पांच नहान करने होते हैं। एक छठी के दिन, दूसरा हवन के दिन, तीसरा अौर चौथा अच्छा दिन देखकर करते हैं। पांचवां कुएं वाले दिन सवा महीने पर होता है। Show हवन :-बीस पूड़ी बनाकर चार-चार पांच जगह रखकर उनमें रुपये, बूरा रखकर मिनसते हैं। हवन से उठने के बाद जच्चा से मिनसवाते हैं। कई जगह हवन वाले दिन देवर पल्ला पकड़कर लाता है। जच्चा की गोद में चार पूड़ी या चार लड्डू रखते हैं। उन लड्डूअो को जच्चा ही खाती है। बीस पूड़ी कुम्हारी को जाती है। हवन के बाद सवा किलो षक्कर और कुछ पैसे रखकर मिनसते हैं। बूढ़ा बाबा पूजते है :-एक लोटे में पानी लेते हैं। लोटा बजाकर पैसो को पानी में डालते हैं। (आतक-बातक सोने का सिक्का, बूढ़ा-बाबा तुम्हारा पैसा) सभी सुहागन अौरतें जिनका बूढ़ा-बाबा पूजता है पूज लें। जच्चा के लिए रात को काजल पाड़ते हैं उसे जच्चा अौर बच्चे को बुआ लगाती हैं। कुँआ पूजना :-कुआँ पूजने के लिए हल्दी के पीले किए चावल दो लोटे दोगड़ के लिए या गंगा सागर पाँच सतिए बनाया हुआ सफेद तौलिया या एक नया रूमाल। तौलिया बहू के सिर पर दोगड़ के नीचे रखते हैं। थोड़ा-सा बाजरा रूमाल में बाँधकर बहू की साड़ी पर टाँगते हैं। पीहर से लाया हुआ पीलिया उढ़ाते हैं। कई जगह सवा दो मीटर सफेन चिकन का कपड़ा उढ़ाते हैं। बड़ी छठी या परोजन :-परोजन किसी-किसी के होते हैं सबके नहीं होते। बच्चा 2ए 5ए 7ए 9ए 11 वर्श का हो या किसी के यहाँ लड़की का विवाह हो तब ही परोजन करते हैं इसमें सुनार से कान विंधवाते हैं। परोजन में भी भात नौता जाता है। षादी की तरह ही रतजगा व हल्दात करते हैं। विदाई में बहन बेटियों को साड़ी रुपये व मिठाई देते हैं। भाई-बहन दोनो बैठते हैं। आशाढ़, बैषाख, अगहन, माघ अौर फागुन में करते है या पहले बच्चे की शादी में कर देते है छठी पूजने में दो पीडे़ लेकर नई साड़ी बिछाकर देवी-देवता फैलाने हैं। कील, पटा, मुसल, खिचड़ी सवा किलो। 14 मटृठी मीठी, 14 मट्ठी फीकी, 14 पूडे़, 14 लड्डू देवता के आगे रखते हैं। चावल मीठे बनाकर 14 देवी बनाकर उस पर समान एक-एक सब चीजें रखते हैं। आटे का हलवा बनाकर 14 जगह रखते हैं। लड्डू अौर मठरी सवा-सवा किलो देवताअो के आगे रखते हैं। एक चन्दोवा की साड़ी लेकर चार हथलगी पकड़ती है, जिन औरतों के परोजन हो चुके हो वहीं औरतें चन्दोवा पकड़ेंगी। थापे :-दो थापे गेरू के लगाते हैं। देवर बंसी बजाता है उनको नेग देते हैं, ननदेऊ पंखा डुलाता है। काफी जगह भाई भी पंखा डुलाता है। उनको 1 डिब्बा मिठाई देते हैं। परोजन करते हैं पहले खारे पर माँ-बाप अौर सब बच्चे बैठते हैं खारे पर बैठे जब गोदी में सवा किलो लड्डू लेकर बैठे गोद गिरी का। माँ गोद में 21 आस लेकर बैठेगी। चने के आंजरे भरते हैं। कुछ मेवा भी देते है अौर मोतियो के भी भरते हैं। उसके बाद छठी पूजते हैं। आंजरे मां दोनो हाथो में नीला ब्लाउज लेकर पाँच जगह चने, पाँच जगह सुहाली, पाँच जगह मेवा, दो-दो जगह मोती के, चार जगह पैसों के ये 21 अंजारे पहले देवता के आगे चढ़ाने है। ये पांचों चीजें थोड़ी चन्दोवा की साड़ी में भी डालनी है। इसके बाद चारों हद लगी को चने व सुहाली एक-एक मुट्ठी दौरानी जेठानी को देती जाती है। छठी का समान पंडित को देते हैं। छठी पर कपड़े अौर परोजन का सारा सामान पीहर से आता है। चने, मीठी सुहाली, पांचो मेवा, मोती, खुले पैसे, बांसुरी, चांदी के दो छल्ले, 21 घुंघरू चांदी के चुंदड़ी पर या साड़ी पर लगाने के लिए। भाई जीजा व बच्चो के टीका करता है। दूहहेडी को दो थापे रखे जाते हैं। सवा-सवा किलो नेवज रखते हैं। बच्चो के कान पर हल्दी लगाते हैं, सारा सामान ननद को देते हैं। बुआ टीका करती है। खारे से उठ कर देवताअो को पूजते है। बाल उतरवाना :-बच्चे के बाल 1ए 3ए 5ए 7 वर्श की आयु में