कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Muhavare मुहावरे Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

मुहावरे HBSE 9th Class Hindi

मुहावरे

जब कोई वाक्यांश अपने प्रचलित अर्थ को त्यागकर किसी विशेष अर्थ के लिए प्रसिद्ध हो जाता है, तो उसे मुहावरा कहते हैं; जैसे – ‘आँख दिखाना’ । जब कोई व्यक्ति डॉक्टर को आँख दिखाने के लिए जाता है तब इसका साधारण अर्थ लिया जाता है अर्थात डॉक्टर से आँख की जाँच करवाना चाहता है कि उसे नेत्र रोग है या नहीं। किंतु जब यह कहा जाता है कि उसने मुझे ‘आँख दिखाई’ तो इसका अर्थ होगा कि उसने मेरे प्रति क्रोध व्यक्त किया। अतः ‘आँख दिखाना’ मुहावरा कहा जाएगा। अतः मुहावरा एक विशेष अर्थ को व्यक्त करने वाला वाक्यांश है।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

मुहावरे

(अ – आ)

1. अंगारे बरसना – बहुत अधिक गर्मी पड़ना।
हरियाणा में जून के मास में तो अंगारे बरसते हैं।

2. अक्ल पर पत्थर पड़ना – बुद्धि नष्ट होना।
मेरी अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए थे कि मैं मोहन जैसे धोखेबाज की बातों में आ गया।

3. अंगूठा दिखाना – साफ इंकार करना।
सरला ने अपनी सहेली समझकर मोहिनी से सहायता माँगी थी, किंतु उसने तो अंगूठा दिखा दिया।

4. अंधे की लाठी – एकमात्र सहारा।
बेचारे रामलाल का इकलौता पुत्र क्या मरा, अंधे की लाठी ही छिन गई।

5. अक्ल के घोड़े दौड़ाना – बहुत सोच – विचार करना।
कश्मीर की समस्या पर सभी नेता अक्ल के घोड़े दौड़ा चुके हैं, किंतु कोई समाधान नहीं निकला।

6. अपना – सा मुँह लेकर रह जाना – लज्जित होना।
मोहन बड़ी – बड़ी बातें करता था, परीक्षा में असफल होने पर वह अपना – सा मुँह लेकर रह गया।

7. अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना – अपनी हानि स्वयं करना।
तुम अपने अध्यापक की बात न मानकर अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार रहे हो।

8. अपने मुँह मियाँ मिटू बनना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
अपने मुँह मियाँ मिटू तो कोई भी बन सकता है, असली प्रशंसा तो वह है जो दूसरे करें।

9. अपनी खिचड़ी अलग पकाना – सबसे अलग रहना ।
कृष्णचन्द्र तुम दूसरों के साथ मिलकर काम किया करो, अपनी खिचड़ी अलग पकाने से कोई लाभ नहीं होगा।

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10. अरण्य – रोदन – निष्फल प्रयत्न।
आज के भ्रष्ट नेताओं के पास शिकायत लेकर जाना तो अरण्य – रोदन के समान है।

11. अंधे के आगे रोना – निर्दय को अपना दुःख सुनाना।
आज के भ्रष्ट अधिकारियों के आगे गिड़गिड़ाना तो अंधे के आगे रोने के समान है।

12.अंग – अंग ढीला होना – बहुत थक जाना।
दिवाली की सफाई करते करते मेरा अंग – अंग ढीला हो गया है।

13. अंत पाना – रहस्य जानना।
ईश्वर का अंत पाना आसान काम नहीं है।

14. आँखों का तारा – बहुत प्यारा।
राम दशरथ की आँखों का तारा था।

15. आँखों में धूल झोंकना – धोखा देना।
चोर पुलिस की आँखों में धूल झोंक कर भाग गया।

16. आँख का काँटा – खटकने वाला व्यक्ति।
मजदूरों का नेता मिल मालिक की आँख का काँटा बन गया।

17. आँखें खुलना – सावधान होना।
मुरारीदीन के हाथों धोखा खाकर सुधीर की आँखें खुल गईं।

18. आँखें दिखाना – इशारे से धमकाना।
पिता जी के आँखें दिखाने पर राजेश पुस्तकें लेकर पढ़ने चला गया।

19. आँख रखना – ध्यान रखना।
नौकर पर जरा आँख रखना, नहीं तो घर का सामान साफ कर जाएगा।

20. आँखें फेरना – साथ न देना।
विपत्ति में आँख न फेरना ही सच्चे मित्र की पहचान है।

HBSE 9th Class Hindi मुहावरे

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

21. आँखों पर परदा पड़ना – भले – बुरे की पहचान न होना।
तुम्हारी आँखों पर तो परदा पड़ा हुआ है कि तुम्हें अपने बच्चों के भले की बात भी बुरी लगती है।

22. आँखें चुराना – सामने आने से कतराना।
बुरा समय आने पर मित्र भी आँख चुरा कर जाने लगे।

23. आँखें बिछाना – प्रेम सहित स्वागत करना।
हमारे प्रधानमंत्री जहां भी जाते हैं, लोग उनके स्वागत में आँखें बिछाते हैं।

24. आँखों में खून उतरना – बहुत गुस्सा आना।
शत्रु को सामने देखते उसकी आँखों में खून उतर आया।

25. आँच न आने देना – जरा भी कष्ट न होने देना।
तुम निर्भय होकर काम करो मैं तुम पर कभी आँच न आने दूंगा।

26. आँचल पसारना – भीख माँगना।
स्वाभिमानी व्यक्ति कभी किसी के सामने भीख नहीं माँगते।

27. आँसू पोंछना – धीरज बँधाना।
आज के युग में दीन – दुखियों के आँसू पोंछने वाला कोई बिरला ही होता है।

28. आकाश – पाताल एक करना बहुत अधिक प्रयत्न करना।
बलवीर ने अपने खोए हुए पुत्र को ढूँढने के लिए आकाश – पाताल एक कर दिया।

29. आकाश से बातें करना – बहुत ऊँचा होना।
हिमालय की चोटियाँ आकाश से बातें करती हैं।

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30. आस्तीन का साँप – विश्वासघाती।
तुम राजेश को अपना मित्र मत समझो वह तो आस्तीन का साँप है कभी – न – कभी धोखा अवश्य देगा।

31. आग बबूला होना – अत्यंत क्रोधित होना।
भरी सभा में अपमानजनक शब्द सुनते ही सेठ कृपाराम आग – बबूला हो उठा।

32. आकाश – पाताल का अंतर – बहुत अधिक अंतर।
मोहन और सोहन यद्यपि सगे भाई हैं, किंतु उनके स्वभाव में आकाश – पाताल का अंतर है।

33. आकाश कुसुम – असंभव कल्पना।
महात्मा गाँधी ने जिस राम राज्य की कल्पना की थी, आज वह आकाश कुसुम – सा प्रतीत होता है।

34. आग में कूदना – जान – बूझकर विपत्ति में पड़ना।
अपने घर में बैठे रहने में ही भला है दूसरों की आग में कूदने से क्या लाभ ?

35. आटे में नमक – बहुत कम संख्या या मात्रा में होना।
पाकिस्तान में सिक्खों की संख्या आटे में नमक के समान है।

36. आटे दाल का भाव मालूम होना – कष्ट और वास्तविकता का अनुभव होना।
तुम अभी अविवाहित हो, जब तुम्हारा परिवार बढ़ेगा तभी तुम्हें आटे दाल का भाव मालूम पड़ेगा।

37. आपे से बाहर होना – क्रोध में आना।
भीम की खरी – खरी बातें सुनकर दुर्योधन आपे से बाहर हो गया था।

(इ – ई)

38. इतिश्री करना – समाप्त करना।
परीक्षा की इतिश्री होने पर विद्यार्थी सुख की नींद सोते हैं।

39. ईद का चाँद होना बहुत कम दिखाई देना।
मित्र क्या बात है आजकल तुम ईद के चाँद बने हुए हो।

40. ईंट का जवाब पत्थर से देना – दुष्टता का जवाब दुगुनी दुष्टता से देना।
अगर फिर पाकिस्तान ने हमारे देश पर आक्रमण किया तो हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे।

41. ईंट से ईंट बजाना – नष्ट – भ्रष्ट करना।
वानरों की सेना ने लंका की ईंट से ईंट बजा दी थी।

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(उ – ऊ)

42. उँगली उठाना – दोष निकालना।
मनुष्य को अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए ताकि उस पर कोई उँगली न उठा सके।

43. उँगली उठना – निंदित होना।
दुराचारी लोगों पर शीघ्र ही उँगली उठने लगती है।

44. उगल देना – भेद प्रकट कर देना।
पुलिस की मार पड़ने पर चोर ने सब कुछ उगल दिया।

45. उड़ती चिड़िया पहचानना – दूसरे की वास्तविकता को जान लेना।
तुम उसे धोखा नहीं दे सकते। वह तो शीघ्र ही उड़ती चिड़िया पहचान लेता है।

46. उठ जाना – मर जाना।
इस संसार से एक न एक दिन सबको उठ जाना है।

47. उलटी गंगा बहाना – उलटा कार्य करना।
गीता के प्रकाण्ड पंडित को कर्म – योग का पाठ पढ़ाना उलटी गंगा बहाना है।

48. उन्नीस – बीस का अन्तर – बहुत कम अंतर।
दोनों भाइयों के स्वभाव में बस उन्नीस – बीस का अंतर है।

49. उधेड़बुन में पड़ना – सोच – विचार करना।
अरे! व्यर्थ की उधेड़बुन छोड़कर परिश्रम करो और परीक्षा में बैठ जाओ।

50. ऊँट के मुँह में जीरा – आवश्यकता से बहुत कम वस्तु।
उस पहलवान के लिए तो आधा किलो दूध ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।

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(ए – ऐ)

51. एक आँख से देखना – एक समान समझना।
कानून सबको एक आँख से देखता है।

52. एक ही लकड़ी से हाँकना – एक – सा कठोर व्यवहार करना।
इस जिले का जिलाधीश सबको एक ही लकड़ी से हाँकता है।

53. एड़ी – चोटी का जोर लगा देना – बहुत प्रयत्न करना।
भारतीय हॉकी टीम ने मैच जीतने के लिये एड़ी – चोटी का जोर लगा दिया।

(क)

54. कमर कसना – दृढ़ता से तैयार होना।
हमारे जवानों ने शत्रु का मुकाबला करने के लिए कमर कस ली।

55. कमर टूटना – हिम्मत हार जाना।
व्यापार में बहुत बड़ा घाटा आने पर कर्मचंद की तो मानो कमर टूट गई।

56. कलम तोड़ना – बहुत सुंदर लिखना।।
‘गीतांजलि’ लिखने में महाकवि रवींद्र नाथ टैगोर ने कलम तोड़ दी है।

57. कन्नी काटना – पास न आना।
विनोद का स्वार्थ पूरा हो गया तो वह मुझसे कन्नी काटने लगा।

58. कदम चूमना – खुशामद करना।
मेरा काम बने या न बने मुझसे किसी के कंदम नहीं चूमे जाते।

59. कलेजा मुँह को आना – अत्यधिक दुखी होना
स्वर्गवासी पति की याद आते ही सरला का कलेजा मुँह को आ जाता है।

60. कलेजा निकालकर रख देना सब कुछ अर्पित कर देना।
सच्चे देश – भक्त अपने देश के लिए कलेजा निकालकर रख देने में देर नहीं लगाते।

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61. कलेजा छलनी होना बहुत दुखी होना।
सास की जली – कटी बातें सुनकर बहू का कलेजा छलनी हो गया।

62. कलेजे पर साँप लोटना – ईर्ष्या से जलना।
रवि को प्रथम आया देखकर मोहन के कलेजे पर साँप लोट गया।

63. कलेजा ठंडा होना बहुत खुश होना।
अपने पुत्र के पूरे स्कूल में प्रथम आने पर माँ का कलेजा ठंडा हो गया।

64. काँटे बिछाना – रुकावट पैदा करना।
भले लोगों के रास्ते में काँटे बिछाने के अतिरिक्त तुमने अपने जीवन में और किया ही क्या है?

65. किस खेत की मूली होना – प्रभावहीन होना।
अरे! सुशील ने तो बड़े – बड़े पहलवानों को हरा दिया; फिर तुम किस खेत की मूली हो।

66. कुआँ खोदना – हानि पहुँचाने की कोशिश करना।
जो दूसरों के लिए कुआँ खोदते हैं, वे एक दिन स्वयं उसमें गिरते हैं।

67. कान खोलना – सावधान करना।
माता जी ने नरेश का दोष बतलाकर सब बहन – भाइयों के कान खोल दिए।

68. कान खड़े होना – सावधान होना।।
मालिक के घर में आहट होते ही कुत्ते के कान खड़े हो गए।

69. कान का कच्चा – जो हर एक के कहने में आ जाए।
घनश्याम तो कानों का कच्चा है।

70. कान कतरना – बहुत चालाक होना।
वाह ! अनिल तो बड़े – बड़ों के कान कतरता है।

71. कागज़ी घोड़े दौड़ाना – बेकार की लिखा – पढ़ी करना।
देश की उन्नति के लिए अधिकारियों को कागजी घोड़े न दौड़ाकर कुछ ठोस कदम उठाने चाहिएँ।

72. कुछ पल का मेहमान – मृत्यु के समीप होना।
श्याम के पिता जी अब कुछ ही पलों के मेहमान हैं।

73. कोल्हू का बैल – बहुत अधिक परिश्रम करने वाला।
कोल्हू के बैल की तरह रात – दिन कठोर परिश्रम करने के बाद भी गरीब किसान अपना पेट नहीं भर पाता।

74. कौड़ी को न पूछना – कुछ भी कद्र न होना।
दुराचारी एवं अयोग्य व्यक्ति को कोई कौड़ी भी नहीं पूछता।

75. कान पर जूं तक न रेंगना – कुछ असर न होना।
बिजली बोर्ड के रिश्वतखोर अधिकारियों के आगे बिजली की नियमितता हेतु लाख प्रार्थनाएँ करने पर भी उनके कान पर जूं तक न रेंगी।

76. काम आना – युद्ध में मारा जाना, लाभदायक सिद्ध होना।
(क) सुरेंद्र युद्ध में वीरों की तरह लड़ते – लड़ते अपने देश के लिए काम आया।
(ख) पैसों को बचाकर रखना चाहिए ताकि दुःख के समय में वे काम आ सकें।

77. काफूर होना – दूर होना।
दवाई खाते ही उसका सारा दर्द काफूर हो गया।

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(ख)

78. खतरा मोल लेना – संकट में पड़ना।
प्रशांत से तू – तू मैं – मैं कर तुमने व्यर्थ ही खतरा मोल लिया है।

79. खटाई में पड़ना – किसी काम का बीच में रुक जाना या अधूरा रह जाना।
घरेलू नौकरानी रखने का ममता का इरादा उसके पति के स्थानांतरण के कारण एक बार फिर से खटाई में पड़ गया है।

80. खाक छानना – बेकार फिरना।
बेकारी के इस युग में अनेक योग्य युवक खाक छानते फिरते हैं।

81. खाला जी का घर – आसान काम।
दसवीं की परीक्षा में जिले में प्रथम आना कोई खाला जी का घर नहीं है।

82. खेत रहना – युद्ध में मारा जाना।
भारत – चीन युद्ध में अनेक सैनिक खेत रहे।

83. खून का प्यासा – जानी दुश्मन।
कंस भगवान् श्रीकृष्ण के खून का प्यासा था।

84. खून – पसीना एक करना अत्यंत परिश्रम करना।
जब तक तुम खून – पसीना एक नहीं करोगे तब तक परीक्षा में प्रथम नहीं आ सकते।

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(ग)

85. गर्दन पर सवार होना – अपनी बात मनवाने के लिए बुरी तरह पीछे पड़ना।
यदि विभा से काम करवाना है तो तुम्हें उसकी गर्दन पर सवार होना पड़ेगा।

86. गर्दन उठाना – विरोध में उठना।।
राष्ट्र के खिलाफ गर्दन उठाने वाले को मृत्यु दण्ड देना चाहिए।

87. गड़े मुर्दे उखाड़ना – पुरानी बातें फिर से दोहराना।
व्यर्थ ही गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई लाभ नहीं।

88. गले में ढोल होना – पीछा न छोड़ने वाली बात होना।
इस संस्था का प्रबंध करना मेरे लिए गले का ढोल बन गया है।

89. गले का हार होना – प्रिय होना।
कुसुम तो अपनी सभी बहनों के गले का हार है।

90. गाँठ का पूरा होना – मालदार।
व्यापारी तो ऐसे ग्राहकों की आव – भगत करने में लगे रहते हैं जो गाँठ के पूरे हों।

91. गाँठ बाँधना – अच्छी तरह याद रखना।
सत्य और ईमानदारी के उपदेशों को तो गाँठ बाँध लेना चाहिए।

92. गाँठ का पक्का – धन संभालकर रखने वाला।
धनी बनने हेतु गाँठ का पक्का होना आवश्यक है।

93.गागर में सागर भरना – थोड़े शब्दों में बहुत अधिक कहना।
कविवर रहीम के दोहों में गागर में सागर भरा होता है।

94. गाल बजाना – डींग मारना, घमंड से बोलना।
सविता को गाल बजाने की आदत है।

95. गिरगिट की तरह रंग बदलना – किसी बात पर स्थिर न रहना।
अगर कोमल तुम्हारी यह बात मान जाए तो कहना, वह तो गिरगिट की तरह रंग बदलती है।

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96. गुड़ गोबर कर देना – बना बनाया काम बिगाड़ देना।
उससे काम करवाओगे तो सब गड गोबर कर देगा।

97. गुदड़ी का लाल – छिपा हुआ गुणवान् व्यक्ति।
श्री लाल बहादुर शास्त्री तो गरीबी में पल रहे गुदड़ी के लाल थे।

98. गूलर का फूल – अप्राप्य वस्तु।
गरीबों के लिए दो वक्त की रोटी भी गूलर का फूल बन गई है।

99. गोबर गणेश – सीधा – साधा होना।
सुनीता का भाई तो बिल्कुल गोबर गणेश है जो सबका काम मुफ्त में करता फिरता है।

(घ)

100. घोड़े बेचकर सोना – निश्चित होकर सोना।
परीक्षा के बाद विद्यार्थी घोड़े बेचकर सोते हैं।

101. घाव पर नमक छिड़कना – दुखी को और अधिक दुखी करना।
क्यों बेचारे के घावों पर नमक छिड़कते हो, वह तो पहले से ही दुखों में डूबा हुआ है।

102. घात में रहना – किसी को हानि पहुँचाने की ताक में रहना।
पाकिस्तान हमेशा भारत की शांति को भंग करने के लिए घात में रहता है।

103. घाट – घाट का पानी पीना – अनुभवी होना।
हमारे प्राचार्य जी घाट – घाट का पानी पीने के पश्चात ही जीवन में इतने सफल हुए हैं।

104. घर में गंगा बहना – घर में अथवा सहज में ही योग्य व्यक्ति का मिल जाना।
ऋजु के भाई हिन्दी के विद्वान हैं, अतः उसके तो घर में ही गंगा बहती है।

105. घड़ियाँ गिनना – उत्सुकता से प्रतीक्षा करना।
मथुरावासी कंस के अत्याचार से तंग होकर अपने भगवान श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा में घड़ियाँ गिनते थे।

106. घाव हरा होना – भूला हुआ दुःख ताजा होना।
मृत पति की स्मृति ने उर्मिला के घाव को हरा कर दिया।

107. घास खोदना – व्यर्थ में समय नष्ट करना।
व्यर्थ ही घास खोदने से अच्छा है थोड़ा पढ़ – लिख लो अन्यथा फेल हो जाओगे।

108. घी के दीये जलाना – बहुत प्रसन्न होना।
भारत के स्वतंत्र होने पर भारतवासियों ने घी के दीये जलाए।

109. घुन लगना – चिंता के कारण मनुष्य का दुबला हो जाना।
जोधा सिंह पहले बहुत स्वस्थ था, किंतु बच्चे की आकस्मिक मृत्यु के कारण उसे भीतर ही भीतर घुन लग गया है।

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(च)

110. चकमा देना – धोखा देना।
मोहन ने व्यापार में अपने मित्र को चकमा देकर उसे बरबाद कर दिया है।

111. चाँदी का जूता – रिश्वत देना।
आजकल चाँदी के जूते के बिना कोई काम नहीं करवाया जा सकता।

112. चंपत हो जाना – भाग जाना।
रामेश्वर का नौकर उसके घर का काफी सामान लेकर चंपत हो गया।

113. चाँदी होना – बहुत लाभ होना।
जब से प्रीतम सिंह ने व्यापार आरम्भ किया तब से उसकी तो चाँदी हो गई है।

114. चार चाँद लगाना – शोभा और प्रतिष्ठा बढ़ाना।
आपने हमारे स्कूल में पधार कर उत्सव को चार चाँद लगा दिए।

115. चाँद पर थूकना – बड़े व्यक्तियों की व्यर्थ निंदा करना।
महात्मा गाँधी और पंडित नेहरू जैसे महान नेताओं की निंदा करना तो चाँद पर थूकना है।

116. चादर तानकर सोना – निश्चिंत हो जाना।
परीक्षा के दिनों में जो विद्यार्थी चादर तानकर सोते हैं, वे प्रायः असफल रहते हैं।

117. चादर से बाहर पाँव पसारना – आमदनी से अधिक खर्च करना।
झूठी शान दिखाने के लिए मनुष्य को कभी चादर से बाहर पाँव नहीं पसारने चाहिएँ।

118. चार सौ बीस होना – धोखेबाज होना।
राजेश की बातों में मत आना वह तो पूरा चार सौ बीस है।

119. चिकना घड़ा – जिस पर कोई प्रभाव न पड़ना।
पवन तो चिकना घड़ा है उस पर तुम्हारे उपदेशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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120. चारों खाने चित्त होना – पराजित होना।
जग्गा पहलवान बड़ी – बड़ी डींगें हाँकता रहता था, किंतु गामा पहलवान ने उसे अखाड़े में पहली बारी में ही चारों खाने चित्त कर दिया।

121. चिराग लेकर ढूँढना – कठिनाई से मिलना।
शीला जैसी बहू तो चिराग लेकर ढूँढने से भी नहीं मिलेगी।

122. च्यूटी के पर निकलना – छोटे व्यक्ति का घमंड करना।
देखो तो सही, कल के छोकरे हमें धमकी दे रहे हैं। वाह! च्यूटी के भी पर निकल आए हैं।

123. चिकनी – चुपड़ी बातें करना – खुशामद करना।।
धोखेबाज व्यक्ति चिकनी – चुपड़ी बातें करके अपना काम निकलवा लेते हैं।

124. चूड़ियाँ पहनना – कायरता दिखाना।
आक्रमण के समय तुम्हें रणभूमि में जाना चाहिए। घर में चूड़ियाँ पहनकर बैठना तुम्हें शोभा नहीं देता।

125. चुल्लू भर पानी में डूब मरना – अत्यंत लज्जा की बात।
तुम्हारे जीते – जी तुम्हारी माँ – बहनों का कोई अपमान करे ? तुम्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

126. चौकड़ी भूल जाना – अहंकार दूर होना।
कल तक बाबू सोहनलाल किसी की बात न सुनते थे। अब नौकरी से छुट्टी होते ही वह सारी चौकड़ी भूल गए।

127. चोली दामन का साथ – घनिष्ठ संबंध।
विद्या और परिश्रम में तो चोली दामन का साथ है।

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(छ)

128. छक्के छुड़ाना – बुरी तरह हराना।
भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तान की हॉकी टीम के छक्के छुड़ा दिए।

129. छठी का दूध याद आना – भारी संकट का सामना करना।
शिवाजी से टक्कर लेते ही औरंगजेब को छठी का दूध याद आ गया था।

130. छिपा रुस्तम – छिपा हुआ गुणी व्यक्ति।
हम रोशन लाल को साधारण आदमी समझ रहे थे। उसने आई० ए० एस० की परीक्षा में प्रथम स्थान ग्रहण करके सिद्ध कर दिया कि वह छिपा रुस्तम है।

131. छीछा लेदर करना – दुर्दशा करना।
हमारे अध्यापक ने पाखंडी साधुओं को खरी – खरी सुनाकर उनकी छीछा लेदर कर दिया।

132. छप्पर फाड़कर देना – बिना प्रयत्न के धन की प्राप्ति।
ईश्वर जब देने पर आता है तो छप्पर फाड़कर देता है।

133. छाती पर मूंग दलना – सामने रहकर बुरी तरह सताना।
देखो तो सही, मेरा पुराना मित्र मेरे विरोधियों की सहायता करके आज मेरी छाती पर मूंग दल रहा है।

134. छाती पर साँप लोटना – ईर्ष्या से जलना।
भारत की प्रगति देखकर चीन और पाकिस्तान की छाती पर साँप लोटने लगते हैं।

135. छीटें कसना – निंदा करना।
मित्रता टूटने पर विकास हमेशा राजेश पर छींटे कसता रहता है।

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(ज)

136. जले पर नमक छिड़कना – दुखी दिल को और दुखाना।
वह बेचारा परीक्षा में फेल होने के कारण पहले से ही दुखी है, तुम उसे डाँट कर क्यों जले पर नमक छिड़क रहे हो।

137. जंगल में मंगल – निर्जन स्थान में भी आनंद।
साधुओं की संगति तो जंगल में भी मंगल कर देती है।

138. जहर का यूंट पीना – अपमान को चुपचाप सहना।।
पिताजी ने सबके सामने जब हरीश को फटकारा तो वह बेचारा जहर का यूंट पीकर रह गया।

139. जली कटी सुनाना – सच्ची, किंतु कड़वी बातें कहना।
जब मोहन ने अपने घरेलू झगड़े का नाम लिया तो मैंने भी उसे खूब जली – कटी सुनाई।

140. जान हथेली पर रखना – बलिदान के लिए तैयार रहना।
सरदार भगत सिंह ने जान हथेली पर रखकर ही अंग्रेज़ों से टक्कर ली थी।

141. जमीन पर पाँव न रखना – फूला न समाना।
राजेश जब से परीक्षा में प्रथम आया है तब से जमीन पर पाँव नहीं रखता।

142. जहर उगलना – ईया के कारण निंदा करना।
प्रवीण मेरी उन्नति सहन नहीं कर सकता इसलिए जब देखो वह मेरे विरुद्ध जहर उगलता रहता है।

143. जान के लाले पड़ना – जान खतरे में पड़ना।।
पाकिस्तानी आतंकवादियों के कारण कश्मीर के लोगों को जान के लाले पड़े हुए हैं।

144. जूतियाँ चटकाना – मारा – मारा फिरना।
आजकल लाखों शिक्षित युवक नौकरी के लिए जूतियाँ चटकाते फिरते हैं।

145. जी भर आना – दया से द्रवित होना।
भूकंप से पीड़ित व्यक्तियों की दुर्दशा देखकर मेरा जी भर आया।

146. जी चुराना – बचने का यत्न करना।
यदि तुम पढ़ाई से जी चुराओगे तो बड़े आदमी कैसे बनोगे ?

