18 जून को कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल से 5 बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल का नेता नियुक्त किया. इसके दूसरे दिन भारतीय जनता पार्टी के ओम बिरला को सर्वसम्मति से 17वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुन लिए गया. चौधरी की नियुक्ति के बावजूद कांग्रेस ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के दर्जे की मांग नहीं की. पिछली बार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस पार्टी के संसदीय नेता को नेता प्रतिपक्ष स्वीकार नहीं किया था शायद इसलिए कांग्रेस ने यह मांग नहीं की. Show 16वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में महाजन ने नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि कांग्रेस के पास विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद इस दर्जे के लिए आवश्यक संख्या नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी के 44 सदस्य थे और महाजन का तर्क था कि इस हैसियत के लिए लोकसभा की कुल संख्या का 10 प्रतिशत यानी 55 सीट होना आवश्यक है. महाजन ने कांग्रेस के सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष का नेता नहीं माना था और चौधरी के खिलाफ नए अध्यक्ष बिरला के भी इसी तर्क का प्रयोग करने की संभावना है. इस बार के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने केवल 52 सीटें जीती हैं. हालांकि महाजन का वह कार्य कानून सम्मत नहीं था. स्वतंत्रता के बाद दो दशकों तक 10 प्रतिशत वाला नियम लागू था किंतु 1977 में इस प्रावधान में बदलाव आया. उस साल संसद में पारित कानून ने लोकसभा अध्यक्ष को सबसे बड़े विपक्षी दल को विपक्ष के नेता की मान्यता देने का अधिकार दे दिया. लग रहा है कि पूर्व और हाल के अध्यक्षों ने 42 साल पुराने इस कानून को नजरअंदाज किया है और इस वजह से भारत की लोकतांत्रिक राजनीति कमजोर हो रही है. 1952 में पहली लोकसभा के गठन के साथ ही 10 प्रतिशत नियम अस्तित्व में आया था. लोकसभा प्रक्रिया पर लागू होने वाले नियम लोकसभा अध्यक्ष को सदन के निचली सदन के कामकाज के लिए निर्देश देने की शक्ति देते हैं. 1956 में तत्कालीन अध्यक्ष जी. वी. मावलंकर, निर्देश क्रमांक 120-123 के तहत पहली बार 10 प्रतिशत नियम संसद में लाए थे. ये निर्देश नेता प्रतिपक्ष के दर्जे से संबंधित हैं और सदस्यों को इस दर्जे के लिए ऐसी पार्टी से सम्बद्ध होना होता है जिसे एक संसदीय पार्टी के रूप में “मान्यता” प्राप्त है. अन्य शर्तों के अलावा एक शर्त यह भी थी कि इस दर्जे के लिए न्यूनतम सीटें संविधान में उल्लेखित लोकसभा कोरम पूरा करने के लिए जरूरी 10 प्रतिशत सीटें जितनी होनी चाहिए. आजादी के कई बरस तक 10 प्रतिशत वाला निर्देश लागू रहा और प्रत्येक पार्टी द्वारा चुनाव में प्राप्त सीटों के अनुसार ही विपक्षी दल का दर्जा मिलता था. 1969 के चुनावों में पहली बार औपचारिक रूप से लोकसभा में विपक्षी दल अस्तित्व में आया. 25 अक्तूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक पहले आम चुनावों के पश्चात 17 अप्रैल 1952 को सर्वप्रथम लोक सभा का गठन हुआ था। उत्तर. लोकसभा का प्रथम सत्र 13 मई 1952 को आरंभ हुआ। उत्तर. वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए प्रतिनिधि लोक सभा के सदस्य होते हैं। अतएव, इसे लोकप्रिय चैम्बर कहते हैं। प्रश्न 10. आज की तिथि तक लोक सभा के कितने आम चुनाव हुए हैं ? उत्तर. आज की तिथि तक लोक सभा के लिए सत्रह आम चुनाव आयोजित हुए हैं। पहला आम चुनाव 25 अक्तूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 तक, दूसरा 24 फरवरी से 14 मार्च, 1957 तक और तीसरा 19 से 25 फरवरी 1962 तथा चौथा 17 से 21 फरवरी 1967, पांचवां 1 से 10 मार्च 1971, छठा 16 से 20 मार्च 1977, सातवां 3 से 6 जनवरी 1980, आठवां 24 से 28 दिसम्बर 1984, नौवां 22 से 26 नवम्बर 1989, दसवां 20 मई से 15 जून 1991, ग्यारहवां 27 अप्रैल से 30 मई 1996, बारहवां 16 फरवरी से 23 फरवरी 1998, तेरहवां 5 सितम्बर से 6 अक्तूबर 1999, चौदहवां 20 अप्रैल से 10 मई 2004, पंद्रहवाँ 16 अप्रैल से 13 मई 2009 के बीच, सोलहवाँ 7 अप्रैल 2014 से 12 मई 2014 के बीच और सत्रहवाँ आम चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई 2019 के बीच हुआ था। उत्तर. श्री जी. वी. मावलंकर लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष थे (15 मई 1952 – 27 फरवरी 1956) उत्तर. श्री एम अनंतशयनम अय्यंगर लोकसभा के प्रथम उपाध्यक्ष थे (30 मई 1952 – 7 मार्च 1956) प्रश्न 13. संविधान में यथानिर्धारित लोकसभा की सदस्य संख्या कितनी है ? उत्तर. संविधान के अनुसार लोक सभा में राज्यों के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए पाँच सौ तीस से अनधिक सदस्य, संघ राज्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए 20 से अनधिक सदस्य (अनुच्छेद 81) और यदि राष्ट्रपति की यह राय है कि लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए गए उस समुदाय के दो से अनधिक सदस्य शामिल हैं (अनुच्छेद 331) । राज्यों के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए सदस्य संख्या की सीमा बढ सकती है, यदि ऐसा संसद के अधिनियम द्वारा राज्यों के पुनर्गठन की वजह से हुआ हो । उत्तर. लोकसभा का सामान्य कार्यकाल पांच वर्षों का है किन्तु इसे राष्ट्रपति द्वारा पहले भी विघटित किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल के प्रख्यापन के प्रभावी होने की अवधि के दौरान स्वयं संसद द्वारा पारित अधिनियम द्वारा सामान्य कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है। इस अवधि को एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं बढाया जा सकता और किसी भी प्रकार प्रख्यापन के समापन की अवधि से छह माह से अधिक नहीं बढाया जा सकता है। उत्तर. सभा के कुल सदस्यों की संख्या के एक तिहाई को अनुच्छेद 100(3) के अंतर्गत सभा की बैठक के लिए गणपूर्ति माना जाता है। प्रश्न 16. सत्रहवीं लोकसभा में किस दल के सदस्यों की संख्या सर्वाधिक है ? उत्तर. सभा में सर्वाधिक संख्या वाला दल भारतीय जनता पार्टी (301 सदस्य) है जिसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है (53 सदस्य) है। लोकसभा के