उतरवाते हैं। वैसे कोशिश पहले साल में ही करनी चाहिए। लड़के के बाल चाँदने में व लड़की के बाल अँधेरे पक्ष में कोई भी अच्छा वार देख कर गंगा जी व जमुना जी पर जा कर उतरवाते हैं या घर में। चार रोटी ले जाते हैं बाल उतरवाकर उस पर रखते हैं। फिर उसके साथ चार बूँदी के लड्डू रख कर जमना जी या गंगा जी जहाँ पर भी गए हों, प्रवाहित कर देते हैं। फिर रोली या हल्दी से बच्चे के सिर पर सतिया बुआ बनाती हैं। नया रूमाल या टोपी पहनाते हैं और फिर सब भोजन करते है। अपने परिवार में मिठाई बांटते हैं। इसे सुनेंरोकेंहिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म के छठे दिन सायंकाल या रात्रि को एक विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है, इस पूजा को बोलचाल की भाषा में ‘छठी पूजा’ कहते हैं. छठी पूजा नवजात शिशु के मंगल की कामना से की जाती है. 3 साल के बच्चे को कैसे बढ़ाना चाहिए?बच्चे की हाइट बढ़ाने के लिए रोज करवाएं ये काम, तेजी से बढ़ेगा कद
पढ़ना: हिंदू धर्म में शादी कैसे होती है? लड़के की छठी कितने दिन में होती है? इसे सुनेंरोकेंलड़के या लड़की का जन्म (सभी के हिसाब से है) जब हस्पताल से आये उसी दिन छठी पूजते हैं। छठी वाले दिन जच्चा नहाने के बाद कुछ नहीं खाती। मूंग की दाल अौर षमा के चावल बनते हैं। बच्चे की छठी की रात क्यों मनाई जाती है?इसे सुनेंरोकेंअनंत जन्मो से भोगो में लिप्त रहा यह जीव आत्मा जब मानव शरीर पाता है तो अमर होने की चाह करता है। मन की तरंगें भोगो में हर इन्द्रिय को ले जाती है। मन खुद कुछ नही करता बल्कि भाव विषयक इन्द्रियों के द्वारा देखता,सुनता,स्पर्श करता, चलता, बोलता आदि अलग अलग इन्द्रियों से रसास्वादन करता है। बच्चों की लंबाई बढ़ाने के लिए क्या खाना चाहिए?बच्चों की हाइट बढ़ाने के लिए खिलाएं ये 15 खाद्य पदार्थ
पढ़ना: ज्यादा टेबलेट खाने से क्या होता है? बच्चा खाना नहीं खाता तो क्या करना चाहिए? इसे सुनेंरोकेंअगर आप इस बात को लेकर परेशान हैं की बच्चा कुछ खाता नहीं है तो ध्यान दें की उसे क्या खाने में ज्यादा रूचि है। जैसे की कुछ बच्चों को पिज़्ज़ा बहुत पसंद रहता है वहीँ कुछ बच्चों को नूडल्स। आप इसका फायदा उठाकर उनके पसंदीदा भोजन में पौष्टिक सब्जी, काजू बादाम, देसी घी या मक्खन मिला के खिलाएं। 3 साल के बच्चे की लंबाई कितनी होनी चाहिए?इसे सुनेंरोकें3 साल के लड़के की हाइट 3 फुट 1 इंच होनी चाहिए वहीं लड़की की हाइट 3 फुट होनी चाहिए। अगर लड़का 4 साल का है तो उसकी हाइट 3 फुट 4 इंच होनी चाहिए और अगर लड़की है तो उसकी हाइट 3 फुट 3 इंच होनी चाहिए। 5 साल के बच्चों की हाइट का खास ध्यान देना पड़ता है। बच्चे की छठी कैसे की जाती है?छठी पूजने के लिये “छठी” बच्चे की बुआ गोबर से रखती है। गोबर उपलब्ध न होने की स्थिति में रोली से भी रख सकती है। छठी यानि स्वास्तिक जच्चा के कमरे के दरवाजे के दोनो तरफ बनाये जाते है। फिर उन पर मखाने लगाये जाते हैं, छठी रखाई बुआ को शगुन का नेग दिया जाता है।
छठ माता कौन है?मान्यता के अनुसार, छठ माता को ब्रह्मा की मानस पुत्री कहा जाता है। कहा जाता है कि इनकी पूजा करने से संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र की मनोकामना पूरी हो जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्य देव की बहन भी कहा जाता है।
छठ कैसे होते हैं?उत्सव का स्वरूप. नहाय खाय छठ पर्व का पहला दिन जिसे 'नहाय-खाय' के नाम से जाना जाता है,उसकी शुरुआत चैत्र या कार्तिक महीने के चतुर्थी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है । ... . खरना और लोहंडा छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है। ... . संध्या अर्घ्य ... . उषा अर्घ्य. |