क्या बच्चों को घर के कामों में माता पिता का साथ देना चाहिए? - kya bachchon ko ghar ke kaamon mein maata pita ka saath dena chaahie?

कभी हंसी-मजाक में तो कभी गंभीरता के साथ, अक्सर हम अपने माता-पिता की शिकायती लहजे में अलोचनाएं कर जाते हैं। अब हो सकता है, आपके माता-पिता आपके साथ थोड़े सख्त रहे हों या शायद आलोचनात्मक रहे हों! हो सकता है कि आपकी हर हरकत पर उनकी नजर रहती हो। ये भी हो सकता है कि आपके माता-पिता दोनों कामकाजी रहे हों, तो आपको उतना समय न दे पाये हों, जितना एक टीनएज बच्चे की डिमांड होती है। 

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टीनएजर बच्चे, अक्सर अपने माता-पिता को उनके जीवन की हर नकारात्मक चीज के लिए दोषी ठहराते हैं। जैसे, प्रेरणा की कमी, खराब आत्मविश्वास, करियर की अनिश्चितता, ज्यादा काम, भय, क्रोध, अकेलापन, ब्रेक-अप और बहुत कुछ। 

एक रोचक तथ्य बताऊं आपको! हम अपने माता-पिता को कैसे देखते हैं, इसमें हमेशा एक विकासात्मक बदलाव होता रहता है। जैसे- जब हम छोटे बच्चे होते हैं, तो हमारे अभिभावक हमारे लिए हमारे भगवान, हमारे सब-कुछ होते हैं। क्योंकि हम उन पर डिपेंडेंट होते हैं। 

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लेकिन इसके उलट, टीनएज में जब हम अपनी एक अलग पहचान बनाने में जुटे होते हैं, उस स्थिति में उनकी हर गलतियां या कहें कमियां हमें बहुत साफ-साफ दिखने लगती हैं। यानी जितना अपने कामों को लेकर हम लापरवाह होते हैं, उतना ही उनकी चीजों को लेकर जागरूक। 

फिर जैसे-जैसे हम बड़े होने लगते हैं, हमारा नजरिया बदलता है, यानी पहले की अपेक्षा, कहीं अधिक संतुलित हो जाता है। अब इस उम्र में हम उनकी यानी अपने माता-पिता की ताकत, उनकी कमजोरियों को कहीं बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। इतना ही नहीं, उनके प्रति हमारा नजरिया भी पहले से कहीं अधिक सौम्य हो चुका होता है। इसका अर्थ समझे आप? अरे! मेच्योरिटी आने लगती है भई। 

यदि आप एक वयस्क हैं, लेकिन अब भी आप का ज्यादातर वक्त अपने माता-पिता की गलतियां ढूंढ़ने और उनकी खामियां निकालने में जाता है, तो आप यह जान लें कि उनके लिए आहत करने वाला हो या नहीं! पर आपके लिए यह विनाशकारी और भयानक होने वाला है। क्योंकि आप आज तक उस ‘ब्लेम ट्रैप’ में फंसे हुए हैं। जो आपको आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा। 

हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है, कि कुछ मां-बाप का रवैया अपने बच्चों के साथ, सच में बेहद अपमानित और उपेक्षित करने वाला होता है। जिसकी वजह से होने वाली मानसिक बीमारी, डिप्रेशन या आत्मविश्वास की कमी बच्चों के लिए बुरे सपने की स्थिति पैदा कर सकती है। यहां जिन परिस्थितियों के बारे में बात की जा रही है। वह दर्दनाक परिस्थितियां हैं। और यह परिस्थितिजन्य हो सकती हैं। मसलन, हो सकता है, आपके माता-पिता का तलाक हो गया हो, जिसकी वजह से आपको कुछ बुरा समय देखना पड़ा हो। हो सकता है आपके अभिभावक कामकाजी रहे हों, जिसकी वजह से वे आपको पूरा समय न दे पाए हों, और आपको समय से पहले ही जिम्मेदार बनना पड़ गया हो। वजह कुछ भी हो सकती है। 

या फिर हो सकता है आपके माता पिता आपको लेकर एक आलोचनात्मक/तुलनात्मक रवैया रखते हों। यह सभी परिस्थितियां सामान्य लेकिन एक बच्चे के तौर पर ‘हर्ट’ करने वाली हैं। इनमें से हर स्थिति एक बच्चे के लिए बेहद तनावपूर्ण हो सकती हैं। 

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Table of Contents

क्या बच्चों को घर के कामों में माता पिता का साथ देना चाहिए? - kya bachchon ko ghar ke kaamon mein maata pita ka saath dena chaahie?