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(झ)

147. झंडा गाड़ना – अधिकार जमा लेना।
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सफल होकर शासन पर झंडे गाड़ दिए।

148. झख मारना – व्यर्थ समय नष्ट करना।
छुट्टियों में घर बैठकर झख मारने से तो अच्छा है कि हम किसी ऐतिहासिक स्थान की सैर कर लें।

149. झांसा देना – धोखा देना।
चोर पुलिस को झांसा देकर भाग गया।

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(ट – ठ)

150. टस – से – मस न होना – अपने निश्चय पर अडिग रहना।
मैंने उसे लाख समझाया कि बुरे लड़कों की संगत न करो, किन्तु वह टस – से – मस न हुआ।

151. टट्टी की ओट में शिकार खेलना – गुप्त रूप से षड्यंत्र रचना।
कायर लोग ही सदा टट्टी की ओट में शिकार खेला करते हैं।

152. टाँग अड़ाना – हस्तक्षेप करना।
तुम्हें मुझसे क्या दुश्मनी है जो मेरे हर काम में टाँग अड़ा देते हो।

153. टीका – टिप्पणी करना – आलोचना करना।
राम अपने अध्यापकों पर भी टीका – टिप्पणी करता रहता है।

154. टॉय – टॉय फिस होना – सारी शान बिखर जाना।
अमृत की शादी बड़े धूम – धाम से हो रही थी, किंतु अधिक दहेज माँगने पर जब लड़की वालों ने इंकार किया तो उनकी सारी शानो – शौकत टाँय – टाँय फिस हो गई।

155. टेढ़ी खीर – अति कठिन।
आजकल हर बेकार शिक्षित के लिए सरकारी नौकरी पाना टेढ़ी खीर है।

156. टेढ़ी उँगली से घी निकालना – चालाकी से काम निकालना।
लाला घनश्यामंदास बड़ा कंजूस है, उससे पैसे लेना आसान काम नहीं है, बिना टेढ़ी उँगली किए घी नहीं निकलेगा।

157. ठिकाने लगाना – मार डालना।
करम सिंह के दुश्मनों ने उसे निर्जन स्थान पर ले जाकर ठिकाने लगा दिया।

158. ठन – ठन गोपाल – निर्धन व्यक्ति।
कन्हैया लाल से पैसों की आशा मत करो वह तो ठन – ठन गोपाल है।

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(ड – ढ)

159. डंके की चोट – घोषणा के साथ।
मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि चुनाव में मेरी जीत निश्चित है।

160. डूबते को तिनके का सहारा – थोड़ी – सी सहायता।
मुझे यदि आप छोटी – सी नौकरी भी दे दें तो डूबते को तिनके का सहारा मिल जाएगा।

161. डेढ़ ईंट की मस्जिद बनाना – अलग रहना।
तुम डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग क्यों बनाते हो, आओ मिलकर हरियाणा राज्य के विकास में जुट जाएँ।

162. ढोल पीटना – प्रचार करना।
बाबू धर्मचंद जन – सेवा का ढोल तो बहुत पीटते हैं, किन्तु जब कोई काम कराना हो तो सीधे मुँह बात भी नहीं करते।

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(त)

163. तलवे चाटना – खुशामद करना।
मेरी नौकरी जाए या रहे मुझे परवाह नहीं है, किन्तु मैं किसी के तलवे नहीं चादूँगा।

164. तारे गिनना – प्रतीक्षा करना।
कमल शर्मा अपनी प्रेमिका की याद में तारे गिनता रहता है।

165. तिल का ताड़ करना – छोटी बात को बड़ा करके बताना।
कुछ लोगों की आदत है कि अपनी बात को तिल का ताड़ बनाकर बताते हैं।

166. तीन – तेरह करना – बिखेर देना।
कल मेरे कमरे में घुसकर मुन्नू ने मेरी सारी पुस्तकों को तीन – तेरह कर दिया।

167. तीन – पाँच करना – बहाना करना, टालमटोल करना।
पहले तो राजू ने सहायता का वचन दिया, लेकिन जब समय आया तो वह तीन – पाँच करने लगा।

168. तिलांजलि देना – छोड़ देना।
गीता ने अपनी बुरी आदतों को तिलांजलि दे दी है।

169. तूती बोलना – प्रभाव बढ़ना।
आजकल तो कॉलेज में शीला की तूती बोलती है, क्योंकि उसके चाचा जी प्रिंसिपल बनकर आ गए हैं।

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(थ)

170. थाली का बैंगन – अस्थिर विचारों का व्यक्ति।
उमेश तो थाली का बैंगन है जिधर लाभ देखेगा उधर ही दौड़ा चला जाएगा।

171. थूक कर चाटना – वचन से फिर जाना।
कुसुम ने पुष्पा को.अपनी परिचित संगीत अध्यापिका से पढ़वाने का वचन दिया था, परंतु अपनी चचेरी बहन के आग्रह पर उसने पुष्पा को साफ मना कर दिया। इसे कहते हैं थूक कर चाटना।

172. थूक से सत्तू सानना – छोटे साधन से बड़ा कार्य करने की आशा करना।
केवल एक कमरा लेकर तुम अपना व्यापार कैसे चलाओगे थूक से भी कभी सत्तू सना है।

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(द)

173. दाँत कटी रोटी होना – गहरी मित्रता होना।
उन दोनों सहेलियों में दाँत कटी रोटी है।

174. दाँत खट्टे करना – हराना।
भारतीय सेना ने युद्ध में पाकिस्तान की सेना के दाँत खट्टे कर दिए थे।

175. दाँत दिखाना – दीन बनना।
अमीर आदमी को देखकर भिखारी भिक्षा लेने के लिए दाँत दिखाने लगा।

176. दिन फिरना – स्थिति में अच्छा परिवर्तन आना।
दुखी से दुखी मनुष्य के दिन फिरते भी देर नहीं लगती।

177. दाँतों तले उँगली दबाना – आश्चर्यचकित होना।
उस नन्हें बालक का साहस देखकर सभी ने दाँतों तले उँगली दबा ली।

178. दाहिना हाथ होना बहुत बड़ा सहायक होना।
शंकर तो अपने स्वामी का दाहिना हाथ है।

179. दाल – भात में मूसलचंद – व्यर्थ में दखल देने वाला।
राम की तो बेकार में दूसरों की समस्याओं में दखल देने की आदत है। इसे कहते हैं दाल – भात में मूसलचंद।

180. दिन – दूनी रात – चौगुनी उन्नति करना – अधिकाधिक उन्नति करना।
माँ ने अपने पुत्र को दिन – दूनी रात – चौगुनी उन्नति करने की आशीष दी।

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181. दुम दबाकर भागना – डरकर भाग जाना।
बिल्ली को देखते ही चूहा दुम दबाकर भाग गया।

182. दूध का दूध, पानी का पानी – ठीक – ठीक न्याय होना।
जज साहब ने अपना न्यायोचित फैसला सुनाकर दूध का दूध पानी का पानी कर दिया।

183. दम भरना – दावा करना।
सोमेश दिन – रात मेरी मित्रता का दम तो भरता है, मगर समय पर काम नहीं आता।

184. दम लेना – विश्राम करना।
मुझे जरा दम तो ले लेने दो, फिर मैं तुम्हारा भी काम कर देता हूँ।

185. दम सूखना – भयभीत होना।
जंगल में शेर की दहाड़ सुनकर, मेरा तो दम ही सूख गया।

186. दंग रह जाना – आश्चर्यचकित होना।
छोटी – सी बालिका का शौर्य देखकर हमारी माता जी दंग रह गईं।

187. दाल न गलना – सफल न होना।
तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो, यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलेगी।

188. दूर की हाँकना – गप्प मारना।
अरे! कमला की तो दूर की हाँकने की आदत है, तुम उसकी बातों पर मत जाना।

189. दूध की मक्खी – खटकने वाला।
श्याम ने अपना काम निकल जाने पर सुनील को दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंक दिया।

190. दो टूक बात करना – साफ – साफ बात करना।
हमारे पिताजी दो टूक बात करने में विश्वास करते हैं।

191. दूज का चाँद – कभी – कभी दिखाई देना।।
अरे मोहित! तुम तो आजकल दिखाई ही नहीं देते। वाह यार ! बिल्कुल दूज का चाँद हो गए हो।

192. दूध के दाँत न टूटना – अनुभवहीन होना।
लाल सिंह मेरा क्या मुकाबला करेगा, अभी तो उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे।

193. दो नावों पर पाँव रखना – अस्थिर विचार वाला।
जो व्यक्ति दो नावों पर पैर रखता है, उसे अपने काम में सफलता नहीं मिलती।

194. द्रौपदी का चीर – जिसका अन्त न हो।
आजकल भारत की जनसंख्या की समस्या द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ती जा रही है।

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(ध)

195. धता बताना – चालाकी से टाल देना।
अरे! मोहन की क्या बात करते हो, उसने तो अपने भाई की सम्पत्ति का भाग लेकर उसे धता बता दिया है।

196. धज्जियाँ उड़ाना – टुकड़े – टुकड़े करना।
पाकिस्तान के साथ युद्ध में हमारे जवानों ने पैटन टैंकों की धज्जियाँ उड़ा दी थीं।

197. धाक जमाना – प्रभाव डालना।
नेहरू जी ने जोरदार भाषण देकर संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी धाक जमा दी।

198. धूप में बाल सफेद करना – अधिक उम्र में अनुभवहीन होना।
मैं इस दुनिया की रग – रग से परिचित हूँ। मैंने धूप में बाल सफ़ेद नहीं कर रखे हैं।

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(न)

199. नमक – मिर्च लगाना – बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहना।
शीला की बात पर विश्वास न करना वह हर बात को नमक – मिर्च लगाकर बताती है।

200. नाक काटना – मान नष्ट करना।
बेटे ने बुरे काम करके पिता की नाक काट दी।

201. नाक में दम करना – बहुत तंग करना।
छात्रों ने नए अध्यापक के नाक में दम कर दिया।

202. नाक का बाल – बहुत समीप रहने वाला व्यक्ति।
आजकल रामचंद्र से बड़ा डर लगता है, क्योंकि वह अफसर की नाक का बाल बना हुआ है।

203. नाक रगड़ना – गिड़गिड़ाना।
अरे! रामनाथ ने नाक रगड़कर जब क्षमा माँगी, तभी वह वहाँ से छूटा।

204. नाक पर मक्खी न बैठने देना – अपने को बहुत बड़ा समझना।
जब से पुरुषोतम ने आई०ए०एस० की परीक्षा पास की है, वह नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देता।

205. नाक भौंह चढ़ाना – असंतोष प्रकट करना।
मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम मेरी हर बात पर नाक – भौंह चढ़ाते हो।

206. नाकों चने चबवाना – बुरी तरह हराना।
सन् 1965 की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिए थे।

207. नानी याद आना – कष्ट का अनुभव होना।
जब जेल पहुँचकर चक्की पीसनी पड़ेगी तब तुम्हें नानी याद आएगी।

208. नौ – दो ग्यारह होना – भाग जाना।
डाकू पुलिस को देखते ही नौ – दो ग्यारह हो गए।

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(प)

209. पगड़ी उछालना – अपमान करना।
बिना बात के किसी की पगड़ी उछालना अच्छी बात नहीं है।

210. पगड़ी सम्भालना – मान – मर्यादा की रक्षा के लिए तैयार होना।
वीर पुरुष सदा अपनी पगड़ी संभालने के लिए तैयार रहते हैं।

211. पाँचों उँगलियाँ घी में होना – बहुत लाभ होना।
जब से गेहूँ के भाव बढ़े हैं तबसे आटे के व्यापारियों की तो पाँचों उँगलियाँ घी में हो गई हैं।

212. पानी – पानी होना – बहुत लज्जित होना।
अपनी चोरी का रहस्य खुलते ही रमेश पानी – पानी हो गया।

213. पापड़ बेलना – कष्ठ उठाना।
राम ने अनेक पापड़ बेले, किन्तु कहीं सफलता नहीं मिली।

214. पत्थर का कलेजा होना – कठोर हृदय होना।।
तुम्हारा तो पत्थर का कलेजा है, जो इतनी बड़ी हानि उठाने पर भी तुमने आह तक नहीं भरी।

215. पत्थर की लकीर – अटल बात।
मेरा सिद्धांत पत्थर की लकीर है। उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हो सकता।

216. पट्टी पढ़ाना – बहकाना।
कैकेयी ने दशरथ को ऐसी पट्टी पढ़ाई है कि वह भगवान् रामचन्द्र को 14 वर्ष का वनवास देने पर मजबूर हो गए।

217. पते की बात कहना – महत्त्वपूर्ण बात कहना।
मैं एक पते की बात कहता हूँ कि यदि तुम वर्ष के आरंभ से परिश्रम करो तो परीक्षा में तुम्हारी सफलता निश्चित है।

218. पर्दा – फाश करना – भेद खोलना।
गवाह ने सच्ची बात बताकर सारे षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दिया।

219. पलकों पर बिठाना – बहुत आदर करना।
जनता ने पंडित नेहरू के आने पर उन्हें अपनी पलकों पर बिठा लिया।

220. पहाड़ टूट पड़ना – भारी विपत्ति आना।
विभाजन के समय देश के लाखों निर्दोष लोगों पर मानो पहाड़ – सा टूट पड़ा।

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(फ – ब)

221. फूला न समाना – बहुत आनंदित होना।
अपनी पोती को दुलहिन बना देखकर दादा – दादी फूले न समाए।

222. फूंक – फूंक कर पाँव रखना – सावधान होकर कार्य करना।
वह एक बार व्यापार में घाटा उठा चुका है, इसलिए अब हर काम में फूंक – फूंक कर पाँव रखता है।

223. बंगुला भगत – कपटी व्यक्ति।
बगुला भगत अध्यापक देश के भविष्य को नष्ट कर देते हैं।

224. बगलें झाँकना – बेबसी में लज्जित होना।
देखो, तुम बिल्कुल नहीं पढ़ते। कल जब परीक्षा होगी तो बगलें झाँकोंगे।

225. बड़े घर की हवा खाना – जेल जाना।
राजेंद्र तो कई बार बड़े घर की हवा खा चुका है।

226. बरस पड़ना – क्रोधित होना।
दफ्तर में देर से पहुंचने पर शीला के बॉस उस पर बरस पड़े।

227. बट्टा लगाना – कलंकित करना।
आखिर उसने अपने घरवालों के माथे पर बट्टा लगा ही दिया।

228. बछिया का ताऊ – सीधा – सादा या मूर्ख व्यक्ति।
हमारे गाँव का बुधिया तो बछिया का ताऊ है, उसे शहरी जीवन के बारे में क्या पता ?

229. बल्लियों उछलना – अत्यंत प्रसन्न होना।
परीक्षा में प्रथम आने पर कमला का मन बल्लियों उछलने लगा।

230. बंदर घुड़की – बनावटी धमकी।
पाकिस्तान की बंदर घुड़की से कुछ न बनेगा, हम कश्मीर लेकर रहेंगे।

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(भ)

231. भनक पड़ना – उड़ती खबर मिलना।
उनके कानों में ज्यों ही चुनाव परिणाम की भनक पड़ी, वह फिर बेहोश हो गया।

232. भगीरथ प्रयत्न कठिन, किंतु प्रशंसनीय प्रयत्न।
भारत को स्वतंत्र कराने के लिए गाँधी जी ने भगीरथ प्रयत्न किया।

233. भंडा फोड़ना – भेद खोल देना।
मन – मुटाव होने पर अपने मित्रों का भंडा फोड़ना मूों का काम है।

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(म)

234. मीठी छुरी – ऊपर से मीठा बोलकर हानि पहुँचाना।
अरे! मोहित की बातों में मत आना वह तो मीठी छुरी है।

235. माथे पर बल न पड़ना – जरा – सा भी क्रोध न आना।
बड़ी – से – बड़ी विपत्ति में भी मैंने आज तक स्वामी जी के माथे पर बल नहीं देखे।

236. मिट्टी का माधो – मूर्ख।
विमला का पति तो बिल्कुल मिट्टी का माधो है।

237. मुँह की खाना – बुरी तरह पराजित होना।
भाग्य से लड़ोगे तो मुँह की खाओगे।

238. मुँह ताकना – सहायता की आशा करना।
उसके पास अपनी कठिनाइयों के लिए दूसरों का मुँह ताकने के सिवाय और काम ही क्या है ?

239. मुँह पर हवाइयाँ उड़ना – डर जाना।।
पुलिस को देखकर चोर के मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

240. मुँह लगाना – छूट या ढील दे देना।
नौकरों को अधिक मुँह लगाने से वे बिगड़ जाते हैं।

241. मुँह में पानी भर आना – खाने को मन ललचाना।
लोमड़ी ने जब बाग में पके अँगूर देखे तो उसके मुँह में पानी भर आया।

242. मुट्ठी गरम करना – रिश्वत देना।
सुना है, कमल ने अफसरों की मुट्ठी गर्म करके नौकरी ली है।

243. मुट्ठी में करना – काबू में करना।
देवदत्त ने अपनी सेवा से सभी को अपनी मुट्ठी में कर रखा है।

244. मैदान मारना – विजय प्राप्त करना।
तुम आज कौन – सा मैदान मार लाए हो, जो इतने खुश हो रहे हो।

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(र)

245. रंग में भंग – आनंद में बाधा पड़ना।
मोहन और उसके मित्रों के गाने के कार्यक्रम के समय उसके पिता जी के आने से उनके रंग में भंग पड़ गया।

246. रंगा सियार होना – धोखेबाज या कपटी होना।
मोहन की संगति से बचकर रहना वह तो रंगा सियार है।

247. रोंगटे खड़े होना – भयभीत होना।
अपने सामने अचानक काले नाग को देखकर मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए थे।

(ल)

248. लंगोटिया यार – बचपन का साथी।
राकेश तो मेरा लंगोटिया यार है उस पर अविश्वास नहीं किया जा सकता।

249. लहू के चूंट पीकर रह जाना – क्रोध को मन में दबा लेना।।
द्रौपदी का अपने सामने अपमान होते देखकर पांडव लहू का यूंट पीकर रह गए।

250. लोहा लेना – टक्कर लेना।
पाकिस्तान में अब इतना दम नहीं कि वह भारत से लोहा ले सके।

251. लोहे के चने चबाना – बहुत कठिन काम करना।
आई०ए०एस० की परीक्षा पास करना लोहे के चने चबाना है।

252. लट्ट होना – मोहित होना।
वह तो सुनीता की योग्यता देखकर उस पर लट्टू हो गया।

253. लाल – पीला होना – बहुत क्रोधित होना।
छात्रों की शरारत देखकर अध्यापक लाल – पीला हो गया।

254. लाले पड़ जाना – तरस जाना।
बाढ़ के आ जाने से सारी फसल नष्ट हो गई है और किसान को जीने के लाले पड़ गए हैं।

255. लुटिया डुबोना – काम बिगाड़ना।
हमारी योजना बड़ी सफलता के साथ पूरी हो रही थी कि साहूकार ने सहायता बंद करके लुटिया डुबो दी।

256. लेने के देने पड़ जाना – लाभ की जगह हानि होना।
इसी तरह यदि व्यापार में घाटा होता रहा तो तुम्हें लेने के देने पड़ जाएँगे।

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(श – स)

257. श्रीगणेश करना आरम्भ करना।
मैंने आज ही अपनी नौंवीं कक्षा की पढ़ाई का श्रीगणेश किया है।

258. शैतान की आँत – बहुत लंबा होना।
यह पहाड़ी रास्ता तो शैतान की आँत की भाँति कहीं समाप्त होता नजर नहीं आता।

259. सब्जबाग दिखाना – लोभ देना।
पहले तो उसने मुझे सब्जबाग दिखाए, किंतु जब मुझ पर कोई असर न हुआ तो अफसर को मेरी झूठी शिकायत लगा दी।

260. सिर उठाना – विरोध करना।
डाकू गब्बर सिंह ने अपने साथियों को चेतावनी दे दी कि यदि किसी ने मेरे विरुद्ध सिर उठाया तो उसे कुचल दिया जाएगा।

261. स्वाहा करना नष्ट करना।
भीमसेन ने जुआ खेल – खेलकर अपने पिता की सारी सम्पत्ति स्वाहा कर दी।

262. सात घाट का पानी पीना – बहुत अनुभवी होना।
आप सब मिलकर भी विश्वनाथ का मुकाबला नहीं कर सकते, क्योंकि उसने सात घाट का पानी पी रखा है।

263. सिर धुनना – पछताना।
समय निकलने के बाद सिर धुनने से कोई लाभ नहीं है।

264. सोने में सुगंध – एक गुण के साथ दूसरा गुण भी होना।
दिवांश पढ़ाई में तो सबसे आगे है ही, पर उसकी भाषण – कला तो सोने में सुगंध के समान है।

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(ह)

265. हथेली पर सरसों उगाना – असंभव काम कर दिखाना।
हथेली पर सरसों उगाना तो वीर पुरुषों का ही काम है।

266. हाथ तंग होना – धन की कमी होना।
इस मँहगाई के युग में सबका हाथ तंग रहता है।

267. हाथ – पाँव मारना – पूरा प्रयत्न करना।
आजकल के शिक्षित बेकार युवक नौकरी पाने के लिए दिन – रात हाथ – पाँव मारते रहते हैं।

268. हाथ पीले करना – विवाह करना।
मोहन सिंह को अपनी बेटी के हाथ पीले करने के लिए बहुत अधिक कर्जा लेना पड़ा।

269. हाथों के तोते उड़ जाना – घबरा जाना।
परीक्षा में असफल होने की सूचना सुनकर बिमला के हाथों के तोते उड़ गए।

270. हाथ धोकर पीछे पड़ना – बुरी तरह पीछे लग जाना।
बस, इसी तरह हाथ धोकर पीछे पड़े रहने से ही उससे कुछ पा सकोगे।

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Tatsam Tadbhav Shabd तत्सम तद्भव शब्द Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran तत्सम तद्भव शब्द

तत्सम तद्भव शब्द

तत्सम तद्भव शब्द HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 1.
तत्सम शब्द किसे कहते हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
तत्सम शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-तत् + सम। इसका अर्थ है-उसके समान। हिंदी भाषा के शब्द-भंडार का मूल स्रोत संस्कृत भाषा है। संस्कृत के काफी शब्द हिंदी में ज्यों-के-त्यों ले लिए गए हैं। अतः संस्कृत के वे शब्द जो हिंदी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं।

उदाहरण-
शिक्षा, पुत्र, प्रकाश, पुस्तक, दंत, मुख, दुग्ध, रात्रि, पुत्र, कर्पूर, कृषक, अग्नि आदि।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

HBSE 9th Class Hindi तत्सम तद्भव शब्द प्रश्न 2.
तद्भव शब्द किसे कहते हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
‘तद्भव’ का अर्थ है-उससे उत्पन्न। हिंदी भाषा में अनेक शब्द ऐसे हैं जो संस्कृत से परिवर्तित रूप में आए हैं। अतः संस्कृत के ऐसे शब्द जो रूप परिवर्तन के साथ हिंदी में प्रचलित हुए, तद्भव शब्द कहलाते हैं।
उदाहरण-
अग्नि – आग
दधि – दही
रात्रि – रात

यहाँ कुछ तत्सम और उनके तद्भव रूप दिए जा रहे हैं-
तत्सम – तद्भव
अग्नि – आग
अग्र – आगे
अश्रु – आँसू
अद्य – आज
अक्षि – आँख
उष्ट्र – ऊँट
उज्जवल – उजला
उष्ण – गर्म
उलूक – उल्लू
कर्ण – कान
कुंभकार – कुम्हार
काष्ठ – काठ
कर्म – काम

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क्षीर – खीर
कोकिल – कोयल
घृत – घी
ग्राम – गाँव
जिह्वा – जीभ
ज्येष्ठ – जेठ
दश – दस
छन – क्षण
दधि -दही
दग्ध – दूध
दंड – डंडा
निद्रा – नींद
नग्न – नंगा
नव – नया
पंच – पाँच
नृत्य – नाच
पाद – पाँव
पत्र – पत्ता
पुष्प – फूल
पक्षी – पंछी
भक्त – भगत
पर्यंक – पलंग
भ्राता – भाई
पुरस्कार – इनाम
भूमि – पृथ्वी

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Paryayvachi Shabd पर्यायवाची शब्द Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची शब्द

पर्यायवाची

पर्यायवाची शब्द Class 9 HBSE प्रश्न 1.
समानार्थक या पर्यायवाची शब्दों से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
ऐसे शब्द जिनके अर्थ एक-से अथवा मिलते-जुलते हों; जैसे असुर-राक्षस, दैत्य-दानव आदि। पर्यायवाची शब्दों के विषय में लोगों की धारणा है कि उनके अर्थ एक-जैसे होते हैं, किन्तु यह सत्य पूर्ण सत्य नहीं है। क्योंकि एक समान दिखाई देने वाले शब्दों के अर्थ में थोड़ा बहुत अंतर अवश्य होता है। अतः हर पयार्यवाची शब्द का अपना स्वतंत्र अर्थ होता है।

जहाँ समानार्थक शब्दों से विद्यार्थी के ज्ञान में वृद्धि होती है वहाँ उसका व्यक्तिगत शब्द-कोश भी समृद्ध होता है। हिंदी पर्यायवाची शब्द संस्कृत, उर्दू, देशी या स्थानीय बोलियों और अंग्रेज़ी से भी लिए जाते हैं। कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण निम्नलिखित हैं
अंक – गोद, संख्या, चिहन, अध्याय।
अंग – भाग, उपाय, देह, अवयव।
अंधकार – अंधेरा, तम, तिमिर, तिमिस्त्र।
अमृत – पीयूष, सुधा, अमिय, सोम।
अरण्य – वन, जंगल, कानन, विपिन, अटवी।
अभिमान – घमंड, अहंकार, गर्व, दर्प।
अनुचर – दास, सेवक, भृत्य, नौकर, परिचारक।
अज – शिव, दशरथ के पिता, कामदेव, ब्रह्मा।
अजित – अजेय, अदम्य, अपराजिता, दुर्दात।
अग्नि – आग, पावक, अनल, वह्नि, कृशानु।
अतिथि – अभ्यागत, पाहुन, आगंतुक।
अधम – नीच, पतित, निकृष्ट।
अधर – होंठ, धरती, आसमान के बीच का भाग।
अनार – दाडिम, शुकप्रिय, रामबीज।
अनी – सेना, दल, कटक, नोक, चमू।
अनुपम – अपूर्व, अनोखा, अनूठा, अद्भुत।
अंतर – आकाश, अवधि, मध्य, अवकाश।
अंध – नेत्रहीन, सूरदास, अंधा।

Paryayvachi Shabd Class 9th HBSE

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

अन्न – अनाज, शस्य, धान्य।
अन्य – अपर, दूसरा, पृथक्, भिन्न।
अपमान – तिरस्कार, अनादर, अवमान, बेइज्जती।
अपवाद – कलंक, निन्दा, नियम से बाहर।
अर्थ – हेतु, धन, कारण, प्रयोजन।
अंबर – आकाश, कपड़ा।
अंबुज – कमल, नीरज, जलज, पंकज।
अलि – पंक्ति, सखी।
असंगत – अनर्गल, अनुपयुक्त, असंबद्ध।
असुर – राक्षस, दानव, निशाचर, रजनीचर।
आकाश – नभ, गगन, व्योम, द्यौ, अंबर, शून्य।
आनंद – हर्ष, मोद, प्रसन्नता, उल्लास, आह्लाद।
आभूषण – अलंकार, गहना, आभरण, मंडन।
आम – आम्र, सहकार, रसाल।
आज्ञा – आदेश, हुक्म।
आँख नेत्र, नयन, लोचन, चक्षु, दृक्, अक्षि।
इच्छा – अभिलाषा, चाह, लालसा, कामना, आकांक्षा।
इंद्र – देवराज, शक्र, सुरपति, मघवा।
इश्वर – प्रभु, परमात्मा, ईश, अनंत, भगवान्, जगदीश्वर ।
उपवन – उद्यान, आराम वाटिका, फुलवारी।
कमल – पंकज, नीरज, सरसिज, सरोज, पद्म, इंदीवर।
कृषक – किसान, खेतीहर, हलवाहा, कृषिजीवी।
कल्पवृक्ष – कल्पतरु, कल्पद्रुम, सुरतरु।
कर – हाथ, हस्त, किरण, प्राणी।
किरण – कर, रश्मि, अंशु, मयूख, मरीचि।