अधिकारियों के बारे में प्रश्न उत्तर. लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पीठासीन अधिकारी हैं। उत्तर. अध्यक्ष अपने निर्वाचन की तिथि से जिस संसद में वह निर्वाचित हुआ था उसके विघटन के पश्चात अगली लोकसभा की प्रथम बैठक तक पद धारण करता है। प्रश्न 19. जब अध्यक्ष सभा की बैठक से अनुपस्थित होता है तो लोकसभा में कौन पीठासीन होता है ? उत्तर. जब अध्यक्ष सभा की बैठक से अनुपस्थित होता है तो उपाध्यक्ष लोकसभा में पीठासीन होता है। प्रश्न 20. जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हो तो लोकसभा की अध्यक्षता कौन करेगा ? उत्तर. जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त होते हैं तो ऐसे सदस्य द्वारा अध्यक्ष के कार्यालय के दायित्व इस उद्देश्य हेतु राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त लोकसभा के सदस्य द्वारा निर्वहन किया जाता है। इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति को सामयिक अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है। प्रश्न 21. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों की अनुपस्थिति में सभा की अध्यक्षता कौन करता है ? उत्तर. लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्यसंचालन नियम में उपबंध किया गया है कि सभा के आरंभ में अथवा समय-समय पर जैसा मामला हो, अध्यक्ष सदस्यों के बीच से दस सभापतियों से अनधिक एक तालिका नामनिर्दिष्ट करेगा जिसमें से कोई एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्ष अथवा उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष द्वारा अनुरोध किए जाने पर सभा की अध्यक्षता करेगा। . उत्तर. श्री ओम बिरला। उत्तर पद रिक्त है। प्रश्न 24. सत्रहवीं लोकसभा में सदन का नेता कौन है ? उत्तर. श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी । उत्तर. सत्रहवीं लोक सभा में माननीय अध्यक्ष द्वारा विपक्ष के किसी नेता को मान्यता प्रदान नहीं की गई है। उत्तर. श्री. उत्पल कुमार सिंह लोक सभा के सदस्यों पर प्रश्न उत्तर. लोक सभा के सदस्यों का चुनाव आम चुनावों के माध्यम से वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। उक्त प्रयोजनार्थ देश को 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। जब निर्वाचित सदस्य का पद रिक्त होता है, या रिक्त घोषित किया जाता है या उनका चुनाव अवैध घोषित किया जाता है, तो इसे उपचुनाव द्वारा भरा जाता है। प्रश्न 28. लोक सभा के सदस्य होने के लिए क्या योग्यताएँ हैं ? उत्तर. लोक सभा का सदस्य होने के लिए किसी व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए तथा 25 वर्ष से कम आयु का नहीं होना चाहिए तथा अन्य ऐसी अर्हताएँ होनी चाहिए, जो संसद द्वारा निधारित की जाएं या इसके द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित की जाएं। (अनु.84) प्रश्न 29. सत्रहवीं लोक सभा के कौन-कौन से नामित सदस्य हैं ? ? उत्तर. आज की तिथि तक, राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 331 के अंतर्गत किसी को नामनिर्दिष्ट नहीं किया गया है। प्रश्न 30. सत्रहवीं लोक सभा में कौन से सदस्य लोक सभा में सबसे लंबे समय से सदस्य हैं ? उत्तर. श्री संतोष कुमार गंगवार और श्रीमती मेनका संजय गांधी लोक सभा में सबसे लंबे समय से सदस्य हैं। प्रश्न 31लोक सभा के कौन-कौन से सदस्य अपने प्रथम कार्यकाल में ही सभा के अध्यक्ष बने?उत्तर. अपने प्रथम कार्यकाल में ही सभा के अध्यक्ष बनने वाले सदस्य हैं:- अध्यक्ष का नाम अवधि लोक सभा श्री गणेश वासुदेव मावलंकर 15.5.1952 से 27.2.1956 प्रथम श्री एम. अनन्तसयनम अयंगार 08.3.1956 से 10.5.1957 प्रथम* श्री नीलम संजीव रेड्डी 17.3.1967 से 19.7.1969 चौथी डा. गुरूदयाल सिंह ढिल्लन 8.8.1969 से 19.3.1971 चौथी** श्री कावदूर सदानन्द हेगडे 21.7.1977 से 21.8.1980 छठी डा. बलराम जाखड़ 22.1.1980 से 15.1.1985 सातवीं श्री मनोहर जोशी 10.5.2002 से 2.6.2004 तेरहवीं * श्री एम. ए. अय्यंगर तत्कालीन अध्यक्ष, श्री जी. वी. मावलंकर के अचानक देहावासन के कारण पहली लोक सभा के अध्यक्ष बने। ** तत्कालीन अध्यक्ष डा. नीलम संजीव रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देने के फलस्वरूप 8 अगस्त, 1969 को डा. जी. एस. ढिल्लन सर्वसम्मति से लोक सभा के अध्यक्ष निवाचित हुए। उत्तर. कोई विधेयक धन विधेयक तभी समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात:- (क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन; (ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गयी या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधिका संशोधन; (ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना, (घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग, (ड़) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना, (च) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे में से धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निगमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा, या (छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) (अनु. 110) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय। धन विधेयक केवल लोक सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। राज्य सभा, लोक सभा द्वारा पारित तथा पारेषित धन विधेयक में संशोधन नहीं कर सकती है। तथापि, यह धन विधेयक में संशोधन की सिफारिश कर सकती है। लोक सभा धन विधेयक से संबंधित राज्य सभा की किसी अथवा सभी सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। यदि लोक सभा, राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार करती है, तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश को स्वीकार करती है, तो धन विधेयक राज्य सभा सिफारिश किए गए संशोधनों के साथ दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाएगा तथा लोक सभा द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा और यदि, लोक सभा राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है, तो धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित रूप में दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाएगा तथा