परिवार दो प्रकार के होते हैं। एक एकाकी परिवार और दूसरा संयुक्त परिवार। भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार की धारणा रही है। संयुक्त परिवार में वृद्धों को संबल प्रदान होता रहा है और उनके अनुभव व ज्ञान से युवा व बाल पीढ़ी लाभान्वित होती रही है। Show परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो आपसी सहयोग व समन्वय से क्रियान्वित होती है और जिसके समस्त सदस्य आपस में मिलकर अपना जीवन प्रेम, स्नेह एवं भाईचारा पूर्वक निर्वाह करते हैं। संस्कार, मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं। कोई भी व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है, उसी से उसकी पहचान होती है और परिवार से ही अच्छे-बुरे लक्षण सिखता है। परिवार सभी लोगों को जोड़े रखता है और दुःख-सुख में सभी एक-दूसरे का साथ देते हैं। कहते हैं कि परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता हैं, पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं होता हैं, मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं, बहन से बड़ा कोई शुभ चिंतक नहीं इसलिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे भी पढ़ें: वास्तव में मानव सभ्यता की अनूठी पहचान है परिवार किसी भी सशक्त देश के निर्माण में परिवार एक आधारभूत संस्था की भांति होता है, जो अपने विकास कार्यक्रमों से दिनोंदिन प्रगति के नए सोपान तय करता है। कहने को तो प्राणी जगत में परिवार एक छोटी इकाई है लेकिन इसकी मजबूती हमें हर बड़ी से बड़ी मुसीबत से बचाने में कारगर है। परिवार से इतर व्यक्ति का अस्तित्व नहीं है इसलिए परिवार को बिना अस्तित्व के कभी सोचा नहीं जा सकता। लोगों से परिवार बनता हैं और परिवार से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व बनता हैं। इसलिए कहा भी जाता है ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। ऐसी भावना के पीछे परस्पर वैमनस्य, कटुता, शत्रुता व घृणा को कम करना है। परिवार के महत्व और उसकी उपयोगिता को प्रकट करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 15 मई को संपूर्ण विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस' मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित कर की थी। तब से इस दिवस को मनाने का सिलसिला जारी है। परिवार दो प्रकार के होते हैं। एक एकाकी परिवार और दूसरा संयुक्त परिवार। भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार की धारणा रही है। संयुक्त परिवार में वृद्धों को संबल प्रदान होता रहा है और उनके अनुभव व ज्ञान से युवा व बाल पीढ़ी लाभान्वित होती रही है। संयुक्त पूंजी, संयुक्त निवास व संयुक्त उत्तरदायित्व के कारण वृद्धों का प्रभुत्व रहने के कारण परिवार में अनुशासन व आदर का माहौल हमेशा बना रहता है। लेकिन बदलते समय में तीव्र औद्योगीकरण, शहरीकरण, आधुनिकीकरण व उदारीकरण के कारण संयुक्त परिवार की परंपरा चरमराने लग गई है। वस्तुत: संयुक्त परिवारों का बिखराव होने लगा है। एकाकी परिवारों की जीवनशैली ने दादा-दादी और नाना-नानी की गोद में खेलने व लोरी सुनने वाले बच्चों का बचपन छीनकर उन्हें मोबाइल का आदी बना दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति, अपरिपक्वता, व्यक्तिगत आकांक्षा, स्वकेंद्रित विचार, व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि, लोभी मानसिकता, आपसी मनमुटाव और सामंजस्य की कमी के कारण संयुक्त परिवार की संस्कृति छिन्न-भिन्न हुई है। गांवों में रोजगार का अभाव होने के कारण अक्सर एक बड़ी आबादी का विस्थापन शहरों की ओर गमन करता है। शहरों में भीड़भाड़ रहने के कारण बच्चे अपने माता-पिता को चाहकर भी पास नहीं रख पाते हैं। यदि रख भी ले तो वे शहरी जीवन के अनुसार खुद को ढाल नहीं पाते हैं। गांवों की खुली हवा में सांस लेने वाले लोगों का शहरी की संकरी गलियों में दम घुटने लगता है। इसे भी पढ़ें: मातृ दिवस विशेष: मां ही मन्दिर है, मां ही तीर्थ है इसके अलावा पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ने के कारण आधुनिक पीढ़ी का अपने बुजुर्गों व अभिभावकों के प्रति आदर कम होने लगा है। वृद्धावस्था में अधिकतर बीमार रहने वाले माता-पिता अब उन्हें बोझ लगने लगे हैं। वे अपने संस्कारों और मूल्यों से कटकर एकाकी जीवन को ही अपनी असली खुशी व आदर्श मान बैठे हैं। देश में 'ओल्ड एज होम' की बढ़ती संख्या इशारा कर रही है कि भारत