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व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारकFactors Influencing to Development of Personalityरैक्स एवं नाइट (Rex and Knight) के शब्दों में, “मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों से भी है। इनमें से कुछ कारक शारीरिक रचना सम्बन्धी और जन्मजात एवं दूसरे पर्यावरण सम्बन्धी है।“
अत: व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का क्रमबद्ध विवरण इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है- 1. वंशानुक्रम (Heredity)अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों के आधार पर सिद्ध कर दिया है कि व्यक्तित्व के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। उदाहरणार्थ– इसी प्रकार कँडोल (Candole) और कार्ल पियरसन (Karl Pearson) ने भी सिद्ध किया है कि कुलीन एवं व्यवसायी कुलों में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति ही साहित्य, विज्ञान और राजनीति के क्षेत्रों में यश प्राप्त करते हैं। सारांश में हम स्किनर तथा हैरीमैन के शब्दों में कह सकते हैं, “मनुष्य का व्यक्तित्व स्वाभाविक विकास का परिणाम नहीं है। उसे अपने माता-पिता से कुछ निश्चित शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और व्यावसायिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।“ 2. जैविक कारक (Biological factors)व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य जैविक कारक हैं – नलिकाविहिन ग्रन्थियाँ (Ductless Glands), अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands) और शारीरिक रसायन (Body Chemistry)। इन कारकों का व्यक्तित्व के विकास पर जो प्रभाव पड़ता है, उनके विषय में गैरेट (Garrett) का मत है, “जैविक कारकों का प्रभाव सामाजिक कारकों के प्रभाव से अधिक सामान्य और कम विशिष्ट है, पर किसी प्रकार कम महत्त्वपूर्ण नहीं है क्योंकि जैविक कारक ही व्यक्तित्व के विकास की सीमा को निर्धारित करते हैं।“ 3. शारीरिक रचना (Physical structure)शारीरिक रचना के अन्तर्गत शरीर के अंगों का पारस्परिक अनुपात, शरीर की लम्बाई और भार, नेत्रों और बालों का रंग, मुखाकृति आदि आते हैं। ये सभी किसी न किसी रूप में व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ–
4. दैहिक प्रवृत्तियाँ (Physiological tendencies)जलोटा (Jalota) का मत है कि दैहिक प्रवृत्तियों के कारक शरीर के अन्दर रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जिनके फलस्वरूप व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी या आकांक्षाहीन, सक्रिय या निष्क्रिय बनता है। इन बातों का उसके व्यक्तित्व के विकास पर वांछनीय या अवांछनीय प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। वुडवर्थ का कथन है, “शरीर की दैहिक दशा, मस्तिष्क के कार्य पर प्रभाव डालने के कारण व्यक्ति के व्यवहार एवं व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।“ 5. मानसिक योग्यता (Mental ability)व्यक्ति में जितनी अधिक मानसिक योग्यता होती है, उतना ही अधिक वह अपने व्यवहार को समाज के आदर्शों और प्रतिमानों के अनुकूल बनाने में सफल होता है। परिणामत: उसके व्यक्तित्व का उतना ही अधिक विकास होता है। उसकी तुलना में अल्प मानसिक योग्यता वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास कहीं कम होता है। 6. विशिष्ट रुचियाँ (Specific interest)मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास उस सफलता के अनुपात में होता है जो उसे किसी कार्य को करने से प्राप्त होती है। इस सफलता का मुख्य आधार है। उस कार्य में उसकी विशिष्ट रुचि। कला या संगीत में विशिष्ट रुचि लेने वाला व्यक्ति ही कलाकार या संगीतज्ञ के रूप में उच्चतम स्थान पर पहुँच सकता है। अत: स्किनर तथा हैरीमैन (Skinner and Harriman) का मत है, “विशिष्ट रुचि की उपस्थिति को व्यक्तित्व के विकास के आधारभूत कारकों की किसी भी सूची में सम्मिलित किया जाना आवश्यक है।“ 7. भौतिक वातावरण (Physical environument)भौतिक या प्राकृतिक वातावरण अलग-अलग देशों और प्रदेशों के निवासियों के व्यक्तित्व पर अलग-अलग तरह की छाप लगाता है। यही कारण है कि मरुस्थल में निवास करने वाले अरब और हिमाच्छादित टुण्डा प्रदेश में रहने वाले ऐस्किमों लोगों की आदतों, शारीरिक बनावटों, जीवन की विधियों, रंग और स्वास्थ्य आदि में स्पष्ट अन्तर मिलता है। थोर्प एवं शमलर (Trop and Schmutlar) ने लिखा है, “यद्यपि भौतिक स्थानों के अन्तरों का, व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभावों का अभी तक बहुत कम अध्ययन किया गया है, पर भावी अनुसन्धान यह सिद्ध कर सकते हैं कि ये प्रभाव आधारहीन नहीं हैं।