Paryayvachi Shabd Class 9 HBSE

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

कामदेव – अनंग, कंदर्प, मनोज, मनसिज, मदन, मन्मथ।
कारागार – जेल, बंदीगृह, कैदखाना।
किनारा – तट, कूल, तीर, कगार।
कान – श्रवण, कर्ण, क्षोत्र।
कपड़ा – वस्त्र, चीर।
कृष्ण – केशव, माधव, गोपाल, गिरिधर, वासुदेव।
कोप – क्रोध, रोष, गुस्सा, अमर्ष ।
केश – कच, कुंतल, अलक, बाल।
कृपा – दया, अनुकम्पा, अनुग्रह।
कोयल – पिक, कोकिल, श्यामा।
कोमल – मृदु, सुकुमार, नरम, मसृण, नाजुक ।
खड्ग – असि, तलवार, कृपाण, चंद्रहास, करवाल।
खर – गधा, बगुला, कौआ, तिनका, तीक्षण, खट्टा।
खल – दृष्ट, धूर्त, शठ, दुर्जन, कुटिल।
गंगा – मंदाकिनी, जाह्नवी, देवनदी, सुरसरिता, भागीरथी।
गणेश – एकदंत, गजबदन, गजानन, गणपति, गौरी पुत्र।
गदहा/गधा – खर, गदर्भ, वैशाख नन्दन, लम्ब कर्ण।
गृह – घर, आगार, आयतन, आवास, ओक, धाम, गेह।
गाय – गो, धेनु, सुरभि।
घट – घड़ा, कुम्भ, कलश, कुट, निप।
घन – बादल, हथौड़ा, भारी, घना।

HBSE 9th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची शब्द

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

घर – मकान, आवास, कुल, बैठने का स्थान, कार्यालय।
घी – घृत, आज्य, सर्पिस्, हव्य।।
घोड़ा – सैंधव, तुरंग, अश्व, घोटक, हय।
चाँद – शशि, चंद्रमा, सुधाकर, विधु, सोम, शशांक, इंदु, रजनीश, निशिपति, हिमांशु।
चाँदनी – ज्योत्स्ना, चँद्रिका, कौमुदी।
छाता – छत्र, आतपत्र, छतरी।
जगत् – संसार, संसृति, जग, लोक, भव, दुनिया।
जल – पानी, पानीय, वारि, पय, उदक, नीर, सलिल, अंबु।
झूठ – असत्य, मिथ्या, मुधा, मृथा।
ठठोली – हास, परिहास, हँसी, मज़ाक।
तलवार – असि, खड़ग, कृपाण, करवाल, चंद्रहास।
तारा – उडु, नक्षत्र, तारक।
तालाब – सर, तड़ाग, सरोवर, ताल, जलाशय, पुष्कर, ह्रद।
तीर – शर, इषु, वाण, शिलीमुख, नाराच, विशिख।
दाँत – दंत, रद, दशन।
दास – किंकर, भृत्य, अनुचर, सेवक, परिचारक, नौकर।
दिन – दिवस, अहः, वासर, वार।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

दीन – गरीब, निर्धन, बेचारा, हीन।
दुःख – कष्ट, वेदना, क्लेश, व्यथा, विषाद, संताप।
दुर्गा – चंडी, चामुंडा, चर्ममुंडा, चण्डिका, भवानी, शाम्भवी।
देवता – देव, सुर, निर्जर, त्रिदश, विबुध, अमर।
देह – शरीर, काय, वपु, तनु, तन, घट, काया।
दूध – दुग्ध, पय, क्षीर।
धन – द्रव्य, संपत्ति, संपदा, संपत, वित्त, अर्थ, दौलत।
धनुष – चाप, शरासन, कार्मुक, कोदंड।
नौका – तरणी, तरी, जलयान, नाव, जलपात्र।
पुत्र – आत्मज, बेटा, सुत, पूत, नंदन, लड़का, तनय ।
पुत्री – तनया, तनुजा, दुहिता, लड़की, आत्मजा, सुता, बेटी, नंदिनी।
पत्ता – किसलय, पल्लव, पर्ण, पत्र।
पर्वत – नग, अचल, गिरि, धराधर, अद्रि, पहाड़, शैल, भूधर।
पक्षी – शकुन्त, अंडज, शकुनि, खग, विहग, विहंगम, पखेरू, खेचर, द्विज।
पति – स्वामी, नाथ, भर्ता, कांत, वर, वल्लभ।
पत्नी – वधू, भार्या, दारा, वल्लभा, गृहिणी, अर्धांगिनी, बहू, तिय।
पर्वत – भूधर, शैल, अचल, गिरि, महाधर, नग, पहाड़।
पंडित – सुधी, कोविद्, विद्वान्, बुध, मनीषी।
पत्थर – प्रस्तर, पाषाण, अश्म, पाहन, उपल।
पवन – हवा, वात, मारुत, अनिल, जगत्प्राण, प्रभंजन।
पार्वती – उमा, गौरी, शिव, भवानी, रुद्राणी, गिरिजा, शैलसुता, सर्वमंगला।
पृथ्वी – धरा, भू, भूमि, अचला, धरती, धरणी, वसुधा, अवनि, मेदिनी, क्षिति, धरित्री, जगती।
प्रकाश – प्रभा, ज्योति, चमक, छवि, विभा, आभा, आलोक, धुति।
पुष्प – फूल, प्रसून, कुसुम, पुहुप, सुमन।
परोक्ष – अदृश्य, अप्रत्यक्ष, अगोचर।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

वाण – तौरी, सर, विशिख, शिलीमुख, नाराच, ईषु।
सिंह – पंचमुख, वनराज, केसरी, मृगराज, मृगेन्द्र, शेर, शार्दूल।
स्त्री – नारी, वनिता, अबला, ललना, कान्ता, अंगना, रमणी, कामिनी।
स्व – देवलोक, परलोक, नाक, दिव, बैकुण्ठ।
सिर – शीश, मुण्ड, शीर्ष ।
सर्व – सब, सकल।
सुंदर – चारु, मनोहर, रमणीक, ललित, कलित, मंजुल।
भौंरा – मधुकर, अलि, भ्रमर, मधुप, मिलिंद, द्विरेफ, षट्पद।
मछली – मीन, झख, झष, मकर, मत्स्य।
मदिरा – मधु, हाला, सुरा, शराब, मद्य, वारुणी।
महादेव – शिव, हर, पशुपति, शंकर, चन्द्रशेखर, कैलाशनाथ, गिरिजापति, गिरीश, भूतेश, वामदेव।
माता – जननी, अंबा, अंबिका, प्रसविनी।
मित्र – सुहृद, दोस्त, स्नेही, हितु।
मोर – केकी, शिखी, नीलकण्ठ, मयूर।
मृत्यु – मौत, निधन, देहावसान, काल, देहान्त, मरण।
मोक्ष – निर्वाण, मुक्ति, अपवर्ग, परमपद, कैवल्य, सद्गति।
युद्ध – रण, संग्राम, लड़ाई, समर।
रात्रि – यामिनी, विभावरी, निशि, रात, रजनी, निशा।
राक्षस – दनुज, निशाचर, दैत्य, दानव, असुर ।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

राजा – नरेश, भूपाल, नरेन्द्र, महीपाल, नृप, नृपति।
लहू – रक्त, खून, शोणित, रुधिर।।
वायु – अनिल, वात, हवा, पवन, समीर, समीरण।
वृक्ष – रुख, विटप, द्रुम, पादप, तरु, पेड़।
शत्रु – अरि, रिपु, दुश्मन, आराति।
सेना – अनि, दल, चयू, कटक, फौज।
सोना – हेम, हिरण्य, कंचन, स्वर्ण ।
सूरज – भानु, भास्कर, रवि, दिवाकर, दिनेश।

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Visheshan विशेषण Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran विशेषण

विशेषण

Visheshan Class 9 HBSE प्रश्न 1.
विशेषण किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
विशेषण वह शब्द है जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है; जैसे काली गाय, मोटा लड़का, ऊँचा मकान, लाल किताब आदि। इन वाक्यों में प्रयुक्त काली, मोटा, ऊँचा एवं लाल शब्द गाय, लड़का, मकान एवं किताब की विशेषता बताते हैं।

विशेषण Class 9 HBSE प्रश्न 2.
विशेष्य किसे कहते हैं? सोदाहरण समझाइए।
उत्तर:
विशेषण जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट करते हैं, उसे विशेष्य कहते हैं; जैसे
(क) मेरे पास एक नीला पैन है।
(ख) राम के पास लाल कुत्ता है।
(ग) बालक चंचल है। उपर्युक्त वाक्यों में पैन, कुत्ता एवं बालक विशेष्य हैं क्योंकि विशेषण इनकी विशेषता प्रकट कर रहे हैं।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

विशेषण के भेद

Visheshan Class 9 HBSE  प्रश्न 3.
विशेषण के कितने भेद हैं? प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिंदी में विशेषण के सामान्यतः चार भेद हैं-
(1) गुणवाचक विशेषण,
(2) संख्यावाचक विशेषण,
(3) परिमाणवाचक विशेषण तथा
(4) सार्वनामिक विशेषण।

1. गुणवाचक विशेषण: जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के गुण-दोष, रूप-रंग, आकार, स्थान, काल, दशा, स्थिति, शील-स्वभाव आदि की विशेषता प्रकट करे, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं; यथा-
गुण – सरल, योग्य, उदार, ईमानदार, बुद्धिमान, परिश्रमी, वीर।
दोष – अयोग्य, कुटिल, दुष्ट, क्रोधी, पापी, कपटी, नीच।
आकार-प्रकार – गोल, चौरस, चौड़ा, खुरदरा, लंबा, मुलायम।
रंग-रूप – गीरा, काला, गेहुँआ, गुलाबी, सुंदर, आकर्षक, लाल।
अवस्था – बलवान, कमज़ोर, रोगी, दरिद्र, अमीर, गरीब, छोटा।
स्वाद – खट्टा, कड़वा, मीठा, फीका।
गंध – सुगंधित, गंधहीन, दुर्गंधपूर्ण।
स्थिति – अगला, पिछला, बाहरी, ऊपरी, निचला।
देश-काल – पंजाबी, बनारसी, प्राचीन, नवीन, भारी।

2. संख्यावाचक विशेषण:
जिन विशेषण शब्दों से संख्या का बोध हो, उन्हे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं; जैसे एक, चार, दूसरा, चौथा, सातवाँ आदि।
संख्यावाचक विशेषण के भेद-संख्यावाचक विशेषण के भेद निम्नलिखित हैं-

(क) निश्चित संख्यावाचक विशेषण
(i) गणनासूचकं: जो वस्तुओं या प्राणियों की गणना का ज्ञान कराएँ; जैसे दो पुस्तकें, चार केले, दस लड़कियाँ, चार कुर्सियाँ आदि।
(ii) क्रमसूचक: जो क्रम का ज्ञान कराएँ; जैसे पहला लड़का, दूसरा आदमी, पहली मंजिल, प्रथम पंक्ति आदि।
(i) आवृत्तिसूचक: जो गुना का बोध कराते हैं; जैसे दुगुना, चौगुना, तिगुना आदि।
(iv) समुदायसूचक: जो समूह का ज्ञान कराएँ; जैसे एक दर्जन केले, चारों लड़के, सैकड़ों लोग आदि।
(v) प्रत्येकसूचक: जो शब्दों में से प्रत्येक का बोध कराएँ; जैसे हर घड़ी, प्रतिवर्ष, प्रत्येक लड़का आदि।

नोट- निश्चित संख्यावाचक विशेषणों में ‘ओं’ लगाकर उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण भी बनाया जा सकता है; यथा दर्जनों, सैकड़ों आदि।

(ख) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण:
जिन विशेषणों से वस्तु, प्राणी या पदार्थ की संख्या का निश्चित बोध नहीं होता, उन्हें अनिश्चित संख्यावाची विशेषण कहते हैं; जैसे कुछ विद्यार्थी, कुछ पशु, थोड़े घर, बहुत आम आदि।

3. परिमाणवाचक विशेषण:
संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की माप-तोल की विशेषता को प्रकट करने वाले विशेषणों को परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। इसके भी दो भेद हैं
(क) निश्चित परिमाणवाचक विशेषण-जो परिमाणवाचक विशेषण संज्ञा या सर्वनाम का निश्चित परिमाण बताएँ जैसे एक लीटर पानी, दो किलो चीनी, दो मीटर कपड़ा आदि।
(ख) अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण-जो परिमाणवाचक विशेषण संज्ञा या सर्वनाम का निश्चित परिमाण न बताएँ; जैसे कुछ पानी, कुछ चीनी, कम अनाज, बहुत-सा कपड़ा आदि।

नोट- कभी-कभी परिमाणवाचक विशेषण शब्दों में ‘ओं’ प्रत्यय लगाकर भी अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण बन जाते हैं; यथा मनों गेहूँ, सेरों दूध।

4. सार्वनामिक विशेषण: जो सर्वनाम अपने सार्वनामिक रूप में ही संज्ञा की विशेषता प्रकट करें या संज्ञा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है; जैसे यह घर हमारा है। यह बालक अच्छा है। उस श्रेणी में अध्यापक नहीं है। तुम किस गली में रहते हो। इन वाक्यों में प्रयुक्त शब्द यह, उस, किस आदि सर्वनाम संज्ञा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, अतः ये सार्वनामिक विशेषण हैं।

विशेषण अभ्यास प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

सार्वनामिक विशेषण के भेद-

सार्वनामिक विशेषण चार प्रकार के होते हैं-
(i) निश्चयवाचक/सकेतवाचक सार्वनामिक विशेषण: ये विशेषण संज्ञा की ओर निश्चयार्थ में संकेत करने वाले होते हैं; जैसे-
यह पुस्तक वहाँ से नहीं मिली।

(ii) अनिश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण: जिन विशेषणों से संज्ञा की ओर निश्चित संकेत नहीं मिलता, उन्हें अनिश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं; जैसे-
कोई सज्जन आए हैं।

(iii) प्रश्नवाचक सार्वनामिक विशेषण: ये विशेषण संज्ञा की प्रश्नात्मक विशेषता की ओर संकेत करते हैं; यथा-
(क) कौन व्यक्ति आया है?
(ख) किस लड़के ने तुम्हें यहाँ भेजा है?
(ग) इनमें से क्या चीज तुम लोगे?
(घ) कौन-सी गेंद चाहिए तुम्हें?

(iv) संबंधवाचक सार्वनामिक विशेषण
(क) जो आदमी कल आया था वह बाहर खड़ा है।
(ख) वह विद्यार्थी सामने आ रहा है जिसको आपने पुरस्कार दिया था।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

विशेषण का रूप परिवर्तन

Hindi Vyakaran Visheshan HBSE 9th Class प्रश्न 4.
विशेषण के रूप परिवर्तन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विशेषण शब्दों के लिंग और वचन उनके साथ जुड़े हुए संज्ञा के लिंग और वचन के अनुसार बदलते रहते हैं। हिन्दी में यह परिवर्तन ‘आ’ अकारान्त पुंल्लिंग शब्दों (विशेषणों) में होता है; जैसे
(1) अच्छा लड़का-अच्छे लड़के। (वचन)
(2) अच्छा पुरुष-अच्छी नारी। (लिंग)
(3) लम्बा घोड़ा-लम्बे घोड़े। (वचन)

विशेषण के उद्देश्य और विधेय स्थिति

प्रश्न 5.
उद्देश्य-विशेषण और विधेय-विशेषण की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य-विशेषण-जो विशेषण विशेष्य से पूर्व लगकर उसकी विशेषता व्यक्त करते हैं, उन्हें उद्देश्य-विशेषण कहते हैं; यथा-
(क) गोरा लड़का गीत गा रहा है।
(ख) काली बिल्ली दूध पी गई।
इन दोनों वाक्यों में प्रयुक्त ‘गोरा’ एवं ‘काली’ उद्देश्य-विशेषण हैं।

विधेय-विशेषण: जब विशेषण विशेष्य के पश्चात आता है तो उसे विधेय-विशेषण कहते हैं; जैसे
(क) वह गाय सफेद है।
(ख) घोड़ा लाल है।
(ग) राम की कार नीली है।
यहाँ सफेद’, ‘लाल’ एवं ‘नीली’ विधेय-विशेषण हैं।

विशेषणों का तुलना में प्रयोग

प्रश्न 6.
विशेषणों की तुलना से क्या अभिप्राय है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
विशेषण विशेष्य की विशेषता बताते हैं तथा यह विशेषता गुण, परिमाण अथवा संख्या की दृष्टि से होती है। दो या दो से अधिक प्राणियों, वस्तुओं या पदार्थों में प्रायः एक जैसे गुण नहीं होते। तुलना के द्वारा ही इस अंतर को स्पष्ट किया जा सकता है।
तुलना व्यक्तियों, वस्तुओं आदि के गुणों के मिलान को तुलना कहते हैं।

प्रश्न 7.
तुलना के आधार पर विशेषणों की कितनी अवस्थाएँ होती हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तुलना के आधार पर विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं
(1) मूलावस्था,
(2) उत्तरावस्था तथा
(3) उत्तमावस्था।
1. मूलावस्था: इस अवस्था में किसी प्रकार की तुलना नहीं होती, विशेषतः सामान्य रूप होता है; जैसे वह बालिका चंचल है। आम मीठां है।

2. उत्तरावस्था: इसमें दो व्यक्तियों या वस्तुओं की तुलना द्वारा एक को दूसरे से अधिक या न्यून दिखाया जाता है; जैसे
(क) राम श्याम से अधिक मोटा है।
(ख) मेरी पुस्तक आपकी पुस्तक से अच्छी है।

3. उत्तमावस्था-इसमें दो या अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं की तुलना की जाती है तथा उनमें से किसी एक को सबसे अधिक या सबसे कम श्रेष्ठ दिखाया जाता है; यथा
(क) मेरी कलम सबसे सुंदर है।।
(ख) मोहन कक्षा के सभी विद्यार्थियों से बहादुर है।

विशेषण की तुलना के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण

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प्रविशेषण

प्रश्न 8.
प्रविशेषण किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जो शब्द विशेषण की विशेषता व्यक्त करें, उन्हें प्रविशेषण कहते हैं। उदाहरणार्थ निम्नलिखित वाक्य देखिए
(क) मोहन बहुत चतुर है।
(ख) राम बहुत अधिक चालाक है।
(ग) सुरेश अत्यधिक चतुर है।
(घ) कृपाराम बहुत परिश्रमी व्यक्ति है।
(ङ) वहाँ लगभग बीस आदमी थे।
हिंदी के प्रमुख प्रविशेषण निम्नांकित हैं-
बहुत, बहुत अधिक, अधिक, अत्यधिक, अत्यंत, बड़ा, कम, खूब, थोड़ा, ठीक, पूर्ण, लगभग आदि।

विशेषण की रचना

प्रश्न 11.
विशेषणों की रचना किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
कुछ शब्द मूलतः विशेषण होते हैं; जैसे अच्छा, बुरा, मीठा आदि किंतु कुछ विशेषणों की रचना प्रत्यय या उपसर्ग आदि के योग से होती है; जैसे-
प्रत्यय से- चाय वाला, सुखद, बलशाली, ईमानदार, नश्वर आदि।
उपसर्ग से- दुर्बल, लापता, बेहोशी, निडर आदि।
उपसर्ग एवं प्रत्यय दोनों से- दोनाली, निकम्मा आदि। विशेषण कई प्रकार के शब्दों से भी बनते हैं, जैसे-
संज्ञा से-
नागपुर – नागपुरी
आदर – आदरणीय
धन – धनी

सर्वनाम से-
मैं – मुझसा
वह – वैसा
आप – आपसी
यह – ऐसा

क्रिया से-
चलना – चालू
भूलना – भुलक्कड़
भागना – भगोड़ा
हँसना – हँसोड़

अव्यय से-
नीचे – निचला
बाहर – बाहरी
ऊपर – ऊपरी

विद्यार्थियों के अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषण दिए जा रहे हैं-

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कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

विशेषण संबंधी महत्त्वपूर्ण बातें
(1) हिंदी में विशेषण का लिंग एवं वचन विशेष्य के अनुसार ही होता है; जैसे काला कुत्ता, काली गाय, काले बैल।
(2) कारक-चिह्नों का प्रयोग केवल विशेष्य के साथ होता है; जैसे बुरे आदमी के साथ मत जा। नए कमरे का द्वार खुला नहीं था।
(3) कभी-कभी विशेषण का प्रयोग संज्ञा की भाँति होता है; जैसे
(क) वीरों ने देश की सुरक्षा की।
(ख) विद्वानों का आदर करो।

यहाँ वीर एवं विद्वान विशेषण होते हुए भी संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
विशेषण क्या है? विशेषण के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जो शब्द संज्ञा तथा सर्वनाम की विशेषता बताएँ, उन्हें विशेषण कहते हैं; जैसे
(क) सफेद गाय (सफेद विशेषण)
(ख) मीठा आम (मीठा विशेषण)
(ग) छह विद्यार्थी (छह विशेषण)
(घ) विद्वान व्यक्ति (विद्वान विशेषण)

प्रश्न 2.
विशेषण के कौन-कौन से चार भेद हैं? प्रत्येक भेद का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(क) गुणवाचक विशेषण-नीली कमीज।
(ख) परिमाणवाचक विशेषण-दो मीटर कपड़ा।
(ग) संख्यावाचक विशेषण-चार कलमें।
(घ) सार्वनामिक विशेषण-यह मकान।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए वाक्यों में से निश्चित और अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषणों को अलग-अलग पहचानिए-
(क) वह कक्षा में प्रथम आया।
(ख) कुछ फल लाओ।
(ग) मेरी कमीज में दो मीटर कपड़ा लगेगा।
(घ) थोड़ी मिठाई ले आओ।
(ङ) एक लीटर दूध पचास रुपए का मिलता है।
उत्तर:
निश्चित परिमाणवाचक
(क) वह कक्षा में प्रथम आया।
(ख) मेरी कमीज में दो मीटर कपड़ा लगेगा।
(ग) एक लीटर दूध पचास रुपए का मिलता है।

अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण
(क) कुछ फल लाओ।
(ख) थोड़ी मिठाई ले आओ।

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प्रश्न 4.
सर्वनाम और सार्वनामिक विशेषणों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब सर्वनाम (यह, वह, मैं, तुम आदि) संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं, तब वे सर्वनाम कहलाते हैं लेकिन जब वही सर्वनाम संज्ञा शब्द के साथ अर्थात् संज्ञा से पहले प्रयुक्त होता है तो वह सार्वनामिक विशेषण बन जाता है; जैसे-
यह पुस्तक मेरी है। (यह – विशेषण)
यह मेरे साथ है। (यह – सर्वनाम)
यह आम कच्चा है और यह पक्का – इस वाक्य में पहला ‘यह’ आम संज्ञा के साथ आया है। अतः यह विशेषण है। दूसरा ‘यह’ बिना संज्ञा के अकेले संज्ञा के स्थान पर आया है। अतः सर्वनाम है।

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों में से सर्वनाम के प्रयोग और सार्वनामिक विशेषण के प्रयोग को पहचानिए-
(1) घर में कोई है।
(2) कोई सज्जन आए हुए हैं।
(3) वह घोड़ा दौड़ रहा है।
(4) वह विद्यालय गया।
(5) यह मेरा घर है।
(6) क्या यह किताब तुम्हारी है?
उत्तर:
(1) घर में कोई है। (सर्वनाम प्रयोग)
(2) कोई सज्जन आए हैं। (सार्वनामिक प्रयोग)
(3) वह घोड़ा दौड़ रहा है। (सार्वनामिक प्रयोग)
(4) वह विद्यालय गया। (सर्वनाम प्रयोग)
(5) यह मेरा घर है। (सार्वनामिक प्रयोग)
(6) क्या यह किताब तुम्हारी है? (सार्वनामिक प्रयोग)

प्रश्न 6.
विशेषण की तुलना के तीनों प्रकारों के नाम लिखिए और दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) मूलावस्था-
(क) मोहन अच्छा बालक है।
(ख) राजेश सुंदर बालक है।

(2) उत्तरावस्था-
(क) मोहन राम से भला लड़का है।
(ख) महेश राजकुमार से सुंदर है।

(3) उत्तमावस्था-
(क) सोहन कक्षा में सबसे बहादुर विद्यार्थी है।
(ख) मुनीश अपने परिवार में सबसे परिश्रमी बालक है।

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प्रश्न 7.
नीचे दिए गए विशेषणों को उनके सामने दी गई अवस्थाओं से मिलाकर उचित स्थान पर लिखिए-
उच्चतर, गुरुतम, कठोर, लघु, तीव्रतर, अधिकतर, कुटिलतर, उत्कृष्ट, न्यूनतम, निकटतम
मूलावस्था – …………….
उत्तरावस्था – …………….
उत्तमावस्था – …………….
उत्तर:
मूलावस्था – कठोर, लघु, उत्कृष्ट।
उत्तरावस्था – उच्चतर, तीव्रतर, अधिकतर, कुटिलतर।
उत्तमावस्था – गुरुतम, न्यूनतम, निकटतम।

प्रश्न 8.
प्रविशेषण किसे कहते हैं? कुछ उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जो शब्द विशेषणों की विशेषता बताएँ, उन्हें प्रविशेषण कहते हैं; जैसे
(i) राम बहुत सुंदर बालक है।
(ii) वह बहुत अच्छा गीत गाती है।
(iii) वह महा कंजूस व्यक्ति है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित वाक्यों से विशेषण छाँटकर उनके भेद का निर्देश कीजिए
(क) साधारण इक्के के घोड़े भारतीय दरिद्रता के अलबम हैं।
(ख) यह पैसा मेरी खून-पसीने की कमाई का फल है।
(ग) थोड़ी मिठाई और कुछ फल ले आओ, आज त्योहार का दिन है।
(घ) यह मेरी पुस्तक है, आपकी नहीं।
(ङ) पचास रुपए ले लो और बाज़ार से एक किलो दही ले आओ।
उत्तर:
(क) साधारण इक्के के – गुणवाचक विशेषण।
भारतीय – गुणवाचक विशेषण।

(ख) यह – सर्वनाम विशेषण।
खून-पसीने की – गुणवाचक विशेषण।
मेरी – प्रविशेषण (खून-पसीने का विशेषण)।

(ग) थोड़ी – अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण।
कुछ – अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण ।

(घ) यह – सार्वनामिक विशेषण।

(ङ) पचास – निश्चित संख्यात्मक विशेषण।
एक किलो – निश्चित परिमाणवाचक विशेषण।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त सार्वनामिक विशेषणों और सर्वनामों को छाँटकर लिखिए
(1) वह विद्यालय जाएगा।
(2) वह विद्यार्थी विद्यालय जाएगा।
(3) इस घर में कौन रहता है?
(4) बच्चा रो रहा है, इसे गोद में उठा लो।
(5) वे तुम्हारी पुस्तकें हैं और ये मेरी।
उत्तर:
(1) वह – सर्वनाम
(2) वह विद्यार्थी – सार्वनामिक विशेषण
(3) इस घर – सार्वनामिक विशेषण
(4) इसे – सर्वनाम
(5) वे पुस्तकें – सार्वनामिक विशेषण
(6) ये – सर्वनाम।

प्रश्न 11.
प्रविशेषण एवं विधेय-विशेषण का सोदाहरण अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रविशेषण शब्द विशेषण की विशेषता बताते हैं किंतु विधेय-विशेषण वह विशेषण है जो संज्ञा के बाद में प्रयुक्त होते हैं; जैसे
(क) मोहन अत्यंत सुंदर है इस वाक्य में अत्यंत सुंदर विशेषण की विशेषता बता रहा है। अतः यह प्रविशेषण है।
(ख) मोहन सुंदर है। वाक्य में सुंदर मोहन के बाद प्रयुक्त हुआ है। अतः यह विधेय-विशेषण है।

