रबी खरीफ और जायद फसल क्या है? - rabee khareeph aur jaayad phasal kya hai?

फसल या सस्य किसी समय-चक्र के अनुसार वनस्पतियों या वृक्षों पर मानवों व पालतू पशुओं के उपभोग के लिए उगाकर काटी या तोड़ी जाने वाली पैदावार को कहते हैं।[1] मसलन गेंहू की फ़सल तब तैयार होती है जब उसके दाने पककर पीले से हो जाएँ और उस समय किसी खेत में उग रहे समस्त गेंहू के पौधों को काट लिया जाता है और उनके कणों को अलग कर दिया जाता है। आम की फ़सल में किसी बाग़ के पेड़ों पर आम पकने लगते हैं और, बिना पेड़ों को नुक्सान पहुँचाए, फलों को तोड़कर एकत्रित किया जाता है।

जब से कृषि का आविष्कार हुआ है बहुत से मानवों के जीवनक्रम में फ़सलों का बड़ा महत्व रहा है। उदाहरण के लिए उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल में रबी की फ़सल और ख़रीफ़ की फ़सल दो बड़ी घटनाएँ हैं जो बड़ी हद तक इन क्षेत्रों के ग्रामीण जीवन को निर्धारित करती हैं। इसी तरह अन्य जगहों के स्थानीय मौसम, धरती, वनस्पति व जल पर आधारित फ़सलें वहाँ के जीवन-क्रमों पर गहरा प्रभाव रखती हैं।[2]

भारतीय फसलें तथा उनका वर्गीकरण[संपादित करें]

भारतीय फसलों का वर्गीकरण भिन्न-भिन्न आधारों पर किया जा सकता है। नीचे कुछ आधारों पर भारतीय फसलों का वर्गीकरण दिया गया है।

  • रबी फसलें : गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका‌ - हरे चारे की खेती, मसूर, आलू, राई,तम्‍बाकू, लाही, जई, सूरजमुखी आदि
  • जायद फसलें : कद्दू, खरबूजा, तरबूज, लौकी, तोरई, मूँग, खीरा, मिर्च, टमाटर, आदि
  • ख‍रीफ फसलें : धान, बाजरा, मक्‍का, कपास, मूँगफली, शकरकन्‍द, उर्द, मूँग, मोठ लोबिया(चँवला), ज्‍वार, तिल, ग्‍वार, जूट, सनई, अरहर, ढैंचा, गन्‍ना, सोयाबीन,भिण्डी आदि
  • एकवर्षीय फसलें : धान, गेहूँ, चना, ढैंचा, बाजरा, मूँग, कपास, मूँगफली, सरसों, आलू, शकरकन्‍द, कद्दू, लौकी, सोयाबीन
  • द्विवर्षीय फसलें : चुकन्दर, प्‍याज
  • बहुवर्षीय फसलें (Perennials) : नेपियर घास, रिजका, फलवाली फसलें

उपयोगिता या आर्थिक आधार पर[संपादित करें]

  • अन्‍न या धान्‍य फसलें (Cereals) : धान, गेहूँ, जौं, चना, मक्‍का, ज्‍वार, बाजरा,
  • तिलहनी फसलें (Oilseeds) : सरसों, अरंडी, तिल, मूँगफली, सूरजमुखी, अलसी,

, तोरिया, सोयाबीन और राई

  • दलहनी फसलें (Pulses) : चना, उर्द, मूँग, मटर, मसूर, अरहर, मूँगफली, सोयाबीन
  • मसाले वाली फसलें  : अदरक, पुदीना, प्‍याज, लहसुन, मिर्च, धनिया, अजवाइन, जीरा, सौफ, हल्‍दी, कालीमिर्च, इलायची और तेजपत्ता
  • रेशेदार फसलें (Fibres) : जूट, कपास, सनई, पटसन, ढैंचा
  • चारा फसलें (Fodders) : बरसीम, लूसर्न (रिजका), नैपियर घास, लोबिया, ज्‍वार
  • फलदार फसलें : आम, अमरूद, नींबू, लीची, केला, पपीता, सेब, नाशपाती,
  • जड एवं कन्‍द (Roots & Tubers) : आलू, शकरकन्‍द, अदरक, गाजर, मूली, अरबी, रतालू, टेपियोका, शलजम
  • उद्दीपक (Stimulants) : तम्बाकू, पोस्‍त, चाय, कॉफी, धतूरा, भांग
  • शर्करा : चुकन्‍दर, गन्‍ना
  • औषधीय फसलें (Medicinals) : पुदीना, मेंथा, अदरक, हल्‍दी और तुलसी
  • नकदी फसलें (Cash Crops) : गन्‍ना, आलू, तम्‍बाकू, कपास, मिर्च, चाय, काफी,
  • अन्‍तर्वती फसले (Catch Crops) : उर्द, मूँग, चीना, लाही, सांवा, आलू
  • मृदा रक्षक फसलें (Cover Crops) : मूँगफली, मूँग, उर्द, शकरकन्‍द, बरसीम, लूसर्न (रिजका)
  • हरी खाद : मूँग, सनई, बरसीम, ढैचां, मोठ, मसूर, ग्‍वार, मक्‍का, लोबिया, बाजराबरसीम की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी है?