राज्य सभा की सिफारिशों के संशोधनों के बिना पारित माना जाएगा। यदि धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित किया जाता है तथा राज्य सभा में पारेषित किए जाने के चौदह दिन की अवधि के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात इसे लोक सभा द्वारा पारित रूप में दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाएगा। प्रश्न 33. लोक सभा और राज्य सभा के बीच किस प्रकार के विधायी संबंध हैं ? उत्तर. विधायी मामलों में, धन विधेयकों को छोड़कर दोनों सदनों की शक्तियां लगभग समान होती हैं। दोनों सदनों का मुख्य कार्य कानूनों को पारित करने का है। प्रत्येक विधेयक को कानून का रूप प्राप्त करने से पूर्व दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना चाहिए और उस पर राष्ट्रपति की सहमति होनी चाहिए। धन विधेयकों के मामलों में, लोक सभा के पास अतिव्यापन शक्तियां होती हैं। धन विधेयकों को राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किया जा सकता और उन्हें पारित मान लिया जाता है यदि इन्हें चौदह दिनों की अविध में लोक सभा को वापस नहीं भेजा जाता। उत्तर. जी हां। धन विधेयकों एवं संविधान संशोधन विधेयकों से इतर मामलों में, दोनों सदनों के बीच, जब एक सदन द्वारा पारित विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, असहमति हो सकती है, अथवा दोनों सदन किसी विधेयक में किए गए संशोधनों से अंतत: असहमत हो, अथवा अन्य सदन को विधेयक प्राप्ति की तिथि से इसे पारित किए बिना छह माह से ज्यादा का समय बीत गया हो। प्रश्न 35. दोनों सदनों के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनायी जाती है ? उत्तर. इस प्रयोजनार्थ दोनों सदनों की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। (अनु. 108) प्रश्न 36. अब तक दोनों सदनों की कुल कितनी बैठके हुई हैं ? उत्तर. अब तक दोनों सदनों की तीन बार संयुक्त बैठक हुई है। पहली संयुक्त बैठक दहेज निषेध विधेयक, 1959 में कतिपय संशोधनों के संबंध में दोनों सदनों के बीच असहमति होने की वजह से 6 और 9 मई, 1961 में आयोजित की गयी। दूसरी संयुक्त बैठक बैंककारी सेवा आयोग (निरसन) विधेयक, 1977 को राज्य सभा द्वारा अस्वीकार किए जाने के बाद 16 मई, 1978 को हुई। तीसरी संयुक्त बैठक लोक सभा द्वारा पारित और राज्य सभा द्वारा अस्वीकृत प्रीवेंशन ऑफ टेररिज्म आर्डीनेंस (पोटो) के स्थान पर प्रीवेंशन आफ टेररिज्म बिल, 2002 पर विचार करने के प्रस्ताव के संबंध में 26 मार्च, 2002 को आयोजित की गयी। उत्तर. लोक सभा अध्यक्ष दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करते हैं। (अनु.118(4)) उत्तर. मत संख्या बराबर रहने की स्थिति में अध्यक्ष का निर्णायक मत होता है।पीठासीन अधिकारियों द्वारा यथास्थिति बनाए रखने के लिए मतदान करने की परंपरा है। उत्तर. सामान्यत: एक वर्ष में लोक सभा के तीन सत्र आयोजित किए जाते हैं अर्थात:- (1) बजट सत्र - फरवरी-मई प्रश्न 40. लोक सभा का स्थगन, सत्रावसान और विघटन क्या है ? उत्तर. स्थगन का अर्थ सभा की इस बैठक को समाप्त करना है जो अगली बैठक के लिए नियत समय पर पुन: समवेत होती है। स्थगन, सभा के उस संक्षिप्त अवकाश को भी व्यक्त करता है जो उसी दिन नियत समय पर पुन: समवेत होती है। सत्रावसान का अर्थ संविधान के अनुच्छेद 85(2) (क) के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा दिए गए आदेश के द्वारा सभा के सत्र का समाप्त होना है। आमतौर पर, सत्रावसान सभा की बैठक को अनिश्चित काल तक के लिए स्थगित कर दिए जाने के बाद होता है। सभा के विघटन का अर्थ संविधान के अनुच्छेद 85(2)(क) के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा दिए गए आदेश अथवा लोक सभा की पहली बैठक के लिए नियत तारीख से लेकर पांच वर्षों की अवधि की समाप्ति पर लोक सभा के कार्यकाल का समाप्त होना है। उत्तर. सभा में मतदान और मत-विभाजन संबंधी प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 100(1) और लोक सभा के प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियमों के नियम 367, 367क, 367कक और 367ख द्वारा संचालित होती है। लोक सभा में मतदान हेतु अपनायी गयी विभिन्न प्रणालियां निम्न हैं: (एक) ध्वनिमत: यह किसी सदस्य द्वारा किए गए प्रस्ताव पर पीठ द्वारा रखे गए प्रश्न पर निर्णय लेने की एक सरल प्रणाली है। इस प्रणाली के अंतर्गत सभा के समक्ष रखे गए प्रश्न का निर्धारण 'हां' या 'नहीं', जैसी भी स्थिति हो, द्वारा किया जाता है। (दो) मत-विभाजन: मत-विभाजन कराने की तीन प्रणालियां हैं, अर्थात (एक) स्वचालित मत अभिलेख यंत्र द्वारा (दो) सभा में 'हां' और 'न' पर्चियां वितरित करके और (तीन) सदस्य द्वारा लॉबी में जाकर। तथापि, जबसे स्वचालित मत अभिलेख यंत्र लगा दिया गया है तबसे लॉबी में जाकर मतदान करने की प्रणाली अप्रचलित हो गयी है। (तीन) गुप्त मतदान: गुप्त मतदान, यदि कोई हो, उसी प्रकार किया जाता है, सिवाय इसके कि लैम्प-फील्ड तथा मशीन रूप में बोर्ड पर लगा बल्ब केवल सफेद प्रकाश फेंकता है, जिससे यह प्रकट होता है कि मत अभिलिखित कर लिया गया है। 'प्रकट' मतदान अवधि के दौरान व्यक्तिगत परिणाम को, व्यक्तिगत परिणाम डिसप्ले पैनल पर 'ए', 'एन' और 'ओ' तीन विशेषताओं द्वारा दर्शाया जाता है, किंतु गुप्त मतदान के दौरान केवल डाले गए मतों को सफेद प्रकाश में 'पी' चिह्न द्वारा दर्शाया जाता है। (चार) पर्चियों के वितरण द्वारा मतों का अभिलेखन: 'हां' या 'नहीं' पर्चियों पर सदस्यों के मतों का अभिलेखन का तरीका सामान्यतया निम्नलिखित परिस्थतियों में अपनाया जाता है:- (एक) स्वचालित मत अभिलेखन यंत्र का संचालन अकस्मात बंद हो जाने के कारण, तथा (दो) नई लोक सभा के आरंभ होने पर, सदस्यों को स्थानों/विभाजन संख्याओ का आवंटन किए जाने से पूर्व। (पांच) औपचारिक विभाजन की बजाय सदस्यों की उनके स्थानों पर वास्तविक गणना: यदि पीठासीन अधिकारी की राय में, विभाजन की अनावश्यक मांग की गयी है, तो वह 'हां' तथा 'नहीं' पक्ष वाले सदस्यों से क्रमश: अपने स्थानों पर खड़े होने के लिए कह सकते हैं और गिनती होने के बाद वह सभा के निश्चय की घोषणा कर सकते हैं। ऐसे मामले में सदस्यों के मतदान के विवरण का अभिलेखन नहीं किया जाता है। (छह) निर्णायक मत: यदि किसी विभाजन में 'हां' तथा 'नहीं' पक्षों