प्रश्न 12.
चार ऐसे वाक्य लिखिए जिनमें विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयोग किए गए हों।
उत्तर:
(1) वीरों ने देश की रक्षा की।
(2) बहादुरों का सदा सम्मान होता है।
(3) गुणी की सर्वत्र पूजा होती है।
(4) बड़ों का आदर करो।

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों में से संज्ञा शब्दों एवं विशेषणों को चुनिए-
(1) अकबर महान सम्राट था।
(2) विद्वान जन सदा पूजे जाते हैं।
(3) कहानी सुनते-सुनते रात बीत गई।
उत्तर:
संज्ञा – अकबर, सम्राट, जन, कहानी, रात।
विशेषण – महान, विद्वान, सुनते-सुनते।

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Avikari Shabd अविकारी शब्द Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

अविकारी शब्द

जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों को अव्यय भी कहा जाता है।

अव्यय

अविकारी शब्द HBSE 9th Class प्रश्न 1.
अव्यय किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अव्यय वे शब्द हैं जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे यहाँ, कब और आदि। अव्यय शब्द पाँच प्रकार के होते हैं
(1) क्रियाविशेषण – धीरे-धीरे, बहुत।
(2) संबंधबोधक – के साथ, तक।
(3) समुच्चयबोधक – तथा, एवं, और।।
(4) विस्मयादिबोधक – अरे, हे।
(5) निपात – ही, भी।

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(1) क्रियाविशेषण

Avikari Shabd HBSE 9th Class प्रश्न 2.
क्रियाविशेषण अव्यय की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी या अव्यय शब्द क्रिया के साथ जुड़कर उसकी विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे-
(क) राम धीरे-धीरे चलता है।
(ख) मैं बहुत थक गया हूँ।

इन दोनों में धीरे-धीरे’ तथा ‘बहुत’ दोनों अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता बताने के कारण क्रियाविशेषण हैं। क्रियाविशेषण चार प्रकार के होते हैं (1) कालवाचक, (2) स्थानवाचक, (3) परिमाणवाचक तथा (4) रीतिवाचक।
1. कालवाचक क्रियाविशेषण:
जिस क्रियाविशेषण के द्वारा क्रिया के होने या करने के समय का ज्ञान हो, उसे कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; यथा कल, आज, परसों, जब, तब, सायं आदि। जैसे
उदाहरण-
(क) कृष्ण कल जाएगा।
(ख) मैं अभी-अभी आया हूँ।
(ग) वह प्रतिदिन नृत्य करती है।
(घ) वह कभी देर से नहीं आता।

2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण:
जो क्रियाविशेषण क्रिया के होने या न होने के स्थान का बोध कराएँ, स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं; जैसे
(क) राम कहाँ गया?
(ख) ऊषा ऊपर खड़ी है।
(ग) मोहन और सोहन एक-दूसरे के समीप खड़े हैं।
(घ) उधर मत जाओ।
इसी प्रकार, यहाँ, इधर, उधर, बाहर, भीतर, आगे, पीछे, किधर, आमने, सामने, दाएँ, बाएँ, निकट आदि शब्द स्थानवाची क्रियाविशेषण हैं।

3. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण :
जो क्रियाविशेषण क्रिया की मात्रा या उसके परिमाण का बोध कराए, उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे
(क) कम खाओ।
(ख) बहुत मत हँसो।
(ग) राम दूध खूब पीता है।
(घ) उतना पढ़ो जितना ज़रूरी है।
इनके अतिरिक्त, थोड़ा, सर्वथा, कुछ, लगभग, अधिक, कितना, केवल आदि शब्द परिमाणवाचक क्रियाविशेषण हैं।

4. रीतिवाचक क्रियाविशेषण:
जिन शब्दों से क्रिया के होने की रीति अथवा प्रकार का ज्ञान होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे
(क) वह वहाँ भली-भाँति रह रहा है।
(ख) आप कहते जाइए मैं ध्यानपूर्वक सुन रहा हूँ।
(ग) वह पैदल चलता है।
इनके अतिरिक्त, कैसे, ऐसे, वैसे, ज्यों, त्यों, सहसा, सुखपूर्वक, सच, झूठ, तेज़, अवश्य, नहीं, अतएव, वृक्ष, शीघ्र इत्यादि शब्द – रीतिवाचक क्रियाविशेषण हैं।

नोट – जो क्रियाविशेषण काल, स्थान अथवा परिमाणवाचक नहीं हैं, उन सबकी गणना रीतिवाचक में कर ली जाती है। अतः रीतिवाचक क्रियाविशेषण के भी अनेक भेद हैं

1. निश्चयात्मक – अवश्य, सचमुच, वस्तुतः आदि।
2. अनिश्चयात्मक – शायद, प्रायः, अक्सर, कदाचित आदि।
3. कारणात्मक क्योंकि, अतएव आदि।
4. स्वीकारात्मक – सच, हाँ, ठीक आदि।
5. आकस्मिकतात्मक – अचानक, सहसा, एकाएक आदि।
6. निषेधात्मक – न, नहीं, मत, बिल्कुल नहीं आदि।
7. आवृत्त्यात्मक – धड़ाधड़, फटाफट, गटागट, खुल्लमखुल्ला आदि।
8. अवधारक – ही, तो, भर, तक आदि।

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क्रियाविशेषण की रचना

आविकारी शब्द HBSE 9th Class प्रश्न 3.
क्रियाविशेषण की रचना-विधि का उल्लेख उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर:
रचना की दृष्टि से क्रियाविशेषण दो प्रकार के होते हैं
(1) मूल क्रियाविशेषण तथा
(2) यौगिक क्रियाविशेषण।

1. मूल क्रियाविशेषण: जो शब्द अपने मूल रूप में अर्थात प्रत्यय के योग के बिना क्रियाविशेषण हैं, उन्हें मूल क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे आज, ठीक, निकट, सच आदि।
2. यौगिक क्रियाविशेषण: जो शब्द दूसरे शब्दों में प्रत्यय लगाने से या समास के कारण क्रियाविशेषण बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं, जैसे एकाएक, धीरे-धीरे, गटागट आदि।

क्रिया-प्रविशेषण

विकारी शब्द HBSE 9th Class प्रश्न 4.
क्रिया-प्रविशेषण किसे कहते हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो शब्द क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया-प्रविशेषण कहते हैं। ये शब्द क्रियाविशेषण से पूर्व प्रयुक्त होते हैं; जैसे
(क) पी०टी० ऊषा बहुत तेज़ दौड़ती है।
(ख) आपने बहुत ही मधुर गीत गाया।
(ग) वे बहुत बीमार हैं, इसलिए आप इससे भी धीरे चलिए।
अतः स्पष्ट है कि इन वाक्यों में बहुत, बहुत ही, इससे भी आदि क्रियाविशेषण-तेज़, मधुर एवं धीरे की विशेषता प्रकट कर रहे हैं। इसलिए इन्हें क्रिया-प्रविशेषण कहा गया है।

(2) संबंधबोधक

Avikari Shabd In Hindi HBSE 9th Class प्रश्न 5.
संबंधबोधक अव्यय किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के साथ जुड़कर दूसरे शब्दों से उनका संबंध बताते हैं, वे संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं; जैसे धन के बिना मनुष्य का जीवन नरक है। इस वाक्य में ‘के बिना’ संबंधबोधक है। इसी प्रकार से ओर, पास, सिवाय, की खातिर, के बाहर आदि भी संबंधबोधक हैं; यथा
(क) दोनों कक्षाएँ आमने-सामने हैं।
(ख) चलते हुए दाएं-बाएँ मत देखो।
(ग) विद्या के बिना मनुष्य पशु है।
(घ) राजमहल के ऊपर तोपें लगी हुई हैं।

अन्य संबंधबोधक अव्यय हैं-
1. के कारण, की वजह से, के द्वारा द्वारा, के मारे, के हाथ (से-)।
2. के लिए, के वास्ते, की खातिर, के हेतु, के निमित्त।
3. से लेकर/तक, पर्यंत।
4. के साथ, के संग।
5. के बिना, के बगैर, के अतिरिक्त, के अलावा।
6. की अपेक्षा, की तुलना में, के समान/सदृश, के जैसे।
7. के बदले, की जगह में पर।
8. के विपरीत, के विरुद्ध, के प्रतिकूल, के अनुसार, के अनुकूल।
9. के बाबत, के विषय में।

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(3) समुच्चयबोधक

Avikari HBSE 9th Class प्रश्न 6.
समुच्चयबोधक की सोदाहरण परिभाषा दीजिए तथा उसके भेदों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को समुच्चयबोधक अव्यय या अविकारी कहते हैं; जैसे मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है। इस वाक्य में ‘और’ शब्द समुच्चबोधक अव्यय है। इसे योजक अव्यय भी कहते हैं।

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं-
(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक,
(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक।
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय:
जो अव्यय दो समान स्तर के वाक्यों, वाक्यांशों या दो स्वतंत्र शब्दों को मिलाते हैं, उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं; जैसे मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है। इस वाक्य में ‘और’ समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है। इसके भी आगे चार भेद हैं
(i) संयोजक; यथा-और, तथा, एवं आदि।
(ii) विभाजक; यथा-या, वा, चाहे, नहीं, तो आदि।
(iii) विरोधदर्शक; यथा-लेकिन, परंतु, किंतु आदि।
(iv) परिणामदर्शक; यथा-अतएव, अतः, सो, इस कारण आदि।

2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय:
जो अव्यय शब्द एक या एक से अधिक वाक्यों को प्रधान वाक्यों से जोड़ते हैं, वे व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं; यथा-
राम बुद्धिमान तो है परंतु अनुभवी नहीं है।
उपर्युक्त वाक्य में ‘परंतु’ व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है। इसके भी आगे चार प्रकार हैं
(i) कारणवाचक; जैसे वह दुखी है क्योंकि वह गरीब है। क्योंकि, जो कि, इसलिए, कि, चूँकि इत्यादि कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(ii) स्वरूपवाचक; जैसे राम ने कहा कि वह घर नहीं जाएगा। मानो, अर्थात, कि, माने, जो कि आदि स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(iii) उद्देश्यवाचक; जैसे वह परिश्रम करता है ताकि अच्छे अंक प्राप्त कर सकें। कि, जो, ताकि, जिससे, जिसमें आदि उद्देश्यवाचक समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(iv) संकेतवाचक; जैसे अगर तुम आओगे तो मैं अवश्य चलूँगा। जो….… तो, यदि……तो, अगर……. तो, यद्यपि……. तथापि, चाहे…..परंतु आदि संकेतवाचक समुच्चयबोधक अव्यय हैं।

(4) विस्मयादिबोधक

प्रश्न 7.
विस्मयादिबोधक अविकारी किसे कहते हैं? सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द हमारे मन के हर्ष, शोक, घृणा, प्रशंसा, विस्मय आदि भावों को व्यक्त करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अविकारी शब्द कहते हैं; जैसे अरे, ओह, हाय, ओफ, हे आदि। इसके अन्य भेद अग्रलिखित हैं-
1. विस्मय – ओह! ओहो! हैं! क्या! ऐं!
2. शोक – आह!, उफ!, हाय!, अह!, त्राहि!, हे राम!
3. हर्ष – वाह!, अहा!, धन्य!, शाबाश!
4. प्रशंसा – शाबाश!, खूब!, बहुत खूब!
5. भय – बाप रे!, हाय!
6. क्रोध – धत!, चुप!, अबे!
7. घृणा और तिरस्कार – छिः, धत!
8. अनुमोदन – ठीक-ठीक, हाँ-हाँ!
9. आशीर्वाद – जय हो!, जियो!
नोट – कभी-कभी संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्द भी विस्मयादिबोधक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होते हैं; जैसे-
संज्ञा- हे राम! मैं तो उजड़ गई।
हाय राम! यह क्या हो गया।

विशेषण- अच्छा! तो यह बात है।

सर्वनाम- क्या! वह फेल हो गया।
कौन! तुम्हारा भाई आया है।

क्रिया- हट! पागल कहीं का।
जा-जा! तेरे जैसे बहुत देखे हैं।

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(5) निपात

प्रश्न 8.
‘निपात’ किसे कहते हैं? हिंदी के प्रमुख निपातों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द किसी शब्द या पद के बाद जुड़कर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल भर देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। हिंदी में प्रचलित ‘निपात’ निम्नलिखित हैं

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परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
अव्यय शब्द की क्या विशेषता है? पाँच अव्यय शब्द लिखिए।
उत्तर:
अव्यय शब्द की विशेषता यह है कि लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से उसके रूप में परिवर्तन नहीं होता। पाँच अव्यय, शब्द-
(1) बहुत
(2) धीरे
(3) कल
(4) तेज़
(5) और।

प्रश्न 2.
अव्यय के पाँच भेदों का नाम लिखिए और उनके दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अव्यय के पाँच भेद उदाहरण सहित अग्रलिखित हैं

1. क्रियाविशेषण-धीरे-धीरे चलो। – श्याम कल आएगा।
2. संबंधबोधक-वह घर के बाहर है। – झंडा भवन के ऊपर लगा है।
3. समुच्चयबोधक-राम और श्याम आ रहे हैं। – उसने पाठ पढ़ा या नहीं।
4. विस्मयादिबोधक-शाबाश! कमाल कर दिया। – हाय! वह मर गया।
5. निपात-मोहन ही जा रहा है। – राम भी जा रहा है।

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प्रश्न 3.
कालवाचक, स्थानवाचक, रीतिवाचक और परिमाणवाचक क्रियाविशेषणों का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य लिखिए।
उत्तर:
कालवाचक क्रियाविशेषण-
(क) वह कल नहीं आया।
(ख) वह अभी चला गया।

स्थानवाचक क्रियाविशेषण-
(क) मोहन नीचे आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
(ख) दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं।

रीतिवाचक क्रियाविशेषण-
(क) मेरी बात को ध्यानपूर्वक सुनो।
(ख) धीरे-धीरे मत चलो।

परिमाणवाचक-क्रियाविशेषण-
(क) थोड़ा बोलो।
(ख) कम खाओ।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थान में उचित अव्यय शब्दों का प्रयोग कीजिए और यह भी बताइए कि ये अव्यय किस भेद में आते हैं
(1) मैं …………. आगरा जाऊँगा।
(2) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति …………… गर्व है।
(3) मुझे रेडियो ………… घड़ी चाहिए।
(4) यदि तुम परीक्षा में सफल होना चाहते हो …………. श्रम करो।
(5) बाहर जाने …………. पहले मुझसे मिलना।
(6) ……….. आप मिल गए।
(7) वह जल्दी चला गया …………… ट्रेन पकड़ सके।
(8) ………… तो यह तुम्हारी शरारत है।
(9) तुम बकवास बंद करो …………… मुझे कुछ करना पड़ेगा।
(10) ………… तुमने यह क्या कर डाला?
उत्तर:
(1) मैं कल आगरा जाऊँगा। – (कालवाचक)
(2) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(3) मुझे रेडियो और घड़ी चाहिए। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(4) यदि तुम परीक्षा में सफल होना चाहते हो तो श्रम करो। – (व्यधिकरण समुच्चयबोधक)
(5) बाहर जाने से पहले मुझसे मिलना। – (संबंधबोधक)
(6) बहुत अच्छा! आप मिल गए। – (हर्षबोधक)
(7) वह जल्दी चला गया ताकि ट्रेन पकड़ सके। – (व्यधिकरण समुच्चयबोधक)
(8) वाह! तो यह तुम्हारी शरारत है। – (प्रशंसाबोधक)
(9) तुम बकवास बंद करो अन्यथा मुझे कुछ करना पड़ेगा। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(10) हाय! तुमने यह क्या कर डाला। – (शोकबोधक)

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प्रश्न 5.
नीचे दिए वाक्यों से कौन-सा भाव प्रकट होता है? वाक्यों के सामने लिखिए।
(1) शाबाश! तुमने बहुत अच्छा काम किया।
(2) बाप रे! मैं तो बर्बाद हो गया।
(3) छिः छिः! तुम तो बड़े नीच आदमी हो।
(4) हाय! अब मैं क्या करूँ?
(5) अजी! ले भी लो।
(6) अबे हट! नहीं तो मारूँगा।
(7) बचो! सामने से ट्रक आ रहा है।
(8) वाह! फिल्म देखकर मज़ा आ गया।
उत्तर:
(1) प्रशंसा
(2) शोक
(3) घृणा
(4) शोक/पीड़ा
(5) संबोधन/आग्रह
(6) क्रोध
(7) चेतावनी तथा
(8) हर्ष।

प्रश्न 6.
निपात किसे कहते हैं? ही, भी, तो, तक, मात्र, भर का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर:
जो अव्यय शब्द वाक्य के शब्दों व पदों के बाद लगकर उनके अर्थ में एक विशेष प्रकार का बल उत्पन्न कर देते हैं, उन्हें ‘निपात’ कहते हैं।
निपातों का वाक्यों में प्रयोग-
ही – मोहन ही जा रहा है।
तक – उसने तो देखा तक नहीं।
भी – राम भी लिख रहा है।
मात्र – कहने मात्र से काम नहीं चलेगा।
तो – वह तो कब का चला गया।
भर – वह दिनभर आपकी प्रतीक्षा करती रही।

प्रश्न 7.
चार ऐसे शब्द लिखिए जो विशेषण और क्रियाविशेषण दोनों रूपों में प्रयुक्त हो सकते हैं। इनमें वाक्य-प्रयोग द्वारा विशेषण और क्रियाविशेषण का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. अच्छा :
मोहन एक अच्छा विद्यार्थी है। (विशेषण)
मोहन अच्छा लिखता है। (क्रियाविशेषण)

2. मधुर :
तुम्हारी मधुर बातें बहुत प्रिय हैं। (विशेषण)
वह बहुत मधुर गाता है। (क्रियाविशेषण)

3. गंदा :
मोहन गंदा लड़का है। (विशेषण)
मोहन गंदा रहता है। (क्रियाविशेषण)

4. तेज़ :
उसकी चाल बहुत तेज़ है। (विशेषण)
वह तेज़ लिखता है। (क्रियाविशेषण)

उपर्युक्त वाक्यों से यह स्पष्ट है कि विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता को प्रकट करते हैं लेकिन क्रियाविशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त समुच्चयबोधक अव्ययों को छाँटिए और बताइए कि वे समानाधिकरण हैं या व्यधिकरण?
(क) बाग में बालक और बालिकाएँ खेल रही हैं।
(ख) राम गरीब है किंतु ईमानदार है।
(ग) मैंने उससे कुछ लिया नहीं बल्कि कुछ दिया है।
(घ) मैं परीक्षा में नहीं बैठी क्योंकि बीमार थी।
(ङ) जीवन में तुम सुख चाहते हो तो परिश्रम करो।
उत्तर:

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प्रश्न 9.
क्रियाविशेषण और संबंधबोधक में क्या अंतर है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ कालवाचक एवं स्थानवाचक क्रियाविशेषणों का भी संबंधबोधक के रूप में प्रयोग होता है। यदि उनका प्रयोग क्रिया के साथ शुरु हुआ हो तो उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं तथा यदि वे संज्ञा या सर्वनाम के साथ विभक्ति रूप में प्रयुक्त हों तो उन्हें संबंधबोधक स्वीकार करना चाहिए; यथा-
(क) तुम पहले उठो। (क्रियाविशेषण)
परीक्षा से पहले खूब पढ़ो। (संबंधबोधक)

(ख) पुजारी जी यहाँ आए थे। (क्रियाविशेषण)
मोहन तुम्हारे यहाँ गया था। (संबंधबोधक)

(ग) उसके सामने बैठो।। (क्रियाविशेषण)
उसका घर तुम्हारे स्कूल के सामने है। (संबंधबोधक)

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Kriya क्रिया Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran क्रिया

क्रिया

क्रिया Class 9 HBSE प्रश्न 1.
‘क्रिया’ से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘क्रिया’ शब्द की उत्पत्ति ‘कृ’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है-कुछ करना या कुछ किया जाना। व्याकरण की दृष्टि से ‘क्रिया’ वह शब्द है जिससे किसी काम के करने या होने का ज्ञान होता है; जैसे हँसना, खेलना, लिखना, दौड़ना, सोना आदि।

किसी भी कार्य के दो रूप होते हैं कार्य या तो होता है या फिर किया जाता है; यथा ‘वृक्ष गिर गया।’ इस वाक्य में कार्य स्वयं हुआ है, किन्तु जब हम ऐसा कहते हैं कि ‘वृक्ष गिरा दिया गया है तो इसका अर्थ यह हुआ कि वृक्ष को गिराने का कार्य किसी के.द्वारा किया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि, “कार्य के होने या किए जाने को क्रिया कहते हैं।”

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धातु

Hindi Vyakaran Kriya HBSE 9th Class प्रश्न 2.
‘धातु’ की परिभाषा एवं उसके भेदों के दो-दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं, जैसे लिखना, पढ़ना, खेलना आदि क्रियाओं में लिख, पढ़, खेल आदि क्रिया के मूल रूप होने के कारण धातु हैं। धातु के पाँच भेद होते हैं
(1) सामान्य धातु-पढ़, लिख, सो, गा आदि।
(2) व्युत्पन्न धातु-मूल धातु में प्रत्यय लगाकर बनाई गई; जैसे करवाना, सुनवाना आदि।
(3) नाम धातु-बतियाना, हथियाना आदि।
(4) सम्मिश्रण धातु-दर्शन करना, प्यार करना आदि।
(5) अनुकरणात्मक धातु-खटखटाना, हिनहिनाना, झनझनाना आदि।

क्रिया के भेद

HBSE 9th Class Hindi Vyakaran क्रिया प्रश्न 3.
क्रिया के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक का सोदाहरण उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी में क्रिया के मुख्य दो भेद होते हैं-
(1) अकर्मक क्रिया-अकर्मक क्रिया में कर्म नहीं होता। अतः क्रिया का व्यापार और फल कर्ता में ही पाए जाते हैं; जैसे(क) मोहन पढ़ता है। (ख) सोहन सोया है। उपर्युक्त दोनों वाक्यों में पढ़ता है’ और ‘सोया है’ अकर्मक क्रियाएँ हैं।
(2) सकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं का फल कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रियाएँ कहते हैं; यथा-
(क) मोहन पुस्तक पढ़ता है।
(ख) सीता पत्र लिखती है।
इन दोनों वाक्यों में पढ़ने का प्रभाव पुस्तक पर और लिखने का प्रभाव पत्र पर पड़ता है, अतः ये दोनों सकर्मक क्रियाएँ हैं।

प्रश्न 4.
अकर्मक एवं सकर्मक क्रिया की पहचान क्या है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
क्रिया एवं कर्ता वाक्य के अनिवार्य अंग हैं। इसलिए क्रिया शब्द से पूर्व क्या या किसको शब्द लगाकर प्रश्न पूछे। यदि इसका उत्तर मिल जाए तो वह उत्तर कर्म होगा और क्रिया सकर्मक होगी। यदि उत्तर न मिले तो क्रिया अकर्मक होगी; जैसे-
(1) सोहन पुस्तक पढ़ता है। इस प्रश्न से पहले क्या प्रश्न लगाएँ तो लिखा जाएगा, क्या पढ़ता है ?
उत्तर होगा-‘पुस्तक’। अतः ‘पढ़ता है’ सकर्मक क्रिया है।

इसी प्रकार ‘सोहन पढ़ रहा है। तो प्रश्न होगा क्या पढ़ रहा है। इसका कुछ उत्तर नहीं मिला तो क्रिया अकर्मक होगी।

प्रश्न 5.
सकर्मक क्रिया के कितने उपभेद होते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
सकर्मक क्रिया तीन प्रकार की होती है-
(1) एककर्मक क्रिया
(2) द्विकर्मक क्रिया, तथा
(3) अपूर्ण सकर्मक क्रिया।

1. एककर्मक क्रिया: जिस क्रिया में एक ही कर्म हो, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे-राम पुस्तक पढ़ता है। यहाँ ‘पुस्तक’ एक ही कर्म है।

2. द्विकर्मक क्रिया:
जिस क्रिया में दो कर्म हों, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं; यथा-राम श्याम को पत्र भेजता है। इस वाक्य में श्याम और पत्र दोनों कर्म हैं। अतः ‘भेजता है’ द्विकर्मक क्रिया है। द्विकर्मक क्रिया में जिस कर्म के साथ ‘को’ परसर्ग लगा होता है वह गौण कर्म होता है, लेकिन जिसके साथ ‘को’ परसर्ग नहीं होता वह मुख्य कर्म होता है। उपर्युक्त वाक्य में ‘श्याम’ गौण कर्म है और ‘पत्र’ मुख्य कर्म है।

3. अपूर्ण सकर्मक:
क्रिया ये वे क्रियाएँ हैं जिनमें कर्म रहते हुए भी कर्म को किसी पूरक शब्द की आवश्यकता होती है, वरना अर्थ अपूर्ण रहता है; जैसे-
(क) सोहन मोहन को समझता है।
सोहन मोहन को मूर्ख समझता है।

(ख) वह तुम्हें मानता है।
वह तुम्हें मित्र मानता है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘मूर्ख’ एवं ‘मित्र’ पूरक शब्द हैं।

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क्रिया के कुछ अन्य भेद

1. संयुक्त क्रिया

प्रश्न 1.
संयुक्त क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
संयुक्त क्रिया-दो या दो से अधिक धातुओं के योग से मिलकर बनी क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं। इन धातुओं में मूल धातु को प्रधान क्रिया कहते हैं तथा दूसरी धातुओं को सहायक धातु या क्रिया कहते हैं। यह मूल क्रिया के अर्थ का विस्तार करती है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार से हैं-
(i) मोहन तुरंत बोल उठा। (‘बोल’ मूल धातु, उठा सहायक क्रिया)
(ii) बादल गर्जने लगा है। (‘गर्ज’ मूल धातु, लगना सहायक क्रिया)
(iii) मैं उसे समझा दूंगा। (‘समझा’ मूल धातु, देना सहायक क्रिया)
(iv) पानी बरस चुका था। (‘बरस’ मूल धातु, चुकना सहायक क्रिया)
(v) अब तो मैं हस्ताक्षर कर बैठा हूँ। (‘कर’ मूल धातु, बैठना सहायक क्रिया)
(vi) कृष्ण को जाने दो। (‘जा’ मूल धातु, देना सहायक क्रिया)
(vii) वे सैर करने जाया करते हैं। (‘जा’ मूल धातु, करना सहायक क्रिया)
(viii) क्या वे गाना चाहते हैं? । (‘गा’ मूल धातु, चाहना सहायक क्रिया)

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2. अपूर्ण क्रिया

प्रश्न 1.
अपूर्ण क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब क्रिया को सार्थक या पूर्ण बनाने के लिए उससे पहले कोई संज्ञा या सर्वनाम या विशेषण शब्द लगाया जाता है, तो उस क्रिया को अपूर्ण क्रिया कहते हैं; जैसे
(1) विद्यार्थी योग्य है।
(2) उसने राकेश को नेता चुना।
(3) यह बालिका तो बहुत चालाक है।
(4) क्षमा करना, मैंने आपको पराया समझा।
इन वाक्यों में रेखांकित शब्द-योग्य, नेता, चालाक, पराया आदि न हों तो ये क्रियाएँ अपूर्ण ही रह जाती हैं। इन्हें पूरा करने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन क्रियाओं को पूरा करने वाले शब्दों को पूरक कहते हैं।

3. नामधातु क्रिया

प्रश्न 1.
किन क्रियाओं को नामधातु क्रियाएँ कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों से मूल धातुओं को जोड़कर जो क्रियाएँ बनती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं। नामधातु क्रियाओं के अग्रलिखित उदाहरण देखिए
(क) संज्ञा शब्दों से-

संज्ञा धातु क्रिया
शर्म शर्मा शर्माना
बात बतिया बतियाना
लात लतिया लतियाना
झूठ झुठला झुठलाना