में संयुक्त परिवारों को बचाने के लिए एक स्वस्थ सामाजिक परिप्रेक्ष्य की नितांत आवश्यकता है। वहीं महंगाई बढ़ने के कारण परिवार के एक-दो सदस्यों पर पूरे घर को चलाने की जिम्मेदारी आने के कारण आपस में हीन भावना पनपने लगी है। कमाने वाले सदस्य की पत्नी की व्यक्तिगत इच्छाएं व सपने पूरे नहीं होने के कारण वह अलग होना ही हितकर समझ बैठी है। इसके अलावा बुजुर्ग वर्ग और आधुनिक पीढ़ी के विचार मेल नहीं खा पाते हैं। बुजुर्ग पुराने जमाने के अनुसार जीना पसंद करते हैं तो युवा वर्ग आज की स्टाइलिश लाइफ जीना चाहते हैं। इसी वजह से दोनों के बीच संतुलन की कमी दिखती है, जो परिवार के टूटने का कारण बनती है। यदि संयुक्त परिवारों को समय रहते नहीं बचाया गया तो हमारी आने वाली पीढ़ी ज्ञान संपन्न होने के बाद भी दिशाहीन होकर विकृतियों में फंसकर अपना जीवन बर्बाद कर देगी। अनुभव का खजाना कहे जाने वाले बुजुर्गों की असली जगह वृद्धाश्राम नहीं बल्कि घर है। छत नहीं रहती, दहलीज नहीं रहती, दर-ओ-दीवार नहीं रहती, वो घर घर नहीं होता, जिसमें कोई बुजुर्ग नहीं होता। ऐसा कौन-सा घर परिवार है जिसमें झगड़े नहीं होते? लेकिन यह मनमुटाव तक सीमित रहे तो बेहतर है। मनभेद कभी नहीं बनने दिया जाए। बुजुर्ग वर्ग को भी चाहिए कि वह नए जमाने के साथ अपनी पुरानी धारणाओं को परिवर्तित कर आधुनिक परिवेश के मुताबिक जीने का प्रयास करें। ● 'परिवार' शब्द अंग्रेजी शब्द 'Family' का हिन्दी रूपान्तरण है। Family शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Famulus से हुई है, जो प्रायः एक ऐसे समूह के लिए प्रयुक्त होता है, जिसमें माता-पिता, बच्चे आदि शामिल होते हैं साधारण शब्दों में विवाहित जोड़े को परिवार की संज्ञा दी जाती। है, किन्तु समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से इसे परिवार शब्द का प्रासंगिक मापदण्ड नहीं माना जाता है।
परिवार के कार्य
परिवार की विशेषताएँ
परिवार का वर्गीकरण सामान्य रूप से परिवार के दो वर्ग होते हैं एकल परिवार इसमें पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चै सम्मिलित होते हैं। ऐसे परिवार बढ़ती महँगाई और जनसंख्या के कारण अधिक प्रचलित हो रहे हैं। ऐसे परिवार में कुरीतियों एवं आलस्य का अभाव रहता है, व्यक्तित्व का विकास होता है व कलह की सम्भावना नहीं रहती है। यह संयुक्त परिवार की एक लघु इकाई है। संयुक्त परिवार परिवार में माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन, पुत्रवधू एवं उनके बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची आदि एक साथ संयुक्त रूप से घर में निवास करते हैं। इसमें आदर्श नागरिकों के गुणों का विकास होता है, सामाजिक सुरक्षा की भावना विकसित होती है, श्रम विभाजन की व्यापक सुविधा रहती है। आलस्य का अभाव रहता है। भारतीय सामाजिक परिवेश में संयुक्त परिवार ही जीवन का आधार है। परिवार के अन्य प्रकार परिवार के अन्य प्रकार निम्न हैं • मातृस्थान परिवार यह परिवार का वह प्रकार है, जिसमें विवाहित युगल स्त्री के परिवार के साथ निवास करते हैं। पितृस्थान परिवार यह परिवार का वह प्रकार है, जिसमें विवाहित युगल पुरुष के परिवार के साथ निवास करते हैं। वैवाहिक परिवार यह एकल परिवार का ही रूप है। इसे सन्तान बढ़ाने वाला परिवार भी कहा जाता है। यह वह परिवार होता है, जो एक के बाद एक के विवाह के बाद बनता है। • समरक्त सम्बन्धी परिवार यह भी संयुक्त परिवार का ही एक रूप है। इसको अभिविन्यास परिवार भी कहा जाता है। इसमें समान रक्त समूह के लोग सम्मिलित होते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति एक ही रक्त से होती है। सम्बन्ध • सम्बन्ध (Relation) वह बुनियाद होती है, जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति रक्त या विवाह और भावनाओं के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। बालक परिवार में सदस्यों एवं रिश्तेदारों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आदर्शो, मूल्यों, रीति-रिवाजों एवं विश्वासों आदि को धीरे-धीरे सीखता है। • बालक सभी सम्बन्धियों (Relations) का उसके व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव पड़ता है, किन्तु परिवार के प्रमुख सदस्यों का उस पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे वह अपने माता-पिता, भाई-बहनों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के सम्पर्क में आते हुए प्रेम, सहानुभूति, सहनशीलता