के मतों की संख्या समान हो, तो उस का निर्णय पीठासीन अधिकारी के निर्णायक मत द्वारा किया जाता है। संविधान के अंतर्गत, अध्यक्ष अथवा उसके रूप में काम करने वाला व्यक्ति किसी विभाजन में मतदान नहीं कर सकता, उसका केवल निर्णायक मत होता है, जिसका प्रयोग उसे मतों के समान होने पर अनिवार्यत: करना चाहिए। उत्तर. सामान्यतया, सभा को प्रत्येक बैठक का पहला घंटा जिसमें प्रश्न पूछे जाते हैं और उनका उत्तर दिया जाता है, 'प्रश्नकाल' कहलाता है। प्रश्न 43. संसदीय प्रश्न क्या है? उत्तर प्रश्न लोक सभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम तथा अध्यक्ष के निदेश में विहित शर्तों के अध्यधीन अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों पर सूचना प्राप्त करने के लिए सदस्य को उपलब्ध महत्वपूर्ण संसदीय तंत्र हैं। कोई भी सदस्य जिस मंत्री को संबोधित हो, उससे विशेष संज्ञान के अंतर्गत लोक महत्व के विशेष मामलों के बारे में सूचना प्राप्त करने के प्रयोजन से प्रश्न पूछ सकता है। प्रश्न 44. विभिन्न प्रकार के प्रश्न कौन से हैं? उत्तर. तारांकित प्रश्न वह होता है, जिसका मौखिक उत्तर सदस्य सभा में चाहता है और उसे तारे के चिन्ह द्वारा विशेषांकित किया जाता है। ऐसे प्रश्न के उत्तर के पश्चात सदस्यों द्वारा पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं जिनका उत्तर मंत्री सभा में देता है। अतारांकित प्रश्न वह होता है जिसका सदस्य लिखित उत्तर चाहता है और इसका उत्तर मंत्री द्वारा सभा पटल पर रखा गया माना जाता है। अल्प सूचना प्रश्न का संबंध किसी सदस्य द्वारा लोक महत्व के मामले पर मौखिक उत्तर के लिए दस दिनों से कम समय में दी गयी सूचना से है। यदि अध्यक्ष की राय में प्रश्न अविलंबनीय महत्व का है तो संबंधित मंत्री से यह पूछा जाता है कि क्या वह उसका उत्तर कम समय में देने की स्थिति में है और यदि हां तो किस तारीख को। यदि संबंधित मत्री उत्तर देने को सहमत हो जाता है तो ऐसे प्रश्न का उत्तर उसके द्वारा बताए गए दिन को उस दिन की सूची के मौखिक उत्तर हेतु प्रश्नों के निपट जाने के तुरंत बाद किया जाता है। गैर सरकारी सदस्यों से प्रश्न: कोई प्रश्न किसी गैर-सरकारी सदस्य को भी संबोधित किया जा सकता है परंतु यह तब होता है जब उस प्रश्न की विषय-वस्तु किसी विधेयक, संकल्प अथवा सभा के कार्य से संबंधित किसी अन्य मामले, जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी है, से संबंध रखती है। ऐसे प्रश्नों के मामले में प्रक्रिया वही है जो किसी मंत्री को ऐसे परिवर्तनों के साथ, जैसा कि अध्यक्ष आवश्यक समझे, संबोधित प्रश्नों के मामले में अपनायी जाती है। प्रश्न 45. एक दिन विशेष के लिए ग्राह्य प्रश्नों की अधिकतम सीमा कितनी है ? उत्तर. एक दिन की तारांकित प्रश्न सूची में प्रश्नों की कुल संख्या 20 होती है। उन सभी गृहीत तारांकित प्रश्नों को, जो तारांकित प्रश्न सूची में सम्मिलित होने से रह जाते हैं, उस दिन की अतारांकित प्रश्न सूची में रखने पर विचार किया जा सकता है। किसी एक दिन की अतारांकित प्रश्न सूची में सामान्यतया 230 से अधिक प्रश्न नहीं होते हैं। तथापि, इनमें अधिक से अधिक 25 प्रश्न और जोड़े जा सकते हैं, जो राष्ट्रपति शासन वाले राज्य/राज्यों से संबंधित हों। प्रश्न 46. क्या किसी सदस्य द्वारा दी जाने वाली प्रश्नों की सूचनाओं की संख्या पर कोई निर्बंधन है ? उत्तर. तारांकित और अतारांकित प्रश्नों की सूचनाओं, जो कोई सदस्य नियमों के अधीन दे सकता है, की संख्या पर कोई निर्बंधन नहीं है। परंतु किसी दिन की तारांकित प्रश्न सूची में एक सदस्य का एक से अधिक प्रश्न शामिल नहीं किया जा सकता है। एक सदस्य के गृहीत किए गए एक से अधिक तारांकित प्रश्नों को अतारांकित प्रश्न-सूची में शामिल किया जाता है, लेकिन साथ ही किसी भी सदस्य के नाम से किसी एक दिन तारांकित तथा अतारांकित दोनों सूचियों में पाँच से अधिकि प्रश्न गृहीत न करने की सीमा भी है। तथापि यदि किसी सदस्य के तारांकित प्रश्न-सूची में शामिल किए गए प्रश्न को अंतरित करने के बाद किसी दिन की तारांकित प्रश्न-सूची में शामिल किया जाता है, तो उस अंतरित प्रश्न के अतिरिक्त उसी सदस्य का एक और प्रश्न उसी दिन की तारांकित प्रश्न-सूची में शामिल किया जा सकता है। प्रश्न 47. प्रश्नों की ग्राहृयता का निर्णय कौन करता है ? उत्तर. प्रश्नों की ग्राहृयता नियमों, पूर्वोदाहरण और लोक सभा अध्यक्ष यह निर्णय करते हैं कि क्या कोई प्रश्न अथवा इसका कोई भाग नियमों के अन्तर्गत ग्राह्य है अथवा नहीं। वह कोई प्रश्न या उसका कोई भाग अस्वीकृत कर सकेगा जो उसकी राय में प्रश्न पूछने के अधिकार का दुरूपयोग हो या सभा की प्रक्रिया में बाधा डालने या उस पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए आयोजित हो या नियमों का उल्लंघन करता हो। प्रश्न पूछने का अधिकार कतिपय शर्तों के अधीन है जैसे यह केवल एक ही मुद्दे पर ही केंद्रित, विशिष्ट और उस तक ही सीमित होना चाहिए। इसमें प्रतर्क, अनुमान, व्यंग्यात्मक पद, अभ्यारोप विशेषण या मानहानिकारक कथन नहीं होने चाहिए। प्रश्न 48 आधे घंटे की चर्चा क्या है ? उत्तर लोक महत्व के मुद्दे उठाने के लिए संसद सदस्य के पास आधे घंटे की चर्चा के रूप में एक अन्य उपकरण उपलब्ध है। किसी भी तथ्य संबंधी मामले पर तारांकित अथवा अतारांकित प्रश्न के उत्तर के संबंध में स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है तो कोई भी सदस्य उस पर आधे घंटे की चर्चा कराने के लिए सूचना दे सकता है। प्रश्न 49. आधे घंटे की चर्चा की प्रक्रिया क्या है ? उत्तर. आधे घंटे की चर्चा से संबंधित प्रकिया लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम के नियम 55 तथा अध्यक्ष के निदेश के निदेश 19 द्वारा विनियमित होते हैं। इसके अंतर्गत, कोई भी सदस्य पर्याप्त लोक महत्व के लिए ऐसे मामले पर चर्चा उठाने के लिए सूचना दे सकता है जो हाल ही के प्रश्न, तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना प्रश्न का विषय रहा हो और जिसके उत्तर के किसी तथ्य विषय के संबंध में विशदीकरण की आवश्यकता हो। सूचना के साथ एक व्याख्यात्मक टिप्पणी दी जानी चाहिए जिसमें उस विषय पर चर्चा उठाने के कारण दिए गए हों और यह हस्ताक्षरित होनी चाहिए। एक बैठक के लिए आधे घंटे की चर्चा की