  • क्यों माता-पिता को दोष देने से आपको बचना चाहिए
  • ‘ब्लेम गेम यानी एक अंतहीन प्रक्रिया
  • एक आदर्श माता-पिता जैसी कोई चीज नहीं होती
  • संदर्भ मायने रखता है
  • माता-पिता आपको प्रभावित करने वाले एक मात्र कारक नहीं हैं
  • क्या आप जजमेंटल हो रहे हैं?
  • ब्लेम गेम नहीं, आगे बढ़ने को लक्ष्य बनाएं
  • अपने माता-पिता को बताइए कि आप उनके लिए क्या करना चाहते हैं
  • ऐसी चीजों को बातचीज का जरिया बनाएं, जिनमें कनेक्ट हो
  • माता-पिता की तरफ करुणापूर्ण दृष्टि रखें

क्यों माता-पिता को दोष देने से आपको बचना चाहिए

क्या बच्चों को घर के कामों में माता पिता का साथ देना चाहिए? - kya bachchon ko ghar ke kaamon mein maata pita ka saath dena chaahie?
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हालांकि मझे आपकी सिचुएशन हूबहू तो नहीं पता! फिर भी, यहां मैं आपको माता-पिता पर दोषारोपण करने से बचने के कुछ कारण दूंगी। भले ही उन्होंने कुछ ऐसा किया हो जिससे आप हर्ट हुए हों या आपको बेहद परेशानी ही क्यों न हुई हो। फिर भी ‘मूव फॉरवर्ड’ तो करना ही होगा न?

‘ब्लेम गेम’ यानी एक अंतहीन प्रक्रिया

यह सोचना बेहद रोचक या कहें कि सुखद हो सकता है, कि कैसे बड़े होने के बाद आपके अनुभव आपके काम आ रहे हैं। आप अपनी लाइफ में कितना अच्छा कर रहे हैं। लेकिन साथ ही कुछ चीजों के लिए लगातार मां-बाप को दोष देने पर ध्यान केंद्रित करने से, आप बार-बार अपने अतीत में वापस जाते हैं। अतीत से आप निकल नहीं पाते। अटक जाते हैं, अपने बीते हुए कल में। 

... हो सकता है, आपकी सारी बातें एकदम सही हों ! सारी आरोप सटीक हों। सारी न सही, लेकिन बहुत सारी गलती आपके माता-पिता की हो। हो सकता है, भूतकाल में यदि आपके माता-पिता ने कुछ अलग किया होता, तो आपका आज कुछ और होता। लेकिन फिर क्या?? क्या इस ‘ब्लेम गेम’ से कुछ बदलने वाला है? क्या आपके दोष देने से जो नहीं हुआ वो हो जाएगा? हो सकता है आपके बार-बार दोष देने से आपके माता-पिता आपसे माफी भी मांग लें। लेकिन उसके बाद? उसके बाद क्या? गुजरा वक्त, गुजरा हुआ ही होता है। जो लौट कर नहीं आता। बीते हुए कल में पड़े रहने से कुढ़न। चिंतन। नकारात्मकता। बस यही हाथ आएगा?

हां यह अलग बात है कि, माता-पिता की गलतियां गिनावाते रहना, रक्षात्मक हो सकता है। क्यों? क्योंकि जब हम किसी और पर उंगली उठाते हैं, तो अपनी हार, निराशा या असफलता का चोला सामने वाले के गले में डालना आसान हो जाता है। आप जितना उन पर फोकस करते हैं, खुद के बारे में सोचने के लिए आपके पास उतना ही कम समय होता जाता है। इसलिए, खुद पर फोकस करें। यही जरूरी है। 

एक आदर्श माता-पिता जैसी कोई चीज नहीं होती

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क्या यह अच्छा नहीं होता, कि हमारे पैरेन्टस को हर वक्त पता होता कि हमें कब क्या चाहिए? जैसे ही हमारे मन में किसी चीज का ख्याल आता, वो चीज हमारे सामने हाजिर! आह! मुझे तो सोच कर ही मजा आ गया। क्या ही अच्छा होता, कि हमारे माता-पिता हमेशा खुश, शांत रहते। एकदम खुशमिजाज। हमारे लिए, हमारे पास हर वक्त हाजिर। 