बरसीम की मुख्य प्रजातियां इस प्रकार से है जैसे कि बरदान, मैस्कावी, बुंदेलखंड बरसीम जिसे जे.एच.पी.146 भी कहते है जे.एच.टी.वी.146, वी.एल.10, वी.एल. 2, वी.एल. 1, वी.एल. 22 एवं यु.पी.वी.110 तथा यु.पी.वी.103 हैI

रबी की फसल उत्तर भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है जो कम तापमान में बोई जाती है, फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने मैं की जाती है। इसी के साथ में मध्यप्रदेश में रब्बी की फसलें अधिकतर आलू लहसुन प्याज गाजर और मूली चुकंदर इसी के साथ गराडू रतालू और प्याज के बीज बनाने के लिए झब्बू लगाए जाते हैं परंतु कि यह मध्यप्रदेश में अधिकतर किसानों को जल की कमी होने के कारण यहां आलू मुख्य रूप से लगाए जाते हैं

रबी की फ़सल सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ, जौ,आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं।

आलू, गेहूं, जौ,मसूर, चना, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं,

सर्वप्रथम माह जून के अंतिम सप्ताह में बारिश होने के बाद दो बार खेत की जुताई करते हैं तथा सितम्बर में एक बार व अक्टूबर में दो बार जुताई करते हैं। सूखा क्षेत्र होने के कारण वर्ष में एक ही बार फसल की बुवाई करते हैं। फसल का चयन करते समय अलग-अलग लम्बाई की जड़ों (मूसला व जकड़ा जड़) वाली फसल जैसे- गेहूं, चना, अलसी, सरसों आदि की बुवाई एक साथ करते हैं। क्योंकि कठिया गेहूं की जड़ दो से तीन इंच लम्बी होती है, चना की जड़ 6 से आठ इंच तक लंबी होती है, जबकि अलसी एवं सरसों की मूसला जड़े चार से पांच इंच तक लंबी होने के कारण पौधों को निरंतर नमी मिलती रहती है और उत्पादन अधिक होता है। घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए कठिया गेहूं 20 किग्रा., देशी चना 20 किग्रा. अलसी 6 किग्रा. व सरसों 2 किग्रा. को मिलाकर बुवाई करते हैं।

अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह या दीपावली के पहले बुवाई करते हैं। इसके लिए सभी बीजों कठिया गेंहूं, देशी चना व अलसी तथा डी.ए.पी. खाद को एक साथ मिलाकर हल बांसा बांधकर बुवाई करते हैं। बुवाई के लिए एक मज़दूर भी लगाते है। अर्थात् एक मज़दूर हल को पकड़ता है तथा दूसरा बीज को बांसा में डालता जाता है तब बुवाई होती है। बीज की बुवाई 3 से 4 इंच की गहराई पर करते हैं। इसके बाद सरसों की बुवाई कूंड अर्थात् लाइन में करते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 इंच की होती है।

शीत काल में हुई वर्षा को महावट कहते हैं। जाड़े में जब महावट अधिक होती है, तब कठिया गेहूं में खैरा रोग लग जाता है। इससे बचाव के लिए बाज़ार से म्लड्यू पाउडर लेकर राख के साथ मिलाकर छिड़काव कर देते हैं। अगर महावट एक भी नहीं होती है, तब कठिया गेंहू, देशी चना के साथ सरसों, अलसी की भी पैदावार अच्छी हो जाती है।

फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है। साथ ही इसी बहाने खेत की देख-रेख एवं छुट्टा पशुओं से बचाव भी होता रहता है तथा निराई-गुड़ाई करने से उपज भी अच्छी प्राप्त होती है।

फसल की कटाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर मार्च के अंतिम सप्ताह तक हो जाती है। कटने के बाद फसल को खुब अच्छी तरस सुखाते हैं, तब मड़ाई करते हैं। एक एकड़ फसल की मड़ाई पांच से छः दिनों में होती है। थ्रेसर से इसकी मड़ाई नहीं करते हैं, क्योंकि एक तो चना फूट जाता है और अलसी भूसा के साथ उड़ जाने से किसान का नुकसान होता है, दूसरे मड़ाई से निकला भूसा मुलायम होता है, जिसे पशु बड़े चाव से खाते हैं। मड़ाई करने के बाद हाथ से ओसाई करके भूसा व अनाज अलग करते हैं।[1]

जायद में कौन कौन सी फसलें आती है?

अब जायद (रबी और खरीफ के मध्य में बोई जाने वाली फसल) की सब्जियों की बुवाई का उपयुक्त समय चल रहा है। इन फसलों की बुवाई फरवरी से मार्च तक की जाती हैं। इन फसलों में प्रमुख रूप से ¨टडा, तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, लौकी, तुरई, ¨भडी, अरबी शामिल हैं।

रबी खरीफ जायद क्या है?

रबी फसलें : गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, मसूर, आलू, राई,तम्‍बाकू, लाही, जंई, अलसी आदि। जायद फसल: जायद की फसलें खरीफ और रबी मौसमों के बीच, यानी मार्च से जून के बीच उगाई जाती हैं। उन्हें एक महत्वपूर्ण विकास अवधि के रूप में गर्म, शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है और फूलों के लिए दिन की लंबाई होती है

खरीफ और रबी फसल में क्या अंतर है उदाहरण बताएं?

रबी की कुछ प्रमुख फसलें गेहूं, जौ, मटर, चना और सरसों हैं। खरीफ फसलें देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून की शुरुआत के साथ उगाई जाती हैं और इन्हें सितंबर-अक्टूबर में काटा जाता है। इस मौसम में बोई जाने वाली प्रमुख फसलें धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, कपास, जूट, मूंगफली और सोयाबीन हैं।

रबी फसल में क्या क्या आता है?

रबी की फ़सल सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ, जौ,आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं।