इसे सुनेंरोकेंयह माना जाता है कि जापानी स्कुलों का लक्ष्य पहले तीन साल तक बच्चों के ज्ञान और सीखने की क्षमता पर ध्यान न देकर बच्चों के अन्दर अच्छे शिष्टाचार को स्थापित करना तथा उनके चरित्र का विकास करना होता है। बच्चों को अपनों से बड़ों के प्रति सम्मान करना तथा जानवरों व प्रकृति के प्रति अच्छा व्यवहार करना सिखाया जाता है। Show
जापान में नई विद्यालय व्यवस्था क्या थी? इसे सुनेंरोकेंजापान में शिक्षा है अनिवार्य प्राथमिक और कम माध्यमिक स्तर पर। अधिकांश छात्र निम्न माध्यमिक स्तर के माध्यम से पब्लिक स्कूलों में जाते हैं, लेकिन निजी शिक्षा उच्च माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर पर लोकप्रिय है। प्राथमिक विद्यालय से पहले शिक्षा किंडरगार्टन और डे-केयर में प्रदान की जाती हैकेंद्र। जापान में कितने स्कूल है?मुम्बई जापानी स्कूल पढ़ना: पठन और वाचन का पाठ्यांश पर क्या प्रभाव पड़ता है? मुम्बई जापानी स्कूल ムンバイ日本人学校स्थितियूनिट न॰ २०१/२०२, हीरानन्दानी नोलेज पार्क, टेक्नोलॉजी स्ट्रीट, नीयर ड्रॉ॰ एल॰ऍच॰ हीराचन्दानी-हॉस्पिटल, पवई, मुम्बई-४०००७६, भारतनिर्देशांक19.1202428°N 72.91588060000004°Eजानकारीजापान के स्कूलों में क्या होता है? इसे सुनेंरोकेंजापान में जूनियर हाई स्कूल तक के बच्चो को अपनी क्लास में बैठ कर लंच करना होता है और उनके शिक्षक भी साथ में बैठ कर खाना खाते हैं। वहा का हर बच्चा अपने साथ बैठने की लिए मेट और अपनी खुद की प्लेट भी लाता है और खाने के बाद अपने बर्तन को भी खुद धोना पड़ता है। जापान में शिक्षा विभाग की स्थापना कब हुई?इसे सुनेंरोकेंइसकी स्थापना 1875 में हुई थी। मेइजी स्कूल पद्धति में किस विषय का अध्ययन करना मुख्य लक्ष्य क्या था? इसे सुनेंरोकेंमेइजी पुनर्स्थापन (明治維新, मेइजी इशिन) उन्नीसवी शताब्दी में जापान में एक घटनाक्रम था जिस से सन् 1868 में सम्राट का शासन फिर से बहाल हुआ। इस से जापान के राजनैतिक और सामाजिक वातावरण में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव आये जिनसे जापान तेज़ी से आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य विकास की ओर बढ़ने लगा। जापान की स्कूल में क्या क्या होता है?इसे सुनेंरोकेंजापान में जूनियर स्कूलों में बच्चे क्लास में ही बैठकर लंच करते हैं. बच्चों के साथ शिक्षक भी वहीं लंच करते हैं. लंच करने के लिए सभी बच्चे अपना प्लेट और मैट लाते हैं. भोजन करने के बाद बच्चों को खुद ही अपनी प्लेट साफ करनी होती है. पढ़ना: पर्यावरण क्या है परिभाषा दें? इसे सुनेंरोकेंबच्चों को उदारता, दयालूता और सहानूभूतिपूर्वक व्यवहार करना भी सिखाया जाता है। इसके अलावा बच्चों को धैर्य, आत्मनियंत्रण तथा न्याय जैसे गुण भी सिखायें जाते है। ज्यादातर स्कुलों में शैक्षणिक वर्ष सितम्बर या अक्टूबर में शुरू होता है, लेकिन जापान के स्कुल अपने शैक्षणिक वर्ष की शुरूआत 1 अप्रेल से करते हैं। जापान की साक्षरता क्या है? इसे सुनेंरोकेंजापान की साक्षरता 100% है, इसका मतलब वहाँ पर सब पढाई करते हैं और सब साक्षर हैं। जापान के आधुनिकीकरण का पारिवारिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?इसे सुनेंरोकेंजापान के आधुनिक समाज में आए बदलाव : (i) वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं। (ii) व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे। (iii) शहरों में जीवंत संस्कृति खिलने लगी जहाँ तेजी से बढ़ते व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहन दिया। जापान का धर्म कौन सा है? इसे सुनेंरोकें-जापान की जनसंख्या 12.7 करोड़ है। इनमें ज्यादातर लोग बौद्ध और शिंतो धर्म के मानने वाले हैं। इसके मुकाबले 70 हजार से एक लाख मुस्लिम आबादी कहीं नहीं ठहरती। पढ़ना: कैंसर छुआछूत की बीमारी है क्या? मेइजी शिक्षा पद्धति का उद्देश्य क्या था?इसे सुनेंरोकेंप्रभाव मेइजी पुनर्स्थापन से जापान में औद्योगीकरण की रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई। “देश को धनवान बनाओ, फ़ौज को शक्तिशाली बनाओ” (富国強兵, फ़ुकोकू क्योहेई) के नारे के अंतर्गत विकास कार्य हुआ। बहुत से जापानी पश्चिमी विश्वविद्यालयों में पढ़ने भेजे गए और विज्ञान और तकनीकी ज्ञान वापस लाए। जापान में ये अनोखे स्कूल के संस्थापक कौन थे? वर्ष 2008 में विद्यालय में 8 जापानी और 7 भारतीय शिक्षकों सहित कुल15 शिक्षक थे। विद्यालय में भूगोल, इतिहास, गणित और विज्ञान विषय जापानी भाषा में पढ़ाये जाते हैं अतः यह कार्य जापानी शिक्षकों द्वारा किया जाता है।…मुम्बई जापानी स्कूल स्थितिजालस्थलjapanese-school-of-mumbai.jimdo.comजापान के आधुनिकीकरण के कारण क्या है?इसे सुनेंरोकेंजापान का आधुनिकीकरण का सफर पूँजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित था और यह सफ़र उसने ऐसी दुनिया में तय किया, जहाँ पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभुत्व था। दूसरे देशों में जापान के विस्तार को पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध करने और एशिया को आजाद कराने की माँग के आधार पर उचित ठहराया गया। Rajasthan Board RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Important Questions and Answers. वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10.
