मीराबाई का जन्म और मृत्यु कब हुई थी? - meeraabaee ka janm aur mrtyu kab huee thee?

मीराबाई
मीराबाई का जन्म और मृत्यु कब हुई थी? - meeraabaee ka janm aur mrtyu kab huee thee?

राजा रवि वर्मा द्वारा मीराबाई की पेंटिंग
जन्म ई. 1498[1][2]
कुड़की ग्राम (पाली)
मृत्यु ई. 1547[1][2]
द्वारिका, गुजरात सल्तनत
अन्य नाम

  • मीरा
  • मीरा बाई

प्रसिद्धि कारण कविता, कृष्ण भक्ति
जीवनसाथी भोज राज सिंह सिसोदिया (वि॰ 1516; नि॰ 1521)

मीराबाई का जन्म और मृत्यु कब हुई थी? - meeraabaee ka janm aur mrtyu kab huee thee?

मीराबाई (1498-1546) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। संत रैदास या रविदास उनके गुरु थे।

जीवन परिचय[संपादित करें]

मीराबाई का जन्म और मृत्यु कब हुई थी? - meeraabaee ka janm aur mrtyu kab huee thee?

मीराबाई का जन्म सन 1498 ई॰ में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्तोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुआ। पति की मृत्यु पर भी मीरा माता ने अपना श्रृंगार नहीं उतारा, क्योंकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी।[3]

वे विरक्त हो गईं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृन्दावन गई। वह जहाँ जाती थी, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हें देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का युद्ध उसी समय हुआ था। इन सभी परिस्थितियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धति सर्वमान्य बनी।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भक्तिकाल के कवि

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ Arvind Sharma (2003), The Study of Hinduism, The University of South Carolina Press, ISBN 978-1570034497, page 229
  2. ↑ अ आ Phyllis G. Jestice (2004). Holy People of the World: A Cross-Cultural Encyclopedia. ABC-CLIO. पृ॰ 724. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-57607-355-1. मूल से 17 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जुलाई 2020.
  3. "मीराबाई के जीवन की महत्वपूर्ण बातें". भास्कर. मूल से 16 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • कविताकोश पर मीराबाई
  • अनुभूति पर मीराबाई
  • मीरा ग्रन्थावली (गूगल पुस्तक ; लेखक-कल्याणसिंह शेखावत)

मीराबाई का जन्म और मृत्यु कब हुई थी? - meeraabaee ka janm aur mrtyu kab huee thee?

कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री मीराबाई की जन्मतिथि, जन्म स्थल व जीवन के बारे में अनेक जानकारी अन्य संत कवियों की भांति पूर्णतया प्रमाणिक नहीं है।  

कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री मीराबाई का जन्म 1559-60  के आसपास कुड़की गाँव में हुआ था। अधिकतर विद्वान् इससे सहमत हैं जिनमें मुंशी देवीप्रसाद व  डॉ० श्रीकृष्ण लाल सम्मिलित हैं। हालाँकि ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल' जो 'भारत' और 'मनोरमा' के संपादक रहे हैं, ने अपनी पुस्तक 'स्त्री-कवि-कौमुदी' (1931, गाँधी हिन्दी पुस्तक भंडार) में मीरा का जन्म स्थल 'चौकड़ी' बताया है।  इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं।

विवाह के थोड़े ही दिन के बाद आपके पति का स्वर्गवास हो गया था। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन- प्रति- दिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं।

मीराबाई का घर से निकाला जाना

मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग आपको देवियों के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। इसी दौरान उन्होंने तुलसीदास को पत्र लिखा था :-

स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन- हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
साधु- सग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।।
मेरे माता- पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई।
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई।।

मीराबाई के पत्र का जबाव तुलसी दास ने इस प्रकार दिया:-

जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेहा।।
नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ।
अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ।।


मीरा द्वारा रचित ग्रंथ

मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की--

- बरसी का मायरा
- गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठ के पद

इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन "मीराबाई की पदावली' नामक ग्रन्थ में किया गया है।


मीराबाई की भक्ति

मीरा की भक्ति में माधुर्य- भाव काफी हद तक पाया जाता था। वह अपने इष्टदेव कृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रुप में करती थी। उनका मानना था कि इस संसार में कृष्ण के अलावा कोई पुरुष है ही नहीं। कृष्ण के रुप की दीवानी थी--

बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति, साँवरि, सुरति नैना बने विसाल।।
अधर सुधारस मुरली बाजति, उर बैजंती माल।
क्षुद्र घंटिका कटि- तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।।

मीराबाई रैदास को अपना गुरु मानते हुए कहती हैं -

'गुरु मिलिया रैदास दीन्ही ज्ञान की गुटकी।'

इन्होंने अपने बहुत से पदों की रचना राजस्थानी मिश्रित भाषा में ही है। इसके अलावा कुछ विशुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा में भी लिखा है। इन्होंने जन्मजात कवियित्री न होने के बावजूद भक्ति की भावना में कवियित्री के रुप में प्रसिद्धि प्रदान की। मीरा के विरह गीतों में समकालीन कवियों की अपेक्षा अधिक स्वाभाविकता पाई जाती है। इन्होंने अपने पदों में श्रृंगार और शांत रस का प्रयोग विशेष रुप से किया है।

मन रे पासि हरि के चरन।
सुभग सीतल कमल- कोमल त्रिविध - ज्वाला- हरन।
जो चरन प्रह्मलाद परसे इंद्र- पद्वी- हान।।
जिन चरन ध्रुव अटल कींन्हों राखि अपनी सरन।
जिन चरन ब्राह्मांड मेंथ्यों नखसिखौ श्री भरन।।
जिन चरन प्रभु परस लनिहों तरी गौतम धरनि।
जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।।
दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन।।

Author's Collection

Total Number Of Record :4

फागुन के दिन चार

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥

बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥

सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥

...

मीरा के पद - Meera Ke Pad

दरद न जाण्यां कोय

हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
...

मीरा के होली पद

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥

बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥

सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥

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मीरा के भजन

मीरा के भजनों का संग्रह।

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Total Number Of Record :4

Meera की मृत्यु कब हुई?

1547मीराबाई / मृत्यु तारीखnull

मीराबाई का जन्म कब हुआ था और मृत्यु कब हुई थी?

मीराबाई (1498-1546) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं।

मीराबाई का जन्म कहां और कब हुआ था?

कुडकी, भारतमीराबाई / जन्म की तारीख और समयnull

मीरा के कृष्ण कैसे हैं?

मीराबाई का जन्म सन् 1498 में राजस्थान के एक राजपूत घराने में हुआ था. उनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम वीर कुमारी था. मीरा कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं. जब वह 4 वर्ष की थी तब उन्होंने अपने घर के पास हो रहे एक विवाह को देखकर बेहद मासूमियत के साथ अपनी मां से पूछा था कि प्यारी मां, मेरा दूल्हा कौन होगा?