पदclass 9th hindi notes Show वर्ग – 9 विषय – हिंदी पाठ 1 – पद पद रैदास नाम से विख्यात संत कवि रविदास का जन्म बनारस में सन् 1388 में और निर्वाण बनारस में ही सन् 1518 में हुआ , ऐसा माना जाता है । रैदास रामानन्द की संत परंपरा में दीक्षित हुए । इनका मुख्य पेशा मोची का काम था । रैदास के पद गुरु ग्रंथ साहब और संत वाणी में संकलित है कविता का भावार्थ प्रथम पद – ‘ प्रभुजी तुम चंदन हम पानी ‘ में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे तुलना करता है । वह कहता है – हे प्रभुजी तुम चंदन के समान शीतलता प्रदान करने वाले , चंदन के सुगंध के समान हर जगह रहनेवाले हो और मैं पानी हूँ । जिस प्रकार चंदन पानी के बिना अपने रूप में नहीं आता उसी प्रकार में तुममें समाहित हूँ । तुम वन के घन हो और मैं वन का मोर हूँ । जैसे चकोर चंद्रमा को देखता रहता है उसी प्रकार में भी तुम्हें निहारता रहता हूँ । जिस प्रकार बाती के बिना दीपक का अस्तित्व नहीं होता । उसी प्रकार मेरा अस्तित्व भी तुम्हारे होने को लेकर ही है । जिस प्रकार ज्योति सारी रात प्रकाशित होती रहती है उसी प्रकार मेरे अंतस को प्रकाशित कीजिए । तुम यदि मोती हो तो मैं धागा हूँ । जिस प्रकार सोने को शुद्ध करने के लिए सुहागा को जरूरत होती है , यदि वह मिल जाती है तो सोना शुद्ध हो जाता है उसी प्रकार मैं तुमसे मिलने को चाहता हूँ , जिससे मेरा शुद्धीकरण हो जाए । तुम हमारे स्वामी हो और मैं तुम्हारा दास हूँ । द्वितीय पद – कवि की नजर में ईश्वर की आराधना में प्रयुक्त फूल – फल अनुपम नहीं लागते हैं । उसे जूठे और गंदले लगते हैं । इसीलिए वह कहता है – राम में पूजा कहाँ चढ़ाऊँ । गाय के थान को उसका बछड़ा जूठा कर देती है । पुष्प को भौंरा , जल को मछली बिगाड़ देती है । अतः प्रभु मैं मन – ही – मन तुम्हारी पूजा अर्चना करता हूँ । अब तुम्ही बताओ मेरी क्या गति होगी । कविता के साथ प्रश्न 1. कवि ने भगवान और भक्त की किन – किन चीजों से तुलना की है ? उत्तर– चंदन -पानी प्रश्न 2. कवि अपने ईश्वर को किन – किन नामों से पुकारता है ? उत्तर– कवि अपने ईश्वर को चंदन , घन वन , दीपक , मोती , स्वामी आदि नामों से पुकारता है । प्रश्न 3. ‘ रैदास ‘ ईश्वर की कैसी भक्ति करते हैं ? उत्तर– रैदास ईश्वर को स्वामी और अपने को उनका दास कहते हैं और उनसे तुलना करते हैं कि तुम चंदन के समान हो और मैं पानी के समान हूँ । तुम यदि वन के घन हो तो मैं मोर हूँ । तुम यदि दीपक के समान प्रकाश फैलाने वाले हो तो मैं बाती हूँ । अर्थात् तुम्हारा अस्तित्व मेरे होने को लेकर है । प्रश्न 4. कवि ने ‘ अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ‘ क्यों कहा है ? उत्तर– कवि ने ‘ जीवन की सार्थकता ‘ को लेकर यह कहा है कि तुम्हारा नाम कैसे छु सकता है । प्रभु तुम बाहर कहीं मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्कि उसके अंतस में सदा विद्यमान तुम्हारा नाम कैसे भूल सकता हूँ । रहते हो यही नहीं तुम हर हाल में , हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण सम्पन्न हो । इसीलिए तुम्हारा नाम कैसे बोल सकता हूँ| प्रश्न 5. कविता का केंद्रीय भाव क्या है ? उत्तर– कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है । उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्कि उसकी अंतस में सदा विराजता है । यही नहीं वह हर हाल में , हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण सम्पन्न है । ईश्वर का होना उसके होने को लेकर है । इसीलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है । प्रश्न 6.पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद – सौन्दर्य आ गया है , यथा – पानी – समानी , बोरा – चकोर । इस पद से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखे| उत्तर – धन वर मोरा -चंद चकोरा प्रश्न 7. “ मलयागिरि बेधियो भुअंगा । विष अमृत दोऊ एक संगा । इस पंक्ति का आशय स्पष्ट करें । उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति रैदास ‘ के ‘ राम में पूजा कहाँ चढ़ाऊँ ‘ पद से उद्धृत है । कवि ने कहना चाहा है कि जिस प्रकार मलयागिरि के चंदन को सौंप विंध देता है फिर भी वह जूठा नहीं होता , विष और अमृत दोनों साथ – साथ हो रहते हैं , उसी प्रकार व्यक्ति का पूजा – अर्चना के कर्म कांड में न पड़कर ईश्वर की आराधना करनी चाहिए । क्योंकि ईश्वर की पूजा – अर्चना के लिए चढ़ाए जाने वाले फल – फूल अनूठे नहीं है । ईश्वर की भक्ति मन – ही – मन करनी चाहिए और भीतर ही ईश्वर की सहज स्वरूप छवि बनानी चाहिए । यदि मन सुन्दर हो तो कोई वस्तु बेकार या गंदला नहीं होती है । प्रश्न 8. निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए : ( क ) जाकी अंग – अंग वास समानी । प्रश्न 9. रैदास अपने स्वामी राम की पूजा में कैसी असमर्थता जाहिर करते हैं ? उत्तर– कवि की नजर में ईश्वर की पूजा – अर्चना के लिए चढ़ाए जानेवाले फल – फूल – जल अनूठे नहीं हैं । वे जूठे और गंदले हैं । इसी कारण कवि कहते हैं कि ” राम मैं पूजा कहाँ चढ़ाऊँ ” । चूकि मैं इन सभी वस्तुओं को पूजा में चढ़ाने को अनुपयुक्त समझता हूँ । क्योंकि यदि दूध चढ़ाता हूँ तो गाय का बच्चा उसे पहले ही जूठा देता है । यदि फूल – पत्ती चढ़ाता हूँ तो भंवर उसे पहले ही जूठा देते हैं । इसी कारण कवि अपने स्वामी राम की पूजा में असमर्थता जाहिर करते हैं । प्रश्न 10. कवि अपने मन को चकोरा के मन की भांति क्यों कहते हैं ? उत्तर– कवि की समझ में यह है कि चकोर नामक पक्षी अपनी प्रेमिका को पाने के लिए चंद्रमा को सारी रात निहारता रहता है कि कब सुबह हो और उसका मिलन हो । कवि अपने प्रभु को चकोर की तरह ही देखता है । वह अपने मन को चकोर की भाँति इसलिए कहता है कि कब उसका मिलन प्रभु से हो । प्रश्न 11. रैदास के राम की अवधारणा का परिचय दीजिए । उत्तर– रैदास के राम कहीं बाहर किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्फि सत उसके अंतस में विद्यमान रहते हैं । इस आधार पर रैदास के राम निर्विकार , निर्गुण , निर्विकल्प है । जिस प्रकार लंदन की सुगंध हर जगह पर , हर वस्तु में समायी हुई है उसी प्रकार रैदास के राम हर जगह । प्रश्न 12. पठित पद के आधार पर निर्गुण भक्ति की विशेषताएं बताइए । उत्तर– निर्गुण भक्ति के अनुसार ईश्वर निराकार है । वह हर जगह कण – कण में व्याप्त । प्रस्तुत पद में भी रैदास यही कहते हैं कि जिस प्रकार चंदन का सुगंध हर जगह