(ख) सर्वनाम से-

सर्वनाम धातु क्रिया
अपना अपना अपनाना
मैं मिमिया मिमियाना

(ग) विशेषण से-

विशेषण धातु क्रिया
मोटा गर्मा गर्माना
गर्म मोटा मोटापा

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4. पूर्वकालिक क्रिया

प्रश्न 1.
पूर्वकालिक क्रिया किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जब मूल क्रिया से पहले ऐसी क्रिया आ जाए जिससे काम के पहले हो चुकने का बोध हो, तो उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। इस क्रिया के मूल धातु के साथ ‘कर’ या ‘करके’ शब्द आते हैं आदि; जैसे-
(1) वह तो लिखकर आया है।
(2) मैं उससे भोजन करके बात करूँगा।
(3) वह देख-देखकर लिखती है।
(4) मोहन ने स्कूल पहुँचकर अध्यापक को प्रणाम किया।
(5) कृष्ण दौड़कर स्टेशन पहुंचा।

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5. प्रेरणार्थक क्रिया

प्रश्न 1.
प्रेरणार्थक क्रिया किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जिस क्रिया से किसी अन्य से काम करवाने का बोध हो, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं; जैसेलिखना से लिखवाना-मोहन ने राम से पत्र लिखवाया। भेजना से भिजवाना-मैंने विद्यार्थी द्वारा संदेश भिजवाया था। खोलना से खुलवाना-मालिक ने नौकर से दुकान खुलवाई। धोना से धुलवाना-शीला धोबी से कपड़े धुलवाती है।

6. समापिका अथवा प्रधान क्रिया

प्रश्न 1.
समापिका अथवा प्रधान क्रिया की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जो क्रिया वाक्य के अन्त में लगे उसे समापिका या प्रधान क्रिया कहते हैं; जैसे-
(1) नीता खाना खा रही है।
(2) चिड़िया आकाश में उड़ती है।
(3) घोड़ा सड़क पर दौड़ता है।
(4) मैंने उसे जाते हुए देखा था।

वृत्ति या क्रियार्थ (Mood)

प्रश्न 1.
वृत्ति या क्रियार्थ से क्या अभिप्राय है? उदाहरण देते हुए समझाइए। उसके भेदों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया किस प्रयोजन के लिए की गई है, उसे वृत्ति या क्रियार्थ (Mood) कहते हैं। हिन्दी भाषा में मुख्य रूप से पाँच वृत्तियाँ हैं
1. निश्चयार्थ वृत्ति:
सूचना-प्रधान क्रिया को निश्चयार्थ वृत्ति कहते हैं; जैसे–
(क) खिलाड़ी नहीं खेल रहे हैं।
(ख) तुम अभी बाजार जाओ।

2. विध्यर्थ वृत्ति:
इच्छा-प्रधान क्रिया को विध्यर्थ वृत्ति कहते हैं; जैसे-
(क) कृपया मेरी मदद कीजिए।
(ख) भगवान आपका भला करे।
(ग) तेरा सर्वनाश हो।

3. सम्भावनार्थ:
क्रिया के जिस रूप से सम्भावना या अनुमान का बोध हो, उसे सम्भावनार्थ क्रिया कहते हैं; जैसे
(क) शायद आज वर्षा हो। (अनुमान)
(ख) सम्भव है आज प्राचार्य जी आएँ। (सम्भावना)

4. सन्देहार्थ:
जिस क्रिया से कार्य होने का लगभग पूरा निश्चय होता है, किन्तु थोड़ा-सा सन्देह भी रहता है, उसे सन्देहार्थ क्रिया कहते हैं; जैसे
(क) कृष्ण उपवन में आ गया होगा।
(ख) परीक्षा समाप्त हो गई होगी।

5. संकेतार्थ:
जिस वाक्य क्रिया में दो क्रियाएँ होती हैं और दोनों में कार्य-करण का सम्बन्ध हो, उन्हें संकेतार्थ क्रियाएं कहते हैं; जैसे
(क) पानी बरसता तो फसल अवश्य होती।
(ख) मेहनत करता तो सफल अवश्य हो जाता।

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क्रिया के विकारी तत्त्व

प्रश्न 1.
क्रिया के प्रमुख विकारी तत्त्व कौन-कौन से हैं? अथवा क्रिया-परिवर्तन से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
क्रिया में भी विकार उत्पन्न होता है। इसलिए इसकी गिनती हिन्दी के विकारी शब्दों में की जाती है। क्रिया के विकार के प्रमुख कारण या तत्त्व लिंग, वचन, पुरुष, काल और वाच्य हैं। इन सबके कारण ही क्रिया के रूप में परिवर्तन होता है। क्रिया परिवर्तन के कुछ उदाहरण देखिए
1. वचन के आधार पर
(क) मैं पढ़ता हूँ। – हम पढ़ते हैं।
(ख) मैंने पुस्तक पढ़ी। – हमने पुस्तक पढ़ी।
(ग) वह पुस्तक पढ़ता है। – वे पुस्तक पढ़ते हैं।

2. लिंग के आधार पर-
(क) मैं पुस्तक पढ़ता हूँ। – मैं पुस्तक पढ़ती हूँ।
(ख) लड़का पुस्तक पढ़ता है। – लड़की पुस्तक पढ़ती है।
(ग) छात्र गीत गाता है। – छात्रा गीत गाती है।

3. वाच्य के अनुसार
(क) मैंने पुस्तक पढ़ी। – मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी गई।
(ख) रमेश ने पत्र लिखा। – रमेश द्वारा पत्र लिखा गया।
(ग) उसने गीत गाया। – उसके द्वारा गीता गाया गया।

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अभ्यासार्थ लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिया की परिभाषा दीजिए। अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं के दो-दो उदाहरण देते हुए इनका अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जिन शब्दों से किसी काम के करने या होने का ज्ञान हो, उन्हें क्रिया कहते हैं; जैसे-
(क) राम पुस्तक पढ़ता है।
(ख) विद्यार्थी खेल रहे हैं।
इन वाक्यों में ‘पढ़ता’ और ‘खेल’ दोनों क्रिया पद हैं।

अकर्मक क्रिया:
जिन क्रियाओं में कर्म नहीं होता वे अकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-
(क) सुधीर रो रहा है।
(ख) सीता हँसती है।
इन दोनों वाक्यों से क्रियाओं का फल कर्म पर नहीं, बल्कि कर्ता पर पड़ रहा है।

सकर्मक क्रिया:
इन क्रियाओं में क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है; जैसे
(क) अनुराग ने पत्र लिखा।
(ख) शोभा ने खाना खाया।

प्रश्न 2.
स्थित्यर्थक/अवस्थाबोधक अकर्मक धातुओं का दो-दो वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
1. मोहन इस समय रो रहा है। (रोने की अवस्था)
2. रीटा इस समय सो रही है। (सोने की अवस्था)

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित धातुओं से क्रिया शब्द निर्मित कीजिएपढ़, लिख, शर्म, गर्म, दोहरा, टक्कर, अपना, लाज।
उत्तर:
पढ़ – पढ़ना
दोहरा – दोहराना
लिख – लिखना
टक्कर – टकराना
शर्म – शर्माना
अपना – अपनापन
गर्म – गर्माना
लाज – लजाना

प्रश्न 4.
क्रिया अर्थ कितने प्रकार का होता है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
क्रिया अर्थ या वृत्ति पाँच प्रकार का होता है
1. विध्यर्थ – राजेश! घर जल्दी जाओ।
2. निश्चयार्थ – शोभा पत्र पढ़ रही है।
3. सम्भावनार्थ – आज शायद वर्षा हो।
4. सदेहार्थ – इस समय तक कृष्ण कुमार आ चुका होगा।
5. संकेतार्थ – यदि वर्षा हो जाती तो फसल उग जाती।

प्रश्न 5.
संरचना की दृष्टि से निम्नलिखित क्रियाओं को वर्गीकृत कीजिएलजाना, मुटाना, हँसाना, चलवाना, लड़ाना, जागना, लिटाना, सुनना, कटाना, रखवाना।
उत्तर:
संरचना की दृष्टि से क्रिया चार प्रकार की होती हैं-
1. प्रेरणार्थक क्रिया-हँसाना, चलवाना, लड़ाना, लिटाना, कटाना, रखवाना।
2. संयुक्त क्रिया-कोई नहीं है।
3. नाम धातु क्रिया-लजाना, मुटाना।
4. कृदन्त क्रिया-सुनना, जागना।।

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प्रश्न 6.
धातु एवं नामधातु में क्या अन्तर है? एक-एक उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं; जैसे पढ़, लिख, हँस, गा आदि। परन्तु जो क्रिया संज्ञा, सर्वनाम में प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है, उसे नामधातु क्रिया कहते हैं; जैसे हाथ से हथियाना (संज्ञा से), अपना से अपनाना (सर्वनाम से), गर्म से गर्माना (विशेषण से)।

प्रश्न 7.
समापिका और असमापिका क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समापिका उस क्रिया को कहते हैं जो वाक्य के अन्त में आती है; जैसे मोहन पुस्तक पढ़ता है। ‘पढ़ता है’ वाक्य के अन्त में प्रयुक्त हुई है, इसलिए यह समापिका क्रिया है जबकि असमापिका क्रिया वाक्य की समाप्ति पर नहीं, अपितु अन्यत्र प्रयुक्त होती है; जैसे मोहन ने खाना खाकर हाथ धोए।

प्रश्न 8.
संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेदों के नाम और उनके दो-दो उदाहरण भी लिखो।
उत्तर:
संरचना की दृष्टि से क्रिया तीन प्रकार की होती है

1. प्रेरणार्थक क्रिया:
(1) मोहन ने मुझसे पत्र लिखवाया।
(2) अध्यापक ने मुझसे पाठ पढ़वाया।

2. संयुक्त क्रिया:
(1) राम रूठकर चला गया।
(2) मोहन पत्र पढ़ सकता है।

3. नामधातु क्रियाएँ:
(1) कृपाल बतिया रहा था।
(2) हमने इस नाटक को नहीं फिल्माया।

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प्रश्न 9.
रंजक क्रिया किसे कहते हैं? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो क्रिया मुख्य क्रियाओं में जुड़कर अपना अर्थ खोकर मुख्य क्रिया में नवीनता और विशेषता उत्पन्न कर देती है। संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया को मुख्य तथा बाद में जुड़ने वाली क्रिया को रंजक क्रिया कहते हैं; जैसे
(1) किसान ने साँप को मार डाला।
(2) मोहन गीत गा सका।
(3) वह उठकर खड़ा हो गया आदि।

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Upasarg Va Prathyay उपसर्ग व प्रत्यय Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran उपसर्ग व प्रत्यय

उपसर्ग

उपसर्ग व प्रत्यय HBSE 9th Class प्रश्न 1.
उपसर्ग किसे कहते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
जो शब्दांश शब्दों के आरंभ में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं; जैसे ‘कर्म’ शब्द जिसका अर्थ है, काम करना। ‘कु’ उपसर्ग जोड़ने से ‘कुकर्म’ शब्द बन जाता है जिसका अर्थ है बुरा काम। उपसर्ग के प्रयोग से अर्थ विपरीत भी हो जाता है; जैसे ‘देखा’ शब्द ‘अन्’ उपसर्ग लगाने से ‘अनदेखा’ बन जाता है जिसका अर्थ है ‘न देखा।’

हिंदी भाषा में संस्कृत और उर्दू भाषा के शब्दों का भी प्रयोग होता है। इसलिए हिंदी में संस्कृत एवं उर्दू भाषा के उपसर्गों का भी प्रयोग होता है। इसलिए इनका अध्ययन भी हमारे लिए उपयोगी होगा।

Upsarg Pratyay Class 9 HBSE

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

(क) संस्कृत के उपसर्ग-संस्कृत के बाइस उपसर्ग हैं। इनसे बने हिंदी में बहु-प्रचलित शब्दों के उदाहरण यहाँ दिए जा रहे हैं-

उपसर्ग अर्थ उपसर्ग
अति अधिक, उस पार, ऊपर अनुक्रम, अनुशीलन, अनुचार, अनुगामी, अनुसार, अनुकरण, अनुवाद, अनुरूप, अनुचित आदि।
अधि समीपता, प्रधानता, ऊँचाई, श्रेष्ठ अपवाद, अपव्यय, अपकर्ष, अपहरण, अपशब्द, अपयश, अपमान आदि।
अनु क्रम, पश्चात्, समानता अभियान, अभिभावक, अभिशाप, अभिप्राय, अभियोग, अभिनव, अभ्युदय (अभि + उदय), अभिमान, अभिलाषा आदि।
अप अभाव, अधूरा, हीनता, बुरा आरक्त, आकाश, आजन्म, आरंभ, आकर्षण, आक्रमण, आदान, आचरण, आजीवन, आरोहण, आमुख, आमरण आदि।
अभि समीपता, अधिकता और इच्छा प्रकट करना उत्साह, उत्कर्ष, उत्तम, उत्पन्न, उत्पल, उत्पत्ति, उद्देश्य, उन्नति, उत्कंठा।
सीमा, समेत, कमी, विपरीत उदार, उद्रम, उद्धत, उद्यम, उद्घाटन, उद्गम आदि।
उत् उच्चता, उत्कर्ष, श्रेष्ठता आदि अवगत, अवनत, अवलोकन, अवतार, अवशेष, अवगुण, अवज्ञा, अवरोहण आदि।
उद् ऊपर, उत्कर्ष, श्रेष्ठ उपदेश, उपकार, उपमंत्री, उपनिवेश, उपनाम, उपवन, उपस्थित, उपभेद आदि।
अव हीनता, अनादर, अवस्था, पतन दुरवस्था, दुर्दशा, दुर्लभ, दुर्जन, दुराचार (दु + आचार), दुष्कर्म, दुस्साध्य, दुस्साहस, आदि।
उप् सहाय, सुदृढ़, गौण, हीनता उपसर्ग
दुः, दुर् दुर्दुस् बुरा, कठिन, दृष्ट-हीन अनुक्रम, अनुशीलन, अनुचार, अनुगामी, अनुसार, अनुकरण, अनुवाद, अनुरूप, अनुचित आदि।
नि भीतर, नीचे, बाहर निकृष्ट, निपात, नियुक्त, निवास, निमग्न, निवारण, निषेध, निर्मल, निर्विकार आदि।
निस् बाहर, निषेध निस्तेज, निःशंक, निस्सन्देह, निष्कलंक आदि।
पर अनादर, नाश, विपरीत, पीछे, उलटा पराजय, परिवर्तन, पराधीन, पराभव आदि।
परि अतिशय, चारों ओर परिपूर्ण, परिच्छेद, परिवर्तन, परिक्रम आदि।
प्र यज्ञ, गति, उत्कर्ष, अतिशय, आगे प्रताप, प्रयत्न, प्रबल, प्रसिद्ध, प्रसन्न, प्रमाण, प्रयोग, प्रचार, प्रस्थान, प्रगति आदि।
प्रति विरोध, हर एक, सामने प्रतिपल, प्रत्येक, प्रतिदिन, प्रतिशोध, प्रतिकूल आदि।
वि हीनता, भिन्नता, विशेषता विशेष, विज्ञ, वियोग, विमुख, विदेश, विभाग, विज्ञान आदि।
सम् पूर्णता, संयोग, अच्छा संकल्प, संग्रह, संयोग, संग्रह, सम्पत्ति, संहार आदि।
सु सुन्दर, सहन, अच्छा, सरल सुयश, सुकर्म, सुगम, सुकन्या, सुपुत्र आदि।

संस्कृत के कुछ अव्यय जो उपसर्ग की भाँति प्रयुक्त होते हैं; जैसे-

अव्यय अर्थ उदाहरण
अधः नीचे अधःपतन, अधोगति, अधोलिखित।
अलम् बहुत, बस अलंकार, अलंकृत, अलंकरण।
अंतः भीतर अंतर्मन, अंतःकाल, अंतरात्मा, अंतर्धान।
चिर् बहुत देर चिरायु, चिरकाल, चिरपरिचित, चिरस्थायी।
तिरः निषेध तिरोभाव, तिरोहित, तिरस्कार।
पुरा पुराना, पहले पुरातन, पुरातत्व।
पुनः फिर पुनरामगमन, पुनर्जन्म, पुनर्मिलन।
प्राक् पहले प्रागैतिहासिक, प्राक्कथन।
बहिः बाहर बहिर्मुख, बहिर्गमन, बहिष्कार, बहिरंग।
सह साथ सहानुभूति, सहपाठी, सहकारी, सहयोग, सहोदर।

Hindi Vyakaran Pratyay HBSE

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(ख) हिंदी के उपसर्ग: हिंदी के सामान्य उपसर्ग निम्नलिखित हैं-

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

Upsarg Aur Pratyay HBSE 9th Class

(ग) उर्दू (अरबी-फारसी) के उपसर्ग-

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

Upsarg Aur Pratyay Class 9th HBSE

(घ) अंग्रेज़ी के उपसर्ग-

उपसर्ग अर्थ उदाहरण
सब अधीन, नीचे सबजज, सब कमेटी।
डिप्टी सहायक डिप्टी मिनिस्टर, डिप्टी रजिस्ट्रार
चीफ मुख्य चीफमिनिस्टर, चीफ ऑफ स्टाफ।
वाइस उप वाइस चांसलर, वाइस प्रिंसिपल।
जनरल मुख्य जनरल मैनेजर,जनरल सैक्रेटरी।

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प्रत्यय

Upsarg Pratyay Class 9th HBSE प्रश्न 1.
प्रत्यय किसे कहते हैं ? प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं ? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
अर्थवान शब्द के अंत में जोड़े जाने वाले वर्ण अथवा वर्ण-समूह को प्रत्यय कहते हैं अर्थात् प्रत्यय वह ध्वनि, अक्षर या शब्दांश है, जिसे धातु अथवा शब्द के अंत में लगाकर कोई रूप या शब्द बनाते हैं; जैसे मूर्ख + ता = मूर्खता; धीर + ता = धीरता; यहाँ ‘ता’ प्रत्यय है। घबरा + आहट = घबराहट; यहाँ आहट प्रत्यय है।
हिंदी भाषा में प्रयुक्त लगभग सभी प्रत्यय अपने हिंदी के ही हैं। प्रत्यय दो प्रकार के हैं-
(1) कृत प्रत्यय
(2) तद्धित प्रत्यय।

1. कृत प्रत्यय अथवा कृदंत प्रत्यय:
धातु (क्रिया के मूल रूप) के अंत में लगकर जो शब्दांश अनेक प्रकार के शब्द (क्रिया-रूप) बनाते हैं, उन्हें कृत अथवा कृदंत प्रत्यय कहा जाता है।
कृत प्रत्यय चार प्रकार के होते हैं-
(क) कर्तृवाचक कृत प्रत्यय,
(ख) कर्मवाचक कृत प्रत्यय,
(ग) भाववाचक कृत प्रत्यय तथा
(घ) क्रियावाचक (क्रियार्थक) कृत प्रत्यय।

Hindi Upsarg Class 9 HBSE

1. कृत प्रत्यय

(क) कर्तृवाचक कृत प्रत्यय जो कृत प्रत्यय धातु कर्ता अर्थात् क्रिया के करने वाले की ओर संकेत करते हैं उन्हें कर्तवाचक कृत प्रत्यय कहते हैं। कुछ उदाहरण देखिए-
प्रत्यय – उदाहरण
दार – देनदार, लेनदार, धारदार।
हार – होनहार, पालनहार, उतारनहार, खेवनहार।
वाला – बचानेवाला, खानेवाला, रखवाला।
आलू – झगड़ालू, कृपालू, लज्जालू।
ऐया – बजैया, खवैया, बचैया।
आऊ – बिकाऊ, टिकाऊ, टकराऊ, कमाऊ।
अक्कड़ – भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़।
अक – धावक, चालक, पालक, धारक, मारक।
आक – तैराक, चालाक।

(ख) कर्मवाचक कृत प्रत्यय जो कृत प्रत्यय कर्मवाचक शब्दों की रचना में सहायक होते हैं, उन्हें कर्मवाचक कृत प्रत्यय कहते हैं; जैसे-
प्रत्यय – उदाहरण
ना – पालना, ओढ़ना, नाना, पढ़ना, तैरना, बुलाना।
नी – ओढ़नी, बिछौनी, सुंघनी, कहानी।
औना – बिछौना, खिलौना।
न – झाड़न, बेलन, कतरन।

(ग) भाववाचक कृत प्रत्यय वे कृत प्रत्यय जो भाववाचक संज्ञाओं की रचना करते हैं, भाववाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं; जैसे-
प्रत्यय – उदाहरण
आई – लिखाई, सिखलाई, सिलाई, कढ़ाई, पढ़ाई, लड़ाई आदि।
आहट – घबराहट, चिल्लाहट, जगमगाहट, गर्माहट आदि।
आव – चढ़ाव, उतराव, बनाव, बचाव आदि।
आवा – बुलावा, चढ़ावा, पहनावा आदि।
आन – थकान, उड़ान, उठान आदि।
आस – विश्वास, प्यास, हास आदि।

(घ) क्रियावाचक कृत प्रत्यय-जो प्रत्यय क्रिया शब्द बनाते हैं, उन्हें क्रियावाचक कृत प्रत्यय कहते हैं; जैसे-
ता, ते, ती – आता, जाता, जाते, आते, खाती।
आ, ए, या – उठा, चला, गया, आया, गए आदि।
ई – गायी, खाई, पी, गई आदि।

Class 9th Upsarg Pratyay HBSE

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2. तद्धित प्रत्यय

प्रश्न 2.
तद्धित प्रत्यय की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जो क्रिया के अतिरिक्त शेष सभी प्रकार के शब्दों-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण आदि के अंत में लगकर अनेक प्रकार के शब्द बनाते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं।
तद्धित प्रत्यय सात प्रकार के होते हैं-
(1) भाववाचक तद्धित प्रत्यय
(2) कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय
(3) स्त्रीलिंगवाचक तद्धित प्रत्यय
(4) बहुवचनवाचक तद्धित प्रत्यय
(5) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय
(6) लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय
(7) क्रमवाचक तद्धित प्रत्यय।

(1) भाववाचक तद्धित प्रत्यय-जिन प्रत्ययों से भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण होता है, उन्हें भाववाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-
प्रत्यय – उदाहरण
ता – मनुष्यता, मूर्खता, सरलता, लघुता, प्रभुता आदि।
त्व – गुरुत्व, महत्व, पुरुषत्व, अपनत्व आदि।
पन – बचपन, लड़कपन, पतलापन, पीलापन, बड़प्पन आदि।
आहट – चिकनाहट, चिल्लाहट, गर्माहट आदि।

(2) कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय-जिन प्रत्ययों के सहयोग से कर्ता की ओर संकेत करने वाले शब्द का निर्माण हो, उन्हें कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-
दार – ईमानदार, कर्जदार, समझदार आदि।
आर – सुनार, लुहार, चमार आदि।
आरी – भिखारी, पुजारी, जुआरी, पंसारी आदि।
वाहा – चरवाहा, हलवाहा आदि।
ई – संयमी, ज्ञानी, तेली, कामी आदि।
कार – नाटककार, स्वर्णकार, साहित्यकार, पत्रकार, कहानीकार आदि।
अक – अध्यापक, शिक्षक, पाठक, लेखक।

(3) स्त्रीलिंगवाचक तद्धित प्रत्यय-जिन प्रत्ययों के प्रयोग से स्त्रीलिंग शब्दों की रचना की जाती है, उन्हें स्त्रीलिंगवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-
आ – छात्रा, शिष्या, दुहिता, अध्यापिका, बाला आदि।
ई – देवी, नारी, चाची, नानी, बेटी।
आनी – देवरानी, नौकरानी, जेठानी, इन्द्राणी आदि।
नी – पत्नी, शेरनी, मोरनी, सिंहनी, राजपूतनी आदि।
षी – विदुषी, महिषी।
मती – श्रीमती, बुद्धिमती, धीमती आदि।
इन – धोबिन, लुहारिन, सुहागिन आदि ।

(4). गुणवाचक तद्धित प्रत्यय-जिन तद्धित प्रत्ययों के योग से गुणवाचक विशेषण शब्दों की रचना की जाती है, उन्हें गुणवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-

ई – धनी, मानी, ज्ञानी, सुखी, दुःखी, पंजाबी, हिमाचली, गुलाबी।
ईन – गमगीन, शौकीन, रंगीन, नमकीन।
मंद – अक्लमंद, फायदेमंद।
दार – दुकानदार, हवलदार, ज़मींदार, सरदार।
इया – अमृतसरिया, लाहौरिया, जालंधरिया।
ईला – रंगीला, सजीला, रसीला, ज़हरीला।
ऊ – पेटू, बाज़ारू, बाबू, गंवारू।
आना – ज़माना, मर्दाना, सालाना, फुसलाना, बहलाना।
ऐरा – सपेरा, बहुतेरा, ममेरा, चचेरा, फुफेरा, लुटेरा।
अवी – हरियाणवी, देहलवी, लखनवी।
आलु – दयालु, कृपालु।
इक – राजनीतिक, शारीरिक, साहित्यिक, वैदिक।
इय – राष्ट्रीय, स्थानीय, देशीय, पर्वतीय।
वान् – धनवान्, गुणवान्, विद्वान्।
मान् – बुद्धिमान्, शक्तिमान्।
आ – भूखा, प्यासा।
हला – रूपहला, सुनहला।
इमा – नीलिमा, हरितिमा।

(5) बहुवचनवाचक तद्धित प्रत्यय-जिन प्रत्ययों के प्रयोग से एकवचन शब्द बहुवचन में बदल जाता है, उसे बहुवचन तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-

ए – लड़के, रुपए, कमरे, उठे, घोड़े, मोटे आदि।
एँ – कन्याएँ, बहुएँ, सड़कें, भाषाएँ आदि।

(6) लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय-जिन तद्धित प्रत्ययों के प्रयोग से शब्द में लघुता का बोध होने लगे, उन्हें लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-

ई – पहाड़ी, बछड़ी, टुकड़ी आदि।
ड़ी – संदुकड़ी, टुकड़ी, गठड़ी, पंखुड़ी आदि।

(7) क्रमवाचक तद्धित प्रत्यय-जिन तद्धित प्रत्ययों के प्रयोग से शब्दों में क्रम का ज्ञान हो, उन्हें क्रम बोध तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे-

गुना – चारगुना, छहगुना, दुगुना आदि।
वाँ – बीसवाँ, पाँचवाँ, आठवाँ आदि।
सरा – दूसरा, तीसरा आदि।

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परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कोई पाँच ऐसे शब्द लिखो जिनमें दो-दो उपसर्गों का प्रयोग किया गया हो।
उत्तर:
(1) सु + प्रति = सुप्रतिष्ठित।
(2) सु + सम् = सुसंगठित।
(3) अन् + अव = अनवधान।
(4) अ + सु = असुरक्षित।
(5) अ + स = असफल।

प्रश्न 2.
दस ऐसे शब्द लिखिए जिनका निर्माण उपसर्ग और प्रत्यय दोनों की सहायता से किया गया हो।
उत्तर:

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प्रश्न 3.
भाववाचक कृत प्रत्यय और भाववाचक तद्धित प्रत्यय में क्या अंतर है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जो कृत प्रत्यय क्रियाओं के साथ जुड़कर भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैं, उन्हें भाववाचक कृत प्रत्यय कहते हैं; जैसे लिख से लिखाई, पढ़ से पढ़ाई जबकि भाववाचक तद्धित प्रत्यय संज्ञा विशेषण आदि शब्दों के साथ जुड़कर भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण करते हैं; जैसे मनुष्य से मनुष्यता, बच्चा से बचपन, पीला से पीलापन आदि।