...लेकिन, लेकिन... दुर्भाग्यवश माता-पिता भी इंसान ही होते हैं। और अभिभावक होने की जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता। बेशक मां-बाप होना इस दुनिया की सबसे हसीन जिम्मेदारी है। लेकिन यह जिम्मेदारी जितनी खुशी देती है, उतना ही तनाव, थकान, फ्रस्ट्रेशन भी देती है। बच्चे तो वैसे भी अपनी दुनिया के राजा होते हैं। जब जिस चीज का मन हुआ, मुंह खोला और मचल गए। लेकिन अभिभावक?? उनके पास तो और भी कई काम होते हैं, देखने को। बाजार से सामान लाना। ऑफिस देखना। घर के काम। खाना। कपड़े। जिसकी वजह से उनकी उर्जा और ध्यान दोनों समय-समय पर बंटते रहते हैं। 

इसलिए अपने मॉम-डैड से यह अपेक्षा रखना कि आपके याद करते ही वह आपके सामने ‘जीनी’ की तरह हाजिर हो जाएंगे। सच में गलत है। और एक मां, होने के नाते, मैं आपको यह भी बता देना चाहती हूं। कि भले ही माता-पिता हर वक्त आपके साथ शारीरिक रूप से उपस्थिति न रह पाते हां, पर उनके दिल-दिमाग पर उनके बच्चों का कब्जा हर पल रहता है। 

संदर्भ मायने रखता है

आपके माता-पिता ने भूतकाल में जो भी गलतियां की हैं या उनसे हुई हैं। सबसे महत्वपूर्ण हैं उनके संदर्भ को जानना-समझना। उस वक्त उनके उस रिएक्शन का क्या कारण रहा होगा! इस बात को टटोलना या महसूसना जरूरी है। कई बार हमारे कुछ रिएक्शन्स एक पर्टिकुलर तरीके के इसलिए भी होते हैं, क्योंकि यह उनकी खुद की परवरिश का एक हिस्सा थे। हालांकि यहां मैं किसी तरह के बिहेवियर को जस्टिफाई करने की कोशिश नहीं कर रही हूं। लेकिन इस तरह से चीजों को समझना और दोषारोपण से बचना थोड़ा आसान हो जाता है। 

मसलन, कभी-कभी माता-पिता बच्चे के प्रति अपने तुलनात्मक या आलोचनात्मक रवैये को उसके लिए अच्छा मान लेते हैं। उन्हें लगता है, इससे उनके बच्चे को ‘ग्रो’ करने में आसानी होगी। वो ‘टफ’ बनेगा। अब उनका कमेंट सही है या गलत इस बात पर फोकस करने की बजाए, यदि आप उनके इंटेंशन यानी इरादे देखेंगे न! तो आसानी होगी। उन्हें भी और आपको भी। 

माता-पिता आपको प्रभावित करने वाले एक मात्र कारक नहीं हैं

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और क्या! माता-पिता का प्रभाव हमारे ऊपर बस बचपन तक ही रहता है। उसके बाद तो न जाने कितनी चीजें एड होती हैं। जिनमें से हर एक चीज का प्रभाव हमारे उपर जाने-अनजाने पड़ता ही है। हम सभी कुछ गुणों या विशेषताओं के साथ पैदा होते हैं। इसके बाद जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारे कुछ और रिश्ते बनते हैं- मसलन, दोस्ती का,  रिश्तेदारों के साथ, पड़ोसी, बॉस, पार्टनर, सहकमीं। इसके साथ ही हम आगे अपनी लाइफ में क्या और कैसे करना चाहते हैं, इसका निर्णय भी हम खुद लेते हैं। यानी बड़े होने के साथ ही हमारी जिंदगी और इसके फैसले हमसे जुड़ते जाते हैं। जिसमें कुछ हिस्सा हमारी किस्मत का भी होता है। इसलिए माता-पिता ने क्या किया? क्या नहीं? इस बात को छोड़ो और आगे बढ़ो।  

क्या आप जजमेंटल हो रहे हैं?

