महादेवी वर्मा ने क्या लिखा है? - mahaadevee varma ne kya likha hai?

महादेवी वर्मा की रचनाएँ

महादेवी वर्मा ने क्या लिखा है? - mahaadevee varma ne kya likha hai?

महीयसी-महादेवीआजकल के मुखपृष्ठ से महादेवी वर्मा का रचना संसार अत्यंत व्यापक है। जिसमें गद्य, पद्य, चित्रकला और बाल साहित्य सभी समाए हुए हैं। उनका रचनाकाल भी 50 से अधिक वर्षों तक फैला हुआ है और वे अपने अंतिम समय तक कुछ न कुछ रचती ही रहीं। इस लेख में उनकी लगभग समस्त रचनाओं को सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है। .

32 संबंधों: दीपशिखा (अभिनेत्री), दीपगीत, नीरजा, नीलांबरा, नीहार, पथ के साथी, परिक्रमा, प्रथम आयाम, महादेवी वर्मा, मेरा परिवार, यामा, शृंखला की कड़ियाँ, सन्धिनी, सप्तपर्णा, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध, सांध्यगीत (कविता-संग्रह), संस्मरण, संकल्पिता, स्मारिका, स्मृति की रेखाएं, हिमालय, विवेचनात्मक गद्य, गिल्लू, गीतपर्व, आत्मिका, आधुनिक कवि महादेवी, किरण, क्षणदा, अतीत के चलचित्र, अग्निरेखा, १३ मई, २००७।

दीपशिखा (अभिनेत्री)

दीपशिखा एक भारतीय अभिनेत्री हैं। हिन्दी और पंजाबी फिल्मों तथा धारावाहिको में कार्य किया है। यह बिग बॉस ८ में प्रतिभागी भी थीं। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और दीपशिखा (अभिनेत्री) · और देखें »

दीपगीत

दीपगीत महादेवी वर्मा की दीपक संबंधी कविताओं का संग्रह है। दीप महादेवी जी का प्रिय प्रतीक है। डॉ शुभदा वांजपे के विचार से दीप महादेवी वर्मा का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है, प्रो श्याम मिश्र महादेवी की कविता में दीपक को साधनारत आत्मा का प्रतीक मानते हैं और प्रकाशक का कहना है कि अंधेरे में आलोक को नए नए अर्थ देती दीपगीत की कविताएँ मानवीय करुणा को रेखांकित करती हैं। निःसंदेह इन कविताओं के दीपकों में आशा की किरन और तिमिर से जूझने का साहस दिखाई देता है। संग्रह में महादेवी के 46 गीत है जिसमें उनके कुछ अत्यंत लोकप्रिय गीत भी शामिल हैं जैसे दीप मेरे जल अकंपित घुल अचंचल, सब बुझे दीपक जला लूँ, किसी का दीप निष्ठुर हूँ, मधुर मधुर मेरे दीपक जल, क्यों न तुमने दीप बाला, जब यह दीप थके तब आना, धूप सा तन दीप सी मैं और यह मंदिर का दीप इत्यादि। इन सारे दीपगीतों को एक जगह देखना निश्चय ही आनंददायक है। भूमिका यद्यपि केवल तीन पृष्ठों की है लेकिन इसको 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' शीर्षक देकर उन्होंने संग्रह का उद्देश्य भी स्पष्ट कर दिया है। उनकी अन्य पुस्तकों की तरह इस संग्रह की भूमिका भी अत्यंत रोचक और सारगर्भित है। जिससे उनके दीपक प्रेम को समझने में तो सहायता मिलती ही है, दीपक के सांस्कृतिक महत्व के विषय में भी प्रमाणिक जानकारी मिलती है। दीपक के प्रति अपने अनुराग का कारण बताते हुए वे कहती हैं- "भारत के कला अलंकरण, आस्था, ज्ञान, सौंदर्य-बोध, साहित्य आदि में दीपक का प्रतीक विशेष महत्त्व रखता है। मेरे निकट भी वह प्रतीक इतना आवश्यक है कि मैं उसके माध्यम से बुद्धि और हृदय दोनों की बात सहज ही कह सकती हूँ।" संग्रह में पाँच सुंदर रेखा चित्र भी हैं पर यह पता नहीं चलता कि ये रेखाचित्र महादेवी वर्मा द्वारा बनाए गए है या किसी अन्य कलाकार द्वारा। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और दीपगीत · और देखें »