प्रश्न 4.
तद्धित प्रत्यय और कृत प्रत्यय का अंतर स्पष्ट करते हुए दोनों के चार-चार उदाहरण लिखो।
उत्तर:
कृत प्रत्यय क्रियाओं के साथ जुड़कर शब्दों का निर्माण करते हैं, जबकि तद्धित प्रत्यय क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सभी शब्दों या शब्दांशों के साथ जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। अग्रलिखित उदाहरणों से दोनों का अंतर और भी स्पष्ट हो जाएगा-

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प्रश्न 5.
कर्मवाचक और कर्तवाचक प्रत्यय में क्या अंतर है ? उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो प्रत्यय धातुओं के अंत में जुड़कर कर्म के अर्थ को प्रकट करे; कर्मवाच्य प्रत्यय कहलाता है। जैसे ओना से बिछौना। किन्तु कर्तृवाचक प्रत्यय धातु के पहले जुड़कर क्रिया के कर्ता का अर्थ प्रकट करता है; जैसे अक से पाठक, ता से वक्ता आदि।

प्रश्न 6.
‘कृदंत’ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
धातुओं के आगे कृत प्रत्यय लगने से जो शब्द बनते हैं, उन्हें कृदंत शब्द कहते हैं; जैसे भूत धातु में ‘अक्कड़’ प्रत्यय लगाकर भुलक्कड़ शब्द बनता है। ‘तैर’ से तैरना बनता है। ये शब्द कृदंत कहलाते हैं।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों में प्रयुक्त प्रत्यय बताओपाठक, कलाकार, धनवान्, घरवाला, कामगार, रसोइया, ममेरा, धार्मिक, खटास, लघुता।
उत्तर:
पाठक = पाठ + अक
धनवान् = धन + वान
कलाकार = कला + कार
घरवाला = घर + वाला
कामगार = काम + गा
रसोइया = रसोइ + या
ममेरा = मम + एरा
धार्मिक = धर्म + इक
खटास = खटा + आस
लघुता = लघु + ता

प्रश्न 8.
कोई पाँच ऐसे शब्द लिखो जो उर्दू उपसर्गों के योग से बने हों।
उत्तर:
कम + जोर = कमजोर
दर + असल = दरअसल
बद + तमीज = बद्तमीज
ला + जवाब = लाजवाब
हम + शक्ल = हमशक्ल

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Samas-Prakaran समास-प्रकरण Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran समास-प्रकरण

समास-प्रकरण

वर्गों के मेल से जहाँ संधि होती है, वहाँ शब्दों के मेल से समास बनता है। अन्य शब्दों में, दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो एक नया स्वतंत्र पद बनता है, उसे समास कहते हैं।

परिभाषा:
आपस में संबंध रखने वाले दो शब्दों के मेल को समास कहते हैं; जैसे राजा का महल = राजमहल । विधि के अनुसार = यथाविधि। समास करते समय परस्पर संबंध दिखाने वाले विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है; जैसे ‘गंगा का जल’ = गंगाजल में का विभक्ति का लोप हो गया।

Samas In Hindi Class 9 HBSE प्रश्न 1.
‘समास-विग्रह’, किसे कहते हैं?
उत्तर:
समस्त पद या सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार। तुलसीकृत = तुलसी के द्वारा कृत।

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समास Class 9 HBSE प्रश्न 2.
समास के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक का सोदाहरण उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समास के निम्नलिखित चार भेद होते हैं-
(1) अव्ययीभाव समास
(2) तत्पुरुष समास
(3) द्वंद्व समास
(4) बहुब्रीहि समास।

1. अव्ययीभाव समास

Samas Class 9 HBSE प्रश्न 1.
अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जिस समास में पहला पद अव्यय हो तथा दूसरे शब्द से मिलकर पूरे समस्त पद को ही अव्यय बना दे, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जैसे-
यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
रातों-रात – रात ही रात में
यथाविधि – विधि के अनुसार
घर-घर – घर ही घर
यथामति – मति के अनुसार
द्वार-द्वार – द्वार ही द्वार
हरसाल – साल-साल
मन-मन – मन ही मन
हररोज – रोज-रोज
बीचों-बीच – बीच ही बीच
बेकाम – काम के बिना
दिनों-दिन – दिन ही दिन
बेशक – शक के बिना
धीरे-धीरे – धीरे ही धीरे
बेमतलब – मतलब के बिना
आजन्म – जन्म-पर्यन्त
निडर – बिना डर के
आजीवन – जीवन पर्यन्त

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2. तत्पुरुष समास

Class 9 Hindi Vyakaran Samas HBSE प्रश्न 1.
तत्पुरुष समास किसे कहते हैं? इसके कितने भेद होते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जिस समास में दूसरा पद प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। इस समास में कर्ता और संबोधन कारकों को छोड़कर शेष सभी कारकों के विभक्ति चिह्न लुप्त हो जाते हैं। जिस कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है, उसी के नाम पर तत्पुरुष समास का नामकरण होता है। विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष के छह उपभेद होते हैं; जैसे-
(i) कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii) संप्रदान तत्पुरुष
(iv) अपादान तत्पुरुष
(v) संबंध तत्पुरुष
(vi) अधिकरण तत्पुरुष।

(i) कर्म तत्पुरुष:
जिस समास में दो शब्दों के मध्य से कर्म-विभक्ति के चिह्नों का लोप होता है, उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे परलोकगमन-परलोक को गमन, ग्रामगत ग्राम को (गमन) गत, शरणागत-शरण को आगत (आया हुआ) आदि।

(ii) करण तत्पुरुष-जिस समास में करण कारक का लोप हो, उसे ‘करण तत्पुरुष’ समास कहते हैं; जैसे-
रेखांकित – रेखा से अंकित
दईमारा – देव से मारा
तुलसीकृत – तुलसी द्वारा कृत
मुंहमांगा – मुँह से माँगा
हस्तलिखित – हाथ से लिखित
हृदयहीन – हृदय से हीन
रेलयात्रा – रेल द्वारा यात्रा
गुणयुक्त – गुणों से युक्त
मदांध – मद से अंध
मनमानी – मन से मानी

(iii) संप्रदान तत्पुरुष-जब समास करते समय संप्रदान कारक चिह्न ‘के लिए’ का लोप हो तो वह ‘संप्रदान तत्पुरुष’ कहलाता है; जैसे-
हथकड़ी – हाथों के लिए कड़ी
राज्यलिप्सा – राज्य के लिए लिप्सा
क्रीडाक्षेत्र – क्रीड़ा के लिए क्षेत्र
पाठशाला – पाठ के लिए शाला
रसोईघर – रसोई के लिए घर
मालगोदाम – माल के लिए गोदाम
सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
राहखर्च – राह के लिए खर्च
देशार्पण – देश के लिए अर्पण
युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि

(iv) अपादान तत्पुरुष-जिस समास में अपादान कारक चिह्नों ‘से’ (जुदाई) का लोप हो तो उसे ‘अपादान तत्पुरुष समास’ कहते हैं; जैसे-
ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त
देशनिकाला – देश से निकाला
भयभीत – भय से भीत
गुणहीन – गुण से हीन
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
धनहीन – धन से हीन
धर्मविमुख – धर्म से विमुख
जन्मांध – जन्म से अंधा

(v) संबंध तत्पुरुष-समास करते समय जब संबंध कारक चिह्नों (का, के, की आदि) का लोप हो तो वहाँ ‘संबंध तत्पुरुष समास’ होता है; जैसे-
विश्वासपात्र – विश्वास का पात्र
राष्ट्रपति – राष्ट्र का पति
घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़
जन्मभूमि – जन्म की भूमि
माखनचोर – माखन का चोर
राजपुत्र – राजा का पुत्र
रामकहानी – राम की कहानी
राजसभा – राजा की सभा
राजकन्या – राजा की कन्या
रामदरबार – राम का दरबार
बैलगाड़ी – बैलों की गाड़ी
शासनपद्धति – शासन की पद्धति
सेनापति – सेना का पति
पनचक्की – पानी की चक्की

(vi) अधिकरण तत्पुरुष-जिस समास में अधिकरण कारक के विभक्ति चिह्नों का लोप किया जाता है, उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे-
आपबीती – अपने पर बीती
घुड़सवार – घोड़े पर सवार
सिरदर्द – सिर में दर्द
रसमग्न – रस में मग्न
शरणागत – शरण में आगत
धर्मवीर – धर्म में वीर
दानवीर – दान में वीर
व्यवहारकुशल – व्यवहार में कुशल

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तत्पुरुष समास के कुछ अन्य उपभेद

Hindi Samas Class 9 HBSE प्रश्न 1.
तत्पुरुष समास के कुछ अन्य उपभेद कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
तत्पुरुष समास के कुछ अन्य उपभेद निम्नलिखित हैं-
(1) नञ् तत्पुरुष
(2) अलुक् तत्पुरुष
(3) उपपद तत्पुरुष
(4) कर्मधारय तत्पुरुष
(5) द्विगु तत्पुरुष ।

(क) नञ् तत्पुरुष

Class 9 Vyakaran Samas HBSE प्रश्न 2.
नञ् तत्पुरुष समास किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जब अभाव अथवा निषेध अर्थ को व्यक्त करने के लिए व्यंजन से पूर्व ‘अ’ तथा स्वर से पूर्व ‘अन्’ लगाकर समास बनाया जाता है तो उसे नञ् तत्पुरुष समास का नाम दिया जाता है; जैसे-
अहित – न हित
अस्थिर – न स्थिर
अपूर्ण – न पूर्ण
अनादि – न आदि
अनागत – न आगत
अज्ञान – न ज्ञान
अभाव – न भाव
अन्याय – न न्याय
असंभव – न संभव
अधर्म – न धर्म
अनंत – न अंत
अकर्मण्य – न कर्मण्य

(ख) अलुक् तत्पुरुष

Samas Prakaran HBSE प्रश्न 3.
अलुक् तत्पुरुष समास की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अलुक् का अर्थ है लोप न होना। संस्कृत में कुछ विशेष नियमों के अनुसार कुछ ऐसे शब्द हैं जिनमें तत्पुरुष समास होते हुए भी दोनों शब्दों के मध्य की विभक्ति का लोप नहीं होता, ऐसे शब्दों को अलुक् समास माना जाता है। ये सभी शब्द संस्कृत के हैं और हिंदी भाषा में ज्यों के त्यों प्रयुक्त होते हैं; जैसे-
मनसिज (काम-भावना) – मन में उत्पन्न
मृत्युंजय (शिव) – मृत्यु को जीतने वाला
वाचस्पति (विद्वान) – वाच (वाणी) का पति
खेचर (पक्षी) – आकाश में विचरने वाला
युधिष्ठिर – युद्ध में स्थिर

(ग) उपपद तत्पुरुष

समास प्रकरण HBSE प्रश्न 4.
उपपद समास किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जिस समस्त पद के दोनों शब्दों अथवा पदों के मध्य में से कोई पद लुप्त हो, उसे उपपद समास कहते हैं; जैसे-
रेलगाड़ी – रेल पर चलने वाली गाड़ी
बैलगाड़ी – बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी
पनचक्की – पानी से चलने वाली चक्की
गोबर-गणेश – गोबर से बना गणेश
दही बड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
पर्ण-कुटीर – पर्ण से बना कुटीर

(घ) कर्मधारय तत्पुरुष

Samas Class 9th HBSE प्रश्न 5.
कर्मधारय तत्पुरुष समास की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
कर्मधारय तत्पुरुष, तत्पुरुष समास का ही एक भेद है। जिस समास में उत्तर पद प्रधान हो किंतु पूर्व पद एवं उत्तर पद में उपमान-उपमेय या विशेषण-विशेष्य का संबंध हो, उसे कर्मधारय तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे-
उपमान-उपमेय संबंध वाले उदाहरण-
चंद्रमुख – चंद्रमा के समान मुख
चरण कमल – कमल के समान चरण
मुखचंद्र – मुख रूपी चंद्र
कर कमल – कमल के समान कर
देहलता – देह रूपी लता
नरसिंह – सिंह के समान है जो नर
कनकलता – कनक की-सी लता
कमल नयन – कमल के समान नयन

विशेषण-विशेष्य संबंध के उदाहरण-
नीलगाय – नीली है जो गाय
पीतांबर – पीत (पीला) अंबर
नीलगगन – नीला है जो गगन
काली मिर्च – काली है जो मिर्च
नीलकमल – नीला है जो कमल
नरोत्तम – नर में (जो) उत्तम

(ङ) द्विगु

Class 9th Hindi Samas HBSE प्रश्न 6.
द्विगु समास की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
द्विगु समास वस्तुतः कर्मधारय समास का ही एक भेद है। इसमें पूर्व पद संख्यावाची होता है और दोनों में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है। यह समास समूहवाची भी होता है; जैसे-
त्रिलोकी – तीनों लोकों का स्वामी
चौराहा – चार राहों का समाहार
दोपहर – दो पहरों का समाहार
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह
चौमासा – चार मासों का समाहार
सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह
नवरात्र – नौ रात्रियों का समाहार
अठन्नी – आठ आनों का समूह
शताब्दी – शत् (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार
त्रिभुवन – तीन भवनों का समूह
पंचवटी – पाँच वटों का समाहार
पंचमढ़ी – पाँच मढ़ियों का समूह

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3. द्वंद्व समास

प्रश्न 7.
द्वंद्व समास किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जिस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान हो, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। समास बनाते समय ‘तथा’ या ‘और’ समुच्चयबोधक शब्दों का लोप हो जाता है; जैसे
गंगा-यमुना – गंगा और यमुना
रात-दिन – रात और दिन
जल-थल – जल और थल
गुण-दोष – गुण और दोष
माता-पिता – माता और पिता
नर-नारी – नर और नारी
धनी-मानी – धनी और मानी
दाल-रोटी – दाल और रोटी
तीन-चार – तीन और चार
घी-शक्कर – घी और शक्कर
छात्र-छात्राएँ – छात्र और छात्राएँ
राजा-रंक – राजा और रंक
पृथ्वी-आकाश – पृथ्वी और आकाश
बच्चे-बूढ़े – बच्चे और बूढ़े

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4. बहुब्रीहि समास

प्रश्न 8.
बहुब्रीहि समास की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जब समस्त पद के दोनों पदों में से कोई भी पद प्रधान न हो तथा कोई बाहर का पद प्रधान हो तो उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। बहुब्रीहि समास का समस्त पद अन्य पद के लिए विशेषण का कार्य करता है; जैसे-
बारहसिंगा – बारह सींगों वाला
चतुर्भुज – चार भुजाओं वाला
महात्मा – महान आत्मा वाला
पतझड़ – जिसमें पत्ते झड़ जाते हैं
गिरिधर – गिरि को धारण करने वाला
पतिव्रता – एक पति का व्रत लेने वाली
दशानन – दस हैं आनन जिसके (रावण)
विशाल हृदय – विशाल है हृदय जिसका
जितेंद्रिय – इंद्रियों को जीतने वाला
कनफटा – फटे कानों वाला
चंद्रमुखी – चंद्र जैसे मुख वाली
पीतांबर – पीले हैं अंबर जिसके (श्रीकृष्ण)
नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका (शिव)
सुलोचना – सुंदर हैं लोचन जिसके (स्त्री विशेष)
चक्रपाणि – चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके (विष्णु)
लंबोदर – लंबे उदर वाला (गणेश जी)
दुरात्मा – दुष्ट (बुरी) आत्मा वाला
धर्मात्मा – धर्म में आत्मा लीन है जिसकी

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परीक्षोपयोगी कुछ महत्त्वपूर्ण समास

निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का नाम लिखें-

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Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Sarvanam सर्वनाम Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran सर्वनाम

सर्वनाम

Pronoun Class 9 HBSE प्रश्न 1.
सर्वनाम की परिभाषा देते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ है-सब का नाम। व्याकरण में सर्वनाम ऐसे शब्दों को कहते हैं, जिनका प्रयोग सबके लिए (नामों) किया जाए। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं; जैसेमैं, हम, तू, तुम, वह, वे आदि।

सर्वनाम का भाषा में बहुत महत्त्व है। सर्वनाम के प्रयोग के द्वारा भाषा की सरलता एवं सुंदरता में वृद्धि होती है। भाषा में पुनरावृत्ति के दोष को सर्वनाम के प्रयोग द्वारा दूर किया जा सकता है; यथा-
राम सुबह शीघ्र उठता है। राम स्कूल समय पर जाता है। राम कल रोहतक गया था।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘राम’ शब्द का प्रयोग तीन बार हुआ है जो उपयुक्त नहीं है। अतः ‘राम’ के स्थान पर उसके सर्वनाम का प्रयोग करने पर भाषा में सरलता एवं शुद्धता की अभिवृद्धि होगी; यथा-
राम सुबह शीघ्र उठता है। वह स्कूल समय पर जाता है। वह आज रोहतक गया है।

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Types Of Pronoun Class 9 HBSE प्रश्न 2.
सर्वनाम के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सर्वनाम के छह भेद माने जाते हैं। जो इस प्रकार हैं
(1) पुरुषवाचक सर्वनाम,
(2) निश्चयवाचक सर्वनाम,
(3) अनिश्चयवाचक सर्वनाम,
(4) संबंधवाचक सर्वनाम,
(5) प्रश्नवाचक सर्वनाम,
(6) निजवाचक सर्वनाम।
1. पुरुषवाचक सर्वनाम:
बोलने वाले, सुनने वाले तथा जिनके विषय में कुछ कहा जाए, वे सर्वनाम पुरुषवाचक होते हैं; जैसे मैं, तुम, वह आदि। ये सर्वनाम (नर एवं नारी) पुरुष के लिए प्रयुक्त होते हैं। इसलिए इन्हें पुरुषवाचक सर्वमान कहा जाता है। पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन उपभेद होते हैं
(i) उत्तम पुरुषवाचक-लेखक या वक्ता अपने लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग करता है, उन्हें उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे मैं, हम, मुझको, मेरा, हमारा आदि।
(ii) मध्यम पुरुषवाचक-पाठक या श्रोता के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग किया जाए, उन्हें मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे तुम, तुम्हारा, आप, आपका, तू आदि।
(iii) अन्य पुरुषवाचक-अपने तथा श्रोता के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है, उन्हें अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं; यथा वह, वे, यह, ये, उनको, आदि।

2. निश्चयवाचक सर्वनाम:
जिन सर्वनामों से किसी समीप या दूर के प्राणी अथवा पदार्थ का निश्चयात्मक संकेत मिलता है, उन्हें निश्चयवाचक सर्वमान कहते हैं; यथा यह, ये, वह, वे, इस, इन, इन्हें, इन्होंने आदि।
(क) निकटवर्ती यह, ये, इस, इन।
(ख) दूरवर्ती वह, वे।
उदाहरणार्थ-
(क) यह यहाँ खेल रहा है।
(ख) वह वहाँ चला गया।

3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम:
जिन सर्वनामों से किसी निश्चित पदार्थ या व्यक्ति का बोध न हो, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वमान कहते हैं; यथा कोई, कुछ, किसी, किन्हीं, कुछ भी, सब कुछ, कुछ-न-कुछ, हर कोई, कोई-न-कोई आदि। जैसे
(क) कल कोई आया था।
(ख) खाने के लिए कुछ दीजिए।

4. संबंधवाचक सर्वनाम:
जिन सर्वनामों से संज्ञा के संबंधों का बोध हो, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे जो, सो, जिसे, उसे आदि। उदाहरणार्थ निम्नांकित वाक्य देखिए
(क) जो परिश्रम करेगा सो फल भी पाएगा।
(ख) आप जो कहें ठीक है।
(ग) जिसकी लाठी उसकी भैंस।
(घ) यह वही है जिसने तुम्हारा पैन चुराया था।

5. प्रश्नवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनामों से प्रश्नों का बोध हो, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे कौन, क्या, किन, किनसे, किन्हें आदि। उदाहरणार्थ ये वाक्य देखिए
(क) दरवाजे पर कौन है?
(ख) आप ने क्या माँगा है?
(ग) आपको किससे मिलना है?
(घ) ये पुस्तकें किन्हें चाहिएँ?

6. निजवाचक सर्वनाम जो सर्वनाम कर्ता के स्वयं के लिए प्रयुक्त हो, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं, जैसे अपना, अपने, अपनी आदि। उदाहरणार्थ ये वाक्य देखिए
(क) अपनी पुस्तक ले जा रहा हूँ।
(ख) हमें अपने देश के लिए कुछ करना चाहिए।
(ग) हमें अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलना चाहिए।

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सर्वनाम की रूप-रचना

Sarvanam Exercise HBSE HBSE 9th Class प्रश्न 3.
सर्वनाम की रूप-रचना कितने प्रकार से होती है?
उत्तर:
सर्वनाम की रूप-रचना को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(1) पुरुषवाचक-मैं, तुम।
(2) निश्चयवाचक, प्रश्नवाचक एवं संबंधवाचक।
(3) अनिश्चयवाचक।
(4) निजवाचक।

रूपावली वर्ग-1

(क) मैं (उत्तम पुरुष)

कारक एकवचन बहुवचन
कर्ता मैं, मैंने हम, हमने
करण मुझे, मुझको हमें, हमको
संप्रदान मुझसे हमसे
अपादान मुझे, मेरे लिए हमें, हमारे लिए।
संबंध मुझसे हमसे
अधिकरण मेरा, मेरे, मेरी हमारा, हमारे, हमारी

(ख) तू (मध्यम पुरुष)

कारक एकवचन बहुवचन
कर्ता तू, तूने तुम, तुमने
करण तुझको, तुझे तुमको, तुम्हें
संप्रदान तुझको, तेरे द्वारा तुमसे, तुम्हारे द्वारा
अपादान तुझको, तेरे लिए, तुझे तुझको, तुम्हारे लिए
संबंध तुझसे तुमसे, तुम्हें
अधिकरण तेरा, तेरी, तेरे तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे

(ग) वह (अन्य पुरुष)

कारक एकवचन बहुवचन
कर्ता वह, उससे वे, उन्होंने
करण उसे, उसको उन्हें, उनको
संप्रदान उससे, उसके द्वारा उनसे, उनके द्वारा
अपादान उसको, उसे, उसके लिए उनको, उन्हें, उनके लिए
संबंध उससे उनसे
अधिकरण उसका, उसकी, उसके उनका, उनकी, उनके

रूपावली वर्ग-2

निश्चयवाचक, प्रश्नवाचक तथा संबंधवाचक

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रूपावली वर्ग-3

अनिश्चयवाचक

विभक्ति एकवचन बहुवचन
मूल कोई कोई
तिर्यक/संबंधवाची किसी किन्हीं

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रूपावली वर्ग-4

निजवाचक

विभक्ति एकवचन बहुवचन
मूल/तिर्यक/संबंधवाची (अपने) आप (अपने) आप

(नोट-कुछ का रूप वही रहता है।)

टिप्पणी:
(1) सर्वनाम में लिंग के अनुसार रूप में परिवर्तन नहीं होते। उदाहरणार्थ निम्नलिखित वाक्य देखिए(क) गाय भीतर आ गई, वह पौधे तोड़ देगी। (ख) गधा भीतर आ गया, वह पौधे तोड़ देगा। यहाँ दोनों वाक्यों में ‘वह’ सर्वनाम का प्रयोग हुआ है। लिंग का बोध क्रिया से होता है न कि सर्वनाम से।

(2) रूपावली के अनुसार उत्तम पुरुष एकवचन ‘मैं’ है किंतु कुछ स्थितियों में उत्तम पुरुष एकवचन अपने लिए ‘हम’ सर्वनाम का भी प्रयोग करता है। जैसे
(क) हम कल विद्यालय जाएँगे।
(ख) मैं कल विद्यालय जाऊँगा।

(3) रूपावली के अनुसार मध्यम पुरुष एकवचन ‘तू’ है किंतु कभी-कभी इसका विशेष प्रयोग प्यार-दुलार, अति आत्मीयता तथा कभी-कभी हीनता दिखाने के लिए भी किया जाता है।

(4) एकवचन ‘कुछ’ परिमाणबोधक है किंतु बहुवचन ‘कुछ’ संख्याबोधक है।

(5) मुझ, हम, तुझ, तुम, इस, इन, उस, उन, किस, किन में निश्चयार्थी ‘ई’ (ही) के योग से निश्चयार्थक रूप बन जाते हैं।
जैसे-
(क) मुझ को चार रुपए चाहिएँ।
(ख) उसी से मैं यह पुस्तक लाया हूँ।
(ग) रमेश उन्हीं का बेटा है।
(घ) मुझे तुम्हीं से मिलना है।

Hindi Vyakaran Sarvanam HBSE 9th Class

सर्वनामों के पुनरुक्ति रूप

कुछ सर्वनाम पुनरुक्ति के साथ प्रयोग में आते हैं। ऐसी स्थिति में उनके अर्थ में कुछ विशिष्टता उत्पन्न हो जाती है। कुछ सर्वनाम संयुक्त रूप में भी प्रयुक्त होते हैं। जैसे-जो, कोई आदि। सर्वनामों की पुनरुक्ति प्रयोगों के कुछ उदाहरण निम्नांकित हैं-
जो-जो-जो-जो – आए, उसे खिलाओ।
कोई-कोई-कोई-कोई – तो बिना बात ही बहस करते हैं।
क्या-क्या-आपने – वहाँ क्या-क्या देखा ?
कौन-कौन-कौन-कौन – आ रहा है?
किस-किस-किस-किस – कमरे में छात्र बीमार हैं?
कुछ-कुछ-अब कुछ-कुछ – याद आ रहा है।
कोई-न-कोई-जाओ, वहाँ कोई-न-कोई तो मिल ही जाएगा।
कुछ-न-कुछ-कुछ-न-कुछ – करते ही रहना चाहिए।
जो कोई-जो कोई आए, उसे रोक लो।
जो कुछ जो कुछ – मिले, रख लो।
अपना-अपना-अपना-अपना – बस्ता उठाओ और घर जाओ।

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Sarvanam In Hindi For Class 9 HBSE

परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सर्वनामों की रचना कितने प्रकार से होती है ?
उत्तर:
सर्वनामों की रचना चार प्रकार से होती है
(1) पुरुषवाचक,
(2) निश्चयवाचक, प्रश्नवाचक एवं सम्बन्धवाचक।
(3) अनिश्चयवाचक,
(4) निजवाचक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांश में से पुरुषवाचक सर्वनाम छाँटिए और उन्हें पुरुषवाचक के भेदों के अनुसार लिखिए
“मेरा बेटा अभी दिल्ली में है। उसका मकान बहुत बड़ा है। तुम दिल्ली जाना तो उससे जरूर मिलना। वह तुमसे मिलकर बहुत खुश होगा। मैं दिल्ली जाकर मोहन से मिला। उसने मुझे अपना घर दिखाया। उसकी पत्नी ने मुझसे पूछा, “नमस्ते, आप कैसे हैं ?” मोहन ने पूछा, “आप कौन-से कमरे में रहेंगे। घर में कुछ कमरे ही हवादार हैं।” मैंने कहा, “हमारा शहर छोटा है। हमारे घर में तो कोई भी कमरा हवादार नहीं है।”
उत्तर:

उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष अन्य पुरुष
मैं तुम उससे
मुझे तुमसे वह
मुझसे आप उसने
मैंने।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए वाक्यों में क्रिया रूप को शुद्ध मानते हुए सही सर्वनामों का प्रयोग कीजिए
1. क्या तुम पत्र लिख चुके हैं ?
2. तू आज मेरे साथ फिल्म देखने चलो।
3. आप सब कुछ भूल चुका हूँ।
4. तू परीक्षा दे चुके हैं।
5. क्या आप दूध लाए हो ?
उत्तर:
1. क्या आप पत्र लिख चुके हैं ? अथवा क्या वे पत्र लिख चुके हैं ?
2. तुम आज मेरे साथ फिल्म देखने चलो।
3. मैं सब कुछ भूल चुका हूँ।
4. वे परीक्षा दे चुके हैं।
5. क्या तुम दूध लाए हो ?