“ 8. सामाजिक वातावरण (Social environment)बालक जन्म के समय मानव-पशु होता है। उसे न बोलना आता है और न कपड़े पहनना। उसका न आदर्श होता है और न वह किसी प्रकार का व्यवहार करना ही जानता है। पर सामाजिक वातावरण के सम्पर्क में रहकर उसमें धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगता है। उसे अपनी भाषा, रहन-सहन के ढंग, खाने-पीने की विधि, दूसरों के साथ व्यवहार करने के प्रतिमान, धार्मिक एवं नैतिक विचार आदि अनेक बातें समाज से प्राप्त होती है। इस प्रकार, समाज उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है। गैरेट (Garrett) के अनुसार, “जन्म के समय से ही बालंक का व्यक्तित्व उस समाज के द्वारा, जिसमें वह रहता है, निर्मित और परिवर्तित किया जाता है।“ 9. सांस्कृतिक वातावरण (Cultural environment)समाज व्यक्तित्व का निर्माण करता है। संस्कृति उसके स्वरूप को निश्चित करती है। प्रत्येक संस्कृति की अपनी मान्यताएँ, रीति-रिवाज, रहन-सहन की विधियाँ, धर्म-कर्म आदि होते हैं। मनुष्य जिस संस्कृति में जन्म लेता है, जिसमें उसका लालन-पालन होता है उसी के अनुरूप उसके व्यक्तित्व का स्वरूप निश्चित होता है। इस प्रकार उसके व्यक्तित्व पर उसकी संस्कृति की अमिट छाप लग जाती है। बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वेल्ड (Boring, Langfeld and Weld) के अनुसार, “जिस संस्कृति में व्यक्तित्व का लालन-पालन होता है, उसका उसके व्यक्तित्व के लक्षणों पर सबसे अधिक व्यापक प्रकार का प्रभाव पड़ता है।“ 10. परिवार (Family)व्यक्तित्व के निर्माण का कार्य परिवार में आरम्भ होता है। यदि बालक को परिवार में प्रेम, सुरक्षा और स्वतन्त्रता का वातावरण मिलता है तो उसमें साहस स्वतन्त्रता और आत्म-निर्भरता आदि गुणों का विकास होता है। इसके विपरीत उसके प्रति कठोरता का व्यवहार किया जाता है और उसे छोटी-छोटी बातों के लिये डाँटा और फटकारा जाता है तो वह कायर और असत्यभाषी बन जाता है। परिवार की उत्तम या निम्न आर्थिक और सामाजिक स्थिति का भी उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है, जैसा कि थॉर्प एवं शमलर (Thorne and Sahimuller) ने लिखा है, “परिवार बालक को ऐसे अनुभव प्रदान करता है, जो उसके व्यक्तित्व के विकास की दिशा को बहुत अधिक सीमा तक निश्चित करते हैं।“ 11. विद्यालय (School)व्यक्तित्व के विकास पर विद्यालय की सभी बातों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है; जैसे- पाठ्यक्रम, अनुशासन, शिक्षक-छात्र सम्बन्ध, छात्र-छात्र सम्बन्ध खेलकुद आदि, अनेक मनोवैज्ञानिकों की यह अटल धारणा है कि औपचारिक पाठ्यक्रम, कठोर अनुशासन, प्रेम और सहानुभूति शिक्षक एवं छात्रों के पारस्परिक वैमनस्यपूर्ण सम्बन्ध व्यक्तित्व को निश्चित रूप से कुण्ठित और विकृत कर देते हैं। क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के शब्दों में, “बालक के विकसित होने वाले व्यक्तित्व पर विद्यालय के अनुभवों का प्रभाव उससे कहीं अधिक पड़ता है, जितना कि कुछ शिक्षकों का विचार है।“ 12. अन्य कारक (Other factors)व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक हैं-
निष्कर्ष के रूप में, हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व के विकास पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव के समग्र रूप का अध्ययन करके ही व्यक्तित्व के विकास की वास्तविक परिस्थितियों का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा करते समय इस तथ्य पर विशेष रूप से ध्यान रखना आवश्यक है कि व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले सबसे अधिक शक्तिशाली कारक पर्यावरण सम्बन्धी है। इस सम्बन्ध में थार्प एवं शमलर (Thorp and Schmuller) का विचार उल्लेखनीय है, “भौतिक.सांस्कृतिक और सामाजिक वातावरण-ये सभी व्यक्तित्व के निर्माण में इतना प्रभावशाली कार्य करते हैं कि व्यक्तित्व को उसे आवृत्त रखने वाली बातों से पृथक् नहीं किया जा सकता है।“
मानव व्यवहार को प्रभावित करने वाले कितने कारक हैं?व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य जैविक कारक हैं – नलिकाविहिन ग्रन्थियाँ (Ductless Glands), अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands) और शारीरिक रसायन (Body Chemistry)।
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?परिवार में कलह होने या परिवार की संघर्षपूर्ण जीवन शैली तथा परिवारजनों की प्रवृत्तियाँ, महत्वाकांक्षा, रूचि, दृष्टिकोण, क्षमता और आर्थिक, सामाजिक व शैक्षिक स्थिति आदि भी बालक के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। जैसे-जैसे बालक का विकास होता जाता है उसका सामाजिक दायरा बढ़ता जाता हैं।
मानव विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक क्या है?बालक के विकास और उसकी गति पर भोजन, स्वास्थ्यजनक परिस्थितियों, वातावरण, सूर्य प्रकाश, शुद्ध वायु तथा ऋतु आदि का प्रभाव पड़ता है तो उसकी मनोवृत्तियों, वंशानुक्रम तथा सामाजिक सम्बन्धों का भी प्रभाव पड़ता है ।
बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले दो मुख्य कारक कौन कौन से हैं?उत्तर: बालक के व्यक्तित्व निर्माण में आनुवंशिकता एवं पर्यावरण को प्रमुख योगदान होता है। आनुवंशिकता के अन्तर्गत वे समस्त कारक निहित होते हैं, जो बालक को अपने माता-पिता तथा पूर्वजों से प्राप्त होते हैं।
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