नीरजा

नीरजा महादेवी वर्मा का तीसरा कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन १९३४ में हुआ। इसमें १९३१ से १९३४ तक की रचनाएँ हैं। नीरजा में रश्मि का चिन्तन और दर्शन अधिक स्पष्ट और प्रौढ़ होता है। कवयित्री सुख-दु:ख में समन्वय स्थापित करती हुई पीड़ा एवं वेदना में आनन्द की अनुभूति करती है। श्रेणी:कविता संग्रह श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और नीरजा · और देखें »

नीलांबरा

नीलांबरा महादेवी वर्मा का कविता-संग्रह है। श्रेणी:कविता संग्रह श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और नीलांबरा · और देखें »

नीहार

नीहार महादेवी वर्मा का पहला कविता-संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण सन् १९३० ई० में गाँधी हिन्दी पुस्तक भण्डार, प्रयाग द्वारा प्रकाशित हुआ। इसकी भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने लिखी थी। इस संग्रह में महादेवी वर्मा की १९२३ ई० से लेकर १९२९ ई० तक के बीच लिखी कुल ४७ कविताएँ संग्रहीत हैं। नीहार की विषयवस्तु के सम्बंध में स्वयं महादेवी वर्मा का कथन उल्लेखनीय है- "नीहार के रचना काल में मेरी अनुभूतियों में वैसी ही कौतूहल मिश्रित वेदना उमड़ आती थी, जैसे बालक के मन में दूर दिखायी देने वाली अप्राप्य सुनहली उषा और स्पर्श से दूर सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है।" इन गीतों में कौतूहल मिश्रित वेदना की अभिव्यक्ति है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और नीहार · और देखें »

पथ के साथी

पथ के साथी महादेवी वर्मा द्वारा लिखे गए संस्मरणों का संग्रह हैं, जिसमे उन्होंने अपने समकालीन रचनाकारों का चित्रण किया है। जिस सम्मान और आत्मीयतापूर्ण ढंग से उन्होंने इन साहित्यकारों का जीवन-दर्शन और स्वभावगत महानता को स्थापित किया है वह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। 'पथ के साथी' में संस्मरण भी हैं और महादेवी द्वारा पढ़े गए कवियों के जीवन पृष्ठ भी। उन्होंने एक ओर साहित्यकारों की निकटता, आत्मीयता और प्रभाव का काव्यात्मक उल्लेख किया है और दूसरी ओर उनके समग्र जीवन दर्शन को परखने का प्रयत्न किया है। 'पथ के साथी' में निम्नलिखित 11 संस्मरणों का संग्रह किया गया है-.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और पथ के साथी · और देखें »

परिक्रमा

भारतीय धर्मों (हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि) में पवित्र स्थलों के चारो ओर श्रद्धाभाव से चलना 'परिक्रमा' या 'प्रदक्षिणा' कहलाता है। मन्दिर, नदी, पर्वत आदि की परिक्रमा को पुण्यदायी माना गया है। चौरासी कोसी परिक्रमा, पंचकोसी परिक्रमा आदि का विधान है। परिक्रमा की यात्रा पैदल, बस या दूसरे साधनों से तय की जा सकती है लेकिन अधिकांश लोग परिक्रमा पैदल चलकर पूर्ण करते हैं। ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन, अयोध्या में सरयू, चित्रकूट में कामदगिरि और दक्षिण भारत में तिरुवन्मलई की परिक्रमा होती है जबकि उज्जैन में चौरासी महादेव की यात्रा का आयोजन किया जाता है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और परिक्रमा · और देखें »