प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35.
प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. प्रश्न 60. प्रश्न 61. प्रश्न 63. प्रश्न 64. प्रश्न 65. प्रश्न 66. प्रश्न 67.
प्रश्न 68. प्रश्न 69. प्रश्न 70. प्रश्न 71. प्रश्न 72. प्रश्न 73. प्रश्न 74. प्रश्न 75. प्रश्न 76. प्रश्न 77. प्रश्न 78. प्रश्न 79. प्रश्न 80. प्रश्न 81. प्रश्न 82. प्रश्न 83. प्रश्न 84. प्रश्न 85. प्रश्न 86. प्रश्न 87. प्रश्न 88. प्रश्न 89. प्रश्न 90. लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA1) प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15.
प्रश्न 16.
प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23.
प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32.
प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA2) प्रश्न 1. प्रश्न 2.
डिम सम प्रमुख भोजन है। उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है, शेचुआँ में तीखा भोजन एवं पूर्वी चीन में चावल व गेहूँ दोनों खाए जाते हैं। प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5.
हुआ। प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. अन्ततः जापान ने अगले साल 1854 ई. में ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए। पेरी के जापान आगमन ने जापानी राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। इससे जापानी सम्राट का महत्व अचानक बढ़ गया। इससे पहले तक सम्राट के पास बहुत कम राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे। सत्ता पर तोकुगावा शोगुनों का प्रभाव बहुत अधिक था। अत: 1867-68 ई. में एक आंदोलन द्वारा तोकुगावा वंश के शोगुनों को सत्ता से जबरन हटा दिया गया। केन्द्रीय शक्ति पुन: सम्राट मेज़ी के हाथों में आ गयी और इस प्रकार जापान में 'मेज़ी पुनर्स्थापना' हुई। प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11.
प्रश्न 12.
प्रश्न 13.
प्रश्न 14.
प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. अर्थात् जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़कर पश्चिमी देशों का हिस्सा बन जाना चाहिए। इन्होंने पश्चिमी देशों पर एक लोकप्रिय आधुनिकीकरण के रास्ते 393) पुस्तक की रचना की। इनके द्वारा लिखित एक अन्य पुस्तक 'गाकुनोन नो सुसुमे' (ज्ञान के लिए प्रोत्साहन) में उन्होंने जापानी ज्ञान की कटु आलोचना की। उन्होंने लिखा कि जापान के पास प्राकृतिक दृश्यों के अतिरिक्त गर्व करने के लिए कुछ भी नहीं है। इनका सिद्धान्त था, "स्वर्ग ने इंसान को इंसान के ऊपर नहीं बनाया, न ही इंसान को इंसान के नीचे।" इनकी मृत्यु 1901 ई. में हुई। प्रश्न 18. दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सुरे ने भी तर्क प्रस्तुत किया कि विश्व सभ्यता के हित में प्रत्येक देश को अपने विशेष कौशल का विकास करना चाहिए। स्वयं को अपने देश के लिए समर्पित करना विश्व को समर्पित करने जैसा है। इसके विपरीत कुछ अन्य जापानी बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद की ओर आकर्षित थे.और वे चाहते थे कि जापान को अपना आधार सेना की अपेक्षा लोकतंत्र को बनाना चाहिए। जनवादी आन्दोलन के नेता उएकी एमोरी ऐसी उदारवादी शिक्षा के पक्षधर थे, जो प्रत्येक व्यक्ति को विकसित कर सके। कुछ अन्य जापानी विद्वानों ने महिलाओं को मताधिकार की भी सिफारिश की। इस दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने के लिए बाध्य किया। प्रश्न 19. प्रश्न 20.
प्रश्न 21. 1850 ई. से पहले चीन में केवल 27000 राजकीय पद थे, जबकि 'सुन्दर प्रतिभा उपाधि' प्राप्त अधिक लोगों के होने के कारण कई लोग नौकरी से वंचित हो जाते थे। इस परीक्षा में केवल साहित्यिक कौशल पर बल दिये जाने के कारण यह विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास में बाधक थी। केवल शास्त्रीय चीनी लेखन की कला पर आधारित होने के कारण इस परीक्षा की आधुनिक विश्व में कोई प्रासंगिकता नजर नहीं आती थी, फलस्वरूप 1905 ई. में इस परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। प्रश्न 22.
सन यात-सेन के यही विचार कुओमीनतांग (सन यात-सेन द्वारा 1912 ई. में स्थापित राजनीतिक दल) के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने रोटी, कपड़ा, मकान और परिवहन इन चार बड़ी आवश्यकताओं पर बल दिया। प्रश्न 23.
