीं भीड़ में खड़े होकर औरों पर धौंस जमाने। इनके लिए अपने काम के वक्त न कोई पराया होता है, न अपना। काम निकलवाने की सारी कलाबाजियों में माहिर ये लोग जिन माध्यमों का सहारा लेते हैं वे भी अपने आप में अजीब ही होते हैं। इनके लिए कोई भी आदमी तभी तक अपना होता है जब तक काम नहीं निकल जाए, इसके बाद उन्हें अन्य कामों के लिए दूसरे-तीसरे आदमियों की तलाश शुरू हो जाती है।


‘यूज एण्ड थ्रो’ की अवधारणा को कैसे अंजाम दिया जाता है, यह कोई सीखे तो ऐसे ही लोगों से। इस तरह के लोग अपने यहाँ ही हों, ऐसी बात नहीं। ऐसे लोग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। यह अलग बात है कि अपनी धरा पर जाने क्या अभिशाप है कि इस किस्म के लोगों की खूब भरमार बनी हुई है। हमारे यहाँ कृतघ्न लोगों की जमात हर किसी क्षेत्र में विद्यमान है और दुर्भाग्य से इनकी तूती भी बोलती है। अपने यहाँ तो कई कृतघ्न लोग पूजनीय और वंदनीय बने हुए हैं, कई श्रेष्ठीजनों के रूप में नाम कमा रहे हैं तो कई सारे ऐसे ओहदों पर बैठे हुए हैं जहाँ उन्हें कभी नहीं होना चाहिए।


इन लोगों की पूरी जिन्दगी का निचोड़ निकाला जाए तो एक बात साफ तौर पर उभर कर सामने आती है कि इन्होंने जो कुछ मुकाम हासिल किया है वह कृतघ्न बने रहकर। आज इसका तो कल किसी और का इस्तेमाल करते हुए ये अपने उपयोग में आने लायक लोगों को बदल-बदल कर लगातार आगे बढ़ते रहे हैं। ऐसे लोगों का अपना खुद का कोई हुनर हो न हो, ईश्वर ने उन्हें पूर्व जन्मार्जित पुण्य की बदौलत कोई ऐसा भाग्य जरूर दिया होता है कि ये दूसरों के बूते कमा खाने और घर भरने के साथ ही यशेषणा को आकार देने में माहिर हो ही जाते हैं। ऐसे लोगों को कृतघ्न की श्रेणी में रखा जाता है।


कृतघ्नता को जो लोग जीवन में अपना लेते हैं वे पूरी जिन्दगी ऐसे ही बने रहते हैं और इस एकमात्र दुर्गुण की वजह से उनके सारे गुण ढँक जाते हैं। ऐसे लोगों के सम्पर्क में आने वाले लोगों में से कोई इनका स्थायी शुभचिंतक या मित्र कभी नहीं हो सकता बल्कि जिन लोगों से ये किसी न किसी बहाने या धौंस के साथ काम ले लिया करते हैं वे ऊपर से भले ही इनके सामने तारीफ करें मगर असल में इनके शत्रु नम्बर एक हो जाते हैं और पूरी जिन्दगी ऐसे लोगों के साथ अपने संबंधों के शुरूआती दिन को कोसते रहते हैं।


जीवन के किसी भी दौर में अपने लिए किसी ने भी तनिक सा सहयोग या प्रोत्साहन दिया हो अथवा हमारे काम में हाथ बँटाया हो, उसे धन्यवाद देना न भूलें और जहाँ मौका मिले ऐसे सहयोगकर्त्ताओं के प्रति कृतज्ञता का भाव जरूर दर्शाएँ। अपने पर उपकार करने वाले लोगों के बारे में किसी भी प्रकार का मानहानि करने वाला वाक्य निकालना अथवा अपशब्द बोलना मित्र द्रोह व विश्वासघात है और ऐसा करने वाले लोग जीवन के अंतिम समय में इतने अकेले और असहाय हो जाते हैं कि इनका कोई ठौर नहीं होता। उनके सारे संगी-साथी दूर हो जाते हैं तथा ऐसे क्षणों में इन्हें मौत भी भयावह लगने लगती है।