व्याप्त है , हर वस्तु में समायी हुई है , उसी प्रकार ईश्वर भी हर जगह उपस्थित है । जिस प्रकार दोषक । अस्तित्व उसके बाती को लेकर है उसी प्रकार मेरा अस्तित्व भी तुम्हारे कारण है । जैसे सौन । सुहागा मिलकर एक हो जाते हैं , उसे शुद्ध कर देता है उसी प्रकार हे प्रभु ! मैं भी तुममें मिला तुम्हारा होना चाहता हूँ । तुम उसे शुद्ध कर दो । तुम किसी मंदिर – मस्जिद में नहीं बल्कि हम अंतस में हो । प्रश्न 13. ‘ जाकि जोति बरै दिन राती ‘ को स्पष्ट करें । उत्तर– प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ रैदास ‘ के ‘ अब कैसे छूटी राम रट लागी ‘ पद से उद्धृत हैं । की का अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार देवताओं की प्रसन्नता के लिए जलाया जानेवाला दीपा दिन – रात प्रकाशित होते रहता है उसी प्रकार हे प्रभु ! तुम मेरे अंतस को प्रकाशित करो । प्रश्न 14. भक्त कवि ने अपने आराध्य के समक्ष अपने आपको दीनहीन माना । क्यों ? उत्तर– कवि की दृष्टि में ईश्वर की पूजा – अर्चना के लिए चढ़ाए जाने वाले फल फूल – जत अनूठे नहीं हैं । वे जूठे और गंदले हैं । संसार में जितनी वस्तुएँ हैं वे सभी अनुपम नहीं हैं । चूंकि सारी वस्तुएँ उसी को बनाई हुई हैं । इसीलिए कवि अपने आराध्य के समक्ष अपने को दीनहरे माना है । वह अपने आराध्य को ऐसी वस्तु भेंट करना चाहता है जो स्वच्छ हो परन्तु सम्पूर्ण संसः में कहीं ऐसी वस्तु नहीं दिखाई पड़ी जो ईश्वर को चढ़ाया जा सके । इसलिए कवि पूजा – अर्चर के कर्मकांड में न पड़कर मन – ही – मन ईश्वर की पूजा करता है और कहता है कि हे प्रभु ! तो यह भी नहीं जानता कि तेरी पूजा अर्चना कैसे की जाती है और मेरी गति क्या होगी । दीन – हीन हूँ । प्रभु तुम्हीं मुझे कोई मार्ग दिखलाओ । भाषा की बात प्रश्न 1. पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं । ऐसे शब्दों को छांटकर लिखिए| उत्तर– यथा – दीपक- वाती प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के
पर्यायवाची शब्द लिखें। कभी अपने मन को चकोर के मन की भांति क्यों कहते हैं?कवि अपने मन को चकोरा के मन की भांति क्यों कहते हैं ? उत्तर – कवि की समझ में यह है कि चकोर नामक पक्षी अपनी प्रेमिका को पाने के लिए चंद्रमा को सारी रात निहारता रहता है कि कब सुबह हो और उसका मिलन हो । कवि अपने प्रभु को चकोर की तरह ही देखता है । वह अपने मन को चकोर की भाँति इसलिए कहता है कि कब उसका मिलन प्रभु से हो ।
रैदास जी ने अपने स्वामी की क्या विशेषता बताई है?रैदास के स्वामी निराकार प्रभु हैं। वे अपनी असीम कृपा से नीच को भी ऊँच और अछूत को महान बना देते हैं। रैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है।
कवि ने ईश्वर को गरीब नवाज क्यों कहा है?उत्तर:- दूसरे पद में 'गरीब निवाजु' ईश्वर को कहा गया है। ईश्वर को 'निवाजु ईश्वर' कहने का कारण यह है कि वे निम्न जाति के भक्तों को भी समभाव स्थान देते हैं, गरीबों का उद्धार करते हैं,उन्हें सम्मान दिलाते हैं, सबके कष्ट हरते हैं और भवसागर से पार उतारते हैं।
रैदास की भक्ति भावना क्या थी?रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
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