प्रथम आयाम

प्रथम आयाम एक कविता-संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उनकी बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक की कविताओं का संग्रह है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और प्रथम आयाम · और देखें »

महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वर्ष २००७ उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।२७ अप्रैल १९८२ को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष २०१८ में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया । .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और महादेवी वर्मा · और देखें »

मेरा परिवार

मेरा परिवार संस्मरण-संग्रह की रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उन्होंने अपने पालतू पशुओं के संस्मरण लिखे हैं। प्रस्तुत पुस्तक मे महदेवी वर्मा जी ने 9 संस्मरण लिखे हैं। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:गद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और मेरा परिवार · और देखें »

यामा

यामा एक कविता-संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उनके चार कविता संग्रह नीहार, नीरजा, रश्मि और सांध्यगीत संकलित किए गए हैं। श्रेणी:ज्ञानपीठ सम्मानित श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:कविता संग्रह.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और यामा · और देखें »

शृंखला की कड़ियाँ

शृंखला की कड़ियाँ महादेवी वर्मा के समस्या मूलक निबंधों का संग्रह है। स्त्री-विमर्श इनमें प्रमुख हैं। डॉ॰ हृदय नारायण उपाध्याय के शब्दों में, "आज स्त्री-विमर्श की चर्चा हर ओर सुनाई पड़ रही है। महादेवी ने इसके लिए पृष्ठभूमि बहुत पहले तैयार कर दी थी। सन्‌ १९४२ में प्रकाशित उनकी कृति श्रृंखला की कड़ियाँ सही अर्थों में स्त्री-विमर्श की प्रस्तावना है जिसमें तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों में नारी की दशा, दिशा एवं संघर्षों पर महादेवी ने अपनी लेखनी चलायी है।" इसमें ऐसे निबंध संकलिक किये गये हैं जिनमें भारतीय नारी की विषम परिस्थिति को अनेक दृष्टि-बिन्दुओं से देखने का प्रयास किया गया है। युद्ध और नारी नामक लेख में उन्होंने युद्ध स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान पर गंभीर, वैश्विक और मौलिक चिंतन व्यक्त किया है। इसी प्रकार नारीत्व और अभिशाप’ में वे पौराणिक प्रसंगों का विवरण देते हुए आधुनिक नारी के शक्तिहीन होने के कारणों की विवेचना करती हैं। अंग्रेज़ी अनुवाद का मुखपृष्ठ पुस्तक से कुछ पंक्तियाँ- ‘‘भारतीय नारी जिस दिन अपने सम्पूर्ण प्राण-आवेग से जाग सके, उस दिन उसकी गति रोकना किसी के लिए सम्भव नहीं। उसके अधिकारों के सम्बन्ध में यह सत्य है कि वे भिक्षावृत्ति से न मिले हैं, न मिलेंगे, क्योंकि उनकी स्थिति आदान-प्रदान योग्य वस्तुओं से भिन्न है। समाज में व्यक्ति का सहयोग और विकास की दिशा में उसका उपयोग ही उसके अधिकार निश्चित करता रहता है। किन्तु अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए। सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता अभाव मिलेगा। कहीं उसमें साधारण दयनीयता और कहीं असाधारण विद्रोह है, परंतु संतुलन से उसका जीवन परिचित नहीं।..." सोहनी नीरा कुकरेजा द्वारा इसका अंग्रेज़ी अनुवाद लिंक्स इन द चेन नाम से किया गया है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और शृंखला की कड़ियाँ · और देखें »