केवल एक सूचना दी जाएगी और सभा में न तो कोई औपचारिक प्रस्ताव किया जाएगा और न ही मतदान किया जाएगा। जिस सदस्य से सूचना दी है, वह एक संक्षिप्त लघु वक्तव्य देगा और जिन सदस्यों ने अध्यक्ष को पहले से सूचित किया है और बैलट में पहले चार स्थानों में से एक पर है, को किसी तथ्य विषय के विशदीकरण के प्रयोजन से एक प्रश्न पूछने की अनुमति दी जाएगी। तत्पश्चात् संबंधित मंत्री संक्षिप्त उत्तर देता है। आधे घंटे की चर्चा कार्य मंत्रणा समिति द्वारा अनुमोदित तथा सभा द्वारा मंजूर दिवस पर की जाती है। प्रश्न 50 आधे घंटे की चर्चा कब की जा सकती है ? उत्तर सामान्य तौर पर आधे घंटे की चर्चा सप्ताह में तीन बैठकों अर्थात् सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को की जा सकती है। सामान्यतया आधे घंटे की चर्चा सत्र की पहली बैठक के दौरान नहीं की जाती। इसके अतिरिक्त आधे घंटे की चर्चा सभा द्वारा वित्त विधेयक के पारित होने तक भी नहीं की जाती। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह चर्चा उक्त दिनों में आधे घंटे के लिए और बैठक के अंतिम आधे घंटे के दौरान की जाती है। विधान से संबंधित प्रश्नउत्तर. विधेयक सभा के समक्ष उसकी अनुमति के लिए लाए गए विधायी प्रस्ताव का एक प्रारूप है। उत्तर. मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किए गए विधेयक सरकारी विधेयक कहलाते हैं और उन सदस्यों द्वारा पुर:स्थापित विधेयक जो कि मंत्री नहीं हैं, गैर सरकारी सदस्यों के विधेयक कहलाते हैं। विधेयकों को उनकी विषय वस्तु के आधार पर, आगे सामान्यत: निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जा सकता है; (क) मूल विधेयक, जिनमें नए प्रस्ताव हों, (ख) संशोधनकारी विधेयक, जिनका उद्देश्य विद्यमान अधिनियमों में संशोधन करना हो (ग) समेकन विधेयक, जिनका उद्देश्य किसी विषय-विशेष पर विद्यमान विधि का समेकन करना हो, (घ) समाप्त होने वाले कानूनों (जारी रखना) संबंधी विधेयक, जिनके प्रभावी रहने के अवधि अन्यथा विनिर्दिष्ट तिथि के पश्चात समाप्त हो जाएगी, (ड़) निरसन विधेयक, (च) अध्यादेशों का स्थान लेने वाले विधेयक,(छ) धन तथा वित्त विधेयक और (ज) संविधान (संशोधन) विधेयक। प्रश्न 53. यह कौन निर्धारित करता है कि कोई विधेयक सामान्य विधेयक है या धन विधेयक ? उत्तर. यदि यह प्रश्न उठ जाए कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस संबंध में अध्यक्ष, लोक सभा का निर्णय अंतिम होगा। यदि यह संविधान के अनुच्छेद 110 के अंतर्गत धन विधेयक है तो अध्यक्ष इस विधेयक के अंत में इस आशय का प्रमाण-पृष्ठांकित करेगा। उत्तर विधेयक सभा के समक्ष प्रस्तुत विधायी प्रस्ताव का एक प्रारूप है। यह केवल तभी अधिनियम बनता है, जब इसे संसद के दोनों सभाओं द्वारा पारित कर दिया जाए और राष्ट्रपति द्वारा अनुमति दे दी जाए। प्रश्न 55. किसी विधेयक के पारित होने की प्रक्रिया में कौन-कौन से विभिन्न चरण शामिल हैं ? उत्तर. किसी विधेयक पर विचार करने के लिए उसे संसद की प्रत्येक सभा में तीन चरणों से गुजरना पड़ता है। पहले चरण में विधेयक को पुर:स्थापित किया जाता है ऐसा किसी मंत्री अथवा किसी सदस्य द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव के आधार पर किया जाता है। द्वितीय चरण के दौरान निम्नलिखित प्रस्तावों में से कोई एक प्रस्ताव पेश किया जा सकता है: कि विधेयक पर विचार किया जाए; कि इसे दोनो सभाओं की संयुक्त समिति को भेजा जाए; अथवा कि इस विधेयक के संबंध में मत जानने के प्रयोजनार्थ इसे परिचालित किया जाए। तत्पश्चात प्रवर/संयुक्त समिति द्वारा पुर:स्थापित किए जाने या कहे जाने पर विधेयक पर खंडवार विचार किया जाता है। तृतीय चरण प्रस्ताव पर इस चर्चा तक सीमित रहता है कि विधेयक को पारित किया जाए अथवा नहीं तथा विधेयक को मतदान अथवा ध्वनि मत द्वारा पारित या अस्वीकृत किया जाता है और धन विधेयक की स्थिति में राज्य सभा द्वारा लोक सभा को लौटाया जाता है। उत्तर. राष्ट्रपति द्वारा निदेशित किसी दिन लोक सभा में प्रस्तुत प्रत्येक वित्तीय वर्ष से संबंधित भारत सरकार की प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण अथवा 'वार्षिक वित्तीय विवरण' बजट कहलाता है। लोक सभा में बजट प्रस्तुत किए जाने के पश्चात शीघ्र राज्य सभा में बजट की प्रति रखी जाती है। उत्तर. सामान्यत: संसद का बजट सत्र किसी वर्ष में फरवरी के महीने से मई महीने के दौरान चलता है। उक्त अवधि के दौरान बजट पर विचार करने तथा मतदान और अनुमोदन के लिए बजट को संसद में प्रस्तुत किया जाता है। विभागों से संबंधित समितियां मंत्रालयों/विभागों की अनुदानों की मांगों पर विचार करती हैं और तत्पश्चात संसद को अपने प्रतिवेदन सौंपती हैं। उत्तर. लोक सभा में सामान्य बजट वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और रेल बजट रेल मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। लोकहित के मामले उठाने हेतु प्रक्रियात्मक उपाय उत्तर. इस प्रक्रियात्मक उपाय के अंतर्गत कोई सदस्य, अध्यक्ष की पूर्व अनुज्ञा से अविलंबनीय लोक महत्व के किसी विषय की ओर मंत्री का ध्यान आकृष्ट कर सकता है और मंत्री एक संक्षिप्त वक्तव्य दे सकता है या बाद में किसी समय अथवा किसी दिन वक्तव्य देने के लिए समय मांग सकता है। वक्तव्य देने के समय इस पर किसी चर्चा की अनुमति नहीं दी जाती लेकिन ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाने वाला सदस्य और अध्यक्ष द्वारा अनुमति प्राप्त अन्य सदस्य मंत्री से संक्षिप्त स्पष्टीकरण मांग सकते हैं। ध्यानाकर्षण प्रक्रिया भारत की देन है। इसमें अनुपूरक प्रश्न सहित प्रश्न पूछना और संक्षिप्त टिप्पणियां करना शामिल है। इस प्रक्रिया में सरकार को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर मिलता है। ध्यानाकर्षण मामलों पर सभा में मतदान नहीं किया जाता है। उत्तर. संसदीय शब्दावली में 'प्रस्ताव' का अर्थ है - सभा से उसका निर्णय जानने के उद्देश्य से किसी सदस्य द्वारा सभा में कोई औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना। इसे इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि यदि इसे स्वीकार किया जाए तो यह सभा का निर्णय अथवा इच्छा को व्यक्त करेगा। प्रस्तावों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है नामत: मूल