प्रश्न 24. प्रश्न 25. 1958 ई. में सरकार ने लम्बी छलांग वाले आंदोलन की नीति अपनाई, जिसके अन्तर्गत देश का तीव्र गति से औद्योगिक विकास करने का प्रयास किया गया। चीनी निवासियों को अपने घरों के अन्तिम भाग में इस्पात की भट्टियाँ लगाने हेतु प्रोत्साहित किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में पीपुल्स कम्यून (सामूहिक खेत) शुरू किए गए, वहाँ लोग इकट्ठे भूमि के मालिक थे तथा मिलजुलकर कृषि कार्य करते थे। इस प्रकार चीन की पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना सरकार ने अनेक कार्य किए। प्रश्न 26. लेकिन इनके लक्ष्य और कार्य शैली पार्टी के सभी लोगों को पसन्द नहीं थी। 1953-54 ई. के दौरान कुछ लोग आर्थिक विकास एवं औद्योगिक संगठनों की ओर अधिक ध्यान देने पर बल दे रहे थे। लीऊ शाओछी व तंग शीयाओफींग जैसे नेताओं ने कम्यून प्रथा को परिवर्तित करने का प्रयास किया। घरों के अन्तिम भाग में बनायी गई इस्पात की भट्टियाँ औद्योगिक दृष्टि से उपयोगी सिद्ध नहीं हो रही थीं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि यद्यपि माओ त्सेतुंग पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे लेकिन उनकी कार्यशैली पार्टी के सभी लोगों को पसंद नहीं थी। . प्रश्न 27. इस कार्य हेतु उन्होंने रेडगार्ड्स मुख्यतः विद्यार्थियों एवं सेना का प्रयोग किया। ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरूकता उत्पन्न करने के लिए विद्यार्थियों एवं व्यावसायिक लोगों को भेजा गया। उन्होंने चीनी लोगों को अधिकाधिक रूप से अपनी साम्यवादी विचारधारा से जोड़ने का प्रयास किया। माओ त्सेतुंग द्वारा प्रारम्भ की गई क्रान्ति से चीनी नेताओं के दर्शनों में टकराव प्रारम्भ हो गया। इस सांस्कृतिक क्रान्ति से देश में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई, पार्टी कमजोर होने लगी तथा शिक्षा व अर्थव्यवस्था में भारी रुकावट आना प्रारम्भ हो गयी। इस तरह माओ त्सेतुंग द्वारा प्रारम्भ की गई सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति पूर्णतः सफल नहीं हो पायी। प्रश्न 28.
प्रश्न 29. 1975 ई. में च्यांग काईशेक की मृत्यु के पश्चात् ताइवान में लोकतंत्र की धीरे-धीरे स्थापना हुई। 1987 ई. में यहाँ से सैनिक शासन हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गयी। स्वतंत्र मतदान द्वारा स्थानीय ताईवानी लोग सत्ता में आने लगे। राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन ताइवान में स्थापित होने लगे। उन देशों के द्वारा ताइवान से पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध व दूतावास रखना सम्भव नहीं हो पाया है क्योंकि ताइवान को चीन का ही हिस्सा माना जाता है। इस तरह ताइवान में लोकतंत्र की स्थापना हुई। दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. चीन की भौगोलिक स्थिति-चीन की भौगोलिक स्थिति का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है (i) चीन एक विशाल महाद्वीपीय देश है। इस देश में कई प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं। इस देश की तीन प्रमुख नदियाँ हैं (अ) हुआंग हे नदी-यह चीन की एक प्रमुख नदी है। इसे पीली नदी के नाम से भी जाना जाता है। (ब) छांग जियांग नदी-इसे यांग्त्सी नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। (स) पर्ल नदी। (ii) इस देश का धरातल ऊबड़-खाबड़ तथा पहाड़ी है। यह प्रणाली इसलिए प्रसिद्ध है कि विदेशों में रहने वाले अधिकतर चीनी कैंटन प्रान्त के हैं। डिम सम यहाँ का प्रमुख भोजन है। इसका निर्माण गुंथे हुए आटे को सब्जी आदि भरकर उबालकर किया जाता है। उत्तर में गेहूँ प्रमुख आहार है। शेचुआँ में प्राचीनकाल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा लाई गई मिर्च के कारण विशेष मसालेदार व तीखा भोजन मिलता है। पूर्वी चीन में चावल व गेहूँ दोनों खाए जाते हैं। जापान की भौगोलिक स्थिति जापान एक छोटा-सा द्वीपीय देश है। इसके चार सबसे बड़े द्वीप हैं-होश, क्यूश, शिकोक तथा होकाइदो। सबसे दक्षिण में ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला है। मुख्य द्वीपों की 50% से अधिक भूमि पहाड़ी है। जापान बहुत सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में है। जापान की इन भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है। जापान की सामाजिक स्थिति-जापान की अधिकतम जनसंख्या जापानी है। परन्तु कुछ आयनू और कुछ कोरियाई मूल के लोग भी हैं। कोरिया के लोगों को श्रमिक के रूप में उस समय जापान लाया गया था, जब कोरिया, जापान का उपनिवेश था। जापान एक पहाड़ी देश है। यहाँ बहुत कम खेती होती है। पहाड़ों पर कुछ चावल उगाया जाता है। चावल यहाँ की मुख्य फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ की कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो गई है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। जापान में पशुपालन नहीं होता है। प्रश्न 2. (2) यातायात व संचार के साधनों का विकास-मेज़ी सरकार ने यातायात और संचार के साधनों के विकास की ओर भी विशेष ध्यान दिया। 1872 ई. में जापान में रेलवे लाइनें बिछाने का कार्य प्रारम्भ हुआ और 1894 ई. तक सम्पूर्ण देश में रेलवे लाइन का जाल बिछ गया। 1872 ई. में तोक्यो और याकोहामा के बीच 19 मील रेलवे लाइन बिछाई गयी। 1874 ई. में कोबे और ओसाका के मध्य रेलगाड़ी चलने लगी। 1893 ई. में जापान में 1,500 मील लम्बी रेलवे लाइनें बिछा दी गईं। इस रेलमार्ग ने देश के आन्तरिक व्यापार की उन्नति में बहुत सहायता पहुँचायी। इसके फलस्वरूप जापान में राष्ट्रीयता के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली, इसके साथ ही सरकार ने डाक विभाग का भी संगठन किया। 1868 ई. में पहली बार टेलीग्राफ का प्रयोग किया गया। कुछ वर्षों में ही जापान में अनेक डाकघरों की स्थापना हो गई। रेलवे तथा डाक के विकास के साथ-साथ मेज़ी सरकार ने जहाजों के निर्माण की ओर भी ध्यान दिया तथा उन्नीसवीं सदी के अन्त तक नौसैनिक शक्ति ने आश्चर्यजनक प्रगति कर ली। (3) शिक्षा के क्षेत्र में सुधार-मेज़ी शासन में जापान में शिक्षा के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए गए। 1868 ई. की शाही शपथ घोषणा में कहे गए इस वाक्य कि 'हर स्थान से ज्ञान प्राप्त किया जाए' के अनुसार 1871 ई. में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। एक कानून बनाकर यह व्यवस्था कर दी गई कि "प्रत्येक व्यक्ति ऊँचा और नीचा, स्त्री और पुरुष शिक्षा प्राप्त करे, जिससे कि सम्पूर्ण समाज में कोई परिवार और परिवार का कोई भी व्यक्ति अशिक्षित और अज्ञानी न रह जाए।" (4) मुद्रा विनिमय में सुधार-मेज़ी सरकार ने मुद्रा विनिमय में भी सुधार किया। अब जापान में विनिमय के लिए सोना-चाँदी का प्रयोग होता था और इसके साथ-साथ शोगुन शासक तथा उनके सामन्तों ने अपने-अपने सिक्के चला रखे थे। इसके अतिरिक्त सोने तथा चाँदी का ऐसा सम्बन्ध था कि विदेशी अपने देश से चाँदी मँगा लेते थे और 1858 ई. की सन्धि तथा बाद में हुए जापानी सरकार के साथ अन्य समझौते के अनुसार उसे जापान की चाँदी में बदल लेते थे और बाद में इस जापानी चाँदी को सोने में बदलकर उसका निर्यात करते थे। इसके परिणामस्वरूप जापान का सोना विदेशों में चला जाता था। सन्धि परिवर्तन तथा विनिमय नियन्त्रण के द्वारा ही इस स्थिति में सुधार और निराकरण हो सकता था। सरकार के सामने ऐसी कागजी मुद्रा चलाने के अतिरिक्त और कोई चारा ही न था जो सोने-चाँदी में न बदली जा सके। (5) बैंकिंग सुविधाओं का विकास-मुद्रा विनिमय तथा बैंकों की समस्या को हल करने की दिशा में पहला कदम मेज़ी सरकार ने 1872 ई. में उठाया। हेतो ने अमरीकन मुद्रा तथा बैंकिंग प्रणाली का विशेष अध्ययन कर यह सुझाव दिया कि अमेरिकन प्रणाली के आधार पर राष्ट्रीय बैंक का विनिमय कर दिया जाए। 1873 ई. में जापान में पहला राष्ट्रीय बैंक स्थापित किया गया। 1876 के बाद बैंकिंग का बड़ी तेजी के साथ विकास हुआ। 1879 ई. तक जापान में 157 राष्ट्रीय बैंकों की स्थापना हो गयी थी। (6) धार्मिक क्षेत्र में सुधार-मेज़ी शासन की पुनर्स्थापना के बाद जापान में धार्मिक जीवन में भी परिवर्तन हुआ। बौद्ध धर्म के स्थान पर शिन्तो धर्म का विशेष प्रचार हुआ और यह जापान का राजधर्म बन गया। इस धर्म ने राष्ट्रीयता के विकास में काफ़ी सहायता पहुँचाई। जापानी अपने सम्राट के प्रति असीम श्रद्धा और अटूट राजभक्ति रखने लगे। इसके परिणामस्वरूप जापानी लोगों में राष्ट्रीय चेतना तथा एकता की भावना का उदय हुआ। प्रश्न 3. (2) रेलवे लाइन का निर्माण-देश में आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए रेलवे का विकास किया गया। यह रेलवे लाइन तोक्यो से योकोहामा के मध्य बिछाई गयी। 1874 ई. तक जापान में 2118 मील लम्बी रेलवे लाइनों का निर्माण हो चुका था। इन रेलवे लाइनों के माध्यम से यात्रियों का आवागमन सुगम हुआ और माल की ढुलाई से व्यापार का भी विस्तार हुआ। (3) उद्योगों का विकास-जापान में वस्त्र उद्योग के विकास के लिए यूरोप से मशीनों का आयात किया गया। लौह इस्पात, वस्त्र आदि के अनेक कारखानों की स्थापना की गयी, फलस्वरूप वस्त्र एवं लौह इस्पात का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। उद्योगों में कार्य करने वाले श्रमिकों के प्रशिक्षण हेतु दक्ष प्रशिक्षकों को यूरोप से बुलाया जाता था। (4) जहाज निर्माण को प्रोत्साहन-जापान में मेज़ी शासनकाल के दौरान जहाज निर्माण के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई। देश में जहाज निर्माण को बढ़ावा देने हेतु मित्सुबिशी व सुमितोमो जैसी कम्पनियों को अनुदान व करों में लाभ दिया गया। इससे जापानी व्यापार जापान के जहाजों के माध्यम से ही होने लगा। (5) बैंकों की स्थापना-1872 ई. के दौरान जापान में आधुनिक बैंकिंग सुविधाओं का विकास हुआ। धीरे-धीरे जापान में अनेक बैंकों की स्थापना होने लगी, जिन्होंने देश के उद्योगों एवं व्यापारिक गतिविधियों के संचालन हेतु पर्याप्त ऋण प्रदान कर अर्थव्यवस्था को गतिशीलता प्रदान की। (6) बड़ी व्यापारिक कम्पनियों की स्थापना-जापान में ज़ायबात्सु नामक बड़ी व्यापारिक संस्थाओं की स्थापना की गयी। इन संस्थाओं पर विशिष्ट परिवारों का नियंत्रण होता था। जापानी अर्थव्यवस्था पर इन संस्थाओं का प्रभुत्व द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् भी बना रहा। औद्योगिक विकास का पर्यावरण पर प्रभाव-मेज़ी शासन के दौरान उद्योगों का तीव्र गति से विकास एवं लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग बढ़ने से पर्यावरण का विनाश हुआ। औद्योगिक प्रदूषण की बढ़ती हुई तीव्रता को देखते हुए जापानी संसद के निम्न सदन के सदस्य तनाका शोज़ो ने 1897 ई. में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा कि औद्योगिक प्रगति के लिए सामान्य जनता की बलि देना तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने अपने आन्दोलन द्वारा पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध जापानी सरकार को उचित कार्यवाही करने हेतु बाध्य कर दिया। प्रश्न 4. इस दौरान जापान का विसैन्यीकरण किया गया तथा वहाँ एक नया संविधान लागू किया गया। नये संविधान के अनुच्छेद में यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रीय नीति के माध्यम से युद्ध का प्रयोग नहीं किया जायेगा। इसके अतिरिक्त कृषि सुधार किये गये तथा व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन किया गया और जापानी अर्थव्यवस्था में बड़ी एकाधिकार वाली कम्पनियों के प्रभुत्व को समाप्त करने का प्रयास किया गया। राजनीतिक दलों को पुनर्जीवित किया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् 1946 ई. में जापान में हुए प्रथम आम चुनाव में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया। (2) जापानी अर्थव्यवस्था का विकास-द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान ने अपनी अर्थव्यवस्था के विकास हेतु अनेक प्रयत्न किये फलस्वरूप उनका प्रभाव भी एक चमत्कार के रूप में हमारे समक्ष आया। जापानी अर्थव्यवस्था तीव्र गति से विकास के पथ पर अग्रसर होने लगी। इसी दौरान जापानी संविधान को औपचारिक रूप से गणतांत्रिक रूप भी प्रदान किया गया। जापानी बुद्धिजीवियों ने जनवादी आन्दोलनों एवं राजनीतिक भागीदारी का आधार रखने में बहुत अधिक योगदान दिया। सरकार, नौकरशाही एवं सेना के मध्य निकटता का सम्बन्ध स्थापित किया गया। अमरीकी समर्थन तथा साथ ही कोरिया व वियतनाम के मध्य युद्ध छिड़ने से भी जापानी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्राप्त हुई। 1964 ई. में तोक्यो में हुए ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की प्रगति का प्रमाण थे। 1964 ई. में ही जापानी अर्थव्यवस्था को तीव्र गति प्रदान करने के लिए बुलेट ट्रेनों का जाल भी बिछाया गया। ये रेलगाड़ियाँ 200 से 300 मील प्रतिघण्टे की गति से चलती थीं। इन रेलों द्वारा यात्री एवं माल का परिवहन शीघ्रता से होने लगा, फलस्वरूप जापान नई तकनीकी के बल पर श्रेष्ठ व सस्ते उत्पाद बाजार में प्रस्तुत करने में सफल रहा। (3) पर्यावरण प्रदूषण एवं नागरिक समाज आन्दोलन-1960 ई. के दशक में बढ़ते औद्योगीकरण के कारण लोगों के स्वास्थ्य व पर्यावरण को बहुत अधिक हानि उठानी पड़ी। फलस्वरूप नागरिक समाज आन्दोलनों का विकास हुआ। 1960 ई. के दशक में मिनामाता में पारे का विष फैलने एवं 1970 ई. के दशक के उत्तरार्ध में वायु प्रदूषण के फैलने सम्बन्धी समस्याओं के समाधान में इन नागरिक समाज आन्दोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आज छोटे से देश जापान ने अपनी अर्थव्यवस्था का इतना अधिक विकास कर लिया है कि वह आज विकसित देशों की गिनती में सम्मिलित है। प्रश्न 5. (2) अफ़ीम युद्ध की भूमिका-उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन ने अपने अफ़ीम के व्यापार में वृद्धि करने के लिए चीन के विरुद्ध सैन्य बल का प्रयोग किया फलस्वरूप ब्रिटेन व चीन के मध्य प्रथम अफ़ीम युद्ध 1839 ई. 1842 ई. के मध्य हुआ। इस युद्ध में चीन की पराजय हुई। इस युद्ध ने चीन के सत्ताधारी क्विंग राजवंश की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाया और उसे कमजोर कर दिया। इससे चीन में सुधार एवं परिवर्तनों की माँग होने लगी। (3) प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार-चीन के प्रसिद्ध समाज सुधारकों, जैसे-कांग युवेई व लियांग किचाउ ने चीन की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार कर व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर बल दिया। फलस्वरूप चीनी सरकार ने एक आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था, नवीन शिक्षा प्रणाली एवं नई सेना के निर्माण के लिए नीतियाँ बनायीं। इसके अतिरिक्त देश में संवैधानिक सरकार के गठन हेतु स्थानीय विधायिकाओं का गठन किया गया। (4) उपनिवेशित देशों के उदाहरण-चीनी समाज सुधारकों ने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने पर भी बल दिया। वे साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों से प्रभावित थे। भारत एवं पोलैण्ड जैसे देशों के उदाहरणों से चीनी लोग प्रभावित थे। वे अपने देश को एक उपनिवेश के रूप में नहीं देखना चाहते थे। कई जापानी विद्वानों ने भारत की आलोचना करते हुए कहा कि यह देश एक कम्पनी (ईस्ट इंडिया कम्पनी) के हाथों नष्ट हो गया है। यहाँ के लोग ब्रिटिश लोगों की सेवा कर रहे हैं तथा बदले में उनके क्रूर व्यवहार को सहन कर रहे हैं। ऐसे विद्वानों के तर्क से चीनी लोग प्रभावित थे। वे मानते थे कि ब्रिटेन, चीन के साथ युद्ध में भारतीय सैनिकों का प्रयोग करता है। (5) कन्फयूशियसवाद-चीन में लोगों ने अनुभव किया कि परम्परागत सोच को बदलकर ही चीन का विकास किया जा सकता है। चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं धर्म सुधारक कन्फयूशियस ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से लोगों की सोच को बदलने का प्रयास किया। इसी विचारधारा को कन्फयूशियसवाद कहा गया। इस विचारधारा के अन्तर्गत अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी व उचित सामाजिक सम्बन्धों पर बल दिया गया था। इस विचारधारा ने चीनी लोगों के जीवन के प्रति दृष्टिकोणों को प्रभावित किया, सामाजिक मानक प्रदान किये तथा चीनी राजनीतिक संघ व संगठनों को आधार प्रदान किया। (6) अध्ययन हेतु विदेश भेजना-चीनी सरकार ने नए विषयों में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए विद्यार्थियों को ब्रिटेन, फ्रांस व जापान आदि देशों में पढ़ने हेतु भेजा। 1870 ई. के दशक में एक बड़ी संख्या में चीनी विद्यार्थी शिक्षा प्राप्ति हेतु जापान गये जहाँ उन्होंने न्याय, अधिकार व क्रांति के विचारों को ग्रहण किया। इस शिक्षा ने चीन में गणतंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। (7) जापान-रूस के मध्य युद्ध-चीनी प्रदेशों पर अधिकार करने के लिए चीन की भूमि पर 1905 ई. में जापान और रूस के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध के पश्चात् प्राचीन काल से चली आ रही चीनी परीक्षा प्रणाली समाप्त कर दी गई। यह प्रणाली चीनियों को कुलीन सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने का कार्य करती थी। (8) गणतंत्र की स्थापना-1911 ई. में हुई क्रान्ति द्वारा मांच साम्राज्य को समाप्त कर दिया गया। इसके पश्चात् सन यात-सेन के नेतृत्व में चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई। गणतंत्र की स्थापना के पश्चात् ही चीन का एक आधुनिक देश के रूप में उदय हुआ। प्रश्न 6. (2) कन्फयूशियसवाद का समर्थन-कन्फयूशियसवाद चीन की एक प्रमुख विचारधारा रही है। यह विचारधारा कन्फयूशियस व उसके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई। इस विचारधारा के अन्तर्गत अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी व उचित सामाजिक सम्बन्धों के सिद्धान्तों पर बल दिया गया। इस विचारधारा का च्यांग काईशेक ने समर्थन किया। (3) राष्ट्र का सैन्यीकरण करना-च्यांग काईशेक ने चीन का सैन्यीकरण करने का कार्यक्रम जारी रखने का प्रयास किया। (4) एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदतों का विकास-इस बात पर बल दिया कि लोगों को एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत का विकास करना चाहिए। (5) महिलाओं के विकास पर बल-च्यांग काईशेक ने चीन में महिलाओं के विकास पर भी बल दिया। उन्होंने महिलाओं को चार सद्गुण उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये चार सद्गुण थे-सतीत्व, वाणी, काम व रंग-रूप। उन्होंने महिलाओं की भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर बल दिया। (6) औद्योगिक विकास-च्यांग काईशेक के शासनकाल में चीन का औद्योगिक विकास मंद था तथा यह भी कुछ गिने-चुने क्षेत्रों तक ही सीमित था। 1919 ई. में शंघाई जैसे शहरों में औद्योगिक श्रमिक वर्ग का उदय हो रहा था तथा उनकी संख्या लगभग 5 लाख थी। इन श्रमिकों में अल्प मात्रा में ही श्रमिक जहाज़ निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में कार्यरत थे। अधिकांश लोग व्यापारी व दुकानदार थे। (7) शहरी श्रमिकों की दयनीय दशा-चीन में शहरी श्रमिकों विशेषकर महिलाओं को बहुत कम वेतन मिलता था। कार्य की परिस्थितियाँ, कार्य के घण्टे बहुत लम्बे थे। च्यांग काईशेक के शासनकाल में व्यक्तिवाद बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकार, परिवार निर्माण के तरीकों व प्रेम-मोहब्बत जैसे इन विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। __(8) विद्यालयों और विश्वविद्यालयों का विस्तार-च्यांग काईशेक के शासनकाल में विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों का विस्तार किया गया जिससे चीन के सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में सहायता प्राप्त हुई। 