सन्धिनी

सन्धिनी महादेवी वर्मा की चुनी हुई ६५ कविताओं का संग्रह है, जो १९६४ में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक से परिचय करवाते हुए वे कहती हैं, "‘सन्धिनी’ में मेरे कुछ गीत संग्रहीत हैं। काल-प्रवाह का वर्षों में फैला हुआ चौड़ा पाट उन्हें एक-दूसरे से दूर और दूरतम की स्थिति दे देता है। परन्तु मेरे विचार में उनकी स्थिति एक नदी-तट से प्रवाहित दीपों के समान है। दीपदान के दीपकों में कुछ, जल की कम गहरी मन्थरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोके से उत्पन्न तरंग-भगिंमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में बह चलते है और कुछ मझधार की तरंगाकुलता के साथ किसी अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ते हैं। परन्तु दीपकों की इन सापेक्ष दूरियों पर दीपदान देने वाले की मंगलाशा सूक्ष्म अन्तरिक्ष-मण्डल के समान फैल कर उन्हें अपनी अलक्ष्य छाया में एक रखती है। मेरे गीतों पर भी मेरी एक आस्था की छाया है। मनुष्य की आस्था की कसौटी काल का क्षण नहीं बन सकता, क्योंकि वह तो काल पर मनुष्य का स्वनिर्मित सीमावरण है। वस्तुतः उनकी कसौटी क्षणों की अटूट संसृति से बना काल का अजस्त्र प्रवाह ही रहेगा। 'सन्धिनी’ नाम साधना के क्षेत्र में सम्बन्ध रखने के कारण बिखरी अनुभूतियों की एकता का संकेत भी दे सकता है और व्यष्टिगत चेतना का समष्टिगत चेतना में संक्रमण भी व्यंजित कर सकेगा।" सन्धिनी में जो गीत संग्रहीत, उनके विषय रहस्य-साधना, वेदनानुभूति, प्रकृति और दर्शन और हैं। सन्धिनी में भी उनकी रहस्यानुभूति विशेष वाणी मिली है। इन गीतों में प्रकृति के प्रति अज्ञात परम सत्ता या प्रियतम का आभास, परम प्रिय से मिलन की उत्कंठा और मिलन की अनुभूति की भावना को काव्यात्मक रूप दिया गया है। कौन तुम मेरे हृदय में, पंथ होने दो अपरिचित, निशा की धो देता राकेश, शलभ मैं शापमय वर हूँ आदि उनके प्रसिद्ध गीत इसी संग्रह में पहली बार प्रकाशित हुए हैं। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और सन्धिनी · और देखें »

सप्तपर्णा

सप्तपर्णा महादेवी वर्मा का छठा कविता-संग्रह है जिसका प्रकाशन १९५९ में हुआ था। इसमें वैदिक, लौकिक एवं बौद्ध साहित्य के काव्यानुवाद है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और सप्तपर्णा · और देखें »

साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध

साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध महादेवी वर्मा के आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है। इसका प्रकाशन 1962 में हुआ। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:गद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध · और देखें »

सांध्यगीत (कविता-संग्रह)

सांध्यगीत महादेवी वर्मा का चौथा कविता संग्रह हैं। इसमें 1934 से 1936 ई० तक के रचित गीत हैं। 1936 में प्रकाशित इस कविता संग्रह के गीतों में नीरजा के भावों का परिपक्व रूप मिलता है। यहाँ न केवल सुख-दुख का बल्कि आँसू और वेदना, मिलन और विरह, आशा और निराशा एवं बन्धन-मुक्ति आदि का समन्वय है। श्रेणी:कविता संग्रह श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और सांध्यगीत (कविता-संग्रह) · और देखें »

संस्मरण

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनायें संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनका साहित्यिक महत्त्व स्वीकारा गया है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और संस्मरण · और देखें »

संकल्पिता

संकल्पिता महादेवी वर्मा के चुने हुए निबंधों का संग्रह है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:पद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और संकल्पिता · और देखें »

स्मारिका

परिक्रमा महादेवी वर्मा की चुनी हुई कविताओं का संग्रह है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:पद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और स्मारिका · और देखें »

स्मृति की रेखाएं

स्मृति की रेखाएं एक संस्मरण -संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। श्रेणी:गद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और स्मृति की रेखाएं · और देखें »

हिमालय

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और हिमालय · और देखें »

विवेचनात्मक गद्य

विवेचनात्मक गद्य महादेवी वर्मा के आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है। इसका प्रकाशन 1942 में हुआ। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:गद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और विवेचनात्मक गद्य · और देखें »

गिल्लू

गिल्लू महादेवी वर्मा की "मेरा परिवार" नामक कृति से लिया गया एक भाग है जिसमें लेखिका ने एक गिलहरी का मनुष्य के प्रति प्रेम भाव का वर्णन किया गया है यह उनके एक निजी जीवन के असल घटना पर आधारित है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:गद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और गिल्लू · और देखें »

गीतपर्व

परिक्रमा और गीतपर्व महादेवी वर्मा की चुनी हुई कविताओं का संग्रह है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:कविता संग्रह श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और गीतपर्व · और देखें »

आत्मिका

आत्मिका महादेवी वर्मा का कविता-संग्रह है। आधुनिक हिन्दी कविता की मूर्धन्य कवियत्री श्रीमती महादेवी वर्मा के काव्य में एक मार्मिक संवेदना है। सरल-सुधरे प्रतीकों के माध्यम से अपने भावों को जिस ढंग से महादेवीजी अभिव्यक्त करती हैं, वह अन्यत्र दुर्लभ है। वास्तव में उनका समूचा काव्य एक चिरन्तन और असीम प्रिय के प्रति निवेदित है जिसमें जीवन की धूप-छाँह और गम्भीर चिन्तन की इन्द्रधनुषी कोमलता है। आत्मिका में संगृहीत कविताओं के बारे में स्वयं महादेवीजी ने यह स्वीकार किया है कि इसमें मेरी ऐसी रचनाएं संग्रहीत हैं जो मेरी जीवन-दृष्टि, दर्शन, सौन्दर्यबोध और काव्य-दृष्टि का परिचय दे सकेंगी। पुस्तक की भूमिका अत्यंत रोचक है जिसमें उन्होंने अपने बौद्ध भिक्षुणी बनने के विषय में स्पष्टीकरण भी किया है। श्रेणी:कविता संग्रह श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और आत्मिका · और देखें »

आधुनिक कवि महादेवी

आधुनिक कवि महादेवी महादेवी वर्मा की चुनी हुई कविताओं का संग्रह है। श्रेणी:पद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:साहित्य श्रेणी:पद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और आधुनिक कवि महादेवी · और देखें »

किरण

'''बुलबुले से प्रकाश का परावर्तन''': चित्र में दिखायी गयीं सीधी रेखाएँ प्रकाश की किरणों को निरुपित करतीं हैं। प्रकाशिकी के सन्दर्भ में प्रकाश के वेवफ्रॉण्ट (wavefronts) के लम्बवत किसी रेखा को किरण या रश्मि (ray) कहते हैं। वस्तुतः यह प्रकाश का सरलीकृत मॉडल है। किरण, प्रकाश ऊर्जा के प्रवाह की दिशा का द्योतक है। श्रेणी:प्रकाश.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और किरण · और देखें »

क्षणदा

क्षणदा महादेवी वर्मा के ललित निबंधों का संग्रह है। इसका प्रकाशन 1956 में हुआ। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:गद्य श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और क्षणदा · और देखें »

