कविता के खेलने से क्या आशय है? - kavita ke khelane se kya aashay hai?

AHSEC – Assam Board

Chapter 2

कविता के बहाने

1. कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने चिड़िया क्या जाने?

प्रसंग:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण है। कवि कविता की यात्रा में ये बताना चाहते है कि चिड़िया। फुल से लेकर बच्चे तक की है। रचनात्मक ऊर्जा पर सीमा का बंधन लागू नहीं होते।

व्याख्या:- कवि कहता है कि कविता कल्पना की उड़ान है। वह चिड़िया का उदाहरण देता है। वह चिड़िया की उड़ान के बहाने को व्यक्त करता है। परंतु चिड़िया की उड़ान सीमित होती है। कविता की कल्पना का दूसरे असीमित होता है। चिड़ियाघर के अंदर बाहर या घर से दूसरे घर तक उड़ती है। परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। कवि के भावो की कोई सीमा नहीं है। कविता घर – घर की कहानी कहती है। वह पंख लगाकर हर जगह उड़ सकती है उसकी उड़ान चिड़िया की समझ से दूर है।

विशेष:-

(1) कविता के अपार संभावनाओं को बताया गया है।

(2) खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।

(3) चिड़िया क्या जाने? में प्रश्न अलंकार है।

(4) कविता का मानवीकरण किया गया है।

1. ‘कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने’ पंक्ति का भाव बताएं।

उत्तर:- पंक्ति का अर्थ है कि चिड़िया को उड़ते देख कवि की कल्पना भी ऊँची – ऊँची उड़ान लेने लगता है। वह रचना करते समय कल्पना की उड़ान भरता है।

2. कविता कहाँ – कहाँ उड़ सकती है?

उत्तर:- कविता पंख लगाकर मानव के आंतरिक व बाह्य रूप में उड़ान भर्ती है। वह एक घर से दूसरे घर तक उड़ सकती है।

3. कविता की उड़ान व चिड़िया की उड़ान में क्या अंतर है?

उत्तर:- चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक होती है – परंतु कविता की उड़ान व्यापक होते हैं। चिड़िया कविता की उड़ान को नहीं जान सकती।

4. कविता को पंख लगाकर कौन उठाता है?  

उत्तर:- कविता के पंख लगाकर कवि उड़ाता है। वह इसके सहारे मानव व समाज की भावनाओं की अभिव्यक्ति देता है।

2. कविता एक खिलना है फूलों के बहाने

कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!

बाहर भीतर इस घर, उस घर

बिना मुरझाए महकने के माने फूल क्या जाने?

प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण है। कवि के अनुसार कविता बिना मुरझाये फूलो की तरह हमेशा महकती रहती है |

व्याख्या: कवि कहता है कि कविता की रचना फूलों के बहाने हो सकती है। फूलों को देखकर कवि के मन प्रफुल्लित रहता है उसके मन में कविता फूल की भांति ही विकसित होती है। फुल से कविता में रंग भाव आदि आते हैं परंतु कविता के खिलने के बारे में फूल कुछ नहीं जानते। फुल कुछ समय के लिए खिलते हैं, खुशबू फैलाते हैं, फिर मुरझा जाते हैं। उनकी परिणति निश्चय होती है। वे घर के अंदर बाहर एक घर से दूसरे घर में अपनी सुगंध फैलाते हैं, परंतु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। कविता बिना मुरझाए लंबे समय तक लोगों के मन में व्याप्त रहती हैं इस बात को फूल नहीं समझ पाता।

विशेष:

(1) कविता व फूल की तुलना मनोरम है।

(2) खड़ी बोली है।

(3) ‘मुरझाए महकने’ में अनुप्रास अलंकार है।

(4) ‘फुल क्या जाने’? में प्रश्न अलंकार है।

1. कविता क्या है?

उत्तर:- कविता फुल के बहाने खेलना है।

2. कविता रचने और फूल खिलने में क्या साम्यता है?

उत्तर:- जिस प्रकार फुल पराग, मधु व सुगंध के साथ खेलता है। उसी प्रकार कविता भी मन के भावों को लेकर रची जाती है।

3. बिना मुरझाए कौन कहाँ महकता है?

उत्तर:- बिना मुरझाए कविता हर जगह महका करती है यह अनंतकाल तक सुगंध फैलाती है।

4. ‘कविता का खिलना भला फुल क्या जाने’? पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः- इसका अर्थ है कि फूल के खिलने व मुरझाने की सीमा है। परंतु कविता शाश्वत है। उसका महत्व फूल से अधिक है।

3. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

बाहर भीतर यह घर, वह घर

सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने।

प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण है। इन पंक्तियों में कवी ये कहना चाहते है कि कविता अबोध बच्चो की तरह बेहरवाह और बंधनहीन होती है|

व्याख्या: कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे किसी भी तरीके खेल खेलने लगते हैं उसी प्रकार कवि के लिए शब्दों की कीड़ा कविता है। यह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती है। वह किसी भी समय अपने भावों को व्यक्त कर सकती है। बच्चों के लिए सभी घर एक समान होते हैं। वे खेलने के समय – अपने पराए में भेद नहीं करते। इसी तरह कवि अपने शब्दों से आंतरिक व बाहरी संसार के मनोभावों को रूप प्रदान करता है। वह बच्चों की तरह बेपरवाह है। कविता पर कोई बंधन लागू नहीं होता।

विशेष:

(1) कविता की रचनात्मक व्यापक को प्रकट किया है। .