तथा सहयोग आदि अनेक सामाजिक गुणों को आत्मसात् करने लगता है। • यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक बालक के परिवार में चाचा-चाची, बुआ-फूफा; जैसे सम्बन्धी विद्यमान हों। कक्षा में मौजूद बच्चों की पारिवारिक विविधता से शिक्षक बालकों को इसके विषय में विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ उपलब्ध करा सकते हैं। सम्बन्धों का वर्गीकरण सामान्य रूप में सम्बन्ध दो प्रकार के होते हैं. (i) वैवाहिक सम्बन्ध सामान्यतौर पर इस प्रकार के सम्बन्ध विवाह के कारण उत्पन्न होते हैं; जैसे- पति-पत्नी, सास-बहू आदि । (ii) समरक्त सम्बन्ध इस प्रकार के सम्बन्ध रक्त के आधार पर बनते हैं। ऐसे सम्बन्धों की सामाजिक स्वीकृति आवश्यक होती है, जबकि प्राणी शास्त्रीय सम्बन्धों में स्वीकृति आवश्यक नहीं होती है; जैसे-माता-पिता एवं पुत्र-पुत्री के बीच का सम्बन्ध । परिवार और समाज में सहसम्बन्ध
मित्र बालक के कार्यों में उसका सहयोग करने वाला अथवा उसके साथ खेलने वाला बालक उसका मित्र कहलाता है। यह आवश्यक नहीं कि समुदाय के सभी बालकों के साथ बालक के सम्बन्ध अच्छे हो। जिन बालकों के साथ बालक का सम्बन्ध अच्छा होता है एवं जिनके साथ वह रहना, कार्य करना एवं खेलना पसन्द करता है, वह उसका मित्र (Friend) कहलाता है। मित्रता एक ऐसा रिश्ता है, जो अन्य रिश्तों की भाँति थोपा नहीं जा सकता। अपनी सुविधा एवं रुचि के अनुसार देख-परख कर मित्र चुनने की स्वतन्त्रता होती है। यह एक ऐसा बन्धन होता है, जो लोगों के मन को जोड़ता है और इसी के आधार पर वे एक-दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। मित्रों के बीच के आपसी सम्बन्धों को मित्रता कहते हैं। मित्रता का वर्गीकरण अरस्तू अरस्तू ने मित्रता का वर्गीकरण तीन भागों में निम्न प्रकार से किया है (i) उपयोगिता की मित्रता इस प्रकार की मित्रता में मित्र वही होता है, जिसकी मित्रता में अपना हित दिखाई देता है। (ii) आनन्द की मित्रता इस प्रकार की मित्रता में मित्रों के बीच आपसी हित को लेकर सहमति होती है एवं जो अपनी आपसी खुशी मित्रों के बीच बाँटते हैं। (iii) अच्छी मित्रता इस प्रकार की मित्रता में दो मित्रों के बीच आपसी सम्मान का भाव होता है और वह एक-दूसरे के साथ का आनन्द लेने हैं। इसमें मित्रता हित पूर्ति व आनन्द के लिए नहीं होती है। मित्रता का महत्त्व
परिवार के सदस्यों की देखभाल परिवार के सदस्यों की देखभाल का वर्णन इस प्रकार है 1. परिवार के बुजुर्गों की देखभाल
2. बीमार लोगों की देखभाल
3. किशोरों की देखभाल
4. विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के लिए संवेदनशील होना आवश्यक है, क्योंकि शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की अक्षमता के कारण इनके सीखने व भाग लेने की क्षमता सीमित है। समाज में परिवार की क्या भूमिका है?सभी समाजों में बच्चों का जन्म और पालन पोषण परिवार में होता है। बच्चों का संस्कार करने और समाज के आचार व्यवहार में उन्हें दीक्षित करने का काम मुख्य रूप से परिवार में होता है। इसके द्वारा समाज की सांस्कृतिक विरासत एक से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है। व्यक्ति की सामाजिक मर्यादा बहुत कुछ परिवार से ही निर्धारित होती है।
परिवार की परिभाषा क्या है?परिवार का अर्थ एवं परिभाषा
यह समाज की वह केन्द्रीय इकाई है, जिसमें माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, भतीजे-भतीजी, आदि सम्मिलित होते हैं और जो पारस्परिक उत्तरदायित्व स्रेह और सहयोग की भावना से परिपूर्ण भी होते हैं। किन्तु परिवार का यह स्वरूप मात्र भारतीय समाज में ही दृष्टव्य है।
परिवार और समाज क्या है?परिवार समाज की एक इकाई है। परिवारों से मिलकर ही समाज का निर्माण होता है। अगर परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ व खुशहाल होंगे, तो समाज भी खुशहाल होगा। पारिवारिक सुख और शांति के लिए परिवार के सदस्यों के मध्य आपसी स्नेह, विश्वास और सम्मान आवश्यक है।
परिवार का कार्य क्या है?सामाजिक कार्य
यह बच्चों का पालन पोषण करता है और उनके समाजीकरण में सहायता देता है। बच्चे परिवार के बीच में ही विकसित होते हैं। वे परिवार में ही भाषा, रीति-रिवाज, परम्परा तथा आचार को सीखते हैं। परिवार का महत्वपूर्ण योगदान इसके सदस्यों के समाजीकरण तथा उनके व्यवहारों के नियमन एवं सामाजिक नियंत्रण में है।
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