1902 ई. में पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। (9) पत्रकारिता का विकास-च्यांग काईशेक के शासनकाल में चीन में पत्रकारिता का भी विकास हुआ। शाओ तोआफेन द्वारा सम्पादित लोकप्रिय पत्रिका 'लाइफ वीकली' इस नयी विचारधारा की प्रतिनिधि थी। इस पत्रिका ने अपने चीनी पाठकों को नए विचारों के साथ-साथ महात्मा गाँधी व कमाल अतातुर्क जैसे नेताओं की विचारधाराओं से अवगत कराया। प्रश्न 7. माओ त्सेतुंग के नियंत्रण में साम्यवादी दल का शक्तिशाली बनना: लाँग मार्च का आयोजन- प्रश्न 8. 1978 ई. से चीन में प्रारम्भ होने वाले सुधारों का विस्तार से वर्णन कीजिए। उत्तर: 1978 ई. से चीन में प्रारम्भ होने वाले सुधारों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है (1) समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था का प्रारम्भ-माओ त्सेतुंग द्वारा चीन में सांस्कृतिक क्रान्ति के पश्चात् चीनी साम्यवादी दल में राजनीतिक दाव-पेंच की प्रक्रिया आरम्भ हुई। तंग शीयाओफींग ने पार्टी पर सुदृढ़ नियंत्रण बनाए रखा तथा देश में साम्यवादी बाजार अर्थव्यवस्था का आरम्भ किया। अब चीनी लोग स्वच्छंद रूप से उपभोक्ता सामग्री खरीदने में समर्थ होने लगे। (2) चार सूत्री लक्ष्यों की घोषणा-1978 ई. में चीन साम्यवादी दल ने आधुनिकीकरण के अपने चार सूत्री लक्ष्यों की घोषणा की। जिनमें विज्ञान, उद्योग, कृषि एवं रक्षा का विकास करना सम्मिलित था। पार्टी से बहस न करने की शर्त पर वाद-विवाद करने की अनुमति भी प्रदान की गई। (3) नवीन व स्वतंत्र विचारों का प्रचार-प्रसार-1978 ई. व उसके पश्चात् चीन में किए गए सुधारों से नवीन व स्वतंत्र विचारों का पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुआ। 5 दिसम्बर 1972 ई. को चीन में एक भवन की दीवार पर लगे एक पोस्टर में यह दावा किया गया था कि लोकतंत्र के अभाव में अन्य समस्त आधुनिकताएँ किसी काम की नहीं हैं अर्थात् अनुपयोगी हैं। लोकतंत्र के बिना आधुनिकीकरण सम्भव नहीं है। इसी पोस्टर में निर्धनता और लैंगिक शोषण की समाप्ति न हो पाने के लिए साम्यवादी पार्टी की आलोचना भी की गई। (4) लोकतंत्र की माँग-1989 ई. में, 4 मई 1919 ई. के आन्दोलन की 70वीं सालगिरह के अवसर पर अनेक चीनी विद्वानों ने अधिक खुलेपन तथा कठोर सिद्धान्तों को समाप्त करने की माँग की। इसी माँग के सम्बन्ध में बीजिंग के तियानमेन चौक पर हजारों चीनी विद्यार्थियों ने एक विशाल प्रदर्शन कर लोकतंत्र की माँग की। परन्तु चीन सरकार ने विद्यार्थियों के प्रदर्शन का करता से दमन कर दिया। चीनी सरकार के इस कदम की विश्वभर में आलोचना हुई। (5) चीन के विकास पर वाद-विवाद-बीजिंग में हुए विद्यार्थियों के विशाल प्रर्दशन के कुछ समय पश्चात् चीन में विकास के प्रश्न पर पुनः वाद-विवाद प्रारम्भ हो गया। साम्यवादी पार्टी चीन में एक मजबूत राजनीतिक प्रशासन, आर्थिक खुलेपन एवं विश्व बाजार में वैश्वीकरण का समर्थन करती थी। लेकिन आलोचकों का यह मत है कि राजनीतक गुटों, क्षेत्रों तथा पुरुषों व महिलाओं के मध्य असमानता निरन्तर बढ़ रही है जो चीन में सामाजिक तनाव में वृद्धि कर रही है। निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि आज चीन में प्राचीन परम्पारिक विचार पुनर्जीवित हो रहे हैं। कन्फयूशियस की शिक्षाओं को अपनाया जा रहा है फलस्वरूप चीन अपने बल पर आधुनिक समाज का निर्माण करते हुए विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। प्रश्न 9. (2) ताइवान में चीनी गणतंत्र की स्थापना-1949 ई. में च्यांग काईशेक ने ताइवान में चीनी गणतंत्र की स्थापना कर एक दमनकारी सरकार का गठन किया। इसके शासनकाल में लोगों से सरकार के विरुद्ध बोलने एवं राजनीतिक विरोध करने की स्वतंत्रता छीन ली। सत्ता के केन्द्रों से स्थानीय लोगों को पूर्ण रूप से हटा दिया गया। (3) अर्थव्यवस्था में सुधार-च्यांग काईशेक की ताइवानी सरकार ने खेती की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कई भूमि सुधार कार्यक्रम लागू किए। सरकार ने अर्थव्यवस्था का भी आधुनिकीकरण किया। फलस्वरूप 1973 ई. में कुल राष्ट्रीय उत्पाद के मामलों में ताइवान एशिया महाद्वीप में जापान के पश्चात् द्वितीय स्थान पर रहा। ताइवानी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से व्यापार पर आधारित थी, जिससे अमीर व गरीब की खाई कम हो गयी। (4) लोकतंत्र की स्थापना-ताइवान में लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया 1975 ई. में च्यांग काईशेक की मृत्यु के पश्चात् मंद गति से शुरू हुई। इस दिशा में कदम उठाते हुए ताइवान से 1987 ई. में सैनिक शासन को हटा लिया गया तथा विरोधी राजनीतिक दलों को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गयी। स्वतंत्र मतदान प्रक्रिया के माध्यम से स्थानीय ताइवानी लोग भी सत्ता में आने लगे। राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन ताइवान में स्थापित हुए। ताइवान को चीन का एक भाग माने जाने के कारण