(2) ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार है।

(3) साहित्य खड़ी बोली है।

(4) मुक्त छंद है।

(5) बच्चों व कवियों में समानता दर्शाई गई है।

1. कविता को क्या संज्ञा दी गई है? क्यों?

उत्तर:- कविता को खेल की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार खेल का उद्देश्य मनोरंजन व आत्मा संतुष्टि होता है उसी प्रकार कविता भी शब्दों के माध्यम से मनोरंजन करती है तथा रचनात्मक को संतुष्टि मिलती है।

2. कविता और बच्चों के खेल में क्या समानता है?

उत्तर:- बच्चे कहीं भी, कभी भी खेलने लगते हैं, इस तरह कविता कहीं भी प्रकट हो सकती है। दोनों कभी कोई बंधन नहीं स्वीकारते।

3. कविता की कौन-कौन सी विशेषताएँ बताई गई?

उत्तर:- कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-

(1) यह सर्वव्यापक होती है।

(2) इसमें रचनात्मक ऊर्जा होती है।

(3) यह खेल के समान होती है।

4. बच्चा कौन सा बहाना जानता है?

उत्तर:- बच्चा सभी घरों को एक सम्मान करने के बहाने जानता है।

Questions and Answers (प्रश्न और उत्तर)

कविता एक उड़ान है …………. बच्चा ही जाने।

(1) ये पंक्तियां किस कविता से ली गई है और इसके कवि कौन है?

उत्तर:- यह पंक्तियां कविता ‘कविता के बहाने’ से ली गई है और इसके कवि श्री कुंवर नारायण है।

(2) इन काव्यपंक्तियों में ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध हो सकता है?

उत्तर:- कविता के संबंध में उठने का अर्थ है – कल्पना की उड़ान अर्थात सोच की उड़ान विचारों की उड़ान ही कविता है। ‘खिलते’ शब्द को कविता के अर्थ में विकास से जोड़ा जाएगा। कविता विचारों और भावों की परिपक्वता का नाम है। जब हमारे विचार परिपक्वता होते हैं, भावनाओं का ज्वार स्वयं हो जाता है, जब कविता रची जाती है। यही कविता में विकास का अर्थ है।

(3) कवि ने ‘कविता’ और ‘बच्चे’ को समानांतर क्यों माना है?

उत्तर:- जिस प्रकार बच्चे के सपने असीम हैं, बच्चों के खेल का कोई अंत नहीं है, बच्चे की प्रतिभा, बच्चे में छिपी संभावना का कोई अंत नहीं है, वैसे ही कवि की कल्पनाएँ असीम है, कविता के खेल यानी कविता में किए जाने वाले प्रयोग हसीन है। कविता प्रकृति, मनुष्य, जीव, इतिहास, भावी जीवन अनेक विषयों पर लिखी जा सकती है अर्थात इसके खेल भी असीम है। कविता में भावों और रचनात्मकता वे गुण वैसे ही जान फूंक देता है, जैसे बच्चे में कभी ना थकने वाला। सदा कुछ ना कुछ करने वाला तत्व विद्यमान होता है।

(4) कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए मापने के मायने’ क्या होते हैं?

उत्तर:- पुष्पा खिलता है, महकता है, अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है, लेकिन एक निश्चित समय के बाद उसकी आयु समाप्त हो जाती है, वह मुरझा जाता है। कविता में जो भाव और विचार हैं, वे सदा – सर्वदा यथावत बने रहते हैं। उनके मुरझाने की कोई समय सीमा नहीं होती। जैसे ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कविता 50 वर्ष पूर्व लिखी गई थी, मगर आज भी वह उसी भाव की व्यंजना करती है।

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

कविता एक उड़ान ……….. चिड़िया क्या जाने?

1. काव्यांश के कथ्य के सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- कवि ने चिड़िया की उड़ान से कविता की तुलना की है जो बहुत सुंदर बन पड़ी है, उसने कविता की उड़ान की बंधन हीनता माना है। चिड़िया कविता की उड़ान के विषय में कुछ नहीं जान सकती।

2. इन पंक्तियों की भाषागत विशेषताओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर:- इस अंश में साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग है। ‘चिड़िया क्या जाने’ में प्रश्न अलंकार है। कविता का मानवीकरण किया गया है। ‘इस घर उस घर’ ‘कविता कि’ मे अनुप्रास अलंकार है। मिश्रित शब्दावली है।

3. ‘कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ पंक्ति के भागवत सौंदर्य पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर:- इस पंक्ति में कवि ने चिड़िया के माध्यम से कविता की यात्रा दिखाई है। किंतु चिड़िया कविता की उड़ान के आगे हीन है। उसकी उड़ान असीमित है, जबकि चिड़िया की उड़ान सीमित, कविता कल्पना है, चिड़िया यथार्थ।

कविता एक खिलना है ………. बच्चा ही जाने।

(1) कविता रचने और फूल के खिलने में क्या समानता है?