अतीत के चलचित्र

अतीत के चलचित्र महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक रेखाचित्र है। इसमें लेखिका हमारा परिचय रामा, भाभी, बिन्दा, सबिया, बिट्टो, बालिका माँ, घीसा, अभागी स्त्री, अलोपी, बबलू तथा अलोपा इन ग्यारह चरित्रों से करवाती हैं। सभी रेखा-चित्रों को उन्होंने अपने जीवन से ही लिया है, इसीलिए इनमें उनके अपने जीवन की विविध घटनाओं तथा चरित्र के विभिन्न पहलुओं का प्रत्यारोपण अनायास ही हुआ है। उन्होंने अनुभूत सत्यों को जस-का-तस अंकित किया है। महादेवी के रेखाचित्रों की यह विशेषता भी है कि उनमें चरित्र चित्रण का तत्व प्रमुख रहा है और कथ्य उसी का एक हिस्सा मात्र है। इनमें गंभीर लोक दर्शन का उद्घाटन होता चलता है, जो हमारे जीवन की सांस्कृतिक धारा की ओर इंगित करता है। 'अतीत के चल-चित्र' में सेवक 'रामा' की वात्सल्यपूर्ण सेवा, भंगिन 'सबिया' का पति-परायणता और सहनशीलता, 'घीसा' की निश्छल गुरुभक्ति, साग-भाजी बेचने वाले अंधे 'अलोपी' का सरल व्यक्तित्व, कुम्हार 'बदलू' व 'रधिया' का सरल दांपत्य प्रेम तथा पहाड़ की रमणी 'लछमा' का महादेवी के प्रति अनुपम प्रेम, यह सब प्रसंग महादेवी के चित्रण की अकूत क्षमता का परिचय देते हैं। ------------------------------------------------------------- .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और अतीत के चलचित्र · और देखें »

अग्निरेखा

अग्निरेखा महादेवी वर्मा का अंतिम कविता संग्रह है जो मरणोपरांत १९९० में प्रकाशित हुआ। इसमें उनके अन्तिम दिनों में रची गयीं रचनाएँ संग्रहीत हैं जो पाठकों को अभिभूत भी करती हैं और आश्चर्यचकित भी, इस अर्थ में कि महादेवी के काव्य में ओत-प्रोत वेदना और करुणा का वह स्वर, जो कब से उनकी पहचान बन चुका है इसमें मुखर होकर सामने आता है। अग्निरेखा में दीपक को प्रतीक मानकर अनेक रचनाएँ लिखी गयी हैं। साथ ही अनेक विषयों पर भी कविताएँ हैं। - महादेवी वर्मा का विचार है कि अंधकार से सूर्य नहीं दीपक जूझता है- रात के इस सघन अंधेरे में जूझता- सूर्य नहीं, जूझता रहा दीपक! कौन सी रश्मि कब हुई कम्पित, कौन आँधी वहाँ पहुँच पायी? कौन ठहरा सका उसे पल भर, कौन सी फूँक कब बुझा पायी।। अग्निरेखा के पूर्व भी महादेवी जी ने दीपक को प्रतीक मानकर अनेक गीत लिखे हैं- किन उपकरणों का दीपक, मधुर-मधुर मेरे दीपक जल, सब बुझे दीपक जला दूँ, यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो, पुजारी दीप कहाँ सोता है, दीपक अब जाती रे, दीप मेरे जल अकम्पित घुल अचंचल, पूछता क्यों शेष कितनी रात आदि। शायद यही है कि करीन शोमेर ने महादेवी के लिए 'स्वज्वलित दीपक' (self consuming lamp) का सार्थक शीर्षक दिया है। श्रेणी:कविता संग्रह श्रेणी:महादेवी वर्मा श्रेणी:चित्र जोड़ें.

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और अग्निरेखा · और देखें »

१३ मई

१३ मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १३३वॉ (लीप वर्ष मे १३४वॉ) दिन है। साल मे अभी और २३२दिन बाकी है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और १३ मई · और देखें »

२००७

वर्ष २००७ सोमवार से प्रारम्भ होने वाला ग्रेगोरी कैलंडर का सामान्य वर्ष है। .

नई!!: महादेवी वर्मा की रचनाएँ और २००७ · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

महादेवी वर्मा का रचना संसार, महादेवी का रचना संसार।

महादेवी वर्मा ने कौन सा पाठ लिखा है?

उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं।

महादेवी वर्मा का संस्मरण कौन सा है?

महादेवी वर्मा के संस्मरणात्मक रेखाचित्रों का दूसरा संग्रह है " स्मृति की रेखाएँ। इसका प्रथम प्रकाशन 1945 ई.

महादेवी वर्मा की कौन सी भाषा है?

हिन्दीमहादेवी वर्मा / भाषाएंnull

महादेवी वर्मा की सहेली कौन थी?

गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर बनी रहीं। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान के बीच बचपन से मित्रता थी