विभिन्न देशों द्वारा ताइवान से संपूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित कर दूतावास स्थापित करना सम्भव नहीं हो पाया। (5) चीन-ताइवान के पुनः एकीकरण की समस्या-वर्तमान समय में भी चीन के साथ ताइवान का पुनः एकीकरण एक विवाद का विषय बना हुआ है। धीरे-धीरे ताइवान के साथ चीन के सम्बन्धों में सुधार आ रहा है। चीन के साथ ताइवानी व्यापार बढ़ रहा है तथा चीन में ताइवानी निवेश में भी वृद्धि हो रही है। निकट भविष्य में चीन व ताइवान एक हो सकते हैं। प्रश्न 10. (1) परम्पराओं को त्यागना-1 (2) अधिकार व सत्ता प्रदान करने का आश्वासन- (3) आर्थिक असमानताओं की समाप्ति- (4) शिक्षा का प्रसार-चीन में शिक्षा का पर्याप्त प्रचार- (5) बाजार सम्बन्धी सुधार- (ब) जापान के आधुनिकीकरण का मार्ग- (2) औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना-जापान ने एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की। उसने चीन के ताइवान को अपना एक उपनिवेश बनाया, जिससे उस क्षेत्र में कटुता की भावना बनी रही तथा आन्तरिक विकास भी अवरुद्ध हुआ। (3) जापानी राष्ट्रवाद-जापान का आधुनिकीकरण ऐसे वातावारण में हुआ, जब पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। यद्यपि जापान ने पश्चिमी देशों का अनुसरण करने का प्रयास किया परन्तु साथ ही साथ अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान ढूँढ़ने का भी प्रयास जारी रखा। जापानी लोग एशिया को पश्चिमी शक्तियों के नियन्त्रण से मुक्त रखने की आशा करते थे। दूसरे लोगों के लिए यही विचार साम्राज्य की स्थापना करने के लिए महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए। (4) परम्पराओं का नवीन रूप से प्रयोग करना-जापान में राजनीतिक एवं सामाजिक संस्थानों में सुधार के लिए परम्पराओं को नए एवं रचनात्मक तरीके से प्रयोग करना आवश्यक था। उदाहरण के लिए; मेज़ी शासनकाल की विद्यालयी शिक्षा प्रणाली ने यूरोपीय व अमरीकी प्रथाओं के अनुसार नवीन विषयों को प्रारम्भ किया लेकिन पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जापान के लिए निष्ठावान नागरिकों का निर्माण करना था। जापानी विद्यार्थियों को नैतिक शास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य था क्योंकि इसमें जापानी सम्राट के प्रति स्वामिभक्ति पर बल दिया जाता था। निष्कर्ष-निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि चीन और जापान दोनों ने अलग-अलग मार्ग अपनाए। आज जापान एवं चीन दोनों ही देश विकास के शिखर पर पहुँच गए हैं। यद्यपि चीन में आज भी राजनीतिक व्यवस्था पर साम्यवादी पार्टी का कड़ा नियंत्रण है। चीन में पुनः सामाजिक अव्यवस्था बढ़ रही है तथा सदियों से दबी पड़ी परम्पराएँ पुनः जीवित होने लगी हैं। आज चीन के समक्ष यह प्रश्न उठ रहा है कि चीन किस प्रकार अपनी धरोहर को बनाये रखते हुए अपना विकास कर सकता है। वहीं जापान एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के कारण साधनविहीन देश होते हुए भी अपने तकनीकी ज्ञान के बल पर निरन्तर विकास की ओर अग्रसर हो रहा है और जापान के समाज की सुदृढ़ता उसके सीखने की शक्ति एवं राष्ट्रवाद की शक्ति को दर्शाता है। मेइजी शिक्षा पद्धति का उद्देश्य क्या था?प्रभाव मेइजी पुनर्स्थापन से जापान में औद्योगीकरण की रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई। "देश को धनवान बनाओ, फ़ौज को शक्तिशाली बनाओ" (富国強兵, फ़ुकोकू क्योहेई) के नारे के अंतर्गत विकास कार्य हुआ। बहुत से जापानी पश्चिमी विश्वविद्यालयों में पढ़ने भेजे गए और विज्ञान और तकनीकी ज्ञान वापस लाए।
1 मेजी पुनर्स्थापना के मुख्य कारण क्या थे वर्णन कीजिए?मेइजी पुनर्स्थापन (明治維新, मेइजी इशिन) उन्नीसवी शताब्दी में जापान में एक घटनाक्रम था जिस से सन् 1868 में सम्राट का शासन फिर से बहाल हुआ। इस से जापान के राजनैतिक और सामाजिक वातावरण में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव आये जिनसे जापान तेज़ी से आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य विकास की ओर बढ़ने लगा।
शोगुन कौन थे जापान की शासन व्यवस्था में उनकी भूमिका का उल्लेख कीजिए?शोगुन (जापानी: 将軍, अर्थ: सेनापति, महामंत्री) यह एक राजकीय उपाधि थी जो सन् ११९२ से १८६७ तक जापान के सम्राट के महामंत्री या सेनापति को दी जाती थी। यह सैन्य तानाशाह होते थे और अपने वंश चलाते थे। इस काल के जापानी इतिहास को इन्ही शोगुन वंशों के कालों में बांटा जाता है।
मेजी पूर्ण स्थापना कब हुई?1868 - 1889
मेइजी पुनर्स्थापन उन्नीसवी शताब्दी में जापान में एक घटनाक्रम था जिस से सन् 1868 में सम्राट का शासन फिर से बहाल हुआ। इस से जापान के राजनैतिक और सामाजिक वातावरण में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव आये जिनसे जापान तेज़ी से आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य विकास की ओर बढ़ने लगा।
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