उत्तर:- कविता फूल की तरह खिलती व विकसित होती है। फूल विकसित होने पर उसकी खुशबू चारों तरफ विखेरता है, उसी प्रकार कविता अपने विचारों व रस से पाठकों के मनोभावों को खिलाती है।

(2) कवि ने कैसे समझाया है कि कविता के प्रभाव की कोई सीमा नहीं होती?

उत्तर:- कवि ने कविता को बच्चों के खेल के समान माना है। कविता का प्रभाव व्यापक है। बच्चे कहीं भी, कभी भी, किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं। इसी तरह कवि भी शब्दों के माध्यम से किसी भी भाव दशा में कहीं भी कविता रचना है। कविता शाश्वत है।

(3) ‘बिन मुरझाए महकना’ और ‘सब घर देख कर देने’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- बिन मुरझाए महकने के माने का अर्थ है कि कविता फूलों की तरह खिलती है, परंतु मुरझाती नहीं है। यह हर समय ताजा रहती है तथा अपनी महक से सबको प्रसन्ना करती है। ‘सब घर एक कर देना’ से तात्पर्य है की कविता में बच्चों के खेल की तरह बंधन नहीं होता। वे किसी से भेदभाव नहीं करते।

Additional Questions and Answers

1. ‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य बताइए।

उत्तर:- कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फुल से लेकर बच्चे तक की है एक ओर प्रकृति है दूसरी और भविष्य की ओर कदम बढ़ाता बच्चा। कवी कहता है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चय है। लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र है। इसलिए जहां कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहां सीमाओं के बंधन खुद – व – खुद टूट जाते हैं। वह सीमा चाहे घर की हो, भाषा की हो, या समय की हो, क्यों न हो।

2. ‘कविता के बहाने’ कविता के कवि को क्या आशंका है और क्यों?

उत्तर:- इस कविता में कवि को कविता के अस्तित्व के बारे में संदेह है, उसे आशंका है कि औद्योगिकरण के कारण मनुष्य यांत्रिक होता जा रहा है। उसके पास भावनाएं व्यक्त करने या सुनने का समय नहीं है। प्रगति की अंधी दौड़ से मानव की कोमल भावनाएं समाप्त होती जा रही है। अतः कवि को कविता का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है।

3. फूल और चिड़िया को कविता की क्या-क्या जानकारी नहीं है? ‘कविता के बहाने’ कविता के आधार पर बताइए।

उत्तर: (1) फूल को कविता के खिलने का पता नहीं है। फूल एक समय अवधि में मुरझा जाते हैं परंतु कविता के भाव सदा विकसित रहते हैं।

(2) चिड़िया को कविता की उड़ान का पता नहीं है। कविता में कल्याण की उड़ान है जो चिड़िया की उड़ान से व्यापक है।

4. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने बाहर भीतर यह घर, वह घर सब घर एक कर देने के माने बच्चा ही जाने।  – अर्थ स्पष्ट कीजिये |

उत्तर: इसका अर्थ है – भेदभाव, अलगाववाद को समाप्त करके सभी को एक जैसा समझाना। जिस प्रकार बच्चे खेलते समय धर्म, जाति, संप्रदाय, छोटा – बड़ा, अमीर – गरीब आदि का भेद नहीं करते। उसी प्रकार कविता को भी किसी एक वाद या सिद्धांत या वर्ग विशेष की अभिव्यक्ति नहीं करनी चाहिए। कविता शब्दों का खेल है। उसका लक्ष्य मानव का मनोरंजन व बौद्धिक विकास है। कविता में बच्चों के समान रचनात्मक ऊर्जा होनी चाहिए। रचनात्मक ऊर्जा जहां होती है। वहां सीमाओं के बंधन स्वयं टूट जाते हैं कविता का कार्य समाज में एकता लाना है।

कविता के खिलने से क्या आशय है?

वह अपने निर्माण के साथ ही उड़ान भरती है और सदियों तक इस उड़ान को कायम रखती है, वह फूल के समान स्वरूप पाकर खिलती है। उसका खिलना एक समय के लिए नहीं होता बल्कि वह भी सदियों तक खिलकर लोगों के हृदय को आनंदित करती है। इसलिए 'उड़ने' और 'खिलने' का कविता से गहरा संबंध बनता है।

कविता को खेल क्यों कहा जाता है?

कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते हैं। वे चाहे घर की सीमा हो, भाषा की सीमा हो या फिर समय की ही क्यों न हो।

कविता किसका खेल है?

व्याख्या: कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे किसी भी तरीके खेल खेलने लगते हैं उसी प्रकार कवि के लिए शब्दों की कीड़ा कविता है। यह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती है।

कविता की तुलना बच्चों के खेल से क्यों की गई है?

Explanation: कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे कहीं भी किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं, उसी प्रकार कवि के लिए कविता शब्दों की क्रीड़ा है। वह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती है।