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प्रश्न 4.
‘आप’ शब्द का प्रयोग आदरार्थ मध्यम पुरुष और निजवाचक सर्वनाम में कीजिए।
उत्तर:
(1) आदरार्थ मध्यम पुरुष के रूप में
(क) भाई साहब, आप कुर्सी पर बैठिए।
(ख) आपने खाना नहीं खाया ?

(2) निजवाचक सर्वनाम के रूप में
(क) मैं अपना सामान आप उठा सकता हूँ।
(ख) वह अपना काम आप कर लेगा।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों में उचित सर्वनाम शब्दों का प्रयोग कीजिए
श्रीमान जी, …………. बड़ी दूर से ……….. पास पढ़ने आया हूँ। ………… भी …………. का शिष्य बनना चाहता हूँ। ………….. मेरे मित्र ने आपके पास भेजा है। ………….. दस वर्ष तक …………… से शिक्षा ग्रहण की है। …………… आपकी बहुत प्रशंसा करता है। कृपया …….. शरण में ले लें।
उत्तर:
श्रीमान जी, मैं बड़ी दूर से आपके पास पढ़ने आया हूँ। मैं भी आप का शिष्य बनना चाहता हूँ। मुझे मेरे मित्र ने आपके पास भेजा है। उसने दस वर्ष तक आप से शिक्षा ग्रहण की है। वह आपकी बहुत प्रशंसा करता है। कृपया मुझे शरण में ले लें।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त सर्वनामों को छाँटकर लिखिए-
1. बाज़ार से कुछ लाओ।
2. रास्ते में महात्मा जी मिल गए थे; उनसे बातचीत होती रही।
3. किताब खुली पड़ी है; इसे उठाओ।
4. जिसकी लाठी उसकी भैंस।
5. हमारे विद्यालय में पचास अध्यापक हैं।
6. जिसने बच्चे को डूबने से बचाया है उसे इनाम मिलेगा।
7. इस कमरे में किसका सामान पड़ा है।
8. आज राम की माता जी आई हैं, मैंने उन्हें प्रणाम किया।
9. पानी में क्या पड़ गया?
10. तुम्हारे पास कितनी पुस्तकें हैं?
उत्तर:
1. कुछ
2. उनसे
3. इसे
4. जिसकी, उसकी
5. हमारे
6. जिसने, उसे
7. किसका
8. मैंने
9. क्या
10. तुम्हारे, कितनी।

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Vakya Prakaran वाक्य प्रकरण Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran वाक्य प्रकरण

वाक्य प्रकरण

Vakya Prakaran HBSE 9th Class प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं अर्थात् एक विचार को पूर्ण रूप से प्रकट करने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं; जैसे-दशरथ पुत्र राम ने रावण को मारा।

वाक्य प्रकरण HBSE 9th Class प्रश्न 2.
वाक्य के अंग अथवा घटक किन्हें कहा जाता है? ये कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
जिन अवयवों को मिलाकर वाक्य की रचना होती है, उन्हें वाक्य के अंग. कहा जाता है। वाक्य के प्रमुख रूप से दो ही अंग होते हैं कर्ता तथा क्रिया। इन दोनों के बिना वाक्य की रचना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त वाक्य के अन्य अंग विशेषण, क्रियाविशेषण, कारक आदि होते हैं, परंतु इन्हें इच्छानुसार प्रयोग किया जाता है।

कर्ता और क्रिया के अनुसार वाक्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) उद्देश्य (कता)
(ख) विधेय (क्रिया)।
(क) उद्देश्य: वाक्य में जिसके बारे में कुछ कहा या बताया जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं; जैसे सुमन अध्यापिका है। इस वाक्य में ‘सुमन’ उद्देश्य है।

(ख) विधेय: वाक्य में उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाए, उसे विधेय कहते हैं; जैसे-काले-काले बादल गरजते हैं। इस वाक्य में ‘गरजते हैं विधेय है। वाक्य में कर्ता को अलग करके जो कुछ शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है।

Vakya Rachna Class 9 HBSE प्रश्न 3.
रचना की दृष्टि से वाक्य के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन प्रकार होते हैं-
(i) सरल वाक्य,
(ii) संयुक्त वाक्य,
(iii) मिश्र वाक्य।

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प्रश्न 4.
सरल वाक्य किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
जिस वाक्य में एक उद्देश्य तथा एक विधेय हो, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं। इस प्रकार के वाक्य में एक मुख्य क्रिया होती है; जैसे-
पानी बरस रहा है।
मीरा पत्र लिख रही है।
मैं कल दिल्ली गया था।
परिश्रम करने वाले छात्र सदा सफल रहते हैं।
लड़के कक्षा में पढ़ रहे हैं।

प्रश्न 5.
संयुक्त वाक्य किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतंत्र होते हुए भी किसी योजक के द्वारा जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहा जाता है; जैसे-
मैं पढ़ रहा हूँ और तुम खेल रहे हो।
आप चाय लेंगे अथवा आपके लिए ठंडा मँगवाऊँ।
वर्षा हो रही है और धूप निकली हुई है।
मैं बीमार हूँ इसलिए स्कूल नहीं जा सकता।
सत्य बोलो परंतु कटु सत्य मत बोलो।

प्रश्न 6.
मिश्र वाक्य किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहा जाता है; जैसे-
मीनू ने कहा कि वह दिल्ली जा रही है।
जैसे ही मैं स्टेशन पहुँचा, गाड़ी आ गई।
जो मेहनत नहीं करता, वह असफल रहता है।
रुचि ने कहा कि वह जा रही है।
विकास फेल हो गया क्योंकि वह बीमार हो गया था।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित वाक्यों का रचना के आधार पर प्रकार का नाम लिखें।
1. जो व्यक्ति परिश्रम करता है, उसे सफलता मिलती है। (मिश्र वाक्य)
2. तुम बाज़ार गए और वह घर आ गया। (संयुक्त वाक्य)
3. जो जैसा करेगा, वह वैसा भरेगा। (मिश्र वाक्य)
4. जब वर्षा होती है, तो मोर नाचते हैं। (मिश्र वाक्य)
5. शिक्षक कक्षा में आए और उन्होंने छात्र को पीटा। (संयुक्त वाक्य)
6. जो जागता है, वह पाता है। (मिश्र वाक्य)
7. बुढ़िया चीख रही थी क्योंकि वह गिर गई थी। (संयुक्त वाक्य)
8. अनिल चिल्ला रहा था और रो रहा था। (संयुक्त वाक्य)
9. जो व्यक्ति पढ़ाई और खेलकूद में अच्छा होता है, वह जीवन में सफल रहता है। (मिश्र वाक्य)
10. मैं जानता हूँ कि तम क्या चाहते हो? (मिश्र वाक्य)
11. जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। (मिश्र वाक्य)
12. मैं बीमार हूँ अतः स्कूल आने में असमर्थ हूँ। (संयुक्त वाक्य)
13. बादल आए और बरस कर चले गए। (संयुक्त वाक्य)
14. जहाँ कहीं पहले खेत थे, वहाँ अब भवन बन गए हैं। (मिश्र वाक्य)
15. वह मेरे सामने नहीं आता क्योंकि उसने मेरे पैसे वापस लौटाने हैं। (मिश्र वाक्य)
16. सोमवार को परीक्षा है अतः स्कूल जल्दी जाना होगा। (संयुक्त वाक्य)
17. मैंने उसे बहुत समझाया, पर वह फिर भी नहीं माना। (मिश्र वाक्य)
18. जो तोता पिंजरे में है, वह दाल खा रहा है। (मिश्र वाक्य)
19. वह बूढ़ा उठा और लाठी उठाकर चला गया। (संयुक्त वाक्य)
20. ज्यों ही घंटी बजी, छात्र कक्षाओं से बाहर आ गए। (मिश्र वाक्य)
21. आज नकद ले जाइए और कल उधार ले जाइए। (संयुक्त वाक्य)
22. जल्दी चलो अन्यथा गाड़ी निकल जाएगी। (संयुक्त वाक्य)
23. मैं स्कूल जाऊँगा परंतु पैदल नहीं जाऊँगा। (संयुक्त वाक्य)
24. जहाँ तक दृष्टि जाती है, वहाँ पेड़-ही-पेड़ दिखाई देते हैं। (मिश्र वाक्य)
25. अभी मैं स्कूल जाऊँगा और वहीं से बाज़ार चला जाऊँगा। (संयुक्त वाक्य)
26. जब मेरा गीत समाप्त हुआ, ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बज उठीं। (मिश्र वाक्य)
27. दिन-भर मेहनत करने वालों को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए। (मिश्र वाक्य)
28. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत गरीब था। (मिश्र वाक्य)
29. चोर कमरे में चोरी करता रहा और मालिक सोता रहा। (संयुक्त वाक्य)
30. वह घर आया था परंतु उसने कुछ नहीं कहा। (संयुक्त वाक्य)

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प्रश्न 8.
निर्देशानुसार वाक्यों में उचित परिवर्तन करें

1. वह स्कूल जाते ही पढ़ने लग गया। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जैसे ही वह स्कूल गया, पढ़ने लग गया।

2. परिश्रमी छात्र सबको अच्छे लगते हैं। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जो छात्र परिश्रमी होते हैं, वे सबको अच्छे लगते हैं।

3. राष्ट्रगान के शुरू होते ही सब लोग खड़े हो गए। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
राष्ट्रगान शुरू हुआ और सब लोग खड़े हो गए।

4. सुषमा बीमार होने के कारण आज स्कूल नहीं आई। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
सुषमा बीमार है अतः वह आज स्कूल नहीं आई।

5. मेरे बोलने पर भी उसका व्यवहार पूर्ववत् रहा। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
यद्यपि मैं बोलता रहा परंतु उसका व्यवहार पूर्ववत् रहा।

6. रमेश के आते ही मोहन चल दिया। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जैसे ही रमेश आया, मोहन चल दिया।

7. मैं तुम्हारे नए मित्र को जानता हूँ। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जो तुम्हारा नया मित्र है, उसे मैं जानता हूँ।

8. कंडक्टर के सीटी बजाते ही बस चल पड़ी। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
कंडक्टर ने सीटी बजाई और बस चल पड़ी।

9. सबह वाली बस पकड़कर शाम तक घर लौट आओ। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
सुबह वाली बस पकड़ो और शाम तक घर लौट आओ।

10. गाँव जाने पर वह बीमार हो गया। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जब वह गाँव गया, तब वह बीमार हो गया।

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11. सड़क पार कर रहा एक व्यक्ति बस से टकराकर मर गया। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
एक व्यक्ति, जो सड़क पार कर रहा था, बस से टकराकर मर गया।

12. आप खाना खाकर आराम करें। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
आप खाना खाएँ और आराम करें।

13. अस्वस्थ होने के कारण वह आ नहीं सका। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
वह आ नहीं सका क्योंकि वह अस्वस्थ था।

14. अपराधी होने के कारण उसे सज़ा हुई। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
वह अपराधी है इसलिए उसे सज़ा हुई।

15. संन्यासी आशीर्वाद देकर लापता हो गया। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
संन्यासी ने आशीर्वाद दिया और लापता हो गया।

16. परिश्रम करने वाले सफल होंगे। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जो परिश्रम करेंगे, वे सफल होंगे।

17. घर जाने पर वह स्वस्थ हो गया। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जैसे ही वह घर पहुँचा, स्वस्थ हो गया।

18. दिन-रात परिश्रम करने पर वह अपना स्वास्थ्य खो बैठा। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
उसने दिन-रात परिश्रम किया और अपना स्वास्थ्य खो बैठा।

19. अपने पिताजी के स्वास्थ्य के बारे में मुझे बताओ। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
मुझे बताओ कि तुम्हारे पिताजी का स्वास्थ्य कैसा है?

20. मुझे बस में एक दुबला-पतला व्यक्ति दिखाई दिया। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
मैंने बस में एक व्यक्ति देखा, जो दुबला-पतला था।

21. वह नहाकर स्कूल चला गया। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
वह नहाया और स्कूल चला गया।

22. मैं अधिक पके फल नहीं खाता हूँ। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
मैं उन फलों को नहीं खाता, जो अधिक पके होते हैं।

23. वर्षा के बंद होते ही हम बाज़ार चले गए। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
वर्षा बंद हुई और हम बाज़ार चले गए।

24. मैं चाहते हुए भी न आ सका। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
मैं आना चाहता था, लेकिन न आ सका।

25. पुत्र को देखते ही माता गद्गद् हो गई। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
ज्यों ही माता ने पुत्र को देखा, वह गद्गद् हो गई।

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26. मेरा काला घोड़ा तेज़ भागता है। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
मेरा जो घोड़ा काला है, वह तेज़ भागता है।

27. कठोर बनकर भी सहृदय रहो। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
कठोर बनो परंतु सहृदय रहो।

28. मोहित या सोहित में से कोई एक नौकरी करेगा। (संयुक्त वाक्य)
उत्तर:
मोहित नौकरी करेगा अथवा सोहित नौकरी करेगा।

29. पिताजी ने माँ से मंदिर चलने के लिए कहा। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
पिताजी ने माँ से कहा कि वे मंदिर चलें।

30. मेरे स्टेशन पहुंचने से पहले ही गाड़ी निकल चुकी थी। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
जब मैं स्टेशन पहुँचा, गाड़ी निकल चुकी थी।

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Sangya संज्ञा Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Vyakaran संज्ञा

विकारी

जिन शब्दों में लिंग, वचन, कारक, काल, वाच्य आदि के कारण परिवर्तन होता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि विकारी शब्द हैं क्योंकि इनके मूल रूप में लिंग, वचन और कारक के कारण परिवर्तन आ जाता है।

संज्ञा

संज्ञा के विकार Class 9 HBSE Hindi प्रश्न 1.
संज्ञा की परिभाषा देते हुए उसके भेदों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संज्ञा का शाब्दिक अर्थ है-नाम। यह नाम किसी भी वस्तु, व्यक्ति, प्राणी या भाव का हो सकता है। अतः संज्ञा की परिभाषा इस प्रकार से दी जा सकती है-किसी वस्त, स्थान, प्राणी या भाव के नाम का बोध कराने वाले शब्दों को ‘संज्ञा’ कहते हैं; जैसे राम, मोहन, हिमालय, गुलाब, लड़का, मनुष्य, गाय, प्रेम, ऊँचा आदि।

संज्ञा के तीन भेद हैं-
(1) जातिवाचक
(2) व्यक्तिवाचक
(3) भाववाचक।

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Sangya Exercise HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 2.
जातिवाचक संज्ञा की परिभाषा देते हुए उसके कुछ उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जिन शब्दों से किसी जाति के सभी पदार्थों या प्राणियों का बोध हो, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे पुस्तक, नदी, पर्वत, गाँव, प्रदेश, सेना आदि जातिवाचक संज्ञाएँ हैं।
(i) घोड़ा, गाय, शेर, कोयल, मोर, बैल आदि पशु-पक्षियों के नाम हैं।
(ii) आम, केला, कमल, गुलाब आदि फल-फूलों के नाम हैं।
(iii) पर्वत, नदी, पुस्तक, पैन, घड़ी आदि वस्तुओं के नाम हैं।
(iv) शिक्षक, लेखक, चित्रकार, लोहार आदि व्यावसायिक नाम हैं।
(v) नगर, गाँव, चौराहा आदि स्थानवाचक नाम हैं।
(vi) लड़का, लड़की, नर, नारी आदि मनुष्य जाति के नाम हैं।

Sangya In Hindi HBSE 9th Class प्रश्न 3.
व्यक्तिवाचक संज्ञा किसे कहते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जिन शब्दों से किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि के नाम का ज्ञान हो, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे राम, मोहन, भारत, करनाल, हिमालय, यमुना आदि।
(i) रमेश, सीता, मोहन, सुमन आदि व्यक्तियों के नाम हैं।
(ii) भारत, श्रीलंका, करनाल आदि स्थानों के नाम हैं।
(iii) हिमालय, कैलाश आदि पर्वतों के नाम हैं।
(iv) गंगा, यमुना, सरस्वती, हिंद महासागर आदि नदियों और समुद्रों के नाम हैं।
(v) पद्मावत, रामचरितमानस, साकेत, कामायनी आदि पुस्तकों के नाम हैं।

प्रश्न 4.
भाववाचक संज्ञा की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जिन शब्दों से व्यक्ति, वस्तु आदि के धर्म, गुण, भाव, दशा आदि का बोध होता हो, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहा जाता है; जैसे मधुरता, वीरता, बचपन आदि।
(i) मित्रता, सज्जनता, शत्रुता आदि गुण-दोष हैं।
(ii) आनंद, क्रोध, श्रद्धा, भक्ति आदि भाव हैं।
(iii) बचपन, यौवन, बुढ़ापा आदि दशाएँ हैं।

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संज्ञा के अन्य दो भेद

प्रश्न 5.
संज्ञा के द्रव्यवाचक एवं समूहवाचक अन्य दो भेदों की उदाहरण सहित परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
1. द्रव्यवाचक: जिन शब्दों से किसी धातु अथवा द्रव्य का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे सोना, चाँदी, लोहा, दूध, तेल पानी आदि।
2. समूहवाचक: जिन शब्दों से व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि के समूह अथवा समुदाय का ज्ञान हो, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे कक्षा, संघ, गाँव आदि। लेकिन अगर हम गहराई के साथ विचार करें तो पता चलता है कि ये जातिवाचक संज्ञा में ही समाहित हो जाते हैं।

व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग

प्रश्न 6.
व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा के रूप में कब और कैसे प्रयुक्त होती है?
उसर-जब अपने विशेष गुणों या अवगुणों के कारण व्यक्तिवाचक संज्ञा अधिक का बोध कराने लगे तब वह जातिवाचक संज्ञा बन जाती है; जैसे-
देश में आज भी जयचंदों और विभीषणों की कमी नहीं है।
इस वाक्य में जयचंद और विभीषण शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ नहीं हैं। यहाँ जयचंद का अर्थ है ‘देशद्रोही लोग’ और ‘विभीषण’ का अर्थ है ‘घर के भेदी’। अतः ये शब्द जातिवाचक हो गए हैं। कुछ अन्य उदाहरण देखिए-
(क) उसकी बात विश्वास करने योग्य है, वह बिल्कुल भीष्म पितामह है।
(ख) कलियुग में हरिश्चंद्र कहाँ मिलते हैं?

जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग

प्रश्न 7.
जातिवाचक संज्ञा व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में कैसे प्रयोग होती है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जब कोई जातिवाचक संज्ञा व्यक्ति विशेष के लिए प्रयुक्त हो, तब वह जातिवाचक संज्ञा होती हुई भी व्यक्तिवाचक संज्ञा बन जाती है; जैसे
(i) भारत गांधी का देश है।
(ii) नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे।
उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त जातिवाचक संज्ञाएँ ‘गांधी’ और ‘नेहरू’, व्यक्ति विशेष की ओर संकेत कर रही हैं। इसलिए ये जातिवाचक होती हुई भी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ हैं।

टिप्पणियाँ:
1. जब कभी द्रव्यवाचक संज्ञा शब्द बहुवचन के रूप में द्रव्यों का बोध कराता है, तब वह जातिवाचक संज्ञा बन जाता है; जैसे यह फर्नीचर कई प्रकार की लकड़ियों से बना है।
इसी प्रकार, समूहवाचक संज्ञा जब बहुत-सी समूह इकाइयों का बोध कराती है, तब वे बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं; जैसे
(i) दोनों सेनाएँ आपस में बड़े जोरों से लड़ीं।
(ii) इस गाँव में हरिजनों के घर-परिवार रहते हैं।

2. जब कभी भाववाचक संज्ञा शब्द बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं, तब वे जातिवाचक संज्ञा बन जाते हैं; जैसे-
(i) बुराइयों से सदा बचो।
(ii) आपस में उनकी दूरियाँ बढ़ती गईं।

3. कुछ भाववाचक शब्द मूल शब्द होते हैं; जैसे प्रेम, घृणा आदि। अधिकांश भाववाचक शब्द यौगिक होते हैं; जैसे अच्छाई, बुढ़ापा आदि।

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भाववाचक संज्ञाओं की रचना

प्रश्न 8.
भाववाचक संज्ञाएँ किस प्रकार के शब्दों से और कैसे बनती हैं?
उत्तर:
भाववाचक संज्ञाएँ अमूर्त एवं मानसिक संकल्पनाएँ होती हैं। भाववाचक संज्ञाएँ नीचे दिए गए शब्दों से बनती हैं

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भाववाचक संज्ञाओं की रचना

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संज्ञा के विकारी तत्त्व

प्रश्न 1.
‘विकारी तत्त्व’ से क्या अभिप्राय है? संज्ञा के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
संज्ञा में विकार के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं? उनका सोदाहरण विस्तृत उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकारी तत्त्व’ से अभिप्राय है-बदलने वाला अर्थात् जिसमें परिवर्तन के कारण विकार उत्पन्न हो, उसे विकारी कहते हैं; जैसे लड़का संज्ञा शब्द है। यह एकवचन एवं पुंल्लिंग है। विकार के कारण इसके अग्रलिखित रूप बनते हैं

लड़का से लड़की (लिंग के कारण)
लड़का से लड़के (वचन के कारण)
इसी प्रकार-
लड़की से लड़कियाँ (वचन के कारण)
लड़की से लड़का (लिंग के कारण)

वाक्य में स्थिति के अनुसार ही किसी शब्द में परिवर्तन होता है। यही परिवर्तन ही ‘रूपान्तर’ या ‘विकारी तत्त्व’ कहलाता है। अतः स्पष्ट है कि संज्ञा शब्दों में यह विकार लिंग, वचन तथा कारक के कारण होता है। यहाँ हम संज्ञा के विकारी तत्त्वों का अध्ययन करेंगे।

लिंग

प्रश्न 1.
लिंग किसे कहते हैं? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
जिस संज्ञा शब्द से किसी पुरुष जाति या स्त्री जाति का पता चले, उसे लिंग कहते हैं अर्थात् जिन चिह्नों से शब्दों का स्त्रीवाचक या पुरुषवाचक होने का पता चले, उन्हें लिंग कहते हैं; जैसे ‘छात्र’ पुल्लिंग तथा ‘छात्रा’ स्त्रीलिंग है।

प्रश्न 2.
हिंदी में लिंग कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
हिंदी में मुख्यतः दो प्रकार के लिंग माने जाते हैं-
1. पुल्लिंग
2. स्त्रीलिंग।

1. पुल्लिंग: जिन संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध हो, उन्हें पुल्लिंग कहते हैं; जैसे बेटा, हाथी, कुत्ता आदि।
2. स्त्रीलिंग: जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का बोध हो, उन्हें स्त्रीलिंग कहते हैं; जैसे लड़की, रानी, कुतिया, बकरी आदि।

टिप्पणी:
हिंदी में जड़ वस्तुओं के लिंग के लिए समस्या है; जैसे पर्वत, नदी, हवा, दही, घी आदि में स्त्रीलिंग या स्त्री जाति तथा पुल्लिंग या पुरुष जाति जैसी कोई चीज़ नहीं होती किंतु व्याकरणिक दृष्टि से संज्ञा शब्द का स्त्रीलिंग या पुल्लिंग . होना ज़रूरी है। सजीव प्राणियों में नर या मादा लगाकर भी लिंग निर्धारित कर लिया जाता है; यथा नर भेड़िया या मादा भेड़िया आदि।

हिंदी में कुछ ऐसे भी शब्द हैं जिनमें लिंग-परिवर्तन नहीं होता; यथा प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, डॉक्टर, प्रिंसिपल, मैनेजर आदि। इन पदों पर पुरुष भी हो सकते हैं तथा नारी भी। ऐसे पदवाची शब्द उभयलिंगी शब्द कहलाते हैं।

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लिंग की पहचान की महत्वपूर्ण बातें

(क) पुंल्लिंग की पहचान
(1) जिन शब्दों के अन्त में ‘अ’ हो वे प्रायः पुंल्लिंग होते हैं; जैसे खेल, संसार, मिलाप, नाच आदि।
(2) जिन शब्दों के अन्त में ‘आ’ हो वे शब्द पुंल्लिंग होते हैं; जैसे लड़का, मोटा, छोटा, कपड़ा आदि।
(3) जिन शब्दों के अंत में पा, पन, न आदि हो, वे शब्द पुंल्लिंग होते हैं; जैसे बुढ़ापा, बचपन, अध्ययन, दमन आदि।
(4) पहाड़ों, समुद्रों, देशों के नाम पुंल्लिंग होते हैं; जैसे भारतवर्ष, पाकिस्तान, अमेरिका, सतपुड़ा, हिमालय, हिन्द महासागर आदि।
(5) ग्रहों के नाम (पृथ्वी को छोड़कर) पुंल्लिंग होते हैं; जैसे सूर्य, शनि, मंगल, चन्द्र आदि।
(6) पेड़ों के नाम पुल्लिंग होते हैं; जैसे पीपल, वट, साल, आम आदि।
(7) शरीर के कुछ अंगों के नाम भी पुंल्लिंग होते हैं; जैसे सिर, गला, कान, नाक, हाथ, पैर आदि।
(8) कुछ भारी और मोटी वस्तुएँ पुंल्लिंग होती हैं; जैसे पत्थर, टीला, खेत, रस्सा, लक्कड़ आदि।
(9) दिनों और महीनों के नाम पुंल्लिंग होते हैं; जैसे रविवार, सोमवार, मंगलवार आदि । चैत्र, बैशाख, श्रावन, भादो, आश्विन, कार्तिक, माघ, फाल्गुन आदि।

(ख) स्त्रीलिंग की पहचान-
(1) हिन्दी की ईकारान्त सभी संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं, जैसे नाली, खेती, रोटी, मोटी, टोपी, नदी, (अपवाद-पानी एवं घी) आदि।
(2) भाषाओं के नाम प्रायः स्त्रीलिंग में गिने जाते हैं; जैसे जापानी, हिन्दी, गुजराती, बांग्ला, अंग्रेज़ी आदि।
(3) तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आदि।
(4) नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे भरणी, कृतिका, रोहिणी आदि।
(5) शरीर के कुछ अंगों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे गर्दन, जिह्वा, आँख, छाती, अँगुली, टाँग, नाक आदि।
(6) आहारों के नाम अधिकतर स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे रोटी, दाल, कचौड़ी, खिचड़ी, खीर, कढ़ी, सब्जी, चटनी आदि।
(7) जिन शब्दों के अंत में ट, वट, हट, इया, ता आदि का प्रयोग हो वे सभी स्त्रीलिंग में गिने जाते हैं; जैसे लिखावट, आहट, सजावट, चिड़िया, डिबिया, बछिया, मिठास आदि।

(ग) उभयलिंगी शब्द-
जिन संज्ञा शब्दों का प्रयोग पुंल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों के लिए किया जाता है, उन्हें उभयलिंग कहते हैं। इनमें अधिकांश शब्द पदवाची हैं। इनमें लिंग परिवर्तन नहीं होता। जैसे डॉक्टर, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति, मन्त्री, प्रिंसिपल, मैनेजर आदि।

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प्रश्न 2.
हिन्दी के प्रमुख स्त्रीलिंग प्रत्ययों के नाम उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
निम्नलिखित प्रत्ययों के प्रयोग से संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग में परिवर्तित हो जाता है। यथा-
‘आ’ प्रत्यय के प्रयोग से-लता, विद्या, ममता, कृपा, दया आदि शब्द बनते हैं जो स्त्रीलिंग हैं।
‘इ’ प्रत्यय के प्रयोग से-रीति, तिथि, हानि, भक्ति, शक्ति आदि।
(रवि, कवि, व्यक्ति आदि अपवाद हैं।)
‘ई’ प्रत्यय के प्रयोग से ताई, नानी, नदी, टोपी आदि।
‘आई’ प्रत्यय के प्रयोग से लड़ाई, चढ़ाई, मिठाई आदि।
‘इया’ प्रत्यय के प्रयोग से-बुढ़िया, खटिया, बछिया आदि।
‘आवट’ प्रत्यय के प्रयोग से-लिखावट, सजावट, बनावट आदि।
‘आहट’ प्रत्यय के प्रयोग से-चिल्लाहट, घबराहट आदि।
‘ता’ प्रत्यय के प्रयोग से-सुन्दरता, मूर्खता, दुर्बलता आदि।