प्रस्ताव, स्थानापन्न प्रस्ताव और गौण प्रस्ताव। मूल प्रस्ताव स्वत:पूर्ण स्वतंत्र प्रस्ताव है जिसे किसी विषय के संदर्भ में प्रस्तावकर्ता लाना चाहता है अर्थात सभी संकल्प मौलिक प्रस्ताव हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है स्थानापन्न प्रस्ताव को किसी नीति अथवा स्थिति अथवा वक्तव्य या किसी अन्य मामले पर विचार करने के लिए मूल प्रस्ताव के विकल्प के रूप में लाया जाता है। गौण प्रस्ताव ऐसा प्रस्ताव है जो दूसरे प्रस्ताव पर निर्भर करता है अथवा उससे संबंधित होता है अथवा सभा की किन्हीं कार्यवाहियों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। अपने आप में इनका कोई अर्थ नहीं होता और इनके द्वारा मूल प्रस्ताव या सभा की कार्यवाही का उल्लेख किए बिना सभा का कोई निर्णय नहीं बताया जा सकता। प्रश्न 61. प्रस्ताव कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर. सभा में प्रस्तुत किए जाने वाले सभी प्रस्तावों को तीन मुख्य वर्गों में बाँटा जाता है, अर्थात् 'मूल', 'स्थानापन्न' और 'गौण' प्रस्ताव। 'मूल प्रस्ताव' – यह ऐसी स्वयंपूर्ण स्वतंत्र प्रस्थापना है जो सभा के अनुमोदन के लिए प्रस्तुत की जाए और उसका मसौदा इस प्रकार तैयार किया जाता है कि इससे सभा का कोई विनिश्चय अभिव्यक्त हो सके, उदाहरणार्थ, सभी संकल्प मूल प्रस्ताव होते हैं। 'स्थानापन्न प्रस्ताव' – नीति या स्थिति या वक्तव्य या किसी अन्य विषय पर विचार करने के लिए मूल प्रस्तावों के स्थान पर प्रस्तुत किए गए प्रस्ताव। यद्यपि ऐसे प्रस्ताव ऐसे ढंग से प्रारूपित किए जाते हैं कि उनसे स्वयं कोई राय अभिव्यक्त हो सके, तथापि यथार्थ रूप में ये मूल प्रस्ताव नहीं होते, क्योंकि वे मूल प्रस्तावों पर निर्भर होते हैं। 'गौण प्रस्ताव' – यह ऐसा प्रस्ताव होता है जो दूसरे प्रस्ताव पर निर्भर या दूसरे प्रस्ताव से संबंधित होता है या सभा में किसी कार्यवाही पर आधारित होता है। स्वयं में उसका कोई अर्थ नहीं होता और न ही वह इस योग्य होता है कि मूल प्रस्ताव या सभा की कार्यवाही का उल्लेख किए बिना सभा का विनिश्चय व्यक्त कर सके। उत्तर. अविलंबनीय लोक महत्व के किसी निश्चित मामले जिसे अध्यक्ष की अनुमति से पेश किया जा सकता है, पर चर्चा करने के उद्देश्य से सभा की कार्यवाही के स्थगन हेतु प्रक्रिया को स्थगन प्रस्ताव कहते हैं। स्थगन प्रस्ताव गृहीत होने पर प्रस्ताव में उल्लिखित मामले पर चर्चा करने के लिए सभा के सामान्य कार्य को रोक दिया जाता है। स्थगन प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार की हाल ही की किसी चूक अथवा असफलता के लिए, जिसके गंभीर परिणाम हों, सरकार को आड़े हाथ लेना है। इसे स्वीकार किया जाना एक प्रकार से सरकार की निंदा मानी जाती है। प्रश्न 63. अविश्वास प्रस्ताव से क्या अभिप्राय है? उत्तर. लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचलान नियम के नियम 198 में मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत करने हेतु प्रक्रिया निर्धारित की गयी है। इस प्रकार के प्रस्ताव का सामान्य स्वरूप इस प्रकार है कि,' यह सभा मंत्रि-परिषद में विश्वास का अभाव प्रकट करती है।' अविश्वास प्रस्ताव को किसी कारण पर आधारित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब सूचना में कारण उल्लिखित होते हैं और उन्हें सभा में पढ़ा जाता है तब भी वे अविश्वास प्रस्ताव का भाग नहीं बनते हैं। प्रश्न 64. अनियत दिन वाला प्रस्ताव क्या है ? उत्तर. यदि अध्यक्ष किसी प्रस्ताव की सूचना गृहीत करता है और ऐसे प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की जाती है तो इसे तत्काल 'अनियत दिन वाले प्रस्ताव' शीर्षक के अंतर्गत समाचार भाग-II में अधिसूचित किया जाता है। अध्यक्ष द्वारा सभा में होने वाली कार्यवाही को ध्यान में रखते हुए सदन के नेता से परामर्श करके ऐसे प्रस्ताव पर चर्चा हेतु तिथि और समय निर्धारित किया जाता है। प्रश्न 65. नियम 193 के अधीन चर्चा का क्या अर्थ है ? उत्तर. नियम 193 के अधीन चर्चा में सभा के समक्ष औपचारिक प्रस्ताव शामिल नहीं है। अत: इस नियम के अधीन चर्चा के पश्चात् कोई मतदान नहीं हो सकता। सूचना देने वाला सदस्य एक संक्षिप्त वक्तव्य दे सकता है और ऐसे सदस्य जिन्होंने अध्यक्ष को पहले सूचित किया हो, चर्चा में भाग लेने की अनुमति दी जा सकती है। जिस सदस्य ने चर्चा उठाई है उसका उत्तर का कोई अधिकार नहीं है। चर्चा के अंत में, संबंधित मंत्री एक संक्षिप्त उत्तर देता है। प्रश्न 66. अल्पकालिक चर्चा क्या है ? उत्तर. सदस्यों को अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों पर चर्चा कराने का अवसर प्रदान करने के लिए मार्च 1953 में एक प्रथा स्थापित की गई जिसे बाद में अल्पकालिक चर्चा के रूप में नियम 193 के अंतर्गत लोक सभा में प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों में शामिल कर लिया गया। इस नियम के अंतर्गत सदस्य बिना किसी औपचारिक प्रस्ताव या मतदान के अल्पकालिक चर्चा उठा सकते हैं। प्रश्न 67. नियम 377 के अधीन चर्चा का क्या अर्थ है ? उत्तर ऐसे मामले जो व्यवस्था का प्रश्न नहीं हैं, नियम 377 के अधीन विशेष उल्लेख द्वारा उठाए जा सकते हैं। 1965 में तैयार किए गए प्रक्रिया नियम सदस्य को सामान्य लोक हित के मामले उठाने का अवसर प्रदान करते हैं। वर्तमान में, प्रतिदिन 20 सदस्यों को नियम 377 के अधीन मामले उठाने की अनुमति दी जाती है। उत्तर. प्रश्नकाल और सभापटल पर पत्र रखे जाने के तत्काल पश्चात तथा किसी सूचीबद्ध कार्य को सभा द्वारा शुरू करने से पहले के समय का लोकप्रिय नाम 'शून्यकाल' है। चूंकि यह मध्याह्न 12 बजे शुरू होता है, इस अवधि को शिष्ट भाषा में 'शून्यकाल' कहते हैं। लोक सभा में कथित शून्य काल में मामले उठाने के लिए सदस्य प्रतिदिन पूर्वाह्न 10.00 बजे से पूर्व जिस महत्वपूर्ण विषय को सभा में उठाना चाहते हैं उसके बारे में स्पष्टत: बताते हुए अध्यक्ष को सूचना देते हैं। सभा में ऐसे मामले को उठाने या नहीं उठाने की अनुमति देना अध्यक्ष पर निर्भर करता है। संसदीय प्रक्रिया में 'शून्यकाल' शब्द को औपचारिक मान्यता प्राप्त नहीं है। प्रश्न 69. शून्य काल के अंतर्गत कितने मामले उठाए जाने की अनुमति है ? उत्तर. वर्तमान में शून्य काल के दौरान बैलट की प्राथमिकता के आधार पर प्रति