हर छोटे-बड़े काम करने वाले को आप और कुछ दे न दें, कृतज्ञता के दो मीठे बोल देकर आप उसकी श्रद्धा और आदर के हकदार तो हो ही जाते हैं। जो लोग कृतघ्न हैं उनका भी निरादर कभी न करें क्योंकि उनकी कृतघ्नता की वजह से आप हल्के रहते हैं और वे कृतज्ञता के ऋण से लगातार इतने भारी भरकम हो जाते हैं कि उनसे ठीक से चला-फिरा भी नहीं जाता। हमें कृतज्ञ होना चाहिए उन लोगों का जिनकी निरन्तर कृतघ्नता की वजह से हमें उन सभी लोगों के बारे में जानने और सोचने-समझने का मौका मिला है जिन्हें हम अब तक अपना समझने की भूल करते रहे हैं और असल में ये न हमारे हैं न किसी और के....। हकीकत तो यह है कि वे लोग अब खुद के भी नहीं रहे।

कृतज्ञता एक महान गुण है। कृतज्ञता का अर्थ है अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदर्शन करना। हम अपने प्रति कभी भी और किसी भी रूप में की गई सहायता के लिए आभार प्रकट करते हैं और कहते हैं कि 'हम आप के प्रति कृतज्ञ हैं, ऋणी हैं और इसके बदले हमें जब भी कभी अवसर आएगा, अवश्य ही सेवा करेंगे।' कृतज्ञता मानवता की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। यह हमें आभास कराती है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में और कभी भी यदि किसी व्यक्ति ने कोई सहयोग और सहायता प्रदान की है, तो उसके लिए यदि कुछ न कर सके, तो हृदय से आभार अवश्य प्रकट करें। वहीं कृतघ्नता इसके विपरीत एक आसुरी वृत्तिहै, जो इंसान को इंसानियत से जुदा करती है।

कृतज्ञता दिव्य प्रकाश है। यह प्रकाश जहां होता है, वहां देवताओं का वास माना जाता है। कृतज्ञता दी हुई सहायता के प्रति आभार प्रकट करने का, श्रद्धा के अर्पण का भाव है। जो दिया है, हम उसके ऋणी हैं, इसकी अभिव्यक्ति ही कृतज्ञता है और अवसर आने पर उसे समुचित रूप से लौटा देना, इस गुण का मूलमंत्र है। इसी एक गुण के बल पर समाज और इंसान में एक सहज संबंध विकसित हो सकता है, भावना और संवेदना का जीवंत वातावरण निर्मित हो सकता है। कृतज्ञता एक पावन यज्ञ है। 'गीताकार' ने कहा है कि तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को उन्नत करो और देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार नि:स्वार्थ भाव से एक दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे। गीता के इस श्लोक में कृतज्ञता का स्वरूप स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। जो दे, उससे लाभ लेकर उसको भी बदले में यथासंभव दें। यज्ञ से दैवीय शक्तियां प्रसन्न होती हैं और देवता यज्ञ करने वाले को समृद्ध कर देते हैं। कृतघ्न कभी संतुष्ट नहीं हो सकता और वह सुखी भी नहीं हो सकता है। वह सदा अपने प्रति दिए गए सहयोग को संशय की दृष्टि से देखता है और यह जताता है कि उसके प्रति कितना गलत किया गया है। वह सर्वाधिक बुरा उनका करता है, जो उसे सहयोग देने वाले होते हैं। इसकी परिणति होती है कि एक दिन उसके प्रति सभी लोग सहयोग करना बंद कर देते हैं।

[लाजपत राय सभरवाल]

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कृतघ्नता का मतलब क्या होता है?

किसी के द्वारा अपने प्रति किये गये सत्कार्यो को भूल जाने वाले या न मानने वाले व्यक्ति को कृतघ्न कहते हैं तथा इस प्रकार की क्रिया कृतघ्नता कहलाती है।

कृतज्ञ और कृतज्ञ में क्या अंतर है?

कृतज्ञ का अर्थ होता है अपने प्रति किए गए उपकार को मानने वाला जबकि कृतघ्न का अर्थ है किए गए उपकारों को भूल जाना।

कृतज्ञता क्या होती है कोई उदाहरण दीजिए?

Answer. Answer: कृतज्ञता एक महान गुण है। हम अपने प्रति कभी भी और किसी भी रूप में की गई सहायता के लिए आभार प्रकट करते हैं और कहते हैं कि 'हम आप के प्रति कृतज्ञ हैं, ऋणी हैं और इसके बदले हमें जब भी कभी अवसर आएगा, अवश्य ही सेवा करेंगे। ...

कृतज्ञ शब्द का विलोम क्या है?

कृतज्ञ का विलोम शब्द कृतघ्न होता है।