प्रश्न 3.
पुंल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने में प्रमुख नियमों का उदाहरण सहित उल्लेख करें।
(क) अकारान्त तत्सम शब्दों के ‘अ’ को ‘आ’ कर देने से-

पुल्लिंग – स्त्रीलिंग
सुत – सुता
प्रिय – प्रिया
छात्र – छात्रा
शिष्य – शिष्या
पूज्य – पूज्या
बाल – बाला
तनुज – तनुजा
कांत – कांता
आचार्य – आचार्या
मूर्ख – मूर्खा

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(ख) अकारांत शब्दों के अंतिम ‘अ’ या ‘आ’ को ‘ई’ कर देने से-

देव – देवी
मृग – मृगी
पहाड़ – पहाड़ी
कबूतर – कबूतरी
दास – दासी
सुअर – सुअरी
पुत्र – पुत्री
चाचा – चाची
साला – साली
लड़का – लड़की
घोड़ा – घोड़ी
मामा – मामी
बेटा – बेटी
गधा – गधी
भतीजा – भतीजी
बंदर – बंदरी
बकरा – बकरी
भाँजा – भाँजी

(ग) परिवर्तन के बिना शब्दों के अंत में ‘नी’ प्रत्यय लगाकर

सिंह – सिंहनी
भील – भीलनी
ऊँट – ऊँटनी
मज़दूर – मज़दूरनी
जाट – जाटनी
सियार – सियारनी
शेर – शेरनी
मोर – मोरनी
राजपूत – राजपूतनी

(घ) परिवर्तन के बिना शब्दों के अंत में ‘आनी’ प्रत्यय जोड़ने से

देवर – देवरानी
भव – भवानी
नौकर – नौकरानी
सेठ – सेठानी
मेहतर – मेहतरानी
चौधरी – चौधरानी
रुद्र – रुद्राणी
क्षत्रिय – क्षत्राणी
इन्द्र – इन्द्राणी
जेठ – जेठानी

(ङ) अंतिम स्वर में कुछ परिवर्तन करके ‘इन’ प्रत्यय लगाने से

नाइ – नाइन
कुम्हार – कुम्हारिन
तेलि – तेलिन
पड़ोसी – पड़ोसिन
ठठेरा – ठठेरिन
धोबी – धोबिन
दर्जी – दर्जिन
माली – मालिन
भक्त – भक्तिन
जुलाहा – जुलाहिन
ग्वाला – ग्वालिन
कहार – कहारिन
चमार – चमारिन
भंगी – भंगिन
नाती – नातिन
दूल्हा – दूल्हिन
पापी – पापिन

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(च) अंतिम स्वर के स्थान पर ‘आइन’ प्रत्यय लगाकर तथा अन्य स्वरों में कुछ परिवर्तन करके-

लाला – ललाइन
ठाकुर – ठकुराइन
चौबे – चौबाइन
गुरु – गुरुआइन
मिसिर – मिसराइन
बाबू – बबुआइन
चौधरी – चौधराइन

(छ) अंतिम ‘अ’ या ‘आ’ को ‘इया’ बनाकर-

बंदर – बंदरिया
बूढ़ा – बुढ़िया
कुत्ता – कुतिया
डिब्बा – डिबिया

(ज) शब्दों के अंतिम ‘अक’ को ‘इका’ बनाकर-

पाठक – पाठिका
लेखक – लेखिका
गायक – गायिका
बालक – बालिका
अध्यापक – अध्यापिका
उपदेशक – उपदेशिका
सेवक – सेविका
पाचक – पाचिका
निरीक्षक – निरीक्षिका
नायक – नायिका

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(झ) अंतिम ‘वान’ और ‘मान’ के स्थान पर ‘अती’ लगाकर-

गुणवान – गुणवती
श्रीमान – श्रीमती
बुद्धिमान – बुद्धिमती
भाग्यवान – भाग्यवती
भगवान – भगवती
पुत्रवान – पुत्रवती
बलवान – बलवती
ज्ञानवान – ज्ञानवती

(ञ) कुछ पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग में विशेष रूप बन जाते हैं

पुरुष – स्त्री
पति – माता
पिता – पत्नी
बैल – गाय
युवक – युवती
राजा – रानी
वर – वधू
विद्वान – विदुषी
सम्राट – साम्राज्ञी
भाई – बहिन
कवि – कवयित्री
अभिनेता – अभिनेत्री
ससुर – सास
साधु – साध्वी
कर्ता – कत्री
विधाता – विधात्री
वीर – वीरांगना
नर – मादा

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वचन

प्रश्न 11.
वचन किसे कहते हैं? हिंदी में वचन कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
संज्ञा अथवा अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप से संख्या का बोध हो, उसे वचन कहते हैं, जैसे लड़का, पुस्तकें आदि। हिंदी में वचन दो प्रकार के माने गए हैं-
1. एकवचन
2. बहुवचन।
1. एकवचन: शब्द के जिस रूप से एक वस्तु या एक व्यक्ति का बोध हो, उसे एकवचन कहते हैं; जैसे लड़का, घोड़ा, नदी, वृक्ष, पक्षी आदि।
2. बहुवचन: शब्द के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं या व्यक्तियों का बोध हो, उसे बहुवचन कहते हैं; जैसे लड़के, घोड़े, नदियाँ, स्त्रियाँ आदि।

प्रश्न 2.
हिंदी भाषा में वचन-प्रयोग संबंधी सामान्य नियमों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिंदी भाषा में एक वस्तु या व्यक्ति के लिए एकवचन तथा एक से अधिक वस्तुओं और व्यक्तियों के लिए बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। हिंदी में इनके अतिरिक्त कुछ और भी नियम हैं जो वचन प्रयोग में प्रयुक्त होते हैं; यथा
(क) सम्मान व्यक्त करने के लिए एकवचन को बहुवचन में प्रयुक्त किया जाता है जैसे
(i) पिता जी दिल्ली गए हैं।
(ii) गुरु जी कक्षा में हैं।
(iii) मंत्री जी मंच पर पधार चुके हैं।
(iv) श्रीकृष्ण हिंदुओं के अवतार हैं। यहाँ एकवचन का प्रयोग बहुवचन में हुआ है। इसे आदरार्थक बहुवचन कहते हैं।

(ख) हिंदी में हस्ताक्षर, प्राण, दर्शन, होश आदि का बहुवचन में प्रयोग होता है; जैसे
(i) तुम्हारे हस्ताक्षर बहुत सुंदर हैं।
(ii) तुम्हारे प्राण बच गए, यही गनीमत है।
(iii) आपके तो दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं।
(iv) आज का समाचार सुनकर उसके होश उड़ गए।

(ग) कुछ एकवचन शब्द गण, लोग, जन, समूह, वृंद आदि हिंदी शब्दों के साथ जुड़कर बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं; यथा-
(i) आज मज़दूर लोग हड़ताल पर हैं।
(ii) अध्यापक-वृंद परीक्षाओं में व्यस्त हैं।
(iii) अपार जन-समूह दिखाई दे रहे हैं।
(iv) कृषक-वृंद हल चला रहे हैं।
(v) छात्रगण आजकल अनुशासनहीनता पर उतर आए हैं।

(घ) जाति, सेना, दल शब्दों के साथ प्रयुक्त होने से एकवचन का बहुवचन में प्रयोग-
(i) नारी जाति प्रगति-पथ पर अग्रसर है।
(ii) छात्र-सेना हड़ताल पर है।
(iii) सेवा-दल रोगियों की सेवा कर रहा है।

(ङ) व्यक्तिवाचक एवं भाववाचक संज्ञाएँ सदा एकवचन में रहती हैं; जैसे
(i) राम खेल रहा है।
(ii) सत्य की सदा जीत होती है।
(iii) उसने झूठ नहीं बोला।
(iv) प्रेम सदा अमर रहता है।

(च) कुछ शब्द सदा एकवचन में ही रहते हैं। जैसे-जनता, वर्षा, आग; जैसे
(i) आग कितनी तेज़ जल रही है।
(ii) जनता सदा पिसती रहती है।
(iii) कितनी अच्छी वर्षा हो रही है।

(छ) बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग-कभी-कभी जातिवाचक संज्ञा अपनी सारी जाति या समूह की बोधक होती हुई भी अधिक संख्या, परिमाण या गुण को सूचित करने के लिए एकवचन में प्रयुक्त होती है; जैसे
(i) आज का मानव स्वार्थी हो गया है।
(ii) कुत्ता स्वामिभक्त होता है।
(iii) मथुरा का पेड़ा विश्व भर में प्रसिद्ध है।
(iv) उसने जुए में बहुत रुपया लुटाया है।
(v) बाज़ार में अंगूर सस्ता बिक रहा है।

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वचन बदलने के नियम

1. अकारांत शब्दों के अंतिम ‘आ’ को ए कर देने से बहुवचन-
एकवचन – बहुवचन
कपड़ा – कपड़े
बेटा – बेटे
बच्चा – बच्चे
लोटा – लोटे
घोड़ा – घोड़े
पंखा – पंखे
लड़का – लड़के
घड़ा – घड़े

अपवाद: नेता, राजा, पिता, योद्धा, मामा, नाना, चाचा, सूरमा आदि शब्द इस नियम के अपवाद हैं।

2. आकारांत तथा अकारांत शब्दों के अंतिम ‘अ’, ‘आ’ को ‘एं’ कर देने से बहुवचन-
अकारांत शब्द-
पुस्तक – पुस्तकें
नहर – नहरें
बहिन – बहिनें
आँख – आँखें
रात – रातें
दीवार – दीवारें
गाय – गायें
कलम – कलमें
सड़क – सड़कें
बोतल – बोतलें
किताब – किताबें

आकारांत शब्द-
कथा – कथाएँ
माला – मालाएँ
अध्यापिका – अध्यापिकाएँ
गाथा – गाथाएँ
विद्या – विद्याएँ
भावना – भावनाएँ
माता – माताएँ
आत्मा – आत्माएँ
लता – लताएँ
कन्या – कन्याएँ
झील – झीलें

3. इकारांत तथा ईकारांत शब्दों के अंत में ‘याँ’ जोड़ने से बहुवचन। इस अवस्था में ई का इ भी हो जाता है।

घोड़ी – घोड़ियाँ
शक्ति – शक्तियाँ
समिति – समितियाँ
रोटी – रोटियाँ
निधि – निधियाँ
लड़की – लड़कियाँ
राशि – राशियाँ
बेटी – बेटियाँ
पंक्ति – पंक्तियाँ
नदी – नदियाँ
रात्रि – रात्रियाँ
लिपि – लिपियाँ
रीति – रीतियाँ
स्त्री – स्त्रियाँ

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4. उकारांत, ऊकारांत, एकारांत, ओकारांत शब्दों में एँ जोड़कर बहुवचन। ‘ऊ’ का ‘उ’ भी हो जाता है।

धेनु – धेनुएँ
गौ – गौएँ
धातु – धातुएँ
वधू – वधुएँ
बहु – बहुएँ
वस्तु – वस्तुएँ
ऋतु – ऋतुएँ

5. ‘या’ अथवा ‘इया’ से समाप्त होने वाले शब्दों में केवल अनुस्वार जोड़कर बहुवचन बनाना-

बिटिया – बिटियाँ
चिड़िया – चिड़ियाँ
चुहिया – चुहियाँ
बुढ़िया – बुढ़ियाँ
गुड़िया – गुड़ियाँ
कुतिया – कुतियाँ
बछिया – बछियाँ
डिबिया – डिबियाँ

6. ‘अ’ तथा ‘आ’ से समाप्त होने वाले शब्दों में अंतिम ‘अ’ या ‘आ’ के स्थान पर ओं लगाकर बहुवचन बनाना-

घर से – घरों से
झील पर – झीलों पर
घोड़े पर – घोड़ों पर
माता की – माताओं की
बंदर का – बंदरों का
खरबूजा – खरबूजों

7. उकारांत या ऊकारांत शब्दों के अंत में ‘ओं’ प्रत्यय लगाकर बहुवचन बनाना। ऐसे शब्दों में अंतिम ‘ऊ’ को ‘उ’ हो जाता है।

ऋतु – ऋतुओं
बहू – बहुओं
धातु – धातुओं
वधू – वधुओं
वस्तु – वस्तुओं
चाकू – चाकुओं
धेनू – धेनुओं
डाकू – डाकुओं

8. इकारांत तथा ईकारांत शब्दों के संबोधन बहुवचन में ‘यो’ प्रत्यय लगाकर बहुवचन बनाना। प्रत्यय पूर्व स्वर दीर्घ का हस्व हो जाता है।

लड़की! – लड़कियो!
मुनि! – मुनियो!
भाई! – भाइयो!
सिपाही! – सिपाहियो!

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(ग) कारक

प्रश्न 1.
‘कारक’ का अर्थ बताते हुए उसकी सोदाहरण परिभाषा भी लिखिए।
उत्तर:
“कारक’ शब्द का अर्थ है-क्रिया को करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी करने में किसी-न-किसी भूमिका को निभाने वाला।

परिभाषा:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसके संबंध का वाक्य के दूसरे शब्दों से पता चले, उसको कारक कहते हैं। यह संबंध-ज्ञान कभी तो पृथक शब्द के रूप में या चिहनों के रूप में होता है तथा कभी यह मूल शब्द में घुला-मिला रहता है। कभी मूल शब्द में केवल कुछ विकार हो जाता है तथा परसर्ग के रूप में भी जुड़ा रहता है।

कारकों का रूप प्रकट करने के लिए उनके साथ जो शब्द-चिह्न लगे रहते हैं, उन्हें विभक्ति कहते हैं। इन कारक-चिह्नों को परसर्ग भी कहते हैं।
राम ने पत्र लिखा।
रमेश ने कलम से पत्र लिखा।
मोहन ने पुस्तक को पढ़ा।
इन सब वाक्यों में ‘ने’ कर्त्ता कारक चिह्न है, ‘से’ करण कारक है और ‘को’ कर्म कारक है।

प्रश्न 2.
हिंदी कारकों के कितने भेद होते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिंदी में कारकों के आठ भेद माने जाते हैं
(i) कर्ता – क्रिया को करने वाला।
(ii) कर्म – जिस पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े।
(iii) करण – जिस साधन से क्रिया संपन्न हो।
(iv) संप्रदान – जिसके लिए क्रिया की जाए।
(v) अपादन – जिससे अलगाव हो।
(vi) अधिकरण – क्रिया के संचालन का आधार।
(vii) संबंध – क्रिया का अन्य पदों से संबंध सूचित करने वाला।
(viii) संबोधन – जिससे संज्ञा को पुकारा जाए।

प्रश्न 3.
हिंदी में प्रयुक्त होने वाले कारकों के चिह्नों या विभक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिंदी में आठ कारक हैं। इनके नाम और चिह्न निम्नलिखित प्रकार से हैं
कारक – विभक्ति चिहन या परसर्ग
1. कर्ता – ने अथवा कुछ नहीं
2. कर्म – को अथवा कुछ नहीं
3. करण – से, के द्वारा, के साथ (साधन)
4. संप्रदान – को, के लिए
5. अपादान – से पार्थक्य
6. संबंध – का, के, की (रा, रे, री या ना, ने, नी)
7. अधिकरण – में, पर
8. संबोधन – हे, रे, अरे, री, अरी, ओ (संबोधन शब्द से पूर्व जुड़ता है)

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

प्रश्न 4.
हिंदी के सभी कारकों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. कर्ता कारक:
क्रिया करने वाले को कर्ता कारक कहते हैं। इसका परसर्ग ‘ने’ है। इसका विभक्ति चिह्न ‘ने’ होता है। इस विभक्ति चिह्न का प्रयोग केषल सकर्मक क्रिया में भूतकाल में होता है; जैसे-

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2. कर्म कारक:
क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ होती है। कभी-कभी विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
इन पुस्तकों को उठा लो।
राम को कहो।
रवि पुस्तक पढ़ता है।
इन वाक्यों में ‘पुस्तकों को’ ‘राम को’ तथा ‘पुस्तक’ कर्म कारक के प्रयोग हैं। द्विकर्मक वाक्यों में मुख्य और गौण दो कर्म होते हैं। मुख्य कर्म क्रिया के समीप रहता है। उसमें विभक्ति नहीं लगती; यथा-शिक्षक ने विद्यार्थी को पाठ पढ़ाया।
यहाँ पाठ मुख्य कर्म है और विद्यार्थी गौण कर्म।

3. करण कारक:
जिस शब्द रूप की सहायता से क्रिया का व्यापार होता है, उसे करण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न हैं-‘से’, ‘द्वारा’, ‘के द्वारा’, ‘के साथ’; यथा-
राम ने रावण को बाण से मारा।
मुझे पत्र द्वारा सूचित करना।
मज़दूर ने गुड़ के साथ रोटी खाई।
बच्चों ने पैंसिल से चित्र बनाया।
शिकारी ने बंदूक से शेर को मारा।

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4. संप्रदान कारक:
जिसके लिए क्रिया की जाती है, संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को संप्रदान कारक कहा जाता है; जैसे राजा भिखारी को दान देता है। यहाँ भिखारी के लिए दान दिया जाता है, इसलिए यहाँ ‘भिखारी’ संप्रदान कारक है। इसके विभक्ति चिह्न हैं-‘के लिए’, ‘को’ या ‘के वास्ते’ आदि। अन्य उदाहरण-
मैंने आप के लिए भोजन छोड़ा।
पिता ने पुत्र को पुस्तक दी।
वह अपने भाई के लिए दवाई साया।
सैनिक देश की रक्षा के वास्ते सीमा पर डटे हुए हैं।

5. अपादान कारक:
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु तथा व्यक्ति के दूसरी वस्तु तथा व्यक्ति से पृथक होने, डरने, सीखने, लजाने अथवा तलना करने का भाव हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसमें ‘से’ विभक्ति चिहन का प्रयोग होता है, यथा
वृक्षों से पत्ते गिरते हैं।
में घर से आया हूँ।
गंगा हिमालय से निकलती है।

6. संबंध कारक:
शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति या पदार्थ से संबंध प्रकट होता है, उसे संबंध कारक कहते हैं। ‘का’, ‘के’, ‘की’ इसके विभक्ति चिहून हैं। संज्ञा सर्वनाम पुल्लिंग के साथ ‘का’, स्त्रीलिंग के साथ ‘की’ तथा बहुवचन के साथ ‘के’ परसर्ग का प्रयोग होता है; यथा
शीला सीता की बहिन है।
राम के दो भाई हैं।
आपकी पुस्तक मेरे पास है।

7. अधिकरण कारक:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते है। जैसे रुपया मेरे हाथ में है। बच्चा छत पर है। यहाँ हाथ में और छत पर’ अधिकरण कारक हैं। अतः ‘में’, ‘पर’ तथा ‘के ऊपर’ इसकी विभक्तियों हैं; यथा
पानी में मगरमच्छ रहता है।
पुस्तक मेज़ पर रखी है।
छत के ऊपर गेंद पड़ी है।
अनेक बार ‘के मध्य’, ‘के बीच’, ‘के भीतर’ आदि का भी प्रयोग होता है; जैसे-
घर के भीतर चलो।।
इस डिबिया के अंदर कितनी गोलियों हैं?

कभी-कभी विभक्ति रहित अधिकरण का भी प्रयोग होता है; जैसे-
तुम्हारे घर क्या होगा?
इस जगह पूर्ण शांति है।

8. संबोधन कारक: संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारा जाए, उसे संबोधन कारक कहते हैं। इसमें शब्द से पूर्व है, अरे, ओ, अजी आदि का प्रयोग होता है; जैसे-
हे राम! अब क्या करूँ।
अरे पुत्र! यह तुमने क्या कर दिया?
अजी! सुनते हो।

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प्रश्न 5.
कौन-कौन-से कारक बिना चिह्न के प्रयुक्त होते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
हिन्दी में कर्ता, कर्म और अधिकरण ऐसे कारक हैं जो विभक्ति चिह्नों के बिना भी प्रयुक्त हो सकते हैं; जैसेकृष्ण खेलता है। कर्ता कारक मोहन पत्र लिखता है। कर्म कारक इस जगह महात्मा जी रहते थे।

उपर्युक्त वाक्यों में कारक चिह्नों (ने, को तथा पर) का प्रयोग नहीं हुआ है और ये वाक्य व्याकरण की दृष्टि से ठीक हैं।

प्रश्न 6.
अपादान कारक का प्रयोग किन-किन स्थितियों में होता है ?
उत्तर:
अपादान कारक का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है
1. अलग होने के अर्थ में – गंगा हिमालय से निकलती है।
2. डरने के अर्थ में – बकरी शेर से डरती है।
3. सीखने के अर्थ में – छात्र अध्यापक से पढ़ते हैं।
4. लजाने के अर्थ में – विद्यार्थी अध्यापक से शरमा रहा था।
5. तुलना के अर्थ में – राम श्याम से चालाक है।
6. दूरी के अर्थ में – मेरा स्कूल नगर से दूर है।
7. आरम्भ करने के अर्थ में – मैं पिछले मास से काम पर आ रहा हूँ।
8. बचाने के अर्थ में – रोहित ने बालक को डूबने से बचाया।
9. मांगने के अर्थ में – भिखारी ने राजा से भिक्षा माँगी।

प्रश्न 7.
कर्म और सम्प्रदान कारक में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
जिस वाक्य में क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं, इसका विभक्ति चिहन ‘को’ होता है; जैसे राम ने रावण को मारा था, किन्तु कभी-कभी कारक चिह्न नहीं भी लगता; जैसे मोहन पुस्तक पढ़ता है, जबकि सम्प्रदान कारक में भी ‘को’ विभक्ति चिह्न होता है; जैसे राजा ने भिखारी को दान दिया। सम्प्रदान में ‘को’ विभक्ति का प्रयोग केवल दान देने की क्रिया में होता है, अन्यथा वह कर्म कारक ही होगा; जैसे
(1) भिखारी को भोजन दे दो।
(2) भिखारी को हटा दो। पहले वाक्य में दान देने का भाव है, जबकि दूसरे वाक्य में दान देने का भाव नहीं है। इसलिए कर्म कारक है।

प्रश्न 8.
करण और अपादान कारक में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
करण और अपादान दोनों कारकों में ‘से’ परसर्ग का प्रयोग होता है। इसीलिए दोनों के अन्तर का प्रश्न उत्पन्न होता है। जहाँ ‘से’ परसर्ग अलग होने का भाव प्रकट करे वहाँ अपादान कारक होगा और जहाँ ‘से’ परसर्ग साधन के अर्थ में आता है, वहाँ करण कारक होगा; जैसे-
अपादान-
वृक्षों से पत्ते गिरते हैं।
लड़के स्कूल से आए हैं।

करण कारक-
मोहन रिक्शा से आया है।
पेड़ों से हमें लकड़ी मिलती है।

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प्रश्न 9.
अधिकरण कारक का लक्षण बताते हुए इसमें प्रयुक्त होने वाली विभक्तियों का प्रयोग उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार (स्थान, समय) का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं; जैसे रुपया मेरे हाथ में है। बच्चा छत पर है। यहाँ ‘हाथ में’ और ‘छत पर’ अधिकरण कारक हैं। अतः ‘में’, ‘पर’, तथा ‘के ऊपर’ इसकी विभक्तियाँ हैं; जैसे-
पानी में मगरमच्छ रहता है।
पुस्तक मेज पर रखी है।
छत के ऊपर गेंद पड़ी है।

अनेक बार ‘के मध्य’, ‘के बीच’, ‘के भीतर’ आदि का भी प्रयोग होता है; जैसे-
घर के भीतर चलो।
इस डिबिया के अन्दर कितनी गोलियाँ हैं।

कभी-कभी विभक्ति रहित अधिकरण का भी प्रयोग होता है; जैसे-
तुम्हारे घर क्या होगा ?
इस जगह पूर्ण शान्ति है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यों में से कारक की पहचान करके उनका नाम लिखें-
(क) कपड़े अलमारी के अन्दर रखे हैं।
(ख) मोहन! यार बात तो सुन।
(ग) राम ने बाण से रावण को मारा।
(घ) राम ने रोटी खाई।
(ङ) आज उसे घर जाने दो
(च) हाँ, पिता जी घर पर ही हैं।
(छ) मैं उसे अपने हाथों से सजा दूंगा।
(ज) भिखारी को आटा दे दो।
(झ) बच्चे को भगा दो।
(ञ) मैंने आप से कल ही कह दिया था।
उत्तर:
(क) के अन्दर अधिकरण कारक है।
(ख) मोहन! सम्बोधन कारक है।
(ग) बाण से करण कारक है।
(घ) राम ने कर्ता कारक है।
(ङ) घर (को) कर्म कारक है।
(च) घर पर अधिकरण कारक है।
(छ) हाथों से करण कारक है।
(ज) भिखारी को सम्प्रदान कारक है।
(झ) बच्चे को कर्म कारक है।
(ञ) आप से अपादान कारक है।

कवि अपनी लेखनी से किनकी जय बोलने के लिए कह रहा है और क्यों? - kavi apanee lekhanee se kinakee jay bolane ke lie kah raha hai aur kyon?

प्रश्न 11.
निम्नलिखित वाक्यों में से कारकों को छाँटकर उनके नाम लिखिए-
(क) मोहन चाकू से फल काट कर खा रहा है।
(ख) मोहन ने सोहन को अपनी पुस्तक दे दी है।
(ग) रमेश को स्कूल जाना है।
(घ) वह इलाज के लिए दिल्ली आ रहा है।
(ङ) गंगा हिमालय से निकलती है।
(च) मैं कलम से पत्र लिखूगा।
(छ) वह दुकान पर नहीं है।
(ज) वह कल घर पर था।
(झ) परीक्षा मार्च में होगी।
(ञ) मैं शाम को आऊँगा।
उत्तर:
(क) मोहन (कर्ता), फल (कम) चाकू से (करण)।
(ख) मोहन ने (कर्ता) सोहन को (कर्म) पुस्तक (कर्म)।
(ग) रमेश को (कर्ता) स्कूल (अधिकरण)।
(घ) वह (कत्ता) इलाज के लिए (सम्प्रदान) दिल्ली (अधिकरण)।
(ङ) गंगा (कर्ता) हिमालय से (अपादान)।
(च) मैं (कत्ता) कलम से (करण) पत्र (कम)।
(छ) वह (कर्ता) दुकान पर (अधिकरण)।
(ज) वह (कर्ता) घर पर (अधिकरण)
(झ) परीक्षा (कम) मार्च में (अधिकरण)।
(ञ) मैं (कत्ता) शाम को (अधिकरण)।

कवि अपनी लेखनी से किसकी जय बोलने के लिए कह रहा है?

प्रश्न 1: कवि अपनी लेखनी से किसकी जयं बोलने के लिए कह रहा है? उत्तर: देश के शहीदों की।

कलम आज उनकी जय बोल कविता में कवि किसकी जय बोलने के लिए कह रहा है?

कलम आज उनकी जय बोल कविता के माध्यम से कवि कहता है हे कलम आज उन वीर शहीदों की विजय का गुणगान कर, उनके प्रशंसां के गीत लिख, जिन सपूतों ने अपना सब कुछ बलिदान करके देश में क्रान्ति की भावना जाग्रत् की है।

कभी जल जल कर बुझ गए थे क्या कहना चाहता है?

Answer. Explanation: 'जल-जलकर बुझ गए' से तात्पर्य है प्राण न्यौछावर कर दिए।