दिन बीस मामले उठाए जाने की अनुमति है। उठाए जाने वाले मामलों का क्रम का निर्णय अध्यक्ष महोदय के विवेकानुसार किया जाता है। पहले चरण में अविलंबनीय राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय महत्व के 5 मामले, जैसा कि अध्यक्षपीठ द्वारा निर्णय लिया जाए, प्रश्न काल और पत्रों को पटल पर रखने आदि के बाद लिए जाते हैं। दूसरे चरण में अविलंबनीय लोक महत्व के शेष स्वीकृत मामले सायं 6.00 बजे के बाद या सभा के नियमित कार्य के पश्चात लिए जाते हैं। उत्तर. संकल्प सभा की राय की औपचारिक अभिव्यक्ति है। यह राय की घोषणा अथवा सिफारिश के रूप में हो सकता है या ऐसे रूप में हो सकता है जिससे कि सरकार के किसी काम अथवा नीति का सभा द्वारा अनुमोदन या अननुमोदन अभिलिखित किया जाए या कोई संदेश दिया जाए या किसी कार्यवाही के लिए संस्तवन, अनुरोध या प्रार्थना की जाए या किसी विषय अथवा स्थिति पर सरकार द्वारा पुनर्विचार के लिए ध्यान आकर्षित किया जाए या किसी ऐसे अन्य रूप में हो सकता है तो अध्यक्ष उचित समझे। सभा द्वारा सहमत होने पर प्रत्येक प्रश्न या तो संकल्प या आदेश का रूप धारण कर लेता है। संकल्पों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है: गैर-सरकारी सदस्यों के संकल्प, सरकारी संकल्प और सांविधिक संकल्प। गैर-सरकारी सदस्यों के संकल्प किसी सदस्य (न कि किसी मंत्री) द्वारा पेश किए जाते हैं. सरकारी संकल्प मंत्रियों द्वारा पेश किए जाते हैं. तथा सांविधिक संकल्प संविधान अथवा संसद के किसी अधिनियम में निहित प्रावधान के अनुसरण में पेश किए जाते हैं। प्रश्न 71. व्यवस्था का प्रश्न क्या है ? उत्तर: व्यवस्था का प्रश्न उन नियमों अथवा संविधान के ऐसे अनुच्छेदों के निर्वचन अथवा प्रवर्तन के संबंध में होगा जो सभा के कार्य को विनियमित करते हैं और जो अध्यक्ष के संज्ञान में लाकर उठाया जाएगा। व्यवस्था के प्रश्न को सभा के समक्ष कार्य के संबंध में उठाया जा सकता है बशर्ते कि अध्यक्ष किसी सदस्य को कार्य की एक मद समाप्त होने और दूसरी के प्रारंभ होने के बीच की अवधि में व्यवस्था का प्रश्न उठाने की अनुमति दें, यदि वह सभा में व्यवस्था बनाए रखने या सभा के समक्ष कार्य-विन्यास के संबंध में हो। कोई सदस्य व्यवस्था का प्रश्न उठा सकता है और इसका निर्णय अध्यक्ष करेंगे कि क्या उठाया गया प्रश्न व्यवस्था का प्रश्न है और यदि वह व्यवस्था का प्रश्न है तो वह इस पर निर्णय देंगे जो अंतिम होगा। प्रश्न 72. क्या अध्यक्ष के पास सभा की कार्यवाही स्थगित करने अथवा बैठक को निलंबित करने की शक्ति है? उत्तर: अनु. 375 के अंतर्गत सभा में घोर अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होने पर अध्यक्ष यदि आवश्यक समझे तो वह अपनी इच्छानुसार निर्धारित समय तक सभा की कार्यवाही को स्थगित अथवा बैठक को निलंबित कर सकता है। उत्तर. भारत के संविधान में राष्ट्रपति द्वारा संसद के किसी एक सदन के समक्ष या एक साथ समवेत दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण किए जाने का प्रावधान है (अनु. 86(1))। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति लोक सभा के प्रत्येक आम चुनाव के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेंगे और संसद को इस सत्र के आह्वान के कारण बताएंगे। (87(1))। राष्ट्रपति के अभिभाषण में उल्लिखित मामलों पर किसी सदस्य द्वारा प्रस्तुत और अन्य सदस्य द्वारा अनुमोदित धन्यवाद-प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है। प्रश्न 74. क्या सदस्य राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रश्न उठा सकते हैं ? उत्तर. कोई भी सदस्य राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रश्न नहीं उठा सकता है। किसी सदस्य का कोई भी कार्य, जिससे अवसर की शालीनता भंग होती है अथवा जिससे कोई बाधा उत्पन्न हो, उस सभा द्वारा दंडनीय होता है जिसका वह सदस्य है। किसी सदस्य द्वारा प्रस्तुत तथा अन्य सदस्य द्वारा अनुमोदित धन्यवाद-प्रस्ताव पर राष्ट्रपति के अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों पर चर्चा की जाती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा की विस्तृति बहुत व्यापक होती है और संपूर्ण प्रशासन के कार्यकरण पर चर्चा की जा सकती है। इस संबंध में अन्य बातों के साथ-साथ सीमाएं यह है कि सदस्यों को एक तो उन मामलों का उल्लेख नहीं करना चाहिए जिनके लिए भारत सरकार प्रत्यक्षत: उत्तरदायी नहीं है और दूसरा यह कि वह वाद-विवाद के दौरान राष्ट्रपति का नाम नहीं ले सकते क्योंकि अभिभाषण की विषय-वस्तु के लिए सरकार उत्तरदायी होती है, न कि राष्ट्रपति। संसदीय विशेषाधिकार/सुविधाएं, वेतन और परिलब्धियां प्रश्न 75. संसदीय विशेषाधिकार क्या है ? उत्तर 'संसदीय विशेषाधिकार' शब्द से अभिप्रेत है ऐसे कतिपय अधिकार तथा उन्मुक्तियां, जो संसद के प्रत्येक सदन तथा उसकी समितियों को सामूहिक रूप से और प्रत्येक सदन के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त हैं और जिनके बिना वे अपने कृत्यों का निर्वहन दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण ढंग से नहीं कर सकते हैं। संसदीय विशेषाधिकारों का उद्देश्य संसद की स्वतंत्रता, प्राधिकार तथा गरिमा की रक्षा करना है। संसद के दोनों सदनों और राज्य विधायिकाओं तथा इनकी समितियों तथा सदस्यों के अधिकारों विशेषाधिकारों तथा उन्मुक्तियों का निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 105 तथा 194 में है। सभा को सदन की अवमानना अथवा उसके किसी विशेषाधिकार हनन करने वाले किसी भी व्यक्ति को दंडित करने का अधिकार प्राप्त है। प्रश्न 76. क्या भारत में संसदीय विशेषाधिकार संहिताबद्ध हैं ? उत्तर. प्रत्येक सदन और इसके सदस्यों तथा समितियों को प्रदान किए गए अधिकारों, विशेषाधिकारों तथा उन्मुक्तियों को परिभाषित करने के लिए संविधान के अनु. 105/194 के खंड (3) के अनुसरण में संसद (तथा राज्य विधायिकाओं) द्वारा अभी तक कोई विधान नहीं बनाया गया है। इस प्रकार का विधान न होने की स्थिति में संसद के सदनों और राज्य विधायिकाओं तथा उनके सदस्यों तथा समितियों के अधिकार, विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियां वहीं होंगी जो संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के लागू होने से तत्काल पूर्व सभा और उसके सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त थी। संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 ने हाउस आफ कामन्स के उल्लेख को हटा दिया जो कि पहले अनु. 