इसका सबसे अच्छा तरीका है, परिस्थितियों का मूल्यांकन। कहते हैं न, ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।’ बस, कुछ ऐसा ही है। इसलिए किसी भी चीज पर कमेंट करने या दोषारोपण करने से पहले एक बार खुद को उस सिचुएशन में रखकर जरूर देखें। अपने माता-पिता को नीचा दिखाना या बार-बार ब्लेम करना अच्छा नहीं। इसलिए बीती को बिसारिए, और आगे की सुध लीजिए। उसी में सुख है। 

ब्लेम गेम नहीं, आगे बढ़ने को लक्ष्य बनाएं

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तो क्या इसका यह अर्थ है कि आपके माता-पिता ने आपके साथ जो भी किया। जिससे आपको दुख हुआ या पीड़ा पहुंची। आपको उसे भूल जाना चाहिए? नहीं। बिलकुल नहीं। आपको इस ‘ब्लेम गेम’ या ‘पुअर मी’ वाले फेज में फंसना ही नहीं है। हम आपको कुछ दसूरे विकल्प देते हैं। 

अपने माता-पिता को बताइए कि आप उनके लिए क्या करना चाहते हैं

जो बीत गई, सो बात गई। इस ‘थम्ब रूल’ के साथ आगे बढ़िए। उन्होंने आपके लिए क्या नहीं किया, से कहीं ज्यादा बेहतर है, आप उनके लिए क्या करना चाहते हैं! यह सुनने में भी ज्यादा अच्छा लगता है। वैसे भी, वे माता-पिता हैं। उन्होंने आपको जन्म दिया। पाला। बड़ा किया। यह अहसान क्या कम है। अब बारी आपकी है। उनकी कमी को आप पूरा करके दिखाइए। इसमें आपका बड़प्पन हैं। और उनकी परवरिश की शान। 

ऐसी चीजों को बातचीज का जरिया बनाएं, जिनमें कनेक्ट हो

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अब न तो आप बच्चे रहे, न ही आपके माता-पिता जवान। लिहाजा उन बातों का पुल बनाइए जिनसे दोनों का पार जाना आसान हो। कई बार देखा गया है, जो लोग अच्छे अभिभावक नहीं होते, वे दादा-दादी बहुत अच्छे बनते हैं। तो इस सबसे आसान लेकिन असरदार कड़ी को जोड़िए। 

माता-पिता की तरफ करुणापूर्ण दृष्टि रखें

माना कि उन्होंने कुछ गलतियां की। यह भी माना कि कुछ कमियां भी रह गई होंगी। पर फिर भी मैं तो यही कहूंगी कि उनसे जो बन पड़ा उन्होंने किया। अब बारी आपकी है। प्रूव कीजिए खुद को! बेहतर बनकर दिखाइए उनसे। यही चैलेंज है आपका। 

हम उम्मीद करते हैं कि ये जानकारी आपके काम आएगी। ऐसी ही स्टोरीज के लिए पढ़ते रहिये iDiva हिंदी।

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बच्चों के माता पिता उन्हें काम करने के लिए क्यों भेजते हैं?

बच्चों के माता-पिता उन्हें काम करने के लिए क्यों भेजते है । बच्चों के माता-पिता उन्हें काम करने के लिए इसलिए भेजते है क्योंकि वे बहुत गरीब । वह बच्चों को भर पेट भोजन नहीं खिला सकते है । उन्होंने वह सोचकर काम करने के लिए भेज दिया कि वहाँ बच्चें ठीक से रहेंगे ।

बच्चे के लिए माता पिता की क्या जिम्मेदारी है?

बच्चों के प्रति माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनकी परवरिश, शिक्षा, और संस्कार देना चाहिए। बालमनोविज्ञानियों का परामर्श है कि बच्चों को बड़े होकर जो कुछ बनना है प्रारंभिक पांच बर्ष की आयु में ही उसकी नींव पड़ जाती है, अतः इसी आयु उनके स्वास्थ्य और खान-पान के संबंध में सजगता से ध्यान रखना चाहिए।

आप अपने घर पर अपने माता पिता का क्या सहयोग करते हैं?

हम अपने माता-पिता के अनेक काम में मदद करते हैं जैसे कि भोजन पकाने में, घर की साफ सफाई करवाने में, बर्तन धोने में, कपड़ा धोने में,और अनेक प्रकार के कार्य जो संभव हो पाते हैं अपने माता-पिता के लिए करते हैं। क्योंकि कहा जाता है कि माता पिता ही श्रेष्ठा होता है अतः हमें अपने माता पिता की खूब सेवा करनी चाहिए।

माता पिता का कर्तव्य क्या है?

* बच्चे अपने माता पिता के व्यवहार को ही अनुसरण करते हैं इसलिए जरूरी है कि आप अच्छे व्यवहार करें। सबका सम्मान करें, ताकि वो भी लोगों का सम्मान कर सके। *जिस घर में माता पिता एक दूसरे से प्यार और सम्मान करते हैं उनके बच्चों को बहुत अच्छी परिवरिश मिलती हैं। *जरूरत पड़े तो बच्चों से प्यार के साथ सख्ती से भी पेश आयें।