105 तथा 194 की धारा 3 में था। प्रश्न 77. विशेषाधिकार भंग तथा सदन की अवमानना में क्या अंतर है ? उत्तर. जब कोई व्यक्ति या प्राधिकारी व्यक्तिगत रूप से सदस्यों के या सामूहिक रूप से सभा के किसी विशेषाधिकार, अधिकार तथा उन्मुक्ति की अवहेलना करता है या उनका अतिक्रमण करता है, जो इस अपराध को विशेषाधिकार भंग कहा जाता है। सभा के अवमान की सामान्यत: इस प्रकार परिभाषा दी जा सकती है कि 'ऐसा कोई कार्य या भूल-चूक, जो संसद के किसी सदन के काम में उसके कृत्यों के निर्वहन में बाधा या अड़चन डालती है अथवा सदन के किसी सदस्य या अधिकारी के मार्ग में उसके कर्तव्य के पालन में बाधा या अड़चन डालती है अथवा जिससे प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: ऐसे परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं,' संसद का अवमान माना जाता है। यद्यपि, सभी प्रकार के विशेषाधिकारों का भंग किया जाना उस सभा की अवमानना है जिसके विशेषाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। कोई व्यक्ति सभा के किसी विशेषाधिकार का उल्लंघन किए बिना सभा की अवमानना का दोषी हो सकता है अर्थात जब वह समिति में उपस्थित होने के आदेश का अनुपालन न करे अथवा सदस्य के रूप में वह किसी सदस्य के चरित्र अथवा आचरण पर टिप्पणियाँ करे। प्रश्न 78. विशेषाधिकार के प्रश्न संबंधी क्या प्रक्रिया है ? उत्तर. विशेषाधिकार के प्रश्न पर सभा द्वारा स्वयं विचार और विनिश्चय किया जा सकता है या उसे सभा द्वारा, परीक्षण, जाँच और प्रतिवेदन के लिए विशेषाधिकार समिति को सौंपा जा सकता है। प्रश्न 79. सदस्य के 'स्वत: निलंबन' संबंधी क्या नियम है ? उत्तर. लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमों के नियम 374 क में प्रावधान है कि किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से सभा की कार्यवाही में बाधा डालकर लगातार और जानबूझकर सभा के नियमों का दुरूपयोग करते हुए घोर अव्यवस्था उत्पन्न किए जाने की स्थिति में अध्यक्ष द्वारा सदस्य का नाम लिए जाने पर वह सभा की सेवा से लगातार पांच बैठकों के लिए या सत्र की शेष अवधि के लिए, जो भी कम हो, स्वत: निलंबित हो जाएगा। प्रश्न 80. एमपीएलएडी योजना क्या है ? उत्तर. संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपी एलएडीएस) को वर्ष 1993 में लागू किया गया था। इस योजना के अंतर्गत लोक सभा सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रतिवर्ष 5 करोड़ रू0 तक की लागत से किए जाने वाले विकास कार्यों के बारे में जिला प्रमुख को सुझाव दे सकता है। योजना के विषय में विस्तृत जानकारी इस योजना की वेबसाइट www.mplads.nic.in पर उपलब्ध है। उत्तर. वर्तमान में संसद सदस्य को 100,000/- रू0 प्रतिमाह वेतन, 70,000/-रू0 प्रतिमाह निर्वाचन क्षेत्र भत्ते के रूप में मिलते हें और 60,000/- रू0 प्रतिमाह कार्यालयीय व्यय के रूप में मिलते हैं जिसमें 20,000/-रू0 लेखन-सामग्री व पत्राचार और 40,000/- रू0 वैयक्तिक सहायक के लिए सम्मिलित हैं। सदस्य को सभा अथवा समितियों की बैठक अथवा अन्य संसदीय कार्य में भाग लेने के लिए 2000/- का दैनिक भत्ता भी मिलता है। दैनिक भत्ता प्राप्त करने के लिए उनके द्वारा इस उद्देश्य के लिए रखे गए रजिस्टर पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है। प्रश्न 82. क्या संसद सदस्य किसी पेंशन/पारिवारिक पेंशन के हकदार हैं ? उत्तर. ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने किसी भी अवधि तक अंतरिम संसद के सदस्य अथवा संसद के किसी भी सदन के सदस्य के रूप में सेवा की हो, उसे 1 अप्रैल, 2018 से प्रतिमाह पेंशन के रूप में 25,000 रुपये का भुगतान किया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति पाँच वर्ष से अधिक वर्षों की अवधि तक सेवा करता है तो उसे पाँच वर्ष की अवधि के पश्चात् प्रत्येक वर्ष/वर्षों के लिए प्रति माह 2,000 रुपये की दर से अतिरिक्त पेंशन का भुगतान किया जाएगा। पेंशन की राशि निर्धारित करने के लिए सदस्य के रूप में पूरी की गई अवधि की गणना हेतु नौ महीने या इससे अधिक की अवधि को एक पूरा वर्ष माना जाएगा। लोक सभा से संपर्क करना प्रश्न 83. मुझे लोक सभा के सदस्यों के बारे में और सूचना कहा से प्राप्त होगी? उत्तर. लोक सभा की वेबसाइट (http://loksabha.nic.in) पर लोक सभा के सदस्यों संबंधी एक खंड है जिससे उनके बारे में सूचना प्राप्त होगी। उत्तर. सदस्यों से संपर्क ई-मेल के माध्यम से किया जा सकता है। लोक सभा सदस्यों के स्थायी और स्थानीय पते लोक सभा की वेबसाईट (http://loksabha.nic.in) पर उपलब्ध हैं। प्रश्न 85. मैं लोक सभा के सत्रों के संबंध में सूचना कहां से प्राप्त कर सकता हूं ? उत्तर. लोक सभा की वेबसाइट (http://lok sabha.nic.in) पर विधान संबंधी एक खंड है जहां लोक सभा के सत्रों से संबंधित सूचना होती है। प्रश्न 86. लोक सभा की वेबसाईट का प्रचालन कौन करता है और मैं फीडबैक किस प्रकार भेज सकता हूं? उत्तर. लोक सभा वेबसाईट का प्रचालन लोक सभा सचिवालय की कंप्यूटर (हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर) प्रबंधन शाखा द्वारा किया जाता है। फीडबैक भेजने के लिए ई-मेल पता यह है: [email protected]. संसद में विपक्ष का नेता कौन है?लोकसभा में विपक्ष के नेता, लोकसभा के एक निर्वाचित सदस्य हैं जो भारत की संसद के निचले सदन में आधिकारिक विपक्ष का नेतृत्व करते हैं। विपक्ष का नेता लोकसभा में सबसे बड़े राजनीतिक दल का संसदीय अध्यक्ष होता है जो सरकार में नहीं होता है (बशर्ते कि उक्त राजनीतिक दल के पास लोकसभा में कम से कम 10% सीटें हों)।
भारत की लोकसभा का नेता कौन है?आम तौर पर भारत का प्रधानमन्त्री ही लोक सभा के सदन के नेता होते है। पर अगर प्रधानमन्त्री लोक सभा के सदस्य न हो तो वे सदन के नेता का चुनाव कर सकते है।
नेता प्रतिपक्ष का मतलब क्या होता है?विपक्ष का नेता अथवा नेता प्रतिपक्ष भारतीय संसद के दोनों सदनों में, प्रत्येक में आधिकारिक विपक्ष का नेतृत्वकर्ता होता है।
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